Thursday, 16 April 2015

Sura-a-Ibraheem 14th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.),

    सूरा-ए-इब्राहीम
14   शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा रहमान और रहीम है।
14 1 अलिफ़ लाम रा, ये किताब है जिसे हमने आपकी तरफ़ नाजि़ल किया है ताकि आप लोगों को हुक्मे ख़ु़दा से तारीकियों (अन्धेरों) से निकाल कर नूर (रोशनी) की तरफ़ ले आयें और ख़ु़दा-ए-अज़ीज़ (ज़बरदस्त, ग़ालिब) व हमीद (सज़ावारे हम्द) के रास्ते पर लगा दें 
14 2 वह अल्लाह वह है जिसके लिए ज़मीन व आसमान की हर शै (चीज़) है और काफि़रों के लिए तो सख़्ततरीन और अफ़सोसनाक अज़ाब है 
14 3 वह लोग जो जि़न्दगानी दुनिया को आखि़रत के मुक़ाबले में पसन्द करते हैं और लोगों को राहे ख़ु़दा से रोकते हैं और इसमें कजी (टेढ़ापन या कमी) पैदा करना चाहते हैं ये गुमराही में बहुत दूर तक चले गये हैं 
14 4 और हमने जिस रसूल को भी भेजा उसी की क़ौम की ज़्ाुबान के साथ भेजा ताकि वह लोगों पर बातों को वाजे़ह (एकदम साफ़ तौर पर ज़ाहिर) कर सके इसके बाद ख़ु़दा जिसको चाहता है गुमराही (ग़लत राह) में छोड़ देता है और जिसको चाहता है हिदायत दे देता है वह साहेबे इज़्ज़त भी है और साहेबे हिकमत भी 
14 5 और हमने मूसा को अपनी निशानियों के साथ भेजा कि अपनी क़ौम को ज़्ाुल्मतों (अन्धेरों) से नूर (रोशनी) की तरफ़ निकाल कर लायें और उन्हें ख़ु़दाई दिनों की याद दिलायें कि बेशक इसमें तमाम सब्र करने वाले और शुक्र करने वाले अफ़राद (लोगों) के लिए बहुत सी निशानियाँ पायी जाती हैं 
14 6 और उस वक़्त को याद करो जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा कि तुम लोग अल्लाह की उस नेअमत को याद करो कि उसने तुम्हें फि़रऔन वालों से निजात दिलाई जबकि वह बदतरीन (सबसे ख़राब) अज़ाब में मुब्तिला कर (तुमको ढकेल) रहे थे कि तुम्हारे लड़कों को ज़बह (क़त्ल) कर रहे थे और तुम्हारी लड़कियों को (कनीज़ी के लिए) जि़न्दा रखते थे और इसमें तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से बड़ा सख़्त (कड़ा) इम्तिहान था
14 7 और जब तुम्हारे परवरदिगार ने एलान किया कि अगर तुम हमारा शुक्रिया अदा करोगे तो हम नेअमतों में इज़ाफ़ा (ज़्यादती) कर देंगे और अगर कुफ्ऱाने नेअमत (नेमतों का इनकार) करोगे तो हमारा अज़ाब भी बहुत सख़्त है 
14 8 और मूसा ने ये भी कह दिया कि अगर तुम सब और रूए ज़मीन के तमाम बसने वाले भी काफि़र हो जायें तो हमारा अल्लाह सबसे बेनियाज़ (बग़ैर ज़रूरत वाला) है और वह क़ाबिले हम्द (लायके़ तारीफ़) व सताएश है 
14 9 क्या तुम्हारे पास अपने से पहले वाली क़ौमे नूह (नूह की क़ौम) और क़ौमे आद (आद की क़ौम) व समूद (समूद की क़ौम) और जो इनके बाद गुज़रे हैं और जिन्हें ख़ु़दा के अलावा कोई नहीं जानता है की ख़बरें नहीं आयी हैं कि इनके पास अल्लाह के रसूल मोजिज़ात (चमत्कार) लेकर आये और उन्होंने उनके हाथों को उन्हीं के मुँह की तरफ़ पलटा दिया और साफ़ कह दिया कि हम तुम्हारे लाये हुए पैग़ाम के मुन्किर (इन्कार करने वाले) हैं और हमें इस बात के बारे में वाजे़ह (ज़ाहिर तौर पर) शक है जिसकी तरफ़ तुम हमें दावत दे रहे हो 
14 10 तो रसूलों ने कहा कि क्या तुम्हें अल्लाह के बारे में भी शक है जो ज़मीन व आसमान का पैदा करने वाला है और (वह) तुम्हें इसलिए बुलाता है कि तुम्हारे गुनाहों को माॅफ़ कर दे और एक मुअईयन मुद्दत (तय किये हुए वक्त) तक ज़मीन में चैन से रहने दे-तो इन लोगों ने जवाब दिया कि तुम सब भी हमारे ही जैसे बशर (आदमी) हो और चाहते हो कि हमें उन चीज़ों से रोक दो जिनकी हमारे बाप-दादा इबादत किया करते थे तो अब कोई खुली हुई दलील (निशानी, सबूत) ले आओ 
14 11 उन रसूलों ने कहा कि यक़ीनन हम तुम्हारे ही जैसे बशर (आदमी) हैं लेकिन ख़ु़दा जिस बन्दे पर चाहता है मख़्सूस (ख़ास) एहसान भी करता है और हमारे इखि़्तयार में ये भी नहीं है कि हम बिला इज़्ने ख़ु़दा कोई दलील (निशानी, सबूत) या मोजिज़ा (चमत्कार) ले आयें और साहेबाने ईमान तो सिर्फ़ अल्लाह ही पर भरोसा करते हैं 
14 12 और हम क्यों न अल्लाह पर भरोसा करें जबकि उसी ने हमें हमारे रास्तों की हिदायत दी है और हम यक़ीनन तुम्हारी अज़ीयतों (तकलीफ़ों) पर सब्र करेंगे और भरोसा करने वाले तो अल्लाह ही पर भरोसा करते हैं
14 13 और काफि़रांे ने अपने रसूलों से कहा कि हम तुमको अपनी सर ज़मीन से निकाल बाहर कर देंगे या तुम हमारे मज़हब (दीन) की तरफ़ पलट आओगे तो परवरदिगार ने उनकी तरफ़ वही (हुक्मे ख़ुदा) की कि ख़बरदार घबराओ नहीं हम यक़ीनन ज़ालेमीन (ज़्ाुल्म करने वालों) को तबाह व बर्बाद कर देंगे 
14 14 और तुम्हें इनके बाद ज़मीन में आबाद कर देंगे और ये सब उन लोगांे के लिए है जो हमारे मुक़ाम और मर्तबे से डरते हैं और हमारे अज़ाब का ख़ौफ़ रखते हैं 
14 15 और पैग़म्बरों ने हमसे फ़तह (जीत) का मुतालेबा किया और उनसे एनाद (बुग्ज) रखने वाले सरकश (बाग़ी) अफ़राद (लोग) ज़लील (नीच) और रूसवा (बे-इज़्ज़त) हो गये 
14 16 इनके पीछे जहन्नुम है और इन्हें पीपदार पानी पिलाया जायेगा 
14 17 जिसे घूँट-घूँट पियेंगे और वह इन्हें गवारा न होगा और इन्हें मौत हर तरफ़ से घेर लेगी हालांकि वह मरने वाले नहीं हैं और इनके पीछे बहुत सख़्त अज़ाब लगा हुआ है 
14 18 जिन लोगांे ने अपने परवरदिगार का इन्कार किया उनके आमाल की मिसाल उस राख की है जिसे अँधेड़ के दिन की तुन्द (तेज़) हवा उड़ा ले जाये कि वह अपने हासिल किये हुए पर भी इखि़्तयार न रखेगी और यही बहुत दूर तक फैली हुई गुमराही (कुफ्ऱ की राह) है
14 19 क्या तुमने नहीं देखा कि अल्लाह ने ज़मीन और आसमानों को बरहक़ पैदा किया है वह चाहे तो तुमको फ़ना (ख़त्म) करके एक नई मख़्लूक़ (ख़ुदा की बनाई हुई नई खि़ल्क़त) को ला सकता है 
14 20 और अल्लाह के लिए यह बात कोई मुश्किल नहीं है 
14 21 और क़यामत के दिन सब अल्लाह के सामने हाजि़र होंगे तो कमज़ोर लोग मुस्तकबेरीन (गुरूर करने वाले) से कहेंगे कि हम तो आपके पैरोकार (मानने वाले) थे तो क्या आप अज़ाबे इलाही के मुक़ाबले में हमारे कुछ काम आ सकते हैं तो वह जवाब देंगे कि अगर ख़ु़दा हमें हिदायत दे देता तो हम भी तुम्हें हिदायत दे देते। अब तो हमारे लिए सब ही बराबर है चाहे फ़रियाद करें या सब्र करें कि अब कोई छुटकारा मिलने वाला नहीं है 
14 22 और शैतान तमाम उमूर का फ़ैसला हो जाने के बाद कहेगा कि अल्लाह ने तुमसे बिल्कुल बरहक़ वादा किया था और मैंने भी एक वादा किया था फिर मैंने अपने वादे की मुख़ालिफ़त (उलट) की और मेरा तुम्हारे ऊपर कोई ज़ोर भी नहीं था सिवाए इसके कि मैंने तुम्हें दावत दी और तुमने इसे कु़बूल कर लिया तो अब तुम मेरी मलामत (बुरा कहना) न करो बल्कि अपने नफ़्स (जान) की मलामत (धुतकारना) करो कि न मैं तुम्हारी फ़रियादरसी (फ़रयाद को पूरा) कर सकता हूँ न तुम मेरी फ़रियाद को पहुँच सकते हो मैं तो पहले ही से इस बात से बेज़ार (नफरत में) हूँ कि तुमने मुझे उसका शरीक बना दिया और बेशक ज़ालेमीन (ज़ुल्म करने वालों) के लिए बहुत बड़ा दर्दनाक अज़ाब है 
14 23 और साहेबाने ईमान व अमल सालेह (नेक काम वालों) को उन जन्नतों में दाखि़ल किया जायेगा जिनके नीचे नहरें जारी होंगी वह हमेशा हुक्मे ख़ु़दा से वहीं रहेंगे और उनकी मुलाक़ात का तोहफ़ा सलाम होगा 
14 24 क्या तुमने नहीं देखा कि अल्लाह ने किस तरह कलमाये तय्यबा (पाक कलमे) की मिसाल शजरा-ए-तय्यबा (पाकीज़ा पेड़) से बयान की है जिसकी असल साबित है और इसकी शाख़ आसमान तक पहुँची हुई है
14 25 ये शजरा हर ज़माने में हुक्मे परवरदिगार से फ़ल देता रहता है और ख़ु़दा लोगों के लिए मिसालें बयान करता है कि शायद इसी तरह होश में आ जायें 
14 26 और कल्मा-ए-ख़बीसा (गन्दे कलमे, गन्दी बात) की मिसाल उस शजरे ख़बीसा (गन्दे पेड़) की है जो ज़मीन के ऊपर ही से उखाड़कर फेंक दिया जाये और उसकी कोई बुनियाद न हो
14 27 अल्लाह साहेबाने ईमान को क़ौले साबित (बात को वाज़ेह कहने) के ज़रिये दुनिया और आखि़रत में साबित क़दम (सही राह पर मज़बूत) रखता है और ज़ालेमीन को गुमराही में छोड़ देता है और वह जो भी चाहता है अंजाम देता है 
14 28 क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिन्होंने अल्लाह की नेअमत को कुफ्ऱाने नेअमत (नेमतों को इन्कार) से तब्दील (बदल) कर दिया और अपनी क़ौम को हलाकत (मौत) की मंजि़ल तक पहुँचा दिया 
14 29 वह जहन्नम जिसमें ये सब वासिल होंगे और वह बदतरीन (सबसे ख़राब) क़रारगाह (ठहरने की जगह) है 
14 30 और उन लोगों ने अल्लाह के लिए मसल (मिसाल) क़रार दिये ताकि उसके ज़रिये लोगों को बहका सकें तो आप कह दीजिए कि थोड़े दिन और मज़े कर लो फिर तो तुम्हारा अंजाम जहन्नम ही है
14 31 और आप मेरे ईमानदार बन्दों से कह दीजिए कि नमाज़ंे क़ायम करें और हमारे रिज़्क़ में से ख़ुफि़या (छुपाकर) और एलानिया हमारी राह में इन्फ़ाक़ (ख़र्च) करें क़ब्ल (पहले) इसके कि वह दिन आ जाये जब न तिजारत काम आयेगी और न दोस्ती 
14 32 अल्लाह ही वह है जिसने आसमान व ज़मीन को पैदा किया है और आसमान से पानी बरसाकर उसके ज़रिये तुम्हारी रोज़ी के लिए फ़ल पैदा किये हैं और कश्तियों को मुसख़्ख़र (क़ाबू में) कर दिया है कि समुन्दर में उसके हुक्म से चलें और तुम्हारे लिए नहरों को भी मुसख़्ख़र (क़ाबू में) कर दिया है 
14 33 और तुम्हारे लिए हरकत करने (घूमने) वाले आफ़ताब (सूरज) व महताब (चाॅंद) को भी मुसख़्ख़र (क़ाबू में) कर दिया है और तुम्हारे लिए रात और दिन को भी मुसख़्ख़र (क़ाबू में) कर दिया है 
14 34 और जो कुछ तुमने माँगा उसमें से कुछ न कुछ ज़रूर दिया और अगर तुम उसकी नेअमतों को शुमार (गिनती) करना चाहोगे तो हर्गिज़ शुमार (गिनती) नहीं कर सकते। बेशक इन्सान बड़ा ज़ालिम और इन्कार करने वाला है 
14 35 और उस वक़्त को याद करो जब इब्राहीम ने कहा कि परवरदिगार इस शहर (नगर) को महफ़ूज़ (जो हिफ़ाज़त में रहे) बना दे और मुझे और मेरी औलाद को बुत परस्ती से बचाये रखना 
14 36 परवरदिगार इन बुतों ने बहुत से लोगों को गुमराह (ग़लत रास्ते पर) कर दिया है तो अब जो मेरा इत्तेबा (हुक्म पर अमल) करेगा वह मुझसे होगा और जो मासियत (हुक्म की खि़लाफ़त, गुनाह) करेगा उसके लिए तू बड़ा बख़्शने (माफ़ करने) वाला और मेहरबान है
14 37 परवरदिगार मैंने अपनी ज़्ाुर्रियत (औलाद) में से बाज़ को तेरे मोहतरम (एहतेराम वाले) मकान के क़रीब बे आब-व-ग्याह वादी (बग़ैर खाने पानी की जगह) में छोड़ दिया है ताकि नमाज़ें क़ायम करें अब तू लोगों के दिलों को उनकी (तरफ़) मोड़ दे और उन्हें फ़लों का रिज़्क़ अता फ़रमा ताकि वह तेरे शुक्रगुज़ार (शुक्र करने वाले) बन्दे बन जायें 
14 38 परवरदिगार हम जिस बात का एलान करते हैं या जिसको छिपाते हैं तू सबसे बा ख़बर (जानने वाला) है और अल्लाह पर ज़मीन व आसमान में कोई चीज़ मख़्फ़ी (छुपी हुई) नहीं रह सकती 
14 39 शुक्र है उस ख़ु़दा का जिसने मुझे बुढ़ापे में इस्माईल व इसहाक़ जैसी औलाद अता की है कि बेशक मेरा परवरदिगार दुआओं का सुनने वाला है 
14 40 परवरदिगार मुझे और मेरी ज़्ाुर्रियत (औलाद) में नमाज़ क़ायम करने वाले क़रार दे और परवरदिगार मेरी दुआ को कु़बूल कर ले 
14 41 परवरदिगार मुझे और मेरे वाल्दैन को और तमाम मोमिनीन को उस दिन बख़्श (माफ़ी) देना जिस दिन हिसाब क़ायम होगा 
14 42 और ख़बरदार ख़ु़दा को ज़ालेमीन (ज़्ाुल्म करने वाले) के आमाल से ग़ाफि़ल (बेपरवाह) न समझ लेना कि वह उन्हें उस दिन के लिए मोहलत दे रहा है जिस दिन आँखें ख़ौफ (डर)़ से पथरा जायेंगी 
14 43 सिर उठाये भागे चले जा रहे होंगे और पलकें भी न पलटती होंगी और उनके दिल दहशत (डर) से हवा हो रहे होंगे
14 44 और आप लोगों को उस दिन से डरायें जिस दिन उन तक अज़ाब आ जायेगा तो ज़ालेमीन कहेंगे कि परवरदिगार हमें थोड़ी मुद्दत (थोड़े वक़्त) के लिए पलटा दे कि हम तेरी दावत को कु़बूल कर लें और तेरे रसूल का इत्तेबा (कहने पर अमल) कर लें तो जवाब मिलेगा कि क्या तुमने इससे पहले क़सम नहीं खायी थी कि तुम्हें किसी तरह का ज़वाल (अमल के एतबार से गिरावट) न होगा
14 45 और तुम उन्हीं लोगों के मकानात में साकिन (रूकने वाले) थे जिन्हांेने अपने ऊपर ज़्ाुल्म किया था और तुम पर वाजे़ह था कि हमने उनके साथ क्या बरताव किया है और हमने तुम्हारे लिए मिसालें भी बयान कर दी थीं 
14 46 और उन लोगों ने अपना सारा मक्र (मक्कारियां) सर्फ़ (ख़र्च) कर दिया और ख़ु़दा की निगाह में उनका सारा मक्र (मक्कारियां) ऐसा था कि इससे पहाड़ भी अपनी जगह से हट जायें 
14 47 तो ख़बरदार तुम ये ख़्याल भी न करना कि ख़ु़दा अपने रसूलों से किये हुए वादे की खि़लाफ़ वजऱ्ी (खि़लाफ़ अमल) करेगा अल्लाह सब पर ग़ालिब (ग़लबे वाला) और बड़ा इन्तिक़ाम (बदला) लेने वाला है 
14 48 उस दिन जब ज़मीन दूसरी ज़मीन में तब्दील (बदल) हो जायेगी और आसमान भी बदल दिये जायेंगे और सब ख़ु़दाए वाहिद व क़हार के सामने पेश होंगे 
14 49 और तुम उस दिन मुजरेमीन (जुर्म करने वालों) को देखोगे कि किस तरह ज़ंजीरों में जकड़े हुए हैं 
14 50 इनके लिबास क़तरान (तारकोल) के होंगे और इनके चेहरों को आग हर तरफ़ से ढाँके हुए होगी 
14 51 ताकि ख़ु़दा हर नफ़्स (जान) को उसके किये का बदला दे दे कि वह बहुत जल्द हिसाब करने वाला है 
14 52 बेशक ये कु़रआन लोगों के लिए एक पैग़ाम है ताकि इसी के ज़रिये उन्हें डराया जाये और उन्हें मालूम हो जाये कि ख़ु़दा ही ख़ु़दाए वाहिद (एक) व यकता (अकेला) है और फिर साहेबाने अक़्ल नसीहत हासिल कर लें

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