Thursday, 16 April 2015

Sura-a-Isra 17th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.),

    सूरा-ए-इसरा
17   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
17 1 पाक व पाकीज़ा है वह परवरदिगार जो अपने बन्दे को रातों रात मस्जिदुल हराम से मस्जिदे अक़्सा तक ले गया जिसके एतराफ़ को हमने बाबर्कत (बरकत वाला) बनाया है ताकि हम उसे अपनी बाॅज़ (कुछ) निशानियाँ दिखलायें बेशक वह परवरदिगार सबकी सुनने वाला और सब कुछ देखने वाला है
17 2 और हमने मूसा को किताब इनायत की और उस किबात को बनी इसराईल के लिए हिदायत बना दिया कि ख़बरदार मेरे अलावा किसी को अपना कारसाज़ न बनाना
17 3 ये बनी इसराईल उनकी औलाद हैं जिनको हमने नूह के साथ कश्ती में उठाया था जो हमारे शुक्रगुज़ार (शुक्र करने वाले) बन्दे थे 
17 4 और हमने बनी इसराईल को किताब में ये इत्तेला (ख़बर) भी दे दी थी कि तुम ज़मीन में दो मर्तबा फ़साद (लड़ाई-झगड़ा) करोगे और खू़ब बलन्दी हासिल करोगे 
17 5 इसके बाद जब पहले वादे का वक़्त आ गया तो हमने तुम्हारे ऊपर अपने उन बन्दों को मुसल्लत (तैनात) कर दिया जो बहुत सख़्त कि़स्म के जंगजू (जंग करने वाले) थे और उन्होंने तुम्हारे दयार में चुन-चुन कर तुम्हें मारा और ये हमारा होने वाला वादा था 
17 6 इसके बाद हमने तुम्हें दोबारा उन पर ग़ल्बा दिया और अमवाल (माल-दौलत) व औलाद से तुम्हारी मदद की और तुम्हें बड़े गिरोह वाला बना दिया 
17 7 अब तुम नेक अमल करोगे तो अपने लिए और बुरा करोगे तो अपने लिए करोगे। इसके बाद जब दूसरे वादे का वक़्त आ गया तो हमने दूसरी क़ौम को मुसल्लत (तैनात) कर दिया ताकि तुम्हारी शक्लें बिगाड़ दें और मस्जिद में इस तरह दाखि़ल हों जिस तरह पहले दाखि़ल हुए थे और जिस चीज़ पर भी क़ाबू पा लें उसे बाक़ायदा (पूरी तरह से) तबाह व बर्बाद कर दें
17 8 उम्मीद है कि तुम्हारा परवरदिगार तुम पर रहम कर दे लेकिन अगर तुमने दोबारा फ़साद (लड़ाई-झगड़ा) किया तो हम फि़र सज़ा देंगे और हमने जहन्नम को काफि़रों (इन्कार करने वालों) के लिए एक क़ैदख़ाना बना दिया है 
17 9 बेशक ये क़ु़़रआन उस रास्ते की हिदायत करता है जो बिल्कुल सीधा है और उन साहेबाने ईमान को बशारत (ख़ुशख़बरी) देता है जो नेक आमाल बजा लाते हैं कि उनके लिए बहुत बड़ा अज्र है 
17 10 और जो लोग आखि़रत पर ईमान नहीं रखते हैं उनके लिए हमने एक दर्दनाक अज़ाब मुहैय्या (का इन्तेज़ाम) कर रखा है 
17 11 और इन्सान कभी कभी अपने हक़ में भलाई की तरह बुराई की दुआ मांगने लगता है कि इन्सान बहुत जल्दबाज़ (जल्दी करने वाला) वाके़अ हुआ है 
17 12 और हमने रात और दिन को अपनी निशानी क़रार दिया है फिर हम रात की निशानी को मिटा देते हैं और दिन की निशानी को रौशन कर देते हैं ताकि तुम अपने परवरदिगार के फ़ज़्ल व ईनाम को तलब कर सको और साल और हिसाब के आदाद (गिनती) मालूम कर सको और हमने हर शै को तफ़सील के साथ (बहुत खुल कर) बयान कर दिया है
17 13 और हमने हर इन्सान के नामा-ए आमाल (करतूतों/अमल का हिसाब-किताब) को उसकी गर्दन में आवीज़ाँ कर दिया है और रोज़े क़यामत उसे एक खुली हुई किताब की तरह पेश कर देंगे 
17 14 कि अब अपनी किताब को पढ़ लो आज तुम्हारे हिसाब के लिए यही किताब काफ़ी है 
17 15 जो शख़्स भी हिदायत हासिल करता है वह अपने फ़ायदे के लिए करता है और जो गुमराही इखि़्तयार करता (अपनाता) है वह भी अपना ही नुक़सान करता है और कोई किसी का बोझ उठाने वाला नहीं है और हम तो उस वक़्त तक अज़ाब करने वाले नहीं हैं जब तक कि कोई रसूल न भेज दें 
17 16 और हमने जब भी किसी क़रिये (बस्ती) को हलाक करना चाहा तो उसके सरवत मन्दों (बहुत अमीर लोगों) पर एहकाम नाफि़ज़ (लागू) कर दिये और उन्होंने उनकी नाफ़रमानी (कहना नहीं मानना) की तो हमारी बात साबित हो गई और हमने उसे मुकम्मल (पूरी) तौर पर तबाह कर दिया 
17 17 और हमने नूह के बाद भी कितनी उम्मतों को हलाक (मार डालना) कर दिया है और तुम्हारा परवरदिगार बन्दों के गुनाहों का बेहतरीन (सबसे अच्छा) जानने वाला और देखने वाला है 
17 18 जो शख़्स भी दुनिया का तलबगार (दुनिया ही को मांगने वाला) है हम उसके लिए जल्दी ही जो चाहते हैं दे देते हैं फिर इसके बाद उसके लिए जहन्नम है जिसमें वह जि़ल्लत व रूसवाई के साथ दाखि़ल होगा 
17 19 और जो शख़्स आखि़रत का चाहने वाला है और उसके लिए वैसी ही सअई भी करता है और साहेबे ईमान भी है तो उसकी सअई यक़ीनन मक़बूल क़रार दी जायेगी 
17 20 हम आपके परवरदिगार की अता (दी हुई नेमत) व बखि़्शश (माफ़ी) से इनकी और उनकी सबकी मदद करते हैं और आपके परवरदिगार की अता (नेमतें) किसी पर बन्द नहीं है
17 21 आप देखिये कि हमने किस तरह बाॅज़ (कुछ) को बाॅज़ (कुछ) पर फ़ज़ीलत दी है और फिर आखि़रत के दरजात और वहाँ की फ़ज़ीलतें (अच्छाईयां, बड़ाईयां) तो और ज़्यादा बुज़्ाुर्ग व बरतर हैं 
17 22 ख़बरदार अपने परवरदिगार के साथ कोई दूसरा ख़ुदा क़रार न देना कि इस तरह क़ाबिले मज़म्मत (बुराई) और लावारिस बैठे रह जाओगे और कोई ख़ुदा काम न आयेगा 
17 23 और आपके परवरदिगार का फ़ैसला है कि तुम सब उसके अलावा किसी की इबादत न करना और माँ बाप के साथ अच्छा बरताव करना और अगर तुम्हारे सामने इन दोनों में से कोई एक या दोनों बूढ़े हो जायें तो ख़बरदार उनसे उफ़ भी न कहना और उन्हें झिड़कना भी नहीं और उनसे हमेशा शरीफ़ाना (शराफ़त के साथ) गुफ़्तगू (बातें) करते रहना 
17 24 और उनके लिए ख़ाकसारी (अपने को कमतर जानने) के साथ अपने कांधो को झुका देना और उनके हक़ में दुआ करते रहना कि परवरदिगार उन दोनों पर इसी तरह रहमत नाजि़ल फ़रमा जिस तरह कि उन्होंने बचपने में मुझे पाला है 
17 25 तुम्हारा परवरदिगार तुम्हारे दिलों के हालात से खू़ब बाख़बर (ख़बर रखने वाला, जानने वाला) है और अगर तुम सालेह (अच्छे अमल करने वाले) और नेक किरदार हो तो वह तौबा करने वालों के लिए बहुत बख़्शने (माफ़ करने) वाला भी है 
17 26 और देखो क़राबतदारों (क़रीबियों) को और मिस्कीन (फ़क़ीरों) को और मुसाफि़र गु़र्बतज़दा (जो हालते ग़्ाुर्बत में हो) को उसका हक़ दे दो और ख़बरदार इसराफ़ (ज़्यादती) से काम न लेना 
17 27 इसराफ़ (ज़्यादती) करने वाले शयातीन (शैतानों) के भाई-बन्द हैं और शैतान तो अपने परवरदिगार का बहुत बड़ा इन्कार करने वाला है 
17 28 अगर तुमको अपने रब की रहमत के इन्तिज़ार में जिसके तुम उम्मीदवार हो उन अफ़राद (लोगों) से किनाराकश (अलग, दूरी इखि़्तयार करना) भी होना पड़े तो उनसे नर्म अंदाज़ से गुफ़्तगू (बातें) करना 
17 29 और ख़बरदार न अपने हाथों को गर्दनों से बंधा हुआ क़रार दो और न बिल्कुल फैला दो कि आखि़र में क़ाबिले मलामत (लानत) और ख़ाली हाथ बैठे रह जाओ 
17 30 तुम्हारा परवरदिगार जिसके लिए चाहता है रिज़्क़ को वसी (फ़ैला हुआ) या तंग (बहुत कम) बना देता है वह अपने बन्दों के हालात का ख़ू़ब जानने वाला और देखने वाला है
17 31 और ख़बरदार अपनी औलाद को फ़ाक़े के ख़ौफ़ से क़त्ल न करना कि हम उन्हें भी रिज़्क़ देते हैं और तुम्हें भी रिज़्क़ देते हैं बेशक उनका क़त्ल कर देना बहुत बड़ा गुनाह है 
17 32 और देखो ज़ेना के क़रीब भी न जाना कि ये बदकारी (बुरा काम) है और बहुत बुरा रास्ता है 
17 33 और किसी नफ़्स (जान) को जिसको ख़ुदा ने मोहतरम (एहतेराम के क़ाबिल) बनाया है बग़ैर हक़ के क़त्ल भी न करना कि जो मज़लूम क़त्ल होता है हम उसके वली (सरपरस्त) को बदले का इखि़्तयार दे देते हैं लेकिन उसे भी चाहिए कि क़त्ल में हद से आगे न बढ़ जाये कि उसकी बहरहाल (हर हाल में) मदद की जायेगी 
17 34 और यतीम के माल के क़रीब भी न जाना मगर इस तरह जो बेहतरीन (सबसे अच्छा) तरीक़ा है यहाँ तक कि वह तवाना हो जाये और अपने अहदों (वादों) को पूरा करना कि अहद (वादे) के बारे में सवाल किया जायेगा
17 35 और जब नापो तो पूरा नापो और जब तौलो तो सही तराज़ू से तौलो कि यही बेहतरी और बेहतरीन (सबसे अच्छा) अंजाम का ज़रिया है 
17 36 और जिस चीज़ का तुम्हें इल्म नही है उसके पीछे मत जाना कि रोज़े क़यामत (क़यामत के दिन) समाअत (सुनने की ताक़त), बसारत (देखने की ताक़त) और कू़व्वते क़ल्ब (दिल की एहसास करने की ताक़त) सबके बारे में सवाल किया जायेगा 
17 37 और रूए ज़मीन पर अकड़ कर न चलना कि न तुम ज़मीन को शक़ (फ़ाड़, दोपारा) कर सकते हो और न सिर उठाकर पहाड़ों की बुलन्दियों तक पहुँच सकते हो 
17 38 ये सब बातें वह हैं जिनकी बुराई तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक सख़्त नापसन्द है 
17 39 ये वह हिकमत है जिसकी वही तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हारी तरफ़ की है और ख़बरदार ख़ुदा के साथ किसी और को ख़ुदा न क़रार देना कि जहन्नम में मलामत (लानत) और जि़ल्लत के साथ डाल दिये जाओ
17 40 क्या तुम्हारे परवरदिगार ने तुम लोगों के लिए लड़कों को पसन्द किया है और अपने लिए मलायका (फ़रिश्तो) में से लड़कियाँ बनाई हैं ये तुम बहुत बड़ी बात कह रहे हो 
17 41 और हमने इस कु़रआन में सब कुछ तरह-तरह से बयान कर दिया है कि ये लोग इबरत हासिल करें लेकिन इनकी नफ़रत ही में इज़ाफ़ा (बढ़ावा) हो रहा है 
17 42 तो आप कह दीजिए कि उनके कहने के मुताबिक़ अगर ख़ुदा के साथ कुछ और ख़ुदा भी होते तो अब तक साहेबे अर्श (अर्श के मालिक) तक पहुँचने की कोई राह निकाल लेते 
17 43 वह पाक और बेनियाज़ (जिसे किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं) है और उनकी बातों से बहुत ज़्यादा बुलन्द व बाला (बरतर) है 
17 44 सातों आसमान और ज़मीन और जो कुछ इनके दरम्यान (बीच में)  है सब उसकी तसबीह कर रहे हैं और कोई शै ऐसी नहीं है जो उसकी तसबीह न करती हो ये और बात है कि तुम इनकी तसबीह को नहीं समझते हो। परवरदिगार बहुत बर्दाश्त करने वाला और दरगुज़र (माफ़) करने वाला है 
17 45 और जब तुम कु़रआन पढ़ते हो तो हम तुम्हारे और आखि़रत पर ईमान न रखने वालों के दरम्यान (बीच में) हेजाब (पर्दा) क़ायम कर देते हैं 
17 46 और उनके दिलों पर पर्दे डाल देते हैं कि कुछ समझ न सकें और उनके कानों को बहरा बना देते हैं और जब तुम कु़रआन में अपने परवरदिगार का तन्हा जि़क्र करते हो तो ये उलटे पाँव मुन्तफि़र होकर भाग जाते हैं 
17 47 हम ख़ू़ब जानते हैं कि ये लोग आपकी तरफ़ कान लगाकर सुनते हैं और जब ये बाहम राज़दारी की बातें करते हैं तो हम इसे भी जानते हैं ये ज़ालिम आपस में कहते हैं कि तुम लोग एक जादू ज़दा इन्सान की पैरवी कर रहे हो 
17 48 ज़रा देखो कि उन्होंने तुम्हारे लिए कैसी मिसालें बयान की हैं और इस तरह ऐसे गुमराह (राह से भटके हुए) हो गये हैं कि कोई रास्ता नहीं मिल रहा है
17 49 और ये कहते हैं कि जब हम हड्डी और ख़ाक हो जायेंगे तो क्या दोबारा नई मख़लूक़ बनाकर उठाये जायेंगे 
17 50 आप कह दीजिए कि तुम पत्थर या लोहा बन जाओ 
17 51 या तुम्हारे ख़्याल में जो इससे बड़ी मख़लूक़ हो सकती हो वह बन जाओ पस अनक़रीब (बहुत जल्द) ये लोग कहेंगे कि हमें कौन दोबारा वापस ला सकता है तो कह दीजिए कि जिसने तुम्हें पहली मर्तबा (बार) पैदा किया है फिर ये इस्तेहज़ा में सिर हिलायेंगे और कहेंगे कि ये सब कब होगा तो कह दीजिए कि शायद क़रीब ही हो जाये 
17 52 जिस दिन वह तुम्हें बुलायेगा और तुम सब उसकी तारीफ़ करते हुए लब्बैक (हाजि़र हैं) कहोगे और ख़्याल करोगे कि बहुत थोड़ी देर दुनिया में रहे हो 
17 53 और मेरे बन्दों से कह दीजिए कि सिर्फ़ अच्छी बातें किया करें वरना शैतान यक़ीनन उनके दरम्यान (बीच में) फ़साद पैदा करना चाहेगा कि शैतान इन्सान का खुला हुआ दुश्मन है 
17 54 तुम्हारा परवरदिगार तुम्हारे हालात से बेहतर (अच्छी तरह से) वाकि़फ़ है वह चाहेगा तो तुम पर रहम करेगा और चाहेगा तो अज़ाब करेगा और पैग़म्बर हमने आपको उनका जि़म्मेदार बनाकर नहीं भेजा है 
17 55 और आपका परवरदिगार ज़मीन व आसमान की हर शै से बाख़बर (ख़बर रखने वाला, जानने वाला) है और हमने बाज़ अम्बिया को बाज़ पर फ़ज़ीलत दी है और दाऊद को ज़्ाु़बूर अता की है 
17 56 और उन लोगों से कह दीजिए कि ख़ुदा के अलावा जिनका भी ख़्याल है सबको बुला लें कोई न उनकी तकलीफ़ को दूर करने का इखि़्तयार रखता है और न उनके हालात के बदलने का 
17 57 ये जिनको ख़ुदा समझकर पुकारते हैं वह ख़ुद ही अपने परवरदिगार के लिए वसीला (ज़रिया) तलाश कर रहे हैं कि कौन ज़्यादा क़ु़रबत (अल्लाह से क़रीब) रखने वाला है और सब उसी की रहमत के उम्मीदवार और उसी के अज़ाब से ख़ौफ़ज़दा (डरने वाले) हैं यक़ीनन आपके परवरदिगार का अज़ाब डरने के लायक़ है 
17 58 और कोई नाफ़रमान (कहना न मानने वाली) आबादी ऐसी नहीं है जिसे हम क़यामत से पहले बर्बाद न कर दें या उस पर शदीद अज़ाब न नाजि़ल कर दे कि यह बात किताब में लिख दी गई है 
17 59 और हमारे लिए मुँह मांगी निशानियाँ भेजने से सिर्फ़ ये बात मानेअ है कि पहले वालों ने तकज़ीब (झुठलाना) की है और हलाक (मर गए, बर्बाद) हो गये हैं और हमने क़ौमे समूद को उनकी ख़्वाहिश (चाहत) के मुताबिक़ ऊँटनी दे दी जो हमारी कु़दरत को रौशन करने वाली थी लेकिन उन लोगों ने उस पर ज़्ाुल्म किया और हम निशानियों को सिर्फ़ डराने के लिए भेजते हैं
17 60 और जब हमने कह दिया कि आपका परवरदिगार तमाम लोगों के हालात से बाख़बर (ख़बर रखने वाला, जानने वाला) है और जो ख़्वाब हमने आपको दिखलाया है वह सिर्फ़ लोगों की आज़माईश (आज़माने) का ज़रिया है जिस तरह कि कु़रआन में क़ाबिले लानत शजरा भी ऐसा ही है और हम लोगों को डराते रहते हैं लेकिन उनकी सरकशी बढ़ती ही जा रही है 
17 61 और जब हमने मलायका (फ़रिश्तो) से कहा कि आदम को सजदा करो तो सबने सजदा कर लिया सिवाए इबलीस (शैतान) के कि उसने कहा कि क्या मैं उसे सजदा कर लूँ जिसे तूने मिट्टी से बनाया है 
17 62 क्या तूने देखा है कि ये क्या शै है जिसे मेरे ऊपर फ़ज़ीलत दे दी है अब अगर तूने मुझे क़यामत तक की मोहलत दे दी तो मैं इनकी ज़्ाुर्रियत (नस्ल) में चन्द (कुछ) अफ़राद (लोगों) के अलावा सबका गला घोंटता रहूँगा 
17 63 जवाब मिला कि जा अब जो भी तेरा इत्तेबा (बात पर अमल) करेगा तुम सबकी जज़ा (सिला) मुकम्मल तौर पर जहन्नम है 
17 64 जा जिस पर भी बस चले अपनी आवाज़ से गुमराह (राह से भटकाया) कर और अपने सवार और प्यादों (पैदल चलने वालों) से हमला कर दे और उनके अमवाल (माल-दौलत) और औलाद में शरीक हो जा और उनसे ख़ू़ब वादे कर कि शैतान सिवाए धोका देने के और कोई सच्चा वादा नहीं कर सकता है 
17 65 बेशक मेरे असली बन्दों पर तेरा कोई बस नहीं है और आपका परवरदिगार उनकी निगेहबानी (देखभाल, हिफ़ाज़त) के लिए काफ़ी है
17 66 और आपका परवरदिगार ही वह है जो तुम लोगों के लिए समन्दर में कश्तियाँ चलाता है ताकि तुम उसके फ़ज़्ल व करम को तलाश कर सको कि वह तुम्हारे हाल पर बड़ा मेहरबान है 
17 67 और जब दरिया में तुम्हें कोई तकलीफ़ पहुँची तो ख़ुदा के अलावा सब ग़ायब हो गये जिन्हें तुम पुकार रहे थे और फिर जब ख़ुदा ने तुम्हें बचाकर ख़ुश्की (सूखे) तक पहुँचा दिया तो तुम फिर किनाराकश (ख़ुदा से अलग) हो गये और इन्सान तो बड़ा नाशुक्रा है 
17 68 क्या तुम इस बात से महफ़ूज़ (हिफ़ाज़त में, सुरक्षित) हो गये हो कि वह तुम्हें ख़ुश्की ही में धँसा दे या तुम पर पत्थरों की बौछार कर दे और इसके बाद फिर कोई कारसाज़ न मिले 
17 69 या इस बात से महफ़ूज़ (हिफ़ाज़त में, सुरक्षित) हो गये हो कि वह दोबारा तुम्हें समन्दर में ले जाये और फिर तेज़ आँधियों को भेजकर तुम्हारे कुफ्ऱ (ख़ुदा का इन्कार करने) की बिना पर तुम्हें ग़कऱ् कर दे और इसके बाद कोई ऐसा न पाओ जो हमारे हुक्म का पीछा कर सके 
17 70 और हमने बनी आदम को करामत अता की है और उन्हें ख़ुश्की (सूखी ज़मीन) और दरियाओं में सवारियों पर उठाया है और उन्हें पाकीज़ा रिज़्क़ अता किया है और अपनी मख़लूक़ात (बनाई हुई चीज़ों) में से बहुत सों पर फ़ज़ीलत दी है
17 71 क़यामत का दिन वह होगा जब हम हर गिरोहे ईन्सानी (इन्सानों के हर गिरोह) को उसके पेशवा (इमाम, रहबर) के साथ बुलायेंगे और इसके बाद जिनका नामा-ए-आमाल (करतूतों/अमल का हिसाब-किताब) उनके दाहिने हाथ में दिया जायेगा वह अपने सहीफ़ा (अमल की किताब) को पढ़ेंगे और उन पर रेशा बराबर ज़्ाुल्म नहीं होगा 
17 72 और जो इसी दुनिया में अँधा है वह क़यामत में भी अँधा और भटका हुआ रहेगा 
17 73 और ये ज़ालिम इस बात के कोशान (कोशिश करने वाले) थे कि आपको हमारी वही से हटाकर दूसरी बातों के इफ़्तेरा (इल्ज़ाम लगाना)  पर आमादा कर दें और इस तरह ये आपको अपना दोस्त बना लेते 
17 74 और अगर हमारी तौफ़ीक़े ख़ास ने आपको साबित क़दम (सही राह पर पूरी तरह जमा हुअ) न रखा होता तो आप (बशरी तौर पर) कुछ न कुछ उनकी तरफ़ मायल ज़रूर हो जाते 
17 75 और फिर हम जि़न्दगानी दुनिया और मौत दोनों मरहलों पर दोहरा मज़ा चखाते और आप हमारे खि़लाफ़ कोई मददगार और कमक करने वाला भी न पाते 
17 76 और ये लोग आपको ज़मीने मक्का से दिल बर्दाश्ता कर रहे थे कि वहाँ से निकाल दें हालांकि आपके बाद ये भी थोड़े दिनों से ज़्यादा न ठहर सके 
17 77 ये आपसे पहले भेजे जाने वाले रसूलों में हमारा तरीक़ाएकार (काम का तरीक़ा) रहा है और आप हमारे तरीक़ाएकार (काम का तरीक़ा) में कोई तग़य्युर (बदलाव, तबदीली) न पायेंगे
17 78 आप ज़वाले आफ़ताब से रात की तारीकी तक नमाज़ क़ायम करें और नमाज़े सुबह भी कि नमाज़ सुबह के लिए गवाही का इन्तिज़ाम किया गया है 
17 79 और रात के एक हिस्से में कु़रआन के साथ बेदार रहें ये आपके लिए ईज़ाफ़ा-ए-ख़ैर है अनक़रीब (बहुत जल्द) आपका परवरदिगार इसी तरह आपको मक़ाम-ए-महमूद तक पहुँचा देगा 
17 80 और ये कहिये कि परवरदिगार मुझे अच्छी तरह से आबादी में दाखि़ल कर और बेहतरीन (सबसे अच्छा)  अंदाज़ से बाहर निकाल और मेरे लिए एक ताक़त क़रार दे दे जो मेरी मददगार साबित हो
17 81 और कह दीजिए कि हक़ आ गया और बातिल फ़ना हो गया कि बातिल बहरहाल (हर हाल में) फ़ना होने वाला है 
17 82 और हम कु़रआन में वह सब कुछ नाजि़ल कर रहे हैं जो साहेबाने ईमान के लिए शिफ़ा और रहमत है और ज़ालेमीन के लिए ख़सारे में ईज़ाफ़े के अलावा कुछ न होगा 
17 83 और हम जब इन्सान पर कोई नेअमत नाजि़ल करते हैं तो वह पहलू बचाकर किनाराकश हो जाता है और जब तकलीफ़ होती है तो मायूस हो जाता है 
17 84 आप कह दीजिए कि हर एक अपने तरीक़े पर अमल करता है तो तुम्हारा परवरदिगार भी ख़ू़ब जानता है कि कौन सबसे ज़्यादा सीधे रास्ते पर है 
17 85 और पैग़म्बर ये आपसे रूह के बारे में दरयाफ़्त करते हैं तो कह दीजिए कि ये मेरे परवरदिगार का एक अम्र है और तुम्हें बहुत थोड़ा इल्म दिया गया है
17 86 और अगर हम चाहें तो जो कुछ आपको वही के ज़रिये दिया गया है उसे उठा लें और इसके बाद हमारे मुक़ाबले में कोई साज़गार और जि़म्मेदार न मिले 
17 87 मगर ये कि आपके परवरदिगार की मेहरबानी हो जाये कि उसका फ़ज़्ल आप पर बहुत बड़ा है 
17 88 आप कह दीजिए कि अगर इन्सान और जिन्नात सब इस बात पर मुत्तफि़क़ (एक राय, एक साथ) हो जायें कि इस कु़रआन का मिस्ल ले आयें तो भी नहीं ला सकते चाहे सब एक दूसरे के मददगार और पुश्त पनाह (बग़ैर सामने आए पीछे से मदद करने वाले) ही क्यों न हो जायें
17 89 और हमने इस कु़रआन में सारी मिसालें उलट-पलट कर बयान कर दी हैं लेकिन इसके बाद फिर भी अकसर लोगों ने कुफ्ऱ (अल्लाह से इन्कार) के अलावा हर बात से इन्कार कर दिया है 
17 90 और उन लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि हम तुम पर ईमान न लायेंगे जब तक हमारे लिए ज़मीन से (पानी का) चश्मा न जारी कर दो 
17 91 या तुम्हारे पास खजूर और अंगूर के बाग़ हों जिनके दरम्यान (बीच में)  तुम नहरें जारी कर दो
17 92 या हमारे ऊपर अपने ख़याल के मुताबिक़ आसमान को टुकड़े-टुकड़े करके गिरा दो या अल्लाह और मलायका (फ़रिश्तो) को हमारे सामने लाकर खड़ा कर दो 
17 93 या तुम्हारे पास सोने का कोई मकान हो या तुम आसमान की बलन्दी पर चढ़ जाओ और उस बलन्दी पर भी हम ईमान न लायेंगे जब तक कोई ऐसी किताब नाजि़ल न कर दो जिसे हम पढ़ लें आप कह दीजिए कि हमारा परवरदिगार बड़ा बेनियाज़ (जिसे किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं) है और मैं सिर्फ़ एक बशर (इन्सान) हूँ जिसे रसूल बनाकर भेजा गया है 
17 94 और हिदायत के आ जाने के बाद लोगों के लिए ईमान लाने से कोई शै मानेअ (रूकावट) नहीं हुई मगर ये कि कहने लगे कि क्या ख़ुदा ने किसी बशर (इन्सान) को रसूल बनाकर भेज दिया है 
17 95 तो आप कह दीजिए कि अगर ज़मीन में मलायका (फ़रिश्ते) इत्मिनान से टहलते होते तो हम आसमान से मलक (फ़रिश्ते) ही को रसूल बनाकर भेजते 
17 96 कह दीजिए कि हमारे और तुम्हारे दरम्यान (बीच में) गवाह बनने के लिए ख़ुदा काफ़ी है कि वही अपने बन्दों के हालात से बाख़बर (ख़बर रखने वाला, जानने वाला) है और उनकी कैफि़यात का देखने वाला है 
17 97 और जिसको ख़ुदा हिदायत दे दे वही हिदायत याफ़्ता है और जिसको गुमराही में छोड़ दे उसके लिए उसके अलावा कोई मददगार न पाओगे और हम उन्हें रोज़े क़यामत मुँह के बल गूँगे अँधे बहरे महशूर करेंगे और उनका ठिकाना जहन्नम होगा कि जिसकी आग बुझने भी लगेगी तो हम शोलों को मज़ीद भड़का देंगे 
17 98 ये इस बात की सज़ा है कि उन्होंने हमारी निशानियों का इन्कार किया है और ये कहा है कि (जब) हम हड्डियाँ और मिट्टी का ढेर बन जायेंगे तो क्या दोबारा अज़ सरे नौ (पहली बार या शुरू की तरह) फिर पैदा किये जायेंगे 
17 99 क्या उन लोगांे ने ये नहीं देखा है कि जिसने आसमान व ज़मीन को पैदा किया है वह उसका जैसा दूसरा भी पैदा करने पर क़ादिर है और उसने उनके लिए एक मुद्दत (वक़्त की हद) मुक़र्रर (तय) कर दी है जिसमें किसी शक की गुंजाईश नहीं है मगर ज़ालिमों ने कुफ्ऱ (ख़ुदा का इन्कार करने) के अलावा हर चीज़ से इन्कार कर दिया है 
17 100 आप कह दीजिए कि अगर तुम लोग मेरे परवरदिगार के ख़ज़ानों के मालिक होते तो ख़र्च हो जाने के ख़ौफ़ से सब रोक लेते और इन्सान तो तंग दिल ही वाक़ेअ हुआ है 
17 101 और हमने मूसा को नौ खुली हुई निशानियाँ दी थीं तो बनी इसराईल से पूछो कि जब मूसा उनके पास आये तो फि़रऔन ने उनसे कह दिया कि मैं तो तुमको सहरज़दा (जादू के साथ) ख़याल कर रहा हूँ 
17 102 मूसा ने कहा कि तुम्हें मालूम है कि सब मोजिज़ात आसमान व ज़मीन के मालिक ने बसीरत का सामान बनाकर नाजि़ल किये हैं और ऐ फि़रऔन मैं ख़्याल कर रहा हूँ कि तेरी शामत आ गई है
17 103 फि़रऔन ने चाहा कि उन लोगों को इस सरज़मीन से निकाल बाहर कर दे लेकिन हमने उसको उसके साथियों समेत दरिया में ग़र्क़ (डुबो) कर दिया 
17 104 और इसके बाद बनी इसराईल से कह दिया कि अब ज़मीन मंे आबाद हो जाओ फिर जब आखि़रत के वादे का वक़्त आ जायेगा तो हम तुम सबको समेट कर ले आयेंगे 
17 105 और हमने इस कु़रआन को हक़ के साथ नाजि़ल किया है और ये हक़ ही के साथ नाजि़ल हुआ है और हमने आपको सिर्फ़ बशारत (ख़ुशख़बरी) देने वाला और डराने वाला बनाकर भेजा है
17 106 और हमने कु़रआन को मुत्तफ़र्रिक़ (जुदा-जुदा, आयतें अलग-अलग) बनाकर नाजि़ल किया है ताकि तुम थोड़ा थोड़ा लोगों के साथ सामने पढ़ो और हमने ख़ुद इसे तद्रीजन ( पै दर पै, एक के बाद एक) नाजि़ल किया है 
17 107 आप कह दीजिए कि तुम ईमान लाओ या न लाओ जिनको इसके पहले इल्म दे दिया गया है उन पर तिलावत होती है तो मुँह के बल सज्दे में गिर पड़ते हैं 
17 108 और कहते हैं कि हमारा रब पाक व पाकीज़ा है और उसका वादा यक़ीनन पूरा होने वाला है 
17 109 और वह मुँह के बल गिर पड़ते हैं रोते हैं और वह कु़रआन उनके खू़शूअ (ख़ाकसारी) में इज़ाफ़ा (बढ़ावा) कर देता है 
17 110 आप कह दीजिए कि अल्लाह कहकर पुकारो या रहमान कहकर पुकारो जिस तरह भी पुकारोगे उसके तमाम नाम बेहतरीन (सबसे अच्छा) हैं और अपनी नमाज़ों को न चिल्लाकर पढ़ो और न बहुत आहिस्ता-आहिस्ता (चुपके-चुपके) बल्कि दोनों का दरम्यानी रास्ता निकालो 
17 111 और कहो कि सारी हम्द उस अल्लाह के लिए है जिसने न किसी को फ़रज़न्द बनाया है और न कोई उसके मुल्क में शरीक है और न कोई उसकी कमज़ोरी की बिना पर उसका सरपरस्त है और फिर बाक़ायदा (पूरी तरह से) उसकी बुज़़्ाुर्गी का एलान करते रहो

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