Thursday, 16 April 2015

Sura-e-Furqan 25th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-फ़ुरक़ान
25   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
25 1 बाबरकत (बरकत वाला) है वह ख़ुदा जिसने अपने बन्दे पर फ़ुरक़ान (हक़ और बातिल में फ़र्क़ करने वाला) नाजि़ल किया है ताकि वह सारे आलमीन के लिए अज़ाबे इलाही से डराने वाला बन जाये
25 2 आसमान व ज़मीन का सारा मुल्क उसी के लिए है और उसने न कोई फ़रज़न्द (बेटा) बनाया है और न कोई उसके मुल्क में शरीक है उसने हर शै को ख़ल्क़ किया है और सही अंदाज़े के मुताबिक़ दुरूस्त (ठीक-ठाक) बनाया है
25 3 और इन लोगों ने ख़ुदा को छोड़कर ऐसे ख़ुदा बना लिये हैं जो किसी भी शै के ख़ालिक़ (पैदा करने वाले) नहीं हैं बल्कि खु़द ही मख़्लूक़ (ख़़ुदा के बनाए हुए) हैं और खु़द अपने वास्ते भी किसी नुक़सान या नफ़े (फ़ायदे) के मालिक नहीं है और न इनके इखि़्तयार में मौत व हयात (जि़न्दगी) या हश्र व नश्र ही है
25 4 और ये कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) कहते हैं कि ये कु़रआन सिर्फ़ एक झूठ है जिसे उन्होंने गढ़ लिया है और एक दूसरी क़ौम ने इस काम में इनकी मदद की है हालांकि इन लोगों ने खु़द ही बड़ा ज़्ाुल्म और फ़रेब (धोका) किया है
25 5 और ये लोग कहते हैं कि ये तो सिर्फ़ अगले लोगों के अफ़साने (कहानियां) हैं जिसे उन्होंने लिखवा लिया है और वही सुबह व शाम इनके सामने पढ़े जाते हैं
25 6 आप कह दीजिए कि इस कु़रआन को उसने नाजि़ल किया है जो आसमानों और ज़मीन के राज़ों से बाख़बर (ख़बरदार) है और यक़ीनन वह बड़ा बख़्शने (माफ़ करने) वाला और मेहरबान है
25 7 और ये लोग कहते हैं कि इस रसूल को क्या हो गया है कि ये खाना भी खाता है और बाज़ारों में चक्कर भी लगाता है और इसके पास कोई मलक (फ़रिश्ता) क्यों नहीं नाजि़ल किया जाता जो उसके साथ मिलकर अज़ाबे इलाही से डराने वाला साबित हो
25 8 या उसकी तरफ़ कोई ख़ज़ाना ही गिरा दिया जाता या उसके पास कोई बाग़ ही होता जिससे खाता-पीता और फिर ये ज़ालिम कहते कि तुम लोग तो एक जादू ज़दा आदमी का इत्तेबा (पैरवी) कर रहे हो
25 9 देखो इन लोगों ने तुम्हारे लिए कैसी-कैसी मिसालें बयान की हैं ये तो बिल्कुल गुमराह हो गये हैं और अब रास्ता नहीं पा सकते हैं
25 10 बाबरकत (बरकत वाली) है वह ज़ात जो अगर चाहे तो तुम्हारे लिए इससे बेहतर (ज़्यादा अच्छा) सामान फ़राहिम (का इन्तेज़ाम) कर दे ऐसी जन्नतें जिनके नीचे नहरें जारी हों और फिर तुम्हारे लिए बड़े-बड़े महल भी बना देे
25 11 हक़ीक़त ये है कि इन लोगों ने क़यामत का इन्कार किया है और हमने क़यामत का इन्कार करने वालों के लिए जहन्नम मुहैय्या कर दिया है
25 12 जब आतिशे जहन्नुम (जहन्नम की आग) इन लोगों को दूर से देखेगी तो ये लोग उसके जोश व ख़रोश (ग़्ाुल) की आवाजे़ं सुनेंगे
25 13 और जब उन्हें जंजीरों में जकड़ कर किसी तंग जगह में डाल दिया जायेगा तो वहाँ मौत की दुहाई देंगे
25 14 उस वक़्त उनसे कहा जायेगा कि एक मौत को न पुकारो बहुत सी मौतों को आवाज़ दो
25 15 पैग़म्बर अलैहिस्सलाम आप इनसे पूछिये कि ये अज़ाब ज़्यादा बेहतर (ज़्यादा अच्छा) है या वह हमेशगी की जन्नत जिसका साहेबाने तक़्वा (ख़ुदा से डरने वाले लोगों) से वादा किया गया है और वही उनकी जज़ा (सिला) भी है और उनका ठिकाना भी
25 16 उनके लिए वहाँ हर ख़्वाहिश का सामान मौजूद है और वह इसमें हमेशा रहने वाले हैं और ये परवरदिगार (पालने वाले) के जि़म्मे एक लाज़मी (ज़रूरी होने वाला) वादा है
25 17 और जिस दिन भी ख़़्ाुदा इनको और इनके ख़ुदाओं को जिन्हें ये ख़ुदा को छोड़कर पुकारा करते थे सबको एक मंजि़ल (आखि़री जगह) पर जमा करेगा और पूछेगा कि तुमने मेरे बन्दों को गुमराह किया था या ये अज़ खु़द (ख़ुद से) भटक गये थे
25 18 तो ये सब कहेंगे कि तू पाक और बेनियाज़ (जिसे कोई/किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं) है और हमें क्या हक़ है कि तेरे अलावा किसी और को अपना सरपरस्त बनायें असल बात ये है कि तूने इन्हें और इनके बुजुर्गों को इज़्ज़ते दुनिया अता कर दी तो ये तेरी याद से ग़ाफि़ल (बेपरवाह) हो गये इसलिए कि ये हलाक (बरबाद, ख़त्म)  होने वाले लोग ही थे
25 19 देखा तुम लोगों ने कि तुम्हें वह भी झुठला रहे हैं जिन्हें तुमने ख़ुदा बनाया था तो अब न तुम अज़ाब को टाल सकते हो और न अपनी मदद कर सकते हो और जो भी तुम में से जु़ल्म करेगा उसे हम बड़े सख़्त अज़ाब का मज़ा चखायेंगे
25 20 और हमने आपसे पहले भी जिन रसूलों को भेजा है वह भी खाना खाया करते थे और बाज़ारों में चलते थे और हमने बाॅज़ (कुछ) अफ़राद (लोगों) को बाज़ (कुछ) के लिए वजहे आज़माईश (इम्तेहान की वजह) बना दिया है तो मुसलमानों! क्या तुम सब्र कर सकोगे जबकि तुम्हारा परवरदिगार (पालने वाला) बहुत बड़ी बसीरत (ग़ैब की बातों का इल्म) रखने वाला है
25 21 और जो लोग हमारी मुलाक़ात की उम्मीद नहीं रखते वह कहते हैं कि आखि़र हम पर फ़रिश्ते क्यों नहीं नाजि़ल होते या हम ख़ुदा को क्यों नहीं देखते दर हक़ीक़त ये लोग अपनी जगह पर बहुत मग़रूर (ग़्ाुरूर करने वाले) हो गये हैं और इन्तिहाई दर्जे की सरकशी (बग़ावत) कर रहे हैं
25 22 जिस दिन ये मलायका (फ़रिश्तों) को देखेंगे उस दिन मुजरेमीन (जुर्म करने वालों) के लिए कोई बशारत (ख़ुशख़बरी) न होगी और फ़रिश्ते कहेंगे कि तुम लोग दूर हो जाओ
25 23 फिर हम इनके आमाल (कामों) की तरफ़ तवज्जो करेंगे और सबको उड़ते हुए ख़ाक के ज़र्रो के मानिन्द (की तरह) बना देंगे
25 24 उस दिन सिर्फ़ जन्नत वाले होंगे जिनके लिए बेहतरीन (सबसे अच्छा) ठिकाना होगा और बेहतरीन (सबसे अच्छी) आराम करने की जगह होगी
25 25 और जिस दिन आसमान बादलों की वजह से फट जायेगा और मलायका (फ़रिश्तों) जोक़ दर जोक़ (कसरत से) नाजि़ल किये जायेंगे
25 26 उस दिन दर हक़ीक़त हुकूमत परवरदिगार (पालने वाले) के हाथ में होगी और वह दिन काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) के लिए बड़ा सख़्त दिन होगा
25 27 उस दिन ज़ालिम अपने हाथों को काटेगा और कहेगा कि काश मैंने रसूल के साथ ही रास्ता इखि़्तयार किया होता
25 28 हाए अफ़सोस, काश मैंने फ़लाँ शख़्स को अपना दोस्त न बनाया होता
25 29 उसने तो जि़क्र के आने के बाद भी मुझे गुमराह कर दिया और शैतान तो इन्सान को रूसवा (शर्मिन्दा) करने वाला है ही
25 30 और उस दिन रसूल आवाज़ देगा कि परवरदिगार (पालने वाले) इस मेरी क़ौम ने इस कु़रआन को भी नज़रअंदाज़ कर दिया है
25 31 और इसी तरह हमने हर नबी के लिए मुजरेमीन (जुर्म करने वालों) में से कुछ दुश्मन क़रार दे दिये हैं और हिदायत और इमदाद (मदद) के लिए तुम्हारा परवरदिगार (पालने वाला) बहुत काफ़ी है
25 32 और ये काफि़र (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) ये भी कहते हैं कि आखि़र इन पर ये कु़रआन एक दफ़ा कुल का कुल क्यों नहीं नाजि़ल हो गया। हम इसी तरह तदरीजन (पै दर पै, एक के बाद एक) नाजि़ल करते हैं ताकि तुम्हारे दिल को मुतमईन कर सकें और हमने इसे ठहर-ठहर कर नाजि़ल किया है
25 33 और ये लोग कोई भी मिसाल न लायेंगे मगर ये कि हम इसके जवाब में हक़ और बेहतरीन (सबसे अच्छा) बयान ले आयेंगे
25 34 वह लोग जो जहन्नम की तरफ़ मुँह के बल खींच कर लाये जायेंगे उनका ठिकाना बदतरीन (सबसे बुरा) है और वह बहुत ज़्यादा बहके हुए हैं
25 35 और हमने मूसा को किताब अता की और उनके साथ उनके भाई हारून को उनका वज़ीर बना दिया
25 36 फिर हमने कहा कि अब तुम दोनों उस क़ौम की तरफ़ जाओ जिसने हमारी आयतों की तकज़ीब (झुठलाना) की है और हमने उन्हें तबाह व बर्बाद कर दिया है
25 37 और क़ौमे नूह को भी जब उन्होंने रसूलों को झुठलाया तो हमने उन्हें भी ग़कऱ् (डुबोना) कर दिया और लोगों के लिए एक निशानी बना दिया और हमने ज़ालेमीन (ज़्ाुल्म करने वालों) के लिए बड़ा दर्दनाक (दर्द देने वाला) अज़ाब मुहैय्या कर रखा है
25 38 और आद व समूद और असहाबे रस (नहर वालों) और इनके दरम्यान (बीच में) बहुत सी नस्लों और क़ौमों को भी तबाह कर दिया है
25 39 और इन सबके लिए हमने मिसालें बयान कीं और सबको हमने नेस्त व नाबूद (तबाह व बर्बाद) कर दिया
25 40 और यह लोग उस बस्ती की तरफ़ आये जिस पर हमने पत्थरांे की बौछार की थी तो क्या इन लोगों ने इसे नहीं देखा। हक़ीक़त ये है कि ये लोग क़यामत की उम्मीद ही नहीं रखते
25 41 और जब आपको देखते हैं तो सिर्फ़ मज़ाक़ बनाना चाहते हैं कि क्या यही वह है जिसे ख़ुदा ने रसूल बनाकर भेजा है
25 42 क़रीब था कि ये हमें हमारे ख़ुदाओं से मुन्हरिफ़ कर दे (मुंह मुड़वा दे) अगर हम लोग उन ख़ुदाओं पर सब्र न कर लेते और अनक़रीब (बहुत जल्द) इन लोगांे को मालूम हो जायेगा जब ये अज़ाब को देखेंगे कि ज़्यादा बहका हुआ कौन है
25 43 क्या आपने उस शख़्स को देखा है जिसने अपनी ख़्वाहिशात (दुनियावी तमन्नाओं) ही को अपना ख़ुदा बना लिया है क्या आप इसकी जि़म्मेदारी लेने के लिए तैयार हैं
25 44 क्या आपका ख़्याल ये है कि इनकी अकसरियत (ज़्यादातर लोग) कुछ सुनती और समझती है हर्गिज़ (बिल्कुल) नहीं ये सब जानवरों जैसे हैं बल्कि इनसे भी कुछ ज़्यादा ही गुमकर्दा  राह (राह से भटके हुए) हैं
25 45 क्या आपने नहीं देखा कि आपके परवरदिगार (पालने वाले) ने किस तरह साये को फैला दिया है और वह चाहता तो एक ही जगह साकिन बना देता फिर हमने आफ़ताब (सूरज) को इसकी दलील बना दिया है
25 46 फिर हमने थोड़ा थोड़ा करके इसे अपनी तरफ़ खींच लिया है
25 47 और वही वह ख़ुदा है जिसने रात को तुम्हारा पर्दा और नीन्द को तुम्हारी राहत और दिन को तुम्हारे उठ खड़े होने का वक़्त क़रार दिया है
25 48 और वही वह है जिसने हवाओं को रहमत की बशारत (ख़ुश ख़बरी देने) के लिए रवां कर दिया है और हमने आसमान से पाक व पाकीज़ा (साफ़-सुथरा)  पानी बरसाया है
25 49 ताकि इसके ज़रिये मुर्दा शहर को जि़न्दा बनायें और अपनी मख़्लूक़ात (पैदा की हुई चीज़ों/खि़ल्क़त) मंे से जानवरों और इन्सानों की एक बड़ी तादाद को सेराब करें
25 50 और हमने इनके दरम्यान (बीच में) पानी को तरह तरह से तक़सीम किया है ताकि ये लोग नसीहत (अच्छी बातें जो बताई जाएं) हासिल करें लेकिन इन्सानांें की अकसरियत (ज़्यादातर लोग) ने नाशुक्री के अलावा हर बात से इन्कार कर दिया है
25 51 और हम चाहते तो हर क़रिये (बस्ती) में एक डराने वाला भेज देते
25 52 लेहाज़ा (इसलिये) आप काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) के कहने में न आयें और इनसे आखि़र दम तक जेहाद करते रहें
25 53 और वही ख़ुदा है जिसने दोनों दरियाओं को जारी किया है उसका पानी मज़ेदार और मीठा है और ये नमकीन और कड़ुवा है और दोनों के दरम्यान (बीच में) हदे फ़ासिल (आड़) और मज़बूत रूकावट बना दी है
25 54 और वही वह है जिसने पानी से इन्सान को पैदा किया है और फिर इसको ख़ानदान और ससुराल वाला बना दिया है और आपका परवरदिगार (पालने वाला) बहुत ज़्यादा कु़दरत वाला है
25 55 और ये लोग परवरदिगार (पालने वाले) को छोड़कर ऐसों की इबादत करते हैं जो न फ़ायदा पहुँचा सकते हैं और न नुक़सान और काफि़र (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) तो हमेशा परवरदिगार (पालने वाले) के खि़लाफ़ ही पुश्त पनाही (मदद, सहारा) करता है
25 56 और हमने आपको सिर्फ़ बशारत देने वाला और डराने वाला बनाकर भेजा है
25 57 आप कह दीजिए कि मैं तुम लोगों से कोई अज्र नहीं चाहता मगर ये कि जो चाहे वह अपने परवरदिगार (पालने वाले) का रास्ता इखि़्तयार कर ले
25 58 और आप उस ख़ुदाए हक़ व क़य्यूम (हमेशा क़ायम रहने वाले ख़ुदा) पर एतमाद (भरोसा) करें जिसे मौत आने वाली नहीं है और इसी हम्द की तसबीह (तारीफ़) करते रहें कि वह अपने बन्दों के गुनाहों की इत्तेला (ख़बर) के लिए खु़द ही काफ़ी है
25 59 उसने आसमान व ज़मीन और इसके दरम्यान (बीच में) की मख़्लूक़ात (पैदा की हुई चीज़ों/खि़ल्क़त) को छः दिनों के अन्दर पैदा किया है और इसके बाद अर्श पर अपना इक़तेदार (हाकेमीयत) क़ायम किया है वह रहमान है उसकी तख़्लीक़ के बारे में इसी बाख़बर से दरयाफ़्त (मालूम) करो
25 60 और जब इनसे कहा जाता है कि रहमान को सज्दा करो तो कहते हैं कि ये रहमान क्या है क्या हम उसे सज्दा कर लें जिसके बारे में तुम हुक्म दे रहे हो और इस तरह उनकी नफ़रत में और इज़ाफ़ा (बढ़ावा) हो जाता है
25 61 बाबरकत (बरकत वाली) है वह ज़ात जिसने आसमान मंे बुर्ज बनाये हैं और इसमें चिराग़ और चमकता हुआ चाँद क़रार दिया है
25 62 और वही वह है जिसने रात और दिन में एक को दूसरे का जानशीन बनाया है उस इन्सान के लिए जो इबरत (ख़ौफ़ के साथ सबक़) हासिल करना चाहे या शुक्र परवरदिगार (पालने वाले) अदा करना चाहे
25 63 और अल्लाह के बन्दे वही हैं जो ज़मीन पर आहिस्ता (हल्के क़दम से, धीरे) चलते हैं और जब जाहिल इनसे खि़ताब (बात) करते हैं तो सलामती का पैग़ाम दे देते हैं
25 64 ये लोग रातों को इस तरह गुज़ारते हैं कि अपने रब की बारगाह मंे कभी सर-ब-सुजूद (सजदे में सर रखे हुए) रहते हैं और कभी हालते क़याम (क़याम की हालत में इबादत) में रहते हैं
25 65 और ये कहते हैं कि परवरदिगार (पालने वाले) हमसे अज़ाबे जहन्नुम को फेर दे कि उसका अज़ाब बहुत सख़्त और पायदार (ज़्यादा देर तक रहने वाला) है
25 66 वह बदतरीन (सबसे बुरी) मंजि़ल (आखि़री जगह, ठिकाना) और महले अक़ामत (बुरा मक़ाम) है
25 67 और ये लोग जब ख़र्च करते हैं तो न इसराफ़ (ज़रूरत से ज़्यादा, फ़ुज़ूलख़र्ची) करते हैं और न कंजूसी (ज़रूरत से कम) से काम लेते हैं बल्कि इन दोनों के दरम्यान (बीच में) औसत दर्जे का रास्ता इखि़्तयार करते हैं
25 68 और जो लोग ख़ुदा के साथ किसी और ख़ुदा को नहीं पुकारते हैं और किसी भी नफ़्स (जान) को अगर ख़ुदा ने मोहतरम क़रार दे दिया है तो उसे हक़ के बग़ैर क़त्ल नहीं करते हैं और ज़ेना भी नहीं करते हैं कि जो ऐसा अमल करेगा वह अपने अमल की सज़ा भी बर्दाश्त करेगा
25 69 जिसे रोजे़ क़यामत दोगुना कर दिया जायेगा और वह इसी में जि़ल्लत के साथ हमेशा हमेशा पड़ा रहेगा
25 70 अलावा उस शख़्स के जो तौबा कर ले और ईमान ले आये और नेक (अच्छा) अमल करे कि परवरदिगार (सबका पालने वाला ख़ुदा) उसकी बुराईयों को अच्छाईयों से तब्दील (बदल) कर देगा और ख़ुदा बहुत ज़्यादा बख़्शने (माफ़ करने) वाला और मेहरबान है
25 71 और जो तौबा कर लेगा और अमले सालेह (नेक आमाल) अंजाम देगा वह अल्लाह की तरफ़ वाके़अन (वाक़ई में) रूजुअ करने वाला है
25 72 और वह लोग झूठ और फ़रेब के पास हाजि़र भी नहीं होते हैं और जब लग़ो (बेहूदा) कामों के क़रीब से गुज़रते हैं तो बुज़ुर्गाना अंदाज़ से गुज़र जाते हैं
25 73 और इन लोगों को जब आयाते इलाही (अल्लाह की निशानियों) की याद दिलाई जाती है तो बहरे और अँधे होकर गिर नहीं पड़ते हैं
25 74 और वह लोग बराबर दुआ करते रहते हैं कि ख़ुदाया हमें हमारी अज़वाज (बीवियों) और औलाद की तरफ़ से ख़नकी चश्म (आँखों की ठण्डक) अता फ़रमा ओर हमें साहेबाने तक़्वा (ख़ुदा से डरने वाले लोगों) का पेशवा बना दे
25 75 यही वह लोग हैं जिन्हें इनके सब्र की बिना पर जन्नत के बाला ख़ाने अता किये जायेंगे और वहाँ उन्हें ताज़ीम और सलाम की पेशकश की जायेगी
25 76 वह इन्हीं मुक़ामात (जगहों) पर हमेशा-हमेशा रहेंगे कि वह बेहतरीन (सबसे अच्छा) मुस्तफि़र और हसीन तरीन महले अक़ामत (सबसे अच्छी ठहरने की जगह) है
25 77 पैग़म्बर आप कह दीजिए कि अगर तुम्हारी दुआयें न होतंी तो परवरदिगार (पालने वाला) तुम्हारी परवा भी न करता तुमने उसके रसूल की तकज़ीब (झुठलाना) की है तो अनक़रीब (बहुत जल्द) उसका अज़ाब भी बर्दाश्त करना पड़ेगा

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