Saturday, 18 April 2015

Sura-e-Saff 61st sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-सफ़
61   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
61 1 ज़मीन व आसमान का हर ज़र्रा अल्लाह की तसबीह में मशग़्ाूल (लगा हुआ) है और वही साहेबे इज़्ज़त और साहेबे हिकमत (अक़्ल, दानाई वाला) है
61 2 ईमान वालों आखि़र वह बात क्यों कहते हो जिस पर अमल नहीं करते हो
61 3 अल्लाह के नज़दीक (क़रीब) ये सख़्त नाराज़गी का सबब (वजह) है कि तुम वह कहो जिस पर अमल नहीं करते हो
61 4 बेशक अल्लाह उन लोगों को दोस्त रखता है जो उसकी राह में इस तरह सफ़ बाँधकर जेहाद करते हैं जिस तरह सीसा पिलाई हुई दीवारें
61 5 और उस वक़्त को याद करो जब मूसा अलैहिस्सलाम ने अपनी क़ौम से कहा कि क़ौम वालों मुझे क्यों अज़ीयत (तकलीफ़) दे रहे हो तुम्हें तो मालूम है कि मैं तुम्हारी तरफ़ अल्लाह का रसूल अलैहिस्सलाम हूँ फिर जब वह लोग टेढ़े हो गये तो ख़ुदा ने भी उनके दिलों को टेढ़ा ही कर दिया कि अल्लाह बदकार (बुरे काम करने वाली) क़ौम की हिदायत नहीं करता है
61 6 और उस वक़्त को याद करो जब ईसा अलैहिस्सलाम बिन मरियम अलैहिस्सलाम ने कहा कि ऐ बनी इसराईल मैं तुम्हारी तरफ़ अल्लाह का रसूल हूँ अपने पहले की किताब तौरैत की तसदीक़ (सच्चाई की गवाही) करने वाला और अपने बाद के लिए एक रसूल की बशारत (ख़ुशख़बरी) देने वाला हूं जिसका नाम अहमद है लेकिन फिर भी जब वह मोजिज़ात लेकर आये तो लोगों ने कह दिया कि ये तो खुला हुआ जादू है
61 7 और उससे बड़ा ज़ालिम कौन होगा जो ख़ुदा पर झूठा इल्ज़ाम लगाये जबकि उसे इस्लाम की दावत दी जा रही हो और अल्लाह कभी ज़ालिम क़ौम की हिदायत नहीं करता है
61 8 ये लोग चाहते हैं कि नूरे ख़ुदा को अपने मुँह से बुझा दें और अल्लाह अपने नूर को मुकम्मल (पूरा) करने वाला है चाहे ये बात कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वालों) को कितनी ही नागवार (बुरी लगने वाली) क्यों न हो
61 9 वही ख़ुदा वह है जिसने अपने रसूल को हिदायत और दीने हक़ के साथ भेजा है ताकि उसे तमाम अदयान (दीनों) पर ग़ालिब बनाये चाहे ये बात मुशरेकीन (ख़ुदा के साथ दूसरों को शरीक करने वालों) को कितनी ही नागवार (बुरी लगने वाली) क्यों न हो
61 10 ईमान वालों क्या मैं तुम्हें एक ऐसी तिजारत की रहनुमाई करूँ जो तुम्हें दर्दनाक (दर्द देने वाला) अज़ाब से बचा ले
61 11 अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान ले आओ और राहे ख़ुदा में अपने जान व माल से जेहाद करो कि यही तुम्हारे हक़ में सबसे बेहतर (ज़्यादा अच्छा) है अगर तुम जानने वाले हो
61 12 वह तुम्हारे गुनाहों को भी बख़्श देगा और तुम्हें उन जन्नतों में दाखि़ल करेगा जिनके नीचे नहरें जारी होंगी और उस हमेशा रहने वाली जन्नत में पाकीज़ा (साफ़-सुथरे) मकानात होंगे और यही बहुत बड़ी कामयाबी है
61 13 और एक चीज़ और भी जिसे तुम पसन्द करते हो। अल्लाह की तरफ़ से मदद और क़रीबी फ़तेह और आप मोमिनीन को बशारत (ख़ुशख़बरी) दे दीजिए
61 14 ईमान वालों अल्लाह के मददगार बन जाओ जिस तरह ईसा बिन मरियम अलैहिस्सलाम ने अपने हवारीन (हवारीय्यों) से कहा था कि अल्लाह की राह में मेरा मददगार कौन है तो हवारीन (हवारीय्यों) ने कहा कि हम अल्लाह के नासिर (नुसरत करने वाले) हैं लेकिन फिर बनी इसराईल में से एक गिरोह ईमान ले आया और एक गिरोह काफि़र (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) हो गया तो हमने साहेबाने ईमान की दुश्मन के मुक़ाबले में मदद कर दी तो वह ग़ालिब आकर रहे

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