Thursday, 16 April 2015

Sura-e-Shoára 26th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-शोअरा
26   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
26 1 ता सीन मीम
26 2 ये एक वाजे़ह (रौशन, खुली हुई) किताब की आयतें हैं
26 3 क्या आप अपने नफ़्स (जान) को हलाकत (मौत, तबाही) में डाल देंगे कि ये लोग ईमान नहीं ला रहे हैं
26 4 अगर हम चाहते तो आसमान से ऐसी आयत नाजि़ल कर देते कि इनकी गर्दनें ख़ु़ज़्ाू़अ के साथ झुक जातीं
26 5 लेकिन इनकी तरफ़ जब भी ख़ुदा की तरफ़ से कोई नया जि़क्र आता है तो ये इससे आराज़ (मुंह फेरना) ही करते हैं
26 6 यक़ीनन इन्होंने तकज़ीब (झुठलाना) की है तो अनक़रीब (बहुत जल्द) इनके पास इस बात की ख़बरें आ जायेंगी जिसका ये लोग मज़ाक़ उड़ा रहे थे
26 7 क्या उन लोगों ने ज़मीन की तरफ़ नहीं देखा कि हमने किस तरह उम्दा-उम्दा चीज़ें उगाई हैं
26 8 इसमें हमारी निशानी है लेकिन इनकी अकसरियत (ज़्यादातर लोग) ईमान लाने वाली नहीं है
26 9 और आपका परवरदिगार (पालने वाला) साहेबे इज़्ज़त भी है और साहेबे हिकमत (अक़्ल, दानाई वाला) भी है
26 10 और उस वक़्त को याद करो जब आपके परवरदिगार (पालने वाले) ने मूसा को आवाज़ दी कि इस ज़ालिम क़ौम के पास जाओ
26 11 ये फि़रऔन की क़ौम है क्या ये मुत्तक़ी (ख़ुदा से डरने वाले) न बनेंगे
26 12 मूसा ने कहा कि परवरदिगार (पालने वाले) मैं डरता हूँ कि ये मेरी तकज़ीब (झुठलाना) न करें
26 13 मेरा दिल तंग हो रहा है और मेरी जु़बान रवां नहीं है ये पैग़ाम हारून के पास भेज दे
26 14 और मेरे ऊपर इनका एक जुर्म भी है तो मुझे ख़ौफ़ (डर) है कि ये मुझे क़त्ल न कर दें
26 15 इरशाद हुआ कि हर्गिज़ (बिल्कुल)नहीं तुम दोनों ही हमारी निशानियों को लेकर जाओ और हम भी तुम्हारे साथ सब सुन रहे हैं
26 16 फि़रऔन के पास जाओ और कहो कि हम दोनों रब्बुल आलमीन के फ़रिस्तादा (भेजा हूआ क़ासिद, दूत)  हैं
26 17 के बनी इसराईल को मेरे साथ भेज दे
26 18 उसने कहा कि क्या हमने तुम्हें बचपने में पाला नहीं है और क्या तुमने हमारे दरम्यान (बीच में) अपनी उम्र के कई साल नहीं गुज़ारे हैं
26 19 और तुमने वह काम किया है जो तुम कर गये हो और तुम शुक्रिया अदा करने वालों में से नहीं हो
26 20 मूसा ने कहा कि वह क़त्ल मैंने उस वक़्त किया था जब मैं क़त्ल से ग़ाफि़ल (बेपरवाह) था
26 21 फिर मैंने तुम लोगों के ख़ौफ़ (डर) से गुरेज़ इखि़्तयार किया तो मेरे रब ने मुझे नबूवत अता फ़रमायी और मुझे अपने नुमाइन्दों में से क़रार दे दिया
26 22 ये एहसान जो तरबियत के सिलसिले में तू जता रहा है तो तूने बड़ा ग़्ाज़्ाब किया था कि बनी इसराईल को गु़लाम बना लिया था
26 23 फि़रऔन ने कहा कि ये रब्बुल आलमीन (तमाम जहानों का रब) क्या चीज़ है
26 24 मूसा ने कहा कि ज़मीन व आसमान और इसके माबैन (दोनों के बीच) जो कुछ है सबका परवरदिगार (पालने वाला) अगर तुम यक़ीन कर सको
26 25 फि़रऔन ने अपने अतराफि़यों (इर्द-गिर्द वालों) से कहा कि तुम कुछ सुन रहे हो
26 26 मूसा ने कहा कि वह तुम्हारा भी रब है और तुम्हारे बाप दादा का भी रब है
26 27 फि़रऔन ने कहा कि ये रसूल जो तुम्हारी तरफ़ भेजा गया है ये बिल्कुल दीवाना है
26 28 मूसा ने कहा कि वह मशरिक़ (पूरब) व मग़रिब (पश्चिम) और जो कुछ इसके दरम्यान (बीच में)  है सबका परवरदिगार (पालने वाला) है अगर तुम्हारे पास अक़्ल है
26 29 फि़रऔन ने कहा कि तुमने मेरे अलावा किसी ख़ुदा को भी इखि़्तयार किया (अपनाया) तो तुम्हें क़ैदियों में शामिल कर दूँगा
26 30 मूसा ने जवाब दिया कि चाहे मैं खुली हुई दलील ही पेश कर दूँ
26 31 फि़रऔन ने कहा कि वह दलील क्या है अगर तुम सच्चे हो तो पेश करो
26 32 मूसा ने अपना असा डाल दिया और वह साँप बनकर रेंगने लगा
26 33 और गिरेबान से हाथ निकाला तो वह सफ़ेद चमकदार नज़र आने लगा
26 34 फि़रऔन ने अपने इतराफ़ (इर्द-गिर्द) वालों से कहा कि ये तो बड़ा होशियार जादूगर मालूम होता है
26 35 इसका मक़सद ये है कि जादू के ज़ोर पर तुम्हें तुम्हारी ज़मीन से निकाल बाहर कर दे तो अब तुम्हारी राय क्या है
26 36 लोगों ने कहा कि इन्हें और इनके भाई को रोक लीजिए और शहरों में जादूगरों को इकठ्ठा करने वालों को रवाना कर दीजिए
26 37 वह लोग एक से एक होशियार जादूगर ले आयेंगे
26 38 ग़रज़ वक़्त मुक़र्रर (तय किये हुए) पर तमाम जादूगर इकठ्ठा किये गये
26 39 और इन लोगों से कहा गया कि तुम सब इस बात पर इज्तेमा (जमा होना) करने वाले हो
26 40 शायद हम लोग उन साहिरों (जादूगरों) का इत्तेबा (पैरवी) कर लें अगर वह ग़ालिब आ गये (कामयाब हो गए)
26 41 इसके बाद जब जादूगर इकठ्ठा हुए तो उन्होंने फि़रऔन से कहा कि अगर हम ग़ालिब आ गये तो क्या हमारी कोई उजरत (इनआम, सिला) होगी
26 42 फि़रऔन ने कहा कि बेशक तुम लोग मेरे मुक़र्रबीन (ख़ास, क़रीबी, दरबारी लोगों) में शुमार होगे
26 43 मूसा ने उन लोगों से कहा कि जो कुछ फेंकना चाहते हो फेंको
26 44 तो उन लोगों ने अपनी रस्सियों और छडि़यों को फेंक दिया और कहा कि फि़रऔन की इज़्ज़त व जलाल की क़सम--हम लोग ग़ालिब आने वाले हैं
26 45 फिर मूसा ने भी अपना असा डाल दिया तो लोगों ने अचानक क्या देखा कि वह सबके जादू को निगले जा रहा है
26 46 ये देखकर जादूगर सज्दे में गिर पड़े
26 47 और इन लोगों ने कहा कि हम तो रब्बुल आलमीन (तमाम जहानों के रब) पर ईमान ले आये
26 48 जो मूसा और हारून दोनों का रब है
26 49 फि़रऔन ने कहा कि तुम लोग मेरी इजाज़त से पहले ही ईमान ले आये ये तुमसे भी बड़ा जादूगर है जिसने तुम लोगों को जादू सिखाया है मैं तुम लोगों के हाथ पाँव मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) सिम्तों (दिशाओं) से काट दूँगा और तुम सबको सूली पर लटका दूँगा
26 50 उन लोगों ने कहा कि कोई हर्ज नहीं है हम सब पलट कर अपने रब की बारगाह में पहुँच जायेंगे
26 51 हम तो सिर्फ़ ये चाहते हैं कि हमारा परवरदिगार (पालने वाला) हमारी ख़ताओं को माॅफ़ कर दे कि हम सबसे पहले ईमान लाने वाले हैं
26 52 और हमने मूसा की तरफ़ वही की कि मेरे बन्दों को लेकर रातों रात निकल जाओ कि तुम्हारा पीछा किया जाने वाला है
26 53 फिर फि़रऔन ने मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) शहरों में लश्कर जमा करने वाले रवाना कर दिये
26 54 कि ये थोड़े से अफ़राद (लोगों) की एक जमाअत (गिरोह) है
26 55 और इन लोगों ने हमें गु़स्सा दिला दिया है
26 56 और हम सब सारे साज़ो सामान के साथ हैं
26 57 नतीजेे में हमने इनको बाग़ात और चश्मों (पानी निकलने की जगह) से निकाल बाहर कर दिया
26 58 और ख़ज़ानों और बा इज़्ज़त (इज़्ज़त वाली) जगहों से भी
26 59 और हम इसी तरह सज़ा देते हैं और हमने ज़मीन का वारिस बनी इसराईल को बना दिया
26 60 फिर इन लोगों ने मूसा और इनके साथियों का सुबह-सवेरे पीछा किया
26 61 फिर जब दोनों एक दूसरे को नज़र आने लगे तो असहाबे मूसा ने कहा कि अब तो हम गिरफ़्त (पकड़) में आ जायेंगे
26 62 मूसा ने कहा कि हर्गिज़ (बिल्कुल) नहीं हमारे साथ हमारा परवरदिगार (पालने वाला) है वह हमारी रहनुमाई (रास्ता दिखाना) करेगा
26 63 फिर हमने मूसा की तरफ़ वही की कि अपना असा दरिया में मार दें चुनान्चे दरिया शिगाफ़्ता (हिस्सों में) हो गया और हर हिस्सा एक पहाड़ जैसा नज़र आने लगा
26 64 और दूसरे फ़रीक़ को भी हमने क़रीब कर दिया
26 65 और हमने मूसा और उनके तमाम साथियों को निजात (छुटकारा, रिहाई) दे दी
26 66 फिर बाक़ी लोगों को ग़कऱ् (डुबोना) कर दिया
26 67 इसमें भी हमारी एक निशानी है और बनी इसराईल की अकसरियत (ज़्यादातर लोग) ईमान लाने वाली नहीं थी
26 68 और तुम्हारा परवरदिगार (पालने वाला) साहेबे इज़्ज़त (इज़्ज़त वाला) भी है और मेहरबान भी
26 69 और उन्हें इब्राहीम की ख़बर पढ़कर सुनाओ
26 70 जब उन्होंने अपने मरबी बाप (मुंहबोले बाप) और क़ौम से कहा कि तुम लोग किसकी ईबादत कर रहे हो
26 71 उन लोगों ने कहा कि हम बुतों की इबादत करते हैं और उन्हीं की मुजावरी करते हैं
26 72 तो इब्राहीम ने कहा कि जब तुम इनको पुकारते हो तो ये तुम्हारी आवाज़ सुनते हैं
26 73 ये कोई फ़ायदा या नुक़सान पहुँचाते हैं
26 74 उन लोगों ने जवाब दिया कि हमने अपने बाप दादा को ऐसा ही करते देखा है
26 75 इब्राहीम ने कहा कि क्या तुमको मालूम है कि जिनकी तुम इबादत करते हो
26 76 तुम और तुम्हारे तमाम बुजु़र्गाने ख़ानदान (ख़ानदान के बुज़्ाुर्ग लोग)
26 77 ये सब मेरे दुश्मन हैं। रब्बुल आलमीन के अलावा
26 78 कि जिसने मुझे पैदा किया है और फिर वही हिदायत भी देता है
26 79 वही खाना देता है और वही पानी पिलाता है
26 80 और जब बीमार हो जाता हूँ तो वही शिफ़ा (बीमारी से छुटकारा) भी देता है
26 81 वही मौत देता है और फिर वही जि़न्दा करता है
26 82 और उसी से ये उम्मीद है कि रोज़े हिसाब (क़यामत के दिन) मेरी ख़ताओं को माॅफ़ कर दे
26 83 ख़ुदाया मुझे इल्म व हिकमत (अक़्ल, दानाई) अता फ़रमा और मुझे सालेहीन (नेक अमल करने वालों) के साथ मुल्हक़ (शामिल) कर दे
26 84 और मेरे लिए आइन्दा (आने वाली) नस्लों में सच्ची जु़बान और जि़क्र ख़ैर क़रार दे
26 85 और मुझे जन्नत के वारिसों में से क़रार दे (बना दे)
26 86 और मेरे मरबी (मुंहबोले बाप) को बख़्श दे कि वह गुमराहों में से है
26 87 और मुझे उस दिन रूसवा (शर्मिन्दा) न करना जब सब क़ब्रों से उठाये जायेंगे
26 88 जिस दिन माल और औलाद कोई काम न आयेगा
26 89 मगर वह जो क़ल्बे सलीम (गुनाहों से पाक दिल) के साथ अल्लाह की बारगाह में हाजि़र हो
26 90 और जिस दिन जन्नत परहेज़गारों (बुराईयों से दूरी अपनाने वालों) से क़रीब तर कर दी जायेगी
26 91 और जहन्नम को गुमराहों के सामने कर दिया जायेगा
26 92 और जहन्नमियों से कहा जायेगा कि कहाँ हैं वह जिनकी तुम इबादत किया करते थे
26 93 ख़ुदा को छोड़कर वह तुम्हारी मदद करेंगे या अपनी मदद करेंगे
26 94 फिर वह सब मय तमाम गुमराहों के जहन्नम में मुँह के बल ढकेल दिये जायेंगे
26 95 और इबलीस (शैतान) के तमाम लश्कर वाले भी
26 96 और वह सब जहन्नुम में झगड़ा करते हुए कहेंगे
26 97 कि ख़ुदा की क़सम हम सब खुली हुई गुमराही में थे
26 98 जब तुमको रब्बुल आलमीन के बराबर क़रार दे रहे थे
26 99 और हमें मुजरिमों (जुर्म करने वालों) के अलावा किसी ने गुमराह नहीं किया
26 100 अब हमारे लिए कोई शिफ़ाअत (सिफ़ारिश करने) करने वाला भी नहीं है
26 101 और न कोई दिल पसन्द दोस्त है
26 102 पस ऐ काश हमें वापसी नसीब हो जाती तो हम सब भी साहेबे ईमान हो जाते
26 103 इसमें भी हमारी एक निशानी है और उनकी अकसरियत (ज़्यादातर लोग) बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) मोमिन नहीं थी
26 104 और तुम्हारा परवरदिगार (पालने वाला) सब पर ग़ालिब भी है और मेहरबान भी है
26 105 और नूह की क़ौम ने भी मुरसेलीन (रसूलों) की तकज़ीब (झुठलाना) की
26 106 जब इनके भाई नूह ने इनसे कहा कि तुम परहेज़गारी (बुराईयों से दूरी) क्यों नहीं इखि़्तयार करते हो
26 107 मैं तुम्हारे लिए अमानतदार नुमाईन्दाए परवरदिगार (पालने वाला) हूँ
26 108 पस अल्लाह से डरो और मेरी इताअत (कहने पर अमल) करो
26 109 और मैं इस तब्लीग़ की कोई उजरत (इनाम, सिला) भी नहीं चाहता हूँ मेरी उजरत (इनाम, सिला) तो रब्बुल आलमीन के जि़म्मे है
26 110 लेहाज़ा (इसलिये) तुम अल्लाह से डरो और मेरी इताअत (कहने पर अमल) करो
26 111 इन लोगों ने कहा कि हम आप पर किस तरह ईमान ले आयें जबकि आपके सारे पैरोकार (पैरवी करने वाले) पस्त (निचले, कमज़ोर) तबक़े के लोग हैं
26 112 नूह ने कहा कि मैं क्या जानूँ कि ये क्या करते थे
26 113 इनका हिसाब तो मेरे परवरदिगार (पालने वाले) के जि़म्मे है अगर तुम इस बात का शऊर (समझ) रखते हो
26 114 और मैं मोमिनीन को हटाने वाला नहीं हूँ
26 115 मैं तो सिर्फ़ वाजे़ह (रौशन, खुली हुई) तौर पर अज़ाबे इलाही से डराने वाला हूँ
26 116 इन लोगों ने कहा कि नूह अगर तुम इन बातों से बाज़ न आये तो हम तुम्हें संगसार कर देंगे
26 117 नूह ने ये सुनकर फ़रयाद की के परवरदिगार (पालने वाले) मेरी क़ौम ने मुझे झुठला दिया है
26 118 अब मेरे और इनके दरम्यान (बीच में) खुला हुआ फ़ैसला फ़रमा दे और मुझे और मेरे साथी साहेबाने ईमान को निजात (छुटकारा, रिहाई) दे दे
26 119 फिर हमने उन्हें और उनके साथियों को एक भरी हुई कश्ती में निजात दे दी
26 120 इसके बाद बाक़ी सबको ग़कऱ् (डुबोना) कर दिया
26 121 यक़ीनन इसमें भी हमारी एक निशानी है और इनकी अकसरियत (ज़्यादातर लोग) ईमान लाने वाली नहीं थी
26 122 और तुम्हारा परवरदिगार (पालने वाला) ही सब पर ग़ालिब और मेहरबान है
26 123 और क़ौमे आद ने भी मुरसेलीन (पैग़म्बरों) की तकज़ीब (झुठलाना) की है
26 124 जब इनके भाई हूद ने कहा कि तुम ख़ौफ़े ख़ु़दा (ख़ुदा का डर) क्यों नहीं पैदा करते हो
26 125 मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार पैग़म्बर हूँ
26 126 लेहाज़ा (इसलिये) अल्लाह से डरो और मेरी इताअत (कहने पर अमल) करो
26 127 और मैं तो तुमसे तब्लीग़ का कोई अज्र (सिला) भी नहीं चाहता हूँ मेरा अज्र (सिला) सिर्फ़ रब्बुल आलीमन (तमाम जहानों के मालिक) के जि़म्मे है
26 128 क्या तुम खेल तमाशे के लिए हर ऊँची जगह पर एक यादगार बनाते हो
26 129 और बड़े-बड़े महल तामीर करते हो कि शायद इसी तरह हमेशा दुनिया में रह जाओ
26 130 और जब हमला करते हो तो निहायत जाबिराना (सख़्त, ज़्ाुल्म वाला) हमला करते हो
26 131 अब अल्लाह से डरो और मेरी इताअत (कहने पर अमल) करो
26 132 और उसका ख़ौफ़ (डर) पैदा करो जिसने तुम्हारी उन तमाम चीज़ों से मदद की है जिन्हें तुम खू़ब जानते हो
26 133 तुम्हारी इमदाद (मदद) जानवरों और औलाद से की है
26 134 और बाग़ात और चश्मों (पानी निकलने की जगह) से की है
26 135 मैं तुम्हारे बारे में बड़े सख़्त दिन के अज़ाब से ख़ौफ़ज़दा (डरा हुआ) हूँ
26 136 उन लोगों ने कहा कि हमारे लिए सब बराबर है चाहे तुम हमें नसीहत (अच्छी बातें जो बताई जाएं)  करो या तुम्हारा शुमार नसीहत (अच्छी बातें जो बताई जाएं) करने वालों में न हो
26 137 ये डराना धमकाना तो पुराने लोगों की आदत है
26 138 और हम पर अज़ाब होने वाला नहीं है
26 139 पस क़ौम ने तकज़ीब (झुठलाना) की और हमने उसे हलाक (बरबाद, ख़त्म) कर दिया कि इसमंे भी हमारी एक निशानी है और इनकी अकसरियत (ज़्यादातर लोग) बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) मोमिन नहीं थी
26 140 और तुम्हारा परवरदिगार (पालने वाला) ग़ालिब भी है और मेहरबान भी है
26 141 और क़ौमे समूद ने भी मुरसलीन (पैग़म्बरों) की तकज़ीब (झुठलाना) की
26 142 जब इनके भाई सालेह ने कहा कि तुम लोग ख़ुदा से क्यों नहीं डरते हो
26 143 मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार पैग़म्बर हूँ
26 144 लेहाज़ा (इसलिये) अल्लाह से डरो और मेरी इताअत (कहने पर अमल) करो
26 145 और मैं तुमसे इस काम की ऊजरत (इनाम, सिला) नहीं चाहता हूँ मेरी ऊजरत (इनाम, सिला) तो ख़ुदाए रब्बुलआलमीन (तमाम जहानों का मालिक) के जि़म्मे है
26 146 क्या तुम यहाँ की नेअमतों में इसी आराम से छोड़ दिये जाओगे
26 147 इन्हीं बाग़ात और चश्मों (पानी निकलने की जगह) में
26 148 और इन्हीं खेतों और ख़ुर्मे (खजूर) के दरख़्तों (पेड़ों) के दरम्यान (बीच में) जिनकी कलियाँ नरम व नाजु़क हैं
26 149 और जो तुम पहाड़ों को काटकर आसायशी मकानात तामीर (घर तराशना) कर रहे हो
26 150 ऐसा हर्गिज़ (बिल्कुल) नहीं होगा लेहाज़ा (इसलिये) अल्लाह से डरो और मेरी इताअत (कहने पर अमल) करो
26 151 और ज़्यादती करने वालों की बात न मानो
26 152 जो ज़मीन में फ़साद (लड़ाई-झगड़ा) बरपा करते हैं और इस्लाह नहीं करते हैं
26 153 उन लोगों ने कहा कि तुम पर तो सिर्फ़ जादू कर दिया गया है और बस
26 154 तुम हमारे ही जैसे एक इन्सान हो लेहाज़ा (इसलिये) अगर सच्चे हो तो कोई निशानी और मोजिज़ा (सिला) ले आओ
26 155 सालेह ने कहा कि ये एक ऊँटनी है एक दिन का पानी इसके लिए है और एक मुक़र्रर (तय किये हुए) दिन का पानी तुम्हारे लिए है
26 156 और ख़बरदार इसे कोई तकलीफ़ न पहुँचाना वरना तुम्हें सख़्त दिन का अज़ाब गिरफ़्तार कर लेगा
26 157 फिर इन लोगों ने इसके पैर काट दिये और बाद में बहुत शर्मिन्दा हुए
26 158 कि अज़ाब ने उन्हें घेर लिया और यक़ीनन इसमें भी हमारी एक निशानी है और इनकी अकसरियत (ज़्यादातर लोग) ईमान वाली नहीं थी
26 159 और तुम्हारा परवरदिगार (पालने वाला) सब पर ग़ालिब आने वाला और साहेबे रहमत भी है
26 160 और क़ौमे लूत ने भी मुरसलीन (पैग़म्बरों) को झुठलाया
26 161 जब इनसे इनके भाई लूत ने कहा कि तुम ख़ुदा से क्यों नहीं डरते हो
26 162 मैं तुम्हारे हक़ में एक अमानतदार पैग़म्बर हूँ
26 163 अल्लाह से डरो और मेरी इताअत (कहने पर अमल) करो
26 164 और मैं तुमसे इस अम्र की कोई उजरत (इनाम, सिला) भी नहीं चाहता हूँ मेरा अज्र तो सिर्फ़ परवरदिगार (पालने वाले) के जि़म्मे है जो आलमीन का पालने वाला है
26 165 क्या तुम लोग सारी दुनिया में सिर्फ़ मर्दों ही से ताल्लुक़ात पैदा करते हो
26 166 और उन अज़वाज (बीवियों) को छोड़ देते हो जिन्हंे परवरदिगार (पालने वाले) ने तुम्हारे लिए पैदा किया है हक़ीक़तन तुम बड़ी ज़्यादती करने वाले लोग हो
26 167 उन लोगांे ने कहा कि लूत अगर तुम इस तब्लीग़ से बाज़ न आये तो इस बस्ती से निकाल बाहर कर दिये जाओगे
26 168 उन्होंने कहा कि बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) मैं तुम्हारे अमल से बेज़ार हूँ
26 169 परवरदिगार (पालने वाले)! मुझे और मेरे अहल को इनके आमाल (कामों) की सज़ा से महफ़ूज़ (हिफ़ाज़त के साथ) रखना
26 170 तो हमने उन्हें और इनके अहल सबको निजात दे दी
26 171 सिवाए उस ज़ईफ़ा के कि जो पीछे रह गई
26 172 फिर हमने इन लोगों को तबाह व बर्बाद कर दिया
26 173 और इनके ऊपर ज़बरदस्त पत्थरों की बारिश कर दी जो डराये जाने वालों के हक़ में बदतरीन (सबसे बुरी)  बारिश है
26 174 और इसमें भी हमारी एक निशानी है और इनकी अकसरियत (ज़्यादातर लोग) बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) मोमिन नहीं थी
26 175 और तुम्हारा परवरदिगार (पालने वाला) अज़ीज़ भी है और रहीम भी है
26 176 और जंगल के रहने वालांे ने भी मुरसलीन (पैग़म्बरों) को झुठलाया
26 177 जब इनसे शुएब ने कहा कि तुम ख़ुदा से डरते क्यों नहीं हो
26 178 मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार पैग़म्बर हूँ
26 179 लेहाज़ा (इसलिये) अल्लाह से डरो और मेरी इताअत (कहने पर अमल) करो
26 180 और मैं तुमसे इस काम की कोई ऊजरत (इनाम, सिला) भी नहीं चाहता हूँ कि मेरा अज्र तो सिर्फ़ रब्बुलआलमीन (तमाम जहानों का मालिक) के जि़म्मे है
26 181 और देखो नाप तौल को ठीक रखो और लोगों को ख़सारा (घाटा, नुक़सान) देने वाले न बनो
26 182 और वज़न करो तो सही और सच्ची तराजू़ से तौलो
26 183 और लोगों की चीज़ों में कमी न किया करो और रूए ज़मीन में फ़साद (लड़ाई-झगड़ा) न फैलाते फिरो
26 184 और उस ख़ुदा से डरो जिसने तुम्हें और तुमसे पहले वाली नस्लों को पैदा किया है
26 185 उन लोगों ने कहा कि तुम तो सिर्फ़ जादूज़दा (जिसपर जादू किया गया हो) मालूम होते हो
26 186 और तुम हमारे ही जैसे एक इन्सान हो और हमें तो झूठे भी मालूम होते हो
26 187 और अगर वाके़अन (वाक़ई में) सच्चे हो तो हमारे ऊपर आसमान का कोई टुकड़ा नाजि़ल कर दो
26 188 उन्होंने कहा कि हमारा परवरदिगार (पालने वाला) तुम्हारे आमाल (कामों) से खू़ब बाख़बर है
26 189 फिर उन लोगों ने तकज़ीब (झुठलाना) की तो उन्हें साया (साएबान, अब्र) के दिन के अज़ाब ने अपनी गिरफ़्त (पकड़) में ले लिया कि ये बड़े सख़्त दिन का अज़ाब था
26 190 बेशक इसमें भी हमारी एक निशानी है और इनकी अकसरियत (ज़्यादातर लोग) ईमान लाने वाली नहीं थी
26 191 और तुम्हारा परवरदिगार (पालने वाला) बहुत बड़ा इज़्ज़त वाला और मेहरबान है
26 192 और ये कु़रआन रब्बुलआलमीन (तमाम जहानों का मालिक) की तरफ़ से नाजि़ल होने वाला है
26 193 इसे जिबरईल अमीन लेकर नाजि़ल हुए हैं
26 194 ये आपके क़ल्ब पर नाजि़ल हुआ है ताकि आप लोगों को अज़ाबे इलाही से डरायें
26 195 ये वाजे़ह (रौशन, खुली हुई) अरबी जु़बान में है
26 196 और इसका जि़क्र साबेक़ीन की किताबों में भी मौजूद है
26 197 क्या ये निशानी इनके लिए काफ़ी नहीं है कि इसे बनी इसराईल के ओलमा भी जानते हैं
26 198 और अगर हम इसे किसी अजमी आदमी पर नाजि़ल कर देते
26 199 और वह उन्हें पढ़कर सुनाता तो ये कभी ईमान लाने वाले नहीं थे
26 200 और इस तरह हमने इस इन्कार को मुजरेमीन (जुर्म करने वालों) के दिलों तक जाने का रास्ता दे दिया है
26 201 कि ये ईमान लाने वाले नहीं है जब तक कि दर्दनाक (दर्द देने वाला) अज़ाब न देख लें
26 202 कि ये अज़ाब इन पर अचानक नाजि़ल हो जाये और उन्हें शऊर (समझ) तक न हो
26 203 उस वक़्त ये कहेंगे कि क्या हमें मोहलत दी जा सकती है
26 204 तो क्या लोग हमारे अज़ाब की जल्दी कर रहे हैं
26 205 क्या तुम्हें नहीं मालूम कि हम उन्हें कई साल की मोहलत दे दें
26 206 और इसके बाद वह अज़ाब आये जिसका वादा किया गया है
26 207 तो भी जो इनको आराम दिया गया था वह इनके काम न आयेगा
26 208 और हमने किसी बस्ती को हलाक (बरबाद, ख़त्म) नहीं किया मगर ये कि उसके लिए डराने वाले भेज दिये थे
26 209 ये एक यादे दहानी थी और हम हर्गिज़ (बिल्कुल) ज़्ाु़ल्म करने वाले नहीं हैं
26 210 और इस कु़रआन को शयातीन (शैतानों) लेकर हाजि़र नहीं हुए हैं
26 211 ये बात उनके लिए मुनासिब (ठीक) भी नहीं है और उनके बस की भी नहीं है
26 212 वह तो वही (इलाही पैग़ाम) के सुनने से भी महरूम हैं
26 213 लेहाज़ा (इसलिये) तुम अल्लाह के साथ किसी और ख़ुदा को मत पुकारो कि मुब्तिलाए अज़ाब (अज़ाब में मुब्तिला) कर दिये जाओ
26 214 और पैग़म्बर आप अपने क़रीबी रिश्तेदारों को डराईये
26 215 और जो साहेबाने ईमान आपका इत्तेबा (पैरवी) कर लें उनके लिए अपने शानों को झुका दीजिए
26 216 फिर ये लोग आपकी नाफ़रमानी (हुक्म न मानना) करें तो कह दीजिए कि मैं तुम लोगों के आमाल (कामों) से बेज़ार हूँ
26 217 और ख़ुदाए अज़ीज व मेहरबान पर भरोसा कीजिए
26 218 जो आपको उस वक़्त भी देखता है जब आप क़याम करते हैं
26 219 और फिर सजदा गुज़ारों (सजदा करने वालों) के दरम्यान (बीच में) आपका उठना-बैठना भी देखता है
26 220 वह सब कुछ सुनने वाला और जानने वाला है
26 221 क्या हम आपको बतायें कि शयातीन (शैतान) किस पर नाजि़ल होते हैं
26 222 वह हर झूठे और बद किरदार पर नाजि़ल होते हैं
26 223 जो फ़रिश्तों की बातों पर कान लगाये रहते हैं और इनमें के अकसर लोग झूठे हैं
26 224 और शोअरा की पैरवी वही लोग करते हैं जो गुमराह होते हैं
26 225 क्या तुम नहीं देखते हो कि वह हर वादीए ख़्याल (जंगल-जंगल) में चक्कर लगाते रहते हैं
26 226 और वह कुछ कहते हैं जो करते नहीं हैं
26 227 अलावा उन शोअरा के जो ईमान लाये और उन्हांेने नेक (अच्छा) आमाल (कामों) किये और बहुत सारा जि़क्रे ख़ुदा किया और ज़्ाु़ल्म सहने के बाद उसका इन्तिक़ाम लिया और अनक़रीब (बहुत जल्द) ज़ालेमीन (ज़्ाुल्म करने वालों) को मालूम हो जायेगा कि वह किस जगह पलटा दिये जायेंग

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