Saturday, 18 April 2015

Sura-e-Mumtahina 60th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-मुमतहिना
60   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
60 1 ईमान वालों ख़बरदार मेरे और अपने दुश्मनों को दोस्त मत बनाना कि तुम उनकी तरफ़ दोस्ती की पेशकश करो जबकि उन्होंने उस हक़ का इन्कार कर दिया है जो तुम्हारे पास आ चुका है और वह रसूल को और तुमको सिर्फ़ इस बात पर निकाल रहे हैं कि तुम अपने परवरदिगार (पालने वाले) (अल्लाह) पर ईमान रखते हो। अगर तुम वाके़अन (सच में) हमारी राह में जेहाद और हमारी मजऱ्ी की तलाश में घर से निकले हो तो उनसे ख़ुफि़या दोस्ती किस तरह कर रहे हो जबकि मैं तुम्हारे ज़ाहिर व बातिन (छुपे हुए) सबको जानता हूँ और जो भी तुम में से ऐसा इक़दाम करेगा (क़दम उठाएगा) वह यक़ीनन सीधे रास्ते से बहक गया है
60 2 ये अगर तुम्हें पा जायेंगे तो तुम्हारे दुश्मन साबित होंगे और तुम्हारी तरफ़ बुराई के इरादे से हाथ और ज़बान से इक़दाम करेंगे (क़दम उठाऐगे) और ये चाहेंगे कि तुम भी काफि़र (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) हो जाओ
60 3 यक़ीनन तुम्हारे क़राबतदार (क़रीबी रिश्तेदार) और तुम्हारी औलाद रोज़े क़यामत काम आने वाली नहीं है उस दिन ख़ुदा तुम्हारे दरम्यान (बीच) फ़ैसला कर देगा और वह तुम्हारे आमाल (कामों) से खू़ब बाख़बर है
60 4 तुम्हारे लिए बेहतरीन (सबसे अच्छा) नमूना-ए-अमल इब्राहीम अलैहिस्सलाम और उनके साथियों में है जब उन्होंने अपनी क़ौम से कह दिया कि हम तुमसे और तुम्हारे माबूदों से बेज़ार (नफ़रत करने वाले) हैं। हमने तुम्हारा इन्कार कर दिया है और हमारे तुम्हारे दरम्यान (बीच में) बुग़्ज़ और अदावत (दुश्मनी) बिल्कुल वाजे़ह (रौशन, खुली हुई) है यहाँ तक कि तुम ख़ुदाए वहदहु ला शरीक (जो वाहिद, अकेला है और जिसका कोई शरीक नहीं है) पर ईमान ले आओ अलावा इब्राहीम अलैहिस्सलाम के उस क़ौल के जो उन्होंने अपने मरबी बाप से कह दिया था कि मैं तुम्हारे लिए अस्तग़फ़ार (गुनाहों की माफ़ी की दुआ) ज़रूर करूँगा लेकिन मैं परवरदिगार (पालने वाले) की तरफ़ से कोई इखि़्तयार नहीं रखता हूँ। ख़ुदाया मैंने तेरे ऊपर भरोसा किया है और तेरी ही तरफ़ रूजुअ किया है और तेरी ही तरफ़ बाज़गश्त (लौटना, वापसी) भी है
60 5 ख़ुदाया मुझे कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) के लिए फि़त्ना व बला (मुसीबत) न क़रार देना और मुझे बख़्श देना कि तू ही साहेबे इज़्ज़त और साहेबे हिकमत (अक़्ल, दानाई वाला) है
60 6 बेशक तुम्हारे लिए उन लोगों में बेहतरीन नमूना-ए-अमल है उस शख़्स के लिए जो अल्लाह और रोज़े आखि़रत (क़यामत) का उम्मीदवार (उम्मीद करने वाला) है और जो इनहेराफ़ करेगा (कजी करेगा, रुख़ मोड़ेगा) ख़ुदा उससे बेनियाज़ (जिसे कोई/किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं) और क़ाबिले हम्द  व सना (तारीफ़) है
60 7 क़रीब है कि ख़ुदा तुम्हारे और जिनसे तुमने दुश्मनी की है उनके दरम्यान (बीच में) दोस्ती क़रार दे दे कि वह साहेबे कु़दरत है और बहुत बड़ा बख़्शने (माफ़ करने) वाला और मेहरबान है
60 8 वह तुम्हें उन लोगों के बारे में जिन्होंने तुमसे दीन के मामले में जंग नहीं की है और तुम्हें वतन से नहीं निकाला है इस बात से नहीं रोकता है कि तुम उनके साथ नेकी और इन्साफ़ करो कि ख़ुदा इन्साफ़ करने वालों को दोस्त रखता है
60 9 वह तुम्हें सिर्फ़ उन लोगों से रोकता है जिन्होंने तुमसे दीन में जंग की है और तुम्हें वतन से निकाल बाहर किया है और तुम्हारे निकालने पर दुश्मनों की मदद की है कि उनसे दोस्ती करो और जो उनसे दोस्ती करेगा वह यक़ीनन ज़ालिम होगा
60 10 ईमान वालों जब तुम्हारे पास हिजरत करने वाली मोमिन औरतें आयें तो पहले उनका इम्तिहान करो कि अल्लाह उनके ईमान को खू़ब जानता है फिर अगर तुम भी देखो कि ये मोमिना हैं तो ख़बरदार उन्हें कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) की तरफ़ वापस न करना। न वह उनके लिए हलाल हैं और न ये उनके लिए हलाल हैं और जो ख़र्चा कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) ने मेहर का दिया है वह उन्हें वापस कर दो और तुम्हारे लिए कोई हर्ज नहीं है कि तुम उनकी उजरत (मेहर) देने के बाद उनसे निकाह कर लो और ख़बरदार काफि़र (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) औरतों की इस्मत पकड़कर (आबरू अपने क़ब्ज़े में) न रखो और जो तुमने ख़र्च किया है वह कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले)  से ले लो और जो उन्होंने ख़र्च किया है वह तुमसे ले लें कि यही हुक्मे ख़ुदा है जिसका फ़ैसला ख़ुदा ने तुम्हारे दरम्यान (बीच में) किया है और वह बड़ा साहेबे इल्म व हिकमत है
60 11 और अगर तुम्हारी कोई बीवी कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) की तरफ़ चली जाये और फिर तुम उनको सज़ा दो तो जिनकी बीवी चली गई है उनका ख़र्च माले ग़नीमत में से दे दो और उस अल्लाह से बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) डरते रहो जिस पर ईमान रखने वाले हो
60 12 पैग़म्बर अगर ईमान लाने वाली औरतें आपके पास इस अम्र पर बैयत करने के लिए आयें कि किसी को ख़ुदा का शरीक नहीं बनायेंगी और चोरी नहीं करेंगी, ज़ेना नहीं करेंगी। औलाद को क़त्ल नहीं करेंगी और अपने हाथ पाँव के सामने से कोई बोहतान (लड़का) लेकर नहीं आयेंगी और किसी नेकी में आपकी मुख़ालेफ़त (नाफ़रमानी) नहीं करेंगी तो आप उनसे बैयत का मामला कर लें और उनके हक़ मंे अस्तग़फ़ार (गुनाहों की माफ़ी की दुआ) करें कि ख़ुदा बड़ा बख़्शने (माफ़ करने) वाला और मेहरबान है
60 13 ईमान वालों ख़बरदार उस क़ौम से हर्गिज़ (बिल्कुल) दोस्ती न करना जिस पर ख़ुदा ने ग़ज़ब नाजि़ल किया है कि वह आखि़रत से उसी तरह मायूस होंगे जिस तरह कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) क़ब्र वालों से मायूस हो जाते हैं

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