Thursday, 16 April 2015

Sura-e-Ghafir 40th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-ग़ाफि़र (सूरा-ए-मोमिन)
40   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
40 1 हा मीम
40 2 ये ख़ुदाए अज़ीज़ व अलीम की तरफ़ से नाजि़ल की हुई किताब है
40 3 वह गुनाहों का बख़्शने (माफ़ करने) वाला, तौबा का कु़बूल करने वाला, शदीद अज़ाब करने वाला और साहेबे फ़ज़्ल व करम है। उसके अलावा दूसरा ख़ुदा नहीं है और सबकी बाज़गश्त (लौटना, वापसी) उसी की तरफ़ है
40 4 अल्लाह की निशानियों में सिर्फ़ वह झगड़ा करते हैं जो काफि़र (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) हो गये हैं लेहाज़ा (इसलिये) उनका मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) शहरों में चक्कर लगाना तुम्हें धोके में न डाल दे
40 5 उनसे पहले भी नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम और उसके बाद वाले गिरोहों ने रसूलों की तकज़ीब (झुठलाना) की है और हर उम्मत ने अपने रसूल के बारे में ये इरादा किया है कि उसे गिरफ़्तार कर लें और बातिल का सहारा लेकर झगड़ा किया है कि हक़ को उखाड़ कर फेंक दें तो हमने भी उन्हंें अपनी गिरफ़्त (पकड़) में ले लिया तो तुमने देखा कि हमारा अज़ाब कैसा था
40 6 और इसी तरह तुम्हारे परवरदिगार (पालने वाले) का अज़ाब काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) पर साबित हो चुका है कि वह जहन्नुम में जाने वाले हैं
40 7 जो फ़रिश्ते अर्शे इलाही को उठाये हुए हैं और जो उसके गिर्द मुअय्यन हैं सब हम्दे (तारीफ़) ख़ुदा की तसबीह कर रहे हैं और उसी पर ईमान रखते हैं और साहेबाने ईमान के लिए अस्तग़फ़ार (गुनाहों की माफ़ी की दुआ) कर रहे हैं कि ख़ुदाया तेरी रहमत और तेरा ईल्म हर शर पर मुहीत है लेहाज़ा (इसलिये) उन लोगांे को बख़्श दे जिन्होंने तौबा की है और तेरे रास्ते का इत्तेबा (पैरवी) किया है और उन्हें जहन्नम के अज़ाब से बचा ले
40 8 परवरदिगार (पालने वाले) इन्हें और इनके बाप दादा, अज़वाज (बीवियों) और औलाद में से जो नेक (अच्छे) और सालेह अफ़राद (लोगों) हैं उनको हमेशा रहने वाले बाग़ात में दाखि़ल फ़रमा जिनका तूने उनसे वादा किया है कि बेशक तू सब पर ग़ालिब और साहेबे हिकमत (अक़्ल, दानाई वाला) है
40 9 और इन्हें बुराईयों से महफ़ूज़ (हिफ़ाज़त के साथ) फ़रमा कि आज जिन लोगों को तूने बुराईयों से बचा लिया गोया उन्हीं पर रहम किया है और ये बहुत बड़ी कामयाबी है
40 10 बेशक जिन लोगों ने कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) इखि़्तयार किया उनसे रोज़े क़यामत पुकार कर कहा जायेगा कि तुम ख़ुद जिस क़द्र अपनी जान से बेज़ार हो ख़ुदा की नाराज़गी इससे कहीं ज़्यादा बड़ी है कि तुमको ईमान की तरफ़ दावत दी जाती थी और तुम कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) इखि़्तयार कर लेते थे
40 11 वह लोग कहेंगे परवरदिगार (पालने वाले) तूने हमें दो मर्तबा मौत दी और दो मर्तबा जि़न्दगी अता की तो अब हमने अपने गुनाहों का इक़रार कर लिया है तो क्या इससे बच निकलने की कोई सबील है
40 12 ये सब इसलिए है कि जब ख़ुदाए वाहिद का नाम लिया गया तो तुम लोगों ने कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) इखि़्तयार किया और जब शिर्क (ख़ुदा के साथ दूसरों को शरीक करने) की बात की गई तो तुमने फ़ौरन मान लिया तो अब फ़ैसला सिर्फ़ ख़ुदाए बलन्द व बुज़्ाुर्ग के हाथ में है
40 13 वही वह है जो तुम्हें अपनी निशानियां दिखलाता है और तुम्हारे लिए आसमान से रिज़्क़ नाजि़ल करता है और इससे वही नसीहत (अच्छी बातों का बयान) हासिल करता है जो उसकी तरफ़ रूजूअ (ध्यान) करता है
40 14 लेहाज़ा (इसलिये) तुम ख़ालिस इबादत के साथ ख़ुदा को पुकारो चाहे काफ़ेरीन (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करने वालों) को ये कितना ही नागवार (नापसन्द) क्यों न हो
40 15 वह ख़ुदा बलन्द दर्जात का मालिक और साहेबे अर्श (अर्श वाला) है वह अपने बन्दों में से जिस पर चाहता है अपने हुक्म से वही (इलाही पैग़ाम) को नाजि़ल करता है ताकि मुलाक़ात के दिन (क़यामत) से लोगों को डराये
40 16 जिस दिन सब निकल कर सामने आ जायेंगे और ख़ुदा पर कोई मख़्फ़ी (छिपी हुई, पोशीदा) नहीं रह जायेगी। आज किसका मुल्क है बस ख़ुदाए वाहिद (यकता) व क़ह्हार का मुल्क है
40 17 आज हर नफ़्स (जान) को उसके किये (कामों, अमल) का बदला दिया जायेगा और आज किसी तरह का ज़़्ाुल्म न हो सकेगा बेशक अल्लाह बहुत जल्द हिसाब करने वाला है
40 18 और पैग़म्बर उन्हें आने वाले दिन के अज़ाब से डराईये जब दम घुट-घुट कर दिल मुँह के क़रीब आ जायेंगे और ज़ालेमीन (ज़्ाुल्म करने वालों) के लिए न कोई दोस्त होगा और न सिफ़ारिश करने वाला जिसकी बात सुन ली जाये
40 19 वह ख़ुदा निगाहों की ख़यानत को भी जानता है और दिलों के छिपे हुए भेदों (राज़ों) से भी बाख़बर है
40 20 वह हक़ के साथ फ़ैसला करता है और उसको छोड़कर ये जिनकी इबादत करते हैं वह तो कोई फ़ैसला भी नहीं कर सकते हैं बेशक अल्लाह सबकी सुनने वाला और सब कुछ देखने वाला है
40 21 क्या इन लोगों ने ज़मीन में सैर नहीं की कि देखते के इनसे पहले वालों का अंजाम क्या हुआ है जो इनसे ज़्यादा ज़बरदस्त कू़व्वत (ताक़त) रखने वाले थे और ज़मीन में आसार के मालिक थे फिर ख़ुदा ने उन्हें उनके गुनाहों की गिरफ़्त (पकड़) में ले लिया और अल्लाह के मुक़ाबले में उनका कोई बचाने वाला नहीं था
40 22 ये सब इसलिए हुआ कि इनके पास रसूल खुली हुई निशानियां लेकर आते थे तो इन्होंने इन्कार कर दिया तो फिर ख़ुदा ने भी इन्हें अपनी गिरफ़्त (पकड़) में ले लिया कि वह बहुत कू़व्वत (ताक़त) वाला और सख़्त अज़ाब करने वाला है
40 23 और हमने मूसा अलैहिस्सलाम को अपनी निशानियों और रौशन दलील के साथ भेजा है
40 24 फि़रऔन, हामान और क़ारून की तरफ़ तो इन सबने कह दिया कि ये जादूगर और झूठे हैं
40 25 तो फिर इसके बाद जब वह हमारी तरफ़ से हक़ लेकर आये तो इन लोगों ने कह दिया कि जो उन पर ईमान ले आये उनके लड़कों को क़त्ल कर दो और लड़कियों को जि़न्दा रखो और काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वालों) का मक्र (दांव) बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) भटक जाने (गुमराही) वाला होता है
40 26 और फि़रऔन ने कहा कि ज़रा मुझे छोड़ दो मैं मूसा अलैहिस्सलाम का ख़ात्मा कर दूँगा और ये अपने रब को पुकारें। मुझे ख़ौफ़ (डर) है कि कहीं ये तुम्हारे दीन को बदल न दें और ज़मीन में कोई फ़साद (लड़ाई-झगड़ा) न बरपा कर दें
40 27 और मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा कि मैं अपने और तुम्हारे परवरदिगार (पालने वाले) की पनाह (मदद, सहारा) हासिल कर रहा हूँ हर उस मुतकब्बिर (ग़्ाुरूर करने वाले) के मुक़ाबले में जिसका रोज़े हिसाब पर ईमान नहीं है
40 28 और फि़रऔन वालों में से एक मर्दे मोमिन ने जो अपने ईमान को छिपाये हुए था ये कहा कि क्या तुम लोग किसी शख़्स को सिर्फ़ इस बात पर क़त्ल कर रहे हो कि वह कहता है कि मेरा परवरदिगार (पालने वाला) अल्लाह है और वह तुम्हारे रब की तरफ़ से खुली हुई दलीलें भी लेकर आया है और अगर झूठा है तो उसके झूठ का अज़ाब उसके सर होगा और अगर सच्चा निकल आया तो जिन बातों से डरा रहा है वह मुसीबतें तुम पर नाजि़ल भी हो सकती हैं। बेशक अल्लाह किसी ज़्यादती करने वाले और झूठे की रहनुमाई नहीं करता है
40 29 मेरी क़ौम वालों बेशक आज तुम्हारे पास हुकूमत है और ज़मीन पर तुम्हारा ग़लबा है लेकिन अगर अज़ाबे ख़ुदा आ गया तो हमें उससे कौन बचायेगा फि़रऔन ने कहा कि मैं तुम्हें वही बातें बता रहा हूँ जो मैं ख़ुद समझ रहा हूँ और मैं तुम्हें अक़्लमन्दी के रास्ते के अलावा और किसी राह की हिदायत नहीं कर रहा हूँ
40 30 और ईमान लाने वाले शख़्स ने कहा कि ऐ क़ौम मैं तुम्हारे बारे में उस दिन जैसे अज़ाब का ख़तरा महसूस कर रहा हूँ जो दूसरी क़ौमों के अज़ाब का दिन था
40 31 क़ौमे नूह, क़ौमे आद, क़ौमे समूद और इनके बाद वालों जैसा हाल और अल्लाह यक़ीनन अपने बन्दों पर जु़ल्म करना नहीं चाहता है
40 32 और ऐ क़ौम मैं तुम्हारे बारे में बाहमी (तुम लोगों की) फ़रियाद के दिन से डर रहा हूँ
40 33 जिस दिन तुम सब पीठ फेर कर भागोगे और अल्लाह के मुक़ाबले में कोई तुम्हारा बचाने वाला न होगा और जिसको ख़ुदा गुमराही में छोड़ दे उसका कोई हिदायत करने वाला नहीं है
40 34 और इससे पहले यूसुफ़ अलैहिस्सलाम भी तुम्हारे पास आये थे तो भी तुम उनके पैग़ाम के बारे में शक ही में मुब्तिला (पड़े) रहे यहां तक कि जब वह दुनिया से चले गये तो तुमने ये कहना शुरू कर दिया कि ख़ुदा इसके बाद कोई रसूल नहीं भेजेगा। इसी तरह ख़ुदा ज़्यादती करने वाले और शक्की मिजाज़ (शक करने वाले) इन्सानों को उनकी गुमराही में छोड़ देता है
40 35 जो लोग के आयाते इलाही में बहस करते हैं बग़ैर इसके कि इनके पास ख़ुदा की तरफ़ से कोई दलील आये वह अल्लाह और साहेबाने ईमान के नज़दीक (क़रीब) सख़्त नफ़रत के हक़दार हैं और अल्लाह इसी तरह हर मग़रूर (ग़्ाुरूर करने वाले) और सरकश (बाग़ी) इन्सान के दिल पर मोहर लगा देता है
40 36 और फि़रऔन ने कहा कि हामान मेरे लिए एक कि़ला तैयार कर कि मैं इसके असबाब तक पहुँच जाऊँ
40 37 जो के आसमान के रास्ते हैं और इस तरह मूसा अलैहिस्सलाम के ख़ुदा को देख लूँ और मेरा तो ख़्याल ये है कि मूसा अलैहिस्सलाम झूठे हैं और कोई ख़ुदा नहीं है, और इसी तरह फि़रऔन के लिए उसकी बदअमली (बुरे कामों) को आरास्ता (सजाकर पेश) कर दिया गया और उसे रास्ते से रोक दिया गया और फि़रऔन की चालों का अंजाम सिवाए हलाकत (मौत, तबाही) और तबाही के कुछ नहीं है
40 38 और जो शख़्स ईमान ले आया था उसने कहा कि ऐ क़ौम वालों मेरा इत्तेबा (पैरवी) करो तो मैं तुम्हें हिदायत का रास्ता दिखा सकता हूँ
40 39 क़ौम वालों, याद रखो कि ये हयाते (जि़न्दगी) दुनिया सिर्फ़ चन्द (कुछ) रोज़ा लज़्ज़त है और हमेशा रहने का घर सिर्फ़ आखि़रत का घर है
40 40 जो भी कोई बुराई करेगा उसे वैसा ही बदला दिया जायेगा और जो नेक (अच्छा) अमल करेगा चाहे वह मर्द हो या औरत बशर्त ये कि साहेबे ईमान भी हो उन्हें जन्नत में दाखि़ल किया जायेगा और वहाँ बिला हिसाब (बेहिसाब) रिज़्क़ दिया जायेगा
40 41 और ऐ क़ौम वालों आखि़र तुम्हें क्या हो गया है कि मैं तुम्हें निजात की दावत दे रहा हूँ और तुम मुझे जहन्नम की तरफ़ दावत दे रहे हो
40 42 तुम्हारी दावत ये है कि मैं ख़ुदा का इन्कार कर दूँ और उन्हें इसका शरीक बना दूँ जिनका कोई इल्म नहीं है और मैं तुमको उस ख़ुदा की तरफ़ दावत दे रहा हूँ जो साहेबे इज़्ज़त और बहुत ज़्यादा बख़्शने (माफ़ करने) वाला है
40 43 बेशक जिसकी तरफ़ तुम दावत दे रहे हो वह न दुनिया में पुकारने के क़ाबिल है और न आखि़रत में और हम सबकी बाज़गश्त (लौटना, वापसी) बिल आखि़र (आखि़रकार) अल्लाह ही की तरफ़ है और ज़्यादती करने वाले ही दर अस्ल जहन्नम वाले हैं
40 44 फिर अनक़रीब (बहुत जल्द) तुम उसे याद करोगे जो मैं तुमसे कह रहा हूँ और मैं तो अपने मामलात को परवरदिगार (पालने वाले) के हवाले कर रहा हूँ कि बेशक वह तमाम बन्दों के हालात का ख़ूब देखने वाला है
40 45 तो अल्लाह ने उस मर्दे मोमिन को उन लोगों की चालों के नुक़सानात से बचा लिया और फि़रऔन वालों को बदतरीन (सबसे बुरे) अज़ाब ने घेर लिया
40 46 वह जहन्नम जिसके सामने यह हर सुबह व शाम पेश किये जाते हैं और जब क़यामत बरपा होगी तो फ़रिश्तों को हुक्म होगा कि फि़रऔन वालों को बदतरीन (सबसे बुरी) अज़ाब की मंजि़ल में दाखि़ल कर दो
40 47 और उस वक़्त को याद दिलाओ जब ये सब जहन्नम के अन्दर झगड़े करेंगे और कमज़ोर लोग मुस्तकबिर (बड़े बनने वाले) लोगों से कहेंगे कि हम तुम्हारी पैरवी करने वाले थे तो क्या तुम जहन्नुम के कुछ हिस्से से भी हमें बचा सकते हो और हमारे काम आ सकते हो
40 48 तो अस्तकबार करने (बड़े बनने) वाले कहेंगे कि अब हम सबकी मंजि़ल (आखि़री जगह) यही है कि अल्लाह बन्दों के दरम्यान (बीच में) फ़ैसला कर चुका है
40 49 इसके बाद जहन्नम में रहने वाले जहन्नम के ख़ाज़नों (देखभाल करने वालों, दरोग़ाओं) से कहेंगे कि अपने परवरदिगार (पालने वाले) से दुआ करो कि एक ही दिन हमारे अज़ाब में तख़्फ़ीफ (कमी) कर दे
40 50 वह जवाब देंगे कि क्या तुम्हारे पास तुम्हारे रसूल खुली हुई निशानियां लेकर नहीं आये थे वह लोग कहेंगे कि बेशक आये थे तो जवाब मिलेगा फिर तुम ख़ु़द ही आवाज़ दो हालांकि काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) की आवाज़ और फ़रियाद बेकार ही साबित होगी
40 51 बेशक हम अपने रसूल और ईमान लाने वालों की जि़न्दगानी दुनिया में भी मदद करते हैं और उस दिन भी मदद करेंगे जब सारे गवाह उठ खड़े होंगे
40 52 जिस दिन ज़ालेमीन (ज़्ाुल्म करने वालों) के लिए कोई माजि़रत (उज़्र पेश करना) कारगर न होगी और इनके लिए लाॅनत और बदतरीन (सबसे बुरी) घर होगा
40 53 और यक़ीनन हमने मूसा अलैहिस्सलाम को हिदायत अता की और बनी इसराईल को किताब का वारिस बनाया है
40 54 जो किताब मुजस्समा-ए-हिदायत और साहेबाने अक़्ल के लिए नसीहत (अच्छी बातों का बयान) का सामान थी
40 55 लेहाज़ा (इसलिये) आप सब्र करें कि अल्लाह का वादा यक़ीनन बर हक़ है और अपने हक़ में अस्तग़फ़ार (गुनाहों की माफ़ी की दुआ) करते रहंें और सुबह व शाम अपने परवरदिगार (पालने वाले) की हम्द (तारीफ़) की तसबीह करते रहें
40 56 बेशक जो लोग ख़ुदा की तरफ़ से आने वाली दलील के बग़ैर ख़ुदा की निशानियों में बहस करते हैं उनके दिलों में बड़ाई के ख़्याल के अलावा कुछ नहीं है और वह उस तक पहुँच भी नहीं सकते हैं लेहाज़ा (इसलिये) आप ख़ुदा की पनाह (मदद, सहारा) तलब (माँग) करंे कि वही सबकी सुनने वाला और सबके हालात का देखने वाला है
40 57 बेशक ज़मीन व आसमान का पैदा कर देना लोगों के पैदा कर देने से कहीं ज़्यादा बड़ा काम है लेकिन लोगों की अकसरियत (ज़्यादातर लोग) ये भी नहीं जाती है
40 58 और याद रखो कि अँधे और बीना (देखने वाले) बराबर नहीं हो सकते हैं और जो लोग ईमान लाये और उन्होंने नेक (अच्छा) आमाल (काम) किये हैं वह भी बदकारों जैसे नहीं हो सकते हैं मगर तुम लोग बहुत कम नसीहत (अच्छी बातों का बयान) हासिल करते हो
40 59 बेशक क़यामत आने वाली है और इसमें किसी शक की गुंजाईश नहीं है लेकिन लोगों की अकसरियत (ज़्यादातर लोग) इस बात पर ईमान नहीं रखती है
40 60 और तुम्हारे परवरदिगार (पालने वाले) का इरशाद है कि मुझसे दुआ करो मैं कु़बूल करूँगा और यक़ीनन जो लोग मेरी इबादत से अकड़ते हैं वह अनक़रीब (बहुत जल्द) जि़ल्लत के साथ जहन्नम में दाखि़ल होंगे
40 61 अल्लाह ही वह है जिसने तुम्हारे लिए रात को पैदा किया है ताकि तुम इसमें सुकून हासिल कर सको  और दिन को रौशनी का ज़रिया क़रार दिया है बेशक वह अपने बन्दों पर बहुत ज़्यादा फ़ज़्ल व करम करने वाला है लेकिन लोगांे की अकसरियत (ज़्यादातर लोग) उसका शुक्रिया अदा नहीं करती है
40 62 वही तुम्हारा परवरदिगार (पालने वाला) है जो हर शै का ख़ालिक़ (पैदा करने वाला) है और उसके अलावा कोई ख़ुदा नहीं है तो तुम किधर बहके जा रहे हो
40 63 इसी तरह वह लोग बहकाये जाते हैं जो अल्लाह की निशानियों का इन्कार कर देते हैं
40 64 अल्लाह ही वह है जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन को मुस्तकि़र (क़रार की जगह) और आसमान को इमारत क़रार दिया है और तुम्हारी सूरत को बेहतरीन (सबसे अच्छी) सूरत बनाया है और तुम्हें पाकीज़ा (साफ़-सुथरा) रिज़्क़ अता किया है। वही तुम्हारा परवरदिगार (पालने वाला) है तो आलमीन का पालने वाला किस क़द्र बर्कतों का मालिक है
40 65 वह हमेशा जि़न्दा रहने वाला है उसके अलावा कोई ख़ुदा नहीं है लेहाज़ा (इसलिये) तुम लोग एख़लासे दीन के साथ उसकी इबादत करो कि सारी तारीफ़ उसी आलमीन (तमाम जहानों) के पालने वाले ख़ुदा के लिए है
40 66 आप कह दीजिए कि मुझे इस बात से मना किया गया है कि मैं उनकी इबादत करूँ जिन्हें तुम ख़ुदा को छोड़कर परस्तिश के क़ाबिल बनाये हुए हो जबकि मेरे पास खुली हुई निशानियाँ आ चुकी हैं और मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं रब्बुलआलमीन (तमाम जहानों का मालिक) का इताअत  गुज़ार (कहने पर अमल करने वाला) बन्दा रहूँ
40 67 वही ख़ुदा है जिसने तुमको मिट्टी से पैदा किया, फिर नुत्फ़े से, फिर जमे हुए ख़ून से फिर तुमको बच्चा बनाकर बाहर लाता है फिर जि़न्दा रखता है कि तवानाइयों (जवानी) को पहुँचो फिर बूढ़े हो जाओ और तुम में से बाज़ (कुछ) को पहले ही उठा लिया जाता है और तुमको इसलिए जि़न्दा रखता है कि अपनी मुक़र्ररा (तय की हुई) मुद्दत को पहुँच जाओ और शायद तुम्हें अक़्ल भी आ जाये
40 68 वही वह है जो हयात (जि़न्दगी) भी देता है और मौत भी देता है फिर जब किसी बात का फै़सला कर लेता है तो उससे कहता है कि हो जा और वह हो जाती है
40 69 क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा है जो आयाते इलाही के बारे में झगड़ा करते हैं आखि़र ये कहाँ भटके चले जा रहे हैं
40 70 जिन लोगों ने किताब और उन बातों की तकज़ीब (झुठलाना) की जिनको देकर हमने पैग़म्बरों को भेजा था उन्हें अनक़रीब (बहुत जल्द) इसका अंजाम मालूम हो जायेगा
40 71 जब उनकी गर्दनों में तौक़ और जंजीरें डाली जायेंगी और उन्हें खींचा जायेगा
40 72 गर्म पानी में और इसके बाद जहन्नम में झोंक दिया जायेगा
40 73 फिर ये कहा जायेगा कि अब वह कहाँ हैं जिन्हें तुम शरीक बनाया करते थे
40 74 ख़ुदा को छोड़कर......तो वह लोग जवाब देंगे कि वह हमको छोड़कर गुम हो गये बल्कि इसके पहले किसी को नहीं पुकारा करते थे और अल्लाह इसी तरह काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) को गुमराही में छोड़ देता है
40 75 ये सब इस बात का नतीजा है कि तुम लोग ज़मीन में बातिल (झूठ) से खु़श हुआ करते थे और अकड़ कर चला करते थे
40 76 अब जहन्नुम के दरवाज़ों से दाखि़ल हो जाओ और इसी में हमेशा रहो कि अकड़ने वालों का ठिकाना बहुत बुरा है
40 77 अब आप सब्र करें कि ख़ुदा का वादा बिल्कुल सच्चा है फिर या तो हम जिन बातों की धमकी दे रहे हैं इनमें से कुछ आप को दिखला देंगे या आपको पहले ही उठा लेंगे तो भी वह सब पलटाकर यहीं लाये जायेंगे
40 78 और हमने आपसे पहले भी बहुत से रसूल भेजे हैं जिनमें से बाज़ (कुछ) का तज़किरा (जि़क्र) आपसे किया है और बाज़ (कुछ)  का तज़किरा (जि़क्र) भी नहीं किया है और किसी रसूल के इमकान में ये बात नहीं है कि ख़ुदा की इजाज़त के बग़ैर कोई मोजिज़ा ले आये फिर जब हुक्मे ख़ुदा आ गया तो हक़ के साथ फ़ैसला कर दिया गया और उस वक़्त अहले बातिल ही ख़सारा (पूरे घाटे, पूरे नुक़सान) में रहे
40 79 अल्लाह ही वह है जिसने चैपायों को तुम्हारे लिए ख़ल्क़ किया है जिनमें से बाज़ (कुछ) पर तुम सवारी करते हो और बाज़ (कुछ) को खाने में इस्तेमाल करते हो
40 80 और तुम्हारे लिए इनमें बहुत से मुनाफ़े (फ़ायदे) हैं और इसलिए भी कि तुम इनके ज़रिये अपनी दिली मुरादों तक पहुँच सको और तुम्हें इन जानवरों पर और कश्तियों पर सवार किया जाता है
40 81 और ख़ुदा तुम्हें अपनी निशानियां दिखलाता है तो तुम उसकी किस-किस निशानी से इन्कार करोगे
40 82 क्या इन लोगों ने ज़मीन में सैर नहीं की है कि देखते कि इनसे पहले वालों का अंजाम क्या हुआ है जो इनके मुक़ाबले में अकसरियत (ज़्यादातर लोग) में थे और ज़्यादा ताक़तवर भी थे और ज़मीन में आसार के मालिक थे लेकिन जो कुछ भी कमाया था कुछ काम न आया और मुब्तिलाए अज़ाब (अज़ाब में घिरे हुए) हो गये
40 83 फिर जब उनके पास रसूल मोजिज़ात लेकर आये तो अपने इल्म की बिना पर नाज़ करने लगे और नतीजे में जिस बात मज़ाक़ उड़ा रहे थे उसी ने उन्हें अपने घेरे में ले लिया
40 84 फिर जब उन्होंने हमारे अज़ाब को देखा तो कहने लगे कि हम ख़ुदाए यकता पर ईमान लाये हैं और जिन बातों का शिर्क (ख़ुदा के साथ दूसरों को शरीक करना) किया करते थे सबका इन्कार कर रहे हैं
40 85 तो अज़ाब के देखने के बाद कोई ईमान काम आने वाला नहीं था कि ये अल्लाह का मुस्तकि़ल तरीक़ा है जो उसके बन्दों के बारे में गुज़र चुका है और उसी वक़्त काफि़र (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) ख़सारे (घाटा, नुक़सान) में मुब्तिला हो जाते हैं

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