Saturday, 18 April 2015

Sura-e-Munafeqoon 63rd sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-मुनाफ़ेक़ून
63   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
63 1 पैग़म्बर ये मुनाफ़ेकी़न आपके पास आते हैं तो कहते हैं कि हम गवाही देते हैं कि आप अल्लाह के रसूल हैं और अल्लाह भी जानता है कि आप उसके रसूल हैं लेकिन अल्लाह गवाही देता है कि ये मुनाफ़ेक़ीन (जो दिल में निफ़ाक़ और अल्लाह से दुश्मनी लिये रहते हैं) अपने दावे में झूठे हैं
63 2 उन्होंने अपनी क़समों को सिपर बना लिया है और लोगों को राहे ख़ुदा से रोक रहे हैं ये इनके बदतरीन (सबसे बुरे) आमाल (काम) हैं जो ये अंजाम दे रहे हैं
63 3 ये इसलिए है कि ये पहले ईमान लाये फिर काफि़र (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) हो गये तो इनके दिलों पर मुहर लगा दी गई तो अब कुछ नहीं समझ रहे हैं
63 4 और जब आप उन्हें देखेंगे तो इनके जिस्म बहुत अच्छे लगेंगे और बात करेंगे तो इस तरह कि आप सुनने लगें लेकिन हक़ीक़त में ये ऐसे हैं जैसे दीवार से लगाई हुई सूखी लकडि़याँ कि ये हर चीख़ को अपने ही खि़लाफ़ समझते हैं और ये वाके़अन दुश्मन हैं इनसे होशियार रहिये ख़ुदा इन्हें ग़ारत करे ये कहाँ बहके चले जा रहे हैं
63 5 और जब इनसे कहा जाता है कि आओ रसूल अल्लाह तुम्हारे हक़ में अस्तग़फ़ार (गुनाहों की माफ़ी की दुआ) करेंगे तो सिर फेर लेते हैं और तुम देखोगे कि अस्तकबार (तकब्बुर, ग़ुरूर) की बिना पर मुँह भी मोड़ लेते हैं
63 6 इनके लिए सब बराबर है आप अस्तग़फ़ार (गुनाहों की माफ़ी की दुआ) करें या न करें ख़ुदा इन्हें बख़्शने (माफ़ करने) वाला नहीं है कि यक़ीनन अल्लाह बदकार क़ौम की हिदायत नहीं करता है
63 7 यही वह लोग हैं जो कहते हैं कि रसूल अल्लाह के साथियों पर कुछ ख़र्च न करो ताकि ये लोग मुन्तशिर (तितर-बितर) हो जायें हालांकि आसमान व ज़मीन के सारे ख़ज़ाने अल्लाह के लिए हैं और ये मुनाफ़ेक़ीन (जो दिल में निफ़ाक़ और अल्लाह से दुश्मनी लिये रहते हैं) इस बात को नहीं समझ रहे हैं
63 8 ये लोग कहते हैं कि अगर हम मदीने वापस आ गये तो हम साहेबाने इज़्ज़त उन ज़लील अफ़राद (लोगों) को निकाल बाहर करेंगे हालांकि सारी इज़्ज़त अल्लाह, रसूल और साहेबाने ईमान के लिए है और ये मुनाफ़ेक़ीन (जो दिल में निफ़ाक़ और अल्लाह से दुश्मनी लिये रहते हैं) ये जानते भी नहीं हैं
63 9 ईमान वालों ख़बरदार तुम्हारे अमवाल (माल-दौलत) और तुम्हारी औलाद तुम्हें यादे ख़ुदा से ग़ाफि़ल (बेपरवाह) न कर दे कि जो ऐसा करेगा वह यक़ीनन ख़सारे (घाटा, नुक़सान) वालों में शुमार (गिनती किया जाने वाला) होगा
63 10 और जो रिज़्क़ हमने अता किया है उसमें से हमारी राह में ख़र्च करो क़ब्ल इसके (इससे पहले) कि तुम में से किसी को मौत आ जाये और वह ये कहे कि ख़ुदाया हमें थोड़े दिनों की मोहलत (वक़्त) क्यों नहीं दे देता है कि हम ख़ैरात निकालें और नेक (अच्छा) बन्दों में शामिल हो जायें
63 11 और हर्गिज़ (बिल्कुल) ख़ुदा किसी की अजल (मौत) के आ जाने के बाद उसमें ताख़ीर (देरी) नहीं करता है और वह तुम्हारे आमाल (कामों) से खू़ब बाख़बर है

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