Thursday, 16 April 2015

Sura-e-Ahqaaf 46th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-अहक़ाफ़
46   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
46 1 हा मीम
46 2 ये ख़ुदाए अज़ीज़ व हकीम की नाजि़ल की हुई किताब है
46 3 हमने आसमान व ज़मीन और इनके दरम्यान (बीच) की तमाम मख़्लूक़ात (पैदा की हुई चीज़ों/खि़ल्क़त) को हक़ के साथ और एक मुक़र्रर (तय किये हुए) मुद्दत के साथ पैदा किया है और जिन लोगों ने कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) इखि़्तयार कर लिया वह उन बातों से किनाराकश (दूरी अपनाने वाले) हो गये हैं जिनसे उन्हें डराया गया है
46 4 तो आप कह दें कि तुमने उन लोगों को देखा है जिन्हें ख़ुदा को छोड़कर पुकारते हो ज़रा मुझे भी दिखलाओ कि उन्होंने ज़मीन में क्या पैदा किया है या उनकी आसमान में क्या शिर्कत है। फिर अगर तुम सच्चे हो तो इससे पहले की कोई किताब या इल्म का कोई बकि़या (आसार या निशानात) हमारे सामने पेश करो
46 5 और उससे ज़्यादा गुमराह कौन है जो ख़ुदा को छोड़कर उनको पुकारता है जो क़यामत तक उसकी आवाज़ का जवाब नहीं दे सकते हैं और उनकी आवाज़ की तरफ़ से ग़ाफि़ल (बेपरवाह) भी हैं
46 6 और जब सारे लोग क़यामत में महशूर होंगे तो ये माबूद (जिनकी इबादत किया करते थे) उनके दुश्मन हो जायेंगे और उनकी इबादत का इन्कार करने लगेंगे
46 7 और जब उनके सामने हमारी रौशन आयात की तिलावत की जाती है तो ये कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) हक़ के आने के बाद उसके बारे में यही कहते हैं कि ये खुला हुआ जादू है
46 8 तो क्या यह लोग ये कहते हैं कि रसूल ने इफ़्तेरा (झूठा इल्ज़ाम, तोहमत लगाना) किया है तो आप कह दीजिए कि अगर मैंने इफ़्तेरा (झूठा इल्ज़ाम, तोहमत लगाना) किया है तो तुम मेरे काम आने वाले नहीं हो और ख़ुदा ख़ू़ब जानता है कि तुम उसके बारे में क्या-क्या बातें करते हो और मेरे और तुम्हारे दरम्यान (बीच में) गवाही के लिए वही (ख़ुदा) काफ़ी है और वही बहुत बख़्शने (माफ़ करने) वाला और मेहरबान है
46 9 आप कह दीजिए कि मैं कोई नये कि़स्म (तरह) का रसूल नहीं हूँ और मुझे नहीं मालूम कि मेरे और तुम्हारे साथ क्या बरताव किया जायेगा मैं तो सिर्फ़ वही-ए-इलाही (इलाही पैग़ाम) का इत्तेबा (पैरवी) करता हूँ और सिर्फ़ वाजे़ह (रौशन, खुले हुए) तौर पर अज़ाबे इलाही से डराने वाला हूँ
46 10 कह दीजिए कि तुम्हारा क्या ख़्याल है अगर ये कु़रआन अल्लाह की तरफ़ से है और तुमने उसका इन्कार कर दिया जबकि बनी इसराईल का एक गवाह ऐसी ही बात की गवाही दे चुका है और वह ईमान भी लाया है और फिर भी तुमने ग़्ाुरूर से काम लिया है बेशक अल्लाह ज़ालेमीन (ज़्ाुल्म करने वालों) की हिदायत करने वाला नहीं है
46 11 और ये कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) ईमान वालों से कहते हैं कि अगर ये दीन बेहतर (ज़्यादा अच्छा) होता तो ये लोग हमसे आगे उसकी तरफ़ न दौड़ पड़ते और जब उन लोगों ने ख़ुद हिदायत नहीं हासिल की तो अब कहते हैं कि यह बहुत पुराना झूठ है
46 12 और इससे पहले मूसा अलैहिस्सलाम की किताब भी जो रहनुमा (राह दिखाने वाली) और रहमत थी और ये किताब अरबी ज़बान में सबकी तस्दीक़ (सच्चाई की गवाही) करने वाली है ताकि ज़्ाु़ल्म करने वालों को अज़ाबे इलाही से डराये और ये नेक (अच्छा) किरदारों के लिए मुजस्समा-ए-बशारत (ख़ुशख़बरी का मुजस्समा) है
46 13 बेशक जिन लोगों ने अल्लाह को अपना रब कहा और उसी पर जमे रहे उनके लिए न कोई ख़ौफ़ (डर) है और न वह रंजीदा होने वाले हैं
46 14 यही लोग दर हक़ीक़त जन्नत वाले हैं और इसी में हमेशा रहने वाले हैं कि यही उनके आमाल (कामों) की हक़ीक़ी जज़ा (सिला) है
46 15 और हमने इन्सान को उसके माँ बाप के साथ नेक (अच्छा) बरताव करने की नसीहत (अच्छी बातों का बयान) की के उसकी माँ ने बड़े रंज के साथ उसे शिकम (पेट) में रखा है और फिर बड़ी तकलीफ़ के साथ पैदा किया है और उसके हमल और दूध बढ़ाई का कुल ज़माना तीस महीने का है यहाँ तक कि जब वह तवानाई (ताक़त, जवानी) को पहुँच गया और चालीस बरस का हो गया तो उसने दुआ की कि परवरदिगार (पालने वाले) मुझे तौफ़ीक़ दे कि मैं तेरी उस नेअमत का शुक्रिया अदा करूँ जो तूने मुझे और मेरे वालदैन (माँ-बाप) को अता की है और ऐसा नेक (अच्छा) अमल करूँ कि तू राज़ी हो जाये और मेरी ज़्ाु़र्रियत (नस्ल) में भी सलाह व तक़्वा (ख़ुदा का ख़ौफ़) क़रार दे कि मैं तेरी ही तरफ़ मुतावज्जे (रूजू करने वाला) हूँ और तेरे फ़रमाबरदार (कहने पर अमल करने वाले) बन्दों में हूँ
46 16 यही वह लोग हैं जिनके बेहतरीन (सबसे अच्छे) आमाल (कामों) को हम कु़बूल करते हैं और उनकी बुराईयों से दरगुज़र करते हैं ये असहाब जन्नत में हैं और ये ख़ुदा का वह वादा है जो उनसे बराबर किया जा रहा था
46 17 और जिसने अपने माँ-बाप से ये कहा कि तुम्हारे लिए हैफ़ (तुफ़) है कि तुम मुझे इस बात से डराते हो कि मैं दोबारा क़ब्र से निकाला जाऊँगा हालांकि मुझसे पहले बहुत सी क़ौमें गुज़र चुकी हैं और वह दोनों फ़रियाद कर रहे थे कि ये बड़ी अफ़सोसनाक बात है बेटा ईमान ले आ। ख़ुदा का वादा बिल्कुल सच्चा है तो कहने लगा कि ये सब पुराने लोगों के अफ़साने (कि़स्से) हैं
46 18 यही वह लोग हैं जिन पर अज़ाब साबित हो चुका है उन उम्मतों में जो इन्सान व जिन्नात में इनसे पहले गुज़र चुकी हैं कि बेशक यह सब घाटे में रहने वाले हैं
46 19 और हर एक के लिए उसके आमाल (कामों) के मुताबिक़ (हिसाब से) दरजात होंगे और ये इसलिए कि ख़ुदा उनके आमाल (कामों) का पूरा-पूरा बदला दे-दे और इन पर किसी तरह का ज़्ाुल्म नहीं किया जायेगा
46 20 और जिस दिन कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वालों) को जहन्नम के सामने पेश किया जायेगा कि तुमने अपने सारे मज़े दुनिया ही की जि़न्दगी में ले लिये और वहाँ आराम कर लिया तो आज जि़ल्लत के अज़ाब की सज़ा दी जायेगी कि तुम रूए ज़मीन में बिला वजह अकड़ रहे थे और अपने परवरदिगार (पालने वाले) के एहकाम (हुक्मों, हिदायतों) की नाफ़रमानी (हुक्म न मानना) कर रहे थे
46 21 और क़ौमे आद के भाई हूद को याद कीजिए कि उन्होंने अपनी क़ौम को अहक़ाफ़ में डराया-और उनके क़ब्ल (पहले) व बाद बहुत से पैग़म्बर अलैहिस्सलाम गुज़र चुके हंै, कि ख़बरदार अल्लाह के अलावा किसी की इबादत न करो मैं तुम्हारे बारे में एक बड़े सख़्त दिन के अज़ाब से ख़ौफ़ज़दा (डरा हुआ) हूँ
46 22 उन लोगों ने कहा कि क्या तुम इसी लिये आये हो कि हमें हमारे ख़ुदाओं से मुन्हरिफ़  कर (मोड़) दो तो उस अज़ाब को ले आओ जिससे हमें डरा रहे हो अगर अपनी बात में सच्चे हो
46 23 उन्होंने कहा कि इल्म तो बस ख़ुदा के पास है और मैं उसी के पैग़ाम को पहुँचा देता हूँ जो मेरे हवाले किया गया है लेकिन मैं तुम्हें बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) जाहिल क़ौम समझ रहा हूँ
46 24 इसके बाद जब उन लोगों ने बादल को देखा कि उनकी वादियों की तरफ़ चला आ रहा है तो कहने लगे कि ये बादल हमारे ऊपर बरसने वाला है। हालांकि ये वही अज़ाब है जिसकी तुम्हें जल्दी थी ये वही हवा है जिसके अन्दर दर्दनाक (दर्द देने वाला) अज़ाब है
46 25 ये हुक्मे ख़ुदा से हर शै को तबाह व बर्बाद कर देगी। नतीजा ये हुआ कि सिवाए मकानात के कुछ न नज़र आया और हम इसी तरह मुजरिम (जुर्म करने वाली) क़ौम को सज़ा दिया करते हैं
46 26 और यक़ीनन हमने इनको वह इखि़्तयार दिये थे जो तुमको नहीं दिये हैं और उनके लिए कान, आँख, दिल सब क़रार दिये थे लेकिन न उन्हें कानों ने कोई फ़ायदा पहुँचाया और न आँखों और दिलों ने कि वह आयाते इलाही का इन्कार करने वाले अफ़राद (लोगों) थे और उन्हें उस अज़ाब ने घेर लिया जिसका वह मज़ाक़ उड़ाया करते थे
46 27 और यक़ीनन हमने तुम्हारे गिर्द (आस-पास) बहुत सी बस्तियों को तबाह कर दिया है और अपनी निशानियों को पलट-पलट कर दिखलाया है कि शायद ये हक़ की तरफ़ वापस आ जायें
46 28 तो वह लोग उनके काम क्यों नहीं आये जिनको उन्होंने ख़ुदा को छोड़कर वसीला-ए-तकऱ्रूब (क़ु़र्बत) के तौर पर ख़ुदा (अल्लाह को छोड़कर) बना लिया था बल्कि वह तो ग़ायब ही हो गये और ये उन लोगों का वह झूठ और इफ़्तेरा (झूठा इल्ज़ाम, तोहमत लगाना) है जो वह बराबर तैयार किया करते थे
46 29 और जब हमने जिन्नात में से एक गिरोह को आपकी तरफ़ मुतावज्जेह (ध्यान दिलाना) किया कि कु़रआन सुनें तो जब वह हाजि़र हुए तो आपस में कहने लगे कि ख़ामोशी से सुनो फिर जब तिलावत तमाम (ख़़़्ात्म) हो गई तो फ़ौरन पलटकर अपनी क़ौम की तरफ़ डराने वाले बनकर आ गये
46 30 कहने लगे कि ऐ क़ौम वालों हमने एक किताब को सुना है जो मूसा अलैहिस्सलाम के बाद नाजि़ल हुई है ये अपने पहले वाली किताबों की तस्दीक़ (सच्चाई की गवाही) करने वाली है और हक़ व इन्साफ़ और सीधे रास्ते की तरफ़ हिदायत करने वाली है
46 31 क़ौम वालों अल्लाह की तरफ़ दावत देने वाले की आवाज़ पर लब्बैक कहो (क़ुबूल करो) और उस पर ईमान ले आओ ताकि अल्लाह तुम्हारे गुनाहों को बख़्श (माफ़ कर) दे और तुम्हें दर्दनाक (दर्द देने वाला) अज़ाब से पनाह (मदद, सहारा) दे दे
46 32 और जो भी दाई-ए-इलाही (अल्लाह की तरफ़ बुलाने वाले) की आवाज़ पर लब्बैक नहीं कहेगा (क़ुबूल नहीं करेगा) वह रूए ज़मीन पर ख़ुदा को आजिज़ (परेशान) नहीं कर सकता है और उसके लिए ख़ुदा के अलावा कोई सरपरस्त भी नहीं है बेशक ये लोग खुली हुई गुमराही में मुब्तिला (पड़े हुए) हैं
46 33 क्या उन्होंने नहीं देखा कि जिस ख़ुदा ने आसमान व ज़मीन को पैदा किया है और वह उनकी तख़्लीक़ (पैदा करने) से आजिज़ (परेशान) नहीं था वह इस बात पर भी क़ादिर (क़ुदरत रखने वाला) है कि मुर्दों को जि़न्दा कर दे कि यक़ीनन वह हर शै पर कु़दरत रखने वाला है
46 34 और जिस दिन ये कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) जहन्नम के सामने पेश किये जायेंगे कि क्या ये हक़ नहीं है तो सब कहेंगे कि बेशक परवरदिगार (पालने वाले) की क़सम ये सब हक़ है तो इरशाद होगा कि अब अज़ाब का मज़ा चखो कि तुम पहले इसका इन्कार कर रहे थे
46 35 पैग़म्बर आप उसी तरह सब्र करें जिस तरह पहले के साहेबाने अज़्म (आली हिम्मत वाले) रसूलों ने सब्र किया है और अज़ाब के लिए जल्दी न करें ये लोग जिस दिन भी उस अज़ाब को देखेंगे जिससे डराया जा रहा है तो ऐसा महसूस करेंगे जैसे दुनिया में एक दिन की एक घड़ी ही ठहरे हैं ये कु़रआन एतमाम-ए-हुज्जत (हुज्जत तमाम करना) है और क्या फ़ासिक़ों (झूठांे, गुनहगारों) के अलावा किसी और क़ौम को हलाक (बरबाद, ख़त्म) किया जायेगा

No comments:

Post a Comment