Thursday, 16 April 2015

Sura-e-al Mariyam 19th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-मरियम
19   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
19 1 काफ़ हा या ऐन साद
19 2 ये ज़करिया के साथ तुम्हारे परवरदिगार (पालने वाले) की मेहरबानी का जि़क्र है
19 3 जब उन्होंने अपने परवरदिगार (पालने वाले) को धीमी आवाज़ से पुकारा
19 4 कहा कि परवरदिगार (पालने वाले) मेरी हड्डियाँ कमज़ोर हो गई हैं और मेरा सिर बुढ़ापे की आग से भड़क उठा है और मैं तुझे पुकारने से कभी महरूम (अलग-थलग) नहीं रहा हूँ
19 5 और मुझे अपने बाद अपने ख़ानदान वालों से ख़तरा है और मेरी बीवी बाँझ है तो अब मुझे एक ऐसा वली (सरपरस्त) और वारिस अता फ़रमा दे
19 6 जो मेरा और आले याकू़ब (याक़ूब की आल/नस्ल) का वारिस हो और परवरदिगार (पालने वाले) उसे अपना पसन्दीदा (पसन्द किया हुआ) भी क़रार दे दे
19 7 ज़करिया हम तुमको एक फ़रज़न्द (बेटे) की बशारत (ख़बर) देते हैं जिसका नाम यहिया है और हमने इससे पहले इनका हमनाम (जिसका नाम इनके जैसा हो) कोई नहीं बनाया है
19 8 ज़करिया ने अजऱ् की परवरदिगार (पालने वाले) मेरे फ़रज़न्द (बेटा) किस तरह होगा जबकि मेरी बीवी बाँझ है और मैं भी बुढ़ापे की आखि़री हद को पहुँच गया हूँ
19 9 इरशाद हुआ (ख़ुदा ने कहा) इसी तरह तुम्हारे परवरदिगार (पालने वाले)  का फ़रमान (हुक्म) है कि ये बात मेरे लिए बहुत आसान है और मैनें इससे पहले ख़ु़द तुम्हें भी पैदा किया है जबकि तुम कुछ नहीं थे
19 10 उन्होंने कहा कि परवरदिगार (पालने वाले) इस विलादत (पैदाइश) की कोई अलामत (निशानी) क़रार दे दे इरशाद हुआ (ख़ुदा ने कहा) कि तुम्हारी निशानी ये है कि तुम तीन दिनों तक बराबर लोगों से कलाम (बात) नहीं करोगे
19 11 इसके बाद ज़करिया मेहराबे इबादत (इबादत की जगह) से क़ौम की तरफ़ निकले और उन्हें इशारा किया कि सुबह व शाम अपने परवरदिगार (पालने वाले) की तसबीह (ख़ुदा की तारीफ़) करते रहो
19 12 यहिया! (अलैहिस्सलाम) किताब को मज़बूती से पकड़ लो और हमने उन्हें बचपने ही में नबूवत अता कर दी
19 13 और अपनी तरफ़ से मेहरबानी और पाकीज़गी भी अता कर दी और वह ख़ौफ़े ख़ु़दा (ख़ुदा का डर) रखने वाले थे
19 14 और अपने माँ बाप के हक़ में नेक (अच्छा) बरताव करने वाले थे और सरकश (बाग़ी) और नाफ़रमान (हुक्म नहीं मानने वाले) नहीं थे
19 15 उन पर हमारा सलाम जिस दिन पैदा हुए और जिस दिन इन्हें मौत आयी और जिस दिन वह दोबारा जि़न्दा उठाये जायेंगे
19 16 और पैग़म्बर (अलैहिस्सलाम) अपनी किताब में मरियम का जि़क्र करो कि जब वह अपने घर वालों से अलग मशरिक़ी सिम्त (पूरब की दिशा) की तरफ़ चली गयीं
19 17 और लोगों की तरफ़ परदा डाल दिया तो हमने अपनी रूह को भेजा जो उनके सामने एक अच्छा ख़ासा आदमी बनकर पेश हुआ
19 18 उन्होंने कहा कि अगर तू ख़ौफ़े ख़ुदा (ख़ुदा का डर) रखता है तो मैं तुझसे ख़ुदा की पनाह माँगती हूँ
19 19 उसने कहा कि मैं आपके रब का फ़रिस्तादा (भेजा हूआ क़ासिद, दूत) हूँ कि आपको एक पाकीज़ा फ़रज़न्द (बेटा) अता कर दूँ
19 20 उन्होंने कहा कि मेरे यहाँ फ़रज़न्द (बेटा) किस तरह होगा जबकि मुझे किसी बशर (इन्सान) ने छुआ भी नहीं है और मैं कोई बद किरदार (बुरे किरदार वाली) नहीं हूँ
19 21 उसने कहा कि इसी तरह आपके परवरदिगार (पालने वाले) का इरशाद (कहना) है कि मेरे लिए ये काम आसान है और इसलिए कि मैं इसे लोगों के लिए निशानी बना दूँ और अपनी तरफ़ से रहमत क़रार दे दूँ और ये बात तयशुदा (तय की हुई) है
19 22 फिर वह हामिला हो गयीं और लोगों से दूर एक जगह चली गयीं
19 23 फिर वज़ए हमल (बच्चे की पैदाइश) का वक़्त उन्हें एक खजूर की शाख़ के क़रीब ले आया तो उन्होंने कहा कि ऐ काश मैं इससे पहले ही मर गई होती और बिल्कुल फ़रामोश कर देने (भुलाये जाने) के क़ाबिल हो गई होती
19 24 तो उसने नीचे से आवाज़ दी कि आप परेशान न हों ख़ुदा ने आपके क़दमों में चश्मा (पानी का धारा) जारी कर दिया है
19 25 और ख़ु़रमे (खजूर) की शाख़ को अपनी तरफ़ हिलायें इससे ताज़ा ताज़ा ख़ु़रमे (खजूर) गिर पड़ेंगे
19 26 फिर इसे खाईये और पीजिए और अपनी आँखों को ठण्डी रखिए फिर इसके बाद किसी इन्सान को देखिये तो कह दीजिए कि मैंने रहमान के लिए रोज़े की नज़र कर ली है लेहाज़ा (इसलिये) आज मैं किसी इन्सान से बात नहीं कर सकती
19 27 इसके बाद मरियम बच्चे को उठाये हुए क़ौम के पास आयीं तो लोगों ने कहा कि मरियम ये तुमने बहुत बुरा काम किया है
19 28 हारून की बहन न तुम्हारा बाप बुरा आदमी था और न तुम्हारी माँ बद किरदार (बुरे किरदार वाली) थी
19 29 उन्होंने इस बच्चे की तरफ़ इशारा कर दिया तो क़ौम ने कहा कि हम इससे कैसे बात करें जो गहवारे (झूले, गोदी) में बच्चा है
19 30 बच्चे ने आवाज़ दी कि मैं अल्लाह का बन्दा हूँ उसने मुझे किताब दी है और मुझे नबी बनाया है
19 31 और जहाँ भी रहूँ बाबर्कत (बर्कत वाला) क़रार दिया है और जब तक जि़न्दा रहूँ नमाज़ और ज़कात की वसीयत (अन्जाम देने की नसीहत) की है
19 32 और अपनी वाल्दा (माँ) के साथ हुस्ने सुलूक (अच्छी तरह से पेश आना) करने वाला बनाया है और ज़ालिम व बदनसीब (ख़राब कि़स्मत वाला) नहीं बनाया है
19 33 और सलाम है मुझ पर उस दिन जिस दिन मैं पैदा हुआ और जिस दिन मरूँगा और जिस दिन दोबारा जि़न्दा उठाया जाऊँगा
19 34 ये है ईसा बिन मरियम के बारे में क़ौले हक़ (अल्लाह की सच्ची बात) जिसमें ये लोग शक कर रहे थे
19 35 अल्लाह के लिए मुनासिब (ठीक) नहीं है कि वह किसी को अपना फ़रज़न्द (बेटा) बनाये वह पाक व बेनियाज़ (जिसे कोई/किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं) है जब किसी बात का फ़ैसला कर लेता तो उससे कहता है कि हो जा और वह चीज़ हो जाती है
19 36 और अल्लाह मेरा और तुम्हारा दोनों का परवरदिगार (पालने वाला) है लेहाज़ा (इसलिये) उसकी इबादत करो और यही सिराते मुस्तक़ीम (सीधा रास्ता) है
19 37 फिर मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) गिरोहों ने आपस में एख़तेलाफ़ (राय में टकराव) किया और वैल (ख़राबी) उन लोगों के लिए है जिन्होंने कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार) इखि़्तयार किया और उन्हें बड़े सख़्त दिन का सामना करना होगा
19 38 उस दिन जब हमारे पास आयेंगे तो ख़ू़ब सुने और देखेंगे लेकिन ये ज़ालिम आज खुली हुई गुमराही (ग़लत रास्तों) में मुब्तिला (पड़े हुए) हैं
19 39 और उन लोगों को उस हसरत के दिन से डराईये जब क़तई (एकदम) फ़ैसला हो जायेगा अगर चे ये लोग ग़फ़लत (बेपरवाही) के आलम में पड़े हुए हैं और ईमान नहीं ला रहे हैं
19 40 बेशक हम ज़मीन और जो कुछ ज़मीन पर है सबके वारिस हैं और सब हमारी ही तरफ़ पलटाकर लाये जायेंगे
19 41 और किताबे ख़ुदा में इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) का तज़किरा (जि़क्र) करो कि वह एक सिद्दीक़ (सच्चे) पैग़म्बर थे
19 42 जब उन्होंने ने अपने पालने वाले बाप से कहा कि आप ऐसे की इबादत क्यों करते हैं जो न कुछ सुनता है न देखता है और न किसी काम आने वाला है
19 43 मेरे पास वह इल्म आ चुका है जो आपके पास नहीं आया है लेहाज़ा (इसलिये) आप मेरा इत्तेबा (पैरवी) करें मैं आपको सीधे रास्ते की हिदायत कर दूँगा
19 44 बाबा शैतान की इबादत न कीजिए कि शैतान रहमान की नाफ़रमानी (हुक्म न मानना) करने वाला है
19 45 बाबा मुझे ये ख़ौफ़ (डर) है कि आपको रहमान की तरफ़ से कोई अज़ाब अपनी गिरफ़्त (पकड़) में ले ले और आप शैतान के दोस्त क़रार पा जायें
19 46 उसने जवाब दिया कि इब्राहीम क्या तुम मेरे ख़ुदाओं से किनाराकशी (दूरी इखि़्तयार) करने वाले हो तो याद रखो कि अगर तुम इस रविश से बाज़ न आये तो मैं तुम्हें संगसार (पत्थर से मार डालना) कर दूँगा और तुम हमेशा के लिए मुझसे दूर हो जाओ
19 47 इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) ने कहा कि ख़ुदा आपको सलामत रखे मैं अनक़रीब (बहुत जल्द) अपने रब से आपके लिए मग़फि़रत (गुनाहों की माफ़ी) तलब (माँग) करूँगा कि वह मेरे हाल पर बहुत मेहरबान है
19 48 और आपको आपके माबूदों (जिनकी इबादत करते हैं) समेत छोड़कर अलग हो जाऊँगा और अपने रब को आवाज़ दूँगा कि इस तरह मैं अपने परवरदिगार (पालने वाले) की इबादत से महरूम (अलग-थलग) न रहूँगा
19 49 फिर जब इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) ने उन्हें और उनके माबूदों (जिनकी इबादत करते थे) को छोड़ दिया तो हमने उन्हें इसहाक़ (अलैहिस्सलाम) व याकू़ब (अलैहिस्सलाम) जैसी औलाद अता की और सबको नबी क़रार दे दिया
19 50 और फिर उन्हें अपनी रहमत का एक हिस्सा भी अता किया और उनके लिए सदाक़त (सच्चाई) की बलन्दतरीन (सबसे बलन्द, सबसे ऊंचे मक़ाम वाली) ज़्ा़बान भी क़रार दे दी
19 51 और अपनी किताब में मूसा (अलैहिस्सलाम) का भी तज़किरा (जि़क्र) करो कि वह मेरे मुखि़्लस (सच्चे) बन्दे और रसूल व नबी थे
19 52 और हमने उन्हें कोहे तूर (तूर नाम के पहाड़) के दाहिने तरफ़ से आवाज़ दी और राज़ व नियाज़ (ख़ुसूसी ख़ुफि़या तौर से बाते करने) के लिए अपने से क़रीब बुला लिया
19 53 और फिर उन्हें अपनी रहमते ख़ास से इनके भाई हारून (अलैहिस्सलाम) पैग़म्बर को अता कर दिया
19 54 और अपनी किताब में इस्माईल (अलैहिस्सलाम) का तज़किरा (जि़क्र) करो कि वह वादे के सच्चे और हमारे भेजे हुए पैग़म्बर (अलैहिस्सलाम) थे
19 55 और वह अपने घर वालों को नमाज़ और ज़कात का हुक्म देते थे और अपने परवरदिगार (पालने वाले)  के नज़दीक (क़रीब) पसंदीदा (पसंद किये हुए) थे
19 56 और किताबे ख़ुदा में इदरीस (अलैहिस्सलाम) का भी तज़किरा (जि़क्र) करो कि वह बहुत ज़्यादा सच्चे पैग़म्बर (अलैहिस्सलाम) थे
19 57 और हमने उनको बलन्द जगह तक पहुँचा दिया है
19 58 ये सब वह अम्बिया (नबी) हैं जिन पर अल्लाह ने नेअमत नाजि़ल की है जु़र्रियते आदम (आदम की औलादों) में से और उनकी नस्ल में से जिनको हमने नूह (अलैहिस्सलाम) के साथ कश्ती में उठाया है और इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) व इसराईल (अलैहिस्सलाम) की जु़र्रियत (औलादों) में से और उनमें से जिनको हमने हिदायत दी है और उन्हें मुन्तख़ब (चुना हुआ) बनाया है कि जब उनके सामने रहमान की आयतें पढ़ी जाती हैं तो रोते हुए सज्दे में गिर पड़ते हैं
19 59 फिर इनके बाद उनकी जगह पर वह लोग आये जिन्होंने नमाज़ को बर्बाद कर दिया और ख़्वाहिशात (अपनी ख़्वाहिशों) का इत्तेबा (पैरवी) कर लिया पस ये अनक़रीब (बहुत जल्द) अपनी गुमराही से जा मिलेंगे
19 60  अलावा उनके जिन्होंने तौबा कर ली, ईमान ले आये और अमले सालेह (नेक अमल) किया कि वह जन्नत में दाखि़ल होंगे और इन पर किसी तरह का जु़ल्म नहीं किया जायेगा
19 61 हमेशा रहने वाली जन्नत जिसका रहमान ने अपने बन्दों से ग़ैबी (जिसको उन लोगांे ने देखा नहीं है) वादा किया है और यक़ीनन उसका वादा सामने आने वाला है
19 62 उस जन्नत में सलाम के अलावा कोई लग़ो (वाहियात, बेहूदा) आवाज़ सुनने में न आयेगी और उन्हें सुबह व शाम रिज़्क़ मिलता रहेगा 
19 63 यही वह जन्नत है जिसका वारिस हम अपने बन्दों में मुत्तक़ी (ख़ुदा से डरने वाले) अफ़राद (लोगों) को क़रार देते हैं
19 64 और ऐ पैग़म्बर (अलैहिस्सलाम) हम फ़रिश्ते आपके परवरदिगार (पालने वाले) के हुक्म के बग़ैर नाजि़ल नहीं होते हैं हमारे सामने या पसे पुश्त (पीठ के पीछे) या उसके दरम्यान (बीच में) जो कुछ है सब उसके इखि़्तयार में है और आपका परवरदिगार (पालने वाले) भूलने वाला नहीं है
19 65  वह आसमान व ज़मीन और जो कुछ इनके दरम्यान (बीच में) है सबका मालिक है लेहाज़ा (इसलिये) उसकी इबादत करो और इस इबादत की राह में सब्र करो क्या तुम्हारे इल्म में उसका कोई हमनाम (उसके नाम वाला) है 
19 66 और इन्सान ये कहता है कि क्या जब हम मर जायेंगे तो दोबारा जि़न्दा करके निकाले जायेंगे
19 67 क्या ये उस बात को याद नहीं करता है कि पहले हमने ही उसे पैदा किया है जब ये कुछ नहीं था
19 68 और आपके रब की क़सम हम इन सबको और इनके शयातीन (शैतानों) को एक जगह इकठ्ठा करेंगे फिर सबको जहन्नुम के एतराफ़ (चारों तरफ़) घुटनों के बल हाजि़र करेंगे
19 69 फिर हर गिरोह से ऐसे अफ़राद (लोगों) को अलग कर लेंगे जो रहमान के हक़ में ज़्यादा नाफ़रमान (हुक्म न मानने वाले) थे
19 70 फिर हम उन लोगों को भी खू़ब जानते हैं जो जहन्नम में झोंके जाने के ज़्यादा सज़ावार (हक़दार) हैं
19 71 और तुम में से कोई ऐसा नहीं है जिसे जहन्नम के किनारे हाजि़र न होना हो कि ये तुम्हारे रब का हतमी (कभी न बदलने वाला) फ़ैसला है
19 72 इसके बाद हम मुत्तक़ी (ख़ुदा से डरने वाले) अफ़राद (लोगों) को निजात (छुटकारा) दे देंगे और ज़ालेमीन (ज़्ाुल्म करने वालों) को जहन्नम में छोड़ देंगे
19 73 और जब इनके सामने हमारी खुली हुई आयतें पेश की जाती हैं तो इनमें के काफि़र (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) साहेबान ईमान से कहते हैं कि हम दोनों में किसकी जगह बेहतर (ज़्यादा अच्छा)  (ज़्यादा अच्छी) और किसकी मंजि़ल (आखि़री जगह) ज़्यादा हसीन (ख़ूबसूरत) है
19 74 और हमने इनसे पहले कितनी ही जमाअतों (गिरोहों) को हलाक (मारकर ख़त्म) कर दिया है जो साज़ व सामान (ज़रूरियाते जि़न्दगी के सामान) और नाम व नमूद (शोहरत व ओहदे) में इनसे कहीं ज़्यादा बेहतर (ज़्यादा अच्छा) थे
19 75 आप कह दीजिए कि जो शख़्स गुमराही (ग़लत राह) में पड़ा रहेगा ख़ुदा उसे और ढील देता रहेगा यहाँ तक कि ये वादाए इलाही को देख लें-या अज़ाब की या क़यामत की शक्ल में। फिर उन्हें मालूम हो जायेगा कि जगह के एतबार (हिसाब) से बदतरीन (सबसे बुरा) और मददगारों के एतबार (हिसाब) से कमज़ोर तरीन (सबसे कमज़ोर) कौन है
19 76 और अल्लाह हिदायत याफ़्ता (हिदायत पाए हुए) अफ़राद (लोगों) की हिदायत में इज़ाफ़ा (बढ़ावा) कर देता है और बाक़ी रहने वाली नेकियाँ आपके परवरदिगार (पालने वाले) के नज़दीक (क़रीब) सवाब और बाज़गश्त (लौटने, वापसी) के एतबार (हिसाब) से बेहतरीन (सबसे अच्छा) और बलन्दतरीन (सबसे बलन्द) हैं
19 77 क्या तुमने उस शख़्स को भी देखा है जिसने हमारी आयात का इन्कार किया और ये कहने लगा कि हमें क़यामत में भी माल और औलाद से नवाज़ा जायेगा
19 78 ये ग़ैब (छिपी हुई बात) से बाख़बर  हो गया है या उसने रहमान से कोई मुआहेदा (अहद-पैमान) कर लिया है
19 79 हर्गिज़ (बिल्कुल) ऐसा नहीं है हम उसकी बातों को दर्ज कर रहे हैं और उसके अज़ाब में और भी इज़ाफ़ा (बढ़ावा) कर देंगे
19 80 और इसके माल व औलाद के हम हीं मालिक होंगे और ये तो हमारी बारगाह में अकेला हाजि़र होगा
19 81 और उन लोगों ने ख़ुदा को छोड़कर दूसरे ख़ुदा इखि़्तयार कर लिये हैं ताकि वह इनके लिए बाएसे इज़्ज़त (इज़्ज़त की वजह) बनें
19 82 हर्गिज़ नहीं (बिल्कुल नहीं) अनक़रीब (बहुत जल्द) यह माबूद (जिनकी इबादत किया करते थे) खु़द ही उनकी इबादत से इन्कार कर देंगे और इनके मुख़ालिफ़ (खि़लाफ़ खडे़ होने वाले) हो जायेंगे
19 83 क्या तुमने नहीं देखा कि हमने शयातीन को काफि़रों (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वालों) पर मुसल्लत (तैनात) कर दिया है और वह इनको बहकाते रहते हैं
19 84 आप इनके बारे में अज़ाब की जल्दी न करें न करें हम इनके दिन ख़ु़द ही शुमार (गिनती) कर रहे हैं
19 85 क़यामत के दिन हम साहेबाने तक़्वा (ख़ुदा से डरने वाले लोगों) को रहमान की बारगाह में मेहमानों की तरह जमा करेंगे
19 86 और मुजरेमीन (जुर्म करने वालों) को जहन्नम की तरफ़ प्यासे जानवरों की तरह ढकेल देंगे
19 87 उस वक़्त कोई शिफ़ाअत (सिफ़ारिश करने) का साहेबे इखि़्तयार (इखि़्तयार रखने वाला) न होगा मगर वह जिसने रहमान की बारगाह में शफ़ाअत (सिफ़ारिश करने) का अहद (वादा) ले लिया है
19 88 और ये लोग कहते हैं कि रहमान ने किसी को अपना फ़रज़न्द (बेटा) बना लिया
19 89  यक़ीनन तुम लोगों ने बड़ी सख़्त बात कही है
19 90 क़रीब है कि इससे आसमान फट पड़े और ज़मीन शिगाफ़्ता (फट कर दो फाड़) हो जाये और पहाड़ टुकड़े-टुकड़े होकर गिर पड़ें
19 91 कि इन लोगों ने रहमान के लिए बेटा क़रार दे दिया है 
19 92 जबकि ये रहमान के शायाने शान (शान के मुताबिक़) नहीं है कि वह किसी को अपना बेटा बनाये
19 93 ज़मीन व आसमान में कोई ऐसा नहीं है जो उसकी बारगाह में बन्दा बनकर हाजि़र होने वाला न हो
19 94 ख़ुदा ने सबका अहसा कर लिया है और सबको बाक़ायदा (क़ायदे के हिसाब से, ठीक तरह से) शुमार कर लिया है
19 95 और सब ही कल रोजे़ क़यामत उसकी बारगाह में हाजि़र होने वाले हैं
19 96 बेशक जो लोग ईमान लाये और उन्होंने नेक (अच्छा) आमाल (काम) किये अनक़रीब (बहुत जल्द) रहमान लोगों के दिलों में इनकी मोहब्बत पैदा कर देगा
19 97 बस हमने इस कु़रआन को तुम्हारी ज़्ा़बान में इसलिए आसान कर दिया है के तुम मुत्तक़ीन (ख़ुदा से डरने वाले लोगों) को बशारत (ख़बर) दे सको और झगड़ालू (झगड़ने वाली) क़ौम को अज़ाबे इलाही से डरा सको
19 98 और हमने इनसे पहले कितनी ही नसलों को बर्बाद कर दिया है क्या तुम इनमें से किसी को देख रहे हो या किसी की आहट भी सुन रहे हो

No comments:

Post a Comment