Thursday, 16 April 2015

Sura-e-Saaffaat 37th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-साफ़्फ़ात
37   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
37 1 बाक़ायदा (क़ायदे के हिसाब से, ठीक तरह से) तौर पर सफ़ें बांधने वालों की क़सम
37 2 फिर मुकम्मल तरीक़े से तन्बिया करने (डांटने वालों) वालों की क़सम
37 3 फिर जि़क्रे ख़ुदा की तिलावत करने वालों की क़सम
37 4 बेशक तुम्हारा ख़ुदा एक है
37 5 वह आसमान व ज़मीन में और उनके माबैन (दरमियान, बीच) की तमाम चीज़ों का परवरदिगार (पालने वाला) और हर मशरिक़ का मालिक है
37 6 बेशक हमने आसमाने दुनिया को सितारों से मुज़य्यन (ज़ीनत वाला) बना दिया है
37 7 और इन्हें हर सरकश शैतान से हिफ़ाज़त का ज़रिया बना दिया है
37 8 कि अब शयातीन (शैतान) आलिमे बाला की बातें सुनने की कोशिश नहीं कर सकते और वह हर तरफ़ से मारे जायेंगे
37 9 हंकाने (भगाने) के लिए और उनके लिए हमेशा-हमेशा का अज़ाब है
37 10 अलावा उसके जो कोई बात उचक ले तो उसके पीछे आग का शोला लग जाता है
37 11 अब ज़रा इनसे दरयाफ़्त (मालूम) करो कि ये ज़्यादा दुश्वार गुज़ार (मुश्किल करने वाली) मख़लूक़ हैं या जिनको हम पैदा कर चुके हैं हमने इन सबको एक लसदार (चिपकने वाली) मिट्टी से पैदा किया है
37 12 बल्कि तुम ताज्जुब करते हो और ये मज़ाक़ उड़ाते हैं
37 13 और जब नसीहत (अच्छी बातों का बयान) की जाती है तो कु़बूल नहीं करते हैं
37 14 और जब कोई निशानी देख लेेते हैं तो मसख़रापन (हंसी में उड़ाना) करते हैं
37 15 और कहते हैं कि यह तो एक खुला हुआ जादू है
37 16 क्या जब हम मर जायेंगे और मिट्टी और हड्डी हो जायेंगे तो क्या दोबारा उठाये जायेंगे
37 17 और क्या हमारे अगले बाप दादा भी जि़न्दा किये जायेंगे
37 18 कह दीजिए कि बेशक और तुम ज़लील भी होगे
37 19 यह क़यामत तो सिर्फ़ एक ललकार होगी जिसके बाद सब देखने लगेंगे
37 20 और कहेंगे कि हाए अफ़सोस ये तो क़यामत का दिन है
37 21 बेशक यही वह फ़ैसले का दिन है जिसे तुम लोग झुठलाया करते थे
37 22 फ़रिश्तों ज़रा इन जु़ल्म करने वालों को और इनके साथियों को और ख़ुदा के अलावा जिनकी ये इबादत किया करते थे सबको इकठ्ठा तो करो
37 23 और इनके तमाम माबूदों (जिनकी यह ख़ुदा को छोड़कर इबादत किया करते थे) को और इनको जहन्नम का रास्ता तो बता दो
37 24 और ज़रा इनको ठहराओ के अभी इनसे कुछ सवाल किया जायेगा
37 25 अब तुम्हें क्या हो गया है एक दूसरे की मदद क्यों नहीं करते हो
37 26 बल्कि आज तो सब के सब सिर झुकाये हुए हैं
37 27 और एक दूसरे की तरफ़ रूख़ (मुंह) करके सवाल कर रहे हैं
37 28 कहते हैं कि तुम्हीं तो हो जो हमारी दाहिनी तरफ़ से आया करते थे
37 29 वह कहेंगे कि नहीं तुम ख़ु़द ही ईमान लाने वाले नहीं थे
37 30 और हमारी तुम्हारे ऊपर कोई हुकूमत नहीं थी बल्कि तुम ख़ु़द ही सरकश (बाग़ी) क़ौम थे
37 31 अब हम सब पर ख़ुदा का अज़ाब साबित हो गया है और सबको इसका मज़ा चखना होगा
37 32 हमने तुमको गुमराह किया कि हम ख़ु़द ही गुमराह थे
37 33 तो आज के दिन सब ही अज़ाब में बराबर के शरीक होंगे
37 34 और हम इसी तरह मुजरेमीन (जुर्म करने वालों) के साथ बरताव किया करते हैं
37 35 इनसे जब कहा जाता था कि अल्लाह के अलावा कोई ख़ुदा नहीं है तो अकड़ जाते थे
37 36 और कहते थे कि क्या हम एक मजनून (जुनून वाले, दीवाने) शायर की ख़ातिर अपने ख़ुदाओं को छोड़ देंगे
37 37 हालांकि वह हक़ लेकर आया था और तमाम रसूलों की तस्दीक़ (सच्चाई की गवाही) करने वाला था
37 38 बेशक तुम सब दर्दनाक (दर्द देने वाला) अज़ाब का मज़ा चखने वाले हो
37 39 और तुम्हें तुम्हारे आमाल (कामों) के मुताबिक़ ही बदला दिया जायेगा
37 40 अलावा अल्लाह के मुख़लिस (ख़ालिस, ख़ास) बन्दों के
37 41 कि इनके लिए मुअय्यन (तय किया हुआ) रिज़्क़ है
37 42 मेवे हैं और वह बा इज़्ज़त तरीक़े से रहेंगे
37 43 नेअमतों से भरी हुई जन्नत में
37 44 आमने सामने तख़्त पर बैठे हुए
37 45 उनके गिर्द साफ़ शफ़्फ़ाफ़ शराब (पीने की चीज़) का दौर चल रहा होगा
37 46 सफ़ेद रंग की शराब जिसमें पीने वाले को लुत्फ़ (मज़ा) आये
37 47 इसमें न कोई दर्दे सिर हो और न होश-हवास गुम होने पायें
37 48 और इनके पास महदूद नज़र रखने वाली कुशादा चश्म (बड़ी-बड़ी आंखों वाली) हूरें होंगी
37 49 जिनका रंग व रोग़न ऐसा होगा जैसे छिपाये हुए अण्डे रखे हुए हों
37 50 फिर एक दूसरे की तरफ़ रूख़ (मुंह) करके सवाल करेंगे
37 51 तो इनमें का एक कहेगा कि दारे दुनिया में हमारा एक साथी भी था
37 52 वह कहा करता था कि क्या तुम भी क़यामत की तस्दीक़ (सच्चाई की गवाही) करने वालों में हो
37 53 क्या जब मर कर मिट्टी और हड्डी हो जायेंगे तो हमें हमारे आमाल (कामों) का बदला दिया जायेगा
37 54 क्या तुम लोग भी इसे देखोगे
37 55 ये कह कर निगाह डाली तो उसे बीच जहन्नुम में देखा
37 56 कहा कि ख़ुदा की क़सम क़रीब था कि तू मुझे भी हलाक (बरबाद, ख़त्म) कर देता
37 57 और मेरे परवरदिगार (पालने वाले) का एहसान न होता तो मैं भी यहीं हाजि़र कर दिया जाता
37 58 क्या ये सही नहीं है कि हम अब मरने वाले नहीं हैं
37 59 सिवाए पहली मौत के और हम पर अज़ाब होने वाला भी नहीं है
37 60 यक़ीनन ये बहुत बड़ी कामयाबी है
37 61 इसी दिन के लिए अमल करने वालों को अमल करना चाहिए
37 62 ज़रा बताओ कि ये नेअमतें मेहमानी के वास्ते बेहतर (ज़्यादा अच्छा) हैं या थोहड़ का दरख़्त (पेड़)
37 63 जिसे हमने ज़ालेमीन (ज़्ाुल्म करने वालों) की आज़माईश के लिए क़रार दिया है
37 64 ये एक दरख़्त (पेड़) है जो जहन्नम की तह से निकलता है
37 65 इसके फल ऐसे बदनुमां हैं जैसे शैतानों के सिर
37 66 मगर ये जहन्नमी (जहन्नम में रहने वाले) इसी को खायेंगे और इसी से पेट भरेंगे
37 67 फिर इनके पीने के लिए गरमा गरम (खौलता हुआ) पानी होगा जिसमें पीप वग़ैरह की आमेजि़श (मिलावट) होगी
37 68 फिर इन सबका आखि़री अंजाम जहन्नम होगा
37 69 इन्होंने अपने बाप दादा को गुमराह पाया था
37 70 तो उन्हीं के नक़्शे क़दम पर भागते चले गये
37 71 और यक़ीनन इनसे पहले बुजु़र्गों की एक बड़ी जमाअत (गिरोह) गुमराह हो चुकी है
37 72 और हमने इनके दरम्यान (बीच में) डराने वाले पैग़म्बर अलैहिस्सलाम भेजे
37 73 तो अब देखो कि जिन्हें डराया जाता है उनके न मानने का अंजाम क्या होता है
37 74 अलावा उन लोगों के जो अल्लाह के मुखि़्लस (ख़ास) बन्दे होते हैं
37 75 और यक़ीनन नूह अलैहिस्सलाम ने हमको आवाज़ दी तो हम बेहतरीन (सबसे अच्छे) कु़बूल करने वाले हैं
37 76 और हमने उन्हें और उनके अहल (उनके वालों) को बहुत बड़े कर्ब (मुसीबत) से निजात (छुटकारा, रिहाई) दे दी है
37 77 और हमने इनकी औलाद को बाक़ी रहने वालों में क़रार दिया
37 78 और उनके तज़किरे को आने वाली नस्लों में बरक़रार रखा
37 79 सारी ख़़्ाुदाई में नूह अलैहिस्सलाम पर हमारा सलाम
37 80 हम इसी तरह नेक (अच्छे) अमल करने वालों को जज़ा (सिला) देते हैं
37 81 वह हमारे ईमानदार बन्दों में से थे
37 82 फिर हमने बाक़ी सबको ग़कऱ् (डुबोना) कर दिया
37 83 और यक़ीनन नूह अलैहिस्सलाम ही के पैरोकारों में से इब्राहीम अलैहिस्सलाम भी थे
37 84 जब अल्लाह की बारगाह में क़ल्बे सलीम (साफ़ सुथरे दिल) के साथ हाजि़र हुए
37 85 जब अपने मुरब्बी बाप और अपनी क़ौम से कहा कि तुम लोग किस की इबादत कर रहे हो
37 86 क्या ख़ुदा को छोड़कर इन खु़दसाख़्ता (ख़ुद से बनाए हुए, झूठे) ख़ुदाओं के तलबगार बन गये हो
37 87 तो फिर रब्बुलआलमीन (तमाम जहानों का मालिक) के बारे में तुम्हारा क्या ख़्याल है
37 88 फिर इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने सितारों में वक़्त नज़र से काम लिया
37 89 और कहा कि मैं बीमार हूँ
37 90 तो वह लोग मुँह फेर कर चले गये
37 91 और इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने उनके ख़ुदाओं की तरफ़ रूख़ करके कहा कि तुम लोग कुछ खाते क्यों नहीं हो
37 92 तुम्हें क्या हो गया है कि बोलते भी नहीं हो
37 93 फिर उनकी मरम्मत (मारने) की तरफ़ मुतावज्जे हो गये
37 94 तो वह लोग दौड़ते हुए इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पास आये
37 95 तो इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कहा के क्या तुम लोग अपने हाथों के तराशीदा (तराशे हुए) बुतों की परस्तिश (पूजा) करते हो
37 96 जबकि ख़ुदा ने तुम्हें और इनको सभी को पैदा किया है
37 97 उन लोगों ने कहा कि एक इमारत बनाकर आग जलाकर इन्हें आग में डाल दो
37 98 इन लोगों ने एक चाल चलना चाही लेकिन हमने उन्हें पस्त और ज़लील कर दिया
37 99 और इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कहा कि मैं अपने परवरदिगार (पालने वाले) की तरफ़ जा रहा हूँ कि वह मेरी हिदायत कर देगा
37 100 परवरदिगार (पालने वाले) मुझे एक सालेह (नेक) फ़रज़न्द (बेटा) अता फ़रमा
37 101 फिर हमने इन्हें एक नेक (अच्छा) दिल फ़रज़न्द (बेटे) की बशारत (ख़ुशख़बरी) दी
37 102 फिर जब वह फ़रज़न्द (बेटा) इनके साथ दौड़ धूप करने के क़ाबिल हो गया तो उन्होंने कहा कि बेटा मैं ख़्वाब में देख रहा हूँ कि मैं तुम्हें जि़ब्हा कर रहा हूँ अब तुम बताओ कि तुम्हारा क्या ख़्याल है फ़रज़न्द (बेटे) ने जवाब दिया कि बाबा जो आप को हुक्म दिया जा रहा है उस पर अमल करें इन्शाअल्लाह आप मुझे सब्र करने वालों में से पायेंगे
37 103 फिर जब दोनों ने सरे तस्लीम ख़म कर दिया (मेरे हुक्म के आगे सर झुका दिया) और बाप ने बेटे को माथे के बल लिटा दिया
37 104 और हमने आवाज़ दी कि ऐ इब्राहीम अलैहिस्सलाम
37 105 तुमने अपना ख़्वाब सच कर दिखाया हम इसी तरह हुस्ने अमल (नेक काम करने) वालों को जज़ा (सिला) देते हैं
37 106 बेशक ये बड़ा खुला हुआ इम्तिहान है
37 107 और हमने इसका बदला एक अज़ीम कु़र्बानी को क़रार दे दिया है
37 108 और इसका तज़किरा (जि़क्र) आखि़री दौर तक बाक़ी रखा है
37 109 सलाम हो इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर
37 110 हम इसी तरह हुस्ने अमल (नेक काम करने) वालों को जज़ा (सिला) दिया करते हैं
37 111 बेशक इब्राहीम अलैहिस्सलाम  हमारे मोमिन बन्दों में से थे
37 112 और हमने इन्हें इसहाक़ अलैहिस्सलाम की बशारत दी जो नबी और नेक (अच्छा) बन्दों में से थे
37 113 और हमने उन पर और इसहाक़ अलैहिस्सलाम पर बर्कत नाजि़ल की और उनकी औलाद में बाज़ (कुछ) नेक (अच्छे) किरदार और बाज़ (कुछ) खु़ल्लम-खु़ल्ला अपने नफ़्स (जान) पर ज़्ाुु़ल्म करने वाले हैं
37 114 और हमने मूसा अलैहिस्सलाम और हारून अलैहिस्सलाम पर भी अहसान किया है
37 115 और उन्हें और उनकी क़ौम को अज़ीम कर्ब (बड़ी मुसीबत) से निजात (छुटकारा, रिहाई) दिलाई है
37 116 और उनकी मदद की है तो वह ग़ल्बा हासिल करने वालों में हो गये हैं
37 117 और हमने उन्हें वाज़ेह मतालिब वाली किताब अता की है
37 118 और दोनों को सीधे रास्ते की हिदायत भी दी है
37 119 और उनका तज़किरा (जि़क्र) भी अगली नस्लों में बाक़ी रखा है
37 120 सलाम हो मूसा अलैहिस्सलाम और हारून अलैहिस्सलाम पर
37 121 हम इसी तरह नेक (अच्छे) अमल करने वालों को बदला दिया करते हैं
37 122 बेशक वह दोनों हमारे मोमिन बन्दों में से थे
37 123 और यक़ीनन इलियास अलैहिस्सलाम भी मुरसेलीन (रसूलों) में से थे
37 124 जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि तुम लोग ख़ुदा से क्यों नहीं डरते हो
37 125 क्या तुम लोग बअ़ल (बुत) को आवाज़ देते हो और बेहतरीन (सबसे अच्छे) ख़ल्क़ करने वाले को छोड़ देते हो
37 126 जबकि वह अल्लाह तुम्हारा और तुम्हारे बाप दादा का पालने वाला है
37 127 फिर इन लोगों ने रसूल की तकज़ीब (झुठलाना) की तो सब के सब जहन्नुम में गिरफ़्तार किये जायेंगे
37 128 अलावा अल्लाह के मुखि़्लस (ख़ालिस, ख़ास) बन्दों के
37 129 और हमने उनका तज़किरा (जि़क्र) भी बाद की नस्लों में बाक़ी रखा दिया है
37 130 सलाम हो आले यासीन अलैहिस्सलाम पर
37 131 हम इसी तरह हुस्ने अमल वालों (नेकोकारों) को जज़ा (सिला) दिया करते हैं
37 132 बेशक वह हमारे बा ईमान (ईमान वाले) बन्दों में से थे
37 133 और लूत भी यक़ीनन मुरसेलीन (रसूलों) में थे
37 134 तो हमने उन्हें और उनके तमाम घर वालों को निजात (छुटकारा, रिहाई) दे दी 
37 135 अलावा उनकी ज़ौजा के कि वह पीछे रह जाने वालों में शामिल हो गई थी
37 136 फिर हमने सबको तबाह व बर्बाद भी कर दिया
37 137 तुम उनकी तरफ़ से बराबर सुबह को गुज़रते रहते हो
37 138 और रात के वक़्त भी तो क्या तुम्हें अक़्ल नहीं आ रही है 
37 139 और बेशक युनूस अलैहिस्सलाम भी मुरसेलीन (रसूलों) में से थे
37 140 जब वह भाग कर एक भरी हुई कश्ती की तरफ़ गये
37 141 और अहले कश्ती ने क़ु़रआ निकाला तो उन्हें शर्मिन्दगी का सामना करना पड़ा
37 142 फिर उन्हें मछली ने निगल लिया जबकि वह खु़द अपने नफ़्स (जान) की मलामत कर रहे थे
37 143 फिर अगर वह तसबीह  करने वालों में से न होते
37 144 तो रोजे़ क़यामत (क़यामत के दिन) तक उसी के शिकम (पेट) में रह जाते
37 145 फिर हमने उनको एक मैदान में डाल दिया जबकि वह मरीज़ भी हो गये थे
37 146 और उन पर एक कद्दू का दरख़्त (पेड़) उगा दिया
37 147 और इन्हें एक लाख या इससे ज़्यादा की क़ौम की तरफ़ नुमाइन्दा बनाकर भेजा
37 148 तो वह लोग ईमान ले आये और हमने भी एक मुद्दत (वक़्त) तक उन्हें आराम भी दिया
37 149 फिर ऐ पैग़म्बर इन कुफ़्फार से पूछिये कि क्या तुम्हारे परवरदिगार (पालने वाले) के पास लड़कियां हैं और तुम्हारे पास लड़के हैं
37 150 या हमने मलायका (फ़रिश्तों) को लड़कियों की शक्ल में पैदा किया है और ये इसके गवाह हैं
37 151 आगाह हो जाओ कि ये लोग अपनी मन घड़त (ख़ुद से गढ़ी हुई बात) के तौर पर ये बातें बनाते हैं
37 152 के अल्लाह के यहां फ़रज़न्द (बेटा) पैदा हुआ है और ये लोग बिल्कुल झूठे हैं
37 153 क्या उसने अपने लिए बेटों के बजाए बेटियों का इन्तिख़ाब (चुन लेना) किया है
37 154 आखि़र तुम्हें क्या हो गया है तुम कैसा फ़ैसला कर रहे हो
37 155 क्या तुम ग़ौर व फि़क्र नहीं कर रहे हो
37 156 या तुम्हारे पास इसकी कोई वाज़ेह (खुली हुई़) दलील है
37 157 तो अपनी किताब को ले आओ अगर तुम अपने दावे में सच्चे हो
37 158 और उन्होंने ख़ुदा और जिन्नात के दरम्यान (बीच में) भी रिश्ता क़रार दे दिया हालांकि जिन्नात को मालूम है कि उन्हें भी ख़ुदा की बारगाह में हाजि़र किया जायेगा
37 159 ख़ुदा इन सबके बयानात से बलन्द व बरतर और पाक व पाकीज़ा (साफ़-सुथरा) है
37 160 अलावा ख़ुदा के नेक (अच्छा) और मुखि़्लस (ख़ास) बन्दों के
37 161 फिर तुम और जिसकी तुम पर परस्तिश कर रहे हो
37 162 सब मिलकर भी उसके खि़लाफ़ किसी को बहका नहीं सकते हो
37 163 अलावा उसके जिसको जहन्नम में जाना ही है
37 164 और हम में से हर एक के लिए एक मक़ाम मुअय्यन (तय किया हुआ) है
37 165 और हम उसकी बारगाह में सफ़ बस्ता (सफ़ बनाकर) खड़े होने वाले हैं
37 166 और हम उसकी तसबीह करने वाले हैं
37 167 अगर चे ये लोग यही कहा करते थे
37 168 कि अगर हमारे पास भी पहले वालों का तज़किरा (जि़क्र) होता
37 169 तो हम भी अल्लाह के नेक (अच्छे) और मुखि़्लस (ख़ालिस, ख़ास) बन्दे होते
37 170 तो फिर इन लोगों ने कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) इखि़्तयार कर लिया तो अनक़रीब (बहुत जल्द) उन्हें इसका अंजाम मालूम हो जायेगा
37 171 और हमारे पैग़ाम्बर बन्दों से हमारी बात पहले ही तय हो चुकी है
37 172 कि इनकी मदद बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) की जायेगी
37 173 और हमारा लश्कर बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) ग़ालिब आने वाला है
37 174 लेहाज़ा (इसलिये) आप थोड़े दिनों के लिए इनसे मुँह फेर लें
37 175 और इनको देखते रहें अनक़रीब (बहुत जल्द) ये ख़ु़द अपने अंजाम को देख लेंगे
37 176 क्या ये हमारे अज़ाब के बारे में जल्दी कर रहे हैं
37 177 तो जब वह अज़ाब इनके आंगन में नाजि़ल हो जायेगा तो वह डराई जाने वाली क़ौम की बदतरीन (सबसे बुरी) सुबह होगी
37 178 और आप थोड़े दिनों इनसे मुँह फेर लें
37 179 और देखते रहें अनक़रीब (बहुत जल्द) ये खु़द देख लेंगे
37 180 आपका परवरदिगार (पालने वाला) जो मालिके इज़्ज़त भी है इनके बयानात से पाक व पाकीज़ा (साफ़-सुथरा) है
37 181 और हमारा सलाम तमाम मुरसेलीन (रसूलों) पर है
37 182 और सारी तारीफ़ उस अल्लाह के लिए है जो आलमीन (तमाम जहानों) का परवरदिगार (पालने वाला) है

No comments:

Post a Comment