सूरा-ए-अम्बिया | ||
21 | अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू। | |
21 | 1 | लोगों के लिए हिसाब का वक़्त आ पहुँचा है और वह अभी ग़फ़लत (बेपरवाही) ही में पड़े हुए हैं और किनाराकशी (अलग-थलग होना) किये जा रहे हैं |
21 | 2 | उनके पास उनके परवरदिगार (पालने वाले) की तरफ़ से कोई नई यादे दहानी (यादा दिलाने के लिये) नहीं आती है मगर ये कि कान लगाकर सुन लेते हैं और फिर खेल तमाशे में लग जाते हैं |
21 | 3 | उनके दिल बिल्कुल ग़ाफि़ल (बेपरवाह) हो गये हैं और ये ज़ालिम इस तरह आपस में राज़ व नियाज़़ की बातें किया करते हैं कि ये भी तो तुम्हारे ही तरह के एक इन्सान हैं क्या तुम दीदा व दानिस्ता इनके जादू के चक्कर में आ रहे हो |
21 | 4 | तो पैग़म्बर ने जवाब दिया कि मेरा परवरदिगार (पालने वाला) आसमान व ज़मीन की तमाम बातों को जानता है वह ख़ू़ब सुनने वाला और जानने वाला है |
21 | 5 | बल्कि ये लोग कहते हैं ये तो सब ख़्वाबे परेशान (परेशान करने वाले बुरे ख़्वाब) का मजमुआ (इकट्ठा किया हुआ) है बल्कि ये खु़द पैग़म्बर की तरफ़ से इफ़्तेरा (झूठा इल्ज़ाम, तोहमत) है बल्कि ये शायर हैं और शायरी कर रहे हैं वरना ऐसी निशानी लेकर आते जैसी निशानी लेकर पहले पैग़म्बर (अलैहिस्सलाम) भेजे गये थे |
21 | 6 | उनसे पहले हमने जिन बस्तियों को सरकशी (बग़ावत) की बिना पर तबाह कर डाला वह तो ईमान लाये नहीं ये क्या ईमान लायेंगे |
21 | 7 | और हमने आपसे पहले भी जिन रसूलों को भेजा है वह सब मर्द ही थे जिनकी तरफ़ हम वही (पैग़ाम-ए-इलाही) किया करते थे। तो तुम लोग अगर नहीं जानते हो तो जानने वालों से दरयाफ़्त (मालूम) कर लो |
21 | 8 | और हमने उन लोगों के लिए भी कोई ऐसा जिस्म नहीं बनाया था जो खाना न खाता हो और वह भी हमेशा रहने वाले नहीं थे |
21 | 9 | फिर हमने उनके वादे को सच्चा कर दिखाया और उन्हें और उनके साथ जिनको चाहा बचा लिया और ज़्यादती करने वालों को तबाह व बर्बाद कर दिया |
21 | 10 | बेशक हमने तुम्हारी तरफ़ वह किताब नाजि़ल की है जिसमें खु़द तुम्हारा भी जि़क्र है तो क्या तुम इतनी भी अक़्ल नहीं रखते हो |
21 | 11 | और हमने कितनी ही ज़ालिम बस्तियों को तबाह कर दिया और इनके बाद इनकी जगह पर दूसरी क़ौमों को ईजाद कर दिया? |
21 | 12 | फिर जब उन लोगों ने अज़ाब की आहट महसूस की तो उसे देखकर भागना शुरू कर दिया |
21 | 13 | हमने कहा कि अब भागो नहीं और अपने घरों की तरफ़ और अपने सामान-ए-ऐश व इशरत की तरफ़ पलट कर जाओ कि तुमसे इसके बारे में पूछगछ (सवाल-जवाब) की जायेगी |
21 | 14 | उन लोगों ने कहा कि हाय अफ़सोस हम वाके़अन (सच में) ज़ालिम थे |
21 | 15 | और ये कहकर फ़रियाद करते रहे यहाँ तक कि हमने उन्हें कटी हुई खेती की तरह बनाकर उनके सारे जोश को ठण्डा कर दिया |
21 | 16 | और हमने आसमान व ज़मीन और उनके दरम्यान (बीच) की तमाम चीज़ों को खेल तमाशे के लिए नहीं बनाया है |
21 | 17 | हम खेल ही बनाना चाहते तो अपनी तरफ़ ही से बना लेते अगर हमें ऐसा करना होता |
21 | 18 | बल्कि हम तो हक़ (सच्चाई) को बातिल (झूठ) के सिर पर दे मारते हैं और उसके दिमाग़ को कुचल देते हैं और वह तबाह व बर्बाद हो जाता है और तुम्हारे लिए वैल (अफ़सोस) है कि तुम ऐसी बे रब्त (नाहक़, झूठी) बातें बयान कर रहे हो |
21 | 19 | और उसी ख़ुदा के लिए ज़मीन व आसमान की कुल कायनात है और जो अफ़राद (लोग) उसकी बारगाह में हैं वह न उसकी इबादत से अकड़कर इन्कार करते हैं और न थकते हैं |
21 | 20 | दिन रात उसी की तसबीह (तारीफ़) करते हैं और सुस्ती का भी शिकार नहीं होते हैं |
21 | 21 | क्या उन लोगों ने ज़मीन में ऐसे ख़ुदा बना लिये हैं जो उनको जि़न्दा करने वाले हैं |
21 | 22 | याद रखो अगर ज़मीन व आसमान में अल्लाह के अलावा और ख़ुदा भी होते तो ज़मीन व आसमान दोनों बर्बाद हो जाते अर्श का मालिक परवरदिगार (पालने वाला) उनके बयानात से बिल्कुल पाक व पाकीज़ा (साफ़-सुथरा) है |
21 | 23 | उससे बाज़पर्स (पूछगछ) करने वाला कोई नहीं है और वह हर एक का हिसाब लेने वाला है |
21 | 24 | क्या उन लोगों ने उसके अलावा और ख़ुदा बना लिये हैं तो आप कह दीजिए कि ज़रा अपनी दलील तो लाओ। ये मेरे साथ वालों का जि़क्र और मुझसे पहले वालों का जि़क्र सब मौजूद है लेकिन उनकी अकसरियत (ज़्यादातर लोग) हक़ से नावाकि़फ़ (नहीं जानने वाले) है और इसीलिए किनाराकशी (ख़ुद को दूर या अलग करना) कर रही है |
21 | 25 | और हमने आपसे पहले कोई रसूल नहीं भेजा मगर ये कि उसकी तरफ़ यही वही करते रहे कि मेरे अलावा कोई ख़ुदा नहीं है लेहाज़ा (इसलिये) सब लोग मेरी ही इबादत करो |
21 | 26 | और लोगों ने ये कहना शुरू कर दिया कि अल्लाह ने किसी को बेटा बना लिया है हालांकि वह इस अम्र से पाक व पाकीज़ा (साफ़-सुथरा) है बल्कि वह सब उसके मोहतरम (एहतेराम के क़ाबिल) बन्दे हैं |
21 | 27 | जो किसी बात पर उस पर सबक़त (बरतरी) नहीं करते हैं और उसके एहकाम (हुक्मों, हिदायतों) पर बराबर अमल करते रहते हैं |
21 | 28 | वह उनके सामने और उनके पसे पुश्त (पीठ पीछे) की तमाम बातों को जानता है और फ़रिश्ते किसी की सिफ़ारिश भी नहीं कर सकते मगर ये कि ख़ुदा उसको पसन्द करे और वह उसके ख़ौफ़ (डर) से बराबर लरज़ते (कांपते) रहते हैं |
21 | 29 | और अगर उनमें से भी कोई ये कह दे कि ख़ुदा के अलावा मैं भी ख़ुदा हूँ तो हम उसको भी जहन्नम की सज़ा देंगे कि हम इसी तरह ज़ालिमों को सज़ा दिया करते हैं |
21 | 30 | क्या उन काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वालों) ने ये नहीं देखा कि ये ज़मीन व आसमान आपस में जुड़े हुए थे और हमने उनको अलग किया है और हर जानदार को पानी से क़रार दिया है फिर क्या ये लोग ईमान न लायेंगे |
21 | 31 | और हमने ज़मीन में पहाड़ क़रार दिये हैं कि वह उन लोगों को लेकर किसी तरफ़ झुक न जाये और फिर इसमें वसी तर (बहुत फैले हुए, लम्बे-चैड़़े) रास्ते क़रार दिये हैं कि इस तरह ये मंजि़ल (आखि़री जगह) मक़सूद तक पहुँच सकें |
21 | 32 | और हमने आसमान को एक महफ़ूज़ (हिफ़ाज़त के साथ) छत की तरह बनाया है और ये लोग उसकी निशानियों से बराबर आराज़ (मुंह फेरना) कर रहे हैं |
21 | 33 | वह वही ख़ुदा है जिसने रात दिन और आफ़ताब (सूरज) व महताब (चाँद) सबको पैदा किया है और सब अपने अपने फ़लक में तैर रहे हैं |
21 | 34 | और हमने आपसे पहले भी किसी बशर (इन्सान) के लिए हमेशगी (हमेशा रहना) नहीं क़रार दी है तो क्या अगर आप मर जायेंगे तो ये लोग हमेशा रहने वाले हैं |
21 | 35 | हर नफ़्स (जान) मौत का मज़ा चखने वाला है और हम तो अच्छाई और बुराई के ज़रिये तुम सबको आज़मायेंगे और तुम सब पलटाकर हमारी ही बारगाह में लाये जाओगे |
21 | 36 | और जब भी ये कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) आपको देखते हैं तो इस बात का मज़ाक़ उड़ाते हैं कि यही वह शख़्स है जो तुम्हारे ख़ुदाओं का जि़क्र किया करता है और ये लोग ख़ु़द तो रहमान के जि़क्र से इन्कार ही करने वाले हैं |
21 | 37 | इन्सान के ख़मीर में उजलत (जल्दबाज़ी) शामिल हो गई है और अनक़रीब (बहुत जल्द) हम तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखायेंगे तो फिर तुम लोग जल्दी नहीं करोगे |
21 | 38 | और ये लोग कहते हैं कि अगर तुम सच्चे हो तो उस वादए क़यामत का वक़्त आखि़र कब आयेगा |
21 | 39 | काश ये काफि़र (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) ये जानते कि वह ऐसा वक़्त होगा जब ये जहन्नुम की आग को न अपने सामने से हटा सकेंगे और न पुश्त (पीठ की तरफ़) से और न उनकी कोई मदद की जा सकेगी |
21 | 40 | बल्कि ये क़यामत उन तक अचानक आ जायेगी और उन्हें मबहूत कर देगी फिर ये न उसे रद्द कर सकेंगे और न उन्हें कोई मोहलत दी जायेगी |
21 | 41 | और पैग़म्बर आपसे पहले भी बहुत से रसूलों का मज़ाक़ उड़ाया गया है जिसके बाद उन कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) को उस अज़ाब ने घेर लिया जिसका ये मज़ाक़ उड़ा रहे थे |
21 | 42 | आप उनसे कह दीजिए कि उन्हें रात या दिन में रहमान के अज़ाब से बचाने के लिए कौन पहरा दे सकता है मगर ये हैं कि रहमान (रहम करने वाले ख़ुदा) की याद से मुसलसल (लगातार) मुँह मोड़े हुए हैं |
21 | 43 | क्या उनके पास ऐसे ख़ुदा मौजूद हैं जो हमारे बग़ैर उन्हें बचा सकंेगे ये बेचारे तो खु़द अपनी भी मदद नहीं कर सकते हैं और न उन्हें खु़द भी अज़ाब से पनाह दी जायेगी |
21 | 44 | बल्कि हमने उन्हें और उनके बाप दादा को थोड़ी सी लज़्ज़ते दुनिया (दुनिया का मज़ा) दे दी है यहाँ तक कि उनका ज़माना तवील (लम्बा) हो गया तो क्या ये नहीं देखते हैं कि हम बराबर ज़मीन की तरफ़ आते जा रहे हैं और इसको चारों तरफ़ से कम करते जा रहे हैं क्या इसके बाद भी ये हम पर ग़ालिब आ जाने वाले हैं |
21 | 45 | आप कह दीजिए कि मैं तुम लोगों को वही (पैग़ामे ख़ुदा) के मुताबिक़ डराता हूँ और बहरे को जब भी डराया जाता है वह आवाज़ को सुनता ही नहीं है |
21 | 46 | हालांकि उन्हें अज़ाबे इलाही की हवा भी छू जाये तो कह उठेंगे कि अफ़सोस हम वाक़ई ज़ालिम थे |
21 | 47 | और हम क़यामत के दिन इन्साफ़ की तराजू़ क़ायम करेंगे और किसी नफ़्स (जान) पर अदना जु़ल्म नहीं किया जायेगा और किसी का अमल राई के दाने के बराबर भी है तो हम उसे ले आयेंगे और हम सबका हिसाब करने के लिए काफ़ी हैं |
21 | 48 | और हमने मूसा (अलैहिस्सलाम) और हारून (अलैहिस्सलाम) को हक़ व बातिल में फ़कऱ् करने वाली वह किताब अता की है जो हिदायत की रौशनी और उन साहेबाने तक़्वा (ख़ुदा से डरने वाले लोगों) के लिए यादे इलाही (ख़ुदा की याद) का ज़रिया है |
21 | 49 | जो अज़गै़ब (ग़ैब से) अपने परवरदिगार (पालने वाले) से डरने वाले हैं और क़यामत के ख़ौफ़ (डर) से लरज़ा (कांपते) है |
21 | 50 | और ये कु़रआन एक मुबारक जि़क्र है जिसे हमने नाजि़ल किया है तो क्या तुम लोग इसका भी इन्कार करने वाले हो |
21 | 51 | और हमने इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) को इससे पहले ही अक़्ले सलीम अता कर दी थी और हम उनकी हालत से बाख़बर (ख़बरदार) थे |
21 | 52 | जब उन्होंने अपने मरबी (परवरिश करने वाले) बाप और अपनी क़ौम से कहा कि ये मूर्तियाँ क्या हैं जिनके गिर्द तुम हल्क़ा बाँधे हुए हो |
21 | 53 | उन लोगों ने कहा हमने अपने बाप दादा को भी इन्हीं की इबादत करते हुए देखा है |
21 | 54 | और इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) ने कहा कि यक़ीनन तुम और तुम्हारे बाप दादा सब खुली हुई गुमराही में हो |
21 | 55 | उन लोगों ने कहा कि आप कोई हक़ बात लेकर आये हैं या ख़ाली खेल तमाशा ही करने वाले हैं |
21 | 56 | इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) ने कहा कि तुम्हारा वाक़ई (असली, हक़ीक़ी) रब वही है जो आसमान व ज़मीन का रब है और उसी ने उन सबको पैदा किया है और मैं इसी बात के गवाहों में से एक गवाह हूँ |
21 | 57 | और ख़ुदा की क़सम मैं तुम्हारे बुतों के बारे में तुम्हारे चले जाने के बाद कोई तदबीर (चारा-ए-कार, इलाज) ज़रूर करूँगा |
21 | 58 | फिर इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) ने उनके बड़े के अलावा सबको हूर-चूर (रेज़ा-रेज़ा) कर दिया कि शायद ये लोग पलटकर उसके पास आयें |
21 | 59 | उन लोगों ने कहा कि हमारे ख़ुदाओं के साथ ये बरताव किसने किया है वह यक़ीनन ज़ालेमीन (ज़्ाुल्म करने वालों) में से है |
21 | 60 | लोगों ने बताया कि एक जवान है जो इनका जि़क्र किया करता है और उसे इब्राहीम कहा जाता है |
21 | 61 | उन लोगों ने कहा कि उसे लोगों के सामने ले आओ शायद लोग गवाही दे सकें |
21 | 62 | फिर उन लोगों ने इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) से कहा कि क्या तुमने हमारे ख़ुदाओं के साथ ये बरताव किया है |
21 | 63 | इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) ने कहा कि ये उनके बड़े ने किया है तुम उनसे दरयाफ़्त करके देखो अगर ये बोल सकें |
21 | 64 | इस पर उन लोगों ने अपने दिलों की तरफ़ रूजूअ (पलट कर जाना) किया और आपस में कहने लगे कि यक़ीनन तुम ही लोग ज़ालिम हो |
21 | 65 | इसके बाद उनके सिर शर्म से झुका दिये गये और कहने लगे इब्राहीम तुम्हें तो मालूम है कि ये बोलने वाले नहीं हैं |
21 | 66 | इब्राहीम ने कहा कि फिर तो ख़ुदा को छोड़कर ऐसे ख़ुदाओं की इबादत क्यों करते हो जो न कोई फ़ायदा पहुँचा सकते हैं और न नुक़सान |
21 | 67 | हैफ़ है तुम्हारे ऊपर और तुम्हारे उन ख़ुदाओं पर जिन्हें तुमने ख़ुदाए बरहक़ (सच्चे ख़ुदा) को छोड़कर इखि़्तयार किया है क्या तुम इतना भी नहीं समझते हो |
21 | 68 | उन लोगों ने कहा कि इब्राहीम को आग में जला दो और अगर कुछ करना चाहते हो तो इस तरह अपने ख़ुदाओं की मदद करो |
21 | 69 | तो हमने भी हुक्म दिया कि ऐ आग इब्राहीम के लिए सर्द (ठंडी) हो जा और सलामती का सामान बन जा |
21 | 70 | और उन लोगों ने एक मक्र (झूठ के जाल) का इरादा किया था तो हमने भी उन्हें ख़सारा (घाटा उठाने) वाला और नाकाम क़रार दे दिया |
21 | 71 | और इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) और लूत (अलैहिस्सलाम) को निजात (छुटकारा, रिहाई) दिलाकर उस सरज़मीन की तरफ़ ले आये जिसमें आलमीन (तमाम जहानों) के लिए बर्कत का सामान मौजूद था |
21 | 72 | और फिर इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) को इसहाक़ (अलैहिस्सलाम) और उनके बाद याकू़ब (अलैहिस्सलाम) अता किये और सबको सालेह (नमाज़गुज़ार) और नेक (अच्छा) किरदार (वाले) क़रार दिया |
21 | 73 | और हमने उन सबको पेशवा (रहबर) क़रार दिया जो हमारे हुक्म से हिदायत करते थे और उनकी तरफ़ कारे ख़ैर (नेकी, अच्छाई वाले काम) करने, नमाज़ क़ायम करने और ज़कात अदा करने की वही (हुक्मे इलाही) की और ये सब के सब हमारे इबादत गुज़ार (इबादत करने वाले) बन्दे थे |
21 | 74 | और लूत (अलैहिस्सलाम) को याद करो जिन्हें हमने कू़व्वत (ताक़त) फ़ैसला और इल्म अता किया और उस बस्ती से निजात (छुटकारा, रिहाई) दिला दी जो बदकारियों (बुराई वाले कामों) में मुब्तिला (लगी हुई) थी के यक़ीनन ये लोग बड़े बुरे और फ़ासिक़ (झूठे, गुनहगार) थे |
21 | 75 | और हमने उन्हें अपनी रहमत में दाखि़ल कर लिया कि वह यक़ीनन हमारे नेक (अच्छा) किरदार बन्दों में से थे |
21 | 76 | और नूह (अलैहिस्सलाम) को याद करो कि जब उन्होंने पहले ही हमको आवाज़ दी और हमने उनकी गुज़ारिश कु़बूल कर ली और उन्हें और उनके अहल को बहुत बड़े कर्ब (बेचैनी, परेशानी) से निजात (छुटकारा, रिहाई) दिला दी |
21 | 77 | और उन लोगों के मुक़ाबले में उनकी मदद की जो हमारी आयतों की तकज़ीब (झुठलाना) किया करते थे कि ये लोग बहुत बुरी क़ौम थे तो हमने उन सबको ग़कऱ् (डुबोकर बर्बाद) कर दिया |
21 | 78 | और दाऊद (अलैहिस्सलाम) और सुलेमान (अलैहिस्सलाम) को याद करो जब वह दोनों एक खेती के बारे में फ़ैसला कर रहे थे जब खेत में क़ौम की बकरियाँ घुस गई थीं और हम उनके फ़ैसले को देख रहे थे |
21 | 79 | फिर हमने सुलेमान (अलैहिस्सलाम) को सही फ़ैसला समझा दिया और हमने सबको कू़व्वत (ताक़त) फ़ैसला और इल्म अता किया था और दाऊद (अलैहिस्सलाम) के साथ पहाड़ों को मुसखि़्ख़र (इखि़्तयार में) कर दिया था कि वह तसबीह (तारीफ़) परवरदिगार करें और तयूर (चिडि़यों) को भी मुसख़्ख़र (इखि़्तयार में) कर दिया था और हम ऐसे काम करते रहते हैं |
21 | 80 | और हमने उन्हें जि़राह (कवच, जंग मंे बदन की हिफ़ाज़त करने वाला पहनने का सामान) बनाने की सनअत तालीम दे दी ताकि वह तुमको जंग के ख़तरात से महफ़ूज़ (हिफ़ाज़त में) रख सके तो क्या तुम हमारे शुक्रगुज़ार (शुक्र अदा करने वाले) बन्दे बनोगे |
21 | 81 | और सुलेमान के लिए तेज़ व तन्द (बड़े ज़ोरों की) हवाओं को मुसख़्ख़र (इखि़्तयार में) कर दिया जो उनके हुक्म से इस सरज़मीन की तरफ़ चलती थीं जिसमें हमने बरकतें रखी थीं और हम हर शै के जानने वाले हैं |
21 | 82 | और बाज़ (कुछ) जिन्नात को भी मुसखि़्ख़र (इखि़्तयार में) कर दिया जो समुन्दर में ग़ोते (डुबकी) लगाया करते थे और इसके अलावा दूसरे काम भी अंजाम दिया करते थे और हम उन सबके निगेहबान थे |
21 | 83 | और अय्यूब (अलैहिस्सलाम) को याद करो जब उन्होंने अपने परवरदिगार (पालने वाले) को पुकारा कि मुझे बीमारी ने छू लिया है और तू बेहतरीन (सबसे अच्छा) रहम करने वाला है |
21 | 84 | तो हमने उनकी दुआ को कु़बूल कर लिया और उनकी बीमारी को दूर कर दिया और उन्हें उनके अहलो अयाल (बीवी-बच्चे) दे दिये और वैसे ही और भी दे दिये कि ये हमारी तरफ़ से ख़ास मेहरबानी थी और ये इबादत गुज़ार (करने वाले) बन्दों के लिए एक याद दहानी (याद दिलाने वाली बात) है |
21 | 85 | और इस्माईल (अलैहिस्सलाम) व इदरीस (अलैहिस्सलाम) व जुलकिफ़्ल (अलैहिस्सलाम) को याद करो कि ये सब सब्र करने वालों में से थे |
21 | 86 | और सबको हमने अपनी रहमत में दाखि़ल कर लिया था और यक़ीनन ये सब हमारे नेक (अच्छा) किरदार बन्दों में से थे |
21 | 87 | और यूनुस (अलैहिस्सलाम) को याद करो कि जब वह गु़स्से में आकर चले और ये ख़्याल किया कि हम उन पर रोज़ी तंग (कमी) न करेंगे और फिर तारीकियों (अंधेरांे) में जाकर आवाज़ दी कि परवरदिगार (पालने वाले) तेरे अलावा कोई ख़ुदा नही है तू पाक व बेनियाज़ (जिसे कोई/किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं) है और मैं अपने नफ़्स (जान) पर जु़ल्म करने वालों में से था |
21 | 88 | तो हमने उनकी दुआ को कु़बूल कर लिया और उन्हें ग़म से निजात (छुटकारा, रिहाई) दिला दी कि हम इसी तरह साहेबाने ईमान (ईमान वालों) को निजात (छुटकारा, रिहाई) दिलाते रहते हैं |
21 | 89 | और ज़करिया (अलैहिस्सलाम) को याद करो कि जब उन्होंने अपने रब को पुकारा कि परवरदिगार (पालने वाले) मुझे अकेला न छोड़ देना कि तू तमाम वारिसों से बेहतर (ज़्यादा अच्छा) वारिस है |
21 | 90 | तो हमने उनकी दुआ को भी कु़बूल कर लिया और उन्हें यहिया (अलैहिस्सलाम) जैसा फ़रज़न्द (बेटा) अता कर दिया और उनकी ज़ौजा (बीवी) को सालेहा (नेक अमल करने वाली, नमाज़गुज़ार) बना दिया कि ये तमाम वह लोग थे जो नेकियों की तरफ़ सबक़त (पहल) करने वाले थे और रग़बत (ख़्वाहिश, चाहत) और ख़ौफ़ (डर) के हर आलम में हम हीं को पुकारने वाले थे और हमारी बारगाह में गिड़गिड़ाकर इल्तेजा करने वाले बन्दे थे |
21 | 91 | और उस ख़ातून को याद करो जिसने अपनी शर्म की हिफ़ाज़त की तो हमने उसमें अपनी तरफ़ से रूह फँूक दी और उसे और उसके फ़रज़न्द (बेटे) को तमाम आलमीन (जहानों) के लिए अपनी निशानी क़रार दे दिया |
21 | 92 | बेशक ये तुम्हारा दीन एक ही दीन इस्लाम है और मैं तुम सबका परवरदिगार (पालने वाला) हूँ लेहाज़ा (इसलिये) मेरी ही इबादत किया करो |
21 | 93 | और उन लोगों ने तो अपने दीन को भी आपस में टुकड़े-टुकड़े कर लिया है हालांकि ये सब पलटकर हमारी ही बारगाह में आने वाले हैं |
21 | 94 | फिर जो शख़्स साहेबे ईमान रहकर नेक (अच्छा) अमल करेगा उसकी कोशिश बर्बाद न होगी और हम उसकी कोशिश को बराबर लिख रहे हैं |
21 | 95 | और जिस बस्ती को हमने तबाह कर दिया है उसके लिए भी नामुमकिन है कि क़यामत के दिन हमारे पास पलट कर न आये |
21 | 96 | यहाँ तक कि याजूज व माजूज आज़ाद कर दिये जायेंगे और ज़मीन की हर बलन्दी से दौड़ते हुए निकल पड़ेंगे |
21 | 97 | और अल्लाह का सच्चा वादा क़रीब आ जायेगा तो सब देखेंगे कि कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) की आँखें पथरा गई हैं और वह कह रहे हैं कि वाए (लानत, षामत हो) बर हाल मा (हमारे हाल पर) हम उस तरफ़ से बिलकुल ग़फ़लत (बेपरवाही) में पड़े हुए थे बल्कि हम अपने नफ़्स (जान) पर जु़ल्म करने वाले थे |
21 | 98 | याद रखो कि तुम लोग खु़द और जिन चीज़ों की तुम परस्तिश (इबादत) कर रहे हो सबको जहन्नम का ईंधन (जलाने का सामान) बनाया जायेगा और तुम सब इसी में वारिद होने वाले हो |
21 | 99 | अगर ये सब वाके़अन (सच में, हक़ीक़त में) ख़ुदा होते तो कभी जहन्नम में वारिद न होते हालांकि ये सब उसी में हमेशा-हमेशा रहने वाले हैं |
21 | 100 | जहन्नम में उनके लिए चीख़ पुकार होगी और वह किसी की बात सुनने के क़ाबिल न होंगे |
21 | 101 | बेशक जिन लोगों के हक़ में हमारी तरफ़ से पहले ही नेकी मुक़द्दर (कि़स्मत में लिखी) हो चुकी है वह इस जहन्नम से दूर रखे जायेंगे |
21 | 102 | और इसकी भनक भी न सुनेंगे और अपनी हस्बे ख़्वाहिश (ख़्वाहिश या चाहत के हिसाब से) नेअमतों में हमेशा-हमेशा आराम से रहेंगे |
21 | 103 | उन्हें क़यामत का बड़े से बड़ा हौलनाक (डराने वाला) मंज़र भी रंजीदा न कर सकेगा और उनसे मलायका (फ़रिश्ते) इस तरह मुलाक़ात करेंगे कि यही वह दिन है जिसका तुमसे वादा किया गया था |
21 | 104 | उस दिन हम तमाम आसमानों को इस तरह लपेट देंगे जिस तरह ख़तों का तूमार (वह डंडी जिस पर ख़त वाला कपड़ा या काग़ज़) लपेटा जाता है और जिस तरह हमने तख़्लीक़ (खि़लक़त, बनाने, पैदा करने) की इब्तिदा (शुरूआत) की है उसी तरह उन्हें वापस भी ले आयेंगे ये हमारे जि़म्मे एक वादा है जिस पर हम बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) अमल करने वाले हैं |
21 | 105 | और हमने जि़क्र के बाद जु़बूर में भी लिख दिया है कि हमारी ज़मीन के वारिस हमारे नेक (अच्छा) बन्दे ही होंगे |
21 | 106 | यक़ीनन इसमें इबादत गुज़ार क़ौम के लिए एक पैग़ाम है |
21 | 107 | और हमने आपको आलमीन के लिए सिर्फ़ रहमत बनाकर भेजा है |
21 | 108 | आप कह दीजिए कि हमारी तरफ़ सिर्फ़ ये वही (पैग़ामे इलाही) आती है कि तुम्हारा ख़ुदा एक है तो क्या तुम इस्लाम लाने वाले हो |
21 | 109 | फिर अगर ये मुँह मोड़ लें तो कह दीजिए कि हमने तुम सबको बराबर से आगाह कर दिया है। अब मुझे नहीं मालूम कि जिस अज़ाब का वादा किया गया है वह क़रीब है या दूर है |
21 | 110 | बेशक वह ख़ुदा उन बातों को भी जानता है जिनका इज़हार किया जाता है और उन बातों को भी जानता है जिनको ये लोग छिपा रहे हैं |
21 | 111 | और मैं कुछ नहीं जानता शायद ये ताख़ीरे अज़ाब (अज़ाब भेजने में देर करना) भी एक तरह का इम्तिहान हो या एक मुद्दते मुअईयन (तय किये हुए वक़्त) तक का आराम हो |
21 | 112 | फिर पैग़म्बर ने दुआ की कि परवरदिगार (पालने वाले) हमारे दरम्यान (बीच में) हक़ के साथ फ़ैसला कर दे और हमारा रब यक़ीनन मेहरबान और तुम्हारी बातों के मुक़ाबले में क़ाबिले इस्तेआनत (मदद करने वाला) है |
Thursday, 16 April 2015
Sura-e-Ambiya 21st sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)
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