सूरा-ए-मुरसलात | ||
77 | अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू। | |
77 | 1 | उनकी क़सम जिन्हें तसलसुल (सिलसिले) के साथ भेजा गया है |
77 | 2 | फिर तेज़ रफ़्तारी से चलने वाली हैं |
77 | 3 | और क़सम है उनकी जो अशिया को मुन्तशिर (फैलाने, तितर-बितर) करने वाली हैं |
77 | 4 | फिर उन्हें आपस में जुदा करने वाली हैं |
77 | 5 | फिर जि़क्र को नाजि़ल करने वाली हैं |
77 | 6 | ताकि उज़्र तमाम हो (कोई बहाना न बचे) या ख़ौफ़ (डर) पैदा कराया जाये |
77 | 7 | जिस चीज़ का तुमसे वादा किया गया है वह बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) वाक़ेअ होने वाली है |
77 | 8 | फिर जब सितारों की चमक ख़त्म हो जाये |
77 | 9 | और आसमानों में शिगाफ़ (फ़टना, दरार) पैदा हो जाये |
77 | 10 | और जब पहाड़ उड़ने लगें |
77 | 11 | और जब सारे पैग़म्बर अलैहिस्सलाम एक वक़्त में जमा कर लिये जायें |
77 | 12 | भला किस दिन के लिए इन बातों में ताख़ीर (देरी) की गई है |
77 | 13 | फ़ैसले के दिन के लिए |
77 | 14 | और आप क्या जानें कि फ़ैसले का दिन क्या है |
77 | 15 | उस दिन झुठलाने वालों के लिए जहन्नम है |
77 | 16 | क्या हमने इनके पहले वालों को हलाक (बरबाद, ख़त्म) नहीं कर दिया है |
77 | 17 | फिर दूसरे लोगों को भी इन्हीं के पीछे लगा देंगे |
77 | 18 | हम मुजरिमों (जुर्म करने वालों) के साथ इसी तरह का बरताव करते हैं |
77 | 19 | और आज के दिन झुठलाने वालों के लिए बर्बादी ही बर्बादी है |
77 | 20 | क्या हमने तुमको एक हक़ीर पानी से नहीं पैदा किया है |
77 | 21 | फिर इसे एक महफ़ूज़ मुक़ाम (हिफ़ाज़त वाली जगह) पर क़रार दिया है |
77 | 22 | एक मुअईयन (तय की हुई) मिक़दार तक |
77 | 23 | फिर हमने इसकी मिक़दार मुअईयन (तय) की है तो हम बेहतरीन (सबसे अच्छी) मिक़दार मुक़र्रर करने वाले हैं |
77 | 24 | आज के दिन झुठलाने वालों के लिए बर्बादी है |
77 | 25 | क्या हमने ज़मीन को एक जमा करने वाला ज़र्फ़ नहीं बनाया है |
77 | 26 | जिसमें जि़न्दा मुर्दा सबको जमा करेंगे |
77 | 27 | और इसमें ऊँचे-ऊँचे पहाड़ क़रार दिये हैं और तुम्हें शीरीं (मीठे) पानी से सेराब किया (पिलाया) है |
77 | 28 | आज झुठलाने वालों के लिए बर्बादी और तबाही है |
77 | 29 | जाओ उस तरफ़ जिस की तकज़ीब (झुठलाना) किया करते थे |
77 | 30 | जाओ उस धुँए के साये की तरफ़ जिसके तीन गोशे (कोने) हैं |
77 | 31 | न ठण्डक है और न जहन्नम की लपट से बचाने वाला सहारा |
77 | 32 | वह ऐसे अंगारे फेंक रहा है जैसे कोई महल |
77 | 33 | जैसे ज़र्द रंग के ऊँट |
77 | 34 | आज के दिन झुठलाने वालों के लिए बर्बादी और जहन्नम है |
77 | 35 | आज के दिन ये लोग बात भी न कर सकंेगे |
77 | 36 | और न उन्हें इस बात की इजाज़त होगी कि उज़्र (बहाना) पेश कर सकें |
77 | 37 | आज के दिन झुठलाने वालों के लिए जहन्नम है |
77 | 38 | ये फ़ैसले का दिन है जिसमें हमने तुमको और तमाम पहले वालों को इकठ्ठा किया है |
77 | 39 | अब अगर तुम्हारे पास कोई चाल हो तो हमसे इस्तेमाल करो |
77 | 40 | आज तकज़ीब (झुठलाना) करने वालों के लिए जहन्नम है |
77 | 41 | बेशक मुत्तक़ीन (ख़ुदा से डरने वाले लोग) घनी छाँव और चश्मों (दरियाओं) के दरम्यान (बीच में) होंगे |
77 | 42 | और उनकी ख़्वाहिश के मुताबिक़ मेवे होंगे |
77 | 43 | अब इत्मिनान से खाओ पियो उन आमाल (कामों) की बिना पर जो तुमने अंजाम दिये हैं |
77 | 44 | हम इसी तरह नेक (अच्छा) अमल करने वालों को बदला देते हैं |
77 | 45 | आज झुठलाने वालों के लिए जहन्नम है |
77 | 46 | तुम लोग थोड़े दिनों खाओ और आराम कर लो कि तुम मुजरिम (जुर्म करने वाले) हो |
77 | 47 | आज के दिन तकज़ीब (झुठलाना) करने वालों के लिए वैल (जहन्नम की घाटी) है |
77 | 48 | और जब उनसे कहा जाता है कि रूकूअ करो तो नहीं करते हैं |
77 | 49 | तो आज के दिन झुठलाने वालों के लिए जहन्नम है |
77 | 50 | आखि़र ये लोग इसके बाद किस बात पर ईमान ले आयेंगे |
Saturday, 18 April 2015
Sura-e-Mursalat 77th surah of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment