Saturday, 18 April 2015

Sura-e-Waqeya 56th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-वाक़ेआ
56   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
56 1 जब क़यामत बरपा होगी
56 2 और उसके क़ायम होने में ज़रा भी झूठ नहीं है
56 3 वह उलट-पलट कर देने वाली होगी
56 4 जब ज़मीन को ज़बरदस्त झटके लगेंगे
56 5 और पहाड़ बिल्कुल चूर-चूर हो जायेंगे
56 6 फिर ज़र्रात (ज़र्रे, ग़्ाुबार) बनकर मुन्तशिर (फैल जाना, परागन्दा) हो जायेंगे
56 7 और तुम तीन गिरोह हो जाओगे
56 8 फिर दाहिने हाथ वाले और क्या कहना दाहिनें हाथ वालों का
56 9 और बायें हाथ वाले और क्या पूछना है बायें हाथ वालों का
56 10 और सब्क़त (पहल) करने वाले तो सब्क़त (पहल) करने वाले ही हैं
56 11 वही अल्लाह की बारगाह के मुक़र्रब हैं
56 12 नेअमतों भरी जन्नतों में होंगे
56 13 बहुत से लोग अगले लोगों में से होंगे
56 14 और कुछ आखि़र दौर के होंगे
56 15 मोती और याकू़त से जड़े हुए तख़्तों पर
56 16 एक दूसरे के सामने तकिया लगाये बैठे होंगे
56 17 उनके गिर्द हमेशा नौजवान रहने वाले बच्चे गर्दिश कर रहे होंगे
56 18 प्याले और टोंटीदार कंटर (सुराहियां) और शराब के जाम लिये हुए होंगे
56 19 जिससे न दर्दे सर पैदा होगा और न होश व हवास गुम होंगे
56 20 और उनकी पसन्द के मेवे लिये होंगे
56 21 और उन परिन्दों का गोश्त जिसकी उन्हें ख़्वाहिश होगी
56 22 और कुशादा चश्म (बड़ी-बड़ी आंखों वाली) हूरें होंगी
56 23 जैसे सरबस्ता मोती (सीपों में छुपे हुए मोती)
56 24 ये सब दरहक़ीक़त (अस्ल में) उनके आमाल (कामों) की जज़ा (सिला) और उसका इनआम होगा
56 25 वहाँ न कोई लग़्िवयात (बेहूदा बातें) सुनेंगे और न गुनाह की बातें
56 26 सिर्फ़ हर तरफ़ सलाम ही सलाम होगा
56 27 और दाहिनीं तरफ़ वाले असहाब, क्या कहना इन असहाबे यमीन (दाहिनीं तरफ़ वालों) का
56 28 बे काँटे की बेर
56 29 लदे हुए गुथे हुए केले
56 30 फैले हुए साये
56 31 झरने से गिरते हुए पानी
56 32 कसीर तादाद के मेवों के दरम्यान (बीच में) होंगे
56 33 जिनका सिलसिला न ख़त्म होगा औन न इन पर कोई रोक-टोक होगी
56 34 और ऊँचे कि़स्म के गद्दे होंगे
56 35 बेशक उन हूरों को हमने ईजाद किया है
56 36 तो उन्हें नित नई (कुंवारी) बनाया है
56 37 ये कुँवारियां और आपस में हमजोलियाँ (हम उम्र) होंगी
56 38 ये सब असहाबे यमीन (दाहिनीं तरफ़ वालों) के लिए हैं
56 39 जिनका एक गिरोह पहले लोगों का है
56 40 और एक गिरोह आखि़री लोगों का है
56 41 और बायें हाथ वाले तो उनका क्या पूछना है
56 42 गरम-गरम हवा खौलता हुआ पानी
56 43 काले स्याह धुँए का साया
56 44 जो न ठण्डा हो और न अच्छा लगे
56 45 ये वही लोग हैं जो पहले बहुत आराम की जि़न्दगी गुज़ार रहे थे
56 46 और बड़े-बड़े गुनाहों पर इसरार कर रहे (अड़े हुए) थे
56 47 और कहते थे कि क्या जब हम मर जायेंगे और ख़ाक और हड्डी हो जायेंगे तो हमें दोबारा उठाया जायेगा
56 48 क्या हमारे बाप दादा भी उठाये जायेंगे
56 49 आप कह दीजिए कि अव्वलीन (पहले वाले) व आखि़रीन (बाद वाले, आखि़र वाले) सब के सब
56 50 एक मुक़र्रर (तय किये हुए) दिन की वादागाह पर जमा किये जायेंगे
56 51 इसके बाद तुम ऐ गुमराहों और झुठलाने वालों
56 52 थोहड़ के दरख़्त (पेड़) के खाने वाले होगे
56 53 फिर उससे अपने पेट भरोगे
56 54 फिर उस पर खौलता हुआ पानी पियोगे
56 55 फिर इस तरह पियोगे जिस तरह प्यासे ऊँट पीते हैं
56 56 ये क़यामत के दिन उनकी मेहमानदारी का सामान होगा
56 57 हमने तुमको पैदा किया है तो दोबारा पैदा करने की तसदीक़ (सच्चाई की गवाही) क्यों नहीं करते
56 58 क्या तुमने उस नुत्फ़े को देखा है जो रहम में डालते हो
56 59 इसे तुम पैदा करते हो या हम पैदा करने वाले हैं
56 60 हमने तुम्हारे दरम्यान (बीच में) मौत को मुक़द्दर कर दिया है और हम इस बात से आजिज़ (परेशान) नहीं हैं
56 61 कि तुम जैसे और लोग पैदा कर दें और तुम्हें उस आलम में दोबारा ईजाद कर दें जिसे तुम जानते भी नहीं हो
56 62 और तुम पहली खि़ल्क़त को तो जानते हो तो फिर इसमें ग़ौर क्यों नहीं करते हो
56 63 उस दाने को भी देखा है जो तुम ज़मीन में बोते हो 
56 64 उसे तुम उगाते हो या हम उगाने वाले हैं
56 65 अगर हम चाहें तो उसे चूर चूर बना दें तो तुम बातें ही बनाते रह जाओ
56 66 कि हम तो बड़े घाटे में रहे
56 67 बल्कि हम तो महरूम ही रह गये
56 68 क्या तुमने उस पानी को देखा है जिसको तुम पीते हो
56 69 इसे तुमने बादल से बरसाया है या इसके बरसाने वाले हम हैं
56 70 अगर हम चाहते तो इसे खारा बना देते तो फिर तुम हमारा शुक्रिया क्यों नहीं अदा करते हो
56 71 क्या तुमने उस आग को देखा है जिसे लकड़ी से निकालते हो
56 72 इसके दरख़्त (पेड़) को तुमने पैदा किया है या हम इसके पैदा करने वाले हैं
56 73 हमने इसे याद दहानी (याद दिलाने) का ज़रिया और मुसाफि़रों के लिए नफ़े (फ़ायदे) का सामान क़रार दिया है
56 74 अब आप अपने अज़ीम परवरदिगार (पालने वाले) के नाम की तसबीह करें
56 75 और मैं तो तारों के मनाजि़ल (मक़ाम) की क़सम खाकर कहता हूँ
56 76 और तुम जानते हो कि ये क़सम बहुत बड़ी क़सम है
56 77 ये बड़ा मोहतरम कु़रआन है
56 78 जिसे एक पोशीदा (छिपी हुई) किताब में रखा गया है
56 79 इसे पाक व पाकीज़ा (साफ़-सुथरे) अफ़राद (लोगों) के अलावा कोई छू भी नहीं सकता है
56 80 ये रब्बुलआलमीन (तमाम जहानों के मालिक) की तरफ़ से नाजि़ल किया गया है
56 81 तो क्या तुम लोग इस कलाम से इन्कार करते हो
56 82 और तुमने अपनी रोज़ी यही क़रार दे रखी है कि इसका इन्कार करते रहो
56 83 फिर ऐसा क्यों नहीं होता कि जब जान गले तक पहुंच जाये
56 84 और तुम उस वक़्त देखते ही रह जाओ
56 85 और हम तुम्हारी निसबत मरने वाले से क़रीब हैं मगर तुम देख नहीं सकते हो
56 86 पस अगर तुम किसी के दबाव में नहीं हो और बिल्कुल आज़ाद हो
56 87 तो इस रूह को क्यों नहीं पलटा देते हो अगर अपनी बात में सच्चे हो
56 88 फिर अगर मरने वाला मुक़र्रबीन (मुक़र्रब लोगों) में से है
56 89 तो उसके लिए आसाइश, ख़ु़शबूदार फूल और नेअमतों के बाग़ात हैं
56 90 और अगर असहाब यमीन (दाएं तरफ़ वालों) में से है
56 91 तो असहाबे यमीन (दाएं तरफ़ वालों) की तरफ़ से तुम्हारे लिए सलाम है
56 92 और अगर झुठलाने वालों और गुमराहों में से है
56 93 तो खौलते हुए पानी की मेहमानी है
56 94 और जहन्नम में झोंक देने की सज़ा है
56 95 यही वह बात है जो बिल्कुल बरहक़ (हक़ पर) और यक़ीनी है
56 96 लेहाज़ा (इसलिये) अपने अज़ीम (अज़्मतों वाले) परवरदिगार (पालने वाले) के नाम की तसबीह (तारीफ़) करते रहो

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