Thursday, 16 April 2015

Sura-a-Nahl 16th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.),


    सूरा-ए-अन्नहल
16   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
16 1 अम्रे इलाही (ख़ुदा का हुक्म) आ गया है लेहाज़ा अब बिला वजह जल्दी न मचाओ कि खु़दा इनके शिर्क से पाक व पाकीज़ा और बुलन्द व बाला (बरतर) है 
16 2 वह जिस बन्दे पर चाहता है अपने हुक्म से मलायका (फ़रिश्तों) को रूह के साथ नाजि़ल कर (भेज) देता है कि इन बन्दांे को डराओ और समझाओ कि मेरे अलावा कोई खु़दा नहीं है लेहाज़ा मुझ ही से डरें 
16 3 उसी खु़दा ने ज़मीन व आसमान को हक़ के साथ पैदा किया है और वह उनके शरीकों (जिनको इन लोगों ने ख़ुदा के साथ शरीक क़रार दिया) से बहुत बुलन्द व बाला तर (बरतर) है 
16 4 उसने इन्सान को एक क़तरा-ए-नजिस (नजिस बूंद, नुत्फ़े) से पैदा किया है मगर फिर भी वह खु़ल्लम खु़ल्ला झगड़ा करने वाला हो गया है 
16 5 और उसी ने चैपायों (चार पैर वाले जानवरों) को भी पैदा किया है जिनमें तुम्हारे लिए गरम लिबास (कपड़े) और दीगर (दूसरे) मुनाफ़े (फ़ायदे) का सामान है और बाज़ (कुछ) को तो तुम खाते भी हो 
16 6 और तुम्हारे लिए उन्हीं जानवरों में से ज़ीनत (रौनक़, इज़्ज़त) का सामान है जब तुम शाम को उन्हें (चराकर) वापस लाते हो और सुबह को चरागाह की तरफ़ (चराने) ले जाते हो 
16 7 और ये हैवानात (जानवर) तुम्हारे बोझ को उठाकर उन शहरों तक ले जाते हैं जहाँ तक तुम जान जोखि़म में डाले बग़ैर नहीं पहुँच सकते थे बेशक तुम्हारा परवरदिगार बड़ा शफ़ीक़ और मेहरबान है
16 8 और उसने घोड़े ख़च्चर और गधे को पैदा किया ताकि उस पर सवारी करो और उसे ज़ीनत भी क़़रार दो और वह ऐसी चीज़ांे को भी पैदा करता है जिनका तुम्हें इल्म (मालूमात) भी नहीं है 
16 9 और दरम्यानी (बीच के, सीधे) रास्ते की हिदायत खु़दा की अपनी जि़म्मेदारी है और बाज़ रास्ते कज्ज (टेढ़े) भी होते हैं और वह चाहता तो तुम सबको ज़बरदस्ती राहे रास्त (सीधे रास्ते) पर ले आता 
16 10 वह वही ख़ु़दा है जिसने आसमान से पानी नाजि़ल किया है जिसका एक हिस्सा पीने वाला है और एक हिस्से से दरख़्त (पेड़) पैदा होते हैं जिनसे तुम जानवरों को चराते हो 
16 11 वह तुम्हारे लिए ज़राअत (खेती), जै़तून, ख़ु़रमे, अंगूर और तमाम फल इसी पानी से पैदा करता है। इस अम्र (हुक्म) में भी साहेबाने फि़क्र (सोचने वालों) के लिए उसकी क़ु़दरत की निशानियाँ पायी जाती हैं 
16 12 और उसी ने तुम्हारे लिए रात-दिन और आफ़ताब (सूरज) व महताब (चांद) सबको मुसख़्ख़र (हुक्म मानने वाला) कर दिया है और सितारे भी उसी के हुक्म के ताॅबे (मानने वाले) हैं बेशक इसमें भी साहेबाने अक़्ल (अक़्ल वालों) के लिए क़ु़दरत की बहुत सी निशानियाँ पायी जाती हैं 
16 13 और जो कुछ तुम्हारे लिए इस ज़मीन के अन्दर मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) रंगों में पैदा किया है इसमें भी इबरत (सबक़) हासिल करने वाली क़ौम के लिए उसकी निशानियाँ पायी जाती हैं 
16 14 और वही वह है जिसने समुन्दरांे को मुसख़्ख़र (हुक्म मानने वाला) कर दिया है ताकि तुम इसमें से ताज़ा गोश्त खा सको और पहनने के लिए ज़ीनत (इज़्ज़त, रौनक़) का सामान निकाल सको और तुम तो देख रहे हो कि कश्तियाँ किस तरह इसके सीने को चीरती हुई चली जा रही हैं और ये सब इसलिए भी है कि तुम उसके फ़ज़्ल व करम (मेहरबानी) को तलाश कर सको और शायद इसी तरह उसके शुक्रगुज़ार (शुक्र करने वाले) बन्दे भी बन जाओ
16 15 और उसने ज़मीन में पहाड़ों के लंगर (कीले) डाल दिये ताकि तुम्हें लेकर अपनी जगह से हट न जाये और नहरें और रास्ते बना दिये ताकि मंजि़ले सफ़र में हिदायत पा सको 
16 16 और अलामात (निशानियां) मुअईयन (तय) कर दीं और लोग सितारों से भी रास्ते दरयाफ़्त (मालूम) कर लेते हैं 
16 17 क्या ऐसा पैदा करने वाला उन (जिनको तुम ख़ुदा का शरीक ठहराते हो) के जैसा हो सकता है जो कुछ नहीं पैदा कर सकते आखि़र तुम्हें होश क्यों नहीं आ रहा है 
16 18 और तुम अल्लाह की नेअमतों को शुमार (गिनना) भी करना चाहो तो नहीं कर सकते हो बेशक अल्लाह बड़ा मेहरबान और बख़्शने (माफ़ करने) वाला है 
16 19 और अल्लाह ही तुम्हारे बातिन (छिपे हुए) व ज़ाहिर (सामने) दोनों से बा ख़बर (ख़बरदार)  है 
16 20 और उसके अलावा जिन्हें ये मुशरेकीन (ख़ुदा का शरीक ठहराने वाले) पुकारते हैं वह ख़ु़द ही मख़लूक़ (पैदा किये हुए) हैं और वह किसी चीज़ को ख़ल्क़ (पैदा) नहीं कर सकते हैं 
16 21 वह तो मुर्दा हैं इनमें जि़न्दगी भी नहीं है और न इन्हें ये ख़बर है कि मुर्दे कब उठाए जायेंगे 
16 22 तुम्हारा ख़ु़दा सिर्फ़ एक है और जो लोग आखि़रत (क़यामत) पर ईमान नहीं रखते हैं उनके दिल मुन्किर (इन्कार करने वाले) कि़स्म के हैं और वह खु़द मग़रूर (ग़्ाुरूर करने वाले) व मुतकब्बिर (तकब्बुर करने वाले) हैं 
16 23 यक़ीनन अल्लाह उन तमाम बातों को जानता है जिन्हें ये छिपाते हैं या जिनका इज़्हार (ज़ाहिर) करते हैं वह मुतकब्बेरीन (तकब्बुर करने वालों) को हर्गिज़ पसन्द नहीं करता है
16 24 और जब उनसे पूछा जाता है कि तुम्हारे परवरदिगार ने क्या-क्या नाजि़ल किया है तो कहते हैं कि ये सब पिछले लोगों के अफ़साने (कि़स्से) हैं 
16 25 ताकि ये मुकम्मल (पूरी) तौर पर अपना भी बोझ उठायें और अपने उन मुरीदों (मानने वालों) का भी बोझ उठायें जिन्हें बिला इल्म (बग़ैर जाने) व फ़हम (बग़ैर समझ) के गुमराह करते रहे हैं। बेशक ये बड़ा बदतरीन (ख़राब) बोझ उठाने वाले हैं
16 26 यक़ीनन (बेशक) इनसे पहले वालों ने भी मक्कारियाँ (झूठी बातें) की थीं तो अज़ाबे इलाही उनकी तामीरात (तामीर की हुई, बनाई हुई चीज़ों) तक आया और इसे जड़ से उखाड़ फेंक दिया और उनके सिरों पर छत गिर पड़ी और अज़ाब ऐसे अंदाज़ से आया कि उन्हंे शऊर भी न पैदा हो सका (पता भी न चल सका)
16 27 इसके बाद वह रोज़े क़यामज इन्हें रूसवा (ज़लील) करेगा और पूछेगा कहाँ हैं वह मेरे शरीक (जिनको तुम ख़ुदा का शरीक ठहराते थे) जिनके बारे में तुम झगड़ा किया करते थे। उस वक़्त साहेबाने इल्म (इल्म वाले लोग) कहेंगे कि आज रूसवाई (जि़ल्लत) और बुराई उन काफि़रों के लिए साबित हो गई है
16 28 जिन्हें मलायका (फ़रिश्ते) इस आलम में उठाते हैं कि वह अपने नफ़्स (जान) के ज़ालिम (पर ज़्ाुल्म करने वाले) होते हैं तो उस वक़्त इताअत (कहने पर अमल करने) की पेशकश करते हैं के हम तो कोई बुराई नहीं करते थे। बेशक ख़ुु़दा ख़ू़ब जानता है कि तुम क्या क्या करते थे
16 29 जाओ अब जहन्नम के दरवाज़ों से दाखि़ल हो जाओ और हमेशा वहीं रहो कि मुतकब्बेरीन (तकब्बुर, ग़ुरूर करने वालों) का ठिकाना बहुत बुरा होता है 
16 30 और जब साहेबाने तक़वा (ख़ुदा से डरने वाले, मुत्तक़ी लोगों) से कहा गया कि तुम्हारे परवरदिगार ने क्या नाजि़ल किया है तो उन्हांेने कहा कि सब खै़र (नेकी, अच्छाई) है। बेशक जिन लोगों ने इस दुनिया में नेक आमाल किये हैं उनके लिए नेकी है और आखि़रत का घर तो बहरहाल बेहतर है और वह मुत्तक़ीन (ख़ुदा से डरने वाले, मुत्तक़ी लोगों) का बेहतरीन मकान है
16 31 वहाँ हमेशा रहने वाले (हरे-भरे) बाग़ात (बहुत से बाग़) हैं जिनमें ये लोग दाखि़ल होंगे और इनके नीचे नहरें जारी होंगी वह जो कुछ चाहेंगे सब उनके लिए हाजि़र होगा कि अल्लाह इसी तरह इन साहेबाने तक़्वा (ख़ुदा से डरने वाले, मुत्तक़ी लोगों) को जज़ा (सिला) देता है 
16 32 जिन्हें मलायका (फ़रिश्ते) इस आलम में उठाते हैं कि वह पाक व पाकीज़ा होते हैं और उनसे मलायका (फ़रिश्ते) कहते हैं कि तुम पर सलाम हो अब तुम अपने नेक आमाल (कामों) की बिना पर जन्नत में दाखि़ल हो जाओ 
16 33 क्या ये लोग सिर्फ़ इस बात का इन्तिज़ार कर रहे हैं कि उनके पास मलायका (फ़रिश्ते) आ जायें या हुक्मे परवरदिगार आ जाये तो यही इनके पहले वालों ने भी किया था और अल्लाह ने उन पर कोई जु़ल्म नहीं किया है बल्कि ये खु़द ही अपने नफ़्स (जान) पर ज़्ाुल्म करते रहे हैं 
16 34 नतीजा ये हुआ कि इनके आमाल (कामों) के बुरे असरात (नतीजे) उन तक पहुँच गये और जिन बातों का ये मज़ाक़ उड़ाया करते थे उन्हीं बातों ने उन्हें अपने घेरे में ले लिया और फिर तबाह व बर्बाद कर दिया 
16 35 और मुशरेकीन (जो लोग दूसरों को ख़ुदा का शरीक ठहराते थे) कहते हैं कि अगर खु़दा चाहता तो हम या हमारे बुजु़र्ग उसके अलावा किसी की इबादत न करते और न उसके हुक्म के बग़ैर किसी शै को हराम क़रार देते। इसी तरह उनके पहले वालों ने भी किया था तो क्या रसूलों की जि़म्मेदारी वाजे़ह (साफ़-साफ़) एलान के अलावा कुछ और भी है
16 36 और यक़ीनन हमने हर उम्मत में एक रसूल भेजा है कि तुम लोग अल्लाह की इबादत करो और तागू़त (शैतान) से इज्तेनाब (दूरी इख़्तेयार) करो फिर इनमंे बाज़ (कुछ) को ख़ु़दा ने हिदायत दे दी और बाज़ पर गुमराही साबित हो गई तो अब तुम लोग रूए ज़मीन में सैर करो और देखो कि तक़जीब करने (झुठलाने) वालों का अंजाम क्या होता है 
16 37 अगर आपको ख़्वाहिश है कि ये हिदायत पा जायें (सीधे रास्ते पर आ जायें) तो अल्लाह जिसको गुमराही (राह से भटकने) में छोड़ चुका है अब उसे हिदायत नहीं दे सकता और न उनका कोई मदद करने वाला होगा 
16 38 उन लोगों ने वाक़ई अल्लाह की क़़सम खाई थी कि अल्लाह मरने वालों को दोबारा जि़न्दा नहीं कर सकता है हालांकि यह उसका बरहक़ (सच्चा) वादा है ये और बात है कि अकसर लोग इस हक़ीक़त (सच्चाई) से बाख़बर (ख़बरदार) नहीं हैं 
16 39 वह चाहता है कि लोगों के लिए इस अम्र (हुक्म) को वाजे़ह (साफ़-साफ, रौशन) कर दे जिसमें वह एख़तेलाफ़ (झगड़ा) कर रहे हैं और कुफ़्फ़ार (इनकार करने वालों) को ये मालूम हो जाये कि वह वाक़ई झूठ बोला करते थे 
16 40 हम जिस चीज़ का इरादा कर लेते हैं उससे फ़़क़़त (सिर्फ़) इतना कहते हैं कि हो जा और फिर वह हो जाती है
16 41 और जिन लोगों ने जु़ल्म सहने के बाद राहे ख़ु़दा में हिजरत इखि़्तयर (घर-बार छोड़कर दूसरी जगह जाने की ज़हमत) की है हम अनक़रीब (बहुत जल्द) दुनिया में भी उनको बेहतरीन मक़ाम अता करेंगे और आखि़रत का अज्र (सिला) तो यक़ीनन बहुत बड़ा है। अगर ये लोग इस हक़ीक़त से बा ख़बर (ख़बरदार) हों 
16 42 यही वह लोग हैं जिन्होंने सब्र किया है और अपने परवरदिगार पर भरोसा करते रहे हैं 
16 43 और हमने आपसे पहले भी मर्दों ही को रसूल बनाकर भेजा है और उनकी तरफ़ भी वही (इलाही हुक्म भेजना) करते रहे हैं तो इनसे कहिए कि अगर तुम नहीं जानते हो तो जानने वालों से दरयाफ़्त (मालूम) करो 
16 44 और हमने उन रसूलों को मोजिज़ात (चमत्कारों) और किताबों (इलाही किताबों) के साथ भेजा है और आपकी तरफ़ भी जि़क्र (कु़रआन) को  नाजि़ल किया है ताकि इनके लिए उन एहकाम (हुक्मों) को वाजे़ह (साफ़-साफ़ बयान) कर दें जो इनकी तरफ़ नाजि़ल किये गये हैं और शायद ये इस बारे में कुछ ग़ौर व फि़क्र करंे 
16 45 क्या ये बुराइयों की तदबीरें (इन्तेज़ाम) करने वाले कुफ़्फ़ार (इनकार करने वाले) इस बात से मुतमईन (इत्मीनान में, सुकून में) हो गये हैं कि अल्लाह अचानक इन्हें ज़मीन में धँसा दे या उन तक इस तरह अज़ाब जा आये कि उन्हें इसका शऊर (पता) भी न हो 
16 46 या इन्हें चलते-फिरते गिरफ़्तार कर (जकड़) लिया जाये कि ये अल्लाह को आजिज़ (परेशान) नहीं कर सकते हैं 
16 47 या फिर इन्हें डरा-डराकर धीरे-धीरे गिरफ़्त (पकड़) में लिया जाये कि तुम्हारा परवरदिगार बड़ा शफ़ीक़ (मोहब्बत करने वाला) और मेहरबान (मेहरबानी करने वाला) है 
16 48 क्या इन लोगों ने उन मख़लूक़ात (पैदा की हुई चीज़ों) को नहीं देखा है जिनका साया दाहिने-बायें पलटता रहता है कि सब उसकी बारगाह में तवाजे़ व इन्केसार (ख़ुद को हक़ीर समझते हुए अल्लाह की बुज़्ाुर्गी का इक़रार करते हुए उसके हुक्म के मानने) के साथ सज्दा रेज़ (सजदे में झुके हुए) हैं 
16 49 और अल्लाह ही के लिए आसमान की तमाम चीज़ें (सूरज-चांद-तारे और दूसरी चीज़ें) और ज़मीन के तमाम चलने वाले और मलायका (फ़रिश्ते) सज्दा रेज़ (सजदे में झुके हुए) हैं और कोई इस्तकबार (हुक्मे ख़ुदा से सरकशी) करने वाला नहीं है
16 50 ये सब अपने परवरदिगार की बरतरी और अज़मत से ख़ौफ़ज़दा (डरे हुए) हैं और उसी के अम्र (हुक्म) के मुताबिक़ काम कर रहे हैं 
16 51 और अल्लाह ने कह दिया है कि ख़बरदार दो खु़दा न बनाओ कि अल्लाह सिर्फ़ ख़ुदाए वाहिद (यकता) है लेहाज़ा मुझ ही से डरो 
16 52 और उसी के लिए ज़मीन व आसमान की हर शै है और उसी के लिए दायमी (हमेशा-हमेशा की) इताअत भी है तो क्या तुम ग़ैरे खु़दा (ख़ुदा के अलावा दूसरों) से भी डरते हो
16 53 और तुम्हारे पास जो भी नेअमत है वह सब अल्लाह ही की तरफ़ से है और इसके बाद भी जब तुम्हें कोई तकलीफ़ छू लेती है तो तुम उसी से फ़रियाद करते हो 
16 54 और जब वह तकलीफ़ को दूर कर देता है तो तुम में से एक गिरोह (दूसरों को) अपने परवरदिगार का शरीक बनाने लगता है 
16 55 ताकि उन नेअमतों का इन्कार कर दें जो हमने उन्हें अता की हैं ख़ैर चन्द रोज़ (कुछ दिन) और मज़े कर लो इसके बाद अंजाम मालूम ही हो जायेगा 
16 56 और ये हमारे दिये हुए रिज़्क़ में से उनका भी हिस्सा क़रार देते हैं जिन्हें जानते भी नहीं हैं तो अनक़रीब (बहुत जल्द) तुमसे तुम्हारे इफि़्तरा (झूठे इल्ज़ाम) के बारे में भी सवाल किया जायेगा 
16 57 और ये अल्लाह के लिए लड़कियाँ क़रार देते हैं जबकि वह पाक और बेनियाज़ (उसे किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं) है और ये जो कुछ चाहते हैं वह सब उन्हीं के लिए है 
16 58 और जब ख़ु़द इनमें से किसी को लड़की की बशारत (ख़ुशख़बरी) दी जाती है तो उसका चेहरा स्याह (काला) पड़ जाता है और वह ख़ू़न के घूँट पीने लगता है 
16 59 क़ौम से मुँह छिपाता है (जैसे) कि बहुत बुरी ख़बर सुनाई गई है अब उसे (लड़की को) जि़ल्लत समेत जि़न्दा रखे या ख़ाक में मिला दे यक़ीनन ये लोग बहुत बुरा फ़ैसला कर रहे हैं 
16 60 जिन लोगों का आखि़रत पर ईमान नहीं है उनकी मिसाल बदतरीन (सबसे बुरी) मिसाल है और अल्लाह के लिए बेहतरीन (सबसे अच्छी) मिसाल है कि वही साहेबे इज़्ज़त (इज़्ज़त वाला) और साहेबे हिकमत (हिकमत वाला) है 
16 61 अगर ख़ु़दा लोगों से उनके ज़्ाु़ल्म का मवाखि़ज़ा करने लगता तो रूए ज़मीन पर एक रेंगने वाले को भी न छोड़ता लेकिन वह सबको एक मुअईयन (तय किये हुए) मुद्दत (वक़्त) तक के लिए ढील देता है इसके बाद जब वक़्त आ जायेगा तो फिर न एक साअत (लम्हे) की ताख़ीर (देरी) होगी और न तक़दीम (जल्दी) 
16 62 ये खु़दा के लिए वह क़रार देते हैं जो ख़ु़द अपने लिए नापसन्द करते हैं और उनकी ज़बानें ये ग़लत बयानी भी करती हैं कि आखि़रत में उनके लिए नेकी है हालांकि यक़ीनी तौर पर उनके लिए जहन्नुम है और ये सबसे पहले ही (जहन्नम में) डाले जायंेगे 
16 63 अल्लाह की अपनी क़सम के हमने तुमसे पहले मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) क़ौमों की तरफ़ रसूल भेजे तो शैतान ने उनके कारोबार को उनके लिए आरास्ता (सजा) कर दिया और वही आज भी उनका सरपरस्त है और उनके लिए बहुत बड़ा दर्दनाक अज़ाब है 
16 64 और हमने आप पर किताब सिर्फ़ इसलिए नाजि़ल की है कि आप उन मसाएल की वज़ाहत कर दें जिनमें ये एख़तेलाफ़ (झगड़ा) किये हुए हैं और ये किताब साहेबाने ईमान (ईमान वालों) के लिए मुजस्समा-ए-हिदायत (हिदायत का मुकम्मल नमूना) और रहमत है 
16 65 और अल्लाह ही ने आसमान से पानी बरसाया है और इसके ज़रिये ज़मीन को मुर्दा होने के बाद दोबारा जि़न्दा किया है इसमें भी बात सुनने वाली क़ौम के लिए निशानियाँ पायी जाती हैं 
16 66 और तुम्हारे लिए हैवानात (जानवरों) में भी इबरत (सबक़) का सामान है कि हम उनके शिकम (पेट) से गोबर और खू़न के दरम्यान (बीच) से ख़ालिस (शुद्ध) दूध निकालते हैं जो पीने वालों के लिए इन्तिहाई (बहुत ज़्यादा) खु़शगवार (ख़ुशी वाला) मालूम होता है
16 67 और फिर ख़ु़र्मे और अंगूर के फलों से वह शीरा (रस) निकालते हैं जिससे तुम नशा और बेहतरीन रिज़्क़ सब कुछ तैयार कर लेते हो इसमें भी साहेबाने अक़्ल (अक़्ल वालों) के लिए निशानियाँ पायी जाती हैं 
16 68 और तुम्हारे परवरदिगार ने शहद की मक्खी को इशारा दिया कि पहाड़ों और दरख़्तों (पेड़ों) और घरों की बलन्दियों (ऊंचाइयों) में अपने घर बनाये
16 69 इसके बाद मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) फलों से ग़ेज़ा (खाने का सामान) हासिल करे और नरमी के साथ ख़ु़दाई (ख़ुदा के बताए हुए) रास्ते पर चले जिसके बाद उसके शिकम (पेट) से मुख़्तलिफ़ कि़स्म (अलग-अलग तरह) के मशरूब (पीने वाली चीज़ें) बरामद होंगे जिसमें पूरे आलमे इन्सानियत के लिए शिफ़ा (इलाज) का सामान है और इसमें भी फि़क्र करने वाली क़ौम के लिए एक निशानी है 
16 70 और अल्लाह ही ने तुम्हें पैदा किया है फिर वह ही वफ़ात (मौत) देता है और बाज़ लोगों को इतनी बदतरीन (बुरी) उम्र तक पलटा दिया जाता है कि इल्म के बाद भी कुछ जानने के क़ाबिल न रह जायें। बेशक अल्लाह हर शै का जानने वाला और हर शै पर क़ु़दरत रखने वाला है 
16 71 और अल्लाह ही ने बाज़ को रिज़्क़ में बाज़ पर फ़ज़ीलत दी है तो जिनको बेहतर (ज़्यादा अच्छा) बनाया गया है वह अपना बकि़या रिज़्क़ उनकी तरफ़ नहीं पलटा देते हैं जो उनके हाथों की मिल्कियत हैं हालांकि रिज़्क़ में सब बराबर की हैसियत रखने वाले हैं तो क्या ये लोग अल्लाह ही के नेअमत का इन्कार कर रहे हैं 
16 72 और अल्लाह ने तुम्हीं में से तुम्हारा जोड़ा बनाया है फिर इस जोड़े से औलाद (बेटी-बेटे वग़ैरह) और औलादे-औलाद (पोती-पोते वग़ैरह) क़रार दी है और सबको पाकीज़ा रिज़्क़ दिया है तो क्या ये लोग बातिल (झूठ) पर ईमान रखते हैं और अल्लाह ही की नेअमत से इन्कार करते हैं 
16 73 और ये लोग अल्लाह को छोड़कर उनकी इबादत करते हैं जो न आसमान व ज़मीन में किसी रिज़्क़ के मालिक हैं और न किसी चीज़ की ताक़त ही रखते हैं
16 74 तो ख़बरदार अल्लाह के लिए मिसालें बयान न करो कि अल्लाह सब कुछ जानता है और तुम कुछ नहीं जानते हो 
16 75 अल्लाह ने ख़ु़द उस ग़्ाु़लाम ममलूक (प्रजा) की मिसाल बयान की है जो किसी चीज़ का इखि़्तयार नहीं रखता है और उस आज़ाद इन्सान की मिसाल बयान की है जिसे हमने बेहतरीन रिज़्क़ अता किया है और वह इसमें से खु़फि़़या (छुपाकर) और एलानिया इन्फ़ाक़ (ख़र्च) करता रहता है तो क्या ये दोनों बराबर हो सकते हैं-सारी तारीफ़ सिर्फ़ अल्लाह के लिए ही है मगर इन लागों की अकसरियत (ज़्यादातर) कुछ नहीं जानती है 
16 76 और अल्लाह ने एक और मिसाल उन दो इन्सानों की बयान की है जिनमें से एक गूँगा है और उसके बस में कुछ नहीं है बल्कि वह खु़द अपने मौला के सिर पर एक बोझ है कि जिस तरफ़ भी भेज दे कोई ख़ैर (अच्छाई) लेकर न आयेगा तो क्या वह उसके बराबर हो सकता है जो अद्ल (इंसाफ़) का हुक्म देता है और सीधे रास्ते पर गामज़न (चल रहा) है 
16 77 आसमान व ज़मीन का सारा ग़ैब (छुपा हुआ) अल्लाह ही के लिए है और क़यामत का हुक्म तो सिर्फ़ एक पलक झपकने के बराबर या उससे भी क़रीबतर है और यक़ीनन अल्लाह हर शै पर कु़दरत रखने वाला है 
16 78 और अल्लाह ही ने तुम्हें शिकमे मादर (माँ की कोख) से इस तरह निकाला है कि तुम कुछ नहीं जानते थे और उसी ने तुम्हारे लिए कान, आँख और दिल क़रार दिये हैं कि शायद तुम शुक्रगुज़ार (शुक्र करने वाले) बन जाओ 
16 79 क्या उन लोगांे ने (उड़ने वाले) परिन्दों की तरफ़ नहीं देखा कि वह किस तरह फि़ज़ाए आसमान (आसमानी हवा) में मुसखि़र (इखि़्तयार के साथ) हैं कि अल्लाह के अलावा उन्हें कोई रोकने वाला और सम्भालने वाला नहीं है बेशक इसमें भी उस क़ौम के लिए बहुत सी निशानियाँ है जो ईमान रखने वाली क़ौम है 
16 80 और अल्लाह ही ने तुम्हारे लिए तुम्हारे घरों को वजहा-ए-सुकून बनाया है और तुम्हारे लिए जानवरांे की खालों से ऐसे घर बना दिये हैं जिनको तुम रोज़े सफ़र (सफ़र के दिनों में) भी हल्का समझते हो और रोज़े अक़ामत भी हल्का महसूस करते हो और फिर उनके ऊन, रूई और बालों से मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) सामाने जि़न्दगी और एक मुद्दत के लिए कार आमद (काम में आने वाली) चीज़े बना दीं 
16 81 और अल्लाह ही ने तुम्हारे लिए मख़्लूक़ात का साया क़रार दिया है और पहाड़ों में छिपने की जगहें बनाई हैं और ऐसे पैराहन (कपड़े) बनाये हैं जो गरमी से बचा सकें और फिर ऐसे पैराहन (कपड़े) बनाये हैं जो हथियारों की ज़द से बचा सकें। वह इसी तरह अपनी नेअमतों को तुम्हारे ऊपर तमाम कर देता है कि शायद तुुम इताअत गुज़ार (कहना मानने वाले) बन जाओ 
16 82 फिर इसके बाद भी अगर ये ज़ालिम मुँह फेर लें तो आपका काम सिर्फ़ वाजे़ह (साफ़-साफ़) पैग़ाम का पहुँचा देना है और बस 
16 83 ये लोग अल्लाह की नेअमत को पहचानते हैं और फिर इन्कार करते हैं और उनकी अकसरियत (ज़्यादातर) काफि़र है 
16 84 और क़यामत के दिन हम हर उम्मत में से एक गवाह लायेंगे और इसके बाद काफि़रांे को किसी तरह की इजाज़त न दी जायेगी और न उनका उज़्र (बहाना) ही सुना जायेगा 
16 85 और जब ज़ालेमीन (ज़्ाुल्म करने वाले) अज़ाब को देख लेंगे तो फिर इसमें कोई तख़्फ़ीफ़ (कमी) न होगी और न उन्हें किसी कि़स्म की मोहलत (वक़्त) दी जायेगी 
16 86 और जब मुशरेकीन (शिर्क करने वाले) अपने शुरका (जिनको अल्लाह के साथ शरीक क़रार देते थे) को देखेंगे तो कहेंगे परवरदिगार यही हमारे शुरका (जिनको अल्लाह के साथ शरीक क़रार देते थे) थे जिन्हें हम तुझे छोड़कर पुकारा करते थे फिर वह शुरका (जिनको अल्लाह के साथ शरीक क़रार देते थे) इस बात को उन्हीं की तरफ़ फेंक देंगे कि तुम लोग बिल्कुल झूठे हो 
16 87 और फिर उस दिन अल्लाह की बारगाह में इताअत (कहना मानने) की पेशकश करेंगे और जिन बातों का इफ़्तेरा (इल्ज़ाम लगाना) किया करते थे वह सब ग़ायब और बेकार हो जायेंगे
16 88 जिन लोगों ने कुफ्ऱ (इनकार) इखि़्तयार किया (अपनाया) और राहे ख़ु़दा में रूकावट पैदा की हमने उनके अज़ाब में मज़ीद (और ज़्यादा) इज़ाफ़ा (बढ़ावा) कर दिया कि ये लोग फ़साद (लड़ाई) बरपा किया करते थे 
16 89 और क़यामत के दिन हम हर गिरोह के खि़लाफ़ उन्हीं में का एक गवाह उठायेंगे और पैग़म्बर आपको उन सबका गवाह बनाकर ले आयेंगे और हमने आप पर किताब नाजि़ल की है जिसमें हर शै की वज़ाहत (खुली तफ़सील) मौजूद है और ये किताब इताअत गुज़ारों के लिए हिदायत, रहमत और बशारत (ख़ुशख़बरी देने वाली) है
16 90 बेशक अल्लाह अद्ल, एहसान और क़राबतदारों (क़रीबी रिश्तेदारों) के हुकू़क़ की अदायगी का हुक्म देता है और बदकारी (बुरे काम करना), नाशाएस्ता हरकात (जो शरीफ़ लोगों की हरकतें न हों) और ज़्ा़ुल्म से मना करता है कि शायद तुम इसी तरह नसीहत हासिल कर लो 
16 91 और जब कोई अहद करो तो अल्लाह के अहद को पूरा करो और अपनी क़समों को उनके इस्तेहकाम (मान लिये जाने) के बाद हर्गिज़ (बिल्कुल) मत तोड़ो जबकि तुम अल्लाह को कफ़ील और निगरान (निगरानी करने वाला) बना चुके हो कि यक़ीनन अल्लाह तुम्हारे अफ़आल (कामों) को ख़ू़ब जानता है 
16 92 और ख़बरदार उस औरत के मानिन्द न हो जाओ जिसने अपने धागे को मज़बूत कातने के बाद फिर उसे टुकड़े-टुकड़े कर डाला। क्या तुम अपने मुआहिदे (किये हुए अहद) को उस चालाकी का ज़रिया बनाते हो कि एक गिरोह दूसरे गिरोह से ज़्यादा फ़ायदा हासिल करे। अल्लाह तुम्हें इन्हीं बातों के ज़रिये आज़मा रहा है और यक़ीनन रोजे़ क़यामत (क़यामत के दिन) इस अम्र (हुक्म) की वज़ाहत कर देगा जिसमें तुम आपस में एख़तेलाफ़ (झगड़ा) कर रहे थे 
16 93 और अगर परवरदिगार चाहता तो जबरन (ज़बरदस्ती) तुम सबको एक क़ौम बना देता लेकिन वह इखि़्तयार देकर जिसे चाहता है गुमराही में छोड़ देता है और जिसे चाहता है मंजि़ले हिदायत तक पहुँचा देता है और तुमसे यक़ीनन उन आमाल के बारे में सवाल किया जायेगा जो तुम दुनिया मंे अंजाम दे रहे थे 
16 94 और ख़बरदार अपनी क़समों को फ़साद का ज़रिया न बनाओ कि नव मुस्लिम अफ़राद (नए-नए मुस्लिम बने लोगों) के क़दम साबित (सही राह पर) होने के बाद फिर उखड़ जायें और तुम्हें राहे ख़ु़दा से रोकने की पादाश में बड़े अज़ाब का मज़ा चखना पड़े और तुम्हारे लिए अज़ाबे अज़ीम (बड़ा अज़ाब) हो जाये
16 95 और जबरन अल्लाह के अहद के एवज़ (बदले) मामूली क़ीमत (माले दुनिया) न लो कि जो कुछ अल्लाह के पास है वही तुम्हारे हक़ में बेहतर है अगर तुम कुछ जानते बूझते हो 
16 96 जो कुछ तुम्हारे पास है वह सब ख़र्च हो जायेगा और जो कुछ अल्लाह के पास है वही बाक़ी रहने वाला है और हम यक़ीनन सब्र करने वालों को उनके आमाल से बेहतर जज़ा (सिला) अता करेंगे 
16 97 जो शख़्स भी नेक अमल करेगा वह मर्द हो या औरत बशर्त ये कि साहेबे ईमान हो हम उसे पाकीज़ा हयात (पाक जि़न्दगी) अता करेंगे और उन्हें उन आमाल से बेहतर जज़ा (सिला) देंगे जो वह जि़न्दगी में अंजाम दे रहे थे 
16 98 लेहाज़ा जब आप क़ु़रआन पढ़ें तो शैताने रजीम (मरदूद) के मुक़ाबले के लिए अल्लाह से पनाह तलब करें 
16 99 शैतान हरगिज़ उन लोगों पर ग़ल्बा (क़ाबू) नहीं पा सकता जो साहेबाने ईमान (ईमान वाले) हैं और जिनका अल्लाह पर तवक्कुल (यक़ीन) और एतमाद (भरोसा) है 
16 100 उसका ग़ल्बा (क़ाबू) उन लोगों पर होता है जो उसे सरपरस्त बनाते हैं और अल्लाह के बारे में शिर्क (ख़ुदा के साथ दूसरों को शरीक बनाना) करने वाले हैं 
16 101 और हम जब एक आयत की जगह पर दूसरी आयत तब्दील (बदलाव) करते हैं तो अगरचे खु़दा खू़ब जानता है कि वह क्या नाजि़ल कर रहा है लेकिन ये लोग यही कहते हैं कि मोहम्मद तुम इफ़्तेरा (इल्ज़ाम लगाना) करने वाले हो हालांकि उनकी अकसरीयत (ज़्यादातर) कुछ नहीं जानती है
16 102 तो आप कह दीजिए कि इस कु़रआन को रूह-अल-कु़द्स जिबरईल ने तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से हक़ के साथ नाजि़ल किया है ताकि साहेबाने ईमान को साबित व इस्तक़लाल अता करे और ये इताअत गुज़ारों (कहना मानने वालों) के लिए एक हिदायत और बशारत (ख़ुशख़बरी देने वाला) है 
16 103 और हम खू़ब जानते हैं कि ये मुशरेकीन (ख़ुदा के साथ दूसरों को शरीक बनाने वाले) ये कहते हैं कि उन्हें कोई इन्सान इस क़ु़रआन की तालीम दे रहा है। हालांकि जिसकी तरफ़ ये निस्बत देते हैं वह अजमी है और ये जु़बान अरबी वाजे़ह (साफ़-खुली हुई) व फ़सीह (मायनों में बहुत फैली हुई) है 
16 104 बेशक जो लोग अल्लाह की निशानियों पर ईमान नहीं लाते हैं ख़ु़दा उन्हें हिदायत भी नहीं देता है और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब भी है 
16 105 यक़ीनन ग़लत इल्ज़ाम लगाने वाले सिर्फ़ वही अफ़राद (लोग) होते हैं जो अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं रखते हैं और वही झूठे भी होते हैं 
16 106 जो शख़्स भी ईमान लाने के बाद कुफ्ऱ इखि़्तयार कर ले (इन्कार कर दे) - अलावा उसके कि जो कुफ्ऱ (इन्कार करने) पर मजबूर कर दिया जाये और उसका दिल ईमान की तरफ़ से मुतमईन (सुकून में) हो- और (जो) कुफ्ऱ (इन्कार करने) के लिए सीना कुशादा रखता हो उसके ऊपर खु़दा का ग़ज़ब है और उसके लिए बहुत बड़ा अज़ाब है 
16 107 यह इसलिए कि उन लोगों ने जि़न्दगानी दुनिया को आखि़रत पर मुक़द्दम (तरजीह देना) किया है और अल्लाह ज़ालिम क़ौमों को हर्गिज़ हिदायत नहीं देता है 
16 108 यही वह लोग हैं जिनके दिलों पर और आँख-कान पर कुफ्ऱ (इन्कार करने) की छाप लगा दी गई है और वह यही लोग हैं जो हक़ीक़तन (अस्ल में) हक़ाएक़ (सच्चाई) से ग़ाफि़ल (बेपरवाह, भूले हुए) हैं 
16 109 और यक़ीनन यही लोग आखि़रत में घाटा उठाने वालों में हैं 
16 110 इसके बाद तुम्हारा परवरदिगार उन लोगों के लिए जिन्होंने फि़त्नों (झगड़ों) में मुब्तिला (शामिल) होने के बाद हिजरत की है और फिर जेहाद भी किया है और सब्र से काम लिया है यक़ीनन तुम्हारा परवरदिगार बहुत ज़्यादा बख़्शने (माफ़ करने) वाला और मेहरबान है 
16 111 क़यामत का दिन वह दिन होगा जब हर इन्सान अपने नफ़्स (जान) की तरफ़ से दिफ़ा (बचाव) करने के लिए हाजि़र होगा और हर नफ़्स (जान) को उसके अमल का पूरा-पूरा बदला दिया जायेगा और किसी पर कोई ज़्ाु़ल्म नहीं किया जायेगा 
16 112 और अल्लाह ने उस क़रिये (बस्ती) की भी मिसाल बयान की है जो महफ़ूज़ (हिफ़ाज़त में) और मुतमईन (इत्मीनान में) थी और उसका रिज़्क़ हर तरफ़ से बाक़ायदा (पूरी तरह से) आ रहा था लेकिन उस क़रिये (बस्ती) के रहने वालों ने अल्लाह की नेअमतों का इन्कार किया तो खु़दा ने उन्हें भूख और ख़ौफ़ (डर) के लिबास (कपड़ों) का मज़ा चखा दिया सिर्फ़ उनके उन आमाल की बिना पर कि जो वह अंजाम दे रहे थे
16 113 और यक़ीनन उनके पास रसूल आया तो उन्होंने उसकी तकज़ीब (झुठलाया) कर दी तो फिर उन तक अज़ाब आ पहुँचा कि ये सब ज़्ाु़ल्म करने वाले थे 
16 114 लेहाज़ा अब तुम अल्लाह के दिये हुए रिज़्क़े हलाल व पाकीज़ा (पाक रिज़्क़) को खाओ और उसकी इबादत करने वाले हो तो उसकी नेअमतों का शुक्रिया भी अदा करते रहो 
16 115 उसने तुम्हारे लिए सिर्फ़ मुरदार (मरे हुए जानवर), ख़ू़न, सूअर का गोश्त और जो ग़ैरे खु़दा (ख़ुदा के अलावा दूसरे) के नाम पर जि़ब्हा किया जाये उसे हराम कर दिया है और इसमें भी अगर कोई शख़्स मुज़तर व मजबूर हो जाये और न बग़ावत करे न हद से तजाविज़ (आगे निकलना) करे तो ख़ु़दा बहुत बड़ा बख़्शने वाला और मेहरबान है 
16 116 और ख़बरदार जो तुम्हारी ज़बानें ग़लत बयानी से काम लेती है उसकी बिना पर ये न कहो कि ये हलाल है और ये हराम है कि इस तरह ख़ु़दा पर झूठा बोहतान बाँधने वाले हो जाओगे और जो अल्लाह पर झूठा बोहतान बाँधते हैं उनके लिए फ़लाह और कामयाबी नहीं है
16 117 ये दुनिया सिर्फ़ एक मुख़्तसर (थोड़ा सा) लज़्ज़त (मज़ा) है और इसके बाद उनके लिए बड़ा दर्दनाक अज़ाब है 
16 118 और हमने यहूदियों के लिए उन तमाम चीज़ों को हराम कर दिया है जिनका तज़किरा (जि़क्र) हम पहले कर चुके हैं और ये हमने जु़ल्म नहीं किया है बल्कि वह खु़द अपने नफ़्स (जान) पर ज़्ाु़ल्म करने वाले थे 
16 119 और इसके बाद तुम्हारा परवरदिगार उन लोगों के लिए जिन्होंने नादानी (नासमझी) में बुराइयाँ की हैं और इसके बाद तौबा भी कर ली है और अपने को सुधार भी लिया है तुम्हारा परवरदिगार इन बातों के बाद बहुत बड़ा बख़्शने (माफ़ करने) वाला और मेहरबान है 
16 120 बेशक इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) एक मुस्तकि़ल उम्मत और अल्लाह के इताअत गुज़ार (कहने पर अमल करने वाले) और बातिल से कतराकर (बचकर) चलने वाले थे और मुशरेकीन में से नहीं थे 
16 121 वह अल्लाह की नेअमतों के शुक्रगुज़ार (शुक्र करने वाले) थे खु़दा ने उन्हंे मुन्तख़ब (चुन लिया) किया था और सीधे रास्ते की हिदायत दी थी 
16 122 और हमने उन्हें दुनिया में भी नेकी अता की और आखि़रत में भी उनका शुमार (गिनती) नेक किरदार लोगों में होगा 
16 123 इसके बाद हमने आपकी तरफ़ वही (इलाही हुक्म) की कि इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) हनीफ़ के तरीके़ का इत्तेबा (पैरवी) करंे कि वह मुशरेकीन (ख़ुदा के साथ दूसरों को शरीक बनाने वालों) में से नहीं थे
16 124 हफ़्ते के दिन की ताज़ीम सिर्फ़ उन लोगांे के लिए क़रार दी गई थी जो इसके बारे में एख़तेलाफ़ (झगड़ा) कर रहे थे और आपका परवरदिगार रोज़े क़यामत उन तमाम बातों का फ़ैसला कर देगा जिनमें ये लोग एख़तेलाफ़ (झगड़ा) कर रहे हैं 
16 125 आप अपने रब के रास्ते की तरफ़ हिकमत और अच्छी नसीहत के ज़रिये दावत दे और उनसे इस तरीक़े से बहस करे जो बेहतरीन तरीक़ा है कि आपका परवरदिगार बेहतर जानता है कि कौन उसके रास्ते से बहक गया है और कौन लोग हिदायत पाने वाले हैं 
16 126 और अगर तुम उनके साथ सख़्ती भी करो तो उसी क़द्र जिस क़द्र उन्होंने तुम्हारे साथ सख़्ती की है और अगर सब्र करो तो सब्र बहरहाल सब्र करने वालों के लिए बेहतरीन है 
16 127 और आप सब्र ही करंे कि आपका सब्र भी अल्लाह ही की मदद से होगा और उनके हाल पर रंजीदा (ग़मज़दा) न हों और उनकी मक्कारियों की वजह से तंगदिली का भी शिकार न हों 
16 128 बेशक अल्लाह उन लोगों के साथ है जिन्हांेने तक़वा (ख़ुदा का ख़ौफ़) इखि़्तयार किया (अपनाया) है और जो नेक अमल अंजाम देने वाले हैं

No comments:

Post a Comment