Thursday, 16 April 2015

Sura-e-Qasas 28th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-क़सस
28   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
28 1 ता सीन मीम
28 2 ये किताबे मुबीन की आयतें हैं
28 3 हम आपको मूसा और फि़रऔन की सच्ची ख़बर सुना रहे हैं उन लोगों के लिए जो ईमान लाने वाले हैं
28 4 फि़रऔन ने रूए ज़मीन पर बलन्दी इखि़्तयार की और उसने अहले ज़मीन (ज़मीन वालों) को मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) हिस्सों में तक़सीम कर (बांट) दिया कि एक गिरोह ने दूसरे को बिल्कुल कमज़ोर बना दिया वह लड़कों को जि़बाह कर दिया करता था और औरतों को जि़न्दा रखा करता था। वह यक़ीनन मुफ़सेदीन (फ़साद करने वालों) में से था
28 5 और हम चाहते हैं कि जिन लोगों को ज़मीन में कमज़ोर बना दिया गया है उन पर एहसान करें और उन्हें लोगों का पेशवा बनायें और ज़मीन का वारिस क़रार दे दें
28 6 और उन्हीं को रूए ज़मीन का इक़तेदार (हाकेमीयत) दें और फि़रऔन व हामान और उनके लश्करों को उन्हीं कमज़ोरों के हाथों से वह मंज़र दिखलायें जिससे ये डर रहे हैं
28 7 और हमने मादरे मूसा (मूसा की माँ) की तरफ़ वही की कि अपने बच्चे को दूध पिलाओ और इसके बाद जब उसकी जि़न्दगी का ख़ौफ़ (डर) पैदा हो तो इसे दरिया में डाल दो और बिल्कुल डरो नहीं और परेशान न हो कि हम इसे तुम्हारी तरफ़ पलटा देने वाले और इसे मुरसलीन (पैग़म्बरों) में से क़रार देने वाले हैं
28 8 फिर फि़रऔन वालों ने इसे उठा लिया कि अंजामकार इनका दुश्मन और इनके लिए बाएसे रंज व अलम (ग़म की वजह) बने। बेशक फि़रऔन और हामान और उनके लश्कर वाले सब ग़लती पर थे
28 9 और फि़रऔन की ज़ौजा ने कहा कि ये तो हमारी और तुम्हारी आँखों की ठंडक है लेहाज़ा (इसलिये) इसे क़त्ल न करो कि शायद ये हमें फ़ायदा पहुंचाये और हम इसे अपना फ़रज़न्द (बेटा) बना लें और वह लोग कुछ नहीं समझ रहे थे
28 10 और मूसा की माँ का दिल बिल्कुल ख़ाली हो गया कि क़रीब था कि वह इस राज़ को फ़ाश कर देतीं अगर हम उनके दिल को मुतमईन (इत्मीनान व सुकून वाला) न बना देते ताकि वह ईमान लाने वालों में शामिल हो जायें
28 11 और उन्होंने अपनी बहन से कहा कि तुम भी उनका पीछा करो तो उन्होंने दूर से मूसा को देखा जबकि उन लोगों को इसका एहसास भी नहीं था
28 12 और हमने मूसा पर दूध पिलाने वालियों का दूध पहले ही से हराम कर दिया तो मूसा की बहन ने कहा कि क्या मैं तुम्हें ऐसे घर वालों का पता बताऊँ जो इसकी किफ़ालत कर सकें और इसके ख़ैर ख़्वाह भी हों
28 13 फिर हमने मूसा को उनकी माँ की तरफ़ पलटा दिया ताकि उनकी आँख ठण्डी हो जाये और वह परेशान न रहें और उन्हें मालूम हो जाये कि अल्लाह का वादा बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) सच्चा है अगर चे लोगों की अकसरियत (ज़्यादातर लोग) इसे नहीं जानती है
28 14 और जब मूसा जवानी की तवानाईयों को पहंुचे और तन्दुरूस्त हो गये तो हमने उन्हें इल्म और हिकमत अता कर दी और हम इसी तरह नेक (अच्छा) अमल वालों को जज़ा (सिला) दिया करते हैं
28 15 और मूसा शहर में उस वक़्त दाखि़ल हुए जब लोग ग़फ़लत (बेपरवाही) की नींद में थे तो उन्होंने दो आदमियों को लड़ते हुए देखा एक इनके शियों में से था और एक दुश्मनों में से तो जो इनके शियों में से था उसने दुश्मन के ज़्ाु़ल्म की फ़रियाद की तो मूसा ने उसे एक घूंसा मारकर उसकी जि़न्दगी का फ़ैसला कर दिया और कहा कि ये यक़ीनन शैतान के अमल से था और यक़ीनन शैतान दुश्मन और खुला हुआ गुमराह करने (बहकाने) वाला है
28 16 मूसा ने कहा कि परवरदिगार (पालने वाले) मैंने अपने नफ़्स (जान) के लिए मुसीबत मोल ले ली लेहाज़ा (इसलिये) मुझे माॅफ़ कर दे तो परवरदिगार (पालने वाले) ने माॅफ़ कर दिया कि वह बहुत बख़्शने (माफ़ करने) वाला और मेहरबान है
28 17 मूसा ने कहा कि परवरदिगार (पालने वाले) तूने मेरी मदद की है लेहाज़ा (इसलिये) मैं कभी मुजरिमों (जुर्म करने वालों) का साथी नहीं बनूँगा
28 18 फिर सुबह के वक़्त मूसा शहर में दाखि़ल हुए तो ख़ौफ़ज़दा (डरा हुआ) और हालात की निगरानी करते हुए कि अचानक देखा कि जिसने कल मदद के लिए पुकारा था वह फिर फ़रियाद कर रहा है मूसा ने कहा कि यक़ीनन तू खुला हुआ गुमराह है
28 19 फिर जब मूसा ने चाहा कि उस पर हमलावर हों जो दोनों का दुश्मन है तो उसने कहा कि मूसा तुम उसी तरह मुझे क़त्ल करना चाहते हो जिस तरह तुमने कल एक बेगुनाह को क़त्ल किया है। तुम सिर्फ़ रूए ज़मीन में सरकश (ज़बरदस्ती करने वाला) हाकिम बनकर रहना चाहते हो और ये नहीं चाहते हो कि तुम्हारा शुमार (गिनती) इस्लाह करने वालों में हो
28 20 और इधर आखि़रे शहर से एक शख़्स दौड़ता हुआ आया और उसने कहा कि मूसा शहर के बड़े लोग बाहमी मशविरा कर रहे हैं कि तुम्हें क़त्ल कर दें लेहाज़ा (इसलिये) तुम शहर से बाहर निकल जाओ मैं तुम्हारे लिए नसीहत (अच्छी बातें जो बताई जाएं) करने वालों में से हूँ
28 21 तो मूसा शहर से बाहर निकले ख़ौफ़ज़दा (डरे हुए) और दायें बायें देखते हुए और कहा कि परवरदिगार (पालने वाले) मुझे ज़ालिम क़ौम से महफ़ूज़ (हिफ़ाज़त के साथ) रखना
28 22 और जब मूसा ने मदयन का रूख़ किया तो कहा कि अनक़रीब (बहुत जल्द) परवरदिगार (पालने वाला) मुझे सीधे रास्ते की हिदायत कर देगा
28 23 और जब मदियन के चश्मे (पानी के कुएं) पर वारिद हुए (पहुंचते) तो लोगों की एक जमाअत को देखा जो जानवरों को पानी पिला रही थी और उनसे अलग दो औरतें थीं जो जानवरों को रोके खड़ी थीं। मूसा ने पूछा कि तुम लोगों का क्या मसला है उन दोनों ने कहा कि हम उस वक़्त तक पानी नहीं पिलाते हैं जब तक सारी क़ौम हट न जाये और हमारे बाबा एक ज़ईफ़ुल उम्र आदमी हैं
28 24 मूसा ने दोनों के जानवरों को पानी पिला दिया और फिर एक साये में आकर पनाह (मदद, सहारा) ले ली अर्ज़ की परवरदिगार (पालने वाले) यक़ीनन मैं उस ख़ैर का मोहताज हूँ जो तू मेरी तरफ़ भेज दे
28 25 इतने में दोनों में से एक लड़की कमाले शर्म व हया के साथ चलती हुई आयी और उसने कहा कि मेरे बाबा आपको बुला रहे हैं कि आप के पानी पिलाने की उजरत दे दें फिर जो मूसा उनके पास आये और अपना कि़स्सा बयान किया तो उन्होंने कहा कि डरो नहीं अब तुम ज़ालिम क़ौम से निजात (छुटकारा, रिहाई) पा गये
28 26 इन दोनों में से एक लड़की ने कहा कि बाबा आप इन्हें नौकर रख लीजिए कि आप जिसे भी नौकर रखना चाहें इनमें सबसे बेहतर (ज़्यादा अच्छा) वह होगा जो साहेबे कु़व्वत (ताक़त वाला) भी हो ओर अमानतदार भी हो
28 27 उन्होंने कहा कि मैं इन दोनों में से एक बेटी का अक़्द (निकाह) आपसे करना चाहता हूँ बशर्त ये कि आप आठ साल तक मेरी खि़दमत करें फिर अगर दस साल पूरे कर दें तो ये आपकी तरफ़ से होगा और मैं आपको कोई ज़हमत (परेशानी) नहीं देना चाहता हूँ इन्शा अल्लाह आप मुझे नेक (अच्छा) बन्दों में से पायेंगे
28 28 मूसा ने कहा कि ये मेरे और आपके दरम्यान (बीच में) का मुआहेदाह (वादा) है मैं जो मुद्दत भी पूरी कर दूँ मेरे ऊपर कोई जि़म्मेदारी नहीं होगी और मैं जो कुछ भी कह रहा हूँ अल्लाह उसका गवाह है
28 29 फिर जब मूसा मुद्दत को पूरा कर चुके और अपने अहल (अपने वालों) को लेकर चले तो तूर की तरफ़ से एक आग नज़र आयी उन्होंने अपने अहल (अपने वालों) से कहा कि तुम लोग ठहरो मैंने एक आग देखी है शायद इसमें से कोई ख़बर ले आऊँ या कोई चिंगारी ही ले आऊँ कि तुम लोग इससे तापने का काम ले सको
28 30 फिर जो इस आग के क़रीब आये तो वादी के दाहिने रूख़ से एक मुबारक मुक़ाम पर एक दरख़्त (पेड़) से आवाज़ आयी कि मूसा मैं आलमीन (तमाम जहानों) का पालने वाला ख़ुदा हूँ
28 31 और तुम अपने असा को ज़मीन पर डाल दो और जो मूसा ने देखा तो वह साँप की तरह लहरा रहा था ये देख कर मूसा पीछे हट गये और फिर मुड़कर भी न देखा तो फिर आवाज़ आयी कि मूसा आगे बढ़ो और डरो नहीं कि तुम बिल्कुल मामून (अम्न के साथ) व महफ़ूज़ (हिफ़ाज़त के साथ) हो
28 32 ज़रा अपने हाथ को गिरेबान में दाखि़ल करो वह बग़ैर किसी बीमारी के सफ़ेद और चमकदार बनकर बरामद होगा और ख़ौफ़ (डर) से अपने बाजु़ओं को अपनी तरफ़ समेट लो। तुम्हारे लिए परवरदिगार (पालने वाले) की तरफ़ से फि़रऔन और उसकी क़ौम के सरदारों की तरफ़ ये दो दलीलें हैं कि ये लोग सब फ़ासिक़ (झूठा, गुनहगार) और बदकार (बुरा काम करने वाले) हैं
28 33 मूसा ने कहा कि परवरदिगार (पालने वाले) मैंने उनके आदमी को मार डाला है तो मुझे ख़ौफ़ (डर) है कि ये मुझे क़त्ल कर देंगे और कारे तब्लीग़ (तब्लीग़ का काम) रूक जायेगा
28 34 और मेरे भाई हारून मुझ से ज़्यादा फ़सीह ज़बान के मालिक हैं लेहाज़ा (इसलिये) उन्हें मेरे साथ मददगार बना दे जो मेरी तसदीक़ कर सकंे कि मैं डरता हूँ कि कहीं ये लोग मेरी तकज़ीब (झुठलाना) न कर दें
28 35 इरशाद हुआ कि हम तुम्हारे बाज़ुओं को तुम्हारे भाई से मज़बूत कर देंगे और तुम्हारे लिए ऐसा ग़ल्बा देंगे कि ये लोग तुम तक पहंुच ही न सकेंगे और हमारी निशानियों के सहारे तुम और तुम्हारे पैरोकार ही ग़ालिब रहेंगे
28 36 फिर जब मूसा इनके पास हमारी खुली हुई निशानियां लेकर आये तो इन लोगों ने कह दिया कि ये तो सिर्फ़ एक गढ़ा हुआ जादू है और हमने अपने गुजि़श्ता (पहले वाले) बुज़ुर्गों से इस तरह की कोई बात नहीं सुनी है
28 37 और मूसा ने कहा कि मेरा परवरदिगार (पालने वाला) बेहतर (ज़्यादा अच्छी तरह) जानता है कि कौन उसकी तरफ़ से हिदायत लेकर आया है और किसके लिए आखि़रत का घर है यक़ीनन ज़ालेमीन (ज़्ाुल्म करने वालों) के लिए फ़लाह (भलाई, कामयाबी) नहीं है
28 38 और फि़रऔन ने कहा कि मेरे ज़ामाए ममलेकत (मेरी ममलेकत के सरदारों)! मेरे इल्म में तुम्हारे लिए मेरे अलावा कोई ख़ुदा नहीं है लेहाज़ा (इसलिये) हामान! तुम मेरे लिए मिट्टी का पजावा (मिट्टी को आग पर पकाने के लिए) लगाओ और फिर एक कि़ला तैयार करो कि मैं इस पर चढ़कर मूसा के ख़ुदा की ख़बर ले आऊँ और मेरा ख़्याल तो यही है कि मूसा झूठे हैं
28 39 और फि़रऔन और उसके लश्कर ने नाहक़ गु़रूर से काम लिया और ये ख़्याल कर लिया कि वह पलटाकर हमारी बारगाह में नहीं लाये जायेंगे
28 40 तो हमने फि़रऔन और उसके लश्करों को अपनी गिरफ़्त (पकड़) में ले लिया और सबको दरिया में डाल दिया तो देखो कि ज़ालेमीन (ज़्ाुल्म करने वालों) का अंजाम कैसा होता है
28 41 और हमने उन लोगों को जहन्नम की तरफ़ दावत देने वाला पेशवा क़रार दे दिया है और क़यामत के दिन उनकी कोई मदद नहीं की जायेगी
28 42 और दुनिया में भी हमने उनके पीछे लाॅनत को लगा दिया है और क़यामत के दिन भी इनका शुमार (गिनती) उन लोगों में होगा जिनके चेहरे बिगाड़ दिये जायेंगे
28 43 और हमने पहली नस्लों को हलाक (बरबाद, ख़त्म) कर देने के बाद मूसा को किताब अता की जो लोगों के लिए बसीरत (अक़्ल के साथ समझने) का सामान और हिदायत व रहमत है कि शायद इसी तरह ये लोग नसीहत (अच्छी बातें जो बताई जाएं) हासिल कर लें
28 44 और आप उस वक़्त तूर के मग़रिबी (पश्चिमी) रूख़ पर न थे जब हमने मूसा की तरफ़ अपना हुक्म भेजा और आप इस वाकि़ये के हाजि़रीन (हाजि़र रहने वाले लोगों) में से भी नहीं थे
28 45 लेकिन हमने बहुत सी क़ौमों को पैदा किया फिर उन पर एक तवील (बहुत लम्बा) ज़माना गुज़र गया और आप तो अहले मदयन (मदयन वालों) में भी मुक़ीम (रहने वाले) नहीं थे कि उन्हें हमारी आयतें पढ़कर सुनाते लेकिन हम रसूल बनाने वाले तो थे
28 46 और आप तूर के किसी जानिब (तरफ़) उस वक़्त नहीं थे जब हमने मूसा को आवाज़ दी लेकिन आपके परवरदिगार (पालने वाले) की रहमत है कि आप उस क़ौम को डरायें जिसकी तरफ़ आपसे पहले कोई पैग़म्बर नहीं आया है कि शायद वह इस तरह इबरत (ख़ौफ़ के साथ सबक़) और नसीहत (अच्छी बातें जो बताई जाएं) हासिल कर लें
28 47 और अगर ऐसा न होता कि जब इन पर गुजि़श्ता आमाल (कामों) की बिना पर (वजह से) कोई मुसीबत नाजि़ल होती तो यही कहते कि परवरदिगार (पालने वाले) तूने हमारी तरफ़ कोई रसूल क्यों नहीं भेजा है कि हम तेरी निशानियों की पैरवी करते और साहेबाने ईमान में शामिल हो जाते
28 48 फिर इसके बाद जब हमारी तरफ़ से हक़ आ गया तो कहने लगे कि इन्हें वह सब क्यों नहीं दिया गया है जो मूसा को दिया गया था तो क्या इन लोगों ने इससे पहले मूसा का इंकार नहीं किया और अब तो कहते हैं कि तौरैत और कु़रआन जादू है जो एक दूसरे की ताईद करते हैं और हम दोनों ही का इंकार करने वाले हैं
28 49 तो आप कह दीजिए कि अच्छा तुम परवरदिगार (पालने वाले) की तरफ़ से कोई किताब ले आओ जो दोनों से ज़्यादा सही हो और मैं उसका इत्तेबा (पैरवी) कर लूँ अगर तुम अपनी बात में सच्चे हो
28 50 फिर अगर कु़बूल न करें तो समझ लीजिए कि ये सिर्फ़ अपनी ख़्वाहिशात (दुनियावी तमन्नाओं) का इत्तेबा (पैरवी) करने वाले हैं और इससे ज़्यादा गुमराह कौन है जो ख़ुदाई हिदायत के बग़ैर अपनी ख़्वाहिशात (दुनियावी तमन्नाओं) का इत्तेबा (पैरवी) कर ले जबकि अल्लाह ज़ालिम क़ौम की हिदायत करने वाला नहीं है
28 51 और हमने मुसलसल (लगातार) उन लोगों तक अपनी बातें पहुंचायी कि शायद इसी तरह नसीहत (अच्छी बातें जो बताई जाएं)  हासिल कर लें
28 52 जिन लोगों को हमने इससे पहले किताब दी है वह इस कु़रआन पर ईमान रखते हैं
28 53 और जब उनके सामने इसकी तिलावत की जाती है तो कहते हैं कि हम ईमान ले आये ये हमारे रब की तरफ़ से बरहक़ (हक़ पर) है और हम तो पहले ही से तसलीम किये हुए थे
28 54 यही वह लोग हैं जिनको दोहरी जज़ा (सिला) दी जायेगी कि उन्होंने सब्र किया है और यह नेकियों के ज़रिये बुराईयों को दफ़ा (दूर) करते हैं और हमने जो रिज़्क़ दिया है उसमें से ख़र्च करते हैं
28 55 और जब लग़ो (बेहूदा) बात सुनते हैं तो किनारा कशी इखि़्तयार करते हैं और कहते हैं कि हमारे लिए हमारे आमाल (कामों) हैं और तुम्हारे लिए तुम्हारे आमाल (काम) हैं तुम पर हमारा सलाम कि हम जाहिलों की सोहबत पसन्द नहीं करते हैं
28 56 पैग़म्बर बेशक आप जिसे चाहें उसे हिदायत नहीं दे सकते हैं बल्कि अल्लाह जिसे चाहता है हिदायत दे देता है और वह उन लोगों से खू़ब बाख़बर है जो हिदायत पाने वाले हैं 
28 57 और ये कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले)  कहते हैं कि हम आपके साथ हक़ की पैरवी करेंगे तो अपनी ज़मीन से उचक लिये जायेंगे...........तो क्या हमने उन्हें एक महफ़ूज़ (हिफ़ाज़त के साथ) हरम पर क़ब्ज़ा नहीं दिया है जिसकी तरफ़ हर शै के फल हमारी दी हुई रोज़ी की बिना पर चले आ रहे हैं लेकिन उनकी अकसरियत (ज़्यादातर लोग) समझती ही नहीं है
28 58 और हमने कितनी ही बस्तियों को उनकी मईशत (रोज़ी) के गु़रूर की बिना पर हलाक (बरबाद, ख़त्म)  कर दिया अब ये उनके मकानात है जो इनके बाद फिर आबाद न हो सके मगर बहुत कम और दर हक़ीक़त हम ही हर चीज़ के वारिस और मालिक हैं
28 59 और आपका परवरदिगार (पालने वाला) किसी बस्ती को हलाक (बरबाद, ख़त्म) करने वाला नहीं है जब तक कि उसके मरकज़ में कोई रसूल न भेज दे जो उनके सामने हमारी आयात की तिलावत करे और हम किसी बस्ती के तबाह करने वाले नहीं हैं मगर ये कि उसके रहने वाले ज़ालिम हों
28 60 और जो कुछ भी तुम्हें अता किया गया है ये चन्द (कुछ) रोज़ा लज़्ज़ते दुनिया (दुनियावी आराम, मज़ा) और ज़ीनते दुनिया (दुनियावी सजावट) है और जो कुछ भी ख़ुदा की बारगाह में है वह ख़ैर और बाक़ी रहने वाला है क्या तुम इतना भी नहीं समझते हो
28 61 क्या वह बन्दा जिससे हमने बेहतर (सबसे अच्छा)  वादा किया है और वह इसे पा भी लेगा उसके मानिन्द है जिसे हमने दुनिया में थोड़ी सी लज़्ज़त (आराम, मज़ा) दे दी है और फिर वह रोज़े क़यामत ख़ुदा की बारगाह में खींच कर हाजि़र किया जायेगा
28 62 जिस दिन ख़ुदा उन लोगों को आवाज़ देगा कि मेरे वह शोरकाअ (जिनको ख़ुदा के साथ तुम लोग शरीक करते थे) कहां हैं जिनकी शिरकत का तुम्हें ख़्याल था
28 63 तो जिनका शोरकाअ (जिनको ख़ुदा के साथ तुम लोग शरीक करते थे) पर अज़ाब साबित हो चुका होगा वह कहेंगे कि परवरदिगार (पालने वाले) ये हैं वह लोग जिनको हमने गुमराह किया है और इसी तरह गुमराह किया है जिस तरह हम ख़ु़द गुमराह हुए थे लेकिन अब इनसे बराअत (दूरी, बेज़ारी) चाहते हैं ये हमारी इबादत तो नहीं कर रहे थे
28 64 तो कहा जायेगा कि अच्छा अपने शोरकाअ (जिनको ख़ुदा के साथ तुम लोग शरीक करते थे) को पुकारो तो वह पुकारेंगे लेकिन कोई जवाब न पायेंगे बल्कि अज़ाब ही को देखेंगे तो काश ये दुनिया ही में हिदायत याफ़्ता (हिदायत पाए हुए) हो जाते
28 65 और जिस दिन ख़ुदा इनसे पुकार कर कहेगा कि तुमने हमारे रसूलों को क्या जवाब दिया था
28 66 तो उन पर सारी ख़बरें तारीक हो जायेंगी और वह आपस में एक दूसरे से सवाल भी न कर सकेंगे
28 67 लेकिन जिसने तौबा कर ली और ईमान ले आया और नेक (अच्छा) अमल किया वह यक़ीनन फ़लाह पाने वालों में शुमार (गिनती में शामिल) हो जायेगा
28 68 और आपका परवरदिगार (पालने वाला) जिसे चाहता है पैदा करता है और पसन्द करता है। इन लोगों को किसी का इन्तिख़ाब करने का कोई हक़ नहीं है। ख़ुदा इनके शिर्क (ख़ुदा के साथ दूसरों को शरीक करना) से पाक और बलन्द व बरतर है
28 69 और आपका परवरदिगार (पालने वाला) उन चीज़ों को भी जानता है जो ये अपने सीनों में छिपायें हुए हैं और उन्हें भी जानता है जिनका ये एलान व इज़्हार (ज़ाहिर) करते हैं
28 70 वह अल्लाह है जिसके अलावा कोई दूसरा ख़ुदा नहीं है और अव्वल (पहले) व आखि़र और दुनिया व आखि़रत में सारी हम्द (तारीफ़) उसी के लिए है उसी के लिए हुक्म है और उसी की तरफ़ तुम सबको वापस जाना पड़ेगा
28 71 आप कहिये कि तुम्हारा क्या ख़्याल है अगर ख़ुदा तुम्हारे लिए रात को क़यामत तक के लिए अबदी बना दे तो क्या उसके अलावा और कोई माबूद (इबादत किया गया, इबादत के क़ाबिल) है जो तुम्हारे लिए रोशनी को ले आ सके तो क्या तुम बात सुनते नहीं हो
28 72 और कहिये कि अगर वह दिन को क़यामत तक के लिए दायमी (ख़त्म न होने वाला) बना दे तो उसके अलावा कौन माबूद (इबादत किया गया, इबादत के क़ाबिल) है जो तुम्हारे लिए वह रात ले आयेगा जिसमें सुकून हासिल कर सको क्या तुम देखते नहीं हो
28 73 ये उसकी रहमत का एक हिस्सा है कि उसने तुम्हारे लिए रात और दिन दोनों बनाये हैं ताकि आराम भी कर सको और रिज़्क़ भी तलाश कर सको और शायद उसका शुक्रिया भी अदा कर सको
28 74 और क़यामत के दिन ख़ुदा उन्हें आवाज़ देगा कि मेरे वह शरीक (जिनको ख़ुदा के साथ तुम लोग शरीक करते थे) कहां हैं जिनकी शिरकत का तुम्हें ख़्याल था
28 75 और हम हर क़ौम में से एक गवाह निकाल कर लायेंगे और मुन्किरीन (इन्कार करने वालों) से कहेंगे कि तुम भी अपनी दलील ले आओ तब उन्हें मालूम होगा कि हक़ अल्लाह ही के लिए है और फिर वह जो इफि़्तरा परदाजियां (इल्ज़ाम लगाना) किया करते थे वह सब गुम हो जायेंगी
28 76 बेशक क़ारून मूसा की क़ौम में से था मगर उसने क़ौम पर जु़ल्म किया और हमने भी उसे इतने ख़ज़ाने दे दिये थे कि एक ताक़तवर जमाअत से भी इसकी कुंजियां नहीं उठ सकती थीं फिर जब उससे क़ौम ने कहा कि इस क़द्र न इतराओ कि ख़ुदा इतराने वालों को दोस्त नहीं रखता है
28 77 और जो कुछ ख़ुदा ने दिया है उससे आखि़रत के घर का इन्तिज़ाम करो और दुनिया में अपना हिस्सा भूल न जाओ और नेकी करो जिस तरह कि खु़़दा ने तुम्हारे साथ नेक (अच्छा) बरताव किया है और ज़मीन में फ़साद (लड़ाई-झगड़े) की कोशिश न करो कि अल्लाह फ़साद (लड़ाई-झगड़ा) करने वालों को दोस्त नहीं रखता है
28 78 क़ारून ने कहा कि मुझे ये सब कुछ मेरे इल्म की बिना (वजह) पर दिया गया है तो क्या उसे ये मालूम नहीं है कि अल्लाह ने उससे पहले बहुत सी नस्लों को हलाक (बरबाद, ख़त्म)  कर दिया है जो उससे ज़्यादा ताक़तवर और माल के एतबार से दौलतमंद थीं और ऐसे मुजरिमों (जुर्म करने वालों) से तो उनके गुनाहों के बारे में सवाल भी नहीं किया जाता है
28 79 फिर क़ारून अपनी क़ौम के सामने ज़ेब व ज़ीनत (आराइश, सजावट) के साथ बरामद हुआ तो जिन लोगों के दिल में जि़न्दगानी दुनिया की ख़्वाहिश थी उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि काश हमारे पास भी ये साज़ व सामान (ज़रूरियात का सामान) होता जो क़ारून को दिया गया है ये तो बड़े अज़ीम हिस्से का मालिक है
28 80 और जिन्हें इल्म दिया गया था उन्होंने कहा कि अफ़सोस तुम्हारे हाल पर। अल्लाह का सवाब साहेबाने ईमान व अमले सालेह के लिए इससे कहीं ज़्यादा बेहतर (ज़्यादा अच्छा)  है और वह सवाब सब्र करने वालों के अलावा किसी को नहीं दिया जाता है 
28 81 फिर हमने इसे और इसके घर बार को ज़मीन में धंसा दिया और न कोई गिरोह ख़ुदा के अलावा बचाने वाला पैदा हुआ और न वह खु़द अपना बचाव करने वाला था
28 82 और जिन लोगों ने कल इसकी जगह की तमन्ना की थी वह कहने लगे कि माज़ अल्लाहये तो ख़ुदा जिस बन्दे के लिए चाहता है उसके रिज़्क़ में वुसअत (फ़ैलाव) पैदा कर देता है और जिसके यहां चाहता है तंगी पैदा कर देता है और अगर उसने हम पर एहसान न कर दिया होता तो हमें भी धंसा दिया होता माज़ अल्लाह काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) के लिए वाक़ेअन (अस्ल में) फ़लाह (कामयाबी) नहीं है
28 83 ये दारे आखि़रत (आखि़रत का घर) वह है जिसे हम उन लोगों के लिए क़रार देते हैं जो ज़मीन में बलन्दी और फ़साद (लड़ाई-झगड़ा)  के तलबगार नहीं होते हैं और आकि़बत तो सिर्फ़ साहेबाने तक़्वा (ख़ुदा से डरने वाले लोगों) के लिए है
28 84 जो कोई नेकी करेगा उसे इससे बेहतर (ज़्यादा अच्छा) अज्र (सिला) मिलेगा और जो कोई बुराई करेगा तो बुराई करने वालों को उतनी ही सज़ा दी जायेगी जैसे आमाल (काम) वह करते रहे हैं
28 85 बेशक जिसने आप पर कु़रआन का फ़रीज़ा (फ़र्ज़) आयद (नाजि़ल, लाजि़म) किया है वह आपको आपकी मंजि़ल (आखि़री जगह) तक ज़रूर वापस पहुंचाएगा। आप कह दीजिए कि मेरा परवरदिगार (पालने वाला) बेहतर (ज़्यादा अच्छा) जानता है कि कौन हिदायत लेकर आया है और कौन खुली हुई गुमराही (भटकाव) में है
28 86 और आप तो इस बात के उम्मीदवार (उम्मीद करने वाले) नहीं थे कि आपकी तरफ़ किताब नाजि़ल की जाये ये तो रहमते परवरदिगार है लेहाज़ा (इसलिये) ख़बरदार आप काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) का साथ न दीजिएगा
28 87 और हर्गिज़ (किसी भी तरह) ये लोग आयात के नाजि़ल होने के बाद उनकी तब्लीग़ से आपको रोकने न पायें और आप अपने रब की तरफ़ दावत दीजिए और ख़बरदार मुशरेकीन में से न हो जाईये
28 88 और अल्लाह के साथ किसी दूसरे ख़ुदा को मत पुकारो कि उसके अलावा कोई माबूद (इबादत किया गया, इबादत के क़ाबिल) नहीं है। उसकी ज़ात के मासिवा (अलावा) हर शै हलाक (बरबाद, ख़त्म) होने वाली है और तुम सब उसी की बारगाह की तरफ़ पलटाये जाओगे

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