Saturday, 18 April 2015

Sura-e-Bayyanah 98th surah of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-बय्यनह
98   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
98 1 अहले किताब के कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) और दीगर मुशरेकीन (दूसरे शिर्क करने वाले) अपने कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने) से अलग होने वाले नहीं थे जब तक कि उनके पास खुली दलील न आ जाती 
98 2 अल्लाह की तरफ़ का नुमाईन्दा जो पाकीज़ा सहीफ़ों की तिलावत करे 
98 3 जिनमें क़ीमती और मज़बूत बातें लिखी हुई हैं 
98 4 और ये अहले किताब मुत्फ़र्रिक़ नहीं हुए मगर उस वक़्त जब इनके पास खुली हुई दलील आ गई 
98 5 और इन्हें सिर्फ़ इस बात का हुक्म दिया गया था कि ख़ुदा की इबादत करें और इस इबादत को उसी के लिए ख़ालिस रखें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात अदा करें और यही सच्चा और मुस्तहकम दीन है 
98 6 बेशक अहले किताब में जिन लोगों ने कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करना) इखि़्तयार किया है और दीगर (दूसरे) मुशरेकीन (ख़ुदा के साथ दूसरों को शरीक करने वाले) सब जहन्नम में हमेशा रहने वाले हैं और यही बदतरीन (सबसे बुरे) ख़लाएक़ हैं 
98 7 और बेशक जो लोग ईमान लाये हैं और उन्होंने नेक (अच्छे) आमाल (काम) किये हैं वह बेहतरीन (सबसे अच्छे) ख़लाएक़ हैं 
98 8 परवरदिगार (पालने वाले) के यहाँ उनकी जज़ा (सिला) वह बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरें जारी होंगी वह उन्हीं में हमेशा रहने वाले हैं ख़ुदा उनसे राज़ी है और वह उससे राज़ी हैं और ये सब उसके लिए है जिसके दिल में ख़ौफ़े ख़ुदा (ख़ुदा का डर) है 

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