Thursday, 16 April 2015

Sura-e-al kahaf 18th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-अल-कहफ़
18   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
18 1 सारी हम्द उस ख़ुदा के लिए है जिसने अपने बन्दे पर किताब नाजि़ल की है और इसमें किसी तरह की कजी नहीं रखी है 
18 2 इसे बिल्कुल ठीक रखा है ताकि उसकी तरफ़ से आने वाले सख़्त अज़ाब से डराये और जो मोमिनीन नेक आमाल (अच्छे काम) करते हैं उन्हें बशारत (ख़ुशख़बरी) दे दो कि उनके लिए बेहतरीन (सबसे अच्छा) अज्र (सिला) है 
18 3 वह इसमें हमेशा रहने वाले हैं 
18 4 और फिर उन लोगों को अज़ाबे इलाही से डरायें जो ये कहते हैं कि अल्लाह ने किसी को अपना फ़रज़न्द बनाया है 
18 5 इस सिलसिले में न उन्हें कोई इल्म है और न उनके बाप दादा को। ये बहुत बड़ी बात है जो उनके मुँह से निकल रही है कि ये झूठ के अलावा कोई बात ही नहीं करते 
18 6 तो क्या आप शिद्दते अफ़सोस से उनके पीछे अपनी जान ख़तरे में डाल देंगे अगर ये लोग इस बात पर ईमान न लाये 
18 7 बेशक हमने रूए ज़मीन की हर चीज़ को ज़मीन की ज़ीनत (सजाने का सामान, रौनक़) क़रार दे दिया है ताकि उन लोगों का इम्तिहान लें कि उनमें अमल के एतबार से सबसे बेहतर (अच्छे) कौन है 
18 8 और हम आखि़रकार रूए ज़मीन की हर चीज़ को चटियल मैदान बना देने वाले हैं 
18 9 क्या तुम्हारा ख़्याल ये है कि कहफ़ व रक़ीम (खोह) वाले हमारी निशानियों में से कोई ताज्जुब ख़ेज़ (हैरान कर देने वाली) निशानी थे
18 10 जबकि कुछ जवानों ने ग़ार में पनाह ली और ये दुआ की कि परवरदिगार हमको अपनी रहमत अता फ़रमा और हमारे लिए हमारे काम में कामयाबी का सामान फ़राहम (इनायत) कर दे 
18 11 तो हमने ग़ार में उनके कानों पर चन्द बरसों के लिए पर्दे डाल दिये 
18 12 फिर हमने उन्हें दोबारा उठाया ताकि ये देखें कि दोनों गिरोहों में अपने ठहरने की मुद्दत किसे ज़्यादा मालूम है
18 13 हम आपको उनके वाके़आत बिल्कुल सच्चे-सच्चे बता रहे हैं। ये चन्द जवान थे जो अपने परवरदिगार पर ईमान लाये थे और हमने उनकी हिदायत में इज़ाफ़ा कर दिया था
18 14 और उनके दिलों को मुतमईन कर दिया था उस वक़्त जब ये सब ये कहकर उठे कि हमारा परवरदिगार आसमानों और ज़मीन का मालिक है हम उसके अलावा किसी ख़ुदा को न पुकारेंगे कि इस तरह हम बे अक़्ली की बात के क़ायल हो जायेंगे 
18 15 ये हमारी क़ौम है जिसने ख़ुदा को छोड़कर दूसरे ख़ुदा इखि़्तयार कर लिए हैं। आखि़र ये लोग उन ख़ुदाओं के लिए कोई वाजे़ह दलील क्यों नहीं लाते--फिर उससे ज़्यादा ज़ालिम कौन है जो परवरदिगार पर इफ़्तेरा (इल्ज़ाम लगाना) करे और उसके खि़लाफ़ इल्ज़ाम लगाये
18 16 और जब तुमने उनसे और ख़ुदा के अलावा उनके तमाम माबूदों (जिनकी वह इबादत करते थे) से अलैहदगी (ख़ुद को अलग करना) इखि़्तयार कर  ली (अपना ली) है तो अब ग़ार में पनाह ले लो तुम्हारा परवरदिगार तुम्हारे लिए अपनी रहमत का दामन फैला देगा और अपने हुक्म से आसानियों का सामान फ़राहिम (का इन्तेज़ाम) कर देगा 
18 17 और तुम देखोगे कि आफ़ताब जब तुलूअ करता (निकलता) है तो उनके ग़ार से दाहिनी तरफ़ कतराकर निकल जाता है और जब डूबता है तो बायीं तरफ़ झुक कर निकल जाता है और वह वसी मुक़ाम पर आराम कर रहे हैं। ये अल्लाह की निशानियों में से एक निशानी है जिसको ख़ुदा हिदायत दे दे वही हिदायत याफ़्ता (हिदायत पाया हुआ) है और जिसको वह गुमराही में छोड़ दे उसके लिए कोई राहनुमा (राह दिखाने वाला) और सरपरस्त (मददगार) न पाओगे 
18 18 और तुम्हारा ख़्याल है कि वह जाग रहे हैं हालांकि वह आलमे ख़्वाब (गहरी नींद में सोई हालत) में है और हम उन्हें दाहिनें बायें करवट भी बदलवा रहे हैं और उनका कुत्ता डेयोढ़ी पर दोनों हाथ फैलाये डटा हुआ है अगर तुम उनकी कैफि़यत (हालत) पर मतला हो जाते तो उलटे पाँव भाग निकलते और तुम्हारे दिल मंे दहशत (ज़बरदस्त डर) समा जाती 
18 19 और इसी तरह हमने उन्हें दोबारा जि़न्दा किया ताकि आपस में एक दूसरे से सवाल करें तो एक ने कहा कि तुमने कितनी मुद्दत तोक़फ़ किया (ठहरे) है तो सबने कहा कि एक दिन या इसका एक हिस्सा, उन लोगांे ने कहा कि तुम्हारा परवरदिगार इस मुद्दत से बेहतर (ज़्यादा अच्छी तरह से) बाख़बर (ख़बर रखने वाला, जानने वाला) है अब तुम अपने सिक्के देकर किसी को शहर की तरफ़ भेजो वह देखे कि कौन सा खाना बेहतर (ज़्यादा अच्छा) है और फिर तुम्हारे लिए रिज़्क़ का सामान फ़राहिम (पेश) करे और वह आहिस्ता (धीमे से) जाये और किसी को तुम्हारे बारे में ख़बर न होने पाये 
18 20 ये अगर तुम्हारे बारे में बाख़बर (ख़बर रखने वाले, जानने वाले) हो गये तो तुम्हें संगसार (पत्थर मार-मार कर मार डाले) कर देंगे या तुम्हें भी अपने मज़हब की तरफ़ पलटा लेंगे और इस तरह तुम कभी निजात न पा सकोगे 
18 21 और इस तरह हमने क़ौम को उनके हालात पर मुतलाअ (बाख़बर) कर दिया ताकि उन्हें मालूम हो जाये कि अल्लाह का वादा सच्चा है और क़यामत में किसी तरह का शुबाह नहीं है जब ये लोग आपस में उनके बारे में झगड़ा कर रहे थे और ये तय कर रहे थे कि उनके ग़ार पर एक इमारत बना दी जाये। ख़ुदा उनके बारे में बेहतर (अच्छी तरह से) जानता है और जो लोग दूसरों की राय पर ग़ालिब आये उन्होंने कहा कि हम इन पर मस्जिद बनायेंगे
18 22 अनक़रीब (बहुत जल्द) ये लोग कहेंगे कि वह तीन थे और चैथा उनका कुत्ता था बौर बाॅज़ (कुछ) कहेंगे कि पाँच थे और छठा उनका कुत्ता था और ये सब सिर्फ़ ग़ैबी अंदाजे़ होंगे और बाॅज़ (कुछ) तो ये भी कहेंगे कि वह सात थे और आठवां उनका कुत्ता था। आप कह दीजिए कि ख़ुदा इनकी तादाद को बेहतर (अच्छी तरह से) जानता है और चन्द अफ़राद (लोगों) के अलावा कोई नहीं जानता है लेहाज़ा आप उनसे ज़ाहिरी गुफ़्तगू (बातों) के अलावा वाके़अन कोई बहस न करें और उनके बारे में किसी से दरयाफ़्त (मालूम) भी न करें 
18 23 और किसी शै के लिए ये न कहें कि मैं ये काम कल करने वाला हूँ 
18 24 मगर जब तक ख़ुदा न चाहे और भूल जाएं तो ख़ुदा को याद करें और ये कहें कि अनक़रीब (बहुत जल्द) मेरा ख़ुदा मुझे वाके़ईयत (सच्चाई) से क़रीबतर अम्र (हुक्मे इलाही) की हिदायत कर देगा
18 25 और ये लोग अपने ग़ार में तीन सौ बरस रहे और इस पर नौ दिन का ईज़ाफ़ा (बढ़ोतरी) भी हो गया 
18 26 आप कह दीजिए कि अल्लाह उनकी मुद्दते क़याम (क़याम करने, ठहरने के वक़्त) से ज़्यादा बाख़बर (ख़बर रखने वाला, जानने वाला) है इसी के लिए आसमान व ज़मीन का सारा गै़ब है और उसकी समाअत (सुनने की ताक़त) व बसारत (देखने की ताक़त) का क्या कहना उन लोगों के लिए उसके अलावा कोई सरपरस्त नहीं है और न वह किसी को अपने हुक्म में शरीक करता है 
18 27 और जो कुछ किताबे परवरदिगार से वही (हुक्मे इलाही) के ज़रिये आप तक पहुँचाया गया है आप उसी की तिलावत करें कि कोई उसके कलेमात (बातों) को बदलने वाला नहीं है और उसको छोड़कर कोई दूसरा ठिकाना भी नहीं है 
18 28 और अपने नफ़्स (जान) को उन लोगों के साथ सब्र पर आमादा करो जो सुबह व शाम अपने परवरदिगार को पुकारते हैं और उसी की मजऱ्ी के तलबगार (चाहने, मांगने वाले) हैं और ख़बरदार तुम्हारी निगाहें उनकी तरफ़ से फिर न जायें कि जि़न्दगानी दुनिया की ज़ीनत के तलबगार (चाहने, मांगने वाले) बन जाओ और हर्गिज़ उसकी इताअत (कहने पर अमल) न करना जिसके क़ल्ब (दिल) को हमने अपनी याद से महरूम (ख़ाली) कर दिया है और वह अपने ख़्वाहिशात का पैरोकार (पैरवी करने वाला) है और उसका काम सरासर ज़्यादती करना है 
18 29 और कह दो कि हक़ तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से है अब जिसका जी चाहे ईमान ले आये और जिसका जी चाहे काफि़र (इन्कार करने वाला) हो जाये हमने यक़ीनन काफ़ेरीन (इन्कार करने वालों) के लिए उस आग का इन्तिज़ाम कर दिया है जिसके परदे चारों तरफ़ से घेरे होंगे और वह फ़रियाद भी करेंगे तो पिघले हुए ताँबे की तरह के खौलते हुए पानी से उनकी फ़रियादरसी (फ़रियाद पूरी) की जायेगी जो चेहरों को भून डालेगा ये बदतरीन (सबसे बुरा) मशरूब (पिघली हुई पीने की चीज़) है और जहन्नम बदतरीन (सबसे बुरा) ठिकाना है 
18 30 यक़ीनन जो लोग ईमान ले आये और उन्होंने नेक आमाल किये हम उन लोगों के अज्र (सिले) को ज़ाया (बरबाद) नहीं करते हैं जो अच्छे आमाल अंजाम देते हैं
18 31 उनके लिए वह दायमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) जन्नतें हैं जिनके नीचे नहरें जारी होंगी उन्हें सोने के कंगन पहनाये जायेंगे और ये बारीक (महीन) और दबीज़ रेशम के सब्ज़ (हरे रंग के) लिबास (कपड़ों) में मलबूस (पहने हुए) और तख़्तों पर तकिये लगाये बैठे होंगे यही उनके लिए बेहतरीन (सबसे अच्छा) सवाब और हसीन तरीन मंजि़ल है 
18 32 और उन कुफ़्फ़ार (इन्कार करने वालों) के लिए उन दो इन्सानों की मिसाल बयान कर दीजिए जिनमें से एक के लिए हमने अंगूर के दो बाग़ क़रार दिये और उन्हें खजूरों से घेर दिया और उनके दरम्यान (बीच में) ज़राअत भी क़रार दे दी 
18 33 फिर दोनों बाग़ात ने खू़ब फल दिये और किसी तरह की कमी नहीं की और हमने उनके दरम्यान (बीच में) नहर भी जारी कर दी 
18 34 और उसके पास फल भी थे तो उसने अपने ग़रीब साथी से बात करते हुए कहा कि मैं तुमसे माल के एतबार (हिसाब) से बढ़ा हुआ हूँ और अफ़राद (लोगों) के एतबार (हिसाब) से भी ज़्यादा बा इज़्ज़त (इज़्ज़त वाला) हूँ 
18 35 वह इसी आलम में अपने नफ़्स (जान) पर ज़्ाुल्म कर रहा था अपने बाग़ में दाखि़ल हुआ और कहने लगा कि मैं तो ख़्याल भी नहीं करता हूँ कि ये कभी तबाह भी हो सकता है 
18 36 और मेरा गुमान (ख़याल) भी नहीं है कि कभी क़यामत क़ायम (बरपा) होगी और फिर अगर मैं परवरदिगार की बारगाह में वापस भी गया तो इससे बेहतर (ज़्यादा अच्छी) मंजि़ल हासिल कर लूँगा 
18 37 इसके साथी ने गुफ़्तगू (बात) करते हुए कहा कि तूने उसका इन्कार किया है जिसने तुझे ख़ाक (मिट्टी) से पैदा किया है फिर नुत्फ़े से गुज़ारा है और फिर एक बाक़ायदा (पूरी तरह से) इन्सान बना दिया है 
18 38 लेकिन मेरा ईमान ये है कि अल्लाह मेरा रब है और मैं किसी को उसका शरीक नहीं बना सकता हूँ 
18 39 और ऐसा क्यों न हुआ कि जब तू अपने बाग़ में दाखि़ल होता तो कहता माशाअल्लाह उसके अलावा किसी के पास कोई क़ू़व्वत (ताक़त) नहीं है अगर तू ये देख रहा है कि मैं माल और औलाद के एतबार (हिसाब) से तुझसे कमतर हूँ 
18 40 तो उम्मीदवार हूँ कि मेरा परवरदिगार मुझे भी तेरे बाग़ात से बेहतर (ज़्यादा अच्छे) बाग़ात ईनायत (अता) कर दे और उन बाग़ात पर आसमान से ऐसी आफ़त नाजि़ल कर दे जो सबको ख़ाक कर दे और चटियल (सफ़ाचट) मैदान बना दे
18 41 या उन बाग़ात का पानी ख़ुश्क (सूख कर ख़त्म) हो जाये और तू उसके तलब (मांग) करने पर भी क़ादिर (क़ुदरत रखने वाला) न हो
18 42 और फिर उसके बाग़ के फल आफ़त में घेर दिये गये तो वह उन अख़राजात पर हाथ मलने लगा जो उसने बाग़ की तैयारी पर सर्फ़ किये थे जबकि बाग़ अपनी शाखों के बल उल्टा पड़ा हुआ था और वह कह रहा था कि ऐ काश मैं किसी को अपने परवरदिगार का शरीक न बनाता 
18 43 और अब उसके पास वह गिरोह भी नहीं था जो ख़ुदा के मुक़ाबले में उसकी मदद करता और वह बदला भी नहीं ले सकता था
18 44 उस वक़्त साबित हुआ कि क़यामत की नुसरत (मदद) सिर्फ़ ख़ुदाए बरहक़ (सच्चे ख़ुदा) के लिए है वही बेहतरीन (सबसे अच्छा) सवाब देने वाला है और वही अंजाम बा ख़ैर करने वाला है
18 45 और उन्हें जि़न्दगानी दुनिया की मिसाल उस पानी की बताईये जिसे हमने आसमान से नाजि़ल किया तो ज़मीन की रवैदगी (उगाने की ताक़त) उससे मिल जुल गई फिर आखि़र में वह रेज़ा-रेज़ा हो गई जिसे हवायें उड़ा देती हैं और अल्लाह हर शै पर कु़दरत रखने वाला है
18 46 माल और औलाद जि़न्दगानी दुनिया की ज़ीनत हैं और बाक़ी रह जाने वाली नेकियाँ परवरदिगार के नज़दीक सवाब और उम्मीद दोनों के एतबार (हिसाब) से बेहतर (अच्छी तरह से) हैं
18 47 और क़यामत का दिन वह होगा जब हम पहाड़ों को हरकत में लायेंगे और तुम ज़मीन को बिल्कुल खुला हुआ देखोगे और हम सबको इस तरह जमा करेंगे कि किसी एक को भी नहीं छोड़ेंगे
18 48 और सब तुम्हारे परवरदिगार के सामने सफ़-बस्ता (लाइन बनाकर) पेश किये जायेंगे और इरशाद होगा (कहा जाएगा) कि तुम आज उसी तरह आये हो जिस तरह हमने पहली मर्तबा तुम्हें पैदा किया था लेकिन तुम्हारा ख़्याल था कि हम तुम्हारे लिए कोई वादागाह (वादा पूरा करने की जगह) नहीं क़रार देंगे 
18 49 और जब नामाए-आमाल (किये गये कामों का हिसाब-किताब) सामने रखा जायेगा तो देखोगे कि मुजरेमीन (जुर्म करने वाले) उसके मन्दर्जात (अन्दर लिखे हुए) को देखकर ख़ौफ़ज़दा (डरे हुए) होंगे और कहेंगे कि हाय अफ़सोस इस किताब ने तो छोटा बड़ा कुछ नहीं छोड़ा है और सबको जमा कर लिया है और सब अपने आमाल को बिल्कुल हाजि़र पायेंगे और तुम्हारा परवरदिगार किसी एक पर भी ज़्ाुल्म नहीं करता है
18 50 और जब हमने मलायका (फ़रिश्ते) से कहा कि आदम को सजदा करो तो इबलीस (शैतान) के अलावा सबने सजदा कर लिया कि वह जिन्नात में से था फिर तो उसने हुक्मे ख़ुदा से सरताबी (फिरना, निकल भागना) की तो क्या तुम लोग मुझे छोड़कर शैतान और उसकी औलाद को अपना सरपरस्त बना रहे हो जबकि वह सब तुम्हारे दुश्मन हैं ये तो ज़ालेमीन (ज़्ाुल्म करने वाले) के लिए बदतरीन (सबसे बुरा) बदल है
18 51 हमने उन शयातीन को न ज़मीन व आसमान की खि़ल्क़त (पैदा करने) का गवाह बनाया है और ख़ुद उन्हीं की खि़ल्क़त (पैदा करने) का और न हम ज़ालेमीन को अपना कू़व्वते बाजू़ (काम करने वाली ताक़त) और मददगार बना सकते हैं
18 52 और उस दिन ख़ुदा कहेगा कि मेरे उन शरीकों (जिनको ख़ुदा के साथ शरीक करते थे) को बुलाओ जिनकी शिर्कत (ख़ुदा के साथ शरीक होने) का तुम्हें ख़्याल था और वह पुकारेंगे लेकिन वह लोग जवाब भी नहीं देंगे और हमने तो उनके दरम्यान (बीच में) हलाकत (ख़त्म हो जाने) की मंजि़ल क़रार दे दी है 
18 53 और मुजरेमीन (जुर्म करने वाले) जब जहन्नम की आग को देखेंगे तो उन्हें ये ख़्याल पैदा होगा कि वह इसमें झोंके जाने वाले हैं और उस वक़्त (जहन्नम की) उस आग से बचने की कोई राह न पा सकेंगे 
18 54 और हमने इस कु़रआन में लोगों के लिए सारी मिसालें उलट-पलट कर बयान कर दी हैं और इन्सान तो सबसे ज़्यादा झगड़ा करने वाला है 
18 55 और लोगों के लिए हिदायत के आ जाने के बाद कौन सी शै मानेअ (हायल, रूकावट) हो गई है कि ये ईमान न लायें और अपने परवरदिगार से अस्तग़फ़ार (माफ़ी की दुआ) न करें मगर ये कि उन तक भी अगले लोगों का तरीक़ा आ जाये या उनके सामने से भी अज़ाब आ जाये 
18 56 और हम तो रसूलों को सिर्फ़ बशारत (ख़ुशख़बरी) देने वाला और अज़ाब से डराने वाला बनाकर भेजते हैं और कुफ़्फ़ार (कुफ्ऱ करने वाले) बातिल के ज़रिये झगड़ा करते हैं कि उसके ज़रिये हक़ को बर्बाद कर दें और उन्होंने हमारी निशानियों को और जिस बात से डराये गये थे सबको एक मज़ाक़ बना लिया है 
18 57 और उससे बड़ा ज़ालिम कौन होगा जिसे आयाते इलाही याद दिलाई जाये और फिर उससे आराज़ (रूगर्दानी, मुंह फेरना) करे और अपने साब्क़ा आमाल (पिछले कामों) को भूल जाये हमने उनके दिलों पर परदे डाल दिये हैं कि ये हक़ को (न) समझ सकें और उनके कानों में बहरापन है और अगर आप उन्हें हिदायत की तरफ़ बुलायेंगे भी तो ये हर्गिज़ हिदायत हासिल न करेंगे 
18 58 आपका परवरदिगार बड़ा बख़्शने वाला और साहेबे रहमत (रहम वाला) है वह अगर इनके आमाल का मवाखे़ज़ा (पकड़-धकड़) कर लेता तो फ़ौरन ही अज़ाब नाजि़ल कर देता लेकिन उसने उनके लिए एक वक़्त मुक़र्रर (तय) कर दिया है जिस वक़्त उसके अलावा ये कोई पनाह न पायेंगे 
18 59 और ये वह बस्तियाँ हैं जिन्हें हमने इनके ज़्ाुल्म की बिना पर हलाक (ख़त्म, बरबाद) कर दिया है और इनकी हलाकत (ख़ात्मे, बरबादी) का एक वक़्त मुक़र्रर (तय) कर दिया था
18 60 और उस वक़्त को याद करो जब मूसा ने अपने जवान से कहा कि मैं चलने से बाज़ न आऊँगा यहाँ तक कि दो दरियाओं के मिलने की जगह पर पहुँच जाऊँ या यूँ ही बरसों चलता रहूँ 
18 61 फिर जब दोनों मजमा अलबहरीन (दो दरियाओं के मिलने की जगह) तक पहुँच गये तो अपनी मछली छोड़ गये और उसने समुन्दर में सुरंग बनाकर अपना रास्ता निकाल लिया
18 62 फिर जब दोनों मजमा अलबहरीन (दो दरियाओं के मिलने की जगह) से आगे बढ़ गये तो मूसा ने अपने जवान सालेह से कहा कि अब हमारा खाना लाओ कि हमने इस सफ़र में बहुत थकान बर्दाश्त की है
18 63 उस जवान ने कहा कि क्या आपने ये देखा है कि जब हम पत्थर के पास ठहरे थे तो मैंने मछली वहीं छोड़ दी थी और शैतान ने इसके जि़क्र करने से भी ग़ाफि़ल (बे-परवा, भूला) कर दिया था और उसने दरिया में अजीब तरह से रास्ता बना लिया था 
18 64 मूसा ने कहा कि पस वही जगह है जिसे हम तलाश कर रहे थे फिर दोनों निशाने क़दम देखते हुए उलटे पाँव वापस हुए 
18 65 तो उस जगह पर हमारे बन्दों में से एक ऐसे बन्दे को पाया जिसे हमने अपनी तरफ़ से रहमत अता की थी और अपने इल्मे ख़ास में से एक ख़ास इल्म की तालीम दी थी 
18 66 मूसा ने उस बन्दे से कहा कि क्या मैं आपके साथ रह सकता हूँ कि आप मुझे उस इल्म में से कुछ तालीम करें जो रहनुमाई का इल्म आपको अता हुआ है
18 67 उस बन्दे ने कहा कि आप मेरे साथ सब्र न कर सकेंगे
18 68 और उस बात पर कैसे सब्र करेंगे जिसकी आपको इत्तेला (जानकारी) नहीं है
18 69 मूसा ने कहा कि आप इन्शाअल्लाह मुझे साबिर (सब्र करने वाला) पायेंगे और मैं आपके किसी हुक्म की मुख़ालिफ़त (खि़लाफ़वजऱ्ी) न करूँगा
18 70 उस बन्दे ने कहा कि अगर आपको मेरे साथ रहना है तो बस किसी बात के बारे में उस वक़्त तक सवाल न करें जब तक मैं ख़ुद उसका जि़क्र न शुरू कर दूँ
18 71 पस दोनों चले यहाँ तक कि जब कश्ती में सवार हुए तो उस बन्दा-ए-ख़ुदा ने इसमें सूराख़ (छेद) कर दिया मूसा ने कहा कि क्या आपने इसलिए सूराख़ (छेद) किया है कि सवारियों को डुबो दें ये तो बड़ी अजीब व ग़रीब बात है 
18 72 उस बन्दा-ए-ख़ुदा ने कहा कि मैंने न कहा था कि आप मेरे साथ सब्र न कर सकेंगे
18 73 मूसा ने कहा कि ख़ैर जो फ़र्द गुज़ाश्त (जो हुआ सो) हो गई उसका मवाखि़ज़ा (गिरफ़्त) न करें और मामलात में इतनी सख़्ती से काम न लें
18 74 फिर दोनों आगे बढ़े यहाँ तक कि एक नौजवान नज़र आया और उस बन्दा-ए-ख़ुदा ने उसे क़त्ल कर दिया मूसा ने कहा कि क्या आपने एक पाकीज़ा नफ़्स (जान) को बग़ैर किसी नफ़्स (के ख़ौफ़) के क़त्ल कर दिया है ये तो बड़ी अजीब सी बात है
18 75 बन्दे सालेह ने कहा कि मैंने कहा था कि आप मेरे साथ सब्र नहीं कर सकते हैं
18 76  मूसा ने कहा कि इसके बाद मैं किसी बात का सवाल करूँ तो आप मुझे अपने साथ न रखें कि आप मेरी तरफ़ से मंजि़ले उज़्र तक पहुँच चुके हैं
18 77 फिर दोनों आगे चलते रहे यहाँ तक कि एक क़रिये (बस्ती) वालों तक पहुँचे और उनसे खाना तलब (माँग) किया उन लोगों ने मेहमान बनाने से इन्कार (मना) कर दिया फिर दोनों ने एक दीवार देखी जो क़रीब था कि गिर पड़ती। बन्दा सालेह ने इसे सीधा कर दिया तो मूसा ने कहा कि आप चाहते तो इसकी उजरत (सिला, मेहनताना) ले सकते थे
18 78 बन्दे सालेह ने कहा कि ये मेरे और तुम्हारे दरम्यान (बीच में) जुदाई (अलग होने) का मौक़ा है अनक़रीब (बहुत जल्द) मैं तुम्हें उन तमाम बातों की तावील (असली मतलब, मक़सद, वजह) बता दूँगा जिन पर तुम सब्र नहीं सके
18 79 ये कश्ती (नाव) चन्द (कुछ) मसाकीन (निहायत कमज़ोर, ग़रीबों) की थी जो समुन्दर में बार बरदारी (बोझा उठाने, पहुंचाने) का काम करते थे मैंने चाहा कि इसे ऐबदार (कमियों वाला), बना दूँ कि इनके पीछे एक बादशाह था जो हर कश्ती (नाव) को ग़स्ब (ज़बरदस्ती हड़प) कर लिया करता था
18 80 और ये बच्चा-इसके माँ बाप मोमिन थे और मुझे ख़ौफ़ (डर) मालूम हुआ कि ये बड़ा होकर अपनी सरकशी (बग़ावत) और कुफ्ऱ (ख़ुदा/उसके हुक्म का इन्कार) की बिना पर उन पर सखि़्तयाँ करेगा
18 81 तो मैंने चाहा कि इनका परवरदिगार (पालने वाला) इन्हें इसके बदले ऐसा फ़रज़न्द (बेटा) दे दे जो पाकीज़गी में इससे बेहतर (ज़्यादा अच्छा) हो और सिलए रहम (क़रीबी लोगों के साथ नर्मी के बर्ताव) में भी
18 82 और ये दीवार शहर के दो यतीम बच्चों की थी और इसके नीचे इनका ख़ज़ाना दफ़्न (दबा हुआ) था और इनका बाप एक नेक (अच्छा) बन्दा था तो आपके परवरदिगार (पालने वाले) ने चाहा कि ये दोनों ताक़त व तवानाई की उम्र तक पहुँच जायें और अपने ख़ज़ाने को निकाल लें। ये सब आपके परवरदिगार (पालने वाले) की रहमत है और मैंने अपनी तरफ़ से कुछ नहीं किया है और ये उन बातों की तावील (असली मतलब, मक़सद, वजह) है जिन पर आप सब्र नहीं कर सके हैं
18 83 और ऐ पैग़म्बर (अलैहिस्सलाम) यह लोग आपसे जु़ल्क़रनैन के बारे में सवाल करते हैं तो आप कह दीजिए कि मैं अनक़रीब (बहुत जल्द) तुम्हारे सामने उनका तज़किरा (जि़क्र)  पढ़कर सुना दूँगा
18 84 हमने उनको ज़मीन में इक़तेदार (हाकेमीयत) दिया और हर शै का साज़ व सामान (ज़रूरियात व सजावट का सामान) अता कर दिया
18 85 फिर इन्होंने उन वसाएल (फ़राहम किये गए सामान, ज़रियों) को इस्तेमाल किया
18 86 यहाँ तक कि जब वह ग़्ाुरूबे आफ़ताब (सूरज के डूबने) की मंजि़ल (जगह) तक पहुँचे तो देखा कि वह एक काली कीचड़ वाले चश्मे (दरिया) में डूब रहा है और उस चश्मे (दरिया) के पास एक क़ौम को पाया तो हमने कहा कि तुम्हें इखि़्तयार है चाहे इन पर अज़ाब करो या इनके दरम्यान (बीच में) हुस्ने सुलूक (अच्छी तरह से पेश आने) की रविश (ढंग) इखि़्तयार करो
18 87 जु़ल्क़रनैन ने कहा जिसने जु़ल्म किया है उस पर बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) अज़ाब करूँगा यहाँ तक के वह अपने रब की बारगाह में पलटाया जायेगा और वह उसे बदतरीन (सबसे बुरी) सज़ा देगा
18 88 और जिसने ईमान और अमले सालेह (नेक आमाल) इखि़्तयार किया है उसके लिए बेहतरीन (सबसे अच्छी) जज़ा (सिला) है और मैं भी उससे अपने उमूर (मामलों) में आसानी के बारे में कहूँगा
18 89 इसके बाद उन्होंने दूसरे वसाएल (ज़रियों) का पीछा किया
18 90 यहाँ तक कि जब तुलूए आफ़ताब (सूरज के निकलने) की मंजि़ल तक पहुँचे तो देखा कि वह एक ऐसी क़ौम पर तुलूअ कर रहा है जिसके लिए हमने आफ़ताब (सूरज) के सामने कोई परदा भी नहीं रखा था
18 91 ये है जु़ल्क़रनैन की दास्तान (कि़स्सा) और हमें इसकी मुकम्मल (पूरी) इत्तेला (ख़बर) है
18 92 इसके बाद उन्होंने फिर एक ज़रिये को इस्तेमाल किया
18 93 यहाँ तक कि जब वह दो पहाड़ों के दरम्यान (बीच में) पहुँच गये तो उनके क़रीब एक क़ौम को पाया जो कोई बात नहीं समझती थी
18 94 इन लोगों ने किसी तरह कहा कि ऐ जु़ल्क़रनैन याजूज व माजूज ज़मीन में फ़साद (लड़ाई-झगड़ा) बरपा कर रहे हैं तो क्या ये मुमकिन है कि हम आपके लिए अख़राजात (ख़र्चों) फ़राहिम (का इन्तेज़ाम) कर दें और आप हमारे और उनके दरम्यान (बीच में) एक रूकावट क़रार दे दें
18 95 उन्होंने कहा कि जो ताक़त मुझे मेरे परवरदिगार (पालने वाले) ने दी है वह तुम्हारे वसाएल (ज़रियों) से बेहतर (ज़्यादा अच्छी) है अब तुम लोग कू़व्वत (ताक़त) से मेरी इमदाद (मदद) करो कि मैं तुम्हारे और उनके दरम्यान (बीच में) एक रोक बना दूँ
18 96 चन्द (कुछ) लोहे की सिलें (बड़ी बड़ी ठोस) ले आओ। यहाँ तक कि जब दोनों पहाड़ों के बराबर ढेर हो गया तो कहा कि आग फूँको यहाँ तक कि जब इसे बिल्कुल आग बना दिया तो कहा आओ अब इस पर ताँबा पिघलाकर डाल दें
18 97 जिसके बाद न वह इस पर चढ़ सकें और न इसमें नक़ब लगा सकें (सुरंग बना सकें, शिगाफ कर सकें)
18 98 जु़ल्क़रनैन ने कहा कि ये परवरदिगार (पालने वाले) की एक रहमत है इसके बाद जब वादा-ए-इलाही आ जायेगा तो इसको रेज़ा-रेज़ा कर देगा कि वादा-ए-रब बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) बर हक़ है
18 99 और हमने उन्हें इस तरह छोड़ दिया है कि एक दूसरे के मामलात में दख़्लअंदाज़ी (दख़ल देना, टांग अड़ाना) करते रहें और फिर जब सूर फूँका जायेगा तो हम सबको एक जगह इकठ्ठा कर लेंगे
18 100 और उस दिन जहन्नम को काफ़ेरीन (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वालों) के सामने बाक़ायदा (क़ायदे के हिसाब से, ठीक तरह से) पेश किया जायेगा
18 101 वह काफि़र (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) जिनकी निगाहें हमारे जि़क्र की तरफ़ से परदे में थीं और वह कुछ सुनना भी नहीं चाहते थे
18 102 तो क्या काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) का ख़याल ये है कि यह हमें छोड़कर हमारे बन्दों को अपना सरपरस्त बना लेंगे तो हमने जहन्नम को काफ़ेरीन (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वालों) के लिए बतौर मंजि़ल (आखि़री जगह) मुहैय्या कर दिया है
18 103 पैग़म्बर क्या हम आपको उन लोगों के बारे में इत्तेला (ख़बर) दें जो अपने आमाल (काम) में बदतरीन (सबसे बुरी) ख़सारे (घाटे) में हैं 
18 104 ये वह लोग हैं जिनकी कोशिश जि़न्दगानी दुनिया में बहक गई है और ये ख़्याल करते हैं कि ये अच्छे आमाल (काम) अंजाम दे रहे हैं
18 105 यही वह लोग हैं जिन्होंने आयाते परवरदिगार (अल्लाह की निशानियों) और उसकी मुलाक़ात का इन्कार किया है तो उनके आमाल (काम) बर्बाद हो गये हैं और हम क़यामत के दिन उनके लिए कोई वज़न क़ायम नहीं करेंगे
18 106 इनकी जज़ा (सिला) इनके कुफ्ऱ की बिना (वजह) पर जहन्नम है कि इन्होंने हमारे रसूलों और हमारी आयतों (निशानियों) को मज़ाक़ बना लिया है
18 107 यक़ीनन जो लोग ईमान लाये और उन्होंने नेक (अच्छे) आमाल (काम) किये उनकी मंजि़ल (आखि़री जगह) के लिए जन्नतुल फि़रदौस है
18 108 वह हमेशा इस जन्नत में रहेंगे और इसकी तब्दीली (बदलाव) की ख़्वाहिश (तमन्ना) भी न करेंगे
18 109 आप कह दीजिए कि अगर मेरे परवरदिगार (पालने वाले)  के कलेमात (कलामों) के लिए समुन्दर भी रौशनी बन जाये तो कलेमाते रब (ख़ुदा के कलाम) के ख़त्म होने से पहले ही सारे समुन्दर ख़त्म हो जायेंगे चाहे इनकी मदद के लिए हम वैसे ही समन्दर और भी ले आयें
18 110 आप कह दीजिए कि मैं तुम्हारा ही जैसा एक बशर (इन्सान) हूँ मगर मेरी तरफ़ वही (इलाही पैग़ाम) आती है कि तुम्हारा ख़ु़दा एक अकेला है लेहाज़ा (इसलिये) जो भी उसकी मुलाक़ात का उम्मीदवार (उम्मीद करने वाला) है उसे चाहिए कि अमले सालेह (नेक अमल) करे और किसी को अपने परवरदिगार (पालने वाले)  की इबादत में शरीक (ख़ुदा के साथ किसी और को शामिल) न बनाये

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