सूरा-ए-ताहा | ||
20 | अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू। | |
20 | 1 | ऐ ता हा |
20 | 2 | हमने आप पर कु़रआन इसलिए नहीं नाजि़ल किया है कि आप अपने को ज़हमत (परेशानी) मंे डाल दें |
20 | 3 | ये तो उन लोगों की याद दहानी (याद दिलाने) के लिए है जिनके दिलों में ख़ौफ़े ख़ु़दा (ख़ुदा का डर) है |
20 | 4 | ये उस ख़ुदा की तरफ़ से नाजि़ल (भेजा) हुआ है जिसने ज़मीन और बलन्दतरीन (सबसे बलन्द) आसमानों को पैदा किया है |
20 | 5 | वह रहमान अर्श पर इखि़्तयार व इक़तेदार (हाकेमीयत) रखने वाला है |
20 | 6 | उसके लिए वह सब कुछ है जो आसमानों में है या ज़मीन में है या दोनों के दरम्यान (बीच में) है और ज़मीनों की तह में है |
20 | 7 | अगर तुम बलन्द आवाज़ से भी बात करो तो वह राज़ से भी मख़्फ़ीतर (छिपी हुई) बातों को जानने वाला है |
20 | 8 | वह अल्लाह है जिसके अलावा कोई ख़ुदा नहीं है उसके लिए बेहतरीन (सबसे अच्छे) नाम हैं |
20 | 9 | क्या तुम्हारे पास मूसा की दास्तान (कि़स्सा) आयी है |
20 | 10 | जब उन्होंने आग को देखा और अपने अहल (अपने वालों) से कहा कि तुम इसी मुक़ाम पर ठहरो मैंने आग को देखा है शायद मैं इसमें से कोई अंगारा ले आऊँ या उस मंजि़ल (आखि़री जगह) पर कोई रहनुमाई (रास्ते की जानकारी या निशानी) हासिल कर लूँ |
20 | 11 | फिर जब मूसा इस आग के क़रीब आये तो आवाज़ दी गई कि ऐ मूसा |
20 | 12 | मैं तुम्हारा परवरदिगार परवरदिगार (पालने वाला ख़ुदा) हूँ लेहाज़ा (इसलिये) अपनी जूतियों को उतार दो कि तुम तुआ नाम की एक मुक़द्दस (एहतेराम और बलन्द दर्जे वाली) और पाकीज़ा वादी में हो |
20 | 13 | और हमने तुमको मुन्तख़ब (चुना हुआ) कर लिया है लेहाज़ा (इसलिये) जो वही (इलाही पैग़ाम) की जा रही है उसे ग़ौर से सुनो |
20 | 14 | मैं अल्लाह हूँ मेरे अलावा कोई ख़ुदा नहीं है मेरी इबादत करो और मेरी याद के लिए नमाज़ क़ायम करो |
20 | 15 | यक़ीनन वह क़यामत आने वाली है और मैं इसे छिपाये रहूँगा ताकि हर नफ़्स (जान) को उसकी कोशिश का बदला दिया जा सके |
20 | 16 | और ख़बरदार तुम्हें क़यामत के ख़्याल से वह शख़्स रोक न दे जिसका ईमान क़यामत पर नहीं है और जिसने अपने ख़्वाहिशात (दुनियावी तमन्नाओं) की पैरवी की है कि इस तरह तुम हलाक (बरबाद, ख़त्म) हो जाओगे |
20 | 17 | और ऐ मूसा ये तुम्हारे दाहिने हाथ में क्या है |
20 | 18 | उन्होंने कहा कि ये मेरा असा (डंडा, छड़ी) है जिस पर मैं तकिया (सहारा) करता हूँ और इससे अपनी बकरियों के लिए दरख़्तों (पेड़ों) की पत्तियाँ झाड़ता हूँ और इसमें मेरे और बहुत से मक़ासिद हैं |
20 | 19 | इरशाद हुआ तो मूसा इसे ज़मीन पर डाल दो |
20 | 20 | अब जो मूसा ने डाल दिया तो क्या देखा कि वह साँप बनकर दौड़ रहा है |
20 | 21 | हुक्म हुआ कि इसे ले लो और डरो नहीं कि हम अनक़रीब (बहुत जल्द) इसे इसकी पुरानी असल की तरफ़ पलटा देंगे |
20 | 22 | और अपने हाथ को समेट कर बग़ल में कर लो ये बग़ैर बीमारी के सफ़ेद होकर निकलेगा और ये हमारी दूसरी निशानी होगी |
20 | 23 | ताकि हम तुम्हें अपनी बड़ी निशानियाँ दिखा सकें |
20 | 24 | जाओ फि़रऔन की तरफ़ जाओ कि वह सरकश (बग़ावत करने वाला) हो गया है |
20 | 25 | मूसा ने अजऱ् की परवरदिगार (पालने वाले) मेरे सीने को कुशादा (खुला हुआ, चैड़ा) कर दे |
20 | 26 | मेरे काम को आसान कर दे |
20 | 27 | और मेरी ज़बान की गिरह को खोल दे |
20 | 28 | कि ये लोग मेरी बात समझ सकें |
20 | 29 | और मेरे अहल में से मेरा वज़ीर क़रार दे दे |
20 | 30 | हारून को जो मेरा भाई भी है |
20 | 31 | इससे मेरी पुश्त (पीठ) को मज़बूत कर दे |
20 | 32 | उसे मेरे काम में शरीक (मदद करने वाला) बना दे |
20 | 33 | ताकि हम तेरी बहुत ज़्यादा तसबीह (तारीफ़, विर्द) कर सकें |
20 | 34 | और तेरा बहुत ज़्यादा जि़क्र कर सकें |
20 | 35 | यक़ीनन तू हमारे हालात से बेहतर (ज़्यादा अच्छा) बाख़बर है |
20 | 36 | इरशाद हुआ मूसा हमने तुम्हारी मुराद (जिसके लिये तुम दुआ करते थे) तुम्हें दे दी है |
20 | 37 | और हमने तुम पर एक और एहसान किया है |
20 | 38 | जब हमने तुम्हारी माँ की तरफ़ एक ख़ास वही (इलाही पैग़ाम) की |
20 | 39 | कि अपने बच्चे को सन्दूक़ (बक्से) में रख दो और फिर सन्दूक़ (बक्से) को दरिया के हवाले कर दो मौजें (लहरें) इसे साहिल (किनारे) पर डाल देंगी और एक ऐसा शख़्स इसे उठा लेगा जो मेरा भी दुश्मन है और मूसा का भी दुश्मन है और हमने तुम पर अपनी मोहब्बत का अक्स डाल दिया ताकि तुम्हें हमारी निगरानी (देख-रेख) में पाला जाये |
20 | 40 | उस वक़्त को याद करो जब तुम्हारी बहन जा रही थी कि फि़रऔन से कहें कि क्या मैं किसी ऐसे का पता बताऊँ जो उसकी किफ़ालत (देखभाल, परवरिश) कर सके और इस तरह हमने तुमको तुम्हारी माँ की तरफ़ पलटा दिया ताकि उनकी आँखें ठण्डी हो जायें और वह रंजीदा (ग़मज़दा) न हों और तुमने एक शख़्स को क़त्ल कर दिया तो हमने तुम्हें ग़म से निजात (छुटकारा, रिहाई) दे दी और तुम्हारा बाक़ायदा (क़ायदे के हिसाब से, ठीक तरह से) इम्तिहान ले लिया फिर तुम अहले मदियन में कई बरस तक रहे इसके बाद तुम एक मंजि़ल (आखि़री जगह) पर आ गये ऐ मूसा |
20 | 41 | और हमने तुमको अपने लिए मुन्तख़ब (चुना हुआ) कर लिया |
20 | 42 | अब तुम अपने भाई के साथ मेरी निशानियाँ लेकर जाओ और मेरी याद में सुस्ती न करना |
20 | 43 | तुम दोनों फि़रऔन की तरफ़ जाओ कि वह सरकश (बग़ावत करने वाला) हो गया है |
20 | 44 | उससे नरमी से बात करना कि शायद वह नसीहत (अच्छी बातें जो बताई जाएं) कु़बूल कर ले या ख़ौफ़ज़दा (डरा हुआ) हो जाये |
20 | 45 | इन दोनों ने कहा कि परवरदिगार (पालने वाले) हमें ये ख़ौफ़ (डर) है कि कहीं वह हम पर ज़्यादती न करे या और सरकश (बग़ावत करने वाला) न हो जाये |
20 | 46 | इरशाद हुआ तुम डरो नहीं मैं तुम्हारे साथ हूँ सब कुछ सुन भी रहा हूँ और देख भी रहा हूँ |
20 | 47 | फि़रऔन के पास जाकर कहो कि हम तेरे परवरदिगार (पालने वाले) के फ़रिस्तादा (भेजा हूआ क़ासिद, दूत) हैं बनी इसराईल को हमारे हवाले कर दे और उन पर अज़ाब न कर कि हम तेरे पास तेरे परवरदिगार (पालने वाले) की निशानी लेकर आये हैं और हमारा सलाम हो उस पर जो हिदायत का इत्तेबा (पैरवी) करे |
20 | 48 | बेशक हमारी तरफ़ ये वही की गई कि तकज़ीब (झुठलाना) करने वाले और मुँह फेरने वाले पर अज़ाब है |
20 | 49 | उसने कहा कि मूसा तुम दोनों का रब कौन है |
20 | 50 | मूसा ने कहा कि हमारा रब वह है जिसने हर शै को उसकी मुनासिब खि़ल्क़त अता की है और फिर हिदायत भी दी है |
20 | 51 | उसने कहा कि फिन उन लोगांे का क्या होगा जो पहले गुज़र चुके हैं |
20 | 52 | मूसा ने कहा कि इन बातों का इल्म मेरे परवरदिगार (पालने वाले) के पास उसकी किताब में महफ़ूज़ (हिफ़ाज़त से) है वह न बहकता है और न भूलता है |
20 | 53 | उसने तुम्हारे लिए ज़मीन को गहवारा (झूला) बनाया है और इसमें तुम्हारे लिए रास्ते बनाये हैं और आसमान से पानी बरसाया है जिसके ज़रिये हमने मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) कि़स्म के नबातात (पेड़-पौधों) का जोड़ा पैदा किया है |
20 | 54 | कि तुम खु़द भी खाओ और अपने जानवरों को भी चराओ बेशक इसमें साहेबाने अक़्ल के लिए बड़ी निशानियाँ पायी जाती हैं |
20 | 55 | इसी ज़मीन से हमने तुम्हें पैदा किया है और इसी में पलटाकर ले जायेंगे और फिर दोबारा इसी से निकालंेगे |
20 | 56 | और हमने फि़रऔन को अपनी सारी निशानियाँ दिखला दीं लेकिन उसने तकज़ीब (झुठलाना) की और इन्कार (मना) कर दिया |
20 | 57 | उसने कहा कि मूसा तुम इसलिए आये हो कि हमको हमारे इलाक़े से अपने जादू के ज़रिये बाहर निकाल दो |
20 | 58 | अब हम भी ऐसा ही जादू ले आयेंगे लेहाज़ा अपने और हमारे दरम्यान (बीच में) एक वक़्त मुक़र्रर (तय) कर दो जिसकी न हम मुख़ालिफ़त (खि़लाफ़) करें और न तुम और वह वादागाह भी एक साफ़ खुले मैदान मंे हो |
20 | 59 | मूसा ने कहा कि तुम्हारा वादे का दिन ज़ीनत (आराइश, सजावट, ईद) का दिन है और उस दिन तमाम लोग वक़्त चाश्त (दिन चढ़े) इकठ्ठा किये जायेंगे |
20 | 60 | इसके बाद फि़रऔन वापस चला गया और अपने मक्र को इकठ्ठा करने लगा और उसके बाद फिर सामने आया |
20 | 61 | मूसा ने उन लोगांे से कहा कि तुम पर वाए हो अल्लाह पर इफ़्तेरा (झूठा इल्ज़ाम, तोहमत लगाना) न करो कि वह तुमको अज़ाब के ज़रिये तबाह व बर्बाद कर देगा और जिसने उस पर बोहतान बाँधा (इल्ज़ाम लगाया) वह यक़ीनन रूसवा (शर्मिन्दा) हुआ है |
20 | 62 | इस पर वह लोग आपस में झगड़ा करने लगे और सरगोशियों (काना-फ़ूसी, खुसर-पुसर, ग़ीबत) में मसरूफ़ हो गये |
20 | 63 | उन लोगों ने कहा कि ये दोनों जादूगर हैं जो तुम लोगों को अपने जादू के ज़ोर पर तुम्हारी सरज़मीन से निकाल देना चाहते हैं और तुम्हारे अच्छे ख़ासे तरीक़े को मिटा देना चाहते हैं |
20 | 64 | लेहाज़ा (इसलिये) तुम लोग अपनी तदबीरों (चारा-ए-कार, इलाज) को जमा करो और परा (सफ़) बाँधकर इनके मुक़ाबले पर आ जाओ जो आज के दिन ग़ालिब आ जायेगा वही कामयाब कहा जायेगा |
20 | 65 | उन लोगों ने कहा कि मूसा तुम अपने जादू को फेंकोगे या हम लोग पहल करंे |
20 | 66 | मूसा ने कहा कि नहीं तुम इब्तिदा (शुरूआत) करो एक मर्तबा क्या देखा कि उनकी रस्सियाँ और लकडि़याँ जादू की बिना पर ऐसी लगने लगीं जैसे सब दौड़ रहीं हों |
20 | 67 | तो मूसा ने अपने दिल में (क़ौम की गुमराही का) ख़ौफ़ (डर) महसूस किया |
20 | 68 | हमने कहा कि मूसा डरो नहीं तुम बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) ग़ालिब रहने वाले हो |
20 | 69 | और जो कुछ तुम्हारे हाथ में है उसे डाल दो ये इनके सारे किये धरे को चुन लेगा इन लोगों ने जो कुछ किया है वह सिर्फ़ जादूगर की चाल है और बस और जादूगर जहाँ भी जाये कभी कामयाब नहीं हो सकता |
20 | 70 | ये देखकर सारे जादूगर सजदे में गिर पड़े और आवाज़ दी कि हम मूसा और हारून के परवरदिगार (पालने वाले) पर ईमान ले आये |
20 | 71 | फि़रऔन ने कहा कि तुम मेरी इजाज़त के बग़ैर ही ईमान ले आये तो ये तुमसे भी बड़ा जादूगर है जिसने तुम्हें जादू सिखाया है अब मैं तुम्हारे एक तरफ़ के हाथ और दूसरी तरफ़ के पाँव काट दूँगा और तुम्हें ख़ु़रमें (खजूर) की शाख़ पर सूली (फांसी) दे दूँगा और तुम्हें खू़ब मालूम हो जायेगा कि ज़्यादा सख़्त अज़ाब करने वाला और देर तक रहने वाला कौन है |
20 | 72 | उन लोगों ने कहा कि हमारे पास जो खुली निशानियाँ आ चुकी हैं और जिसने हमको पैदा किया है हम उस पर तेरी बात को मुक़द्दम (तरजीह देना) नहीं कर सकते अब तुझे जो फ़ैसला करना हो कर ले तू फ़क़त इस जि़न्दगानी दुनिया ही तक फ़ैसला कर सकता है |
20 | 73 | हम अपने परवरदिगार (पालने वाले) पर ईमान ले आये हैं कि वह हमारी ख़ताओं (कमियों) को माॅफ़ कर दे और इस जादू को बख़्श (माफ़ कर) दे जिस पर तूने हमें मजबूर किया था और अल्लाह सबसे बेहतर (ज़्यादा अच्छा) है और वही बाक़ी रहने वाला है |
20 | 74 | यक़ीनन जो अपने रब की बारगाह में मुजरिम (जुर्म करने वाला) बनकर आयेगा उसके लिए वह जहन्नम है जिसमें न मर सकेगा और न जि़न्दा रह सकेगा |
20 | 75 | और जो इसके हुजू़र (बारगाह में) साहेबे ईमान बनकर हाजि़र होगा और उसने नेक (अच्छा) आमाल (कामों) किये होंगे उसके लिए बुलन्द तरीन (सबसे बलन्द) दरजात (दर्जे) हैं |
20 | 76 | हमेशा रहने वाली जन्नत जिसके नीचे नहरें जारी होंगी और वह इसमें हमेशा रहंेगे कि यही पाकीज़ा किरदार लोगों की जज़ा (सिला) है |
20 | 77 | और हमने मूसा की तरफ़ वही (इलाही पैग़ाम) की कि मेरे बन्दों को लेकर रातों रात निकल जाओ फिर इनके लिए दरिया में असा (डंडा, छड़ी) मारकर ख़ु़श्क (सूखा) रास्ता बना दो तुम्हें न फि़रऔन के पा लेने का ख़तरा है और न डूब जाने का |
20 | 78 | तब फि़रऔन ने अपने लश्कर (फ़ौज) समेत इन लोगों का पीछा किया और दरिया की मौजों ने उन्हें बाक़ायदा (क़ायदे के हिसाब से, ठीक तरह से) ढाँक लिया |
20 | 79 | और फि़रऔन ने दर हक़ीक़त (हक़ीक़त में) अपनी क़ौम को गुमराह (राह से भटकाना) ही किया है हिदायत नहीं दी है |
20 | 80 | बनी इसराईल ! हमने तुमको तुम्हारे दुश्मन से निजात (छुटकारा, रिहाई) दिलाई है और तूर की दाहिनीं तरफ़ से तौरैत देने का वादा किया है और मन व सलवा भी नाजि़ल (भेजा) किया है |
20 | 81 | तुम हमारे पाकीज़ा रिज़्क़ को खाओ और इसमें सरकशी (बग़ावत) और ज़्यादती न करो कि तुम पर मेरा ग़ज़ब नाजि़ल हो जाये कि जिस पर मेरा ग़ज़ब नाजि़ल हो गया वह यक़ीनन बर्बाद हो गया |
20 | 82 | और मैं बहुत ज़्यादा बख़्शने (माफ़ करने) वाला हूँ उस शख़्स के लिए जो तौबा कर ले और ईमान ले आये और नेक (अच्छा) अमल (काम) करे और फिर राहे हिदायत पर साबित क़दम रहे |
20 | 83 | और ऐ मूसा तुम्हें क़ौम को छोड़कर जल्दी आने पर किस शै ने आमादा किया है |
20 | 84 | मूसा ने अजऱ् की कि वह सब मेरे पीछे हैं और मैंने राहे ख़ैर (अच्छाई की राह) में इसलिए उजलत (जल्दबाज़ी) की है कि तू खु़श हो जाये |
20 | 85 | इरशाद हुआ कि हमने तुम्हारे बाद तुम्हारी क़ौम का इम्तिहान लिया और सामरी ने उन्हें गुमराह कर दिया है |
20 | 86 | ये सुनकर मूसा अपनी क़ौम की तरफ़ महज़्ाून (ग़मज़दा) और ग़्ाुस्से में भरे हुए पलटे और कहा कि ऐ क़ौम क्या तुम्हारे रब ने तुमसे बेहतरीन (सबसे अच्छा) वादा नहीं किया था और क्या उस अहद (वादे) में कुछ ज़्यादा तूल हो गया है या तुमने यही चाहा कि तुम पर परवरदिगार (पालने वाले) का ग़ज़ब वारिद हो जाये इसलिए तुमने तेरे वादे की मुख़ालिफ़त (उलट बात) की |
20 | 87 | क़ौम ने कहा कि हमने अपने इखि़्तयार से आपके वादे की मुख़ालिफ़त (उलट बात) नहीं की है बल्कि हम पर क़ौम के ज़ेवरात का बोझ लाद दिया गया था तो हमने इसे आग में डाल दिया और इस तरह सामरी ने भी अपने जे़वरात को डाल दिया |
20 | 88 | फिर सामरी ने इनके लिए एक मुजस्मा (पुतला) गाय के बच्चे का निकाला जिसमें आवाज़ भी थी और कहा कि यही तुम्हारा और मूसा का ख़ुदा है जिससे मूसा ग़ाफि़ल (बेपरवाह) होकर उसे तूर (के पहाड)़ पर ढूँढने चले गये हैं |
20 | 89 | क्या ये लोग इतना भी नहीं देखते कि ये न उनकी बात का जवाब दे सकता है और न उनके किसी नुक़सान या फ़ायदे का इखि़्तयार रखता है |
20 | 90 | और हारून ने इन लोगांे से पहले ही कह दिया कि ऐ क़ौम इस तरह तुम्हारा इम्तिहान लिया गया है और तुम्हारा रब रहमान ही है लेहाज़ा (इसलिये) मेरा इत्तेबा (पैरवी) करो और मेरे अम्र (हुक्म) की इताअत (पैरवी) करो |
20 | 91 | इन लोगों ने कहा कि हम उसके गिर्द जमा रहेंगे यहाँ तक कि मूसा हमारे दरम्यान (बीच में) वापस आ जायें |
20 | 92 | मूसा ने हारून से खि़ताब करके कहा कि जब तुमने देख लिया था कि ये क़ौम गुमराह हो गई है तो तुम्हें कौन सी बात आड़े आ गई थी |
20 | 93 | कि तुमने मेरा इत्तेबा (पैरवी) नहीं किया क्या तुमने मेरे अम्र की मुख़ालिफ़त (उलट बात) की है |
20 | 94 | हारून ने कहा कि भईया आप मेरी दाढ़ी और मेरा सिर न पकड़ें मुझे तो ये ख़ौफ़ (डर) था कि कहीं आप यह न कहें कि तुमने बनी इसराईल में एख़तेलाफ़ (टकराव) पैदा कर दिया है और मेरी बात का इन्तिज़ार नहीं किया है |
20 | 95 | फिर मूसा ने सामरी से कहा कि तेरा क्या हाल है |
20 | 96 | उसने कहा कि मैनें वह देखा है जो इन लोगों ने नहीं देखा है तो मैंने नुमाईन्दाए परवरदिगार (अल्लाह के नुमाइन्दे) के निशाने क़दम की एक मुट्ठी ख़ाक उठा ली और इसको गौसाला (गाय के पुतले) के अन्दर डाल दिया और मुझे मेरे नफ़्स ने इसी तरह समझाया था |
20 | 97 | मूसा ने कहा कि अच्छा जा दूर हो जा अब जि़न्दगानी दुनिया मंे तेरी सज़ा ये है कि हर एक से यही कहता फिरेगा कि मुझे छूना नहीं और आखि़रत में एक ख़ास वादा है जिसकी मुख़ालिफ़त (उलट बात) नहीं हो सकती और अब देख अपने ख़ुदा को जिसके गिर्द तूने एतकाफ़ कर रखा है कि मैं इसे जलाकर ख़ाकस्तर कर दूँगा और इसकी राख दरिया मंे उड़ा दूँगा |
20 | 98 | यक़ीनन तुम सबका ख़ुदा सिर्फ़ अल्लाह है जिसके अलावा कोई ख़ुदा नहीं है और वही हर शै का वसीअ इल्म (पूरी जानकारी) रखने वाला है |
20 | 99 | और हम इसी तरह गुजि़श्ता दौर (पिछले गुज़रे हुए वक़्त) के वाके़आत आपसे बयान करते हैं और हमने अपनी बारगाह से आपको कु़रआन भी अता कर दिया है |
20 | 100 | जो इससे आराज़ (मुंह फेरना) करेगा वह क़यामत के दिन इस इन्कार का बोझ उठायेगा |
20 | 101 | और फिर इसी हाल में रहेगा और क़यामत के दिन ये बहुत बड़ा बोझ होगा |
20 | 102 | जिस दिन सूर फूँका जायेगा और हम तमाम मुजरेमीन (जुर्म करने वालों) को बदले हुए रंग में इकठ्ठा करेंगे |
20 | 103 | ये सब आपस में ये बात कर रहे होंगे कि हम दुनिया में सिर्फ़ दस ही दिन तो रहे हैं |
20 | 104 | हम इनकी बातों को खू़ब जानते हैं जब इनका सबसे होशियार ये कह रहा था कि तुम लोग सिर्फ़ एक दिन रहे हो |
20 | 105 | और ये लोग आपसे पहाड़ों के बारे में पूछते हैं कि क़यामत में इनका क्या होगा तो कह दीजिए कि मेरा परवरदिगार (पालने वाला) इन्हें रेज़ा-रेज़ा करके उड़ा देगा |
20 | 106 | फिर ज़मीन को चटियल मैदान बना देगा |
20 | 107 | जिसमें तुम किसी तरह की कजी (टेढ़ापन, घुमाव) नाहमवारी (ऊंच-नीच) न देखोगे |
20 | 108 | उस दिन सब दाएई (पुकारने वाले) परवरदिगार (पालने वाले) के पीछे दौड़ पड़ेंगे और किसी तरह की कजी न होगी और सारी आवाजे़ रहमान के सामने दब जायेंगी कि तुम घनघनाहट के अलावा कुछ न सुनोगे |
20 | 109 | उस दिन किसी की सिफ़ारिश काम न आयेगी सिवाए उनके जिन्हें ख़ुदा ने इजाज़त दे दी हो और वह इनकी बात से राज़ी हो |
20 | 110 | वह सबके सामने और पीछे के हालात से बाख़बर है और किसी का इल्म उसकी ज़ात को मुहीत (हावी) नहीं है |
20 | 111 | इस दिन सारे चेहरे ख़ुदाए हई व क़य्यूम (जि़न्दा व बाक़ी रहने वाले ख़ुदा) के सामने झुके होंगे और जु़ल्म का बोझ उठाने वाला नाकाम और रूसवा (शर्मिन्दा) होगा |
20 | 112 | और जो नेक (अच्छे) आमाल (कामों) करेगा और साहेबे ईमान होगा वह न जु़ल्म से डरेगा और नुक़सान से |
20 | 113 | और इसी तरह हमने कु़रआन को अरबी ज़बान में नाजि़ल किया है और इसमें तरह-तरह से अज़ाब का तज़किरा (जि़क्र) किया है कि शायद ये लोग परहेज़गार (बुराईयों से दूरी अपनाने वाले) बन जायें या कु़रआन इनके अन्दर किसी तरह की इबरत पैदा कर दे |
20 | 114 | पस बुलन्द व बरतर है वह ख़ुदा जो बादशाहे बरहक़ है और आप वही के तमाम होने से पहले कु़रआन के बारे में उजलत (जल्दबाज़ी) से काम न लिया करें और ये कहते रहें कि परवरदिगार (पालने वाले) मेरे इल्म में इज़ाफ़ा (बढ़ावा) फ़रमा |
20 | 115 | और हमने आदम से इससे पहले अहद (वादा) लिया मगर उन्होंने इसे तर्क कर दिया और हमने उनके पास अज़्म व सबात नहीं पाया |
20 | 116 | और जब हमने मलायका से कहा कि तुम सब आदम के लिए सज्दा करो तो इबलीस के अलावा सबने सज्दा कर लिया और उसने इन्कार कर दिया |
20 | 117 | तो हमने कहा कि आदम ये तुम्हारा और तुम्हारी ज़ौजा का दुश्मन है कहीं तुम्हें जन्नत से निकाल न दे कि तुम ज़हमत (परेशानी) में पड़ जाओ |
20 | 118 | बेशक यहाँ जन्नत में तुम्हारा फ़ायदा ये है कि न भूखे रहोगे और न बरहना रहोगे |
20 | 119 | और यक़ीनन यहाँ न प्यासे रहोगे और न धूप खाओगे |
20 | 120 | फिर शैतान ने इन्हें वसवसे (वहम) में मुब्तिला करना चाहा और कहा कि आदम मैं तुम्हें हमेशगी के दरख़्त (हमेशा रहने वाले पेड़) की तरफ़ रहनुमाई कर दूँ और ऐसा मुल्क बता दूँ जो कभी ज़ायल न हो |
20 | 121 | तो इन दोनों ने दरख़्त से खा लिया और इनके लिए इनका आगा पीछा ज़ाहिर हो गया और वह इसे जन्नत के पत्तों से छिपाने लगे और आदम ने अपने परवरदिगार (पालने वाले) की नसीहत (अच्छी बातें जो बताई गईं) पर अमल न किया तो राहत के रास्ते से बेराह हो गये |
20 | 122 | फिर ख़ुदा ने इन्हें चुन लिया और इनकी तौबा कु़बूल कर ली और इन्हें रास्ते पर लगा दिया |
20 | 123 | और हुक्म दिया कि तुम दोनों यहाँ से नीचे उतर जाओ सब एक दूसरे के दुश्मन होंगे इसके बाद अगर मेरी तरफ़ से हिदायत आ जाये तो जो मेरी हिदायत की पैरवी करेगा वह न गुमराह होगा और न परेशान |
20 | 124 | और जो मेरे जि़क्र से आराज़ (मुंह फेरना) करेगा उसके लिए जि़न्दगी की तंगी भी है और हम इसे क़यामत के दिन अँधा भी महशूर करेंगे |
20 | 125 | वह कहेगा कि परवरदिगार (पालने वाले) ये तूने मुझे अँधा क्यांे महशूर किया है जबकि मैं दारे दुनिया में साहेबे बसारत था |
20 | 126 | इरशाद होगा कि इसी तरह हमारी आयतें तेरे पास आयीं और तूने इन्हें भुला दिया तो आज तू भी नज़र अंदाज़ कर दिया जायेगा |
20 | 127 | और हम ज़्यादती करने वाले और अपने रब की निशानियों पर ईमान न लाने वालों को इसी तरह सज़ा देते हैं और आखि़रत का अज़ाब यक़ीनन सख़्त तरीन (सबसे सख़्त) और हमेशा बाक़ी रहने वाला है |
20 | 128 | क्या इन्होंने इस बात ने रहनुमाई नहीं दी कि हमने इनसे पहले कितनी नसलों को हलाक (बरबाद, ख़त्म) कर दिया जो अपने इलाक़े में निहायत इत्मिनान से चल फिर रहे थे। बेशक इसमें साहेबाने अक़्ल के लिए बड़ी निशानियाँ हैं |
20 | 129 | और अगर आपके रब की तरफ़ से बात तय न हो चुकी होती और वक़्त मुक़र्रर न होता तो अज़ाब लाज़मी तौर पर आ चुका होता |
20 | 130 | लेहाज़ा (इसलिये) आप इनकी बातों पर सब्र करें और आफ़ताब (सूरज) निकलने से पहले और इसके डूबने के बाद अपने रब की तसबीह (तारीफ़) करते रहें और रात के औक़ात में और दिन के एतराफ़ (आस-पास) में भी तसबीह (तारीफ़) परवरदिगार करें कि शायद आप इस तरह राज़ी और खु़श हो जाईये |
20 | 131 | और ख़बरदार हमने इनमें से बाॅज़ लोगों को जो जि़न्दगानी दुनिया की रौनक़ से मालामाल कर दिया है उसकी तरफ़ तरफ़ आप नज़र उठाकर भी न देखें कि ये इनकी आज़माईश का ज़रिया है और आपके परवरदिगार (पालने वाले) का रिज़्क़ इससे कहीं ज़्यादा बेहतर (ज़्यादा अच्छा) और पायदार है |
20 | 132 | और अपने अहल (अपने घर के लोगों) को नमाज़ का हुक्म दें और इस पर सब्र करंे हम आपसे रिज़्क़ के तलबगार नहीं हैं हम तो खु़द ही रिज़्क़ देते हैं और आके़बत (आखि़रत में अच्छाई) सिर्फ़ साहेबाने तक़वा (ख़ुदा से डरने वाले लोगों) के लिए है |
20 | 133 | और ये लोग कहते हैं कि ये अपने रब की तरफ़ से कोई निशानी क्यों नहीं लाते हैं तो क्या इनके पास अगली किताबों की गवाही नहीं आयी है |
20 | 134 | और अगर हमने रसूल से पहले इन्हें अज़ाब करके हलाक (बरबाद, ख़त्म) कर दिया होता तो ये कहते परवरदिगार (पालने वाले) तूने हमारी तरफ़ रसूल क्यों नहीं भेजा कि हम ज़लील और रूसवा (शर्मिन्दा) होने से पहले ही तेरी निशानियांे का इत्तेबा (पैरवी) कर लेते |
20 | 135 | आप कह दीजिए कि सब अपने अपने वक़्त का इन्तिज़ार कर रहे हैं तुम भी इन्तिज़ार करो अनक़रीब (बहुत जल्द) मालूम हो जायेगा कि कौन लोग सीधे रास्ते पर चलने वाले और हिदायत याफ़्ता (हिदायत पाए हुए) हैं |
Thursday, 16 April 2015
Sura-e-Taha 20th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)
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