Saturday, 18 April 2015

Sura-e-Mujadela 58th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

सूरा-ए-मुजादिला
58 अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
58 1 बेशक अल्लाह ने उस औरत की बात सुन ली जो तुमसे अपने शौहर के बारे में बहस कर रही थी और अल्लाह से फ़रियाद कर रही थी और अल्लाह तुम दोनों की बातें सुन रहा था कि वह सब कुछ सुनने वाला और देखने वाला है
58 2 जो लोग अपनी औरतों से जि़हार करते हैं (उन्हें माँ कह देते हैं) उनकी औरतें उनकी माँयंे नहीं हैं। माँयें तो सिर्फ़ वह औरतें हैं जिन्होंने पैदा किया है और ये लोग यक़ीनन बहुत बुरी और झूठी बात कहते हैं और अल्लाह बहुत माॅफ़ करने वाला और बख़्शने (माफ़ करने) वाला है
58 3 जो लोग तुम में से अपनी औरतों से जि़हार करें (उन्हें माँ कह दें) और फिर अपनी बात से पलटना चाहें उन्हें चाहिए कि औरत को हाथ लगाने से पहले एक ग़्ाु़लाम आज़ाद करें कि ये ख़ुदा की तरफ़ से तुम्हारे लिए नसीहत (अच्छी बात का बयान) है और ख़ुदा तुम्हारे आमाल (कामों) से ख़ूब बाख़बर है
58 4 फिर किसी शख़्स के लिए ग़्ाु़लाम मुमकिन न हो तो आपस में एक दूसरे को मस करने (हाथ लगाने) से पहले दो महीने के मुसलसल (लगातार) रोज़े रखे फिर ये भी मुमकिन न हो तो साठ मिसकीनों (ग़रीबों) को खाना खिलाये ये इसलिए ताकि तुम ख़ुदा व रसूल पर सही ईमान रखो और ये अल्लाह के मुक़र्ररकर्दा (तय की हुई) हुदूद (हदें) हैं और काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वालांे) के लिए बड़ा दर्दनाक (दर्द देने वाला) अज़ाब है
58 5 बेशक जो लोग ख़ुदा व रसूल से दुश्मनी करते हैं वह वैसे ही ज़लील होंगे जैसे इनसे पहले वाले ज़लील हुए हैं और हमने खुली हुई निशानियाँ नाजि़ल कर दी हैं और काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वालों) के लिए रूस्वाकुन (शर्मिन्दा करने वाला) अज़ाब है
58 6 जिस दिन ख़ुदा सबको जि़न्दा करेगा और उन्हें उनके आमाल (कामों) से बाख़बर करेगा जिसे उसने महफ़ूज़ (हिफ़ाज़त के साथ) कर रखा है और उन लोगों ने खु़द भुला दिया है और अल्लाह हर शै की निगरानी करने (नज़र रखने) वाला है
58 7 क्या तुम नहीं देखते हो कि अल्लाह ज़मीन व आसमान की हर शै से बाख़बर है। कहीं भी तीन आदमियों के दरम्यान (बीच) राज़ की बात नहीं होती है मगर ये कि वह उनका चैथा होता है और पाँच की राज़दारी होती है तो वह उनका छठा होता है और कम व बेश भी कोई राज़दारी होती है तो वह उनके साथ ज़रूर रहता है चाहे वह कहीं भी रहें इसके बाद रोज़े क़यामत उन्हें बाख़बर करेगा (बताएगा) कि उन्होंने क्या किया है कि बेशक वह हर शै का जानने वाला है
58 8 क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिन्हें राज़ की बातों से मना किया गया लेकिन वह फिर भी ऐसी बातें करते हैं और गुनाह और ज़्ाु़ल्म और रसूल की नाफ़रमानी (हुक्म न मानने) के साथ राज़ की बातें करते हैं और जब तुम्हारे पास आते हैं तो इस तरह मुख़ातिब करते हैं जिस तरह ख़ुदा ने उन्हें नहीं सिखाया है और अपने दिल ही दिल में कहते हैं कि हम ग़लती पर हैं तो ख़ुदा हमारी बातांे पर अज़ाब क्यों नहीं नाजि़ल करता। हालांकि उनके लिए जहन्नम ही काफ़ी है जिसमें इन्हें जलना है और वह बदतरीन (सबसे बुरा) अंजाम है
58 9 ईमान वालों जब भी राज़ की बातें करो तो ख़बरदार गुनाह और ताद्दी (सरकशी) और रसूल की नाफ़रमानी (हुक्म न मानने) के साथ न करना बल्कि नेकी और तक़्वे के साथ बातें करना और अल्लाह से डरते रहना कि बिलआखि़र (आखि़रकार) उसी की तरफ़ पलटकर जाना है
58 10 ये राज़दारी शैतान की तरफ़ से साहेबाने ईमान को दुख पहुँचाने के लिए होती है हालांकि वह उन्हें नुक़सान नहीं पहुँचा सकता है जब तक ख़ुदा इजाज़त न दे दे और साहेबाने ईमान का भरोसा सिर्फ़ अल्लाह पर होता है
58 11 ईमान वालों जब तुमसे मजलिस में वुसअत (फैलाव) पैदा करने के लिए कहा जाये तो दूसरों को जगह दे दो ताकि ख़ुदा तुम्हें जन्नत में वुसअत दे सके और जब तुमसे कहा जाये कि उठ जाओ तो उठ जाओ कि ख़ुदा साहेबाने ईमान और जिनको इल्म दिया गया है उनके दर्जात को बलन्द (ऊंचा) करना चाहता है और अल्लाह तुम्हारे आमाल (कामों) से खू़ब बाख़बर है
58 12 ईमान वालों जब भी रसूल से कोई राज़ की बात करो तो पहले सद्क़ा निकाल दो कि यही तुम्हारे हक़ में बेहतरी और पाकीज़गी की बात है फिर अगर सद्क़ा मुमकिन न हो तो ख़ुदा बहुत बख़्शने (माफ़ करने) वाला और मेहरबान है
58 13 क्या तुम इस बात से डर गये हो कि अपनी राज़दाराना (राज़ वाली) बातों से पहले ख़ैरात निकाल दो अब जबकि तुमने ऐसा नहीं किया है और ख़ुदा ने तुम्हारी तौबा कु़बूल कर ली है तो अब नमाज़ क़ायम करो और ज़कात अदा करो और अल्लाह व रसूल की इताअत (कहने पर अमल) करो कि अल्लाह तुम्हारे आमाल (कामों) से ख़ू़ब बाख़बर है
58 14 क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा है जिन्होंने उस क़ौम से दोस्ती कर ली है जिस पर ख़ुदा ने अज़ाब नाजि़ल किया है कि ये न तुम में से हैं और न उनमें से और ये झूठी क़समें खाते हैं और खु़द भी अपने झूठ से बाख़बर हैं
58 15 अल्लाह ने इनके लिए सख़्त अज़ाब मुहैय्या (इन्तेज़ाम) कर रखा है कि ये बहुत बुरे आमाल (कामों) कर रहे थे
58 16 उन्होंने अपनी क़समों को सिपर बना लिया है और राहे ख़ुदा में रूकावट डाल रहे हैं तो उनके लिए रूसवा (शर्मिन्दा) करने वाला अज़ाब है
58 17 अल्लाह के मुक़ाबले में उनका माल और उनकी औलाद कोई काम आने वाला नहीं है ये सब जहन्नमी हैं और वहीं हमेशा रहने वाले हैं
58 18 जिस दिन ख़ुदा उन सबको दोबारा जि़न्दा करेगा और ये उससे भी ऐसी ही क़समें खायेंगे जैसी तुमसे खाते हैं और उनका ख़्याल होगा कि उनके पास कोई बात है हालांकि ये बिल्कुल झूठे हैं
58 19 इन पर शैतान ग़ालिब आ गया है और उसने इन्हें जि़क्र ख़ुदा से ग़ाफि़ल (बेपरवाह) कर दिया है आगाह हो जाओ कि ये शैतान का गिरोह हैं और शैतान का गिरोह बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) ख़सारे (घाटे, नुक़सान) में रहने वाला है
58 20 बेशक जो लोग ख़ुदा व रसूल से दुश्मनी करते हैं और उनका शुमार (उनकी गिनती) ज़लील तरीन (सबसे ज़लील) लोगों मंे है
58 21 अल्लाह ने ये लिख दिया है कि मैं और मेरे रसूल ग़ालिब आने वाले हैं बेशक अल्लाह साहेबे कू़व्वत (ताक़त वाला) और साहेबे इज़्ज़त है
58 22 आप कभी न देखेंगे कि जो क़ौम अल्लाह और रोज़े आखि़रत पर ईमान रखने वाली है वह उन लोगों से दोस्ती कर रही है जो अल्लाह और उसके रसूल से दुश्मनी करने वाले हैं चाहे वह उनके बाप दादा या औलाद या बरादरान या अशीरा और क़बीला (ख़ानदान और कुनबे) वाले ही क्यों न हों। अल्लाह ने साहेबाने ईमान के दिलों में ईमान लिख दिया है और उनकी अपनी ख़ास रूह (नूर) के ज़रिये ताईद (मदद) की है और वह उन्हें उन जन्नतों में दाखि़ल करेगा जिनके नीचे नहरें जारी होंगी और वह उन्हीं में हमेशा रहने वाले होंगे। ख़ुदा उनसे राज़ी होगा और वह ख़ुदा से राज़ी होंगे यही लोग अल्लाह का गिरोह हैं और आगाह हो जाओ कि अल्लाह का गिरोह ही नजात (छुटकारा, रिहाई) पाने वाला है

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