Thursday, 16 April 2015

Sura-a-Hijr 15th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-हिज्र
15   शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा रहमान और रहीम है।
15 1 अलिफ़ लाम रा ये किताब ख़ु़दा और कु़रआने मुबीन की आयात (निशानियां) हैं 
15 2 एक दिन आने वाला है जब कुफ़्फ़ार भी ये तमन्ना करेंगे कि काश हम भी मुसलमान होते 
15 3 इन्हें इनके हाल पर छोड़ दो खायें पियें और मज़े उड़ायें और उम्मीदें इन्हें गफ़लत में डालें रहें अनक़रीब (बहुत जल्द) इन्हें सब कुछ मालूम हो जायेगा
15 4 और हमने किसी क़रिया (बस्ती) को हलाक नहीं किया मगर यह कि इसके लिए एक मेयाद (वक़्त) मुक़र्रर (तय) कर दी थी 
15 5 कोई उम्मत न अपने वक़्त से आगे बढ़ सकती है और न पीछे हट सकती है 
15 6 और इन लोगांे ने कहा कि ऐ वह शख़्स जिस पर कु़रआन नाजि़ल हुआ है तो दीवाना है
15 7 अगर तू अपने दावे में सच्चा है तो फ़रिश्तों को क्यों सामने नहीं लाता है 
15 8 हालांकि हम फ़रिश्तों को हक़ के फ़ैसले के साथ ही भेजा करते हैं और इसके बाद फिर किसी को मोहलत नहीं दी जाती है 
15 9 हमने ही इस कु़रआन को नाजि़ल किया है और हम ही इसकी हिफ़ाज़त करने वाले हैं 
15 10 और हमने आपसे पहले भी मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) क़ौमों में रसूल भेजे हैं 
15 11 और जब इनके पास रसूल आते हैं तो ये सिर्फ़ उनका मज़ाक़ उड़ाते हैं 
15 12 और हम इसी तरह इस गुमराही को मुजरेमीन (जुर्म करने वालों) के दिल में डाल देते हैं
15 13 ये कभी ईमान न लायेंगे कि इनसे पहले वालों का तरीक़ा भी ऐसा ही रह चुका है 
15 14 हम अगर आसमान में इनके लिए कोई दरवाज़ा खोल दें और ये लोग दिन दहाड़े इसी दरवाजे़ से चढ़ जायें 
15 15 तो भी कहेंगे कि हमारी आँखों को मदहोश (बेहोश) कर दिया गया है और हम पर जादू कर दिया गया है 
15 16 और हमने आसमान में बुर्ज बनाये और इन्हें देखने वालों के लिए सितारों से आरास्ता (सजाया) कर दिया 
15 17 और हर शैतान रजीम से महफ़ूज़ बना दिया 
15 18 मगर ये कि कोई शैतान वहाँ की बात  चुराना (छुपकर सुनना) चाहे तो उसके पीछे दहकता हुआ शोला लगा दिया गया है
15 19 और हमने ज़मीन को फैला दिया है और इसमें पहाड़ों के लंगर डाल दिये हैं और हर चीज़ को मुअईयन (तय की हुई) मिक़दार (मात्रा) के मुताबिक़ (हिसाब से) पैदा किया है 
15 20 और इसमें तुम्हारे लिए भी असबाबे मईशत (काम के असबाब, साज़ो-सामान) क़रार दिये हैं और उन (जानवरों) के लिए भी जिनके तुम राजि़क़ (रिज़्क़ देने वाले) नहीं हो 
15 21 और कोई शै (चीज़) ऐसी नहीं है जिसके हमारे पास ख़ज़ाने न हों और हम हर शै को एक मुअईयन (तय की हुई) मिक़दार (मात्रा) में ही नाजि़ल करते हैं 
15 22 और हमने हवाओं को बादलों का बोझ उठाने वाला बनाकर चलाया है फिर आसमान से पानी बरसाया है जिससे तुमको सेराब किया है और तुम इसके ख़ज़ानेदार नहीं थे 
15 23 और हम ही हयात (जि़न्दगी) व मौत के देने वाले हैं और हम ही सबके वाली (मालिक) व वारिस हैं 
15 24 और हम तुमसे पहले गुज़र जाने वालों को भी जानते हैं और बाद में आने वालों से भी बा ख़बर हैं
15 25 और तुम्हारा परवरदिगार ही सबको एक जगह जमा करेगा कि वह साहेबे इल्म भी है और साहेबे हिकमत भी 
15 26 और हमने इन्सान को स्याही (काली) मायल (ख़मीर दी हुई) नरम मिट्टी से पैदा किया है जो सूख कर खन-खन बोलने लगी थी 
15 27 और जिन्नात को इससे पहले ज़हरीली आग से पैदा किया है 
15 28 और उस वक़्त को याद करो कि जब तुम्हारे परवरदिगार ने मलायका (फ़रिश्तों) से कहा था कि स्याही (काली) मायल (ख़मीर दी हुई) नरम खनखनाती हुई मिट्टी से एक बशर (आदमी) पैदा करने वाला हूँ 
15 29 फिर जब मुकम्मल (पूरा) कर लूँ और इसमें अपनी रूहे हयात (जि़न्दगी की हवा)  फँूक दूँ तो सब के सब सज्दे में गिर पड़ना 
15 30 तो तमाम मलायका (फरिशतों) ने इज्तेमाई तौर पर (सब के सब ने मिलकर पूरे तौर पर) सजदा कर लिया था 
15 31 अलावा इबलीस के, कि वह सजदागुज़ारांे (सदजा करने वालों) के साथ न हो सका 
15 32 अल्लाह ने कहा कि ऐ इबलीस तुझे क्या हो गया है कि तू सजदागुज़ारों (सदजा करने वालों) में शामिल न हो सका 
15 33 उसने कहा कि मैं ऐसे बशर (आदमी) को सजदा  नहीं कर सकता जिसे तूने स्याही (काली) मायल (ख़मीर दी हुई) खु़श्क मिट्टी से पैदा किया है 
15 34 इरशाद हुआ कि तू यहाँ से निकल जा कि तू मरदूद है 
15 35 और तुझ पर क़यामत के दिन तक लाॅनत है 
15 36 उसने कहा कि परवरदिगार मुझे रोज़-ए-हश्र (क़यामत के दिन) तक की मोहलत दे दे
15 37 जवाब मिला कि तुझे मोहलत दे दी गई है 
15 38 एक मालूम और मुअईयन (तय किये हुए) वक़्त के लिए 
15 39 उसने कहा कि परवरदिगार जिस तरह तूने मुझे गुमराह किया है मैं उन बन्दों के लिए ज़मीन मंे साज़ व सामान आरास्ता करूँगा और सबको इकठ्ठा गुमराह (राह से बहकाया) करूँगा 
15 40 अलावा तेरे उन बन्दों के जिन्हें तूने ख़ालिस (एकदम पाक-साफ़) बना लिया है 
15 41 इरशाद हुआ कि यही मेरा सीधा रास्ता है 
15 42 मेरे (ख़ास) बन्दों पर तेरा कोई इखि़्तयार नहीं है अलावा उनके जो गुमराहों (ग़लत राहों पर भटकने वालों) में से तेरी पैरवी (कहने पर अमल) करने लगें
15 43 और जहन्नम ऐसे तमाम लोगों की आखि़री वादा गाह है 
15 44 इसके सात दरवाजे़ हैं और हर दरवाजे़ के लिए एक हिस्सा तक़सीम (बाॅंट दिया गया) कर दिया गया है 
15 45 बेशक साहेबाने तक़वा (नेक, ख़ुदा से डरने वाले लोग) बाग़ात (हरे भरे बाग़ों) और चश्मों (पानी के झरनों) के दरम्यान (बीच) रहेंगे 
15 46 उन्हें हुक्म होगा कि तुम इन बाग़ात (बाग़ों) में सलामती और हिफ़ाज़त (इत्मिनान) के साथ दाखि़ल हो जाओ 
15 47 और हमने उनके सीनों से हर तरह की कदूरत (दुशमनी) निकाल ली है और भाईयों की तरह आमने-सामने तख़्त पर बैठे होंगे 
15 48 न उन्हें कोई तकलीफ़ छू सकेगी और न वहाँ से निकाले जायेंगे 
15 49 मेरे बन्दों को ख़बर कर दो कि मंै बहुत बख़्शने वाला और मेहरबान हूँ 
15 50 और मेरा अज़ाब भी बड़ा दर्दनाक अज़ाब है
15 51 और उन्हें इब्राहीम के मेहमानों के बारे मंे इत्तेला दे दो 
15 52 जब वह लोग इब्राहीम के पास वारिद (आये, हाजि़र) हुए और सलाम किया तो उन्होंने कहा कि हम आपसे ख़ौफ़ज़दा (डरते) हैं 
15 53 उन्होंने कहा कि आप डरें नहीं हम आपको एक फ़रज़न्दे दाना (अक़्लमन्द व होशियार, दूरन्देश पुत्र) की बशारत (ख़ुशख़बरी) देने के लिए आये हैं 
15 54 इब्राहीम ने कहा कि अब जबकि बुढ़ापा छा गया है तो मुझे किस चीज़ की बशारत (ख़ुशख़बरी) दे रहे हो 
15 55 उन्होंने कहा कि हम आपको बिल्कुल सच्ची बशारत (ख़ुशख़बरी) दे रहे हैं ख़बरदार आप मायूसों में से न हो जायें 
15 56 इब्राहीम ने कहा कि रहमते ख़ु़दा से सिवाए गुमराहों (भटकी हुई राह के लोगों) के कौन मायूस हो सकता है 
15 57 फिर कहा कि मगर ये तो बताईये कि आप लोगों का मक़सद क्या है 
15 58 उन्होंने कहा कि हम एक मुजरिम (जुर्म करने वाली) क़ौम की तरफ़ (अज़ाब के लिये) भेजे गये हैं
15 59 अलावा लूत के घर वालों के कि उनमें के हर एक को निजात (अज़ाब से हिफ़ाज़त) देने वाले हैं 
15 60 अलावा उनकी बीवी के कि इसके लिए हमने तय कर दिया है कि वह अज़ाब में रह जाने वालों में से होगी 
15 61 फिर जब फ़रिश्ते आले लूत के पास आये 
15 62 और लूत ने कहा कि तुम तो अजनबी (नये) कि़स्म के लोग मालूम होते हो 
15 63 तो उन्होंने कहा कि हम वह अज़ाब लेकर आये हैं जिसमें आपकी क़ौम शक किया करती थी 
15 64 अब हम वह बरहक़ अज़ाब लेकर आये हैं और हम बिल्कुल सच्चे हैं 
15 65 आप रात रहे अपने अहल (अपने वालों) को लेकर निकल जायें और ख़ुद पीछे-पीछे सबकी निगरानी करते चलें और कोई पीछे की तरफ़ मुड़कर भी न देखे और जिधर (जाने) का हुक्म दिया गया है सब उधर ही चले जायें 
15 66 और हमने इस अम्र (हुक्म) का फ़ैसला कर लिया है कि सुबह होते-होते इस क़ौम की जड़ें तक काट दी जायेंगी 
15 67 और उधर शहर वाले नये मेहमानों को देखकर खु़शियाँ मनाते हुए आ गये 
15 68 लूत ने कहा कि ये हमारे मेहमान हैं ख़बरदार हमें बदनाम न करना 
15 69 और अल्लाह से डरो और रूसवाई (ज़लील करने) का सामान न करो 
15 70 उन लोगों ने कहा कि क्या हमने आपको सबके आने से मना नहीं कर दिया था 
15 71 लूत ने कहा कि ये हमारी क़ौम की लड़कियाँ हाजि़र हैं अगर तुम ऐसा ही करना चाहते हो (इनसे निकाह कर लो) 
15 72 आपकी जान की क़सम ये लोग गुमराही (ग़लत राह) के नशे में अँधे हो रहे हैं
15 73 नतीजा ये हुआ कि सुबह होते ही इन्हें एक चीख़ (बड़े ज़ोरों की चिंघाड़, डरावनी आवाज़) ने अपनी गिरफ़्त (पकड़) में ले लिया 
15 74 फिर हमने उन्हें तह व बाला (उलट-पलट) कर दिया और इनके ऊपर खड़न्जे और पत्थरों की बारिश कर दी 
15 75 इन बातों में साहेबाने होश (अक़्ल वालों) के लिए बड़ी निशानियाँ पायी जाती हैं 
15 76 और ये बस्ती एक मुस्तकि़ल (हमेशा) चलने वाले रास्ते पर है 
15 77 और बेशक इसमें भी साहेबाने ईमान के लिए निशानियाँ हंै 
15 78 और अगरचे एैका (के रहने) वाले ज़ालिम थे 
15 79 तो हमने उनसे भी इन्तिक़ाम लिया और ये दोनों बस्तियाँ वाजे़ह (खुली हुई) शाहराह पर हैं
15 80 और असहाबे हिज्र ने भी मुरसलीन की तकज़ीब (झुठलाना) की 
15 81 और हमने उन्हें भी अपनी निशानियाँ दीं तो वह आराज़ (इन्कार) करने वाले ही रह गये 
15 82 और ये लोग पहाड़ को तराश कर महफ़ूज़ कि़स्म के मकानात बनाते थे 
15 83 तो उन्हें भी सुबह सवेरे ही एक चिंघाड़ (डरावनी आवाज़) ने पकड़ लिया 
15 84 तो उन्होंने जिस क़द्र भी हासिल किया था कुछ काम न आया 
15 85 और हमने आसमान व ज़मीन और इनके दरम्यान (बीच में) जो कुछ भी है सबको बरहक़ (हक़ पर) पैदा किया है और क़यामत बहरहाल (हर हाल में) आने वाली है लेहाज़ा आप इनसे ख़ूबसूरती के साथ दरगुज़र कर दें 
15 86 बेशक आपका परवरदिगार सबका पैदा करने वाला और सबका जानने वाला है
15 87 और हमने आपको सब-ए-मसानी (सात आयतों वाला सूरए अलहम्द) और क़ु़रआन अता किया है 
15 88 लेहाज़ा आप उन कुफ़्फ़ार में बाज़ अफ़राद को हमने जो कुछ नेअमतें अता कर दी हैं उनकी तरफ़ निगाह उठाकर भी न देखें और इसके बारे में हर्गिज़ रंजीदा (ग़मगीन) भी न हों बस आप अपने शानों को साहेबाने ईमान के लिए झुकाए रखें 
15 89 और ये कह दें कि मैं तो बहुत वाजे़ह अंदाज़ से डराने वाला हूँ 
15 90 जिस तरह कि हमने उन लोगों पर अज़ाब नाजि़ल किया जो किताबे ख़ु़दा का हिस्सा बाँट करने वाले थे 
15 91 जिन लोगों ने कु़रआन को टुकड़े कर दिया है 
15 92 लेहाज़ा आपके परवरदिगार की क़सम कि हम उनसे इस बारे में ज़रूर सवाल (पूछताछ) करेंगे 
15 93 जो कुछ वह किया करते थे
15 94 पस आप इस बात का वाजे़ह एलान कर दें जिसका हुक्म दिया गया है और मुशरेकीन से किनाराकश (बिल्कुल अलग) हो जायें 
15 95 हम उन इस्तेहज़ा (हॅंसी मज़ाक़) करने वालों के लिए काफ़ी हैं 
15 96 जो ख़ु़दा के साथ दूसरा ख़ु़दा क़रार देते हैं और अनक़रीब (बहुत जल्द) उन्हें उनका हाल मालूम हो जायेगा 
15 97 और हम जानते हैं कि आप इनकी बातों से दिल तंग हो रहे हैं 
15 98 तो अब अपने परवरदिगार के हम्द (तारीफ़) की तसबीह कीजिए और सजदा गुज़ारों (सजदा करने वालों) में शामिल हो जायंे 
15 99 और उस वक़्त तक अपने रब की इबादत करते रहें जब तक कि मौत न आ जाये

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