Thursday, 16 April 2015

Sura-e-Naml 27th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-नम्ल
27   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
27 1 ता सीन ये कु़रआन और रौशन किताब की आयतें हैं
27 2 ये साहेबाने ईमान के लिए हिदायत और बशारत (ख़ुशख़बरी) है
27 3 जो नमाज़ क़ायम करते हैं ज़कात अदा करते हैं और आखि़रत (क़यामत) पर यक़ीन रखते हैं
27 4 बेशक जो लोग आखि़रत (क़यामत) पर ईमान नहीं रखते हैं हमने उनके आमाल (कामों) को उनके लिए आरास्ता (सजाना) कर दिया है और वह उन्हीं आमाल (कामों) में भटक रहे हैं
27 5 इन्हीं लोगों के लिए बदतरीन (सबसे बुरी) अज़ाब है और ये आखि़रत में ख़सारा (घाटा, नुक़सान) वाले हैं
27 6 और आपको ये कु़रआन ख़ुदाए अलीम व हकीम की तरफ़ से अता किया जा रहा है
27 7 उस वक़्त को याद करो जब मूसा ने अपने अहल से कहा था कि मैंने एक आग देखी है और अनक़रीब (बहुत जल्द) मैं इससे रास्ते की ख़बर लाऊँगा या आग ही का कोई अंगारा ले आऊँगा कि तुम ताप सको
27 8 इसके बाद जब आग के पास आये तो आवाज़ आयी कि बाबरकत (बरकत वाला) है वह ख़ुदा जो आग के अन्दर और इसके एतराफ़ (इर्द-गिर्द) में अपना जलवा दिखाता है और पाक व पाकीज़ा (साफ़-सुथरा)  है वह परवरदिगार (पालने वाला) जो आलमीन का पालने वाला है
27 9 मूसा! मैं वह ख़ुदा हूँ जो सब पर ग़ालिब और साहेबे हिकमत (अक़्ल, दानाई वाला) है
27 10 अब तुम अपने असा को ज़मीन पर डाल दो-इसके बाद मूसा ने जब देखा तो क्या देखा कि वह साँप की तरह लहरा रहा है मूसा उलटे पाँव पलट पड़े और मुड़कर भी न देखा-आवाज़ आयी कि मूसा डरो नहीं मेरी बारगाह में मुरसलीन (पैग़म्बर) नहीं डरा करते हैं
27 11 हाँ कोई शख़्स गुनाह करके फिर तौबा कर ले और इस बुराई को नेकी से बदल दे तो मैं बहुत बख़्शने (माफ़ करने) वाला मेहरबान हूँ
27 12 और अपने हाथ को गिरेबान मंे डालकर निकालो तो देखोगे कि बग़ैर किसी बीमारी के सफ़ेद चमकदार निकलता है ये उन नौ मोजिज़ात में से एक है जिन्हें फि़रऔन और उसकी क़ौम के लिए दिया गया है कि ये बड़ी बदकार (बुरे काम करने वाली) क़ौम है
27 13 मगर जब भी इनके पास वाजे़ह (रौशन, खुली हुई) निशानियाँ आयीं तो इन्होंने कह दिया कि ये खुला हुआ जादू है
27 14 इन लोगों ने जु़ल्म और ग़्ाु़रूर के जज़्बे की बिना (वजह) पर इन्कार कर दिया था वरना इनके दिल को बिल्कुल यक़ीन था फिर देखो कि ऐसे मुफ़्सेदीन (फ़साद करने वालों) का अंजाम क्या होता है
27 15 और हमने दाऊद और सुलेमान को इल्म अता किया तो दोनों ने कहा कि ख़ुदा का शुक्र है कि उसने हमें बहुत से बन्दों पर फ़ज़ीलत अता की है
27 16 और फिर सुलेमान दाऊद के वारिस हुए और उन्होंने कहा कि लोगों मुझे परिन्दों की बातों का इल्म दिया गया है और हर फ़ज़ीलत का एक हिस्सा अता किया गया है और ये ख़ुदा का खुला हुआ फ़ज़्ल (मेहरबानी) व करम है
27 17 और सुलेमान के लिए उनका तमाम लश्कर जिन्नात इन्सान और परिन्दे सब इकठ्ठा किये जाते थे तो बिल्कुल मुरत्तब (तरतीब में) मुनज़्ज़म (निज़ाम में) खड़े कर दिये जाते थे
27 18 यहाँ तक कि जब वह लोग वादीए नम्ल तक आये तो एक चूँटी ने आवाज़ दी कि च्यूटियों सब अपने-अपने सूराख़ों में दाखि़ल हो जाओ कि सुलेमान और उनका लश्कर तुम्हें पामाल (पैर से कुचल) न कर डाले और उन्हें इसका शऊर (समझ) भी न हो
27 19 सुलेमान उसकी बात पर मुस्कुरा दिये और कहा कि परवरदिगार (पालने वाले) मुझे तौफ़ीक़ दे कि मैं तेरी इस नेअमत का शुक्रिया अदा करूँ जो तूने मुझे और मेरे वाल्दैन को अता की है और ऐसा नेक (अच्छा) अमल करूँ कि तू राज़ी हो जाये और अपनी रहमत से मुझे अपने नेक (अच्छा) बन्दों में शामिल कर ले
27 20 और सुलेमान ने हुदहुद को तलाश किया और वह नज़र न आया तो कहा कि आखि़र मुझे क्या हो गया है कि मैं हुदहुद को नहीं देख रहा हूँ क्या वह ग़ायब हो गया है
27 21 मैं उसे सख़्त तरीन (बहुत सख़्त) सज़ा दूँगा या फिर जि़ब्हा कर डालूँगा या ये कि वह मेरे पास कोई वाजे़ह (रौशन, खुली हुई) दलील ले आयेगा
27 22 फिर थोड़ी देर न गुज़री थी कि हुदहुद आ गया और उसने कहा कि मुझे एक ऐसी बात मालूम हुई है जो आपको भी मालूम नहीं है और मैं मुल्के सबा से एक यक़ीनी ख़बर लेकर आया हूँ
27 23 मैंने एक औरत को देखा है जो सब पर हुकूमत कर रही है और उसे दुनिया की हर चीज़ हासिल है और उसके पास बहुत बड़ा तख़्त भी है
27 24 मैंने देखा है कि वह और उसकी क़ौम सब सूरज की पूजा कर रहे हैं और शैतान ने इनकी नज़रों में इस अमल को हसीन बना दिया है और उन्हंे सही रास्ते से रोक दिया है कि अब वह ये भी नहीं समझते हैं
27 25 कि क्यों न उस ख़ुदा का सज्दा करें जो आसमान व ज़मीन के पोशीदा असरार को ज़ाहिर करने वाला है और लोग जो कुछ छिपाते हैं या ज़ाहिर करते हैं सबका जानने वाला है
27 26 वह अल्लाह है जिसके अलावा कोई ख़ुदा नहीं है और वह अर्श अज़ीम का परवरदिगार (पालने वाला) है
27 27 सुलेमान ने कहा कि मैं अभी देखता हूँ कि तूने सच कहा है या तेरा शुमार भी झूठों में है 
27 28 ये मेरा ख़त लेकर जा और उन लोगों के सामने डाल दे फिर उनके पास से हट जा और ये देख कि वह क्या जवाब देते हैं
27 29 उस औरत ने कहा कि मेरे ज़ाएमा (हुकूमत के ओमरा) सल्तनत! मेरी तरफ़ एक बड़ा मोहतरम ख़त भेजा गया है
27 30 जो सुलेमान की तरफ़ से है और उसका मज़मून ये है कि शुरू करता हूँ ख़ुदा के नाम से जो बड़ा रहमान व रहीम है
27 31 देखो मेरे मुक़ाबले में सरकशी (बग़ावत) न करो और इताअत (कहने पर अमल) गुज़ार बनकर चले आओ
27 32 ज़एमा (हुकूमत के सरदार) ममलेकत ! मेरे मसले में राय दो कि मैं तुम्हारी राय के बगै़र कोई हतमी (अटल) फ़ैसला नहीं कर सकती
27 33 उन लोगों ने कहा कि हम साहेबाने कू़व्वत (ताक़त) और माहिरीने जंग व जिदाल (जंग के माहिर लड़ने वाले) हैं और इखि़्तयार बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) आपके हाथ में है आप बताएं कि आपका हुक्म क्या है
27 34 उसने कहा कि बादशाह जब किसी इलाके़ में दाखि़ल होते हैं तो बस्ती को वीरान कर देते हैं और साहेबाने इज़्ज़त को ज़लील कर देते हैं और उनका यही तरीक़ाए कार (काम का तरीक़ा) होता है
27 35 और मैं उनकी तरफ़ एक हदिया (तोहफ़ा) भेज रही हूँ और फिर देख रही हूँ कि मेरे नुमाइन्दे क्या जवाब लेकर आते हैं
27 36 इसके बाद जब क़ासिद (ख़त व पैग़ाम पहुंचाने वाला) सुलेमान के पास आया तो उन्होंने कहा कि तुम अपने माल से मेरी इमदाद (मदद) करना चाहते हो जबकि जो कुछ ख़ुदा ने मुझे दिया है वह तुम्हारे माल से कहीं ज़्यादा बेहतर (ज़्यादा अच्छा) है जाओ तुम ख़ु़द ही अपने हदिये से ख़ु़श रहो
27 37 जाओ तुम वापस जाओ अब मैं एक ऐसा लश्कर लेकर आऊँगा जिसका मुक़ाबला मुमकिन न होगा और फिर सबको जि़ल्लत व रूस्वाई (शर्मिन्दगी) के साथ मुल्क से बाहर निकालूँगा
27 38 फिर ऐलान किया कि मेरे अशराफ़े (सरदारे) सल्तनत! तुम में कौन है जो उसके तख़्त को लेकर आये क़ब्ल इसके कि वह लोग इताअत (कहने पर अमल) गुज़ार बनकर हाजि़र हों
27 39 तो जिन्नात में से एक देव ने कहा कि मैं इतनी जल्दी ले आऊँगा कि आप अपनी जगह से भी न उठेंगे मैं बड़ा साहेबे कू़व्वत (ताक़त) और जि़म्मेदार हूँ
27 40 और एक शख़्स ने जिसके पास किताब का एक हिस्सा इल्म था उसने कहा कि मैं इतनी जल्दी ले आऊँगा कि आपकी पलक भी न झपकने पाये इसके बाद सुलेमान ने तख़्त को अपने सामने हाजि़र देखा तो कहने लगे ये मेरे परवरदिगार (पालने वाले) का फ़ज़्ल (मेहरबानी) व करम है वह मेरा इम्तिहान लेना चाहता है कि मैं शुक्रिया अदा करता हूँ या कुफ्ऱाने नेअमत (नेमत का इन्कार) करता हूँ और जो शुक्रिया अदा करेगा वह अपने ही फ़ायदे के लिए करेगा और जो कुफ्ऱाने नेअमत (नेमत का इन्कार) करेगा उसकी तरफ़ से मेरा परवरदिगार (पालने वाला) बेनियाज़ (जिसे कोई/किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं) और करीम (करम करने वाला) है
27 41 सुलेमान ने कहा कि उसके तख़्त को ना क़ाबिले शिनाख़्त (जिसकी पहचान न हो सके) बना दिया जाये ताकि हम देखें कि वह समझ पाती है या नासमझ लोगों में है
27 42 जब वह आयी तो सुलेमान ने कहा कि क्या तुम्हारा तख़्त ऐसा ही है उसने कहा कि बिल्कुल ऐसा ही है बल्कि शायद यही है और मुझे तो पहले ही इल्म हो गया था और मैं इताअत (कहने पर अमल) गुज़ार हो गई थी
27 43 और उसे उस माबूद (जिसकी इबादत करती थी) ने रोक रखा था जिसे ख़ुदा को छोड़कर माबूद (इबादत के क़ाबिल) बनाये हुए थी कि वह एक काफि़र (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) क़ौम से ताल्लुक़ रखती थी
27 44 फिर उससे कहा गया कि क़स्र (महल) में दाखि़ल हो जाये अब जो उसने देखा तो समझी के कोई गहरा पानी है और अपनी पिण्डलियाँ खोल दीं सुलेमान ने कहा कि ये एक कि़ला है जिसे शीशों से मँढ दिया गया है और बिल्क़ीस ने कहा कि मैंने अपने नफ़्स (जान) पर ज़्ाु़ल्म किया था और अब मैं सुलेमान के साथ उस ख़ुदा पर ईमान ले आयी हूँ जो आलमीन का पालने वाला है
27 45 और हमने क़ौमे समूद की तरफ़ उनके भाई सालेह को भेजा कि तुम लोग अल्लाह की इबादत करो तो दोनों फ़रीक़ (फि़रक़े के लोग) आपस में झगड़ा करने लगे
27 46 सालेह ने कहा कि क़ौम वालों आखि़र भलाई से पहले बुराई की जल्दी क्यों कर रहे हो तुम लोग अल्लाह से अस्तग़फ़ार (गुनाहों की माफ़ी की दुआ) क्यों नहीं करते कि शायद तुम पर रहम कर दिया जाये
27 47 उन लोगों ने कहा कि हमने तुमसे और तुम्हारे साथियों से बुरा शगुन ही पाया है उन्होंने कहा कि तुम्हारी बदकि़स्मती अल्लाह के पास मुक़द्दर है और ये दर हक़ीक़त तुम्हारी आज़माईश की जा रही है
27 48 और इस शहर में नौ अफ़राद (लोगों) थे जो ज़मीन में फ़साद (लड़ाई-झगड़ा) बरपा करते थे और इसलाह नहीं करते थे
27 49 उन लोगों ने कहा कि तुम सब आपस में ख़ुदा की क़सम खाओ कि सालेह और इनके घर वालों पर रातों रात हमला कर दोगे और बाद में उनके वारिसों से कह दोगे कि हम उनके घर वालों की हलाकत (मौत, तबाही) के वक़्त मौजूद ही नहीं थे और हम अपने बयान में बिल्कुल सच्चे हैं
27 50 और फिर उन्होंने अपनी चाल चली और हमने भी अपना इन्तिज़ाम किया कि उन्हें ख़बर भी न हो सकी
27 51 फिर अब देखो कि इनकी मक्कारी का अंजाम क्या हुआ कि हमने उन रऊसा (सरदारों) को उनकी क़ौम समेत बिल्कुल तबाह व बर्बाद कर दिया
27 52 अब ये उनके घर हैं जो ज़्ाु़ल्म की बिना पर ख़ाली पड़े हुए हैं और यक़ीनन इसमें साहेबाने इल्म के लिए एक निशानी पायी जाती है
27 53 और हमने उन लोगों को निजात दे दी जो ईमान वाले थे और तक़्वा इलाही (ख़ुदा का ख़ौफ़) इखि़्तयार किये हुए थे
27 54 और लूत को याद करो जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि क्या तुम आँखें रखते हुए बदकारी (बुरे काम) का इरतिकाब कर रहे हो
27 55 क्या तुम लोग अज़राहे शहवत (शहवत के रास्ते पर) मर्दों से ताल्लुक़ात पैदा कर रहे हो और औरतों को छोड़े दे रहे हो दर हक़ीक़त तुम लोग बिल्कुल जाहिल क़ौम हो
27 56 तो उनकी क़ौम का कोई जवाब नहीं था सिवाए इसके कि लूत वालों को अपनी बस्ती से निकाल बाहर कर दो कि ये लोग बहुत पाकबाज़ बन रहे हैं
27 57 तो हमने लूत और उनके ख़ानदान वालों को ज़ौजा के अलावा सबको निजात दे दी कि वह पीछे रह जाने वालों में थी
27 58 और हमने उन पर अजीब व ग़रीब कि़स्म की बारिश कर दी कि जिन लोगों को डराया जाता है उन पर बारिशे अज़ाब भी बहुत बुरी होती है
27 59 आप कहिये कि सारी तारीफ़ अल्लाह के लिए है और सलाम है उसके उनबन्दों पर जिन्हें उसने मुन्तख़ब (चुना हुआ) कर लिया है ‘आया’ ख़ुदा ज़्यादा बेहतर (ज़्यादा अच्छा)  है या जिन्हें ये शरीक बना रहे हैं
27 60 भला वह कौन है जिसने आसमान व ज़मीन को पैदा किया है और तुम्हारे लिए आसमान से पानी बरसाया है फिर हमने उससे खुशनुमां बाग़ उगाये हैं कि तुम उनके दरख़्तों (पेड़ों) को नहीं उगा सकते थे क्या ख़ुदा के साथ कोई और ख़ुदा है......नहीं बल्कि ये लोग खु़द अपनी तरफ़ से दूसरों को ख़ुदा के बराबर बना रहे हैं
27 61 भला वह कौन है जिसने ज़मीन को क़रार की जगह बनाया और फिर उसके दरम्यान (बीच में) नहरें जारी कीं और इसके लिए पहाड़ बनाये और दो दरियाओं के दरम्यान (बीच में) हदे फ़ासिल (आड़) क़रार दी क्या ख़ुदा के साथ कोई और भी ख़ुदा है हर्गिज़ (बिल्कुल) नहीं अस्ल ये है कि उनकी अकसरियत (ज़्यादातर लोग) जाहिल है
27 62 भला वह कौन है जो मुज़तर की फ़रियाद को सुनता है जब वह उसको आवाज़ देता है और उसकी मुसीबत को दूर कर देता है और तुम लोगों को ज़मीन का वारिस बनाता है। क्या ख़ुदा के साथ कोई और ख़ुदा है। नहीं बल्कि ये लोग बहुत कम नसीहत (अच्छी बातें जो बताई जाएं) हासिल करते हैं
27 63 भला वह कौन है जो ख़ु़श्की और तरी की तारीकियों में तुम्हारी रहनुमाई करता है और बारिश से पहले बशारत (ख़ुशख़बरी) के तौर पर हवायें चलाता है क्या अल्लाह के साथ कोई और ख़ुदा है। यक़ीनन वह ख़ुदा तमाम मख़लूक़ात (पैदा की हुई खि़लक़त या शै) से कहीं ज़्यादा बलन्द व बाला (बरतर) है जिन्हें यह लोग उसका शरीक बना रहे हैं 
27 64 या कौन है जो ख़ल्क़ की इब्तिदा (शुरूआत) करता है ((मख़लूक़ को पहली बार पैदा करता है)) और फिर दोबारा भी वही पैदा करेगा और कौन है जो आसमान और ज़मीन से रिज़्क़ अता करता है क्या ख़ुदा के साथ कोई और भी माबूद (इबादत के क़ाबिल) है आप कह दीजिए कि अगर तुम अपने दावे में सच्चे हो तो अपनी दलील ले आओ
27 65 कह दीजिए कि आसमान व ज़मीन में गै़ब का जानने वाला अल्लाह के अलावा कोई नहीं है और ये लोग नहीं जानते हैं कि उन्हें कब दोबारा उठाया जायेगा
27 66 बल्कि आखि़रत के बारे में उनका इल्म नाकि़स (नामुकम्मल, नुक़्स या कमी के साथ) रह गया है बल्कि ये उसकी तरफ़ से शक में मुब्तिला (पड़े) हैं बल्कि ये बिल्कुल अंधे हैं
27 67 और कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) ये कहते हैं कि क्या जब हम और हमारे बाप दादा सब मिट्टी हो जायेंगे तो फिर दोबारा निकाले जायेंगे
27 68 ऐसा वादा हमसे और हमारे बाप दादा से बहुत पहले से किया जा रहा है और ये सब अगले लोगों की कहानियां हैं और बस
27 69 आप उन से कह दीजिए कि रूए ज़मीन में सैर करो और फिर देखो कि मुजरेमीन (जुर्म करने वालों) का अंजाम कैसा हुआ है
27 70 और आप उनके हाल पर रंजीदा (ग़मगीन) न हों और ये चालें चल रहे हैं उनकी तरफ़ से भी दिल तंग (परेशान) न हों
27 71 और यह लोग कहते हैं कि अगर तुम सच्चे हो तो ये वादा आखि़र कब पूरा होने वाला है
27 72 तो कह दीजिए कि बहुत मुमकिन है कि जिस अज़ाब की तुम जल्दी कर रहे हो उसका कोई हिस्सा तुम्हारे पीछे ही लगा हुआ हो
27 73 और आपका परवरदिगार (पालने वाला) बन्दों के हक़ में बहुत ज़्यादा मेहरबान है लेकिन उनकी अकसरियत (ज़्यादातर लोग) शुक्रिया नहीं अदा करती है
27 74 और आपका परवरदिगार (पालने वाला) वह सब जानता है जिसे उनके दिल छिपायें हुए हैं या जिसका ये एलान कर रहे हैं
27 75 और आसमान व ज़मीन में कोई पोशीदा (छिपी हुई) चीज़ ऐसी नहीं है जिसका जि़क्र किबाते मुबीन (रौशन) में न हो
27 76 बेशक ये कु़रआन बनी इसराईल के सामने उन बहुत सी बातों की हिकायत (बयान) करता है जिनके बारे में वह आपस में एख़तेलाफ़ (राय में टकराव) कर रहे हैं
27 77 और ये कु़रआन साहेबाने ईमान के लिए हिदायत और रहमत है
27 78 आपका परवरदिगार (पालने वाला) उनके दरम्यान (बीच में)  अपने हुक्म से फ़ैसला करता है और वह सब पर ग़ालिब भी है और सबसे बाख़बर (जानने वाला) भी है
27 79 लेहाज़ा (इसलिये) आप इसी पर एतमाद (भरोसा) करें कि आप वाज़ेह (खुले हुए, रौशन) हक़ के रास्ते पर हैं
27 80 आप मुर्दों को और बहरों को अपनी आवाज़ नहीं सुना सकते अगर वह मुँह फेर कर भाग खड़े हों
27 81 और आप अंधों को भी उनकी गुमराही से राहे रास्त (सीधे रास्ते) पर नहीं ला सकते हैं आप अपनी आवाज़ सिर्फ़ उन लोगों को सुना सकते हैं जो हमारी आयतों पर ईमान रखते हैं और हमारे इताअत गुज़ार (कहने पर अमल करने वाले) हैं
27 82 और जब इन पर वादा पूरा होगा तो हम ज़मीन से एक चलने वाला निकाल कर खड़ा कर देंगे जो इनसे ये बात करे कि कौन लोग हमारी आयात पर यक़ीन नहीं रखते थे
27 83 और इस दिन हम हर उम्मत में से वह फ़ौज इकठ्ठा करेंगे जो हमारी आयतों की तकज़ीब (झुठलाना) किया करते थे और फिर अलग अलग तक़सीम (बांटना) कर दिये जायेंगे
27 84 यहां तक कि जब सब आ जायेंगे तो इरशादे अहदियत होगा कि क्या तुम लोगों ने मेरी आयतों की तकज़ीब (झुठलाना) की थी हालांकि तुम्हें इनका मुकम्मल इल्म नहीं था या तुम क्या कर रहे थे
27 85 और उनके जु़ल्म की बिना पर उन पर बात साबित हो जायेगी और वह बोलने के क़ाबिल भी न होंगे
27 86 क्या उन लोगों ने नहीं देखा कि हमने रात को पैदा किया ताकि ये सुकून हासिल कर सकें और दिन को रोशनी का ज़रिया बनाया इसमें साहेबाने ईमान के लिए हमारी बड़ी निशानियां हैं
27 87 और जिस दिन सूर फूंका जायेगा तो ज़मीन व आसमान में जो भी है सब लरज़ (कांप) जायेंगे अलावा उनके जिनको ख़ुदा चाहे और सब उसकी बारगाह में सर झुकाये हाजि़र होंगे
27 88 और तुम देखोगे तो समझोगे कि जैसे पहाड़ अपनी जगह पर जामिद (जमे हुए) है हालांकि ये बादलों की तरह चल रहे होंगे। ये उस ख़ुदा की सनअत (कारीगरी) है जिसने हर चीज़ को मोहकम (ख़ूबी से) बनाया है और वह तुम्हारे तमाम आमाल (कामों) से बा ख़बर (जानने वाला) है
27 89 जो कोई नेकी करेगा उसे इससे बेहतर (ज़्यादा अच्छा) अज्र मिलेगा और वह लोग रोज़े क़यामत के ख़ौफ़ (डर) से महफ़ूज़ (हिफ़ाज़त के साथ) भी रहेंगे
27 90 और जो लोग बुराई करेंगे उन्हें मुँह के भल जहन्नुम में ढकेल दिया जायेगा कि क्या तुम्हें तुम्हारे आमाल (कामों) के अलावा भी कोई मुआवज़ा दिया जा सकता है
27 91 मुझे तो सिर्फ़ ये हुक्म दिया गया है कि मैं इस शहर के मालिक की इबादत करूँ जिसने इसे मोहतरम बनाया है और हर शै उसी की मिल्कियत (जो शै इखि़्तयार या क़ब्ज़े में हो) है और मुझे ये हुक्म दिया गया है कि मैं इताअत गुज़ारों (कहने पर अमल करने वालों) में शामिल हो जाऊँ
27 92 और यह कि मैं कु़रआन को पढ़ कर सुनाऊँ अब इसके बाद जो हिदायत हासिल कर लेगा वह अपने फ़ायदे के लिए करेगा और जो बहक जायेगा उससे कह दीजिए कि मैं तो सिर्फ़ डराने वालों में से हूँ
27 93 और यह कहिये कि सारी हम्द सिर्फ़ अल्लाह के लिए है और वह अनक़रीब (बहुत जल्द) तुम्हें अपनी निशानियां दिखलायेगा और तुम पहचान लोगे और तुम्हारा परवरदिगार (पालने वाला) तुम्हारे आमाल (कामों) से ग़ाफि़ल (बेपरवाह) नहीं है

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