Saturday, 18 April 2015

Sura-e-Maárij 70th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-मआरिज
70   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
70 1 एक माँगने वाले ने वाक़ेअ होने वाले अज़ाब का सवाल किया
70 2 जिसका काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) के हक़ में कोई दफ़ा (हटाने, दूर) करने वाला नहीं है
70 3 ये बलन्दियों वाले ख़ुदा की तरफ़ से है
70 4 जिसकी तरफ़ फ़रिश्ते और रूहुलअमीन बलन्द होते हैं उस एक दिन में जिसकी मिक़दार पचास हज़ार साल के बराबर है
70 5 लेहाज़ा (इसलिये) आप बेहतरीन (सबसे अच्छे) सब्र से काम लें
70 6 ये लोग इसे दूर समझ रहे हैं
70 7 और हम इसे क़रीब ही देख रहे हैं
70 8 जिस दिन आसमान पिघले हुए ताँबे के मानिन्द (तरह) हो जायेगा
70 9 और पहाड़ धुनके हुए ऊन जैसे
70 10 और कोई हमदर्द किसी हमदर्द का पुरसाने हाल (हाल पूछने वाला) न होगा
70 11 वह सब एक दूसरे को दिखाये जायेंगे तो मुजरिम (जुर्म करने वाला) चाहेगा कि काश आज के दिन के अज़ाब के बदले उसकी औलाद को ले लिया जाये
70 12 और बीवी और भाई को
70 13 और उस कुन्बे (ख़ानदान) को जिसमें वह रहता था
70 14 और रूए ज़मीन की सारी मख़्लूक़ात को और उसे निजात (छुटकारा, रिहाई) दे दी जाये
70 15 हर्गिज़ नहीं ये आतिशे जहन्नम (जहन्नम की आग) है
70 16 खाल उतार देने वाली
70 17 उन सबको आवाज़ दे रही है जो मुँह फेरकर जाने वाले थे
70 18 और जिन्होंने माल जमा करके बन्द कर रखा था
70 19 बेशक इन्सान बड़ा लालची है
70 20 जब तकलीफ़ पहुँच जाती है तो फ़रियादी (फ़रियाद, गुज़ारिश करने वाला) बन जाता है
70 21 और जब माल मिल जाता है तो बख़ील (कंजूसी करने वाला) हो जाता है
70 22 अलावा उन नमाजि़यों के
70 23 जो अपनी नमाज़ों की पाबन्दी करने वाले हैं
70 24 और जिनके अमवाल (माल-दौलत) में एक मुक़र्ररा (तय किया हुआ) हक़ मुअईयन (तय) है
70 25 माँगने वाले के लिए और न माँगने वाले के लिए
70 26  और जो लोग रोजे़ क़यामत की तस्दीक़ (सच्चाई की गवाही) करने वाले हैं
70 27 और जो अपने परवरदिगार (पालने वाले) के अज़ाब से डरने वाले हैं
70 28 बेशक अज़ाबे परवरदिगार (पालने वाले) बेख़ौफ़ (निडर) रहने वाली चीज़ नहीं है
70 29 और जो अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करने वाले हैं
70 30 अलावा अपनी बीवियों और कनीज़ों के कि उस पर मलामत नहीं की जाती है
70 31 फिर जो इसके अलावा का ख़्वाहिशमन्द (ख़्वाहिश करने वाला) हो वह हद से गुज़र जाने वाला है
70 32 और जो अपनी अमानतों और अहद (वादों) का ख़याल रखने वाले हैं
70 33 और जो अपनी गवाहियों पर क़ायम (बाक़ी) रहने वाले हैं
70 34 और जो अपनी नमाज़ों का ख़्याल रखने वाले हैं
70 35 यही लोग जन्नत में बाइज़्ज़त तरीके़ से रहने वाले हैं
70 36 फिर इन काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) को क्या हो गया है कि आपकी तरफ़ भागे चले आ रहे हैं
70 37 दाहिनें बायें से गिरोह दर गिरोह
70 38 क्या इनमें से हर एक की तमअ (लालच) ये है कि उसे जन्नत-अल-नईम (नेमतों वाली जन्नत) में दाखि़ल कर दिया जाये
70 39 हर्गिज़ (बिल्कुल) नहीं उन्हें तो मालूम है कि हमने उन्हें किस चीज़ से पैदा किया है
70 40 मैं तमाम मशरिक़ (पूरब) व मग़रिब (पश्चिम) के परवरदिगार (पालने वाले) की क़सम खाकर कहता हूँ कि हम कु़दरत रखने वाले हैं
70 41 इस बात पर कि इनके बदले इनसे बेहतर (ज़्यादा अच्छे) अफ़राद (लोगों) ले आयें और हम आजिज़ नहीं हैं
70 42 लेहाज़ा (इसलिये) इन्हें छोड़ दीजिए ये अपने बातिल (झूठ) में डूबे रहें और खेल तमाशा करते रहें यहाँ तक कि उस दिन से मुलाक़ात करें जिसका वादा किया गया है
70 43 जिस दिन ये सब क़ब्रों से तेज़ी के साथ निकलेंगे जिस तरह किसी परचम (निशानी) की तरफ़ भागे जा रहे हों
70 44 इनकी निगाहें झुकी होंगी और जि़ल्लत इन पर छाई होगी और यही वह दिन होगा जिसका इनसे वादा किया गया है

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