Thursday, 16 April 2015

Sura-e-Mominoon 23rd sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-मोमेनून
23   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
23 1 यक़ीनन साहेबाने ईमान कामयाब हो गये
23 2 जो अपनी नमाज़ों में गिड़गिड़ाने वाले हैं
23 3 और लग़ो (बेहूदा) बातों से आराज़ (मुंह फेरना) करने वाले हैं
23 4 और ज़कात अदा करने वाले हैं
23 5 और अपनी शर्मगाहों (जिस्म के वह हिस्से जिनका छिपाना ज़रूरी है) की हिफ़ाज़त करने वाले हैं
23 6 अलावा अपनी बीवियों और अपने हाथों की मिल्कियत (जो शै इखि़्तयार या क़ब्ज़े में हो) कनीज़ों के कि उनके मामले में उन पर कोई इल्ज़ाम आने वाला नहीं है
23 7 फिर इसके अलावा जो कोई और रास्ता तलाश करेगा वह ज़्यादती करने वाला होगा
23 8 और जो मोमिनीन अपनी अमानतों और अपने वादों का लिहाज़ रखने वाले हैं
23 9 और जो अपनी नमाज़ों की पाबन्दी करने वाले हैं
23 10 दर हक़ीक़त यही वह वारिसाने जन्नत (जन्नत) हैं
23 11 जो फि़रदौस (जन्नत) के वारिस बनेंगे और इसमें हमेशा-हमेशा रहने वाले हैं
23 12 और हमने इन्सान को गीली मिट्टी से पैदा किया है
23 13 फिर उसे एक महफ़ूज़ (हिफ़ाज़त वाली) जगह पर नुत्फ़ा बनाकर रखा है
23 14 फिर नुत्फ़े को अल्क़ा (जमा हुआ ख़ून) बनाया है और फिर अल्क़े (जमा हुआ ख़ून) से मुज़ग़ा (गोश्त का लोथड़ा) पैदा किया है फिर मुज़ग़े (गोश्त का लोथड़ा) से हड्डियाँ पैदा की हैं और फिर हड्डियों पर गोश्त चढ़ाया है फिर हमने उसे एक दूसरी मख़लूक़ (दूसरी सूरत वाली शै) बना दिया है तो किस क़द्र बाबर्कत (बर्कत वाला) है वह ख़ुदा जो सबसे बेहतर (सबसे ज़्यादा अच्छा) ख़ल्क़ (पैदा करना, बनाना) करने वाला है
23 15 फिर इसके बाद तुम सब मर जाने वाले हो
23 16 फिर इसके बाद तुम रोज़े क़यामत दोबारा उठाये जाओगे
23 17 और हमने तुम्हारे ऊपर तह बा तह सात आसमान बनाये हैं और हम अपनी मख़लूक़ात (पैदा की हुई खि़लक़त या शै) से ग़ाफि़ल (बेपरवाह) नहीं हैं
23 18 और हमने आसमान से एक मख़सूस (ख़ास) मिक़दार में पानी नाजि़ल किया है और फिर उसे ज़मीन में ठहरा दिया है जबकि हम उसके वापस ले जाने पर भी क़ादिर (क़ुदरत रखने वाले) थे
23 19 फिर हमने इस पानी से तुम्हारे लिए खु़र्मे (खजूर या छुआरा) और अंगूर के बाग़ात पैदा किये हैं जिनमें बहुत ज़्यादा मेवे पाये जाते हैं और तुम उन्हीं में से कुछ खा भी लेते हो
23 20 और वह दरख़्त (पेड़) पैदा किया है जो तूरे सीना (पहाड़) में पैदा होता है उससे तेल भी निकलता है और वह खाने वालों के लिए सालन भी है
23 21 और बेशक तुम्हारे लिए उन जानवरों में भी इबरत (ख़ौफ़ के साथ सबक़) का सामान है कि हम उनके शिकम में से तुम्हारे सेराब करने का इन्तिज़ाम करते हैं और तुम्हारे लिए उनमें बहुत से फ़वाएद (फ़ायदे) हैं और उनमें से भी तुम खाते हो
23 22 और तुम्हें उन जानवरों पर और कश्तियों पर सवार किया जाता है
23 23 और हमने नूह को उनकी क़ौम की तरफ़ भेजा तो उन्होंने कहा कि क़ौम वालों ख़ुदा की इबादत करो कि तुम्हारे लिए उसके अलावा कोई ख़ुदा नहीं है तो तुम उससे क्यों नहीं डरते हो
23 24 उनकी क़ौम के काफि़र (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) रऊसा (सरदारों) ने कहा कि ये नूह तुम्हारे ही जैसे इन्सान हैं जो तुम पर बरतरी हासिल करना चाहते हैं हालांकि ख़ुदा चाहता तो मलायका (फ़रिश्तों) को भी नाजि़ल कर सकता था। ये तो हमने अपने बाप-दादा से कभी नहीं सुना है
23 25 दर हक़ीक़त ये एक ऐसे इन्सान हैं जिन्हें जुनून (दीवानापन) हो गया है लेहाज़ा (इसलिये) चन्द (कुछ) दिन इनके हालात का इन्जि़ार करो
23 26 तो नूह ने दुआ की कि परवरदिगार (पालने वाले) इनकी तकज़ीब (झुठलाना) के मुक़ाबले में मेरी मदद फ़रमा
23 27 तो हमने उनकी तरफ़ वही की कि हमारी निगाह के सामने और हमारे इशारे के मुताबिक़ (हिसाब से) कश्ती बनाओ और फिर जब हमारा हुक्म आ जाये और तन्नूर उबलने लगे तो उसी कश्ती में हर जोड़े में से दो-दो को ले लेना और अपने अहल (घरवालों) को लेकर रवाना हो जाना अलावा उन अफ़राद (लोगों) के जिनके बारे में पहले ही हमारा फ़ैसला हो चुका है और मुझसे ज़्ाुल्म करने वालों के बारे में गुफ़्तगू (बात) न करना कि ये सब ग़कऱ् (डुबोना) कर दिये जाने वाले हैं
23 28 इसके बाद जब तुम अपने साथियों समेत कश्ती पर इत्मिनान (सुकून) से बैठ जाना तो कहना कि शुक्र है उस परवरदिगार (पालने वाले) का जिसने हमको ज़ालिम क़ौम से निजात (छुटकारा, रिहाई) दिला दी है
23 29 और ये कहना कि परवरदिगार (पालने वाले) हमको बाबर्कत (बर्कत वाला) मंजि़ल पर उतारना कि तू बेहतरीन (सबसे अच्छा) उतारने वाला है
23 30 इस अम्र में हमारी बहुत सी निशानियाँ हैं और हम तो बस इम्तिहान लेने वाले हैं
23 31 इसके बाद फिर हमने दूसरी क़ौमों को पैदा किया
23 32 और उनमें भी अपने रसूल को भेजा कि तुम सब अल्लाह की इबादत करो कि उसके अलावा तुम्हारा कोई ख़ुदा नहीं है तो क्या तुम परहेज़गार (बुराईयों से दूरी अपनाने वाले) न बनोगे
23 33 तो उनकी क़ौम के उन रऊसा (सरदारों) ने जिन्होंने कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) इखि़्तयार किया था और आखि़रत की मुलाक़ात का इन्कार कर दिया था और हमने उन्हें जि़न्दगानी दुनिया में ऐश व इशरत (आराम व ख़ुशी) का सामान दे दिया था वह कहने लगे कि ये तो तुम्हारा ही जैसा एक बशर (इन्सान) है जो तुम खाते हो वही खाता है और जो तुम पीते हो वही पीता भी है
23 34 और अगर तुमने अपने ही जैसे बशर (इन्सान) की इताअत (कहने पर अमल) कर ली तो यक़ीनन ख़सारा (घाटा, नुक़सान) उठाने वाले हो जाओगे
23 35 क्या ये तुमसे उस बात का वादा करता है कि जब तुम मर जाओगे और ख़ाक और हड्डी हो जाओगे तो फिर दोबारा निकाले जाओगे
23 36 हैफ़ सद हैफ़ तुमसे किस बात का वादा किया जा रहा है
23 37 ये तो सिर्फ़ एक जि़न्दगानी दुनिया है जहाँ हम मरेंगे और जियेंगे और दोबारा जि़न्दा होने वाले नहीं हैं
23 38 ये एक ऐसा आदमी है जो ख़ुदा पर बोहतान (इल्ज़ाम, ऐब) बांधता है और हम उस पर ईमान लाने वाले नहीं हैं
23 39 उस रसूल ने कहा कि परवरदिगार (पालने वाले) तू हमारी मदद फ़रमा कि ये सब हमारी तकज़ीब (झुठलाना) कर रहे हैं
23 40 इरशाद हुआ कि अनक़रीब (बहुत जल्द) ये लोग पशेमान (शर्मिन्दा, नादिम) हो जायेंगे
23 41 नतीजा ये हुआ कि उन्हें एक बरहक़ (जो हक़ पर है) चिंघाड़ ने अपनी गिरफ़्त (पकड़) में ले लिया और हमने उन्हें कूड़ा करकट बना दिया कि ज़ालिम क़ौम के लिए हलाकत (मौत, तबाही) और बर्बादी ही है
23 42 फिर इसके बाद हमने दूसरी क़ौमों को ईजाद किया
23 43 कोई उम्मत न अपने मुक़र्ररा (तय किये हुए) वक़्त से आगे बढ़ सकती है और न पीछे हट सकती है
23 44 इसके बाद हमने मुसलसल (लगातार) रसूल भेजे और जब किसी उम्मत के पास कोई रसूल आया तो उसने रसूल की तकज़ीब (झुठलाना) की और हमने भी सबको अज़ाब की मंजि़ल में एक के पीछे एक लगा दिया और सबको एक अफ़साना (कि़स्सा, कहानी) बनाकर छोड़ दिया कि हलाकत (मौत, तबाही) उस क़ौम के लिए है जो ईमान नहीं लाती है
23 45 फिर हमने मूसा और उनके भाई हारून को अपनी निशानियों और वाजे़ह (रौशन, खुली हुई) दलील के साथ भेजा
23 46 फि़रऔन और उसके ज़एमा ममलिकत (हुकूमत के उमराओं) की तरफ़ तो उन लोगों ने भी अस्तकबार (शेख़ी) किया और वह तो थे ही ऊँचे कि़स्म के लोग
23 47 तो उन लोगों ने कह दिया कि क्या हम अपने ही जैसे दो आदमियों पर ईमान ले आयें जबकि उनकी क़ौम खु़द हमारी परस्तिश (पूजा) कर रही है
23 48 यह कहकर दोनों को झुठला दिया और इस तरह हलाक (बरबाद, ख़त्म) होने वालों में शामिल हो गये
23 49 और हमने मूसा को किताब दी कि शायद इस तरह लोग हिदायत हासिल कर लें
23 50 और हमने इब्ने मरियम (मरियम के बेटे) और उनकी वालदा को भी अपनी निशानी क़रार दिया और उन्हें एक बलन्दी पर जहाँ ठहरने की जगह भी थी और चश्मा (पानी निकलने की जगह) भी था पनाह (मदद, सहारा) दी (50)
23 51 ऐ मेरे रसूल! तुम पाकीज़ा (साफ़-सुथरी) गि़ज़ायें (खाने की चीज़ें) खाओ और नेक (अच्छा) काम करो कि मैं तुम्हारे आमाल (कामों) से खू़ब बाख़बर हूँ
23 52 और तुम्हारा सबका दीन एक दीन है और मैं ही सबका परवरदिगार (पालने वाला) हूँ लेहाज़ा (इसलिये) बस मुझसे डरो
23 53 फिर ये लोग आपस में टुकड़े-टुकड़े हो गये और हर गिरोह जो कुछ भी उसके पास है उसी पर खु़श और मगन है
23 54 अब आप उन्हें एक मुद्दत के लिए इसी गुमराही में छोड़ दें
23 55 क्या उनका ख़्याल ये है कि हम जो कुछ माल और औलाद दे रहे हैं
23 56 ये उनकी नेकियों में उजलत (जल्दबाज़ी) की जा रही है, नहीं हर्गिज़ (बिल्कुल) नहीं उन्हें तो हक़ीक़त का शऊर (समझ) भी नहीं है
23 57 बेशक जो लोग ख़ौफ़-ए-परवरदिगार (पालने वाले) से लरज़ाँ (डरे हुए) रहते हैं
23 58 और जो अपने परवरदिगार (पालने वाले) की निशानियों पर ईमान रखते हैं
23 59 और जो किसी को भी अपने रब का शरीक नहीं बनाते हैं
23 60 और वह लोग जो बक़द्र इमकान (जहां तक इमकान में हो) राहे ख़ुदा में देते रहते हैं और उन्हें ये ख़ौफ़ (डर) लगा रहता है कि पलट कर उसकी बारगाह में जाने वाले हैं
23 61 यही वह लोग हैं जो नेकियों में सब्क़त (पहल) करने वाले हैं और सबके आगे निकल जाने वाले हैं
23 62 और हम किसी नफ़्स (जान) को उसकी वुसअत (क़ूवत या ताक़त) से ज़्यादा तकलीफ़ नहीं देते हैं और हमारे पास वह किताब है जो हक़ के साथ बोलती है और उन पर कोई ज़्ाुल्म नहीं किया जाता है
23 63 बल्कि उनके क़ुलूब (दिल) उसकी तरफ़ से बिल्कुल जेहालत में डूबे हुए हैं और उनके पास दूसरे कि़स्म के आमाल (काम) हैं जिन्हें वह अंजाम दे रहे हैं
23 64 यहाँ तक कि जब हमने उनके मालदारों को अज़ाब की गिरफ़्त (पकड़) में ले लिया तो अब सब फ़रियाद कर रहे हैं
23 65 अब आज वावैला  (अफ़सोस, रोना-पीटना) न करो आज हमारी तरफ़ से कोई मदद नहीं की जायेगी
23 66 जब हमारी आयतें तुम्हारे सामने पढ़ी जाती थीं तो तुम उलटे पाँव वापस चले जा रहे थे
23 67 अकड़ते हुए और कि़स्सा कहते और बकते हुए
23 68 क्या उन लोगों ने हमारी बात पर ग़ौर नहीं किया या उनके पास कोई चीज़ आ गई है जो उनके बाप दादा के पास भी नहीं आयी थी
23 69 या उन्होंने अपने रसूल को पहचाना ही नहीं है और इसीलिए इन्कार कर रहे हैं
23 70 या उनका कहना ये है कि रसूल में जुनून पाया जाता है जबकि वह उनके पास हक़ लेकर आया है और इनकी अकसरियत (ज़्यादातर लोग) हक़ को नापसन्द करने वाली है
23 71 और अगर हक़ उनकी ख़्वाहिशात (दुनियावी तमन्नाओं) का इत्तेबा (पैरवी) कर लेता तो आसमान व ज़मीन और इनके माबैन (बीच में) जो कुछ भी है सब बर्बाद हो जाता बल्कि हमने इनको इन्हीं का जि़क्र अता किया है और ये अपने ही जि़क्र से आराज़ (मुंह फेरना) किये हुए हैं
23 72 तो क्या आप इनसे अपना ख़र्च माँग रहे हैं हर्गिज़ (बिल्कुल) नहीं ख़ुदा का दिया हुआ खे़राज (महासिल, लगान) आपके लिए बहुत बेहतर (ज़्यादा अच्छा) है और वह बेहतरीन (सबसे अच्छा) रिज़्क़ देने वाला है
23 73 और आप तो उन्हें सीधे रास्ते की दावत देने वाले हैं
23 74 और जो लोग आखि़रत पर ईमान नहीं लाते हैं वह सीधे रास्ते से हटे हुए हैं
23 75 और अगर हम इन पर रहम करें और इनकी तकलीफ़ को दूर भी कर दें तो भी ये अपनी सरकशी (बग़ावत) पर अड़े रहेंगे और गुमराह ही होते जायेंगे
23 76 और हमने इन्हें अज़ाब के ज़रिये पकड़ा भी मगर ये न अपने परवरदिगार (पालने वाले) के सामने झुके और न ही गिड़गिड़ाते हैं
23 77 यहाँ तक कि हमने शदीद (सख़्त) अज़ाब का दरवाज़ा खोल दिया तो इसी में मायूस होकर बैठ रहे
23 78 वह वही ख़ुदा है जिसने तुम्हारे लिए कान और आँखें और दिल बनाये हैं मगर तुम बहुत कम शुक्रिया अदा करते हो
23 79 और उसी ने तुम्हें सारी ज़मीन में फैला दिया है और उसी की बारगाह में तुम इकठ्ठा किये जाओगे
23 80 वही वह है जो हयात (जि़न्दगी) व मौत का देने वाला है और उसी के इखि़्तयार में दिन और रात की आमद रफ़्त (आना-जाना) है तो तुम अक़्ल क्यों नहीं इस्तेमाल करते हो
23 81 बल्कि इन लोगों ने वही कह दिया जो इनके पहले वालों ने कहा था
23 82 कि अगर हम मर गये और मिट्टी और हड्डी हो गये तो क्या हम दोबारा उठाये जाने वाले हैं
23 83 बेशक ऐसा ही वादा हमसे भी किया गया है और हमसे पहले वालों से भी किया गया है लेकिन ये सिर्फ़ पुराने लोगों की कहानियाँ हैं
23 84 तो ज़रा आप पूछिये कि ये ज़मीन और इसकी मख़्लूक़ात (ख़ुदा की पैदा की हुई चीज़ें) किसके लिए है अगर तुम्हारे पास कुछ भी इल्म है
23 85 ये फ़ौरन कहेंगे कि अल्लाह के लिए है तो कहिये कि फिर समझते क्यों नहीं हो
23 86 फिर मज़ीद (और ज़्यादा, उसके आगे) कहिये कि सातों आसमान और अर्शे आज़म का मालिक कौन है
23 87 तो ये फिर कहेंगे कि अल्लाह ही है तो कहिये कि आखि़र उससे डरते क्यों नहीं हो
23 88 फिर कहिये कि हर शै की हुकूमत किसके इखि़्तयार में है कि वही पनाह (मदद, सहारा) देता है और उसी के अज़ाब से कोई पनाह (मदद, सहारा) देने वाला नहीं है अगर तुम्हारे पास कोई भी इल्म है
23 89 तो ये फ़ौरन जवाब देंगे कि ये सब अल्लाह के लिए है तो कहिये कि आखि़र फिर तुम पर कौन सा जादू किया जा रहा है
23 90 बल्कि हम इनके पास हक़ लेकर आये हैं और ये सब झूठे हैं
23 91 यक़ीनन ख़ुदा ने किसी को फ़रज़न्द (बेटा) नहीं बनाया है और न उसके साथ कोई दूसरा ख़ुदा है वरना हर ख़ुदा हपनी मख़्लूक़ात (पैदा की हुई चीज़ों/खि़ल्क़त) को लेकर अलग हो जाता और हर एक दूसरे पर बरतरी की फि़क्र करता और कायनात (दुनिया) तबाह व बर्बाद हो जाती। अल्लाह उन तमाम बातों से पाक पाकीज़ा (साफ़-सुथरा) है
23 92 वह हाजि़र (दिखने वाली शै) व ग़ायब (न दिखने वाली शै) सबका जानने वाला है और इन सबके शिर्क (ख़ुदा के साथ दूसरों को शरीक करने) से बलन्द व बालातर है
23 93 और आप कहिये कि परवरदिगार (पालने वाले) अगर जिस अज़ाब का इनसे वादा किया है मुझे दिखा भी देना
23 94 तो परवरदिगार (पालने वाले) मुझे इस ज़ालिम क़ौम के साथ न क़रार देना
23 95 और हम जिस अज़ाब का इनसे वादा कर रहे हैं उसे आपको दिखा देने की कु़दरत भी रखते हैं
23 96 और आप बुराई को अच्छाई के ज़रिये रफ़ा कीजिए कि हम इनकी बातों को खू़ब जानते हैं
23 97 और कहिये कि परवरदिगार (पालने वाले) मैं शैतानों के वसवसों (शैतानी ख़्यालों) से तेरी पनाह (मदद, सहारा) चाहता हूँ
23 98 और इस बात से पनाह (मदद, सहारा) माँगता हूँ कि शयातीन (शैतान) मेरे पास आ जायें
23 99 यहाँ तक कि जब इनमें से किसी की मौत आ गई तो कहने लगे कि परवरदिगार (पालने वाले) मुझे पलटा दे
23 100 शायद मैं अब कोई नेक (अच्छा) अमल अंजाम दूँ। हर्गिज़ नहीं (बिल्कुल नहीं) ये एक बात है जो ये कह रहा है और इनके पीछे एक आलमे बरज़ख़ (मौत के बाद और क़यामत से पहले का मरहला) है जो क़यामत के दिन तक क़ायम रहने वाला है
23 101 फिर जब सूर फूँका जायेगा तो न रिश्तेदारियाँ होंगी और न आपस में कोई एक दूसरे के हालात पूछेगा
23 102 फिर जिनकी नेकियों का पल्ला भारी होगा वह कामयाब और निजात पाने वाले होंगे
23 103 और जिनकी नेकियों का पल्ला हल्का होगा वह वही लोग होंगे जिन्होंने अपने नफ़्स (जान) को ख़सारा (घाटा, नुक़सान) में डाल दिया है और वह जहन्नम में हमेशा-हमेशा रहने वाले हैं
23 104 जहन्नम की आग इनके चेहरों को झुलसा देगी और वह इसी में मुँह बनाये हुए होंगे
23 105 क्या ऐसा नहीं है कि जब हमारी आयतें तुम्हारे सामने पढ़ी जाती थीं तो तुम इनकी तकज़ीब (झुठलाना) किया करते थे
23 106 वह लोग कहेंगे कि परवरदिगार (पालने वाले) हम पर बदबख़्ती (बद कि़स्मती) ग़ालिब आ गई थी और हम गुमराह हो गये थे
23 107 परवरदिगार (पालने वाले) अब हमें जहन्नम से निकाल दे इसके बाद दोबारा गुनाह करें तो हम वाक़ई ज़ालिम हैं
23 108 इरशाद होगा कि अब इसी में जि़ल्लत के साथ पड़े रहो और बात न करो
23 109 हमारे बन्दों में एक गिरोह ऐसा भी था जिनका कहना था कि परवरदिगार (पालने वाले) हम ईमान लाये हैं लेहाज़ा (इसलिये) हमारे गुनाहों को माॅफ़ कर दे और हम पर रहम फ़रमा कि तू बेहतरीन (सबसे अच्छा) रहम करने वाला है
23 110 तो तुम लोगों ने उनको बिल्कुल मज़ाक़ बना लिया था यहाँ तक कि इस मज़ाक़ ने तुम्हें हमारी याद से बिल्कुल ग़ाफि़ल (बेपरवाह) बना दिया और तुम इनका मज़हका ही उड़ाते रह गये
23 111 आज के दिन हमने इनको ये जज़ा (सिला) दी है कि वह सरासर कामयाब हैं
23 112 फिर ख़ुदा पूछेगा कि तुम रूए ज़मीन पर कितने साल रहे
23 113 वह जवाब देंगे कि एक दिन या इसका भी एक ही हिस्सा इसे तू शुमार (हिसाब) करने वालों से दरयाफ़्त (मालूम) कर ले
23 114 इरशाद होगा कि बेशक तुम बहुत मुख़्तसर (कम) रहे हो और काश तुम्हें इसका इदराक (अक़्ल, समझ) होता
23 115 क्या तुम्हारा ख़्याल ये था कि हमने तुम्हें बेकार पैदा किया है और तुम हमारी तरफ़ पलटाकर नहीं लाये जाओगे
23 116 पस बलन्द व बाला है वह ख़ुदा जो बादशाह बरहक़ (हक़ पर) है और इसके अलावा कोई ख़ुदा नहीं है और वह अर्शे करीम (करम करने वाला) का परवरदिगार (पालने वाला) है
23 117 और जो अल्लाह के साथ किसी और ख़ुदा को पुकारेगा जिसकी कोई दलील भी नहीं है तो इसका हिसाब परवरदिगार (पालने वाले) के पास है और काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) के लिए निजात (छुटकारा, रिहाई) बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) नहीं है।
23 118 और पैग़म्बर अलैहिस्सलाम आप कहिये कि परवरदिगार (पालने वाले) मेरी मग़फि़रत (गुनाहों की माफ़ी) फ़रमा और मुझ पर रहम कर कि तू बेहतरीन (सबसे अच्छा) रहम करने वाला है

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