Saturday, 18 April 2015

Sura-e-Jinn 72nd surah of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-जिन
72   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
72 1 पैग़म्बर आप कह दीजिए कि मेरी तरफ़ ये वही (इलाही पैग़ाम) की गई है कि जिनों (जिन्नातों) की एक जमाअत (गिरोह) ने कान लगाकर कु़रआन को सुना तो कहने लगे कि हमने एक बड़ा अजीब कु़रआन सुना है
72 2 जो नेकी की हिदायत करता है तो हम तो उस पर ईमान ले आये हैं और किसी को अपने रब का शरीक न बनायेंगे
72 3 और हमारे रब की शान बहुत बलन्द (ऊंची) है उसने किसी को अपनी बीवी बनाया है न बेटा
72 4 और हमारे बेवकू़फ़ लोग तरह-तरह की बे रब्त (बेकार की) बातें कर रहे हैं
72 5 और हमारा ख़्याल तो यही था कि इन्सान और जिन्नात ख़ुदा के खि़लाफ़ झूठ न बोलंेगे
72 6 और ये कि इन्सानों में से कुछ लोग जिन्नात के बाॅज़ (कुछ) लोगों की पनाह ढूँढ रहे थे तो उन्होंने गिरफ़्तारी में और इज़ाफ़ा (बढ़ावा) कर दिया
72 7 और ये कि तुम्हारी तरह इनका भी ख़्याल था कि ख़ुदा किसी को दोबारा नहीं जि़न्दा करेगा
72 8 और हमने आसमान को देखा तो उसे सख़्त कि़स्म के निगेहबानों और शोलों से भरा हुआ पाया
72 9 और हम पहले बाॅज़ (कुछ) मुक़ामात (जगहों) पर बैठकर बातें सुन लिया करते थे लेकिन अब कोई सुनना चाहेगा तो अपने लिए शोलों को तैयार पायेगा
72 10 और हमें नहीं मालूम कि अहले ज़मीन के लिए इससे बुराई मक़सूद है या नेकी का इरादा किया गया है
72 11 और हम में से बाॅज़ (कुछ) नेक (अच्छा) किरदार हैं और बाॅज़ (कुछ) इसके अलावा हैं और हम तरह-तरह के गिरोह हैं
72 12 और हमारा ख़्याल है कि हम ज़मीन में ख़ुदा को आजिज़ (परेशान) नहीं कर सकते और न भाग कर उसे अपनी गिरफ़्त (पकड़) से आजिज़ (परेशान) कर सकते हैं
72 13 और हमने हिदायत को सुना तो हम तो ईमान ले आये अब जो भी अपने परवरदिगार (पालने वाले) पर ईमान लायेगा उसे न ख़सारे (घाटे, नुक़सान) का ख़ौफ़ (डर) होगा और न ज़्ाु़ल्म व ज़्यादती का
72 14 और हम में से बाॅज़ (कुछ) इताअत गुज़ार (कहने पर अमल करने वाले) हैं और बाॅज़ (कुछ) नाफ़रमान (हुक्म न मानने वाले) और जो इताअत गुज़ार (कहने पर अमल करने वाला) होगा उसने हिदायत की राह पा ली है
72 15 और नाफ़रमान (हुक्म न मानने वाले) तो जहन्नम के कुन्दे (ईंधन) हो गये हैं
72 16 और अगर ये लोग सब हिदायत के रास्ते पर होते तो हम उन्हें वाफि़र पानी से सेराब करते
72 17 ताकि इनका इम्तिहान ले सकें और जो भी अपने रब के जि़क्र से आराज़ (मुंह मोड़ना) करेगा उसे सख़्त अज़ाब के रास्ते पर चलना पड़ेगा
72 18 और मसाजिद सब अल्लाह के लिए हैं लेहाज़ा (इसलिये) उसके अलावा किसी की इबादत न करना
72 19 और ये कि जब बन्दा-ए-ख़ुदा इबादत के लिए खड़ा हुआ तो क़रीब था कि लोग उसके गिर्द (आस-पास) हुजूम (भीड़) करके गिर पड़ते
72 20 पैग़म्बर आप कह दीजिए कि मैं सिर्फ़ अपने परवरदिगार (पालने वाले) की इबादत करता हूँ और किसी को उसका शरीक नहीं बनाता हूँ
72 21 कह दीजिए कि मैं तुम्हारे लिए किसी नुक़सान का इखि़्तयार रखता हूँ और न फ़ायदे का
72 22 कह दीजिए कि अल्लाह के मुक़ाबले में मेरा भी बचाने वाला कोई नहीं है और न मैं कोई पनाहगाह (पनाह या बचने की जगह) पाता हूँ
72 23 मगर ये कि अपने रब के एहकाम (हुक्मों) और पैग़ाम को पहुँचा दूँ और जो अल्लाह व रसूल की नाफ़रमानी (हुक्म न मानना) करेगा उसके लिए जहन्नम है और वह उसी में हमेशा रहने वाला है
72 24 यहाँ तक कि जब उन लोगों ने इस अज़ाब को देख लिया जिसका वादा किया गया था तो उन्हें मालूम हो जायेगा कि किसके मददगार कमज़ोर और किसकी तादाद (गिनती) कमतर है
72 25 कह दीजिए कि मुझे नहीं मालूम कि वह वादा क़रीब ही है या अभी ख़ुदा कोई और मुद्दत (वक़्त) भी क़रार देगा
72 26 वह आलिमुलग़ैब (ग़ैब का जानने वाला) है और अपने ग़ैब पर किसी को भी मुत्तला (बताना) नहीं करता है
72 27 मगर जिस रसूल को पसन्द कर ले तो उसके आगे-पीछे निगेहबान (मुहाफि़ज़) फ़रिश्ते मुक़र्रर कर देता है
72 28 ताकि वह देख ले कि उन्होंने अपने रब के पैग़ामात को पहुँचा दिया है और वह जिसके पास जो कुछ भी है उस पर हावी है और सबके आदाद (गिनती) का हिसाब रखने वाला है

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