Thursday, 16 April 2015

Sura-e-HaMeemSajda (Fussilat) 41st sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-हा-मीम सजदा/फ़ुस्सेलत
41   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
41 1 हा मीम
41 2 ये ख़ुदाए रहमान व रहीम की तंज़ील (नाजि़ल की हुई) है
41 3 इस किताब की आयतें तफ़्सील के साथ बयान की गई हैं अरबी ज़बान का कु़़रआन है उस क़ौम के लिए जो समझने वाली हो
41 4 ये कु़रआन बशारत देने वाला और अज़ाबे इलाही से डराने वाला बनाकर नाजि़ल किया गया है लेकिन अकसरियत (ज़्यादातर लोग) ने इससे आराज़ (मुंह फेरना) किया है और वह कुछ सुनते ही नहीं हैं
41 5 और कहते हैं कि हमारे दिल जिन बातों की तुम दावत दे रहे हो उनकी तरफ़ से पर्दे में हैं और हमारे कानों में बहरापन है और हमारे तुम्हारे दरम्यान (बीच में) पर्दा हायल (रूकावट बना हुआ) है लेहाज़ा (इसलिये) तुम अपना काम करो और हम अपना काम कर रहे हैं
41 6 आप कह दीजिए कि मैं भी तुम्हारा ही जैसा बशर (इन्सान) हूँ लेकिन मेरी तरफ़ बराबर वही (पैग़ामे इलाही) आती है कि तुम्हारा ख़ुदा एक है लेहाज़ा (इसलिये) उसके लिए इस्तेक़ामत करो और उससे अस्तग़फ़ार (गुनाहों की माफ़ी की दुआ) करो और मुशरिकों (ख़ुदा के साथ दूसरों को शरीक करने वालों) के हाल पर अफ़सोस है
41 7 जो लोग ज़कात अदा नहीं करते हैं और आखि़रत का इन्कार करने वाले हैं
41 8 बेशक जो लोग ईमान लाये और उन्होंने नेक (अच्छा) आमाल (कामों) किये उनके लिए मुन्क़ता  न (ख़त्म नहीं) होने वाला अज्र है
41 9 आप कह दीजिए कि क्या तुम लोग उस ख़ुदा का इन्कार करते हो जिसने सारी ज़मीन को दो दिन में पैदा कर दिया है और उसका मिस्ल (शरीक) क़रार देते हुए जबकि वह आलमीन (तमाम जहानों) का पालने वाला है
41 10 और उसने इस ज़मीन में ऊपर से पहाड़ क़रार दे दिये हैं और बर्कत रख दी है और चार दिन के अन्दर तमाम सामाने मईशत (खाने वग़ैरह) को मुक़र्रर (तय) कर दिया है जो तमाम तलबगारों के लिए मसावी (यकसाँ) हैसियत रखता है
41 11 इसके बाद उसने आसमान का रूख़ किया जो बिल्कुल धुआँ था और इसे और ज़मीन को हुक्म दिया कि बा खु़शी (ख़ुशी के साथ) या बा कराहत (ना-ख़ुशी से) हमारी तरफ़ आओ तो दोनों ने अर्ज़ की कि हम इताअत गुज़ार (कहने पर अमल करने वाले) बनकर हाजि़र हैं
41 12 फिर इन आसमानों को दो दिन के अन्दर सात आसमान बना दिये और हर आसमान में उसके मामले की वही (इलाही पैग़ाम) कर दी और हमने आसमाने दुनिया को चिराग़ों से आरास्ता कर (सजा) दिया है और महफ़ूज़ (हिफ़ाज़त के साथ) भी बना दिया है कि ये ख़ुदाए अज़ीज़ व अलीम की मुक़र्रर (तय किये हुए) की हुई तक़दीर है
41 13 फिर अगर ये आराज़ (मुंह फेरना) करें तो कह दीजिए कि हमने तुम को वैसी ही बिजली के अज़ाब से डराया है जैसी क़ौमे आद व समूद पर नाजि़ल हुई थी
41 14 जब इनके पास सामने से और पीछे से हमारे नुमाइन्दे आये कि अल्लाह के अलावा किसी की इबादत न करो तो उन्होंने कह दिया कि हमारा ख़ुदा चाहता तो मलायका (फ़रिश्तों) को नाजि़ल करता हम तुम्हारे पैग़ाम के कु़बूल करने वाले नहीं हैं
41 15 फिर क़ौमे आद ने ज़मीन में नाहक़ बलन्दी और बरतरी से काम लिया और ये कहना शुरू कर दिया कि हमसे ज़्यादा ताक़त वाला कौन है.......तो क्या इन लोगों ने यह नहीं देखा कि जिसने इस सबको पैदा किया है वह बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) इनसे ज़्यादा ताक़त रखने वाला है लेकिन ये लोग हमारी निशानियों का इन्कार करने वाले थे
41 16 तो हमने भी इनके ऊपर तेज़ व तुन्द आँधी को इनकी नहूसत के दिनों में भेज दिया ताकि इन्हें जि़न्दगानी दुनिया में भी रूसवाई (शर्मिन्दगी) के अज़ाब का मज़ा चखायें और आखि़रत का अज़ाब तो ज़्यादा रूसवाकुन (शर्मिन्दा करने वाला) है और वहाँ इनकी कोई मदद भी नहीं की जायेगी
41 17 और क़ौमे समूद को भी हमने हिदायत दी लेकिन इन लोगों ने गुमराही को हिदायत के मुक़ाबले में ज़्यादा पसन्द किया तो जि़ल्लत के अज़ाब की बिजली ने इन्हें अपनी गिरफ़्त (पकड़) में ले लिया उन आमाल (कामों) की बिना पर जो वह अंजाम दे रहे थे
41 18 और हमने उन लोगों को निजात दे दी जो ईमान लाने वाले और तक़्वा (ख़ुदा का ख़ौफ़) इखि़्तयार करने वाले थे
41 19 और जिस दिन दुश्मनाने ख़ुदा को जहन्नम की तरफ़ ढकेला जायेगा फिर उन्हें ज़ज्रो तौबीख़ (गिरोह-गिरोह, तरतीबवार) की जायेगी
41 20 यहां तक कि जब सब जहन्नुम के पास आयेंगे तो इनके कान और इनकी आँखे और जिल्द (खाल) सब इनके आमाल (कामों) के बारे में इनके खि़लाफ़ गवाही देंगे
41 21 और वह अपने आ़ज़ा (जिस्म के हिस्सों) से कहेंगे कि तुमने हमारे खि़लाफ़ कैसे शहादत (गवाही) दे दी तो वह जवाब देंगे कि हमें उसी ख़ुदा ने गोया (बोलने वाला) बनाया है जिसने सबको गोयाई (बोलने की सलाहियत) अता की है और तुमको भी पहले दिन उसी ने पैदा किया है और अब भी पलट कर उसी की बारगाह में जाओगे
41 22 और तुम इस बात से पर्दा पोशी (छिपाना) नहीं करते थे कि कहीं तुम्हारे खि़लाफ़ तुम्हारे कान, तुम्हारी आँखें और गोश्त पोस्त गवाही न दे दें बल्कि तुम्हारा ख़्याल यह था कि अल्लाह तुम्हारे बहुत से आमाल (कामों) से बा ख़बर भी नहीं है
41 23 और यही ख़्याल जो तुमने अपने परवरदिगार (पालने वाले) के बारे में क़ायम किया था उसी ने तुम्हें हलाक (बरबाद, ख़त्म) कर दिया है और तुम ख़सारा (घाटा, नुक़सान) वालों में हो गये हो
41 24 अब अगर ये बर्दाश्त करें तो भी इनका ठिकाना जहन्नम है और अगर माजि़रत (उज़्र पेश) करना चाहें तो भी माजि़रत (उज़्र पेश करना) कु़बूल नहीं की जायेगी
41 25 और हमने ख़ु़द भी इनके लिए हमनशीन फ़राहिम (का इन्तेज़ाम) कर दिये थे जिन्होंने इसके पिछले तमाम उमूर (मामलों) इनकी नज़रों में आरास्ता (सजाकर पेश) कर दिये थे और उन पर भी वही अज़ाब साबित हो गया जो इनके पहले इन्सान और जिन्नात के गिरोहों पर साबित हो चुका था कि ये सब के सब ख़सारा (घाटा, नुक़सान) वालों में थे
41 26 और कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) आपस में कहते हैं कि इस कु़रआन को हर्गिज़ (बिल्कुल) मत सुनो और इसकी तिलावत के वक़्त हंगामा करो शायद इसी तरह इन पर ग़ालिब आ जाओ
41 27 तो अब हम इन कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) करने वालों को शदीद (सख़्त) अज़ाब का मज़ा चखायेंगे और उन्हें उनके आमाल (कामों) की बदतरीन (सबसे बुरी) सज़ा देंगेे
41 28 ये दुश्मनाने ख़ुदा की सही सज़ा जहन्नम है जिसमें इनका हमेशगी का घर है जो इस बात की सज़ा है कि ये आयाते इलाही का इन्कार किया करते थे
41 29 और कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) यह फ़रियाद करेंगे कि परवरदिगार (पालने वाले) हमें जिन्नात व इन्सान के उन लोगों को दिखला दे जिन्होंने हमको गुमराह किया था ताकि हम उन्हें अपने क़दमों के नीचे क़रार दे दें और इस तरह वह पस्त (कमज़ोर) लोगों में शामिल हो जायें
41 30 बेशक जिन लोगों ने ये कहा कि अल्लाह हमारा रब है और इसी पर जमे रहे उन पर मलायका (फ़रिश्तों) ये पैग़ाम लेकर नाजि़ल होते हैं कि डरो नहीं और रंजीदा (ग़मज़दा) भी न हो और उस जन्नत से मसरूर (ख़ुश) हो जाओ जिसका तुमसे वादा किया जा रहा है
41 31 हम जि़न्दगानी दुनिया में भी तुम्हारे साथी थे और आखि़रत में भी तुम्हारे साथी हैं यहां जन्नत में तुम्हारे लिए वह तमाम चीज़ें फ़राहिम (का इन्तेज़ाम) हैं जिनके लिये तुम्हारा दिल चाहता है और जिन्हें तुम तलब (माँग) करोगे
41 32 यह बहुत ज़्यादा बख़्शने (माफ़ करने) वाले मेहरबान परवरदिगार (पालने वाले) की तरफ़ से तुम्हारी जि़याफ़त का सामान (मेहमानी) है
41 33 और उससे ज़्यादा बेहतर (ज़्यादा अच्छी) बात किसकी होगी जो लोगों को अल्लाह की तरफ़ दावत दे और नेक (अच्छा) अमल भी करे और ये कहे कि मैं उसके इताअतगुज़ारों (कहने पर अमल करने वालों) में से हूँ
41 34 नेकी और बुराई बराबर नहीं हो सकती लेहाज़ा (इसलिये) तुम बुराई का जवाब बेहतरीन (सबसे अच्छा) तरीके़ से दो कि इस तरह जिसके और तुम्हारे दरम्यान (बीच में) अदावत (दुश्मनी) है वह भी ऐसा हो जायेगा जैसे गहरा दोस्त होता है
41 35 और ये सलाहियत उन्हीं को नसीब होती है जो सब्र करने वाले होते हैं और ये बात उन्हीं को हासिल होती है तो बड़ी कि़स्मत वाले होते हैं
41 36 और जब तुममें शैतान की तरफ़ से कोई वसवसा (बुरा ख़याल) पैदा हो तो अल्लाह की पनाह (मदद, सहारा) तलब करो कि वह सबकी सुनने वाला और सबका जानने वाला है
41 37 और उसी ख़ुदा की निशानियों में से रात व दिन और आफ़ताब (सूरज) व माहताब (चाँद) हैं लेहाज़ा (इसलिये) आफ़बात व माहताब (चाँद) को सज्दा न करो बल्कि उस ख़ुदा को सज्दा करो जिसने इन सबको पैदा किया है अगर वाके़अन उसके इबादत करने वाले हो
41 38 फिर अगर ये लोग अकड़ से काम लें तो लें जो लोग परवरदिगार (पालने वाले) की बारगाह में हैं वह दिन रात उसकी तसबीह कर रहे हैं और किसी वक़्त भी थकते नहीं हैं
41 39 और उसकी निशानियों में से यह भी है कि तुम ज़मीन को साफ़ और मुर्दा देख रहे हो और फिर जब हमने पानी बरसा दिया तो ज़मीन लहलहाने लगी और इसमंे नश्व व नुमा (फूल) पैदा हो गई बेशक जिसने ज़मीन को जि़न्दा किया है वही मुर्दों का जि़न्दा करने वाला भी है और यक़ीनन वह हर शै पर क़ादिर (क़ुदरत रखने वाला) है
41 40 बेशक जो लोग हमारी आयात में हेरा-फेरी करते हैं वह हमसे छिपने वाले नहीं हैं। सोंचो कि जो शख़्स जहन्नम में डाल दिया जायेगा वह बेहतर (सबसे अच्छा) है या जो रोज़े क़यामत बेख़ौफ़ो-ख़तर नज़र आये। तुम जो चाहो अमल करो वह तुम्हारे तमाम आमाल (कामों) का देखने वाला है
41 41 बेशक जिन लोगों ने क़ु़रआन के आने  के बाद उसका इन्कार कर दिया उनका अंजाम बुरा है और ये एक आली (बलन्द) मर्तबा किताब है
41 42 जिसके क़रीब सामने या पीछे किसी तरफ़ से बातिल आ भी नहीं सकता है कि ये ख़ुदाए हकीम व हमीद की नाजि़ल की हुई किताब है
41 43 पैग़म्बर आप से जो कुछ भी कहा जाता है ये सब आपसे पहले वाले रसूलों से कहा जा चुका है और आपका परवरदिगार (पालने वाला) बख़्शने (माफ़ करने) वाला भी है और दर्दनाक (दर्द देने वाला) अज़ाब का मालिक भी है
41 44 और अगर हम इस कु़रआन को अजमी ज़्ाबान मंे नाजि़ल कर देते तो ये कहते कि इसकी आयतें वाजे़ह (रौशन, खुली हुई) क्यों नहीं हैं और ये अजमी किताब और अरबी इन्सान का रब्त (राबेता) क्या है, तो आप कह दीजिए कि ये किताब साहेबाने ईमान के लिए शिफ़ा और हिदायत है और जो लोग ईमान नहीं रखते हैं उनके कानों में बहरापन है और वह इनको नज़र भी नहीं आ रहा है और इन लोगों को बहुत दूर से पुकारा जायेगा
41 45 और यक़ीनन हमने मूसा को किताब दी तो उसमें भी झगड़ा डाल दिया गया और अगर आपके परवरदिगार (पालने वाले) की तरफ़ से एक बात पहले से तय न हो गई होती तो अब तक इनके दरम्यान (बीच में) फ़ैसला कर दिया गया होता और यक़ीनन ये बड़े बेचैन कर देने वाले शक में मुब्तिला हैं
41 46 जो भी नेक (अच्छा) अमल करेगा वह अपने लिए करेगा और जो बुरा करेगा उसका जि़म्मेदार भी वह ख़ुद ही होगा और आपका परवरदिगार (पालने वाला) बन्दों पर जु़ल्म करने वाला नहीं है
41 47 क़यामत का इल्म उसी की तरफ़ पलटा दिया जाता है और बौरों (गाभों, गि़लाफ़ों) से जो फल निकलते हैं या औरतों को जो हमल होता है या जिन बच्चों को वह पैदा करती हैं ये सब उसी के इल्म के मुताबिक़ होते हैं और जिस दिन वह पुकार कर पूछेगा कि मेरे शोरका (जिनको ख़ुदा के साथ शरीक बनाते थे) कहाँ हैं तो मुशरेकीन (ख़ुदा के साथ दूसरों को शरीक बनाने वालेे) मजबूरन अजऱ् करेंगे कि हम पहले ही बता चुके हैं कि हम में से कोई इनसे वाकि़फ़ (जानकार) नहीं है
41 48 और वह सब गुम हो जायेंगे जिन्हें ये पहले पुकारा करते थे और अब ख़्याल होगा कि कोई छुटकारा मुमकिन नहीं है
41 49 इन्सान भलाई की दुआ करते हुए कभी नहीं थकता है और जब कोई तकलीफ़ उसे छू लेती है तो बिल्कुल मायूस और बे आस हो जाता है
41 50 और अगर हम इस तकलीफ़ के बाद फिर उसे रहमत का मज़ा चखा दें तो फ़ौरन ये कह देगा कि ये तो मेरा हक़ है और मुझे तो ख़्याल भी नहीं है कि क़यामत क़ायम होने वाली है और अगर मैं परवरदिगार की तरफ़ पलटाया भी गया तो मेरे लिए वहाँ भी नेकियाँ ही हैं तो फिर हम भी कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) को ज़रूर बतायेंगे कि उन्होंने क्या-क्या किया है और उन्हें सख़्त अज़ाब का मज़ा चखायेंगे
41 51 और हम जब इन्सान को नेअमत देते हैं तो हमसे किनारा कश हो जाता है और पहलू बदलकर अलग हो जाता है और जब कोई बुराई पहुँच जाती है तो ख़ूब लम्बी-चैड़ी दुआयें करने लगता है
41 52 आप कह दीजिए कि क्या तुम्हें ये ख़्याल है अगर यह क़ु़रआन ख़ुदा की तरफ़ से है और तुमने उसका इन्कार कर दिया तो उससे ज़्यादा कौन गुमराह होगा जो इससे इतना सख़्त एख़़्तेलाफ़ (राय में टकराव) करने वाला हो
41 53 हम अनक़रीब (बहुत जल्द) अपनी निशानियों को तमाम एतराफ़ आलम में और ख़ुद उनके नफ़्स (जान) के अन्दर दिखलायेंगे ताकि उन पर यह बात वाज़ेह हो जाये कि वह बर हक़ है और क्या परवरदिगार (पालने वाले) के लिए ये बात काफ़ी नहीं है कि वह हर शै का गवाह और सबका देखने वाला है
41 54 आगाह हो जाओ कि ये लोग अल्लाह से मुलाक़ात की तरफ़ से शक में मुब्तिला (पड़े हुए) हैं और आगाह हो जाओ कि अल्लाह हर शै पर अहाता किये हुए है

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