Thursday, 16 April 2015

Sura-e-Shoora 42nd sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-शूरा
42   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
42 1 हा मीम
42 2 ऐन सीन क़ाफ़
42 3 इसी तरह ख़ुदाए अज़ीज़ व हकीम आपकी तरफ़ और आपसे पहले वालों की तरफ़ वही (इलाही पैग़ाम) भेजता रहता है
42 4 ज़मीन व आसमान में जो कुछ भी है सब उसी की की मिल्कियत (जो शै इखि़्तयार या क़ब्ज़े में हो) है और वही ख़ुदाए बुज़्ाुर्ग व बरतर है
42 5 क़रीब है कि आसमान उसकी हैबत (ख़ौफ़) से ऊपर से शिगाफ़्ता (फट, दो फ़ाड़) हो जायें और मलायका (फ़रिश्ते) भी अपने परवरदिगार (पालने वाले) की हम्द (तारीफ़) की तसबीह कर रहे हैं और ज़मीन वालों के हक़ में अस्तग़फ़ार (गुनाहों की माफ़ी की दुआ) कर रहे हैं आगाह हो जाओ कि ख़ुदा ही वह है जो बहुत बख़्शने (माफ़ करने) वाला और मेहरबान है
42 6 और जिन लोगों ने उसके अलावा सरपरस्त बना लिये हैं अल्लाह उन सबके हालात का निगरान (देखभाल करने वाला) है और पैग़म्बर आप किसी के जि़म्मेदार नहीं हैं
42 7 और हमने इसी तरह आपकी तरफ़ अरबी ज़बान में क़ु़रआन की वही भेजी ताकि आप मक्का और उसके एतराफ़ (इर्द-गिर्द, आस-पास) वालों को डरायें और उस दिन से डरायें जिस दिन सबको जमा किया जायेगा और इसमें किसी शक की गुंजाईश नहीं है उस दिन एक गिरोह जन्नत में होगा और एक जहन्नम में होगा
42 8 और अगर ख़ुदा चाहता तो सबको एक क़ौम बना देता लेकिन वह जिसे चाहता है उसी को अपनी रहमत में दाखि़ल करता है और ज़ालेमीन (ज़्ाुल्म करने वालों) के लिए न कोई सरपरस्त है और न मददगार
42 9 क्या इन लोगों ने उसको छोड़कर अपने लिए सरपरस्त बनाये हैं जबकि वही सबका सरपरस्त है और वही मुर्दों को जि़न्दा करता है और वह हर शै पर कु़दरत रखने वाला है
42 10 और तुम जिस चीज़ में भी एख़तेलाफ़ (राय में टकराव) करोगे उसका फै़सला अल्लाह के हाथों में है। वही मेरा परवरदिगार (पालने वाला) है और उसी पर मेरा भरोसा है और उसी की तरफ़ मैं रूजुअ करता हूँ
42 11 वह आसमानों और ज़मीन का पैदा करने वाला है उसने तुम्हारे नुफ़ूस (जानों) में से भी जोड़ा बनाया है और जानवरों में से भी जोड़े बनाये हैं वह तुमको इसी जोड़े के ज़रिये दुनिया में फैला रहा है उसका जैसा कोई नहीं है वह सब की सुनने वाला और हर चीज़ का देखने वाला है
42 12 आसमान व ज़मीन की तमाम कुन्जियाँ उसी के इखि़्तयार में हैं वह जिसके लिए चाहता है उसके रिज़्क़ में वुसअत (फैलाव, बरकत) पैदा करता है और जिसके लिए चाहता है तंगी पैदा कर देता है वह हर शै का ख़ूब जानने वाला है
42 13 उसने तुम्हारे लिए दीन में वह रास्ता मुक़र्रर (तय) किया है जिसकी नसीहत (अच्छी बातों का बयान) नूह को की है और जिसकी वही (इलाही पैग़ाम) पैग़म्बर तुम्हारी तरफ़ भी की है और जिसकी नसीहत (अच्छी बातों का बयान) इब्राहीम अलैहिस्सलाम, मूसा अलैहिस्सलाम और ईसा अलैहिस्सलाम को भी की है के दीन को क़ायम करो और इसमें तफ़्रेक़ा (र्फ़क़, भेद-भाव) न पैदा होने पाये, मुशरेकीन (ख़ुदा के साथ दूसरों को शरीक बनाने वालों) को वह बात सख़्त गरां (भारी, नागवार) गुज़रती है जिसकी तुम उन्हें दावत दे रहे हो अल्लाह जिसको चाहता है अपनी बारगाह के लिए चुन लेता है और जो उसकी तरफ़ रूजूअ (ध्यान) करता है उसे हिदायत दे देता है
42 14 और इन लोगों ने आपस में तफ़्रेका़ (र्फ़क़, भेद-भाव) उसी वक़्त पैदा किया है जब इनके पास इल्म आ चुका था और ये सिर्फ़ आपस की दुश्मनी की बिना पर था और अगर परवरदिगार (पालने वाले) की तरफ़ से एक बात पहले से एक मुद्दत के लिए तय न हो गई होती तो अब तक इनके दरम्यान (बीच में) फ़ैसला हो चुका होता और बेशक जिन लोगों को इनके बाद किताब का वारिस बनाया गया है वह उसकी तरफ़ से सख़्त शक में पड़े हुए हैं
42 15 लेहाज़ा (इसलिये) आप उसी के लिए दावत दें और इस तरह इस्तेक़ामत से काम लें जिस तरह आपको हुक्म दिया गया है और इनके ख़्वाहेशात का इत्तेबा (पैरवी) न करें और ये कहें कि मेरा ईमान उस किताब पर है जो ख़ुदा ने नाजि़ल की है और मुझे हुक्म दिया गया है के तुम्हारे दरम्यान (बीच में) इन्साफ़ करूँ अल्लाह हमारा और तुम्हारा दोनों का परवरदिगार (पालने वाला) है हमारे आमाल (कामों) हमारे लिए हैं और तुम्हारे आमाल (काम) तुम्हारे लिए। हमारे और तुम्हारे दरम्यान (बीच में) कोई बहस नहीं है अल्लाह हम सबको एक दिन जमा करेगा और उसी की तरफ़ सबकी बाज़गश्त (लौटना, वापसी) है
42 16 और जो लोग इसके मान लिए जाने बाद ख़ुदा के बारे में झगड़ा करते हैं उनकी दलील बिल्कुल महमिल (बातिल) और लग़ो (बेहूदा) है और उन पर अल्लाह का ग़ज़ब है और उनके लिए शदीद (सख़्त) कि़स्म का अज़ाब है
42 17 अल्लाह ही वह है जिसने हक़ के साथ किताब और मीज़ान को नाजि़ल किया है और आपको क्या मालूम कि शायद क़यामत क़रीब ही हो
42 18 इसकी जल्दी सिर्फ़ वह लोग करते हैं जिनका उस पर ईमान नहीं है वरना जो ईमान वाले हैं वह तो उससे ख़ौफ़ज़दा (डरा हुआ) ही रहते हैं और ये जानते हैं कि वह बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) बर हक़ है होशियार कि जो लोग क़यामत के बारे में शक करते हैं वह गुमराही में बहुत दूर तक चले गये हैं
42 19 अल्लाह अपने बन्दों पर मेहरबान है वह जिसको भी चाहता है रिज़्क़ अता करता है और वह साहेबे कू़व्वत (ताक़त) भी है और साहेबे इज़्ज़त भी है
42 20 जो इन्सान आखि़रत की खेती चाहता है हम उसके लिए इज़ाफ़ा (बढ़ावा) कर देते हैं और जो दुनिया की खेती का तलबगार है उसे इसी में से अता कर देते हैं और फिर आखि़रत में उसका कोई हिस्सा नहीं है
42 21 क्या उनके लिए ऐसे शोरका (जिनको ख़ुदा के साथ शरीक बनाते थे) भी हैं जिन्होंने दीन के वह रास्ते मुक़र्रर (तय किये हुए) किये हैं जिनकी ख़ुदा ने इजाज़त भी नहीं दी है और अगर फ़ैसले के दिन का वादा न हो गया होता तो अब तक इनके दरम्यान (बीच में) फ़ैसला कर दिया गया होता और यक़ीनन ज़ालिमों के लिए बड़ा दर्दनाक (दर्द देने वाला) अज़ाब है
42 22 आप देखेंगे कि ज़ालेमीन (ज़्ाुल्म करने वालों)  अपने करतूत (किये हुए काम) के अज़ाब से ख़ौफ़ज़दा (डरे हुए) हैं और वह इन पर बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) नाजि़ल होने वाला है और जो लोग ईमान ले आये और उन्होंने नेक (अच्छे) आमाल (काम) किये हैं वह जन्नत के बाग़ात में रहेंगे और उनके लिए परवरदिगार (पालने वाले) की बारगाह में वह तमाम चीज़ें हैं जिनके वह ख़्वाहिशमन्द (तमन्ना करने वाले) होंगे और ये एक बहुत बड़ा फ़ज़्ले परवरदिगार (पालने वाले का करम) है
42 23 यही वह फ़ज़्ले अज़ीम (बहुत बड़ा करम) है जिसकी बशारत (ख़ुशख़बरी) परवरदिगार (पालने वाला) अपने बन्दों को देता है जिन्होंने ईमान इखि़्तयार किया है और नेक (अच्छा) आमाल (कामों) किये हैं तो आप कह दीजिए कि मैं तुम से इस तब्लीग़े रिसालत का कोई अज्र नहीं चाहता अलावा इसके कि मेरे अक़रबा (क़रीबी लोगों, क़राबतदारों) से मोहब्बत करो और जो शख़्स भी कोई नेकी हासिल करेगा हम उसकी नेकी में इज़ाफ़ा (बढ़ावा) कर देंगे कि बेशक अल्लाह बहुत ज़्यादा बख़्शने (माफ़ करने) वाला और क़द्रदान है
42 24 क्या इन लोगों का कहना ये है कि रसूल, अल्लाह पर झूठे बोहतान (इल्ज़ाम, ऐब) बाँधता है जबकि ख़ुदा चाहे तो तुम्हारे क़ल्ब पर भी मोहर लगा सकता है और ख़ुदा तो बातिल (झूठ) को मिटा देता है और हक़ (सच्चाई) को अपने कलेमात के ज़रिये साबित और पायेदार बना देता है यक़ीनन वह दिलों के राज़ों का जानने वाला है
42 25 और वही वह है जो अपने बन्दों की तौबा कु़बूल करता है और उनकी बुराईयों को माॅफ़ करता है और वह तुम्हारे आमाल (कामों) से खू़ब बा ख़बर है
42 26 और जो लोग ईमान लाये और उन्होंने नेक (अच्छा) आमाल (काम) किये वही दावते इलाही (अल्लाह की तरफ़ दी गई दावत) को कु़बूल करते हैं और ख़ुदा अपने फ़ज़्ल व करम से उनके अज्र में इज़ाफ़ा (बढ़ावा) कर देता है और काफ़ेरीन (कुफ्ऱ करने वालों) के लिए तो बड़ा सख़्त अज़ाब रखा गया है
42 27 और अगर ख़ुदा तमाम बन्दों के लिए रिज़्क़ को वसीअ (फैला हुआ, ज़्यादा) कर देता है तो ये लोग ज़मीन में बग़ावत कर देते मगर वह अपनी मशीयत के मुताबिक़ मुअईयेना मिक़दार (तय की हुई मिक़दार या मात्रा) में नाजि़ल करता है कि वह अपने बन्दों से ख़ू़ब बा ख़बर है और उनके हालात का देखने वाला है
42 28 वही वह है जो इनके मायूस हो जाने के बाद बारिश को नाजि़ल करता है और अपनी रहमत को मुन्तशिर करता (फैलाता) है और वही क़ाबिले तारीफ़ मालिक और सरपस्त है
42 29 और उसकी निशानियों में से ज़मीन व आसमान की खि़ल्क़त (पैदा किया जाना) और इनके अन्दर चलने वाले तमाम जानदार हैं और वह जब चाहे उन सबको जमा कर लेने पर कु़दरत रखने वाला है
42 30 और तुम तक जो मुसीबत भी पहुँचती है वह तुम्हारे हाथों की कमाई है और वह बहुत सी बातों को माॅफ़ भी कर देता है
42 31 और तुम ज़मीन में ख़ुदा को आजिज़ नहीं कर सकते हो और तुम्हारे लिए उसके अलावा कोई सरपरस्त और मददगार भी नहीं है
42 32 और उसकी निशानियों में से समन्दर में चलने वाले बादबानी जहाज़ भी हैं जो पहाड़ की तरह बलन्द (ऊंचे) हैं
42 33 वह अगर चाहे तो हवा को साकिन (ठहरा हुआ) बना दे तो सब सतहे आब (पानी की सतह) पर जमकर रह जायें। बेशक इस हक़ीक़त में सब्र व शुक्र करने वालों के लिए बहुत सी निशानियाँ पायी जाती हैं
42 34 या वह उन्हें उनके आमाल (कामों) की बिना पर हलाक (बरबाद, ख़त्म) ही कर दे और वह बहुत सी बातों को माॅफ़ भी कर देता है
42 35 और हमारी आयतों में झगड़ा करने वालों को मालूम हो जाना चाहिए कि उनके लिए कोई छुटकारा नहीं है
42 36 पस तुमको जो कुछ भी दिया गया है वह जि़न्दगानी दुनिया का चैन है और बस और जो कुछ अल्लाह की बारगाह में है वह ख़ैर और बाक़ी रहने वाला है उन लोगों के लिए जो ईमान रखते हैं और अपने परवरदिगार (पालने वाले) पर भरोसा करते हैं
42 37 और बड़े-बड़े गुनाहों और फ़ोहश (वाहियात, बेहयाई की) बातों से परहेज़ करते हैं और जब गु़स्सा आ जाता है तो माॅफ़ कर देते हैं
42 38 और जो अपने रब की बात को कु़बूल करते हैं और नमाज़ क़ायम करते हैं और आपस के मामलात में मशविरा करते हैं और हमारे रिज़्क़ में से हमारी राह में ख़र्च करते हैं
42 39 और जब उन पर कोई ज़्ाुल्म होता है तो इसका बदला ले लेते हैं
42 40 और हर बुराई का बदला उसके जैसा होता है फिर जो माॅफ़ कर दे और इस्लाह कर दे उसका अज्र अल्लाह के जि़म्मे है वह यक़ीनन ज़ालिमों को दोस्त नहीं रखता है
42 41 और जो शख़्स भी ज़्ाुल्म के बाद बदला ले उसके ऊपर कोई इल्ज़ाम नहीं है
42 42 इल्ज़ाम उन लोगों पर है जो लोगों पर ज़्ाुल्म करते हैं और ज़मीन में नाहक़ ज़्यादतियाँ फैलाते हैं उन्हीं लोगों के लिए दर्दनाक (दर्द देने वाला) अज़ाब है
42 43 और यक़ीनन जो सब्र करे और माॅफ़ कर दे तो उसका ये अमल बड़े हौसले का काम है
42 44 और जिसको ख़ुदा गुमराही में छोड़ दे उसके लिए उसके बाद कोई वली और सरपरस्त नहीं है और तुम देखोगे कि ज़ालेमीन (ज़्ाुल्म करने वाले) अज़ाब को देखने के बाद ये कहेंगे कि क्या वापसी का कोई रास्ता निकल सकता है
42 45 और तुम उन्हें देखोगे कि वह जहन्नम के सामने पेश किये जायेंगे तो जि़ल्लत से उनके सर झुके हुए होंगे और वह कुन (अधखुली) आँखों से देखते भी जायेंगे और साहेबाने ईमान कहेंगे कि घाटे वाले वही अफ़राद (लोगों) हैं जिन्होंने अपने नफ़्स (जान) और अपने अहल (अपने वालों) को क़यामत के दिन घाटे में मुब्तिला कर दिया है आगाह हो जाओ कि ज़ालिमों को बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) दायमी (हमेशगी वाले) अज़ाब में रहना पडे़गा
42 46 और उनके लिए ऐसे सरपरस्त भी न होंगे जो ख़ुदा से हटकर उनकी मदद कर सकें और जिसको ख़ुदा गुमराही में छोड़ दे उसके लिए कोई रास्ता नहीं है
42 47 तुम लोग अपने परवरदिगार (पालने वाले) की बात को कु़बूल करो क़ब्ल इसके (इससे पहले) कि वह दिन आ जाये जो पलटने वाला नहीं है उस दिन तुम्हारे लिए कोई पनाहगाह भी न होगी और अज़ाब का इन्कार करने की हिम्मत भी न होगी
42 48 अब भी अगर यह लोग एतराज़ करें तो हमने आपको इनका निगेहबान बनाकर नहीं भेजा है आपका फ़जऱ् सिर्फ़ पैग़ाम पहुँचा देना था और बस और हम जब किसी इन्सान को रहमत का मज़ा चखाते हैं तो वह अकड़ जाता है और जब उसके आमाल (कामों) ही के नतीजे में कोई बुराई पहुँच जाती है तो बहुत ज़्यादा नाशुक्री करने वाला बन जाता है
42 49 बेशक आसमान व ज़मीन का इखि़्तयार सिर्फ़ अल्लाह के हाथों में है वह जो कुछ चाहता है पैदा करता है जिसको चाहता है बेटियाँ अता करता है और जिसको चाहता है बेटे अता करता है
42 50 या फिर बेटे और बेटियाँ दोनों को जमा कर देता है और जिसको चाहता है बाँझ ही बना देता है यक़ीनन वह साहेबे इल्म भी है और साहेबे कु़़दरत व इखि़्तयार भी है
42 51 और किसी इन्सान के लिए ये बात नहीं है कि अल्लाह उससे कलाम करे मगर यह के वही (इलाही पैग़ाम) कर दे या पसे पर्दे (पर्दे के पीछे, पोशीदा होकर) से बात कर ले या कोई नुमाइन्दा फ़रिश्ता भेज दे और फिर वह उसकी इजाज़त से जो वह चाहता है वह पैग़ाम पहुँचा दे कि वह यक़ीनन बलन्द व बाला और साहेबे हिकमत (अक़्ल, दानाई वाला) है
42 52 और इसी तरह हमने आपकी तरफ़ अपने हुक्म से रूह (कु़रआन) की वही (इलाही पैग़ाम) की है आप को नहीं मालूम था कि किताब क्या है और ईमान किन चीज़ों का नाम है लेकिन हमने इसे एक नूर क़रार दिया है जिसके ज़रिये अपने बन्दों में जिसे चाहते हैं उसे हिदायत दे देते हैं और बेशक आप लोगों को सीधे रास्ते की हिदायत कर रहे हैं
42 53 उस ख़ुदा का रास्ता जिसके इखि़्तयार में ज़मीन व आसमान की तमाम चीज़ें हैं और यक़ीनन उसी की तरफ़ तमाम उमूर (मामलों) की बाज़गश्त (लौटना, वापसी) है

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