Saturday, 18 April 2015

Sura-e-Mutaffafafeen 83rd surah of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-मुतफ़फ़फ़ीन
83   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
83 1 वैल (जहन्नम की घाटी) है उनके लिए जो नाप तौल में कमी करने वाले हैं 
83 2 ये जब लोगों से नाप कर लेते हैं तो पूरा माल ले लेते हैं 
83 3 और जब उनके लिए नापते या तौलते हैं तो कम कर देते हैं 
83 4 क्या उन्हें ये ख़्याल नहीं है कि ये एक रोज़ दोबारा उठाये जाने वाले हैं 
83 5 बड़े सख़्त दिन में 
83 6 जिस दिन सब रब्बुलआलमीन (तमाम जहानों के मालिक) की बारगाह में हाजि़र होंगे 
83 7 याद रखो कि बदकारों का नामा-ए-आमाल (कामों का हिसाब-किताब) सिज्जीन में होगा 
83 8 और तुम क्या जानो कि सिज्जीन क्या है 
83 9 एक लिखा हुआ दफ़्तर है 
83 10 आज के दिन उन झुठलाने वालों के लिए बर्बादी है 
83 11 जो लोग रोज़े जज़ा (सिला) का इन्कार करते हैं 
83 12 और उसका इन्कार सिर्फ़ वही करते हैं जो हद से गुज़र जाने वाले गुनाहगार हैं 
83 13 जब उनके सामने आयात की तिलावत की जाती है तो कहते हैं कि ये तो पुराने अफ़साने हैं 
83 14 नहीं-नहीं बल्कि उनके दिलों पर उनके आमाल (कामों) का ज़ंग लग गया है 
83 15 याद रखो उन्हें रोज़े क़यामत परवरदिगार (पालने वाले) की रहमत से महजूब कर (रोक) दिया जायेगा 
83 16 फिर इसके बाद ये जहन्नम में झोंके जाने वाले हैं 
83 17 फिर उनसे कहा जायेगा कि यही वह है जिसका तुम इन्कार कर रहे थे 
83 18 याद रखो कि नेक (अच्छा) किरदार अफ़राद (लोगों) का नामा-ए-आमाल (कामों का हिसाब-किताब) इल्लीयीन में होगा 
83 19 और तुम क्या जानो कि इल्लीयीन क्या है 
83 20 एक लिखा हुआ दफ़्तर है 
83 21 जिसके गवाह मलायका मुक़र्रेबीन हैं 
83 22 बेशक नेक (अच्छा) लोग नेअमतों में होंगे 
83 23 तख़्तों पर बैठे हुए नज़ारे कर रहे होंगे 
83 24 तुम उनके चेहरों पर नेअमत की शादाबी (तरो ताज़गी) का मुशाहेदा करोगे (सामने देखोगे) 
83 25 उन्हें सर ब मोहर (मोहर बन्द) ख़ालिस शराब से सेराब किया जायेगा 
83 26 जिसकी मोहर मुश्क की होगी और ऐसी चीज़ांें में शौक़ करने वालों को आपस में सब्क़त (पहल, जल्दी) और रग़बत करनी चाहिए 
83 27 उस शराब में तसनीम के पानी की आमेजि़श (मिलावट) होगी
83 28 ये एक चश्मा (दरिया जैसा) है जिससे मुक़र्रब बारगाह बन्दे पानी पीते हैं 
83 29 बेशक ये मुजरेमीन (जुर्म करने वालों) साहेबाने ईमान का मज़ाक़ उड़ाया करते थे 
83 30 और जब वह उनके पास से गुज़रते थे तो इशारे किनाए करते थे 
83 31 और जब अपने अहल (अपने वालों, अपने घर वालों) की तरफ़ पलटकर आते थे तो ख़ु़श व ख़ु़र्रम होते थे 
83 32 और जब मोमिनीन को देखते तो कहते थे कि ये सब असली गुमराह हैं 
83 33 हालांकि उन्हें उनका निगराँ (नज़र रखने वाला, मुहाफि़ज़) बनाकर नहीं भेजा गया था 
83 34 तो आज ईमान लाने वाले भी कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वालों) का मज़हका उड़ायेंगे 
83 35 तख़्तों पर बैठे हुए देख रहे होंगे 
83 36 अब तो कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वालों) को उनके आमाल (कामों) का पूरा-पूरा बदला मिल रहा है 

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