Thursday, 16 April 2015

Sura-e-Mohammad 47th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-मोहम्मद
47   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
47 1 जिन लोगों ने कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) किया और लोगों को राहे ख़ुदा से रोका ख़ुदा ने उनके आमाल (कामों) को बर्बाद कर दिया
47 2 और जिन लोगों ने ईमान इखि़्तयार किया और नेक (अच्छा) आमाल (कामों) किये और जो कुछ मोहम्मद पर नाजि़ल किया गया है और परवरदिगार (पालने वाले) की तरफ़ से बरहक़ (हक़ पर) भी है उस पर ईमान ले आये तो ख़ुदा ने उनकी बुराईयों को दूर कर दिया और उनके हालात की इस्लाह कर दी
47 3 ये इसलिए कि कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) ने बातिल का इत्तेबा (पैरवी) किया है और साहेबाने ईमान ने अपने परवरदिगार (पालने वाले) की तरफ़ से आने वाले हक़ का इत्तेबा (पैरवी) किया है और ख़ुदा इसी तरह लोगों के लिए मिसालें बयान करता है
47 4 पस जब कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) से मुक़ाबला हो तो उनकी गर्दनें उड़ा दो यहाँ तक कि जब ज़ख़्मों से चूर हो जायें तो उनकी मुश्कें बाँध लो (क़ैद कर लो) फिर इसके बाद चाहे एहसान करके छोड़ दिया जाये या फि़द्या (मुआवज़ा) ले लिया जाये यहाँ तक कि जंग (लड़ने वाले, दुश्मन) अपने हथियार रख दें। ये याद रखना और अगर ख़ुदा चाहता तो खु़द ही उनसे बदला ले लेता लेकिन वह एक को दूसरे के ज़रिये आज़माना चाहता है और जो लोग उसकी राह में क़त्ल हुए वह उनके आमाल (कामों) को ज़ाया (बरबाद) नहीं कर सकता है
47 5 वह अनक़रीब (बहुत जल्द) उन्हें मंजि़ल (आखि़री जगह) तक पहुँचा देगा और उनकी हालत संवार देगा
47 6 वह उन्हें उस जन्नत में दाखि़ल करेगा जो उन्हें पहले से पहुँचवा चुका (शेनास करवा चुका) है
47 7 ईमान वालों अगर तुम अल्लाह की मदद करोगे तो अल्लाह भी तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हें साबित क़दम बना देगा
47 8 और जिन लोगों ने कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) इखि़्तयार किया उनके वास्ते डगमगाहट है और उनके आमाल (काम) बर्बाद हैं
47 9 ये इसलिए कि उन्होंने ख़ुदा के नाजि़ल किये हुए एहकाम (हुक्मों, हिदायतों) को बुरा समझा तो ख़ुदा ने भी उनके आमाल (कामों) को ज़ाया (बरबाद) कर दिया
47 10 तो क्या उन लोगों ने ज़मीन में सैर नहीं की है कि देखते कि उनसे पहले वालों का क्या अंजाम हुआ है बेशक अल्लाह ने उन्हें तबाह व बर्बाद कर दिया है और कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) के लिए बिल्कुल ऐसी ही सज़ा मुक़र्रर (तय किये हुए) है
47 11 ये सब इसलिए है कि अल्लाह साहेबाने ईमान (ईमान वालों) का मौला और सरपरस्त है और काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) का कोई पुरसाने हाल (हाल पूछने वाला) नहीं है
47 12 बेशक जो लोग ईमान लाये और उन्होंने नेक (अच्छा) आमाल (कामों) अंजाम दिये ख़ुदा उन्हें ऐसे बाग़ात (बाग़ों) में दाखि़ल करेगा जिनके नीचे नहरें जारी होंगी और जिन लोगों ने कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) इखि़्तयार किया वह (बस दुनिया में) मज़े कर रहे हैं और उसी तरह खा रहे हैं जिस तरह जानवर खाते हैं और उनका आखि़री ठिकाना जहन्नम ही है
47 13 और कितनी ही बस्तियाँ थीं जो तुम्हारी इस बस्ती से कहीं ज़्यादा ताक़तवर थीं जिसने तुम्हें निकाल दिया है जब हमने उन्हें हलाक (बरबाद, ख़त्म) कर दिया तो कोई मदद करने वाला भी न पैदा हुआ
47 14 तो क्या जिसके पास परवरदिगार (पालने वाले) की तरफ़ से खुली हुई दलील मौजूद है वह उसके मिस्ल हो सकता है जिसके लिए उसके बदतरीन (सबसे बुरे) आमाल (कामों) संवार (आरास्ता कर) दिये गये हैं और फिर उन लोगों ने अपने ख़्वाहिशात (दुनियावी तमन्नाओं) का इत्तेबा (पैरवी) कर लिया है
47 15 उस जन्नत की सिफ़त जिसका साहेबाने तक़्वा (ख़ुदा से डरने वाले लोगों) से वादा किया गया है ये है के इसमें ऐसे पानी की नहरें हैं जिसमें किसी तरह की बू नहीं है और कुछ नहरें दूध की हैं जिनका मज़ा बदलता ही नहीं है और कुछ नहरें शराब की भी हैं जिनमें पीने वालों के लिए लज़्ज़त (मज़ा) है और कुछ नहरें साफ़ व शफ़्फ़ाफ़ शहद की हैं और उनके लिए हर तरह के मेवे भी हैं और परवरदिगार (पालने वाले) की तरफ़ से मग़फि़रत (गुनाहों की माफ़ी) भी है तो क्या ये मुत्तक़ी (ख़ुदा से डरने वाले) अफ़राद (लोगों) उनके जैसे हो सकते हैं जो हमेशा जहन्नम में रहने वाले हैं और जिन्हें गरमागरम पानी पिलाया जायेगा जिससे आँते टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगी
47 16 और इनमें से कुछ अफ़राद (लोग) ऐसे भी हैं जो आपकी बातें बज़ाहिर ग़ौर से सुनते हैं इसके बाद जब आपके पास से बाहर निकलते हैं तो जिन लोगों को इल्म दिया गया है उनसे कहते हैं कि उन्होंने अभी क्या कहा था यही वह लोग हैं जिनके दिलों पर ख़ुदा ने मोहर लगा दी है और उन्होंने अपने ख़्वाहिशात (दुनियावी तमन्नाओं) का इत्तेबा (पैरवी) कर लिया है
47 17 और जिन लोगों ने हिदायत हासिल कर ली ख़ुदा ने उनकी हिदायत में ईज़ाफ़ा (बढ़ोतरी) कर दिया और उनको मज़ीद (और ज़्यादा) तक़्वा (ख़ुदा का ख़ौफ़) इनायत फ़रमा दिया
47 18 फिर क्या ये लोग क़यामत का इन्तिज़ार कर रहे हैं कि वह अचानक उनके पास आ जाये जबकि उसकी अलामतें (निशानियां) ज़ाहिर हो गई हैं तो अगर वह आ भी गई तो ये क्या नसीहत (अच्छी बातों का बयान) हासिल करेंगे
47 19 तो ये समझ लो कि अल्लाह के अलावा कोई ख़ुदा नहीं है और अपने और ईमानदार मर्दों और औरतों के लिए अस्तग़फ़ार (गुनाहों की माफ़ी की दुआ) करते रहो कि अल्लाह तुम्हारे चलने फिरने और ठहरने से खू़ब बाख़बर है
47 20 और जो लोग ईमान ले आये हैं वह यह कहते हैं कि आखि़र जेहाद के बारे मेें सूरा क्यों नहीं नाजि़ल होता और जब सूरा नाजि़ल हो गया और उसमें जेहाद का जि़क्र कर दिया गया तो आपने देखा कि जिनके दिलों में मजऱ् था वह आपकी तरफ़ इस तरह देखते रह गये जैसे मौत की सी ग़शी (बेहोशी) तारी हो गई हो तो उनके वास्ते वैल (जहन्नम की घाटी) और अफ़सोस है 
47 21 इनके हक़ में बेहतरीन (सबसे अच्छी) बात इताअत (कहने पर अमल करना) और नेक (अच्छी) गुफ़्तगू (बातचीत) है फिर जब जंग का मामला तय हो जाये तो अगर ख़ुदा से अपने किये वादे पर क़ायम रहें तो उनके हक़ में बहुत बेहतर (ज़्यादा अच्छा)  है
47 22 तो क्या तुमसे कुछ बईद (उम्मीद नहीं) है कि तुम साहेबे इक़तेदार (हाकेमीयत) बन जाओ तो ज़मीन में फ़साद (लड़ाई-झगड़ा) बरपा करो और क़राबतदारों (क़रीबी रिश्तेदारों) से क़तआ-ताल्लुक़ात (ताल्लुक़ात ख़त्म) कर लो
47 23 यही वह लोग हैं जिन पर ख़ुदा ने लाॅनत की है और उनके कानों को बहरा कर दिया है और उनकी आँखों को अन्धा बना दिया है
47 24 तो क्या ये लोग कु़रआन में ज़रा भी ग़ौर नहीं करते हैं या इनके दिलों पर क़ुफ़्ल (ताले) पड़े हुए हैं
47 25 बेशक जो लोग हिदायत के वाजे़ह (रौशन, साफ़ ज़ाहिर) हो जाने के बाद उलटे पाँव पलट गये शैतान ने इनके ख़्वाहिशात (दुनियावी तमन्नाओं) को आरास्ता (सजाकर पेश) कर दिया है और उन्हें ख़ू़ब ढील दे दी है
47 26 ये इसलिए कि उन लोगों ने ख़ुदा की नाजि़ल की हुई बातों को नापसन्द करने वालों से यह कहा कि हम बाज़ (कुछ) मसाएल में तुम्हारी ही इताअत (कहने पर अमल) करेंगे और अल्लाह उनकी राज़ की बातों से खू़ब बाख़बर है
47 27 फिर उस वक़्त क्या होगा जब मलायका (फ़रिश्ते) उन्हें दुनिया से उठायेंगे और उनके चेहरों और पुश्त (पीठ) पर मुसलसल (लगातार) मारते जायेंगे
47 28 यह इसलिए कि उन्होंने उन बातों का इत्तेबा (पैरवी) किया है जो ख़ुदा को नाराज़ करने वाली हैं और उसकी मजऱ्ी को नापसन्द किया है तो ख़ुदा ने भी उनके आमाल (कामों) को बर्बाद करके रख दिया है
47 29 क्या जिन लोगों के दिलों में बीमारी पायी जाती है उनका ख़्याल ये है कि ख़ुदा इनके दिलों के कीनों (दिली अदावतों) को बाहर नहीं लायेगा
47 30 और हम चाहते तो उन्हें दिखला देते और आप चेहरे के आसार ही से पहचान लेेते और उनकी गुफ़्तगू (बात-चीत) के अंदाज़ से तो बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) पहचान ही लेंगे और अल्लाह तुम सबके आमाल (कामों) से खू़ब बाख़बर है
47 31 और हम यक़ीनन तुम सबका इम्तिहान लेंगे ताकि ये देखें कि तुम में जेहाद करने वाले और सब्र करने वाले कौन लोग हैं और इस तरह तुम्हारे हालात को बाक़ायदा (क़ायदे के हिसाब से, ठीक तरह से) जाँच लें
47 32 बेशक जिन लोगों ने कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) इखि़्तयार कर लिया और लोगों को ख़ुदा की राह से रोका और हिदायत के वाजे़ह (रौशन, साफ़ तौर पर ज़ाहिर) हो जाने के बाद भी पैग़म्बर से झगड़ा किया वह अल्लाह को कोई नुक़सान नहीं पहुँचा सकते हैं और अल्लाह अनक़रीब (बहुत जल्द) उनके आमाल (कामों) को बिल्कुल बर्बाद कर देगा
47 33 ईमान वालों अल्लाह की इताअत (कहने पर अमल) करो और रसूल की इताअत (कहने पर अमल) करो और ख़बरदार अपने आमाल (कामों) को बर्बाद न करो
47 34 बेशक जिन लोगों ने कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) इखि़्तयार किया और ख़ुदा की राह में रूकावट डाली और फिर हालते कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) में मर गये तो ख़ुदा उन्हें हर्गिज़ (बिल्कुल) माॅफ नहीं करेगा
47 35 लेहाज़ा तुम हिम्मत न हारो और दुश्मन को सुलह की दावत न दो और तुम सरबलन्द हो और अल्लाह तुम्हारे साथ है और वह हर्गिज़ (किसी भी तरह) तुम्हारे आमाल (कामों) के सवाब को कम नहीं करेगा
47 36 ये जि़न्दगानी दुनिया तो सिर्फ़ एक खेल तमाशा है और अगर तुमने ईमान और तक़वा (ख़ुदा का ख़ौफ़) इखि़्तयार कर लिया तो ख़ुदा तुम्हें मुकम्मल अज्र अता करेगा और तुमसे तुम्हारा माल तलब (माँग) नहीं करेगा
47 37 वह अगर तलब (माँग) भी करे और इसरार (ज़ोर देना) भी करे तो तुम बुख़्ल (कंजूसी) ही करोगे और ख़ुदा तुम्हारे कीनों (दिली अदावतों) को ख़ु़द ही ज़ाहिर कर देगा
47 38 हाँ-हाँ तुम वही लोग हो जिन्हें राहे ख़ुदा में ख़र्च करने के लिए बुलाया जाता है तो तुम में से बाज़ (कुछ) लोग बुख़्ल (कंजूसी) करने लगते हैं और जो लोग बुख़्ल (कंजूसी) करते हैं वह अपने ही हक़ में बुख़्ल (कंजूसी) करते हैं और ख़ुदा सबसे बेनियाज़ (जिसे कोई/किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं) है तुम ही सब उसके फ़क़ीर और मोहताज हो और अगर तुम मुँह फेर लोगे तो वह तुम्हारे बदले दूसरी क़ौम को ले आयेगा जो इसके बाद तुम जैसे न होंगे

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