Saturday, 18 April 2015

Sura-e-Hadeed 57th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-हदीद
57   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
57 1 महवे तसबीहे परवरदिगार (पालने वाले की तस्बीह में लगी हुई) है हर वह चीज़ जो ज़मीन व आसमान में है और वह परवरदिगार (पालने वाला) साहेबे इज़्ज़त भी है और साहेबे हिकमत (अक़्ल, दानाई वाला) भी है
57 2 आसमान व ज़मीन का कुल इखि़्तयार उसी के पास है और वही हयात (जि़न्दगी) व मौत का देने वाला है और हर शै पर इखि़्तयार रखने वाला है
57 3 वही अव्वल (पहला) है वही आखि़र वही ज़ाहिर है वही बातिन (छिपा हुआ) और वही हर शै का जानने वाला है
57 4 वही वह है जिसने ज़मीन व आसमान को छः दिन में पैदा किया है और फिर अर्श पर अपना इक़तेदार (हाकेमीयत) क़ायम किया है वह हर उस चीज़ को जानता है जो ज़मीन में दाखि़ल होती है या ज़मीन से ख़ारिज होती है और जो चीज़ आसमान से नाजि़ल होती है और आसमान की तरफ़ बलन्द होती है और वह तुम्हारे साथ है तुम जहाँ भी रहो और वह तुम्हारे आमाल (कामों) का देखने वाला है
57 5 आसमान व ज़मीन का मुल्क (बादशाहत) उसी के लिए है और तमाम उमूर (मामलों) की बाज़गश्त (लौटना, वापसी) उसी की तरफ़ है
57 6 वह रात को दिन में और दिन को रात में दाखि़ल करता है और वह सीनों के राज़ों से भी बाख़बर है
57 7 तुम लोग अल्लाह व रसूल पर ईमान ले आओ और उस माल में से ख़र्च करो जिसमें उसने तुम्हें अपना नायब क़रार दिया है। तुम में से जो लोग ईमान लाये और उन्होंने राहे ख़ुदा में ख़र्च किया उनके लिए अज्रे अज़ीम (बहुत बड़ा सिला) है
57 8 और तुम्हें क्या हो गया है कि तुम ख़ुदा पर ईमान नहीं लाते हो जबकि रसूल तुम्हें दावत दे रहा है कि अपने परवरदिगार (पालने वाले) पर ईमान ले आओ और ख़ुदा तुमसे इस बात का अहद (वादा) भी ले चुका है अगर तुम एतबार (भरोसा) करने वाले हो
57 9 वही वह है जो अपने बन्दे पर खुली हुई निशानियाँ नाजि़ल करता है ताकि तुम्हें तारीकियों (अंधेरों) से नूर (रौशनी) की तरफ़ निकालकर ले आये और अल्लाह तुम्हारे हाल पर यक़ीनन मेहरबान और रहम करने वाला है
57 10 और तुम्हें क्या हो गया है कि तुम राहे ख़ुदा में ख़र्च नहीं करते हो जबकि आसमान व ज़मीन की विरासत उसी के लिए है और तुम में से फ़तेह से पहले इन्फ़ाक़ (ख़र्च) करने वाला और जेहाद करने वाला उसके जैसा नहीं हो सकता है जो फ़तेह के बाद इन्फ़ाक़ (ख़र्च) और जेहाद करे। पहले जेहाद करने वाले का दर्जा बहुत बलन्द (ऊंचा) है अगरचे (यूं तो) ख़ुदा ने सबसे नेकी का वादा किया है और वह तुम्हारे जुमला (सारे) आमाल (कामों) से बाख़बर है
57 11 कौन है जो अल्लाह को क़जेऱ् हसना दे कि वह उसको दोगुना कर दे और उसके लिए बा इज़्ज़त अज्र (सिला) भी हो
57 12 उस दिन तुम बाईमान (ईमान वाले) मर्द और बा ईमान (ईमान वाले) औरतों को देखोगे कि उनका नूरे ईमान उनके आगे-आगे और दाहिनीं तरफ़ चल रहा है और उनसे कहा जा रहा है कि आज तुम्हारी बशारत (ख़ुशख़बरी) का सामान वह बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं और तुम हमेशा इन्हीं में रहने वाले हो और यही सबसे बड़ी कामयाबी है
57 13 इस दिन मुनाफि़क़ मर्द और मुनाफि़क़ औरतें साहेबाने ईमान से कहेंगे कि ज़रा हमारी तरफ़ भी नज़रे मरहम्मत (शफ़क़्क़त) करो कि हम तुम्हारे नूर से इस्तेफ़ादा (फ़ायदा हासिल) करें तो उनसे कहा जायेगा कि अपने पीछे की तरफ़ पलट जाओ और अपने शयातीन (शैतानों) से नूर की इल्तेमास (गुज़ारिश) करो इसके बाद इनके दरम्यान (बीच में) एक दीवार हायल (खड़ी) कर दी जायेगी जिसके अन्दर की तरफ़ रहमत होगी और बाहर की तरफ़ अज़ाब होगा
57 14 और मुनाफ़ेक़ीन (जो दिल में निफ़ाक़ और अल्लाह से दुश्मनी लिये रहते हैं) ईमान वालों से पुकार कर कहेंगे कि क्या हम तुम्हारे साथ नहीं थे तो वह कहेंगे बेशक मगर तुमने अपने को बलाओं (मुसीबतों) में मुब्तिला कर (घेर) दिया और हमारे लिए मसाएब (परेशानियों) के मुन्तजि़र (इन्तेज़ार करने वाले) रहे और तुमने रिसालत में शक किया और तुम्हें तमन्नाओं (दुनियावी ख़्वाहिशों) ने धोके में डाले रखा यहाँ तक कि हुक्मे ख़ुदा आ गया और तुम्हें धोकेबाज़ शैतान ने धोका दिया है
57 15 तो आज न तुमसे कोई फि़द्या लिया जायेगा और न कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वालों) से। तुम सबका ठिकाना जहन्नम है वही तुम सबका साहेबे इखि़्तयार (इखि़्तयार रखने वाला) है और तुम्हारा बदतरीन (सबसे बुरा) अंजाम है
57 16 क्या साहेबाने ईमान के लिए अभी वह वक़्त नहीं आया है कि उनके दिल जि़क्रे ख़ुदा और उसकी तरफ़ से नाजि़ल होने वाले हक़ के लिए नरम हो जायें और वह उन अहले किताब (किताब वालों) की तरह न हो जायें जिन्हें किताब दी गई तो एक अरसा गुज़रने के बाद इनके दिल सख़्त हो गये और इनकी अकसरियत (ज़्यादातर लोग) बदकार (बुरे काम करने वाली) हो गई
57 17 याद रखो कि ख़ुदा मुर्दा ज़मीनों का जि़न्दा करने वाला है और हमने तमाम निशानियों को वाजे़ह (रौशन, साफ़-साफ़) करके बयान कर दिया है ताकि तुम अक़्ल से काम ले सको
57 18 बेशक खै़रात करने वाले मर्द और ख़ैरात करने वाली औरतें और जिन्होंने राहे ख़ुदा में एख़लास (ख़ुलूस, साफ़ नीयत) के साथ माल ख़र्च किया है उनका अज्र (सिला) दोगुना कर दिया जायेगा और उनके लिए बड़ा बाइज़्ज़त (इज़्ज़त वाला) अज्र (सिला) है
57 19 और जो लोग अल्लाह और रसूल पर ईमान लाये वही ख़ुदा के नज़दीक (क़रीब) सिद्दीक़ (सच्चे) और शहीद का दर्जा रखते हैं और उन्हीं के लिए उनका अज्र (सिला) और नूर है और जिन्होंने कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) इखि़्तयार कर लिया और हमारी आयात की तकज़ीब (झुठलाना) कर दी वही दरअसल (अस्ल में) असहाबे जहन्नम (जहन्नम के साथी) हैं
57 20 याद रखो कि जि़न्दगी दुनिया (दुनियावी जि़न्दगी) सिर्फ़ एक खेल, तमाशा, आराइश (ज़ाहिरी ज़ीनत, सजावट), बाहमी तफ़ाखि़र (एक दूसरे पर फ़ख़्र) और अमवाल (माल-दौलत) व औलाद की कसरत (ज़्यादती) का मुक़ाबला है और बस जैसे कोई बारिश हो जिसकी कू़व्वत (ताक़त) नामिया किसान को ख़ु़श कर दे और इसके बाद वह खेती ख़ु़श्क हो जाये फिर तुम उसे ज़र्द देखो और आखि़र में वह रेज़ा-रेज़ा (चूर-चूर) हो जाये और आखि़रत में शदीद (सख़्त) अज़ाब भी है और मग़फि़रत (गुनाहों की माफ़ी) और रेज़ाए इलाही भी है और जि़न्दगानी दुनिया (दुनियावी जि़न्दगी) तो बस एक धोके का सरमाया (साज़-सामान) है और कुछ नहीं है
57 21 तुम सब अपने परवरदिगार (पालने वाले) की मग़फि़रत (गुनाहों की माफ़ी) और उस जन्नत की तरफ़ सब्क़त (पहल) करो जिसकी वुसअत (चैड़ाई) ज़मीन व आसमान के बराबर है और जिसे उन लोगों के लिए मुहैय्या (फ़राहम, इन्तेज़ाम) किया गया है जो ख़ुदा और रसूल पर ईमान लाये हैं यही दरहक़ीक़त (अस्ल में) फ़ज़्ले ख़ुदा है जिसे चाहता है अता कर देता है और अल्लाह तो बहुत बड़े फ़ज़्ल (करम) का मालिक है
57 22 ज़मीन में कोई भी मुसीबत वारिद (नाजि़ल) होती है या तुम्हारे नफ़्स (जान) पर नाजि़ल होती है तो नफ़्स (जान) के पैदा होने के पहले से वह किताबे इलाही में मुक़द्दर (लिखी हुई) हो चुकी है और यह ख़ुदा के लिए बहुत आसान शै है
57 23 ये तक़दीर इसलिए है कि जो तुम्हारे हाथ से निकल जाये उसका अफ़सोस न करो और जो मिल जाये उस पर ग़्ाु़रूर (इतराया) न करो कि अल्लाह अकड़ने वाले मग़रूर (ग़्ाुरूर करने वाले) अफ़राद (लोगों) को पसन्द नहीं करता है
57 24 जो खु़द भी बुख़्ल (कंजूसी) करते हैं और दूसरों को भी बुख़्ल का हुक्म (कंजूसी) देते हैं और जो भी ख़ुदा से रूगर्दानी करेगा उसे मालूम रहे कि ख़ुदा सबसे बेनियाज़ (जिसे कोई/किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं) और क़ाबिले हम्द (तारीफ़) व सताइश है
57 25 बेशक हमने अपने रसूलों को वाजे़ह (रौशन, खुले हुए) दलाएल (मोजिज़ों) के साथ भेजा है और उनके साथ किताब और मीज़ान (तराज़्ाू) को नाजि़ल किया है ताकि लोग इन्साफ़ के साथ क़याम करें (क़ायम रहें) और हमने लोहे को भी नाजि़ल किया है जिसमें शदीद (सख़्त) जंग का सामान और बहुत से दूसरे मुनाफ़े (फ़ायदे) भी हैं और इसलिए कि ख़ुदा ये देखे कि कौन है जो बग़ैर देखे उसकी और उसके रसूल की मदद करता है और यक़ीनन अल्लाह बड़ा साहेबे कू़व्वत (ताक़त वाला) और साहेबे इज़्ज़त है
57 26 और हमने नूह अलैहिस्सलाम और इब्राहीम अलैहिस्सलाम को भेजा और उनकी औलाद में किताब और नबूवत क़रार दी तो उनमें से कुछ हिदायत याफ़्ता (हिदायत पाए हुए) थे और बहुत से फ़ासिक़ (झूठे, गुनहगार) और बदकार (बुरे काम करने वाले) थे
57 27 फिर हमने उन्हीं के नक़्शे क़दम पर दूसरे रसूल भेजे और उनके पीछे ईसा अलैहिस्सलाम बिन मरियम अलैहिस्सलाम को भेजा और उन्हें इन्जील अता कर दी और उनका इत्तेबा (पैरवी) करने वालों के दिलों में मेहरबानी और मोहब्बत क़रार दे दी और जिस रहबानियत (लज़्ज़ात से किनाराकशी) को उन लोगों ने अज़ ख़ुद (ख़ुद से) ईजाद कर लिया था और उससे रेज़ाए ख़ुदा (ख़ुदा की मजऱ्ी) के तलबगार (चाहने वाले) थे उसे हमने उनके ऊपर फ़जऱ् क़रार दिया था और उन्होंने ख़ु़द भी इसकी मुकम्मल पासदारी नहीं की तो हमने उनमें से वाके़अन ईमान लाने वालों को अज्र (सिला) अता कर दिया और इनमें से बहुत से तो बिल्कुल फ़ासिक़ (झूठे, गुनहगार) और बद किरदार थे
57 28 ईमान वालों अल्लाह से डरो और रसूल पर वाक़ई (सच्चा) ईमान ले आओ ताकि ख़ुदा तुम्हें अपनी रहमत के दोहरे हिस्से अता कर दे और तुम्हारे लिए ऐसा नूर क़रार दे दे जिसकी रौशनी में चल सको और तुम्हें बख़्श (माफ़ कर) दे और अल्लाह बहुत ज़्यादा बख़्शने (माफ़ करने) वाला और मेहरबान है
57 29 ताकि अहले किताब को मालूम हो जाये कि वह फ़ज़्ले ख़ुदा के बारे में कोई इखि़्तयार नहीं रखते हैं और फ़ज़्ल तमामतर ख़ुदा के हाथ में है वह जिसे चाहता है अता कर देता है और वह बहुत बड़े फ़ज़्ल का मालिक है

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