Thursday, 16 April 2015

Sura-e-Zumar 39th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरतुज़्ज़्ाुमर
39   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
39 1 ये साहेबे इज़्ज़त व हिकमत ख़ुदा की नाजि़ल की हुई किताब है
39 2 हमने आपकी तरफ़ इस किताब को हक़ के साथ नाजि़ल किया है लेहाज़ा (इसलिये) आप मुकम्मल एख़लास (ख़ुलूस) के साथ ख़ुदा की इबादत करें
39 3 आगाह हो जाओ कि ख़ालिस बन्दगी सिर्फ़ अल्लाह के लिए है और जिन लोगों ने उसके अलावा सरपरस्त बनाये हैं ये कह कर कि हम उनकी परस्तिश सिर्फ़ इसलिए करते हैं कि ये हमें अल्लाह से क़रीब कर देंगे। अल्लाह उनके दरम्यान (बीच में) तमाम एख़तेलाफ़ी (टकराव वाले) मसाएल में फ़ैसला कर देगा कि अल्लाह किसी भी झूठे और नाशुक्री करने वाले को हिदायत नहीं देता है
39 4 और वह अगर चाहता कि अपना फ़रज़न्द (बेटा) बनाये तो अपनी मख़लूक़ात (पैदा की हुई खि़लक़त या शै) में जिसे चाहता उसका इन्तिख़ाब (चुनाव) कर लेता वह पाक व बेनियाज़ (जिसे कोई/किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं) है और वही ख़ुदाए यकता (वाहिद) और क़हहार है
39 5 उसने आसमान व ज़मीन को हक़ के साथ पैदा किया है वह रात को दिन पर लपेट देता है और उसने आफ़ताब (सूरज) और महताब (चाँद) को ताबेअ (हुक्म का पाबन्द) बना दिया है सब एक मुक़र्ररा (तय किये हुए) मुद्दत तक चलते रहेंगे आगाह हो जाओ वह सब पर ग़ालिब और बहुत बख़्शने (माफ़ करने) वाला है
39 6 उसने तुम सबको एक ही नफ़्स (जान) से पैदा किया है और फिर उसी से उसका जोड़ा क़रार दिया है और तुम्हारे लिए आठ कि़स्म के चैपाये नाजि़ल किये हैं। वह तुमको तुम्हारी माँओं के शिकम (पेट) में तख़्लीक़ की मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) मंजि़लों से गुज़ारता है और ये सब तीन तारीकियों (अंधेरे पर्दों) में होता है। वही अल्लाह तुम्हारा परवरदिगार (पालने वाला) है उसी के क़ब्जे़ में मुल्क है उसके अलावा कोई ख़ुदा नहीं है फिर तुम किधर फिरे जा रहे हो
39 7 अगर तुम काफि़र (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) भी हो जाओगे तो ख़ुदा तुम से बेनियाज़ (जिसे कोई/किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं) है और वह अपने बन्दों के लिए कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) को पसन्द नहीं करता है और अगर तुम उसका शुक्रिया अदा करोगे तो वह इस बात को पसन्द करता है और कोई शख़्स दूसरे के गुनाहों का बोझ उठाने वाला नहीं है इसके बाद तुम सबकी बाज़गश्त (लौटना, वापसी) तुम्हारे परवरदिगार (पालने वाले) की तरफ़ है फिर वह तुम्हें बतायेगा कि तुम दुनिया में क्या कर रहे थे वह दिलों के छिपे हुए राज़ों से भी बाख़बर है
39 8 और जब इन्सान को कोई तकलीफ़ पहुँचती है तो पूरी तवज्जोह (ध्यान) के साथ परवरदिगार (पालने वाले) को आवाज़ देता है फिर जब वह उसे कोई नेअमत दे देता है तो जिस बात के लिए उसको पुकार रहा था उसे यकसर नज़र अंदाज़ कर देता है और ख़ुदा के लिए मिस्ल (उसके जैसा दूसरा) क़रार देता है ताकि उसके रास्ते से बहका सके तो आप कह दीजिए कि थोड़े दिनों अपने कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) में ऐश कर लो इसके बाद तो तुम यक़ीनन जहन्नुम वालों में हो
39 9 क्या वह शख़्स जो रात की घडि़यों में सज्दे और क़याम की हालत में ख़ुदा की इबादत करता है और आखि़रत का ख़ौफ़ (डर) रखता है और अपने परवरदिगार (पालने वाले) की रहमत का उम्मीदवार (उम्मीद करने वाला) है। कह दीजिए कि क्या वह लोग जो जानते हैं उनके बराबर हो जायेंगे जो नहीं जानते हैं। इस बात से नसीहत (अच्छी बातों का बयान) सिर्फ़ साहेबाने अक़्ल (अक़्ल वाले) हासिल करते हैं
39 10 कह दीजिए कि ऐ मेरे ईमानदार बन्दों! अपने परवरदिगार (पालने वाले) से डरो, जो लोग इस दारे दुनिया (दुनिया के घर) में नेकी करते हैं उनके लिए नेकी है और अल्लाह की ज़मीन बहुत वसीअ (फैली हुई है) है बस सब्र करने वाले ही वह हैं जिनको बेहिसाब अज्र दिया जाता है
39 11 कह दीजिए कि मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं एख़लासे (ख़ालिस) इबादत के साथ अल्लाह की इबादत करूँ
39 12 और मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं सबसे पहला इताअत (कहने पर अमल) गुज़ार (करने वाला) बन जाऊँ
39 13 कह दीजिए कि मैं गुनाह करूँ तो मुझे बड़े सख़्त दिन के अज़ाब का ख़ौफ़ (डर) है
39 14 कह दीजिए कि मैं सिर्फ़ अल्लाह की इबादत करता हूँ और अपनी इबादत में मुखि़्लस (ख़ालिस) हूँ
39 15 अब तुम जिसकी चाहो इबादत करो कह दीजिए कि हक़ीक़ी (सच्चे) ख़सारे (पूरा घाटा, पूरा नुक़सान) वाले वही हैं जिन्होंने अपने नफ़्स (जान) और अपने अहल (लोगों) को क़यामत के दिन घाटे में रखा। आगाह हो जाओ यही खुला हुआ ख़सारा (घाटा, नुक़सान) है
39 16 उनके लिए ऊपर से जहन्नुम की आग के ओढ़ने होंगे और नीचे से बिछोने। यही वह बात है जिससे ख़ुदा अपने बन्दों को डराता है तो ऐ मेरे बन्दों मुझ से डरो
39 17 और जिन लोगों ने ज़ालिमों से अलैहदगी (ख़ुद को अलग रखना) इखि़्तयार की कि उनकी इबादत करें और ख़ुदा की तरफ़ मुतावज्जेह हो गये उनके लिए हमारी तरफ़ से बशारत (ख़ुशख़बरी) है लेहाज़ा (इसलिये) पैग़म्बर आप मेरे बन्दों को बशारत (ख़ुशख़बरी) दे दीजिए
39 18 जो बातों को सुनते हैं और जो बात अच्छी होती है उसका इत्तेबा (पैरवी) करते हैं यही वह लोग हैं जिन्हें ख़ुदा ने हिदायत दी है और यही वह लोग हैं जो साहेबाने अक़्ल (अक़्ल वाले) हैं
39 19 क्या जिस शख़्स पर कल्माए अज़ाब साबित हो जाये और क्या जो शख़्स जहन्नुम में चला ही जाये आप उसे निकाल सकते हैं
39 20 अलबत्ता जिन लोगों ने अपने परवरदिगार (पालने वाले) का ख़ौफ़ (डर) पैदा किया उनके लिए जन्नत के ग़फऱ्े (बाला ख़ाने) हैं और उनके ग़फऱ्ों (बाला ख़ाने) पर मज़ीद ग़फऱ्े (बाला ख़ाने) हैं जिनके नीचे नहरें जारी होंगी ये ख़ुदा का वादा है और ख़ुदा अपने वादे के खि़लाफ़ नहीं करता है
39 21 क्या तुमने नहीं देखा कि ख़ुदा ने आसमान से पानी नाजि़ल किया है फिर उसे मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) चश्मों (पानी निकलने की जगह) में जारी कर दिया है फिर इसके ज़रिये मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) रंग की ज़राअत (खेती) पैदा करता है फिर वह खेती सूख जाती है तो उसे ज़र्द रंग में देखते हो फिर उसे भूसा बना देता है इन तमाम बातों में साहेबाने अक़्ल के लिए याद दहानी और नसीहत (अच्छी बातों का बयान) का सामान पाया जाता है
39 22 क्या वह शख़्स जिसके दिल को ख़ुदा ने इस्लाम के लिए कुशादा (चैड़ा) कर दिया है तो वह अपने परवरदिगार (पालने वाले) की तरफ़ से नूरानियत का हामिल (पाने वाला) है गुमराहों जैसा हो सकता है। अफ़सोस उन लोगों के हाल पर जिनके दिल जि़क्रे ख़ुदा के लिए सख़्त हो गये हैं तो वह खुली हुई गुमराही में मुब्तिला हैं
39 23 अल्लाह ने बेहतरीन (सबसे अच्छा) कलाम इस किताब की शक्ल में नाजि़ल किया है जिसकी आयतें आपस में मिलती-जुलती हैं और बार-बार दोहरायी गई हैं कि इनसे ख़ौफ़े ख़ु़दा (ख़ुदा का डर) रखने वालों के रोंगटे ख़डे़ हो जाते हैं इसके बाद उनके जिस्म और दिल यादे ख़ुदा के लिए नरम हो जाते हैं यही अल्लाह की वाक़ई (सच्ची) हिदायत है वह जिसको चाहता है अता फ़रमा देता है और जिसको वह गुमराही में छोड़ दे उसका कोई हिदायत करने वाला नहीं है
39 24 क्या वह शख़्स जो रोज़े क़यामत बदतरीन (सबसे बुरे) अज़ाब का बचाव अपने चेहरे से करने वाला है निजात (छुटकारा, रिहाई) पाने वाले के बराबर हो सकता है और ज़ालेमीन (ज़्ाुल्म करने वालों) से तो यही कहा जायेगा कि अपने करतूत (किये हुए कामों) का मज़ा चखो
39 25 और इन कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) से पहले वालों ने भी रसूलों अलैहिस्सलाम को झुठलाया तो उन पर इस तरह से अज़ाब वारिद हो गया कि उन्हें इसका शऊर (समझ) भी नहीं था
39 26 फिर ख़ुदा उन्हें जि़न्दगी दुनिया में जि़ल्लत का मज़ा चखाया और आखि़रत का अज़ाब तो बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) बहुत बड़ा है अगर उन्हें मालूम हो सके
39 27 और हमने लोगों के लिए इस कु़रआन में हर तरह की मिसाल बयान कर दी है कि शायद ये इबरत (ख़ौफ़ के साथ सबक़) और नसीहत (अच्छी बातों का बयान)  हासिल कर सकें
39 28 ये अरबी ज़बान का कु़रआन है जिसमें किसी तरह की कजी नहीं है शायद ये लोग इसी तरह तक़्वा (ख़ुदा का ख़ौफ़) इखि़्तयार कर लें
39 29 अल्लाह ने उस शख़्स की मिसाल बयान की है जिसमें बहुत से झगड़ा करने वाले शोरका (जिनको वह आक़ा समझते थे) हों और वह शख़्स जो एक ही शख़्स के सुपुर्द हो जाये क्या दोनों हालात के एतबार से एक जैसे हो सकते हैं सारी तारीफ़ अल्लाह के लिए है मगर उनकी अकसरियत (ज़्यादातर लोग) समझती ही नहीं है
39 30 पैग़म्बर आपको भी मौत आने वाली है और ये सब मर जाने वाले हैं
39 31 इसके बाद तुम सब रोज़े क़यामत परवरदिगार (पालने वाले) की बारगाह में अपने झगड़े पेश करोगे
39 32 तो उससे बड़ा ज़ालिम कौन है जो ख़ुदा पर बोहतान (इल्ज़ाम, ऐब) बाँधे और सदाक़त (सच्चाई) के आ जाने के बाद उसकी उसकी तकज़ीब (झुठलाना) करे तो क्या जहन्नम में काफ़ेरीन (कुफ्ऱ करने वालों) का ठिकाना नहीं है
39 33 और जो शख़्स सदाक़त (सच्चाई) का पैग़ाम लेकर आया और जिसने उसकी तस्दीक़ (सच्चाई की गवाही देना) की यही लोग दर हक़ीक़त साहेबाने तक़्वा (ख़ुदा से डरने वाले लोगों) और परहेज़गार (बुराईयों से दूरी अपनाने वाले) हैं
39 34 इनके लिए परवरदिगार (पालने वाले) के यहां वह सब कुछ है जो वह चाहते हैं और यही नेक (अच्छा) अमल वालों की जज़ा (सिला) है
39 35 ताकि ख़ुदा उन बुराईयों को दूर कर दे जो उनसे सरज़द हुई (हो गई) हैं और उनका अज्र उनके आमाल (कामों) से बेहतर (ज़्यादा अच्छा) तौर पर अता करे
39 36 क्या ख़ुदा अपने बन्दों के लिए काफ़ी नहीं है और ये लोग आपको उसके अलावा दूसरों से डराते हैं हालांकि जिसको ख़ुदा गुमराही में छोड़ दे उसका कोई हिदायत करने वाला नहीं है
39 37 और जिसको वह हिदायत दे दे उसका कोई गुमराह करने वाला नहीं है क्या ख़ुदा सबसे ज़्यादा ज़बरदस्त इन्तिक़ाम (बदला) लेने वाला नहीं है
39 38 और अगर आप उनसे सवाल करेंगे कि ज़मीन व आसमान को किसने पैदा किया है तो कहेंगे कि अल्लाह, तो कह दीजिए कि क्या तुमने उन सबका हाल देखा है जिनकी इबादत करते हो कि अगर ख़ुदा नुक़सान पहुँचाने का इरादा कर ले तो क्या ये इस नुक़सान को रोक सकते हैं या अगर वह रहमत का इरादा कर ले तो क्या ये इस रहमत को मना कर सकते हैं। आप कह दीजिए कि मेरे लिए मेरा ख़ुदा काफ़ी है और भरोसा करने वाले उसी पर भरोसा करते हैं
39 39 और कह दीजिए कि क़ौम वालों तुम अपनी जगह पर अमल करो और मैं अपना अमल कर रहा हूँ इसके बाद अनक़रीब (बहुत जल्द) तुम्हंे सबका हाल मालूम हो जायेगा
39 40 कि किसके पास रूसवा (शर्मिन्दा) करने वाला अज़ाब आता है और किस पर हमेशा रहने वाला अज़ाब नाजि़ल होता है
39 41 हमने इस किताब को आपके पास लोगों की हिदायत के लिए हक़ के साथ नाजि़ल किया है अब जो हिदायत हासिल कर लेगा वह अपने फ़ायदे के लिए करेगा और जो गुमराह हो जायेगा वह भी अपना ही नुक़सान करेगा और आप उनके जि़म्मेदार नहीं हैं
39 42 अल्लाह ही है जो रूहों को मौत के वक़्त अपनी तरफ़ बुला लेता है और जो नहीं मरते हैं उनकी रूहों को भी नींद के वक़्त तलब (माँग) कर लेता है और फिर जिसकी मौत का फ़ैसला कर लेता है उसकी रूह को रोक लेता है और दूसरी रूहों को एक मुक़र्ररा (तय की हुई) मुद्दत के लिए आज़ाद कर देता है। इस बात में साहेबाने फि़क्र व नज़र (देखने-समझने वालों) के लिए बहुत सी निशानियां पायी जाती हैं
39 43 क्या इन लोगों ने ख़ुदा को छोड़कर कर सिफ़ारिश करने वाले इखि़्तयार कर लिए हैं तो आप कह दीजिए कि ऐसा क्यों है चाहे यह लोग कोई इखि़्तयार न रखते हों और किसी तरह की भी अक़्ल न रखते हों
39 44 कह दीजिए कि शिफ़ाअत का तमामतर (सारा के सारा) इखि़्तयार अल्लाह के हाथों में है उसी के पास ज़मीन व आसमान का सारा इक़तेदार (हाकेमीयत) है और इसके बाद तुम भी उसी की बारगाह में पलटाये जाओगे
39 45 और जब इनके सामने ख़ुदाए यकता (वाहिद) का जि़क्र आता है तो जिनका ईमान आखि़रत पर नहीं है उनके दिल मुतनफि़्फ़र हो जाते हैं और जब उसके अलावा किसी और जि़क्र आता है तो ख़ु़श हो जाते हैं
39 46 अब आप कहिये कि ऐ परवरदिगार (पालने वाले) ऐ ज़मीन व आसमान के ख़ल्क़ (पैदा) करने वाले और हाजि़र व ग़ायब (छुपे हुए) के जानने वाले तू ही अपने बन्दों के दरम्यान (बीच में) इन मसायल का फ़ैसला कर सकता है जिनमें ये आपस में एख़तेलाफ़ (राय में टकराव) कर रहे हैं
39 47 और अगर ज़्ाु़ल्म करने वालों को ज़मीन की तमाम कायनात (दुनिया) मिल जाये और इतना ही और भी मिल जाये तो भी ये रोज़े क़यामत के बदतरीन (सबसे बुरे) अज़ाब के बदले में सब दे देंगे लेकिन उनके लिए ख़ुदा की तरफ़ से वह सब बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) ज़ाहिर होगा जिसका ये वहम व गुमान भी नहीं रखते थे
39 48 और इनकी सारी बदकिरदारियां (बुरे काम) इन पर वाजे़ह (रौशन, खुली हुई) हो जायंेगी और उन्हें वही बात अपने घेरे में ले लेगी जिसका ये मज़ाक़ उड़ाया करते थे
39 49 फिर जब इन्सान को कोई तकलीफ़ पहुँचती है तो हमें पुकारता है और इसके बाद जब हम कोई नेअमत दे देते हैं तो कहता है कि ये तो मुझे मेरे इल्म के ज़ोर पर दी गई है हालांकि ये एक आज़माइश है और अकसर लोग इसका इल्म नहीं रखते हैं
39 50 इनसे पहले वालों ने भी यही कहा था तो वह कुछ उनके काम नहीं आया जिसे वह हासिल कर रहे थे
39 51 बल्कि उनके आमाल (कामों) के बुरे असरात (नतीजे) उन तक पहुँच गये और उन कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) में से भी जो लोग ज़्ाु़ल्म करने वाले हैं उन तक उनके आमाल (कामों) के बुरे असरात (नतीजे) पहुँचेंगे और वह ख़ुदा को आजिज़ (परेशान) नहीं कर सकते हैं
39 52 क्या उन्हें ये नहीं मालूम है कि अल्लाह ही जिसके रिज़्क़ को चाहता है वसीअ (फैला हुआ) कर देता है और जिसके रिज़्क़ को चाहता है तंग कर देता है। इन मामलात में साहेबाने ईमान (ईमान वालों) के लिए बहुत सी निशानियां पायी जाती हैं
39 53 पैग़म्बर आप पैग़ाम पहुँचा दीजिए कि ऐ मेरे बन्दों जिन्होंने अपने नफ़्स (जान) पर ज़्यादती की है रहमते ख़ुदा से मायूस न होना अल्लाह तमाम गुनाहों का माॅफ़ करने वाला है और वह यक़ीनन बहुत ज़्यादा बख़्शने (माफ़ करने) वाला और मेहरबान है
39 54 और तुम सब अपने परवरदिगार (पालने वाले) की तरफ़ रूजुअ (ध्यान) करो और उसके लिए सरापा (पूरी तरह से) तसलीम हो जाओ क़ब्ल इसके कि तुम तक अज़ाब आ जाये तो फिर तुम्हारी मदद नहीं की जा सकती है
39 55 और तुम्हारे रब की तरफ़ से जो बेहतरीन (सबसे अच्छा) क़ानून नाजि़ल किया गया है उसका इत्तेबा (पैरवी) करो क़ब्ल इसके (इससे पहले) कि तुम तक अचानक अज़ाब आ जाये और तुम्हें उसका शऊर (समझ) भी न हो
39 56 फिर तुम में से कोई नफ़्स (जान) ये कहने लगे कि हाये अफ़सोस कि मैंने ख़ुदा के हक़ में बड़ी कोताही (कमी) की है और मैं मज़ाक उड़ाने वालों में से था
39 57 या ये कहने लगे कि अगर ख़ुदा मुझे हिदायत दे देता तो मैं भी साहेबाने तक़्वा (ख़ुदा से डरने वाले लोगों) में से हो जाता
39 58 या अज़ाब के देखने के बाद ये कहने लगे कि अगर मुझे दोबारा वापस जाने का मौक़ा मिल जाये तो मैं नेक (अच्छा) किरदार लोगांे में से हो जाऊँगा
39 59 हाँ हाँ तेरे पास मेरी आयतें आयी थीं तो तूने उन्हें झुठला दिया और तकब्बुर (ग़्ाुरूर) से काम लिया और काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) में से हो गया
39 60 और तुम रोज़े क़यामत देखोगे कि जिन लोगों ने अल्लाह पर बोहतान (इल्ज़ाम, ऐब) बाँधा है उनके चेहरे स्याह (काले) हो गये हैं और क्या जहन्नुम में तकब्बुर (ग़्ाुरूर) करने वालों का ठिकाना नहीं है
39 61 और ख़ुदा साहेबाने तक़्वा (ख़ुदा से डरने वाले लोगों) को उनकी कामयाबी के सबब (वजह से) नजात (छुटकारा, रिहाई) दे देगा कि कोई बुराई उन्हें छू भी न सकेगी और न उन्हें कोई रंज लाहक़ होगा
39 62 अल्लाह ही हर शै का ख़ालिक़ (पैदा करने वाला) और वही हर चीज़ की निगरानी (देखभाल, हिफ़ाज़त) करने वाला है
39 63 ज़मीन व आसमान की तमाम कुंजियां उसी के पास है और जिन लोगों ने उसकी आयतों का इन्कार किया वही ख़सारे (घाटे, नुक़सान) में रहने वाले हैं
39 64 आप कह दीजिए कि ऐ जाहिलों क्या तुम मुझे इस बात का हुक्म देते हो कि मैं ग़ैरे ख़ुदा (ख़ुदा के अलावा दूसरों) की इबादत करने लगूँ
39 65 और यक़ीनन तुम्हारी तरफ़ और तुमसे पहले वालों की तरफ़ यही वही (इलाही पैग़ाम) की गई है कि अगर तुम शिर्क (ख़ुदा के साथ दूसरों को शरीक करना) इखि़्तयार करोगे तो तुम्हारे तमाम आमाल (कामों) बर्बाद कर दिये जायेंगे और तुम्हारा शुमार (गिनती) घाटे वालों में हो जायेगा
39 66 तुम सिर्फ़ अल्लाह की इबादत करो और उसके शुक्रगुज़ार (शुक्र अदा करने वाले) बन्दों में हो जाओ
39 67 और इन लोगों ने वाके़अन अल्लाह की क़द्र नहीं की है जबकि रोज़े क़यामत तमाम ज़मीन उसी की मुठ्ठी में हो गई और सारे आसमान उसी के हाथ में लिपटे हुए होंगे वह पाक बेनियाज़ (जिसे कोई/किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं) है और जिन चीज़ों को ये उसका शरीक बनाते हैं उनसे बलन्द व बालातर (बड़ाई वाला) है
39 68 और जब सूर फूँका जायेगा तो ज़मीन व आसमान की तमाम मख़्लूक़ात (पैदा की हुई चीज़ें/खि़ल्क़त) बेहोश होकर गिर पडे़ंगी अलावा उनके जिन्हें ख़ुदा बचाना चाहे। इसके बाद फिर दोबारा फूँका जायेगा तो सब खड़े होकर देखने लगेंगे
39 69 और ज़मीन अपने रब के नूर से जगमगा उठेगी और आमाल (कामों) की किताब रख दी जायेगी और अम्बिया अलैहिस्सलाम और शोहदा को लाया जायेगा और उनके दरम्यान (बीच में) हक़ व इन्साफ़ के साथ फ़ैसला किया जायेगा और किसी पर ज़्ाु़ल्म नहीं किया जायेगा
39 70 और फिर हर नफ़्स (जान) को उसके आमाल (कामों) का पूरा-पूरा बदला दिया जायेगा और वह सबके आमाल (कामों) से पूरे तौर से बाख़बर है
39 71 और कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) इखि़्तयार करने वालों को गिरोह दर गिरोह जहन्नुम की तरफ़ हंकाया जायेगा यहां तक कि उसके सामने पहुँच जायेंगे तो उसके दरवाजे़ खोल दिये जायेंगे और उसके ख़ाजि़न (रखवाले, दरोग़ा) सवाल करेंगे क्या तुम्हारे पास रसूल नहीं आये थे जो आयाते रब (ख़ुदा की आयतों) की तिलावत करते और तुम्हें आज के दिन की मुलाक़ात से डराते तो सब कहेंगे कि बेशक रसूल आये थे लेकिन काफ़ेरीन के हक़ में कल्माए अज़ाब बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) साबित हो चुका है
39 72 तो कहा जायेगा कि अब जहन्नम के दरवाज़ों से दाखि़ल हो जाओ और इसी में हमेशा-हमेशा रहो कि तकब्बुर (ग़्ाुरूर) करने वालों का बहुत बुरा ठिकाना होता है
39 73 और जिन लोगों ने अपने रब का तक़्वा (ख़ुदा का ख़ौफ़) इखि़्तयार किया उन्हें जन्नत की तरफ़ गिरोह दर गिरोह ले जाया जायेगा यहां तक कि जब उसके क़रीब पहुँचेंगे और इसके दरवाजे़ खोल दिये जायेंगे तो उसके ख़ज़ानेदार कहेंगे कि तुम पर हमारा सलाम हो तुम पाक व पाकीज़ा (साफ़-सुथरे) हो लेहाज़ा (इसलिये) हमेशा के लिए जन्नत में दाखि़ल हो जाओ
39 74 और वह कहेंगे कि शुक्र ख़ुदा है कि उसने हमसे किये हुए अपने वादे को सच कर दिखाया है और हमें अपनी ज़मीन का वारिस बना दिया है कि जन्नत में जहाँ चाहें आराम करें और बेशक ये अमल करने वालों का बेहतरीन (सबसे अच्छा) अज्र (सिला) है
39 75 और तुम देखोगे कि मलायका (फ़रिश्ते) अर्शे इलाही के गिर्द घेरा डाले हुए अपने रब की हम्द (तारीफ़) की तसबीह  कर रहे हैं और लोगों के दरम्यान (बीच में) हक़ व इन्साफ़ के साथ फ़ैसला कर दिया जायेगा और हर तरफ़ एक ही आवाज़ होगी कि अलहम्दुलिल्लाहे (सारी तारीफ़े अल्लाह के लिये हैं) रब्बुलआलमीन (तमाम जहानों का मालिक)

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