Saturday, 18 April 2015

Sura-e-Qayamat 75th surah of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-क़यामत
75   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
75 1 मैं रोजे़ क़यामत की क़सम खाता हूँ
75 2 और बुराईयों पर मलामत करने वाले नफ़्स (जान) की क़सम खाता हूँ
75 3 क्या ये इन्सान ये ख़्याल करता है कि हम उसकी हड्डियों को जमा न कर सकेंगे
75 4 यक़ीनन हम इस बात पर क़ादिर (क़ुदरत रखने वाले) हैं कि उसकी उंगलियों के पोर तक दुरूस्त कर सकें
75 5 बल्कि इन्सान ये चाहता है कि अपने सामने बुराई करता चला जाये
75 6 वह ये पूछता है कि ये क़यामत कब आने वाली है
75 7 तो जब आँखें चकाचैंद हो जायेंगी
75 8 और चाँद को गहन (ग्रहण) लग जायेगा
75 9 और ये चाँद-सूरज इकठ्ठा कर दिये जायेंगे
75 10 उस दिन इन्सान कहेगा कि अब भागने का रास्ता किधर है
75 11 हर्गिज़ नहीं अब कोई ठिकाना नहीं है
75 12 अब सबका मर्कज़ तुम्हारे परवरदिगार (पालने वाले) की तरफ़ है
75 13 उस दिन इन्सान को बताया जायेगा कि उसने पहले और बाद क्या-क्या आमाल (काम) किये हैं
75 14 बल्कि इन्सान खु़द भी अपने नफ़्स (जान) के हालात से खू़ब बाख़बर है
75 15 चाहे वह कितने ही उज़्र (बहाने) क्यों न पेश करे
75 16 देखिये आप कु़रआन की तिलावत मंे उजलत (जल्दबाज़ी) के साथ ज़बान को हरकत न दें
75 17 ये हमारी जि़म्मेदारी है कि हम इसे जमा करें और पढ़वायें
75 18 फिर जब हम पढ़वा दें तो आप इसकी तिलावत को दोहरायें
75 19 फिर इसके बाद इसकी वज़ाहत करना (तफ़सील बताना) भी हमारी ही जि़म्मेदारी है
75 20 नहीं बल्कि तुम लोग दुनिया को दोस्त रखते हो
75 21 और आखि़रत को नज़रअंदाज़ किये हुए हो
75 22 उस दिन बाॅज़ चेहरे शादाब (चमकते, रौनक़ वाले) होंगे
75 23 अपने परवरदिगार (पालने वाले) की नेअमतों पर नज़र रखे हुए होंगे
75 24 और बाॅज़ चेहरे अफ़सरदा (बिगड़े हुए) होंगे
75 25 जिन्हें यह ख़्याल होगा कि कब कमर तोड़ मुसीबत वारिद हो (पहुंच) जाये
75 26 होशियार, जब जान गर्दन तक पहुँच जायेगी
75 27 और कहा जायेगा कि अब कौन झाड़ फँूक करने वाला है
75 28 और मरने वाले को ख़्याल होगा कि अब सबसे जुदाई है
75 29 और पिण्डली-पिण्डली से लिपट जायेगी (पैरों में हरकत न रहेगी)
75 30 आज सबको परवरदिगार (पालने वाले) की तरफ़ ले जाया जायेगा
75 31 उसने न कलामे ख़ुदा की तस्दीक़ (सच्चाई की गवाही) की और न नमाज़ पढ़ी
75 32 बल्कि तकज़ीब (झुठलाना) की और मुँह फेर लिया
75 33 फिर अपने अहल (अपने वालों, अपने घर वालों) की तरफ़ अकड़ता हुआ गया
75 34 अफ़सोस है तेरे हाल पर बहुत अफ़सोस है
75 35 हैफ़ (अफ़सोस) है और सद हैफ़ (अफ़सोस) है
75 36 क्या इन्सान का ख़्याल ये है कि उसे इसी तरह आज़ाद छोड़ दिया जायेगा
75 37 क्या वह उस मनी का क़तरा नहीं था जिसे रहम में डाला जाता है
75 38 फिर अल्क़ा बना फिर उसे ख़ल्क़ करके बराबर किया
75 39 फिर उससे औरत और मर्द का जोड़ा तैयार किया
75 40 क्या वह ख़ुदा इस बात पर क़ादिर (क़ुदरत रखने वाला) नहीं है कि मुर्दों को दोबारा जि़न्दा कर सके

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