सूरा-ए-नूर | ||
24 | अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू। | |
24 | 1 | ये एक सूरा है जिसे हमने नाजि़ल किया है और फ़जऱ् किया है और इसमें खुली हुई निशानियाँ नाजि़ल की हैं कि शायद तुम लोग नसीहत (अच्छी बातें जो बताई जाएं) हासिल कर सको |
24 | 2 | ज़ेनाकार (ज़्ोना करने वाली) औरत और जे़नाकार (ज़्ोना करने वाले) मर्द दोनों को सौ-सौ कोड़े लगाओ और ख़बरदार दीने ख़ुदा के मामले में किसी मुरव्वत का शिकार न हो जाना अगर तुम्हारा ईमान अल्लाह और रोजे़ आखि़रत (क़यामत के दिन) पर है और इस सज़ा के वक़्त मोमिनीन की एक जमाअत (गिरोह) को हाजि़र रहना चाहिए |
24 | 3 | ज़ानी (ज़्ोना करने वाला) मर्द ज़ानिया (ज़्ोना करने वाली औरत) या मुशरिका (ख़ुदा के साथ दूसरों को शरीक करने वाले) औरत ही से निकाह करेगा और ज़ानिया औरत (ज़्ोना करने वाली औरत) ज़ानी (ज़्ोना करने वाले) मर्द या मुशरिक (ख़ुदा के साथ दूसरों को शरीक करने वाले) मर्द ही से निकाह करेगी कि ये साहेबाने ईमान पर हराम है |
24 | 4 | और जो लोग पाक दामन औरतों पर जे़ना की तोहमत (इल्ज़ाम) लगाते हैं और चार गवाह फ़राहिम (का इन्तेज़ाम, पेश) नहीं करते हैं उन्हें अस्सी कोड़े लगाओ और फिर कभी उनकी गवाही कु़बूल न करना कि ये लोग सरासर फ़ासिक़ (झूठा, गुनहगार) हैं |
24 | 5 | अलावा उन अफ़राद (लोगों) के जो इसके बाद तौबा कर लें और अपने नफ़्स (जान) की इसलाह (सुधार) कर लें कि अल्लाह बहुत ज़्यादा बख़्शने (माफ़ करने) वाला और मेहरबान है |
24 | 6 | और जो लोग अपनी बीवियों पर तोहमत (इल्ज़ाम) लगाते हैं और इनके पास अपने अलावा कोई गवाह नहीं होता है तो उनकी अपनी गवाही चार गवाहों के बराबर होगी अगर वह चार मर्तबा क़सम खाकर कहे कि वह सच्चे हैं |
24 | 7 | और पाँचवीं मर्तबा ये कहेंगे कि अगर वह झूठे हैं तो उन पर ख़ुदा की लाॅनत है |
24 | 8 | फिर औरत से भी हद बर तरफ़ हो सकती है अगर वह चार मर्तबा क़सम खाकर कहे कि ये मर्द झूठों में से है |
24 | 9 | और पाँचवीं मर्तबा कहे कि अगर वह सादेक़ीन (सच्चों) में से है तो मुझ पर ख़ुदा का ग़ज़ब है |
24 | 10 | और अगर तुम पर ख़ुदा का फ़ज़्ल (मेहरबानी) और उसकी रहमत न होती और वह तौबा कु़बूल करने वाला साहेबे हिकमत (अक़्ल, दानाई वाला) न होता तो इस तोहमत (इल्ज़ाम) का अंजाम बहुत बुरा होता |
24 | 11 | बेशक जिन लोगों ने जे़ना की तोहमत (इल्ज़ाम) लगाई वह तुम्हीं में से एक गिरोह था तुम इसे अपने हक़ में शर (बुराई) न समझो ये तुम्हारे हक़ में ख़ैर (नेकी) है और हर शख़्स के लिए उतना ही गुनाह है जो उसने ख़ु़द कमाया है और इनमें से जिसने बड़ा हिस्सा लिया है उसके लिए बड़ा अज़ाब है |
24 | 12 | आखि़र ऐसा क्यों न हुआ कि जब तुम लोगों ने इस तोहमत (इल्ज़ाम) को सुना था तो मोमिनीन व मोमिनात अपने बारे में ख़ैर (नेकी) का गुमान करते और कहते कि ये तो खुला हुआ बोहतान (इल्ज़ाम, ऐब) है |
24 | 13 | फिर ऐसा क्यों न हुआ कि ये चार गवाह भी ले आते और जब गवाह नहीं ले आये तो ये अल्लाह के नज़दीक (क़रीब) बिल्कुल झूठे हैं |
24 | 14 | और अगर ख़ुदा का फ़ज़्ल दुनिया व आखि़रत में और उसकी रहमत न होती तो जो चर्चा तुमने किया था उसमें तुम्हें बड़ा अज़ाब गिरफ़्त (पकड़) में ले लेता |
24 | 15 | जब तुम अपनी ज़बान से चर्चा कर रहे थे और अपने मुँह से वह बात निकाल रहे थे जिसका तुम्हें इल्म भी नहीं था और तुम इसे बहुत मामूली बात समझ रहे थे हालांकि अल्लाह के नज़दीक (क़रीब) वह बहुत बड़ी बात थी |
24 | 16 | और क्यों न ऐसा हुआ कि जब तुम लोगों ने इस बात को सुना था तो कहते कि हमें ऐसी बात कहने का कोई हक़ नहीं है ख़ुदाया तू पाक व बेनियाज़ (जिसे कोई/किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं) है और ये बहुत बड़ा बोहतान (इल्ज़ाम, ऐब) है |
24 | 17 | अल्लाह तुमको नसीहत (अच्छी बातें बयान) करता है कि अगर तुम साहेबे ईमान हो तो अब ऐसी हर्कत दोबारा हर्गिज़ (बिल्कुल) न करना |
24 | 18 | और अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी निशानियों को वाजे़ह (रौशन, खुली हुई) करके बयान करता है और वह साहेबे इल्म भी है और साहेबे हिकमत (अक़्ल, दानाई वाला) भी है |
24 | 19 | जो लोग चाहते हैं कि साहेबाने ईमान में बदकारी (बुरा काम करने) का चर्चा फैल जाये उनके लिए बड़ा दर्दनाक (दर्द देने वाला) अज़ाब है दुनिया में भी और आखि़रत में भी और अल्लाह सब कुछ जानता है सिर्फ़ तुम नहीं जानते हो |
24 | 20 | और अगर अल्लाह का फ़ज़्ल (मेहरबानी) और उसकी रहमत तुम्हारे शामिले हाल न होती और वह शफ़ीक़ (हमदर्दी, मोहब्बत नर्मी वाला) और मेहरबान न होता |
24 | 21 | ईमान वालों शैतान के नक़्शे क़दम पर न चलना कि जो शैतान के क़दम ब क़दम चलेगा उसे शैतान हर तरह की बुराई का हुक्म देगा और अगर तुम पर अल्लाह का फ़ज़्ल और उसकी रहमत न होती तो तुम में कोई भी पाकबाज़ न होता लेकिन अल्लाह जिसे चाहता है पाक व पाकीज़ा (साफ़-सुथरा) बना देता है और वह हर एक की सुनने वाला और हर एक के हाले दिल का जानने वाला है |
24 | 22 | और ख़बरदार तुममें से कोई शख़्स भी जिसे ख़ुदा ने फ़ज़्ल और वसअत (सकत) अता की है ये क़सम न खा ले कि क़राबतदारों (क़रीबी रिश्तेदारों) और मिस्कीनों (कमज़ोरों) और राहे ख़ुदा में हिजरत करने वालों के साथ कोई सुलूक न करेगा। हर एक को माफ़ करना चाहिए और दरगुज़र करना चाहिए क्या तुम ये नहीं चाहते हो कि ख़ुदा तुम्हारे गुनाहों को बख़्श (माफ़ कर) दे और अल्लाह बेशक बड़ा बख़्शने (माफ़ करने) वाला और मेहरबान है |
24 | 23 | यक़ीनन जो लोग पाकबाज़ और बेख़बर मोमिन औरतों पर तोहमत (इल्ज़ाम) लगाते हैं उन पर दुनिया और आखि़रत दोनों जगह लाॅनत की गई है और उनके लिए अज़ाबे अज़ीम (बहुत बड़ा अज़ाब) है |
24 | 24 | क़यामत के दिन इनके खि़लाफ़ इनकी जु़बानें और इनके हाथ-पाँव सब गवाही देंगे कि ये क्या कर रहे थे |
24 | 25 | उस दिन ख़ुदा सबको पूरा-पूरा बदला देगा और लोगों को मालूम हो जायेगा कि ख़ुदा यक़ीनन बरहक़ (हक़ पर) और हक़ का ज़ाहिर करने वाला है |
24 | 26 | ख़बीस (नजिस, गन्दी) चीज़ें ख़बीस (नजिस, दिलो दिमाग़ से गन्दे) लोगों के लिए हैं और ख़बीस (नजिस, दिलो दिमाग़ से गन्दे) अफ़राद (लोग) ख़बीस (नजिस, गन्दी) बातों के लिए हैं और पाकीज़ा (साफ़-सुथरी) बातें पाकीज़ा (साफ़-सुथरे) लोगों के लिए हैं और पाकीज़ा (साफ़-सुथरे) अफ़राद (लोग) पाकीज़ा (साफ़-सुथरी) बातों के लिए हैं ये पाकीज़ा (साफ़-सुथरे) लोग ख़बीस (नजिस, दिलो दिमाग़ से गन्दे) लोगों के इत्हामात से पाक व पाकीज़ा (साफ़-सुथरे) हैं और इनके लिए मग़फि़रत (गुनाहों की माफ़ी) और बा इज़्ज़त रिज़्क़ है |
24 | 27 | ईमान वालों ख़बरदार अपने घरों के अलावा किसी के घर में दाखि़ल न होना जब तक कि साहेबे ख़ाना से इजाज़त न ले लो और उन्हें सलाम न कर लो यही तुम्हारे हक़ में बेहतर (ज़्यादा अच्छा) है कि शायद तुम इससे नसीहत (अच्छी बातें जो बताई जाएं) हासिल कर सको |
24 | 28 | फिर अगर घर में कोई न मिले तो उस वक़्त तक दाखि़ल न होना जब तक इजाज़त न मिल जाये और अगर तुमसे कहा जाये कि वापस चले जाओ तो वापस चले जाना कि यही तुम्हारे लिए ज़्यादा पाकीज़ा (साफ़-सुथरा) अम्र है और अल्लाह तुम्हारे आमाल (कामों) से खू़ब बाख़बर है |
24 | 29 | तुम्हारे लिए कोई हर्ज नहीं है कि तुम ऐसे मकानात में जो ग़ैर आबाद हैं और जिनमें तुम्हारा कोई सामान है दाखि़ल हो जाओ और अल्लाह उसको भी जानता है जिसका तुम इज़्हार (ज़ाहिर) करते हो और उसको भी जानता है जिसकी तुम पर पर्दापोशी (छिपाना) करते हो |
24 | 30 | और पैग़म्बर (अलैहिस्सलाम) आप मोमिनीन (मोमिन मर्दों) से कह दीजिए कि अपनी निगाहों को नीची रखें और आपनी शर्मगाहों (जिस्म के वह हिस्से जिनका छिपाना ज़रूरी है) की हिफ़ाज़त करें कि यही ज़्यादा पाकीज़ा (साफ़-सुथरा) बात है और बेशक अल्लाह उनके कारोबार से खू़ब बाख़बर है |
24 | 31 | और मोमिनात (मोमिन औरतों) से कह दीजिए कि वह भी अपनी निगाहों को नीचा रखें और अपनी इफ़्फ़त (पाकीज़गी) की हिफ़ाज़त करें और अपनी ज़ीनत (आराइश, सजावट) का इज़्हार (ज़ाहिर करना) न करें अलावा इसके जो अज़ ख़ु़द (ख़ुद से) ज़ाहिर है और अपने दुपट्टे को अपने गिरेबान पर रखें और अपनी ज़ीनत (आराइश, सजावट) को अपने बाप, दादा, शौहर, शौहर के बाप दादा, अपनी औलाद और अपने शौहर की औलाद, अपने भाई और भाईयों की औलाद और बहनों की औलाद और अपनी औरतों और अपने गु़लाम और कनीज़ों और ऐसे ताबे अफ़राद (लोग) जिनमें औरत की तरफ़ से कोई ख़्वाहिश नहीं रह गई है और वह बच्चे जो औरतों को पर्दे की बात से कोई सरोकार नहीं रखते हैं उन सबके अलावा किसी पर ज़ाहिर न करें और ख़बरदार अपने पाँव पटक कर न चलें कि जिस ज़ीनत (आराइश, सजावट) को छिपाये हुए हैं उसका इज़्हार (ज़ाहिर करना) हो जाये और साहेबाने ईमान तुम सब अल्लाह की बारगाह में तौबा करते रहो कि शायद इसी तरह तुम्हें फ़लाह (कामयाबी, भलाई) और निजात (छुटकारा, रिहाई) हासिल हो जाये |
24 | 32 | और अपने ग़ैर शादी शुदा आज़ाद अफ़राद (लोगों) और अपने गु़लामों और कनीज़ों में से बा सलाहियत (सलाहियत वाले) अफ़राद (लोगों) के निकाह का एहतेमाम करो कि अगर वह फ़क़ीर भी होंगे तो ख़ुदा अपने फ़ज़्ल व करम से उन्हें मालदार बना देगा कि ख़ुदा बड़ी वुसअत वाला और साहेबे इल्म है |
24 | 33 | और जो लोग निकाह की वुसअत (हैसियत) नहीं रखते हैं वह भी अपनी इफ़्फ़त (पाकीज़गी) का तहफ़्फुज़ (हिफ़ाज़त) करें यहाँ तक कि ख़ुदा अपने फ़ज़्ल (मेहरबानी) से उन्हें ग़नी (दौलत वाला) बना दे और जो गु़लाम व कनीज़ मकातिबत (कुछ माल के एवज़ आज़ादी का सरख़त लेने) के तलबगार हैं उनमें खै़र (नेकी) देखो तो उनसे मकातिबत (कुछ माल के एवज़ आज़ादी का सरख़त) कर लो बल्कि जो माल ख़ुदा ने तुम्हें दे रखा है उसमें से कुछ इन्हें भी दे दो और ख़बरदार अपनी कनीज़ों को अगर वह पाक दामनी की ख़्वाहिशमन्द हैं तो जे़ना पर मजबूर न करना कि उनसे जि़न्दगानी दुनिया का फ़ायदा हासिल करना चाहो कि जो भी उन्हें मजबूर करेगा ख़ुदा मजबूरी के बाद उन औरतों के हक़ में बहुत ज़्यादा बख़्शने (माफ़ करने) वाला और मेहरबान है |
24 | 34 | और हमने तुम्हारी तरफ़ अपनी खुली हुई निशानियाँ और तुमसे पहले गुज़र जाने वालों की मिसाल और साहेबाने तक़्वा (ख़ुदा से डरने वाले लोगों) के लिए नसीहत (अच्छी बातें जो बताई जाएं) का सामान नाजि़ल किया है |
24 | 35 | अल्लाह आसमानों और ज़मीन का नूर है। उसके नूर की मिसाल उस ताक़ की है जिसमें चिराग़ हो और चिराग़ शीशे की क़न्दील में हो और क़न्दील एक जगमगाते सितारे के मानिन्द हो जो ज़ैतून के बाबर्कत (बर्कत वाला) दरख़्त (पेड़) से रौशन किया जाये जो न मशरिक़ वाला हो न मग़रिब वाला और क़रीब है कि इसका रोग़न भड़क उठे चाहे उसे आग मस (छूना) भी न करे ये नूर बालाए नूर है और अल्लाह अपने नूर के लिए जिसे चाहता है हिदायत दे देता है और इसी तरह मिसालें बयान करता है और वह हर शै का जानने वाला है |
24 | 36 | ये चिराग़ उन घरों में है जिनके बारे में ख़ुदा का हुक्म है कि इनकी बलन्दी का एतराफ़ किया जाये और इनमें उसके नाम का जि़क्र किया जाये कि उन घरों में सुबह व शाम उसकी तसबीह (तारीफ़) करने वाले हैं |
24 | 37 | वह मर्द जिन्हें कारोबार या दीगर ख़रीद-फ़रोख़्त (ख़रीदना-बेचना) जि़क्रे ख़ुदा, क़याम नमाज़ और अदाए ज़कात (ज़कात अदा करने) से ग़ाफि़ल (बेपरवाह) नहीं कर सकती ये उस दिन से डरते हैं जिस दिन के हौल से दिल और निगाहें सब उलट जायेंगी |
24 | 38 | ताकि ख़ुदा उन्हें उनके बेहतरीन (सबसे अच्छे) आमाल (कामों) की जज़ा (सिला) दे सके और अपने फ़ज़्ल (मेहरबानी) से मज़ीद (और ज़्यादा) इज़ाफ़ा (बढ़ावा) कर सके और ख़ुदा जिसे चाहता है रिज़्क़ बेहिसाब अता करता है |
24 | 39 | और जिन लोगों ने कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) इखि़्तयार कर लिया उनके आमाल (कामों) उस रेत की मानिन्द हैं जो चटियल मैदान में हो और प्यासा उसे देख कर पानी तसव्वुर (ख़याल) करे और जब उसके क़रीब पहुँचे तो कुछ न पाये बल्कि उस ख़ुदा को पाये जो उसका पूरा-पूरा हिसाब कर दे कि अल्लाह बहुत जल्द हिसाब करने वाला है |
24 | 40 | या इन आमाल (कामों) की मिसाल उस गहरे दरिया की तारीकियों (अंधेरों) की है जिसे एक के ऊपर एक लहर ढाँक ले और इसके ऊपर तह-बा-तह बादल भी हों कि जब वह अपने हाथ को निकाले तो तारीकी की बिना पर कुछ नज़र न आये और जिसके लिए ख़ुदा नूर न क़रार दे उसके लिए कोई नूर नहीं है |
24 | 41 | क्या तुमने नहीं देखा कि अल्लाह के लिए ज़मीन व आसमान की तमाम मख़्लूक़ात (पैदा की हुई चीज़ों/खि़ल्क़त) और फि़ज़ा के सफ़ बस्ता तायर (सफ़ में लगे परिन्दे) सब तसबीह (तारीफ़) कर रहे हैं और सब अपनी-अपनी नमाज़ और तसबीह (तारीफ़) से बाख़बर हैं और अल्लाह भी उनके आमाल (कामों) से खू़ब बाख़बर है |
24 | 42 | और अल्लाह ही के लिए ज़मीन व आसमान की मिल्कियत (जो शै इखि़्तयार या क़ब्ज़े में हो) है और उसी की तरफ़ सबकी बाज़गश्त (लौटना, वापसी) है |
24 | 43 | क्या तुमने नहीं देखा कि ख़ुदा ही अब्र (बादल) को चलाता है और फिर उन्हें आपस में जोड़कर तह-बा-तह बना देता है फिर तुम देखोगे कि इसके दरम्यान (बीच में) से बारिश निकल रही है और वह इसे आसमान से बर्फ़ के पहाड़ों के दरम्यान (बीच में) से बरसाता है फिर जिस तक चाहता है पहुँचा देता है और जिसकी तरफ़ से चाहता है मोड़ देता है उसकी बिजली की चमक इतनी तेज़ है कि क़रीब है कि आँखों की बीनाई ख़त्म कर दे |
24 | 44 | अल्लाह ही रात और दिन को उलट-पलट करता रहता है और यक़ीनन इसमें साहेबाने बसारत (आंखों से देखने वालों) के लिए सामाने इबरत (डराने वाला सबक़) है |
24 | 45 | और अल्लाह ही ने हर ज़मीन पर चलने वाले को पानी से पैदा किया है फिर इनमें से बाज़ (कुछ) पेट के बल चलते हैं और बाज़ (कुछ) दो पैरों में चलते हैं और बाज़ (कुछ) चारों हाथ पैर से चलते हैं और अल्लाह जो चाहता है पैदा करता है कि वह हर शै पर कु़दरत रखने वाला है |
24 | 46 | यक़ीनन हमने वाजे़ह (रौशन, खुली हुई) करने वाली आयतें नाजि़ल की हैं और अल्लाह जिसे चाहता है सिराते मुस्तक़ीम (सीधा रास्ता) की हिदायत दे देता है |
24 | 47 | और ये लोग कहते हैं कि अल्लाह और रसूल पर ईमान ले आये हैं और उनकी इताअत (कहने पर अमल) की है और इसके बाद इनमें से एक फ़रीक़ (फ़र्क करने वाला गिरोह) मुँह फेर लेता है और ये वाके़अन (अस्ल में) साहेबाने ईमान नहीं है |
24 | 48 | और जब उन्हें ख़ुदा व रसूल की तरफ़ बुलाया जाता है कि वह इनके दरम्यान (बीच में) फ़ैसला कर दें तो इनमें से एक फ़रीक़ (फ़र्क करने वाला गिरोह) किनाराकश (दूरी अपनाने वाला) हो जाता है |
24 | 49 | हालांकि अगर हक़ इनके साथ होता तो ये सिर झुकाये हुए चले आते |
24 | 50 | तो क्या इनके दिलों में कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करने) की बीमारी है या ये शक में मुब्तिला हो गये हैं या इन्हें ये ख़ौफ़ (डर) है कि ख़ुदा और रसूल इन पर जु़ल्म करेंगे हालांकि हक़ीक़त ये है कि ये लोग खु़द ही ज़ालेमीन (ज़्ाुल्म करने वालों) हैं |
24 | 51 | मोमिनीन को तो ख़ुदा और रसूल की तरफ़ बुलाया जाता है कि वह फ़ैसला करेंगे तो इनका क़ौल सिर्फ़ यह होता है कि हमने सुना और इताअत की और यही लोग दर हक़ीक़त फ़लाह (कामयाबी) पाने वाले हैं |
24 | 52 | और जो भी अल्लाह और रसूल की इताअत (कहने पर अमल) करेगा और उसके दिल में ख़ौफ़े ख़ुदा (ख़ुदा का डर) होगा और वह परहेज़गारी (बुराईयों से दूरी) इखि़्तयार करेगा तो वही कामयाब कहा जायेगा |
24 | 53 | और इन लोगों ने बाक़ायदा (क़ायदे के हिसाब से, ठीक तरह से) क़सम खाई है कि आप हुक्म दे देंगे तो ये घर से बाहर निकल जायेंगे तो आप कह दीजिए कि क़सम की ज़रूरत नहीं है उमूमी क़ानून के मुताबिक़ इताअत (कहने पर अमल) काफ़ी है कि यक़ीनन अल्लाह उन आमाल (कामों) से बाख़बर (ख़बरदार) है जो तुम लोग अंजाम दे रहे हो |
24 | 54 | आप कह दीजिए कि अल्लाह और उसके रसूल की इताअत (कहने पर अमल) करो फिर अगर इनहिराफ़ (मुंह मोड़ना) करोगे तो रसूल पर वह जि़म्मेदारी है जो उसके जि़म्मे रखी गई है और तुम पर वह मसऊलियत है जो तुम्हारे जि़म्मे रखी गई है और अगर तुम इताअत (कहने पर अमल) करोगे तो हिदायत पा जाओगे और रसूल के जि़म्मे वाजे़ह (रौशन, खुली हुई) तबलीग़ (दीन की बात बता देने) के सिवा और कुछ नहीं है |
24 | 55 | अल्लाह ने तुम में से साहेबाने ईमान व अमल सालेह (ईमान वालों और नेक अमल करने वालों) से वादा किया है कि उन्हें रूए ज़मीन में उसी तरह अपना ख़लीफ़ा (जानशीन, नायब) बनायेगा जिस तरह पहले वालों को बनाया है और उनके लिए इस दीन को ग़ालिब बनायेगा जिसे इनके लिए पसन्दीदा (पसन्द किया हुआ) क़रार दिया है और इनके ख़ौफ़ (डर) को अमन से तब्दील (बदल) कर देगा कि वह सब सिर्फ़ मेरी इबादत करेंगे और किसी तरह का शिर्क (ख़ुदा के साथ दूसरों को शरीक करना) न करेंगे और इसके बाद भी कोई काफि़र (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाला) हो जाये तो दर हक़ीक़त वही लोग फ़ासिक़ (झूठा, गुनहगार) और बद किरदार हैं |
24 | 56 | और नमाज़ क़ायम करो ज़कात अदा करो और रसूल की इताअत (कहने पर अमल) करो कि शायद इसी तरह तुम्हारे हाल पर रहम किया जाये |
24 | 57 | ख़बरदार ये ख़्याल न करना कि कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) इखि़्तयार करने वाले ज़मीन में हमको आजिज़ (परेशान) कर देने वाले हैं इनका ठिकाना जहन्नुम है और वह बदतरीन (सबसे बुरी) अंजाम है |
24 | 58 | ईमान वालों तुम्हारे गु़लाम व कनीज़ और वह बच्चे जो अभी सिने बलूग़ (वह सिन जिस सिन पर पहुंच कर बच्चे बालिग़ हो जाते हैं) को नहीं पहुँचे हैं उन सबको चाहिए कि तुम्हारे पास दाखि़ल होने के लिए तीन औक़ात (वक़्तों) में इजाज़त लें नमाज़े सुबह से पहले और दोपहर के वक़्त जब तुम कपड़े उतार कर आराम करते हो और नमाज़े इशा के बाद ये तीन औक़ात पर्दे के हैं इसके बाद तुम्हारे लिए या इनके लिए कोई हर्ज नहीं है कि एक दूसरे के पास चक्कर लगाते रहें कि अल्लाह इसी तरह अपनी आयतों को वाजे़ह (रौशन, खुली हुई) करके बयान करता है और बेशक अल्लाह हर शै का जानने वाला और साहेबे हिकमत (अक़्ल, दानाई वाला) है |
24 | 59 | और जब तुम्हारे बच्चे हद बलूग़ (वह सिन जब बच्चा बालिग़ हो जाता है) को पहुँच जायें तो वह भी उसी तरह इजाज़त लें जिस तरह पहले वाले इजाज़त लिया करते थे परवरदिगार (पालने वाले) इसी तरह तुम्हारे लिए अपनी आयतों को वाजे़ह (रौशन, खुली हुई) करके बयान करता है कि वह साहेबे इल्म भी है और साहेबे हिकमत (अक़्ल, दानाई वाला) भी है |
24 | 60 | और ज़ईफ़ी (बुढ़ापे) से बैठ रहने वाली औरतें जिन्हें निकाह से कोई दिलचस्पी नहीं है उनके लिए कोई हर्ज नहीं है कि वह अपने ज़ाहिरी कपड़ों को अलग कर दें बशर्त ये कि ज़ीनत (आराइश, सजावट) की नुमाईश न करें और वह भी इफ़्फ़त (पाकीज़गी) का तहफ़्फ़ुज़ (हिफ़ाज़त) करती रहें कि यही इनके हक़ में भी बेहतर (ज़्यादा अच्छा) है और अल्लाह सबकी सुनने वाला और सबका हाल जानने वाला है |
24 | 61 | नाबीना (जो देख न सकता हो, अन्धा) के लिए कोई हर्ज नहीं है और लंगड़े आदमी के लिए भी कोई हर्ज नहीं है और मरीज़ के लिए भी कोई ऐब नहीं है और खु़द तुम्हारे लिए भी कोई गुनाह नहीं है कि अपने घरों से या अपने बाप दादा के घरों से या अपनी माँ और नानी-दादी के घरों से या अपने भाईयों के घरों से या अपनी बहनों के घरों से या अपने चचाओं के घरों से या अपनी फुफियों के घरों से या अपने मामूओं के घरों से या अपनी ख़ालाओं के घरों से या जिन घरों की कंुजियाँ तुम्हारे इखि़्तयार में है या अपने दोस्तों के घरों से खाना खा लो--और तुम्हारे लिए इसमें भी कोई हर्ज नहीं है कि सब मिलकर खाओ या मुत्फ़रिक़ (अलग-अलग) तरीके़ से खाओ बस जब घरों में दाखि़ल हो तो कम अज़ कम अपने ही ऊपर सलाम कर लो कि ये परवरदिगार (पालने वाले) की तरफ़ से निहायत ही मुबारक और पाकीज़ा (साफ़-सुथरा) तोहफ़ा है और परवरदिगार (पालने वाला) इसी तरह अपनी आयतों को वाजे़ह (रौशन, खुली हुई) तरीके़ से बयान करता है कि शायद तुम अक़्ल से काम ले सको |
24 | 62 | मोमिनीन सिर्फ़ वह अफ़राद (लोग) हैं जो ख़ुदा और रसूल पर ईमान रखते हों और जब किसी इज्तेमाई (लोगों के साथ मिलकर) काम में मसरूफ़ हों तो उस वक़्त तक कहीं न जायें जब तक इजाज़त हासिल न हो जाये बेशक जो लोग आपसे इजाज़त हासिल करते हैं वही अल्लाह और रसूल पर ईमान रखते हैं लेहाज़ा (इसलिये) जब आपसे किसी ख़ास हालत के लिए इजाज़त तलब (माँग) करें तो आप जिसको चाहें इजाज़त दे दें और इनके हक़ में अल्लाह से अस्तग़फ़ार (गुनाहों की माफ़ी की दुआ) भी करें कि अल्लाह बड़ा ग़फ़़ूर (माफ़ करने वाला) और रहीम है |
24 | 63 | मुसलमानों! ख़बरदार रसूल को उस तरह न पुकारा करो जिस तरह आपस में एक दूसरे को पुकारते हो अल्लाह उन लोगों को ख़ू़ब जानता है जो तुम में से ख़ामोशी से खिसक जाते हैं लेहाज़ा (इसलिये) जो लोग हुक्मे ख़ुदा की मुख़ालिफ़त (टकराव) करते हैं वह उस अम्र से डरें कि उन तक कोई फि़त्ना (झगड़ा) पहुँच जाये या कोई दर्दनाक (दर्द देने वाला) अज़ाब नाजि़ल हो जाये |
24 | 64 | और याद रखो कि अल्लाह ही के लिए ज़मीन व आसमान की कुल कायनात (दुनिया) है और वह तुम्हारे हालात को ख़ू़ब जानता है और जिस दिन सब उसकी बारगाह में पलटाकर लाए जायेंगे वह सबको उनके आमाल (कामों) के बारे में बता देगा कि वह हर शै का जानने वाला है |
Thursday, 16 April 2015
Sura-e-Noor 24th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)
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