Thursday, 16 April 2015

Sura-e-Rome 30th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)

    सूरा-ए-रोम
30   अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू।
30 1 अलिफ़ लाम मीम
30 2 रोम वाले मग़लूब हो गये
30 3 क़रीब तरीन इलाक़े में लेकिन ये मग़लूब हो जाने के बाद अनक़रीब (बहुत जल्द) फिर गा़लिब हो जायेंगे
30 4 चन्द (कुछ) साल के अन्दर, अल्लाह ही के लिए अव्वल व आखि़र हर ज़माने का इखि़्तयार है और इसी दिन साहेबाने ईमान खु़शी मनायेंगे
30 5 अल्लाह की नुसरत व इमदाद (मदद) के सहारे कि वह जिसकी इमदाद (मदद) चाहता है कर देता है और वह साहेबे इज़्ज़त भी है और मेहरबान भी है
30 6 ये अल्लाह का वादा है और अल्लाह अपने वादे के खि़लाफ़ नहीं करता है मगर लोगों की अकसरियत (ज़्यादातर लोग) इस हक़ीक़त से भी बे ख़बर है
30 7 ये लोग सिर्फ़ जि़न्दगानी दुनिया के ज़ाहिर को जानते हैं और आखि़रत की तरफ़ से बिल्कुल ग़ाफि़ल (बेपरवाह) हैं
30 8 क्या इन लोगों ने अपने अन्दर फि़क्र नहीं की है कि ख़ुदा ने आसमान व ज़मीन और इसके दरम्यान (बीच) की तमाम मख़लूक़ात (पैदा की हुई खि़लक़त या शै) को बर हक़ (हक़ पर) ही पैदा किया है और एक मुअय्यन मुद्दत (तय किये हुए वक़्त) के साथ लेकिन लोगों की अकसरियत (ज़्यादातर लोग) अपने परवरदिगार (पालने वाले) की मुलाक़ात से इन्कार करने वाली है
30 9 और क्या इन लोगों ने ज़मीन में सैर नहीं की है कि देखते कि इनसे पहले वालों का क्या अंजाम हुआ है जो ताक़त में इनसे ज़्यादा मज़बूत थे और इन्होंने ज़राअत (खेती) करके ज़मीन को इनसे ज़्यादा आबाद कर लिया था और इनके पास हमारे नुमाईन्दे ज़्यादा खुली हुई निशानियां भी लेकर आये थे यक़ीनन ख़ुदा अपने बन्दों पर ज़्ाुल्म नहीं करता है बल्कि ये लोग खु़द ही अपने ऊपर ज़्ाुल्म करते हैं
30 10 इसके बाद बुराई करने वालों का अंजाम बुरा हुआ कि इन्होंने ख़ुदा की निशानियों को झुठला दिया और बराबर उनका मज़ाक़ उड़ाते रहे
30 11 अल्लाह ही तख़्लीक़ (खि़लक़त को पैदा करने) की इब्तिदा (शुरूआत) करता है और फिर पलटा भी देता है और फिर तुम सब उसी की बारगाह में वापस ले जाये जाओगे
30 12 और जिस दिन क़यामत क़ायम की जायेगी उस दिन सारे मुजरेमीन (जुर्म करने वाले) मायूस हो जायेंगे
30 13 और उनके शोरका (जिनको ख़ुदा के साथ शरीक किया करते थे) में कोई सिफ़ारिश करने वाला न होगा और ये ख़ुद भी अपने शोरका (जिनको ख़ुदा के साथ शरीक किया करते थे) का इन्कार करने वाले होंगे
30 14 और जिस दिन क़यामत क़ायम होगी सब लोग आपस में गिरोहों में तक़सीम (बंट जाना) हो जायेंगे
30 15 पस जो ईमान वाले और नेक (अच्छे) अमल वाले होंगे वह बाग़े जन्नत में निहाल और खु़शहाल होंगे
30 16 और जिन लोगों ने कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) इखि़्तयार किया और हमारी आयात और रोज़े आखि़रत की मुलाक़ात की तकज़ीब (झुठलाना) की वह अज़ाब में ज़रूर गिरफ़्तार किये जायेंगे
30 17 लेहाज़ा (इसलिये) तुम लोग तसबीह (तारीफ़) परवरदिगार (पालने वाले की) करो उस वक़्त जब शाम करते हो और जब सुबह करते हो
30 18 ज़मीन व आसमान में सारी हम्द (तारीफ़ें) उसी के लिए है और अस्र के हंगाम और जब दोपहर करते हो
30 19 वह ख़ुदा जि़न्दा को मुर्दा से और मुर्दा को जि़न्दा से निकालता है और ज़मीन को मुर्दा हो जाने के बाद फिर जि़न्दा करता है और इसी तरह एक दिन तुम्हें भी निकाला जायेगा
30 20 और इसकी निशानियों में से एक ये भी है कि उसने तुम्हें ख़ाक (मिट्टी) से पैदा किया है और इसके बाद तुम बशर (इन्सान) की शक्ल में फैल गये हो
30 21 और उसकी निशानियों में से ये भी है कि उसने तुम्हारा जोड़ा तुम्हीं में से पैदा किया है ताकि तुम्हें इससे सुकून हासिल हो और फिर तुम्हारे दरम्यान (बीच में) मोहब्बत और रहमत क़रार दी है कि इसमें साहेबाने फि़क्र (ग़ौर-फि़क्र करने वालों) के लिए बहुत सी निशानियां पायी जाती हैं
30 22 और इसकी निशानियों में से आसमान व ज़मीन की खि़ल्क़त और तुम्हारी ज़बानों और तुम्हारे रंगों का एख़तेलाफ़ (राय में टकराव) भी है कि इसमें साहेबाने इल्म के लिए बहुत सी निशानियां पायी जाती हैं
30 23 और इसकी निशानियों में से ये भी है कि तुम रात और दिन को आराम करते हो और फिर फ़ज़्ले ख़ुदा को तलाश करते हो कि इसमें भी सुनने वाली क़ौम के लिए बहुत सी निशानियां पायी जाती हैं
30 24 और उसकी निशानियों में से ये भी है कि वह बिजली को ख़ौफ़ (डर) और उम्मीद का मर्कज़ बनाकर दिखलाता है और आसमान से पानी बरसाता है फिर इसके ज़रिये मुर्दा ज़मीन को जि़न्दा बनाता है बेशक इसमें भी उस क़ौम के लिए बहुत सी निशानियां है जो अक़्ल रखने वाली है
30 25 और उसकी निशानियों में से ये भी है कि आसमान व ज़मीन उसी के हुक्म से क़ायम हैं और इसके बाद वह जब तुम सबको तलब (माँग) करेगा तो सब ज़मीन से एकबारगी बरामद हो जायेंगे
30 26 आसमान व ज़मीन में जो कुछ भी है सब उसी की मिल्कियत (जो शै इखि़्तयार या क़ब्ज़े में हो) है और सब उसी के ताबेए फ़रमान (हुक्म को मानने वाली) हैं
30 27 और वही वह है जो खि़ल्क़त की इब्तिदा करता है और फिर दोबारा भी पैदा करेगा और ये काम उसके लिए बेहद आसान है और उसी के लिए आसमान व ज़मीन में सबसे बेहतरीन (सबसे अच्छी)  मिसाल है और वही सब पर ग़ालिब आने वाला और साहेबे हिकमत (अक़्ल, दानाई वाला) है
30 28 उसने तुम्हारे लिए तुम्हारी ही मिसाल बयान की है कि जो रिज़्क़ हमने तुमको अता किया है क्या इसमें तुम्हारे ममलूक (जिनके तुम मालिक हो) ग़्ाु़लाम व कनीज़ में कोई तुम्हारा शरीक है कि तुम सब बराबर हो जाओ और तुम्हें इनका ख़ौफ़ (डर) इसी तरह हो जिस तरह अपने नफ़़ूस (जानों) के बारे में ख़ौफ़ (डर) होता है। बेशक हम अपनी निशानियों को साहेबे अक़्ल क़ौम के लिए इसी तरह वाज़ेह (खुला हुआ, रौशन) करके बयान करते हैं
30 29 हक़ीक़त ये है कि ज़ालिमों ने बग़ैर जाने बूझे अपनी ख़्वाहिशात (दुनियावी तमन्नाओं) का इत्तेबा (पैरवी) कर लिया है तो जिसको ख़ुदा गुमराही में छोड़ दे उसे कौन हिदायत दे सकता है और उनका तो कोई नासिर व मददगार भी नहीं है
30 30 आप अपने रूख़ को दीन की तरफ़ रखें और बातिल से किनाराकश रहें कि ये दीन वह फि़तरते इलाही है जिस पर उसने इन्सानों को पैदा किया है और खि़ल्क़ते इलाही (अल्लाह जो ख़ल्क़ करता है) में कोई तब्दीली (बदलाव) नहीं हो सकती है। यक़ीनन यही सीधा और मुस्तहकम दीन है मगर लोगों की अकसरियत (ज़्यादातर लोग) इस बात से बिल्कुल बे ख़बर है
30 31 तुम सब अपनी तवज्जो ख़ुदा की तरफ़ रखो और उसी से डरते रहो। नमाज़ क़ायम करो और ख़बरदार मुशरेकीन में से न हो जाना
30 32 उन लोगों में से जिन्होंने दीन में तफ़्रेक़ा (बांट देना) पैदा किया है और गिरोहों में बट गये हैं फिर हर गिरोह जो कुछ उसके पास है उसी पर मस्त और मगन है
30 33 और लोगों को जब भी कोई मुसीबत छू जाती है तो वह परवरदिगार (पालने वाले) को पूरी तवज्जो के साथ पुकारते हैं इसके बाद जब वह रहमत का मज़ा चखा देता है तो इनमें से एक गिरोह शिर्क (ख़ुदा के साथ दूसरों को शरीक करना) करने लगता है
30 34 ताकि जो कुछ हमने अता किया है उसका इन्कार कर दे तो तुम मज़े करो इसके बाद तो सबको मालूम ही हो जायेगा
30 35 क्या हमने इनके ऊपर कोई दलील नाजि़ल की है जो इनसे इनके शिर्क (ख़ुदा के साथ दूसरों को शरीक करना) के जवाज़ (उज़्र, वजह) बयान करती है
30 36 और जब हम इन्सानों को रहमत का मज़ा चखा देते हैं तो वह खु़श हो जाते हैं और जब उन्हें उनके साबेक़ा किरदार की बिना (वजह) पर कोई तकलीफ़ पहुंच जाती है तो वह मायूसी का शिकार हो जाते हैं
30 37 तो क्या इन लोगों ने नहीं देखा कि ख़ुदा जिसके रिज़्क़ में चाहता है वुसअत (फ़ैलाव, बढ़ोतरी) पैदा कर देता है और जिसके यहां चाहता है कमी कर देता है और इसमें भी साहेबे ईमान क़ौम के लिए उसकी निशानियां हैं
30 38 और तुम क़राबतदार (क़रीबी रिश्तेदारों) मिस्कीन (कमज़ोर) और गु़रबत ज़दा (ग़रीब) मुसाफि़र को उसका हक़ दे दो कि ये उन लोगों के हक़ में खै़र (नेकी) है जो रेज़ाए इलाही (अल्लाह की मजऱ्ी) के तलबगार (चाहने वाले) हैं और वही हक़ीक़तन निजात (छुटकारा, रिहाई) हासिल करने वाले हैं
30 39 और तुम लोग जो भी सूद देते हो कि लोगों के माल में इज़ाफ़ा हो जाये तो ख़ुदा के यहां कोई इज़ाफ़ा नहीं होता है हाँ जो ज़कात देते हो और इसमें रेज़ाए ख़ुदा (अल्लाह की मजऱ्ी) का इरादा होता है तो ऐसे लोगों को दुगना चैगुना दे दिया जाता है
30 40 अल्लाह ही वह है जिसने तुम सब को ख़ल्क़ किया है फिर रोज़ी दी है फिर मौत देता है फिर जि़न्दा करता है क्या तुम्हारे शोरकाअ (जिन्हें ख़ुदा के साथ शरीक करते हो) में कोई ऐसा है जो इनमें से कोई काम अंजाम दे सके ख़ुदा उन तमाम चीज़ों से जिन्हें ये शरीक बना रहे हैं पाक व पाकीज़ा (साफ़-सुथरा) और बलन्द व बरतर है
30 41 लोगों के हाथों की कमाई की बिना पर फ़साद (लड़ाई-झगड़ा) ख़ु़श्की और तरी हर जगह ग़ालिब आ गया है ताकि ख़ुदा इनके कुछ आमाल (कामों) का मज़ा चखा दे तो शायद ये लोग पलट कर रास्ते पर आ जायें
30 42 आप कह दीजिए कि ज़रा ज़मीन में सैर करके देखो कि तुमसे पहले वालों का क्या अंजाम हुआ है जिनकी अकसरियत (ज़्यादातर लोग) मुशरिक (ख़ुदा के साथ दूसरों को शरीक करने वाले) थी
30 43 और आप अपने रूख़ को मुस्तक़ीम और मुस्तहकम दीन की तरफ़ रखें क़ब्ल इसके (इससे पहले) कि वह दिन आ जाये जिसकी वापसी का कोई इम्कान नहीं है और जिस दिन लोग परेशान होकर अलग-अलग हो जायेंगे
30 44 जो कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) करेगा वह अपने कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) का जि़म्मेदार होगा और जो लोग नेक (अच्छा) अमल कर रहे हैं वह अपने लिए राह हमवार कर रहे हैं
30 45 ताकि ख़ुदा ईमान और नेक (अच्छा) अमल करने वालों को अपने फ़ज़्ल से जज़ा (सिला) दे सके कि वह काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) को दोस्त नहीं रखता है
30 46 और उसकी निशानियों में से एक ये भी है कि वह हवाओं को खु़शख़बरी देने वाला बनाकर भेजता है और इसलिए भी कि तुम्हें अपनी रहमत का मज़ा चखाए और उसके हुक्म से कश्तियां चलें और तुम अपना रिज़्क़ हासिल कर सको और शायद इस तरह शुक्रगुज़ार भी बन जाओ
30 47 और हमने तुमसे पहले बहुत से रसूल इनकी क़ौमों की तरफ़ भेजे हैं जो इनके पास खुली हुई निशानियां लेकर आये फिर हमने मुजरेमीन (जुर्म करने वालों) से इन्तिक़ाम लिया और हमारा फ़जऱ् था कि हम साहेबाने ईमान की मदद करें
30 48 अल्लाह ही वह है जो हवाओं को चलाता है तो वह बादलों को उड़ाती है फिर वह इन बादलों को जिस तरह चाहता है आसमान में फैला देता है और इसे टुकड़े कर देता है और इसके दरम्यान (बीच में) से पानी बरसाता है फिर ये पानी उन बन्दों तक पहुंच जाता है जिन तक वह पहुंचाना चाहता है तो वह ख़ु़श हो जाते हैं
30 49 अगर चे वह इस बारिश के नाजि़ल होने से पहले मायूसी का शिकार हो गये थे
30 50 अब तुम रहमते ख़ुदा के उन आसार को देखो कि वह किस तरह ज़मीन को मुर्दा हो जाने के बाद जि़न्दा कर देता है। बेशक वही मुर्दों को जि़न्दा करने वाला है और वही हर शै पर कु़दरत रखने वाला है
30 51 और अगर हम ज़हरीली हवा चला देते और ये हर तरफ़ मौसम खे़ज़ा जैसी ज़र्दी देख लेते तो बिल्कुल ही कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) इखि़्तयार कर लेते
30 52 तो आप मुर्दों को अपनी आवाज़ नहीं सुना सकते हैं और बहरों को भी नहीं सुना सकते हैं जब वह मुँह फेर कर चल दें
30 53 और आप अन्धों को भी उनकी गुमराही से हिदायत नहीं कर सकते हैं आप तो सिर्फ़ उन लोगों को सुना सकते हैं जो हमारी आयतों पर ईमान रखते हैं और मुसलमान हैं
30 54 अल्लाह ही वह है जिसने तुम सबको कमज़ोरी से पैदा किया है और फिर कमज़ोरी के बाद ताक़त अता की है और फिर ताक़त के बाद कमज़ोरी और ज़ईफ़ी (बुढ़ापा) क़रार दी है वह जो चाहता है पैदा कर देता है कि वह साहेबे इल्म भी है और साहेबे कु़दरत भी है
30 55 और जिस दिन क़यामत क़ायम होगी उस दिन मुजरेमीन (जुर्म करने वालों) क़सम खाकर कहेंगे कि वह एक साअत (लम्हे) से ज़्यादा दुनिया में नहीं ठहरे हैं दर हक़ीक़त ये इसी तरह दुनिया में भी इफि़्तरा परदाजि़यां (झूठे इल्ज़ाम लगाना) किया करते थे
30 56 और जिन लोगों को इल्म और ईमान दिया गया है वह कहेंगे कि तुम लोग किताबे ख़ुदा के मुताबिक़ क़यामत के दिन तक ठहरे रहे तो ये क़यामत का दिन है लेकिन तुम लोग बे ख़बर बने हुए हो
30 57 फिर आज ज़ालिमों को न कोई माजे़रत (पछतावे के साथ अफ़सोस) फ़ायदा पहुंचायेगी और न उनकी कोई बात सुनी जायेगी
30 58 और हमने इस कु़रआन में हर तरह की मिसाल बयान कर दी है और अगर आप सारी निशानियां लेकर भी आ जायें तो काफि़र (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) यही कहेंगे कि आप लोग सिर्फ़ अहले बातिल (झूठ वाले) हैं
30 59 बेशक इसी तरह ख़ुदा उन लोगों के दिलों पर मोहर लगा देता है जो इल्म रखने वाले नहीं हैं
30 60 लेहाज़ा (इसलिये) आप सब्र से काम लें कि ख़ुदा का वादा बर हक़ है और ख़बरदार जो लोग यक़ीन इस अम्र का नहीं रखते हैं वह आपको (यक़ीन में) हल्का न बना दें

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