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सूरा-ए-मुरसलात |
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अज़ीम और दाएमी (हमेशा
बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू। |
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1 |
उनकी क़सम जिन्हें
तसलसुल (सिलसिले) के साथ भेजा गया है |
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2 |
फिर तेज़ रफ़्तारी से
चलने वाली हैं |
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3 |
और क़सम है उनकी जो
अशिया को मुन्तशिर (फैलाने, तितर-बितर) करने वाली हैं |
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4 |
फिर उन्हें आपस में
जुदा करने वाली हैं |
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5 |
फिर जि़क्र को नाजि़ल
करने वाली हैं |
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6 |
ताकि उज़्र तमाम हो
(कोई बहाना न बचे) या ख़ौफ़ (डर) पैदा कराया जाये |
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7 |
जिस चीज़ का तुमसे
वादा किया गया है वह बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) वाक़ेअ होने वाली है |
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8 |
फिर जब सितारों की चमक
ख़त्म हो जाये |
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9 |
और आसमानों में शिगाफ़
(फ़टना, दरार) पैदा हो जाये |
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10 |
और जब पहाड़ उड़ने
लगें |
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11 |
और जब सारे पैग़म्बर
अलैहिस्सलाम एक वक़्त में जमा कर लिये जायें |
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12 |
भला किस दिन के लिए इन
बातों में ताख़ीर (देरी) की गई है |
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13 |
फ़ैसले के दिन के लिए |
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14 |
और आप क्या जानें कि
फ़ैसले का दिन क्या है |
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15 |
उस दिन झुठलाने वालों
के लिए जहन्नम है |
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16 |
क्या हमने इनके पहले
वालों को हलाक (बरबाद, ख़त्म) नहीं कर दिया है |
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17 |
फिर दूसरे लोगों को भी
इन्हीं के पीछे लगा देंगे |
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18 |
हम मुजरिमों (जुर्म
करने वालों) के साथ इसी तरह का बरताव करते हैं |
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19 |
और आज के दिन झुठलाने
वालों के लिए बर्बादी ही बर्बादी है |
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20 |
क्या हमने तुमको एक
हक़ीर पानी से नहीं पैदा किया है |
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21 |
फिर इसे एक महफ़ूज़
मुक़ाम (हिफ़ाज़त वाली जगह) पर क़रार दिया है |
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22 |
एक मुअईयन (तय की हुई)
मिक़दार तक |
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23 |
फिर हमने इसकी मिक़दार
मुअईयन (तय) की है तो हम बेहतरीन (सबसे अच्छी) मिक़दार मुक़र्रर करने वाले हैं |
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24 |
आज के दिन झुठलाने
वालों के लिए बर्बादी है |
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25 |
क्या हमने ज़मीन को एक
जमा करने वाला ज़र्फ़ नहीं बनाया है |
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26 |
जिसमें जि़न्दा मुर्दा
सबको जमा करेंगे |
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27 |
और इसमें ऊँचे-ऊँचे
पहाड़ क़रार दिये हैं और तुम्हें शीरीं (मीठे) पानी से सेराब किया (पिलाया) है |
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28 |
आज झुठलाने वालों के
लिए बर्बादी और तबाही है |
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29 |
जाओ उस तरफ़ जिस की
तकज़ीब (झुठलाना) किया करते थे |
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30 |
जाओ उस धुँए के साये
की तरफ़ जिसके तीन गोशे (कोने) हैं |
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31 |
न ठण्डक है और न
जहन्नम की लपट से बचाने वाला सहारा |
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32 |
वह ऐसे अंगारे फेंक
रहा है जैसे कोई महल |
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33 |
जैसे ज़र्द रंग के ऊँट |
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34 |
आज के दिन झुठलाने
वालों के लिए बर्बादी और जहन्नम है |
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35 |
आज के दिन ये लोग बात
भी न कर सकंेगे |
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36 |
और न उन्हें इस बात की
इजाज़त होगी कि उज़्र (बहाना) पेश कर सकें |
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37 |
आज के दिन झुठलाने
वालों के लिए जहन्नम है |
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38 |
ये फ़ैसले का दिन है
जिसमें हमने तुमको और तमाम पहले वालों को इकठ्ठा किया है |
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39 |
अब अगर तुम्हारे पास
कोई चाल हो तो हमसे इस्तेमाल करो |
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40 |
आज तकज़ीब (झुठलाना)
करने वालों के लिए जहन्नम है |
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41 |
बेशक मुत्तक़ीन (ख़ुदा
से डरने वाले लोग) घनी छाँव और चश्मों (दरियाओं) के दरम्यान (बीच में) होंगे |
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42 |
और उनकी ख़्वाहिश के
मुताबिक़ मेवे होंगे |
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43 |
अब इत्मिनान से खाओ
पियो उन आमाल (कामों) की बिना पर जो तुमने अंजाम दिये हैं |
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44 |
हम इसी तरह नेक
(अच्छा) अमल करने वालों को बदला देते हैं |
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45 |
आज झुठलाने वालों के
लिए जहन्नम है |
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46 |
तुम लोग थोड़े दिनों
खाओ और आराम कर लो कि तुम मुजरिम (जुर्म करने वाले) हो |
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47 |
आज के दिन तकज़ीब
(झुठलाना) करने वालों के लिए वैल (जहन्नम की घाटी) है |
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48 |
और जब उनसे कहा जाता
है कि रूकूअ करो तो नहीं करते हैं |
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49 |
तो आज के दिन झुठलाने
वालों के लिए जहन्नम है |
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50 |
आखि़र ये लोग इसके बाद
किस बात पर ईमान ले आयेंगे |
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