Wednesday, 15 April 2015

Sura-a-Nisa 4th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.),

    सूरा-ए-निसा
4   शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा रहमान और रहीम है।
4 1 इंसानों! उस परवरदिगार से डरो जिसने तुम सब को (सिर्फ़) एक नफ़्स (जान) से पैदा किया है और उसका जोड़ा भी उसकी जीन्स से पैदा किया है और फिर दोनों से बकसरत (बहुत से) मर्द व औरत दुनिया में फैला दिये हैं और उस ख़ु़दा से भी डरो जिसके वसीले से (ज़रिये) एक दूसरे से सवाल करते हो और क़राबतदारों की बे ताल्लुक़ी (क़तए ताल्लुक़) से भी। अल्लाह तुम सबके आमाल का निगरान (देखभाल करने वाला) है 
4 2 और यतीमों को उनका माल दे दो और उनके माल को अपने माल से न बदलो और उनके माल को अपने माल के साथ मिलाकर न खा जाओ कि ये गुनाहे कबीरा है 
4 3 और अगर यतीमों के बारे में इंसाफ़ न कर सकने का ख़तरा है तो जो औरतें तुम्हें पसन्द हैं दो, तीन, चार उनसे निकाह कर लो और अगर उनमें भी इंसाफ़ न कर सकने का ख़तरा है तो सिर्फ़ एक से या जो कनीज़ें तुम्हारी मिल्कियत हैं, ये बात इंसाफ़ से तजाविज़ न करने (आगे बढ़ जाने) से क़रीब तर है 
4 4 औरतों को उनका मेहर अता कर दो फिर अगर वह ख़ु़शी-ख़ुशी तुम्हें देना चाहें (कुछ छोड़ दें) तो शौक़ से खा लो 
4 5 और नासमझ लोगों को अपने वह माल जिनको तुम्हारे लिए गुज़र-बसर का ज़रिया क़रार दिया है न दे बैठो हाँ इसमें उनके खाने कपड़े का इन्तिज़ाम कर दो और उनसे (शौक़ से) मुनासिब गुफ़्तगू करो 
4 6 और यतीमांे की जांच  (निगरानी) करो और जब वह निकाह के क़ाबिल हो जायें तो अगर उनमें बालिग़ होने का एहसास करो तो उनके अमवाल (माल) उनके हवाले कर दो और ज़्यादती (फ़रावानी) के साथ या (ख़बरदार) ऐसा न करना इस ख़ौफ़ से कि कहीं वह बड़े न हो जायें जल्दी-जल्दी (यतीमों का माल) न चट कर जाओ, और तुम में जो उसका वली (वारिस) हो वह उनके माल से परहेज़ करे और जो मोहताज हो वह भी (दस्तूर के मुताबिक़) सिर्फ़ बक़द्र मुनासिब खाये। फिर जब उनके अमवाल (माल) उनके हवाले करने लगो तो लोगों को गवाह बना लो और (यूँ तो) ख़ु़दा हिसाब के लिए ख़़ुद ही काफ़ी है 
4 7 मर्दों के लिए उनके वाल्दैन और अक़रेबा (क़राबत दारों) के तरका मेें कुछ हिस्सा है और औरतांे के लिए भी उनके वाल्दैन और अक़रेबा के तरका (विरासत में मिलने वाला माल) में से कुछ हिस्सा है वह माल बहुत हो या थोड़ा ये हिस्सा बतौर फ़रीज़ा (वाजिब) है 
4 8 और अगर तक़सीम के वक़्त दीगर क़राबतदार, ऐताम (यतीम), मिसकीन (मोहताज) भी आ जायें तो उन्हें भी उसमें से कुछ दे दो और उनसे नरम और मुनासिब गुफ़्तगू करो 
4 9 और उन लोगों को इस बात से डरना चाहिए (और ग़ौर करना चाहिए) कि अगर वह ख़़ुद अपने बाद (नन्हे नन्हे नातवाँ बच्चे) छोड़ जाते तो किस क़द्र परेशान होते लेहाज़ा ग़रीब बच्चों पर सख्ती करने में ख़ु़दा से डरंे और सीधी-सीधी गुफ़्तगू (बात) करें 
4 10 जो लोग नाहक़ (ज़ालिमाना अंदाज़) यतीमों का माल खा जाया करते हैं वह दर हक़ीक़त अपने पेट में आग भरते हैं और अनक़रीब (जल्द ही) वासिले जहन्नुम होंगे 
4 11 मुसलमानों! अल्लाह तुम्हें तुम्हारी औलाद के हक़ में वसीयत करता है कि लड़के का हिस्सा दो लड़कियों के बराबर है। अब अगर मरने वाले के लड़कियां दो या दो से ज़्यादा हैं तो उन्हें तमाम तरके (विरासत का माल) का दो तिहाई हिस्सा मिलेगा और अगर एक ही लड़की है तो उसे आधा और मरने वाले के माँ-बाप में से हर एक के लिए अगर कोई औलाद न हो तो (ख़ास चीज़ो में) छठां हिस्सा है अगर औलाद भी हो और अगर औलाद न हो और माँ-बाप वारिस हों तो माँ के लिए एक तिहाई है (बाक़ी बाप का है) और अगर हक़ीक़ी या सौतेले भाई भी हों तो माँ के लिए छठां हिस्सा है। इन वसीयतों के बाद जो कि मरने वाले ने की हैं या उन क़जऱ्ों के बाद जो उसके जि़म्मे हैं। ये तुम्हारे ही माँ बाप और औलाद हैं मगर तुम्हें नहीं मालूम कि तुम्हारे हक़ में ज़्यादा मुन्फ़ेअत रेसा (फायदेमंद) कौन है। और हिस्सा तो अल्लाह की तरफ़ से (मोअइयन) है और अल्लाह साहेबे इल्म भी है और साहेबे हिकमत भी है 
4 12 और तुम्हारे लिए तुम्हारी बीवियांे के तरका (विरासत) का निस्फ़ (आधा) है अगर उनकी औलाद न हो। पस अगर उनकी कोई औलाद है तो उनके तरका में से तुम्हारा चैथाई हिस्सा है उनकी वसीयतों और अदाए क़जऱ् के बाद और उनके लिए तुम्हारे तरका में से चैथाई हिस्सा है अगर तुम्हारी औलाद न हो तो तुम्हारी बीवियों का तुम्हारी तरका का चैथाई है और अगर तुम्हारी कोई औलाद है तो उनके लिए तुम्हारे तरका में से आठवां हिस्सा है, वह भी तुम्हारी वसीयतों के बाद जो तुमने की हैं और क़जऱ्ों की अदायगी के बाद अगर कोई क़ज़र््ा है और अगर कोई मर्द या औरत अपने कलाला (मादरी भाई या बहन) का वारिस हो रहा है और एक भाई या एक बहन है तो हर एक के लिए छठां हिस्सा है और अगर एक से ज़्यादा हों तो तिहाई तरके के हिस्सेदार होगे। बाद उस वसीयत के जो की गई हो या क़र्जे़ के बाद बशर्त ये कि वसीयत या क़र्जे़ की बुनियाद विरसे (वारिस)े को ज़रर (नुक़सान) पहुंचाने पर न हो। ये ख़ु़दा की तरफ़ से लाज़मी हिदायत है और ख़ु़दा हर शय (चीज़) का जानने वाला और बड़ा बुर्दबार (बर्दाशत करने वाला) है 
4 13 ये सब इलाही हुदूद (मुक़र्रर हदें) हैं और जो अल्लाह व रसूल की इताअत करेगा ख़ु़दा उसे उन जन्नतों में दाखि़ल करेगा जिनके नीचे नहरें जारी होंगी और वह उनमें हमेशा (चैन से) रहेंगे और दर हक़ीक़त यही सबसे बड़ी कामयाबी है 
4 14 और जो ख़ु़दा व रसूल की नाफ़रमानी (कहने के खि़लाफ़ अमल) करेगा और उसके हुदूद से तजाविज़ (आगे बढ़ जायेगा) कर जायेगा ख़ु़दा उसे जहन्नुम में दाखि़ल कर देगा और वह वहीं हमेशा (भुगदता) रहेगा और उसके लिए रूसवाकुन (शर्मनाक) अज़ाब है 
4 15 और तुम्हारी औरतांे में से जो औरतें बदकारी करें उन पर अपनों में से चार गवाहों की गवाही लो और जब गवाही दे दंे तो उन्हंे घरों में बन्द रखो। यहां तक कि मौत आ जाये या ख़ु़दा उनके लिए कोई दूसरा रास्ता निकाले 
4 16 और तुम लोगों में से जिस आदमी ने बदकारी की हो उसे अजि़यत दो (मारो पीटो)े फिर अगर वह दोनों तौबा कर ले और अपने हरकत की इस्लाह (सुधार) कर ले तो उन्हें छोड़ दो कि ख़ु़दा बहुत बड़ा तौबा कु़बूल करने वाला और मेहरबान है 
4 17 मगर तौबा ख़ु़दा की बारगाह में सिर्फ़ उन लोगों के लिए है जो जेहालत (अनजाने) की बिना पर बुरी हरकत कर बैठें और फिर फ़ौरन तौबा कर लें तो अलबत्ता ख़ु़दा उनकी तौबा कु़बूल कर लेता है ख़ुदा तो बड़ा जानने वाला दाना और साहेबे हिकमत है 
4 18 और तौबा उन लोगांे के लिए (मुफ़ीद) नहीं है जो उम्र भर बुराईयां करते हैं और फिर जब मौत सामने आ जाती है तो कहते हैं कि अब हमने तौबा कर ली और (इसी तरह) न उनके लिए है जो हालते कुफ्ऱ में मर जाते हैं ऐसे ही लोगों के लिए हमने बड़ा दर्दनाक अज़ाब मुहैय्या कर रखा है 
4 19 ऐ ईमान वालों तुम्हारे लिए ये जायज़ नहीं है कि जबरन बेवा औरतांे के वारिस बन जाओ और जो कुछ उनको (शौहर के तरके से) दे दिया है उसका कुछ हिस्सा वापस ले लेने की नियत से उन्हें दूसरे निकाह से मना न करो मगर ये कि जब वह वाजे़ह (खुल्लम-खुल्ला) तौर पर बदकारी करें (तो अलबत्ता उन्हें रोकने में कोई हरज नहीं) और उनके साथ नेक बरताव करो अब अगर तुम उन्हें नापसन्द भी करते हो तो (सब्र करो) हो सकता है कि तुम जिस चीज़ को नापसन्द करते हो ख़ु़दा उसी में ख़ैरे  कसीर (बहुत ज़्यादा नेकी) क़रार दे दे 
4 20 और अगर तुम एक ज़ौजा की जगह पर तलाक़ देकर दूसरी ज़ौजा को लाना चाहो और पहली को माल कसीर (ज़्यादा) भी दे चुके हो तो ख़बरदार उसमें से कुछ वापस न लेना। क्या (तुम्हारी यही ग़ैरत है) कि तुम इस माल को बोहतान बाॅंधकर और खुले गुनाह (का जुर्म) लगाकर माल वापस लेना चाहते हो 
4 21 और आखि़र किस तरह तुम माल को वापस लोगे जबकि तुम एक दूसरे से (ख़लवत में) मुतस्सिल (रिशता क़ायम करना) हो चुके हो और उन बीबियों ने तुमसे (निकाह के वक़्त) पक्का इक़रार ले चुकी हैं
4 22 और ख़बरदार जिन औरतों से तुम्हारे बाप-दादा ने निकाह (जमाअ) (अगरचे जि़ना) किया है उनसे निकाह न करना मगर जो हो चुका वह हो चुका। ये खुली हुई बुराई (बदकारी) और परवरदिगार के नाराज़गी की बात ज़रूर थी और यह बदतरीन तरीक़ा था 
4 23 (मुसलमानों!) तुम्हारे ऊपर तुम्हारी माँयें, (दादी नानी वग़ैरह) बेटियां (पोतियां, नवासियां), और बहनें, फुफियां, ख़ालायें, भतीजियां और भांजियां, (पोतियाॅं नवासियाॅं) और तुम्हारी वह माँयें जिन्होंने तुमको दूध पिलाया है, तुम्हारी रेज़ाई (दूध शरीक) बहनें, तुम्हारी बीवियांे की माँयें, (सास) तुम्हारी परवरदा लड़कियाॅं जो (गोया) तुम्हारी आग़ोश में (पल चुकी) हैं और उन औरतों से पैदा हैं जिनसे तुम हमबिस्तरी कर चुके हो। हाँ अगर (सिर्फ निकाह किया है) और हम बिस्तरी न की हो तो कोई हर्ज नहीं है (निकाह करने में) तुम्हारे फ़रज़न्दांे (पोतों/नवासों) की बीवियां (बहुएं) जो फ़रज़न्द तुम्हारे सुल्ब से हैं, और दो बहनों से एक साथ निकाह करना सब हराम कर दिया गया है अलावा उसके जो इससे पहले हो चुका है (वह माफ़ है) बेशक ख़ु़दा बहुत बख़्शने वाला और मेहरबान है 
4 24 और शादी  शुदा औरतें तुम पर हराम है अलावा उनके जो (जेहाद मेें) तुम्हारी कनीज़ंे बन जायें (हराम नहीं हैं) ये ख़़्ाु़दा का खुला हुआ (तहरीरी) क़ानून है और इन औरतों के अलावा तुम्हारे लिए (और औरतें) हलाल हैं कि अपने माल(मेहर) के ज़रिये(पाक दामन) औरतों से रिश्ता करो इफ़्फ़त व पाक दामनी के साथ, बदकारी व जि़ना के साथ नहीं, पस जो भी औरतों से मुतअ करे उनकी मुअइयना मेहर दे दे और मेहर मुक़र्रर होने के बाद भी आपस मंे रज़ामन्दी हो तो कम या ज़्यादा करने करने में कोई गुनाह नहीं है बेशक अल्लाह (हर चीज़ से) वाकि़फ़ और मसलहतों का पहचानने वाला है 
4 25 और जिसके पास इस क़द्र माली वुसअत नहीं (माली हालत ख़राब) है कि मोमिन आज़ाद औरतों से निकाह करे तो वह मोमिना कनीज़ औरतों से (जो तुम्हारे क़ब्ज़े में हैं) अक़्द कर सकता है और ख़ु़दा तुम्हारे ईमान से ख़ूब बाख़बर है (ईमान की हैसियत से) तुम सब एक दूसरे से (का हमजिन्स) हो। इन कनीज़ों से उनके (वारिस) की इजाज़त से अक़्द करो और उन्हंे उनकी मेहर हुस्न सुलूक से दे दो। मगर उन्हीं कनीज़ों से अक़्द करो जो अफ़ीफ़ा (नेक) और पाक दामन हों न कि खुल्लम खुल्ला जि़ना करना चाहें और न चोरी छिपे दोस्ती (आशनाई) करने वाली हों। फिर जब अक़्द के बाद तुम्हारी पाबन्द हो गयीं तो अगर इसके बाद कोई बदकारी करे तो उनके (लौंडियों के) लिए आज़ाद औरतों की आधी सज़ा है। इन कनीज़ांे से अक़्द उनके लिए है जो बेसब्री (जि़ना) का ख़तरा रखते हों वरना सब्र करो तो तुम्हारे हक़ में (ज़्यादा) बेहतर है और अल्लाह ग़फ़़ूर (बड़ा बख़्शने वाला) और रहीम है 
4 26 अल्लाह तो चाहता है कि तुम्हारे लिए वाज़ेह एहकाम (हुक्म) साफ़-साफ़ बयान कर दे और तुम्हें तुमसे पहले वालों (अच्छे लोगों) के तरीक़े पर चलावे और तुम्हारी तौबा कु़बूल करे और वह (हर चीज़ का) ख़ूब जानने वाला और साहेबे हिकमत है 
4 27 ख़ु़दा चाहता है कि तुम्हारी तौबा कु़बूल करे और (नफ़्सानी) ख़्वाहिशात की पैरवी करने वाले चाहते हैं कि तुम्हें राहे हक़ से बहुत दूर कर दें 
4 28 ख़ु़दा चाहता है कि तुम्हारे बोझ (बार) में तख़्फ़ीफ़ (कमी) कर दे और इंसान तो कमज़ोर पैदा ही किया गया है 
4 29 ऐ ईमान वालों आपस में एक दूसरे के माल को नाहक़ ना खा जाया करो। मगर ये कि बाहेमी (आपसी) रज़ामन्दी से तिजारत के मामलात हो और ख़बरदार अपने जानों को क़त्ल न करो, अल्लाह तुम्हारे हाल पर बहुत मेहरबान है 
4 30 और जो ऐसा इक़दाम (ख़ुदकुशी)   ज़्ाुल्म व जौर के उनवान से करेगा (तो याद रहे) हम अनक़रीब उसे जहन्नुम की आग में झोंक देंगे और अल्लाह के लिए ये काम बहुत आसान है 
4 31 अगर तुम बड़े-बड़े गुनाहों (गुनाहे कबीरा) से जिनसे तुम्हें रोका गया है परहेज़ करते रहोगे तो हम दूसरे गुनाहों (सग़ीरा) की पर्दापोशी कर देंगे और तुम्हें बड़ी इज़्ज़त की मंजि़ल तक पहुंचा देंगे 
4 32 और ख़बरदार जो ख़ु़दा ने बाअज़ अफ़राद को बाअज़ से कुछ ज़्यादा (फ़ज़ीलत) दिया है इसकी हवस और आरज़्ा़ू न करना मर्दों के लिए वह हिस्सा है जो उन्होंने कमाया है और औरतों के लिए वह हिस्सा है जो उन्हांेने हासिल किया है। (ये और बात है कि) अल्लाह से उसके फ़ज़्ल (व करम) का सवाल करो कि वह बेशक हर शय (चीज़) का जानने वाला है 
4 33 और जो कुछ माँ बाप या अक़रेबा (रिश्तेदार) ने छोड़ा है हमने सबके लिए वली व वारिस मुक़र्रर कर दिये हैं और जिनसे तुमने अहद व पैमान किया है उनका (मुक़र्ररा) हिस्सा भी उन्हें दे दो बेशक अल्लाह हर शय (चीज़)  पर गवाह और निगराँ है 
4 34 मर्दों का औरतों पर क़ाबू है क्योंकि ख़ु़दा ने बाअज़ (मर्द)  को बाअज़ (औरत) पर फ़ज़ीलत दी है इसके अलावा चूँकि मर्दो ने औरतों पर अपना माल ख़र्च किया है, पस नेक बीबियां वहीं है जो शौहरों की इताअत करने वाली और उनकी गै़बत (पीठ पीछे) में भी जिस तरह उनकी ख़ु़दा ने हिफ़ाज़त की है वह भी करती हैं और जिन औरतों की नाफ़रमानी (सरकशी) का ख़तरा है पहले उन्हें समझाओ और अगर न मानें तो उन्हें ख़्वाबगाह में अलग कर दो (साथ सोना छोड़ दो) और (अगर न मानें तो) मारो (मगर इतना कि ख़ून न निकले और कोई अज़ो न टूटे) और फि़र इताअत करने लगें तो तुम भी कोई ज़्यादती की राह तलाश न करो कि ख़ु़दा सबसे बुलन्द (बरतर) और बुज़्ा़ुर्ग है 
4 35 और अगर दोनों के दरम्यान एख़तेलाफ़ (झगड़े) का अंदेशा है तो एक हकम (बिचैलिया) मर्द की तरफ़ से और एक औरत वालों की तरफ़ से मुक़रर्र करो फिर वह दोनों इस्लाह (सुधार) चाहेंगे तो ख़ु़दा उनके दरम्यान हम आहंगी (मेल मिलाप) पैदा कर देगा बेशक अल्लाह अलीम (वाकि़फ़) भी है और ख़बीर (ख़बरदार) भी 
4 36 और अल्लाह ही की इबादत करो और किसी शय (चीज़) को उसका शरीक न बनाओ और वाल्दैन के साथ नेक बरताव करो और क़राबतदारों (रिश्तेदारों) के साथ और यतीमों, मिसकीनों (मोहताजो), क़रीब के हमसाया (पड़ोसी),  दूर के हमसाया (पड़ोसी),  पहलू नशीन (पहलू में बैठने वाले), मुसाफि़र ग़्ाु़रबत ज़दा (ग़रीब),  ग़्ाु़लाम व कनीज़ (जो तुम्हारी मिल्कियत में हैं) सबके साथ नेक बरताव करो कि अल्लाह मग़रूर और शेख़ी बघारने वाले लोगों को पसन्द नहीं करता 
4 37 जो ख़ुद तो बुख़्ल (कंजूसी) करते हैं और दूसरों को भी बुख़्ल (कंजूसी) का हुक्म देते हैं और जो कुछ (माल) ख़ु़दा ने अपने फ़ज़्ल व करम से अता किया (दिया) है उस पर पर्दा डालते (छिपाते) हैं और हमने ऐसे ही नाशुक्रों के वास्ते रूसवाकुन (जि़ल्लत वाला) अज़ाब मुहैय्या कर रखा है 
4 38 और जो लोग अपने अमवाल (माल) को (लोगों को) दिखाने के लिए ख़र्च करते हैं और अल्लाह और आखि़रत पर ईमान नहीं रखते हैं उन्हंे मालूम होना चाहिए (ख़ुदा भी उनके साथ नहीं, उनका साथी तो शैतान है) कि जिसका शैतान साथी हो जाये तो वह (क्या ही) बदतरीन साथी है 
4 39 अगर ये अल्लाह और आखि़रत पर ईमान ले आते और जो अल्लाह ने बतौर रिज़्क़ दिया है उसमें से उसकी (ख़ुदा की) राह में ख़र्च करते तो उसमें उनका क्या नुक़सान था और अल्लाह तो हर एक को ख़ूब जानता है 
4 40 अल्लाह तो किसी पर ज़र्रा बराबर भी ज़्ाुल्म नहीं करता। अगर ज़र्रा बराबर भी किसी के पास नेकी होती है तो उसे दोगुना कर देता है और अपनी तरफ़ से अज्रे अज़ीम (बहुत बड़ा सवाब) अता करता है 
4 41 भला उस वक़्त क्या होगा जब हम हर गिरोह के गवाह के साथ बुलायेंगे (तलब करेंगे) और ऐ पैग़म्बर आपको हम उन सबका गवाह (की हैसियत से) बनाकर  बुलायेंगे 
4 42 उस दिन जिन लोगों ने कुफ्ऱ इखि़्तयार किया है और रसूल की नाफ़रमानी की, ये ख़्वाहिश करेंगे कि ऐ काश (वे पैवन्दे ख़ाक हो जाते और) उनके ऊपर से ज़मीन बराबर कर दी जाती (अफ़सोस उस दिन) वह लोग ख़ु़दा से किसी बात को छिपा भी न सकेंगेे 
4 43 ईमान वालों ख़बरदार नशे की हालत में नमाज़ के क़रीब भी न जाना ताकि जो कुछ मुॅह से कहो समझो भी तो और जनाबत (बड़ी नजासत) की हालत में भी मगर ये कि (मस्जिद के) रास्ते से गुज़र रहे हो जब तक गु़स्ल न कर लो और अगर बीमार हो या सफ़र की हालत में हो और किसी के पैख़ाना निकल आये, या औरतों से सोहबत की हो और पानी न मिले तो पाक सूखी मिट्टी से तयम्मुम (वुज़्ा़ू और ग़्ा़ुस्ले जनाबत का बदल) कर लो इस तरह कि अपने चेहरों और हाथों पर मसह (मस करना) कर लो बेशक ख़ु़दा बहुत (बड़ा) माफ़ करने वाला और बख़्शने वाला है 
4 44 (ऐ रसूल) क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा है जिन्हें किताब का थोड़ा सा हिस्सा दे दिया गया था (मगर वह लोग) गुमराही का सौदा करते हैं और चाहते हैं कि तुम भी सीधे रास्ते से बहक जाओ 
4 45 और अल्लाह तुम्हारे दुश्मनों को ख़ूब जानता है और वह तुम्हारी सरपरस्ती और मदद के लिए काफ़ी है 
4 46 यहूदियों में कुछ ऐसे  लोग भी हैं जो कलेमाते इलाही को (हेर-फेर करके) उनकी जगह से हटा देते हैं और कहते हैं कि हमने बात सुनी और नाफ़रमानी की (और तुम भी सुनो मगर ख़ुदा तुम्हें न सुनवाए) ये सब ज़बान के तोड़-मरोड़ और दीन में ताना ज़नी की बिना पर होता है हालांकि अगर ये लोग ये कहते हैं कि हमने सुना और इताअत की आप भी सुनिये और नज़रे करम कीजिए तो उनके हक़ में बेहतर और मुनासिब था लेकिन ख़ु़दा ने उनके कुफ्ऱ की बिना पर उन पर लानत (फिटकार) की है तो ये ईमान न लायेंगे मगर बहुत  क़लील (बहुत कम) तादाद में 
4 47 ऐ अहले किताब! हमारे नाजि़ल किये हुए कु़रआन पर भी ईमान ले आओ जो तुम्हारी किताब की तसदीक़ करने वाला है क़ब्ल इसके कि हम तुम्हारे (कुछ लोगों के) चेहरे बिगाड़ कर पुश्त (पीछे) की तरफ़ फेर दें या उन पर इस तरह लानत करें जिस तरह हमने असहाबे सब्त (हफ़ते वालों) पर लानत की है और अल्लाह का हुक्म तो बहरहाल नाफि़ज़ है 
4 48 अल्लाह इस बात को माॅफ़ नहीं कर सकता कि उसका शरीक क़रार दिया जाये और हाँं उसके सिवा जो गुनाह हो जिसको चाहे बख़्श (माफ़ कर) सकता है और जो भी उसका शरीक बनायेगा उसने बहुत बड़े गुनाह का तूफ़ान बांधा है 
4 49 (ऐ रसूल) क्या तुमने उन लोगांे को नहीं देखा जो अपने नफ़्स (जान) की पाकीज़गी का बड़ा इज़हार करते हैं। हालांकि अल्लाह जिसको चाहता है पाकीज़ा (मुक़द्दस) बनाता है और बन्दों पर तो धागे (बाल) के बराबर भी ज़्ाुल्म नहीं होगा 
4 50 (ऐ रसूल) ज़रा देखो तो उन्होंने ख़ु़दा पर कैसे-कैसे झूठे इल्ज़ाम लगाए हैं और उनके खुल्लम-खुल्ला गुनाह के लिए तो यही काफ़ी है 
4 51 (ऐ रसूल) क्या तुमने नहीं देखा कि जिन लोगों को किताब का कुछ हिस्सा दिया गया था (और फि़र) वह शैतान और बुतों का कलमा पढ़ने लगे और कुफ़्फ़ार (काफि़रों) की निस्बत बताते हैं कि ये लोग ईमान वालों से ज़्यादा सीधे रास्ते पर हैं 
4 52 यही वह लोग हैं जिन पर ख़ु़दा ने लाॅनत की है और जिस पर ख़ु़दा लाॅनत कर दे तो फिर आप उसका कोई मददगार न पायेंगे 
4 53 क्या दुनिया की सल्तनत में उनका भी कोई हिस्सा है कि लोगांे को भूसी बराबर भी नहीं देना चाहते हैं 
4 54 या वह उन लोगों से हसद (जलन) करते हैं जिन्हें ख़ु़दा ने अपने फ़ज़ल व करम से (क़ुरान) अता किया है (इसका क्या इलाज है) तो फिर हमने आले इब्राहीम (की अवलाद) को किताब व हिकमत (अक़्ल की बातें) और मुल्के अज़ीम भी अता किया है 
4 55 फिर इनमें से बाअज़ (कुरान पर) ईमान ले आये और बाअज़ ने इन्कार कर दिया और इन लोगों (की सज़ा) के लिए दहकता हुआ जहन्नुम ही काफ़ी है 
4 56 (याद रहे) जिन लोगों ने हमारी आयतों का इन्कार किया है हम उन्हें ज़रूर जहन्नुम की आग में झोंक देंगे और जब उनकी खालें जल कर गल जाएगी तो बदलकर हम दूसरी खालें पैदा कर देंगेें ताकि अज़ाब का मज़ा चखते रहें। बेशक ख़ु़दा सब (हर चीज़) पर ग़ालिब और साहेबे हिकमत है 
4 57 और जो लोग ईमान ले आये और उन्होंने नेक अमल (अच्छे-अच्छे काम) किये हम अनक़रीब ही उन्हें जन्नत (के ऐसे-ऐसे बाग़ों) में दाखि़ल करेंगे जिनके नीचे नहरें जारी होंगी और वह उन्हीं में हमेशा रहेंगें। वहाँ उनकी पाकीज़ा बीवियां होंगी और उन्हे हम घनी-घनी छांव में रखंेगें। 
4 58 (ऐ इमानदारों) अल्लाह तुम्हें हुक्म देता है कि लोगों की अमानतों को उनके अहल (मालिकान) तक पहुँचा दो और जब कोई फ़ैसला करो तो इन्साफ़ के साथ करो अल्लाह तुम्हें (क्या ही) बेहतरीन नसीहत करता है बेशक अल्लाह समीअ (सब कुछ सुनता) भी है और बसीर (देखता) भी है
4 59 ऐ ईमान वालों अल्लाह की इताअत करो और रसूल की और साहेबाने अम्र की इताअत करो जो तुम्हीं में से हैं फिर अगर आपस में किसी बात में एख़तेलाफ़ हो जाये तो उसे ख़ु़दा और रसूल से रूजु करो अगर तुम अल्लाह और रोज़े आखि़रत पर ईमान रखने वाले हो। यही तुम्हारे हक़ में ख़ैर (बेहतर) और अंजाम के एतबार से बेहतर है 
4 60 क्या आपने उन लोगों (की हालत) को नहीं देखा जिनका ख़याल ये है कि वह आप पर और आपके पहले नाजि़ल होने वाली किताबों पर ईमान ले आये हैं और फिर ये दिली तमन्ना हैं कि सरकश लोगों को अपना हाकिम बनाएं जबकि उन्हें हुक्म दिया गया है कि वह ताग़्ाू़त का इन्कार करें और शैतान तो यही चाहता है कि उन्हें गुमराही में बहुत दूर तक खींच कर ले जाये 
4 61 और जब उनसे कहा जाता है कि हुक्मे ख़ु़दा और उसके रसूल की तरफ़ आओ (रूजूअ करो) तो तुम मुनाफ़ेक़ीन को देखते होे कि वह तुमसे किस तरह मुँह फेर लेते हैं।
4 62 फि़र जब उन पर उनके आमाल (करतूत) की बिना पर कोई मुसीबत नाजि़ल होती है तो किस तरह वह आपके पास ख़ु़दा की क़सम खाते हुए आते हैं कि हमारा मक़सद तो सिर्फ़ नेकी करना और इत्तेहाद (मेल-मिलाप) पैदा करना था 
4 63 यह वह लोग हैं जिनके दिल का हाल कुछ ख़ु़दा ही ख़ूब जानता है लेहाज़ा आप उनसे किनारा कश रहें उन्हें नसीहत करें और उनके दिल पर असर करने वाली (पुर महल) महल-मौक़ै के मुताबिक़ बात करें 
4 64 और हमने कोई रसूल नहीं भेजा है मगर सिर्फ़ इसलिए कि हुक्मे ख़ु़दा से उसकी इताअत करें और काश जब उन लोगों ने अपने नफ़्स (जानों) पर ज़्ाुल्म किया था तो आपके पास चले आते और अपने गुनाहों के लिए ख़ुदा से माफ़ी मांगते अस्तग़फ़ार करते और रसूल आप भी उनकी मग़फि़रत चाहते तो बेशक ख़ु़दा को बड़ा ही तौबा कु़बूल करने वाला और मेहरबान पाते
4 65 पस आपके परवरदिगार की क़सम कि ये हर्गिज़ साहेबे ईमान न बन सकेंगे जब तक कि आपको अपने एख़तेलाफ़ात (झगड़ों) में अपना हकुम (पंच) न बनायें और फिर जब आप फै़सला कर दें तो अपने दिल में किसी तरह की तंगी का एहसास न करेें और आपके फ़ैसले के सामने सरापा (पूरी तरह) तस्लीम हो जायें 
4 66 (पैग़म्बर की आसान शरीयत के दौर में तो यह हाल है) और अगर हम इन मुनाफ़ेक़ीन पर (बनी इसराईल की तरह) फ़जऱ् कर देते कि अपने को क़त्ल कर डालें या शहर बदर हो जायें तो इनमें से चन्द अफ़राद के अलावा कोई अमल न करता हालांकि अगर ये इस नसीहत पर अमल करते तो उनके हक़ में बेहतर ही होता और उनको ज़्यादा सबात (फ़ायदा) हासिल होता 
4 67 और हम भी उन्हंे अपनी तरफ़ से अज्रे अज़ीम (बड़ा अच्छा बदला) अता करते 
4 68 और उन्हें सीधे रास्ते की ज़रूर हिदायत कर देते 
4 69 और जो भी अल्लाह और रसूल की इताअत (पैरवी) करेगा वह उन लोगों के साथ रहेगा जिन पर ख़ु़दा ने अपनी नेअमतें नाजि़ल की हैं अम्बिया (नबियों), सिद्दीक़ीन (सच्चे), शोहदा (शहीद) और सालेहीन (वलियों) और यही बेहतरीन रफ़क़ा (दोस्त) है 
4 70 ये अल्लाह की तरफ़ से फ़ज़्ल व करम है और ख़ु़दा हर एक के हालात के इल्म के लिए काफ़ी है 
4 71 ऐ ईमान वालों अपने तहफ़्फ़ुज़ (हिफ़ाज़त) का सामान सम्भाल लो और दस्ता-दस्ता निकलो या जैसा मौक़ा हो (इकट्ठा) सब निकल पड़ो 
4 72 तुम में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो (जिहाद में)  ज़रूर पीछे हटेंगें और अगर (अचानक) तुम पर कोई मुसीबत आ गई तो कहेंगे कि ख़ु़दा ने हम पर एहसान किया कि हम उन (मुसलमानों) के साथ हाजि़र नहीं थे 
4 73 और अगर तुम्हें ख़ु़दाई फ़ज़्ल व करम (से दुश्मनों से जीत) मिल गया तो इस तरह (अजनबी बन के जैसे) उनके दरम्यान कभी दोस्ती ही नहीं थी कहने लगे कि काश हम भी उनके साथ होते तो हम भी कामयाबी की अज़ीम मंजि़ल पर फ़ायज़ हो जाते 
4 74 अब ज़रूरत है कि राहे ख़ु़दा में वह लोग जेहाद करें जो जि़न्दगानी दुनिया को आखि़रत के एवज़ बेच डालते हैं और जो भी राहे ख़ु़दा में जेहाद करेगा वह क़त्ल हो जाये या ग़ालिब आ जाये दोनों सूरतों में हम उसे अज्रे अज़ीम (बड़ा सवाब) अता करेंगे 
4 75 (मुसलमानों!) आखि़र तुम्हें क्या हो गया है कि तुम अल्लाह की राह में और मक्के में उन कमज़ोर मर्दों, औरतों और बच्चों (को काफि़रों से छुड़ाने) के लिए जेहाद नही करते हो जिन्हें कमज़ोर बनाकर रखा गया है और जो बराबर दुआ करते हैं कि ख़ु़दाया हमें इस क़रिये से निजात दे दे जिसके बाशिन्दे ज़ालिम हैं और हमारे लिए कोई सरपरस्त और अपनी तरफ़ से मददगार क़रार दे दे 
4 76 बस (देखो) ईमान वाले हमेशा अल्लाह की राह में जेहाद करते हैं और जो काफि़र हैं वह हमेशा ताग़्ाूत (बुतों) की राह में लड़ते हैं लेहाज़ा तुम शैतान के साथियों से जेहाद करो (और कुछ परवाह ना करो) बेशक शैतान का मक्र बहुत कमज़ोर होता है 
4 77 क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिनसे कहा गया था कि हाथ रोके रखो और नमाज़ क़ायम करो, ज़कात अदा करो (तो बेचैन हो गये) और जब जेहाद वाजिब कर दिया गया तो एक गिरोह लोगों (दुश्मनों) से इस क़द्र डरता था जैसे ख़ु़दा से डरता हो या उससे भी कुछ ज़्यादा और ये कहते हैं कि ख़ु़दाया इतनी जल्दी क्यों जेहाद वाजिब कर दिया काश थोड़ी मुद्दत तक और टाल दिया जाता पैग़म्बर आप कह दीजिए कि दुनिया का सरमाया बहुत थोड़ा है और आखि़रत साहेबाने तक़्वा के लिए बेहतरीन जगह है और तुम पर धागे बराबर भी ज़्ाुल्म नहीं किया जायेगा 
4 78 तुम जहां भी रहोगे मौत तुम्हें पा ही लेगी चाहे मुस्तहकम कि़लों में क्यों न बन्द हो जाओ। उन लोगों का हाल ये है कि अच्छे हालात पैदा होते हैं तो कहते हैं कि ये ख़ु़दा की तरफ़ से है और मुसीबत आती है तो कहते हैं कि (ऐ रसूल) ये आपकी तरफ़ से है तो आप कह दीजिए कि सब ख़ु़दा की तरफ़ से है फिर आखि़र इस क़ौम को क्या हो गया है कि ये कोई बात समझती ही नहीं है 
4 79 (सच तो यह है कि) तुम तक जो भी अच्छाई और कामयाबी पहुंची है वह अल्लाह की तरफ़ से है और जो भी बुराई पहंुची है वह ख़ुद तुम्हारी बदौलत है और ऐ पैग़म्बर हमने आपको लोगों के लिए रसूल बनाया है और ख़ु़दा गवाही के लिए काफ़ी है 
4 80 जो रसूल की इताअत करेगा उसने अल्लाह की इताअत की और जो मुंह मोड़ लेगा तो हमने आपको इसका जि़म्मेदार बनाकर नहीं भेजा है 
4 81 और ये लोग पहले इताअत की बात करते हैं फिर जब आपके पास से बाहर निकलते हैं तो एक गिरोह अपने क़ौल के खि़लाफ़ तदबीरें करता हैं और ख़ु़दा उनकी इन बातों को लिख रहा है। आप उनकी परवाह न करें और ख़ु़दा पर भरोसा करंे और ख़ु़दा इस जि़म्मेदारी (कारसाज़ी) के लिए काफ़ी है 
4 82 क्या ये लोग कु़रआन में ग़ौर व फि़क्र नहीं करते हैं कि अगर वह ग़ैर ख़ु़दा की तरफ़ से होता तो उसमें बड़ा एख़तेलाफ़ होता 
4 83 और जब उनके पास अमन या ख़ौफ़ की ख़बर आती है तो फ़ौरन नश्र (मशहूर) कर देते हैं हालांकि अगर रसूल और साहेबाने अम्र की तरफ़ पलटा देते तो उनसे इस्तेफ़ादा करने वाले हक़ीक़त हाल का इल्म पैदा कर लेते और अगर तुम लोगों पर ख़ु़दा का फ़ज़्ल और उसकी रहमत न होती तो चन्द अफ़राद के अलावा सब शैतान की इत्तेबा (पैरवी)  कर लेते 
4 84 (ऐ रसूल) अब आप राहे ख़ु़दा में जेहाद करें और आप अपने नफ़्स (जान) के अलावा किसी के जि़म्मेदार नहीं है और मोमिनीन को जेहाद पर आमादा करें। अनक़रीब ख़ु़दा कुफ़्फ़ार के शर (बदमाशी) को रोक देगा और अल्लाह इन्तिहाई ताक़त वाला और सख़्त सज़ा देने वाला है 
4 85 जो शख़्स भी अच्छी (काम) सिफ़ारिश करेगा उसे उस (काम के सवाब) का हिस्सा मिलेगा और जो बुरे काम की सिफ़ारिश करेगा उसे उस (बुरे काम की सज़ा) में से हिस्सा मिलेगा और अल्लाह हर शय (चीज़) पर इक़तेदार रखने वाला है 
4 86 और जब तुम लोगों को किसी तरह कोई (सलाम) करे तो इससे बेहतर या कम से कम वैसा ही जवाब दो कि बेशक अल्लाह हर शय का हिसाब करने वाला है 
4 87 अल्लाह वह परवरदिगार है जिसके अलावा कोई माबूद (क़ाबिले इबादत) नहीं है। वह तुम सबको रोज़े क़यामत जमा करेगा और इसमें कोई शक नहीं है और अल्लाह से ज़्यादा सच्ची बात कौन करने वाला है 
4 88 (मुसलमानों!) आखि़र तुम्हें क्या हो गया है कि मुनाफ़ेक़ीन के बारे में दो गिरोह हो गये हों जबकि अल्लाह ने उनके आमाल की बिना पर उन्हें (उनकी अक़्लों को) उलट दिया है क्या तुम उसे हिदायत देना चाहते हो ख़ु़दा ने जिसे गुमराही पर छोड़ दिया है। हालांकि जिसे ख़ु़दा गुमराही में छोड़ दे उसके लिए (बचत का) तुम कोई रास्ता नहीं निकाल सकते 
4 89 ये मुनाफ़ेक़ीन चाहते हैं कि तुम भी उनकी तरह काफि़र हो जाओ ताकि तुम उनके बराबर हो जाओ तो ख़बरदार तुम उन्हें अपना दोस्त न बनाना जब तक राहे ख़ु़दा में हिजरत न करें फिर अगर ये मुँह मोड़ें तो उन्हें गिरफ़्तार कर लो और जहां पा जाओ क़त्ल कर दो और ख़बरदार इनमें से किसी को अपना दोस्त और मददगार न बनाना 
4 90 अलावा उनके जो किसी ऐसी क़ौम से मिल जायें जिनके और तुम्हारे दरम्यान सुलह का मुआहेदा हो चुका हो या वह तुम्हारे पास दिल तंग होकर आ जायें कि न तुम से जंग करेंगे और न अपनी क़ौम से और अगर ख़ु़दा चाहता तो उनको तुम्हारे ऊपर मुसल्लत (हावी) कर देता और वह तुम से भी जंग करते लेहाज़ा अगर तुमसे अलग रहें और जंग न करें और सुलेह का पैग़ाम दें तो ख़ु़दा ने तुम्हारे लिए उनके ऊपर आज़ार (तकलीफ़) पहुँचाने की कोई सबील नहीं की है। 
4 91 अनक़रीब तुम एक और जमाअत को पाओगे जो चाहते हैं कि तुम से भी महफ़ूज़ (अमन में) रहें और अपनी क़ौम से भी (अमन में रहें)। ये जब भी फि़तने (जंग) की तरफ़ बुलाये जाते हैं उलटे उसमें औंधे मंुह गिर पड़ते हैं लेहाज़ा ये अगर तुमसे अलग न हों और सुलह का पैग़ाम भी न दें और (जंग से) हाथ भी न रोकें तो उन्हें गिरफ़्तार कर लो और जहां पाओ क़त्ल कर दो और यही वह लोग हैं कि जिन पर तुम्हें खुला ग़ल्बा (फ़तेह) अता किया गया है 
4 92 और किसी मोमिन को ये हक़ नहीं है कि वह किसी मोमिन को क़त्ल कर दे मगर ग़लती (धोके) से और जो (मोमिन) ग़लती (धोके) से (मोमिन को) क़त्ल करे उसे चाहिए कि एक ग़्ाु़लाम आज़ाद करे और मक़तूल के वारिसों को दीयत (ख़ूंबहा) दे मगर ये कि वह माॅफ़ कर दें फि़र अगर मक़तूल ऐसी क़ौम से है जो तुम्हारे दुश्मन है और (इत्तेफ़ाक़ से) ख़ुद क़ातिल मोमिन है तो सिर्फ़ एक मुसलमान ग़्ाु़लाम आज़ाद करना होगा और अगर ऐसी क़ौम का फ़र्द है जिसका तुम से मुआहेदा (हो चुका) है तो उसके अहल (वारिस) को दीयत (ख़ूँबहा) देना होगा और एक मोमिन ग़्ाुलाम आज़ाद करना (वाजिब) होगा और ग़्ाुलाम न मिले तो उसका कफ़्फ़ारा दो माह के मुसलसल रोज़े रखना होंगे यही अल्लाह की तरफ़ से तौबा का रास्ता है और अल्लाह सबकी नीयतों से बा ख़बर है और अपने एहकाम में साहेबे हिकमत है 
4 93 और जो भी किसी मोमिन को क़सदन (जान बूझकर) क़त्ल कर देगा उसकी जज़ा जहन्नुम है। उसी में उसे हमेशा रहना है और उस पर ख़ु़दा का ग़ज़ब भी है और वह लाॅनत भी करता है और उसने इसके लिए अज़ाबे अज़ीम (बड़ा) भी तय्यार कर रखा है 
4 94 ऐ ईमान वालों जब तुम राहे ख़ु़दा में जेहाद के लिए सफ़र करो तो (क़त्ल में जल्दी न करो) पहले तहक़ीक़ कर लो और ख़बरदार जो तुम्हें इस्लाम की दावत दे, उससे ये ना कहना कि तू मोमिन नहीं है कि इस तरह तुम दुनिया के आसासे की तमन्ना रखते हो (अगर ऐसा है) तो ख़ु़दा के पास बहुत सी ग़नीमतें (माल) हैं। आखि़र तुम भी तो पहले ऐसे ही काफि़र थे। ख़ु़दा ने तुम पर एहसान किया कि तुम मुसलमान हो गये। ग़रज़ इक़दाम से पहले ख़ूब तहक़ीक़ (छानबीन) कर लिया करो कि ख़ु़दा तुम्हारे आमाल से ख़ूब बाख़बर है 
4 95 अंधे बीमार और माज़्ाूर अफ़राद के अलावा घर बैठे रहने वाले हरगि़ज़ साहेबाने ईमान लोगों के बराबर नहीं हो सकते जो राहे ख़ु़दा में अपने जान व माल से जेहाद करने वाले हैं। अल्लाह ने अपने माल और जान से जेहाद करने वालों को बैठे रहने वालों पर (दर्जे के हिसाब से फ़ज़ीलत) इम्तियाज़ एनायत की हैं और हर एक (मोमिन) से नेकी का वादा किया है और मुजाहेदीन को बैठे रहने वालों के मुक़ाबले में अज्रे अज़ीम अता किया है 
4 96 यानी उसकी तरफ़ से दरजेे, मग़फ़ेरत और रहमत है और वह बड़ा बख़्शने वाला और मेहरबान है 
4 97 बेशक जिन लोगों को मलायका ने इस हाल में उठाया कि वह अपने नफ़्स पर ज़्ाुल्म कर रहे थे उनसे फ़रिश्तों ने पूछा कि तुम किस (ग़फ़लत की) हालत में थे। उन्हांेने कहा कि हम ज़मीन में कमज़ोर थे तो फिर मलायका ने कहा कि क्या ख़ुदा की ज़मीन वसी (लम्बी चैड़ी) नहीं थी कि तुम हिजरत कर जाते। बस ऐसे ही लोगों का ठिकाना जहन्नुम है और वह बहुत बुरा ठिकाना है 
4 98 अलावा उन कमज़ोर मर्दों, औरतों और बच्चों के जिनके इखि़्तयार में कोई तद्बीर न थी और वह कोई रास्ता नही निकाल सकते थे 
4 99 उम्मीद है यही वह लोग हैं जिनको अनक़रीब ख़ु़दा माॅफ़ कर देगा कि वह बड़ा माॅफ़ करने वाला और बख़्शने वाला है 
4 100 और जो भी राहे ख़ु़दा में हिजरत करेगा वह ज़मीन में (चैन से रहने-सहने के) बहुत से ठिकाने और वुसअत पायेगा और जो अपने घर से ख़ु़दा और रसूल की तरफ़ हिजरत के इरादे से निकलेगा इसके बाद रास्ते में उसे मौत भी आ जाये तो उसका अज्र (सवाब) अल्लाह पर लाजि़म है और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है 
4 101 और मुसलमानों जब तुम ज़मीन में सफ़र करो तो तुम्हारे लिए कोई हर्ज नहीं है कि अपनी नमाज़ंे क़स्र कर दो अगर तुम्हें कुफ़्फ़ार के हमला कर देने का ख़ौफ़ है, यक़ीनन कुफ़्फ़ार तुम्हारे खुले दुश्मन हैं 
4 102 ऐ रसूल! जब (लड़ाई चल रही हो) और आप मुजाहेदीन के दरम्यान हों और उनके लिए नमाज़ क़ायम करंे तो उनकी एक जमाअत आपके साथ नमाज़ पढ़े और अपने असलहे साथ रखे इसके बाद जब ये सजदा कर चुकें तो ये पुश्त पनाह बन जायें और दूसरी जमाअत जिसने नमाज़ नहीं पढ़ी है वह आकर शरीके नमाज़ हो जाये और अपने असलहे और बचाव के सामान अपने साथ रखे। कुफ़्फ़ार की ख़्वाहिश यही है कि तुम अपने साज़ व सामान और असलहे से ग़ाफि़ल हो जाओ तो ये एकबारगी हमला कर दें, हाँ अगर बारिश या बीमारी की वजह से असलहा न उठा सकते हो तो कोई हर्ज नहीं है कि असलहा रख दो लेकिन बचाव का सामान साथ रखो। और अल्लाह ने तो काफि़रों के लिए रूसवाकुन अज़ाब मुहैय्या कर रखा है 
4 103 इसके बाद जब ये नमाज़ तमाम हो जाये तो खड़े, बैठे, लेटे हमेशा ख़ु़दा को याद करते रहो और जब इत्मीनान हासिल हो जाये तो बाक़ायदा नमाज़ अदा करो कि नमाज़ साहेबाने ईमान के लिए वक़्त मुअय्यन के साथ फ़रीज़ा है 
4 104 और ख़बरदार दुश्मनों का पीछा करने में सुस्ती से काम न लेना कि जिस तरह जंग में तुम्हें तकलीफ़ पहुॅंचती है तुम्हारी तरह कुफ़्फ़ार को भी तकलीफ़ पहुंचती है और तुम अल्लाह से वह उम्मीदें रखते हो जो उन्हें हासिल (नसीब) नहीं है और अल्लाह हर एक की नियत का जानने वाला और साहेबे हिकमत है 
4 105 ऐ रसूल! हमने आपकी तरफ़ ये बर हक़ किताब इसलिए नाजि़ल की है कि तुम लोगों के दरम्यान हुक्मे ख़ु़दा के मुताबिक़ फ़ैसला करें और ख़्यानत कारों के तरफ़दार न बनें 
4 106 और अल्लाह से उम्मत के लिए अस्तग़फ़ार कीजिए कि अल्लाह बड़ा ग़्ाफ़ूर (बख़्शने वाला) व रहीम है 
4 107 और ख़बरदार ऐ रसूल! जो लोग अपने नफ़्स से ख़यानत करते हैं उनकी तरफ़ से दिफ़ा न कीजिएगा कि ख़ु़दा ख़्यानतकार (दग़ाबाज़ों) मुजरिमों (गुनाहगारों) को हर्गिज़ दोस्त नहीं रखता है 
4 108 ये लोग इंसानों की नज़रों से अपनी (शरारत) को छिपाते हैं और ख़ु़दा से नहीं छिपा सकते हैं जबकि वह तो उस वक़्त भी उनके साथ रहता है जब वह (रातों को) नापसंदीदा बातों की साजि़श करते हैं (जिनसे ख़ुदा राज़ी नही है) और ख़ु़दा उनके तमाम करतूतों को घेरे में लिये हुए है 
4 109 मुसलमानों! होशियार हो जाओ भला (ज़रा सी) जि़न्दगानी दुनिया में उनकी तरफ़ से लड़ने खड़े हो गए तो अब रोज़े क़यामत उनकी तरफ़ से अल्लाह से कौन लड़ेगा और कौन उनका वकील होगा
4 110 और जो भी किसी के साथ बुराई करेगा या किसी तरह अपने नफ़्स पर ज़्ाुल्म करेगा उसके बाद अस्तग़फ़ार करेगा तो ख़ु़दा को ग़फ़़ूर (बख़्शने वाला) और रहीम पायेगा 
4 111 और जो क़सदन (जान बूझकर) गुनाह करता है वह अपने ही खि़लाफ़ (नुक़सान) करता है और ख़ु़दा तो सबका जानने वाला है और साहेबे हिकमत भी है 
4 112 और जो शख़्स भी कोई ग़लती या गुनाह करके दूसरे बेगुनाह के सर थोप दे तो वह बहुत बड़े बोहतान (बेक़ुसूर पर ऐब लगाना) और खुले गुनाह का जि़म्मेदार होता है 
4 113 (ऐ रसूल) अगर आप पर फ़ज़्ले ख़ु़दा और रहमते परवरदिगार का साया न होता तो उनकी एक जमाअत ज़रूर आपको बहकाने (गुमराह करने) का इरादा करती हालांकि वह लोग आप अपने को गुमराह कर रहे हैं। और ये लोग आपको कोई तकलीफ़ नहीं पहुंचा सकते और अल्लाह ने आप पर किताब और हिकमत नाजि़ल की है और आपको उन तमाम बातों का इल्म दे दिया है जिनका इल्म न था और आप पर ख़ु़दा का बहुत बड़ा फ़ज़्ल है 
4 114 उन लोगों की अकसर राज़ की बातों में कोई ख़ैर नहीं है मगर वह शख़्स जो किसी को सदक़ा दे, कारे ख़ैर करे या लोगों के दरम्यान इस्लाह व मेल मिलाप का हुक्म दे और जो भी ये सारे काम रज़ाए इलाही की तलब में अंजाम देगा हम उसे अज्रे अज़ीम अता करेंगे 
4 115 और जो शख़्स भी हिदायत के वाज़ेह हो जाने के बाद रसूल से एख़तेलाफ़ करेगा और मोमिनीन के रास्ते के अलावा कोई दूसरा रास्ता इखि़्तयार करेगा उसे हम उधर ही फेर देंगे जिधर वह फिर गया है और आखि़र में जहन्नुम में झोंक देंगे जो बद्तरीन ठिकाना है 
4 116 ख़ु़दा इस बात को माॅफ़ नहीं कर सकता कि उसका (किसी को) शरीक क़रार दिया जाये और उसके अलावा (जो गुनाह हो तो) जिसको चाहे बख़्श सकता है और जो ख़ु़दा का शरीक क़रार देगा वह (भटक कर) गुमराही में बहुत दूर तक चला गया है
4 117 ये लोग ख़ु़दा को छोड़कर बस औरतों की ही परस्तिश करते हैं और (यह सच है) कि यह सरकश शैतान की परस्तिश (पूजा) करते हैं 
4 118 जिस पर ख़ु़दा की लाॅनत है और उसने ख़ु़दा से भी कह दिया कि मैं तेरे बन्दों में से कुछ ख़ास लोगो को ज़रूर ले लूॅगा
4 119 और उन्हें फिर ज़रूर गुमराह करूंगा। (बड़ी-बड़ी) उम्मीदें दिलाऊंगा और ऐसे एहकाम दूॅंगा कि (बुतों के लिए) वह जानवरों के कान चीड़-फाड़ डालेगें फिर हुक्म दूँगा तो अल्लाह की मुक़र्रर (बनाई हुई) सूरत को ज़रूर तब्दील कर देंगे और जो ख़ु़दा को छोड़कर शैतान को अपना वली और सरपरस्त बनायेगा वह खुले हुए ख़सारा में रहेगा 
4 120 शैतान उनसे अच्छे वादे करता है और उन्हें (बड़ी-बड़ी) उम्मीदें भी दिलाता है और वह जो भी वादा करता है वह धोखे के सिवा कुछ नहीं है
4 121 यही तो वह लोग हैं जिनका अंजाम जहन्नुम है और वह इससे छुटकारा भी नहीं पा सकते हैं 
4 122 और जो लोग ईमान लाये और नेक आमाल किये हम अनक़रीब उन्हें उन जन्नत के हरे भरे बाग़ों में दाखि़ल करेंगे जिनके (दरख़्तों के) नीचे नहरें जारी होंगी वह इनमें हमेशा-हमेशा रहेंगे। ये ख़ु़दा का बरहक़ (सच्चा) वादा है और ख़ु़दा से ज़्यादा रास्तगो (अपनी बात में सच्चा) कौन हो सकता है 
4 123 कोई काम न तुम्हारी उम्मीदों से बनेगा न अहले किताब की उम्मीदों से। जो भी बुरा काम करेगा उसकी सज़ा बहरहाल मिलेगी (जैसा काम वैसा दाम) और ख़ु़दा के अलावा उसे कोई सरपरस्त और मददगार नहीं मिल सकता है 
4 124 और जो नेक काम करेगा चाहे वह मर्द हो या औरत बशर्त ये कि वह साहेबे ईमान (ईमान वाला) भी हो। इन सबको जन्नत में दाखि़ल किया जायेगा और उन पर ज़र्रा बराबर ज़्ाुल्म नहीं किया जायेगा 
4 125 और उससे अच्छा दीनदार कौन हो सकता है जो अपना रूख़ ख़ु़दा की तरफ़ रखे और नेक किरदार भी हो और मिल्लते इब्राहीम का इत्तेबा (पैरवी) करे जो बातिल (गुमराहों) से कतराने वाले थे और अल्लाह ने इब्राहीम (अ0 स0) को अपना ख़लील और ख़ालिस दोस्त बनाया है 
4 126 और ज़मीन व आसमान की कुल कायनात अल्लाह ही की है और अल्लाह हर शय (चीज़) पर अहाता किये हुए है 
4 127 ऐ पैग़म्बर ये लोग आपसे यतीम लड़कियों (से निकाह) के बारे में हुक्मे ख़ु़दा (फ़तवा) दरयाफ़्त करते हैं तो आप कह दीजिए कि ख़ुदा तुम्हें उनसे निकाह की इजाज़त देता है और जो किताब में (मनाही का पहले) हुक्म बयान किया जा चुका है वह असल में उन यतीम लड़कियों के बारे में है जिनको तुम उनका मुअइयना हक़ नहीं देते हो और चाहते हो कि (यूॅ हीं) उनसे निकाह करके सारा माल रोक लो और उन कमज़ोर बच्चों के बारे में (हुक्म है वह यह) कि यतीमों के बारे में इंसाफ़ क़ायम करो और (यक़ीन रखो) जो भी तुम कारे ख़ैर करोगे ख़ु़दा उसका बख़ूबी जानने वाला है 
4 128 और अगर कोई औरत शौहर से, हुक़ूक़ अदा न करने या उसकी किनाराकशी (बेतवज्ही) से तलाक़ का ख़तरा महसूस करे तो दोनों के लिए कोई हर्ज नहीं है कि किसी तरह आपस में सुलह कर लें कि सुलाह में बेहतरी है और बुख़्ल (कंजूसी) तो हर नफ़्स के रहता है और अगर तुम अच्छा बरताव करोगे और ज़्यादती से बचोगे तो ख़ु़दा तुम्हारे आमाल से ख़ूब बाख़बर है (और वही तुम्हे अज्र देगा)
4 129 और तुम कितना ही क्यों न कोशिश करो औरतों के (अपनी कई बीवियों के) दरम्यान मुकम्मल इंसाफ़ नहीं कर सकते हो लेकिन ऐसा भी न करो बिल्कुल एक तरफ़ झुक जाओ और दूसरी को मोअल्लक़ (बीच में लटकी हुई) छोड़ दो और अगर इस्लाह कर लो और तक़वा इखि़्तयार करो (ज़्यादती से बचे रहो) तो अल्लाह बहुत बख़्शने वाला और मेहरबान है 
4 130 और अगर दोनों अलग ही होना चाहें तो ख़ु़दा दोनों को अपने ख़ज़ाने की वुसअत (फैलाव) से ग़नी (मालामाल) और बेनियाज़ बना देगा कि अल्लाह बड़ा गंुजाइश वाला है और साहेबे हिकमत भी है 
4 131 और जो कुछ ज़मीन व आसमान की कुल कायनात है सब अल्लाह ही की है और हमने तुमसे पहले अहले (आसमानी) किताब को और अब तुमको ये वसीयत की है कि अल्लाह (की नाफ़रमानी) से डरते रहो और अगर कुफ्ऱ इखि़्तयार करोगे तो (याद रहे) ख़ु़दा का कोई नुक़सान नहीं है। ज़मीन व आसमान की कुल कायनात अल्लाह ही की है और वह बेनियाज़ (बेपरवाह) भी है और क़ाबिले हम्द (इबादत) व सताईश (तारीफ़) भी है 
4 132 और जो कुछ ज़मीन व आसमान की कुल मिल्कियत है वह अल्लाह ही की है और वह तो सबकी निगरानी और किफ़ालत के लिए काफ़ी है 
4 133 वह चाहे तो तुम सबको (दुनिया से) उठा ले जाये और (तुम्हारे बदले) दूसरे लोगों को ले आये (ला बसाए)  और वह हर शय पर क़ादिर (क़ुदरत रखता) है 
4 134 जो इंसान (अपने किए का) दुनिया ही में सवाब और बदला चाहता है (उसे मालूम होना चाहिए) कि ख़ु़दा के पास दुनिया और आखि़रत दोनों का ईनाम (अज्र) मौजूद है और ख़ुदा तो हर एक का सुनने वाला और देखने वाला है 
4 135 ऐ ईमान वालों।़ (मज़बूती से) अद्ल व इंसाफ़ पर क़ायम रहो और अल्लाह के लिए गवाही दो चाहे यह गवाही अपनी ज़ात या अपने वाल्दैन और अक़रेबा (रिश्तेदारों) के खि़लाफ़ ही क्यों न हो। चाहे मालदार हो या मोहताज अल्लाह तुम से ज़्यादा उन पर मेहरबान है लेहाज़ा ख़बरदार ख़्वाहिशाते नफ़्स की इत्तेबा (पैरवी) न करो ताकि इंसाफ़ कर सको और अगर तोड़-मरोड़ के गवाही दोगे या बिल्कुल इंकार करोगे तो याद रखो कि अल्लाह तुम्हारे (ऐसे) आमाल से ख़ूब बाख़बर है 
4 136 ईमान वालो! अल्लाह, रसूल और वह किताब जो रसूल पर नाजि़ल हुई है और वह किताब जो उससे पहले नाजि़ल हो चुकी है सब पर ईमान ले आओ और याद रखो कि जो ख़ु़दा, मलायका, उसकी किताबों (और उसके) रसूलों और रोज़े क़यामत का इंकार करेगा वह यक़ीनन (राहे रास्त) से गुमराही में भटककर बहुत दूर निकल गया 
4 137 जो लोग ईमान लाये और फिर कुफ्ऱ इखि़्तयार कर लिया फिर ईमान ले आये और फिर काफि़र हो गये और फिर कुफ्ऱ में शदीद व मज़ीद (बढ़ते चले गए) हो गये तो ख़ु़दा हर्गिज़ उन्हें माॅफ़ नहीं कर सकता और न सीधे रास्ते की हिदायत दे सकता है 
4 138 आप उन मुनाफ़ेक़ीन (दिल में कुफ्ऱ छिपाये हुए लोग) को दर्दनाक अज़ाब की बशारत (पैग़ाम) दे दें 
4 139 जो लोग मोमिनीन को छोड़कर कुफ़्फ़ार को अपना वली और सरपरस्त बनाते हैं। क्या ये उनके पास इज़्ज़त तलाश कर रहे हैं जबकि सारी इज़्ज़त सिर्फ़ अल्लाह के लिए (ख़ास) है 
4 140 और उसने किताब में ये बात नाजि़ल कर दी है कि जब आयाते इलाही के बारे में ये सुनो कि उनका इंकार और इस्तेज़ा (मज़ाक़) हो रहा है तो ख़बरदार उनके साथ हर्गिज़ न बैठना जब तक वह दूसरी बातों में मसरूफ़ न हो जायें वरना तुम भी उन्हीं के मिस्ल हो जाओगे (इसमें शक नहीं है कि) ख़ु़दा कुफ़्फ़ार और मुनाफ़ेक़ीन सबको जहन्नुम में एक साथ इकट्ठा करने वाला है 
4 141 ये मुनाफ़ेक़ीन तुम्हारे हालात का इन्तिज़ार करते रहते हैं कि तुम्हें ख़ु़दा की तरफ़ से फ़तेह नसीब हो तो कहें क्या हम तुम्हारे साथ नहीं थे और अगर कुफ़्फ़ार को (फ़तेह का) कोई हिस्सा मिला तो उनसे कहेंगे कि क्या हम तुम पर ग़ालिब नहीं आ गये थे और तुम्हें मोमिनीन से बचा नहीं लिया था (मुनाफि़कों) तो अब ख़ु़दा ही क़यामत के दिन तुम्हारे दरम्यान फ़ैसला करेगा और ख़ु़दा कुफ़्फ़ार के लिए मोमेनीन पर ऊॅंचा रहने की हरगि़ज कोई राह नहीं दे सकता
4 142 बेशक मुनाफ़ेक़ीन (अपने ख़्याल में) ख़ु़दा को धोखा देना चाहते हैं और ख़ु़दा ख़ुद उनको धोखे में रखने वाला है और ये नमाज़ के लिए उठते भी हैं तो सुस्ती के साथ। लोगों को दिखाने के लिए अमल करते हैं और अल्लाह को बहुत कम (बस यूॅ ही सा) याद करते हैं 
4 143 ये कुफ्ऱ व इस्लाम के दरम्यान हैरान व सरगिरदां (अधड़ में पड़े हैं) न इनकी तरफ़ हंै और न उनकी तरफ़ और जिसको ख़ु़दा गुमराही में छोड़ दे उसे कोई रास्ता न मिलेगा 
4 144 ईमान वालों ख़बरदार मोमिनीन को छोड़कर कुफ़्फ़ार को अपना वली और सरपरस्त न बनाना क्या तुम चाहते हो कि अल्लाह का खुला हुआ इल्ज़ाम अपने ऊपर क़रार दे लो 
4 145 बेशक मुनाफ़ेक़ीन जहन्नुम के सबसे निचले तबक़े में होंगे और (ऐ रसूल) आप वहां उनके लिए किसी को उनका मददगार न पाओगेे 
4 146 अलावा उन लोगों के जो (निफ़ाक़) से तौबा कर लें और अपनी इस्लाह कर लें और ख़ु़दा से वाबस्ता हो जायें और दीन को ख़ालिस अल्लाह के लिए इखि़्तयार करें तो ये साहेबाने ईमान के साथ होंगे और अनक़रीब अल्लाह इन साहेबाने ईमान को अज्र अज़ीम अता करेगा 
4 147 ख़ु़दा तुम पर अज़ाब करके क्या करेगा अगर तुम उसके शुक्रगुज़ार और साहेबे ईमान बन जाओ और वह तो हर एक के शुक्रिया का कु़बूल करने वाला और हर एक की नियत का जानने वाला है 
4 148 अल्लाह मज़लूम के अलावा किसी की तरफ़ से अलल एलान बुरा कहने को पसन्द नहीं करता (मगर मज़लूम ज़ालिम की बुराइयां कर सकता है) और अल्लाह हर बात का सुनने वाला और तमाम हालात का जानने वाला है 
4 149 तुम किसी ख़ैर (नेकी) का इज़्ाहार (ज़ाहिर) करो या इसे मख़्फ़ी (छिपा कर) रखो या किसी की बुराई से दरगुज़र करो तो अल्लाह भी बड़ा दर गुज़र करने वाला और साहेबे इखि़्तयार है 
4 150 बे शक जो लोग अल्लाह और रसूलों का इन्कार करते हैं और ख़ु़दा और उसके रसूल के दरम्यान तफ़रेक़ा (जुदाई) पैदा करना चाहते हैं और ये कहते हैं कि हम बाज़ (कुछ पैग़म्बर) पर ईमान लायेंगे और बाज़ (कुछ) का इन्कार करेंगे और चाहते हैं कि ईमान व कुफ्ऱ के दरम्यान एक नया रास्ता निकालें 
4 151 तो दर हक़ीक़त यही लोग काफि़र हैं और हमने काफि़रों के लिए बड़ा रूस्वाकुन (जि़ल्लत वाला) अज़ाब मुहैय्या कर रखा है 
4 152 और जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान ले आये और उनके दरम्यान किसी में तफ़रेक़ा (जुदाई) नहीं पैदा करते तो ख़ु़दा अनक़रीब उन्हें इसका अज्र (सवाब) अता करेगा और वह तो बड़ा बख़्शने वाला और मेहरबान है 
4 153 ऐ पैग़म्बर ये अहले किताब (यहूदी) आपसे जो मुतालेबा (मांग) करते हैं कि उन पर आसमान से कोई किताब नाजि़ल कर दीजिए (तो आप कुछ ख़्याल न करें) उन्होंने मूसा से तो इससे ज़्यादा संगीन सवाल किया था जब कि हमें अल्लाह को अलल ऐलान दिखला दीजिए तो उनकी शरारत की बिना पर उन्हें एक बिजली ने ले डाला था फिर उन्होंने हमारी वाज़ेह निशानियों के आ जाने के बावजूद गोसाला बछड़े को (ख़ुदा) बना लिया तो हमने इससे भी दरगुज़र किया और मूसा को खुला हुआ ग़लबा (सल्तनत) अता कर दिया 
4 154 और हमने उनके अहद की खि़लाफ़ वजऱ्ी की बिना पर (उनके सरों पर) कोहेतूर को बुलन्द कर दिया और उनसे कहा कि (शहर के) दरवाज़े से सजदा करते हुए दाखि़ल हो और उनसे (यह भी) कहा कि ख़बरदार शम्बे के मामले में (सनीचर के दिन हमारे हुक्म से) ज़्यादती न करना और उनसे बड़ा मज़बूत अहद ले लिया 
4 155 पस इनके अहद को तोड़ देने, आयाते ख़ु़दा के इन्कार करने और अम्बिया को नाहक़ क़त्ल कर देने और (इतराकर) ये कहने की बिना पर कि हमारे दिलों पर (फि़तरतन) गि़लाफ़ चढ़े हुए हैं हालांकि ऐसा नहीं है बल्कि ख़ु़दा ने इनके कुफ्ऱ की बिना पर इनके दिलों पर मोहर लगा दी है और कुछ लोगो के अलावा कोई ईमान नहीं लाता 
4 156 और इनके कुफ्ऱ और मरियम पर अज़ीम बोहतान लगाने की बिना पर 
4 157 और उनके ये कहने से कि हमने ईसा मसीह बिन मरियम (मरियम के बेटे) रसूल अल्लाह को क़त्ल कर दिया है हालांकि इन्होंने न उन्हें क़त्ल ही किया है और न सूली ही दी है बल्कि दूसरे को उनकी शबीह (शक्ल से मिलता-जुलता हुआ) बना दिया गया था और जिन लोगों ने ईसा के बारे में एख़तेलाफ़ किया है वह सब मंजि़ले शक में है और किसी को गुमान (अटकल) की पैरवी के अलावा कोई इल्म नहीं है और इन्होंने यक़ीनन उन्हें क़त्ल नहीं किया है
4 158 बल्कि ख़ु़दा ने अपनी तरफ़ उठा लिया है और ख़ु़दा ज़बरदस्त तदबीर वाला और साहेबे हिकमत भी है (जब इमाम मेंहदी (अ0स0) ज़हूर करेगें तो हज़रत ईसा आसमान से उतरेगें)
4 159 और कोई अहले किताब में ऐसा नहीं होगा जो उनकी मौत से पहले इन पर ईमान न लाये और क़यामत के दिन ख़ुद ईसा उसके गवाह होंगे 
4 160 पस इन यहूदियों के ज़्ाुल्म की बिना पर हमने जिन पाकीज़ा चीज़ों को हलाल कर रखा था उन पर हराम कर दिया और उनके बहुत से लोगों को राहे ख़ु़दा से रोकने की बिना पर भी 
4 161 और सूद लेने की बिना पर जिससे उन्हें रोका गया था और नाजायज़ तरीक़े से लोगों का माल खाने की बिना पर......और हमने काफि़रों के लिए बड़ा दर्दनाक अज़ाब मुहैय्या किया है 
4 162 लेकिन इनमें से जो लोग इल्म (दीन) में रसूख़ रखने वाले (ज्ञानी) और ईमान वाले हैं वह उन सब पर ईमान रखते हैं जो किताब तुम पर नाजि़ल हुई है या तुमसे पहले नाजि़ल हो चुकी है और बिल्ख़ु़सूस पाबन्दी से नमाज़ क़ायम (पढ़ने) करने वाले और ज़कात देने वाले और आखि़रत पर ईमान रखने वाले हैं हम अनक़रीब उन सबको अज्रे अज़ीम अता करेंगे 
4 163 (ऐ रसूल!) हमने आपकी तरफ़ भी उसी तरह वही नाजि़ल की है जिस तरह नूह और उनके बाद के अम्बिया की तरफ़ वही की थी और इब्राहीम, इस्माईल, इस्हाक़, याकू़ब, व याक़ूब की अवलाद, ईसा, अय्यूब, यूनुस, हारून और सुलेमान की तरफ़ वही की (भेजी) है और दाऊद को ज़्ाुबूर अता की है 
4 164 बहुत से रसूल हैं जिनके कि़स्से हम आप से बयान कर चुके हैं और बहुत से रसूल हैं जिनका तज़किरा हमने नहीं किया है और अल्लाह ने तो मूसा से बाक़ायदा गुफ़्तगू भी की है 
4 165 ये सारे रसूल बशारत देने वाले और डराने वाले इसलिए भेजे गये ताकि रसूलों के आने के बाद ख़ु़दा पर (लोगों के लिए) कोई हुज्जत (दलील) क़ायम न होने पाये और ख़ु़दा सब पर ग़ालिब और साहेबे हिकमत है 
4 166 (ये मानें या न मानें) लेकिन ख़ु़दा ने जो कुछ आप पर नाजि़ल किया उसे ख़ूब समझ बूझ कर नाजि़ल किया है और वह तो ख़ुद उसकी गवाही देता है बल्कि उसकी गवाही तो मलायका भी देते हैं हालाॅकि ख़ु़दा ही गवाही के लिए काफ़ी है 
4 167 बेशक जिन लोगों ने कुफ्ऱ इखि़्तयार किया और राहे ख़ु़दा से (लोगों को) रोका वह गुमराही में बहुत दूर तक चले गये हैं 
4 168 और बेशक जिन लोगों ने कुफ्ऱ इखि़्तयार किया फि़र ज़्ाुल्म भी करते रहे ख़ु़दा उन्हें हर्गिज़ माॅफ़ नहीं करेगा और न उन्हें किसी तरह की हिदायत करेगा 
4 169 मगर हाॅं जहन्नुम का रास्ता दिखा देगा जहां उनको हमेशा हमेशा रहना है और ये ख़ु़दा के लिए बहुत आसान है 
4 170 ऐ इन्सानों! तुम्हारे पास परवरदिगार की तरफ़ से दीने हक़ लेकर रसूल आ गया लेहाज़ा उस पर ईमान ले आओ इसी में तुम्हारी भलाई है और अगर तुमने कुफ्ऱ (इन्कार) इखि़्तयार किया तो याद रखो कि ज़मीन व आसमान की कुल कायनात ख़ु़दा ही की है और वह बड़ा इल्म वाला और बड़ा हिकमत वाला है 
4 171 ऐ अहले किताब अपने दीन में तजावुज़ (हद से न बढ़ो) न करो और ख़ु़दा के बारे में हक़ (सच) के सिवा कुछ न कहो। ईसा मसीह बिन मरियम सिर्फ़ अल्लाह के रसूल और उसका कल्मा (हुक्म) थे जिसे मरियम की तरफ़ भेज दिया था (ताकि वह हामला हो जाय) और वह उस (ख़ुदा) की तरफ़ से एक रूह (जान) थे लेहाज़ा ख़ु़दा और उसके रसूलों (मुरसेलीन) पर ईमान ले आओ और ख़बरदार तीन (ख़ुदा) के क़ायल न बनो। तसलीस से बाज़ रहो (दूर रहो) ((तसलीस मसीही मज़हब के मुताबिक़ ख़ुदा के वहदानियत की तीन शाख़ें 1.बाप 2. बेटा 3. रूहुल कुदस फीरोज़्ा़ुल्लोग़ात पेज  194)) कि इसी में भलाई है। अल्लाह फ़क़त ख़ु़दाए वाहिद (यकता) (अकेला माबूद) है और वह इस बुराई से पाक है कि उसका कोई बेटा हो, (उसे लड़के की हाजत ही क्या है) ज़मीन व आसमान में जो कुछ भी है सब उसी का है और वह किफ़ालत (पालने पोसने) व वकालत के लिए काफ़ी है
4 172 न तो मसीह ही ख़ुदा के बन्दे होने से इन्कार कर सकते है और न उसके मुक़र्रब मलायका। याद रहे जो शख़्स उसके बन्दे होने से  इन्कार  करेगा और शेख़ी करेगा तो (अन्क़रीब ही) अल्लाह उन सबको अपनी बारगाह में उठा लेगा (और उसके किये की सज़ा व जज़ा देगा) 
4 173 बस जो लोग ईमान ले आये और उन्होंने नेक आमाल किये उन्हें मुकम्मल अज्र देगा और अपने फ़ज़्ल व करम से इज़ाफ़ा (बढ़ा कर) भी कर देगा और जिन लोगों ने (उसका बन्दा होने से) इन्कार और तकब्बुर से काम लिया है उन पर दर्दनाक अज़ाब करेगा और उन्हें ख़ु़दा के अलावा न कोई सरपरस्त मिलेगा और न मददगार 
4 174 ऐ इन्सानों! तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से बुरहान (दीने हक़ की दलील) आ चुकी है और हमने तुम्हारी तरफ़ रौशन नूर भी नाजि़ल कर दिया है
4 175 पस जो लोग अल्लाह पर ईमान लाये और उससे वाबस्ता (जुड़े) रहे उन्हें वह अपनी रहमत और अपने फ़ज़्ल (शादाब बाग़ो) में दाखि़ल कर लेगा और उन्हें सीधे रास्ते की हिदायत कर देगा 
4 176 ऐ पैग़म्बर ये लोग आप से फ़तवा दरयाफ़्त करते हैं तो आप कह दीजिए कि कलाला (भाई बहन) के बारे में ख़ु़दा ख़ुद ये हुक्म बयान करता है कि अगर कोई शख़्स मर जाये और उसकी औलाद न हो और सिर्फ़ बहन वारिस हो तो उसे तरके का निस्फ़ (आधा) ़मिलेगा और इसी तरह अगर बहन मर जाये और उसकी औलाद न हो तो भाई उसका वारिस होगा। फिर अगर वारिस दो बहनें हैं तो उन्हें तरके (विरासती माल) का दो तिहाई मिलेगा ओर अगर भाई बहन दोनों हैं तो मर्द के लिए औरत का दोहरा हिस्सा होगा ख़ु़दा ये सब एहकाम वाज़ेह (खुलकर) कर रहा है ताकि तुम बहकने न पाओ और ख़ु़दा हर शय (चीज़) का खूब जानने वाला है 

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