सूरा-ए-आले इमरान | |
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा रहमान और रहीम है | |
1 | अलिफ़ लाम मीम |
2 | अल्लाह ही वह है जिसके अलावा कोई क़ाबिले परस्तिश (इबादत) नहीं है और वह हमेशा जि़न्दा है और हर चीज़ उसी के तुफ़ैल (हुक्म से) मंे क़ायम है |
3 | (ऐ रसूल!) उसी ने आप पर वह बरहक़ किताब नाजि़ल की है जो तमाम आसमानी किताबांे की तसदीक़ करने वाली है और उसी ने इससे पहले के लोगों के लिए तौरेत व इंजील नाजि़ल की है |
4 | हिदायत और हक़ व बातिल में फ़कऱ् करने वाली किताब (क़ुरान) नाजि़ल की है बेशक जो लोग आयाते इलाही का इंकार करते हैं उनके वास्ते शदीद (सख़्त) अज़ाब है और ख़ु़दा हर चीज़ पर ग़ालिब और इन्तिक़ाम लेने वाला है |
5 | बेशक ख़ु़दा के लिए आसमान व ज़मीन की कोई चीज़ मख़्फ़ी (छिपी) नहीं है |
6 | वह वही तो ख़ु़दा है जिस तरह चाहता है रहमे मादर के अन्दर तुम्हारी शक्लें बनाता है इसके अलावा कोई ख़ु़दा नहीं है वह साहेबे इज़्ज़त भी है और साहेबे हिकमत भी |
7 | उसने आप (अ0) पर वह किताब नाजि़ल की है जिसमें से कुछ आयतें मोहकम (साफ़-साफ़) और वाजे़ह (समझ में आने वाली) हैं जो असल किताब हैं और कुछ आयतें मुताशाबेह (गोल-गोल) हैं। अब जिनके दिलों में नुक़्स (फ़ुतूर) है वह उन्हंे मुताशबेहात (दीगर पहलू निकलने वाली) के पीछे लग जाते हैं ताकि फि़त्ना (बवाल) बरपा करें और मन मानी तावीलें (विवरण) करें हालांकि इसकी तावील (सही विवरण का ज्ञान) सिर्फ़ ख़ु़दा को है और उन्हें जो इल्म (ज्ञान) में रूसूख़ (ख़ुदा की मारेफ़त) रखने वाले हैं। जिनका कहना ये है कि हम इस किताब पर ईमान रखते हैं और ये सब की सब मोहकम व मुताशाबेह हमारे परवरदिगार ही की तरफ़ से हैं और ये बात साहेबाने अक़्ल (ज्ञानी लोग) ही समझ सकते हैं |
8 | और दुआ करते हैं कि ऐ परवरदिगार जब तूने हमें हिदायत दे दी है तो अब हमारे दिलों में कजी (नुक़्स) न पैदा होने पाये और हमें अपने पास (बारगाह) से रहमत अता फ़रमा कि तू बेहतरीन अता करने वाला है |
9 | ख़ु़दाया तू तमाम इंसानों को उस दिन जमा (एकट्ठा) करने वाला है (ख़ुदाया हम पर रहम करना) जिसमें कोई शक नहीं है और अल्लाह का वादा ग़लत नहीं होता |
10 | जो लोग काफि़र हो गये हैं उन्हें (ख़ुदा के अज़ाब से) उनके अमवाल (माल) और न औलाद ही बचा सकेंगे। और वह जहन्नुम का ईंधन बनने वाले हैं |
11 | जिस तरह फि़रऔन वालों की और उनसे पहले वालों की हालत हुई कि उन्होंने हमारी आयात की तकज़ीब (झुठलाया) की तो अल्लाह ने उनके गुनाहों के सबब (कारण) उनकी गिरफ़्त (पकड़) कर ली और अल्लाह सख़्त अज़ाब देने वाला है |
12 | ऐ पैग़म्बर आप उन काफि़रों से कह दें कि अनक़रीब (बहुत जल्द) तुम भी (मुसलमानों से) मग़लूब हो जाओगे और जहन्नुम (नर्क) की तरफ़ महशूर होगे (भेजे जाओगे) जो बदतरीन (बहुत ही बुरा) ठिकाना है |
13 | तुम्हारे वास्ते इन दोनों गिरोहों के हालात में एक निशानी मौजूद है जो मैदाने जंग (जंगे बद्र) में आमने-सामने था कि एक गिरोह राहे ख़ु़दा में जेहाद कर रहा था और दूसरा काफि़र था। जबकि मुसलमान (दुश्मन को) अपने से दो गुना देख रहा था और (ख़ुदा ने छोटे गिरोह को फ़तह दी) अल्लाह अपनी नुसरत के ज़रिये जिसकी चाहता है ताईद (मदद) करता है और इसमें साहेबाने नज़र के वास्ते सामाने इबरत (सबक़) व नसीहत भी है |
14 | (दुनिया में) लोगांे को उनकी पसंदीदा चीज़ें मसलन बीवियां, औलाद, सोने चांदी के बड़े-बड़े ढेर, उमदा घोड़े और चैपाए, खेतियां सब मुज़य्यन (सजी) और आरास्ता कर दी गई हैं कि यही मताऐ दुनिया (दुनिया के क्षणिक लाभ) हैं और हमेशा के लिए बेहतरीन ठिकाना तो अल्लाह ही के पास है |
15 | पैग़म्बर आप कह दें कि क्या मैं इन सबसे बेहतर चीज़ की ख़बर दूँ। (अच्छा सुनो) जो लोग तक़्वा (परहेज़गारी) इखि़्तयार करने वाले हैं उनके लिए परवरदिगार के यहां (जन्नत के) वह बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं और वह इनमें हमेशा रहने वाले हैं। इनके लिए पाकीज़ा बीवियां हैं और (सबसे बढ़कर) अल्लाह की ख़ु़शनूदी (रज़ामंदी) है और अल्लाह अपने बन्दों के हालात से ख़ूब बा ख़बर (वाकि़फ़) है |
16 | जो यह दुआ किया करते हैं कि परवरदिगार हम ईमान ले आये, हमारे गुनाहों को बख़्श दे और हमें आतिशे जहन्नुम से बचा ले |
17 | यही लोग हैं सब्र करने वाले और सच बोलने वाले, इताअत करने वाले, राहे ख़ु़दा में ख़र्च करने वाले और पिछली रातों में तौबा व अस्तग़फ़ार करने वाले हैं |
18 | (बेशक) अल्लाह फ़रिश्तों और इल्म वालों ने गवाही दी है उसके अलावा कोई ख़ुदा क़ाबिले इबादत नहीं है कि वह अद्ल व इंसाफ़ के साथ कारख़ानए आलम का चलाने वाला है। उसके अलावा कोई ख़ु़दा (माबूद) नहीं है और वह साहेबे इज़्ज़त व हिकमत है |
19 | सच्चा दीन, अल्लाह के नज़दीक सिर्फ़ इस्लाम है और अहले किताब ने (अस्ल) इल्म आने के बाद ही झगड़ा शुरू किया है सिर्फ़ आपस की शरारतों की बिना पर और जिसने भी ख़ुदा की निशानियों से इंकार किया तो यक़ीनन ख़ु़दा बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है |
20 | ऐ पैग़म्बर अगर ये लोग आपसे कट हुज्जती करें तो कह दीजिए कि मेरा रूख़ तमामतर अल्लाह की तरफ़ है और मेरे पैरव भी ऐसे ही हैं और फिर अहले किताब और जाहिल मुशरेकीन से पूछिये क्या तुम इस्लाम ले आये अगर वह इस्लाम ले आये तो गोया हिदायत पायेंगे और अगर मुँह फेर लिया तो आप का फ़जऱ् सिर्फ़ तबलीग़ था और अल्लाह अपने बन्दांे को ख़ूब पहचानता है |
21 | जो लोग आयाते इलाही का इंकार करते हैं और नाहक़ अम्बिया को क़त्ल करते हैं और उन लोगों को भी क़त्ल करते हैं जो अद्ल व इंसाफ़ का हुक्म देने वाले हैं उन्हें दर्दनाक अज़ाब की ख़बर सुना दीजिए |
22 | यही वह (बदनसीब) लोग हैं जिनके आमाल दुनिया में भी बर्बाद हो गये और आखि़रत में भी इनका कोई मददगार नहीं है |
23 | (ऐ रसूल) क्या तुमने उन लोगांे को नहीं देखा जिन्हें किताब (तौरेत) का थोड़ा सा हिस्सा दे दिया गया अब उन्हें किताबे ख़ु़दा की तरफ़ बुलाया जाता है ताकि वही किताब (तौरेत) उनके झगड़े का फै़सला कर दे। तो एक फ़रीक़ मुकर जाता है और यही लोग किनाराकशी करने वाले हैं |
24 | ये इसलिए कि उनका अक़ीदा है कि उन्हें आतिशे जहन्नुम सिर्फ़ चन्द दिन के लिए छुएगी और उनको दीन के बारे में उनकी बे-राहरवी (इफ़तेरा परदाजि़यों) ने धोखे में रखा है |
25 | उस वक़्त क्या होगा जब हम सब को एक दिन (क़यामत में) जमा करेंगे जिसमें किसी शक और शुबहे की गुजाईश नहीं है और हर शख़्स को उसके किये का पूरा-पूरा बदला दिया जायेगा और किसी पर कोई ज़्ाुल्म नहीं किया जायेगा |
26 | पैग़म्बर दुआ मांगिए कि ख़ु़दाया तू ही साहेबे इक़तेदार है जिसको चाहता है हुकूमत देता है और जिससे चाहता है हुकूमत छीन लेता है, जिसको चाहता है इज़्ज़त देता है और जिसको चाहता है जि़ल्लत देता है। सारी भलाई तेरे हाथ में है और बेशक तू ही हर चीज़ पर क़ादिर है |
27 | और तू ही रात को दिन और दिन को रात में दाखि़ल करता है और बेजान (नुत्फ़े) से जानदार पैदा करता है और जानदार से बेजान को निकालता है और जिसे चाहता है बे हिसाब रिज़्क़ देता है |
28 | ख़बरदार साहेबाने ईमान मोमिनीन को छोड़कर कुफ़्फ़ार को अपना वली और सरपरस्त न बनायें कि जो भी ऐसा करेगा उसका ख़ु़दा से कोई ताल्लुक़ न होगा मगर ये कि तुम्हें कुफ़्फ़ार से ख़ौफ़ हो तो कोई हर्ज नहीं है (अपनी तदबीरों से बचो) और ख़ु़दा तुम्हंे अपनी हस्ती से डराता है और ख़ुदा ही की तरफ़ पलट कर जाना है |
29 | (ऐ रसूल) आप इनसे कह दीजिए कि तुम दिल की बातों को छिपाओ या उसका इज़हार करो ख़ु़दा तो बहरहाल जानता है और वह ज़मीन व आसमान की हर चीज़ को जानता है और हर चीज़ पर कु़दरत व इखि़्तयार रखने वाला है |
30 | उस दिन को याद रखो जब हर शख़्स अपने नेक आमाल को भी हाजि़र पायेगा और आमाले बद को भी जिनको देखकर ये तमन्ना करेगा कि काश हमारे और उने बुरे आमाल के दरम्यान तवील फ़ासला हो जाता और ख़ु़दा तुम्हें अपनी ही हस्ती से डराता है और वह अपने बन्दों पर बड़ा मेहरबान भी है |
31 | ऐ पैग़म्बर! कह दीजिए कि अगर तुम लोग अल्लाह से मोहब्बत करते हो तो मेरी पैरवी करो। ख़ु़दा भी तुमसे मोहब्बत करेगा और तुम्हारे गुनाहों को बख़्श देगा कि वह बड़ा बख़्शने वाला और मेहरबान है |
32 | कह दीजिए कि अल्लाह और रसूल की इताअत करो कि जो उससे रूगर्दानी (इन्कार) करेगा तो ख़ु़दा काफे़रीन को हर्गिज़ दोस्त नहीं रखता है |
33 | (बेशक) अल्लाह ने आदम, नूह और आले इब्राहीम और आले इमरान को सारे जहाँ से बढ़कर मुन्तख़ब कर लिया है |
34 | बाज़ की औलाद को बाज़ से और अल्लाह सब की सुनने वाला और सब जानने वाला है |
35 | उस वक़्त को याद करो जब इमरान की ज़ौजा (हिना) ने ख़ुदा से कहा कि परवरदिगार मैंने अपने शिकम के बच्चे को तेरे घर की खि़दमत के लिए नज़र कर दिया है अब तू इसे कु़बूल फ़रमा ले कि तू हर एक की सुनने वाला और नियतों को जानने वाला है |
36 | इसके बाद जब विलादत हुई तो उन्होंने कहा परवरदिगार ये तो लड़की है हालांकि अल्लाह ख़ूब जानता है कि वह क्या है और वह जानता है कि लड़का लड़की जैसा (गया गुज़रा) नहीं हो सकता। और मैंने इसका नाम मरियम रखा है और मैं इसे और इसकी औलाद को शैताने रजीम से तेरी पनाह में देती हूँ |
37 | तो ख़ु़दा ने इसे बेहतरीन अंदाज़ से कु़बूल कर लिया और इसकी बेहतरीन नशवो नुमा (परवरिश) का इन्तिज़ाम फ़रमा दिया और ज़करिया अलैहिस्सलाम ने इसकी किफ़ालत (पालना) की कि जब ज़करिया मेहराबे इबादत में दाखि़ल होते तो मरियम के पास रिज़्क़ (खाना) देखते और पूछते कि ये कहां से आया तो मरियम जवाब देतीं कि ये सब ख़ु़दा की तरफ़ से (आया) है। बेशक वह जिसे चाहता है बे हिसाब रिज़्क़ अता करता है |
38 | उसी वक़्त ज़करिया ने अपने परवरदिगार से दुआ की कि मुझे भी अपनी बारगाह से एक पाकीज़ा (पवित्र) औलाद अता फ़रमा कि तू हर एक की दुआ का सुनने वाला है |
39 | अभी ज़करिया हुजरे में खड़े दुआ कर ही रहे थे कि मलायका ने उन्हें उसी वक़्त आवाज़ दी कि ख़ु़दा तुम्हें यहिया के पैदा होने की बशारत (ख़ुशख़बरी) देता है। जो उसके कलेमतुल्लाह (ईसा) की तसदीक़ करने वाला होगा। (लोगों का) सरदार, पाकीज़ा किरदार और सालेहीन में से नबी होगा |
40 | (ज़करिया) ने अजऱ् की कि मेरे यहां किस तरह औलाद होगी जबकि मुझ पर बुढ़ापा आ गया है और मेरी औरत भी बांझ है तो इरशाद हुआ कि ख़ु़दा इसी तरह जो चाहता है करता है |
41 | उन्होंने कहा कि परवरदिगार मेरे (इत्मीनान) के लिए कु़बूलियते दुआ की कोई अलामत क़रार दे। इरशाद हुआ कि तुम तीन दिन तक इशारों के अलावा बात न कर सकोगे और ख़ु़दा का जि़क्र कसरत से करते रहना और सुबह व शाम उसकी तसबीह (याद) करते रहना |
42 | और उस वक़्त को याद करो जब मलायका ने मरियम को आवाज़ दी कि ख़ु़दा ने तुम्हें चुन लिया है और पाकीज़ा बना दिया है और आलमीन (तमाम दुनिया) की औरतों में मुन्तख़ब (चुन लिया) क़रार दे दिया है |
43 | ऐ मरियम (इसके शुक्रिये में) तुम अपने परवरदिगार की इताअत करो, सजदा करो, और रूकू करने वालों के साथ रूकू करती रहो |
44 | ऐ पैग़म्बर ये ग़ैब की ख़बरंे हैं जिनको वही के ज़रिये हम आप की तरफ़ भेजते हैं और आप तो उनके पास नहीं थे जब वह कु़रआ (पर्ची) डाल रहे थे कि मरियम की किफ़ालत कौन करेगा और आप उनके पास नहीं थे जब वह इस मौज़ू पर झगड़ रहे थे |
45 | और उस वक़्त को याद करो जब मलायका ने कहा कि ऐ मरियम ख़ु़दा तुमको (एक बेटा) ईसा मसीह बिन मरियम की बशारत दे रहा है जो दुनिया और आखि़रत में साहेबे इज़्ज़त वजाहत और मुक़र्रबीने (बहुत ख़स) बारगाहे इलाही में होगा। |
46 | वह गहवारे (झूले) में भी और बड़ा होने के बाद भी लोगों से यकसां (एक तरह) बातें करेगा और वह सालेहीन (नेकूकार) में से होगा |
47 | मरियम ने कहा कि मेरे यहां फ़रज़न्द किस तरह होगा जबकि मुझको किसी बशर (इंसान) ने छुआ तक नहीं है। इरशाद हुआ कि इसी तरह ख़ु़दा जो चाहता है पैदा करता है जब वह किसी काम का फ़ैसला कर लेता है तो कहता है कि हो जा और वह चीज़ हो जाती है |
48 | और ख़ु़दा इस फ़रज़न्द को (तमाम) आसमानी किताब व हिकमत और ख़ासकर तैरैत व इंजील की तालीम देगा |
49 | और उसे बनी इसराईल का रसूल क़रार देगा और वह उनसे कहेगा कि मैं तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से (नबूवत की) निशानी लेकर आया हूँ कि मैं तुम्हारे लिए मिट्टी से परिन्दे की शक्ल (मूरत) बनाऊँगा और उस पर कुछ दम करूंगा तो वह हुक्मे ख़ु़दा से परिन्दा चिडि़या बन जायेगा और मैं पैदाईशी अन्धे और मबरूस (कोढ़ी) का इलाज करूंगा और हुक्मे ख़ु़दा से मुर्र्दाे को जि़न्दा करूंगा और तुम्हें इस बात की भी ख़बर दूंगा कि तुम क्या खाते हो और क्या अपने घर में ज़ख़ीरा करते हो। इन सबमें तुम्हारे लिए (नबूवत की) निशानियां हैं अगर तुम साहेबाने ईमान हो |
50 | और मैं अपने पहले की किताब तौरेत की तसदीक़ करता हूँ और मैं बाज़ उन चीज़ों को (ख़ुदा के हुक्म से) हलाल क़रार दूंगा जो तुम पर हराम थीं और तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से (अपनी नबूवत की) निशानी लेकर आया हूँ लेहाज़ा उससे डरो और मेरी इताअत करो |
51 | अल्लाह मेरा और तुम्हारा दोनों का रब (परवरदिगार) है लेहाज़ा उसकी इबादत करो कि यही (नजात का) सीधा रास्ता है |
52 | फिर जब ईसा ने क़ौम में कुफ्ऱ का एहसास किया तो फ़रमाया कि कौन है जो ख़ु़दा की राह में मेरा मददगार हो हवारीयीन ने कहा कि हम अल्लाह के मददगार हैं और उस पर ईमान लाये हैं, और (ईसा से कहा) आप गवाह रहें कि हम मुसलमान हैं |
53 | (और ख़ुदा की बारगाह में अजऱ् की) ऐ परवरदिगार हम उन तमाम बातों पर ईमान ले आये जो तूने नाजि़ल की हैं और तेरे रसूल (ईसा) का इत्तेबा (पैरवी) किया लेहाज़ा हमारा नाम अपने रसूल के गवाहों में दर्ज कर ले |
54 | और जब यहूदियांे ने ईसा से मक्कारी की तो अल्लाह ने भी जवाबी तदबीर की। ख़ु़दा बेहतरीन तदबीर करने वाला है |
55 | और जब ख़ु़दा ने फ़रमाया कि ईसा मैं तुम्हारी मुद्दते क़यामे दुनिया पूरी करके तुम्हें अपनी तरफ़ उठा लूंगा तुम्हें कुफ़्फ़ार की ख़बासत (गंदगी) से निजात दूंगा। और तुम्हारी पैरवी करने वालों को इन्कार करने वालों पर क़यामत तक के लिये बरतरी दूंगा। इसके बाद जब तुम सबकी बाज़गश्त (हाज़ेरी) हमारी तरफ़ होगी और (उस दिन) मैं तुम्हारे (दुनियावी) एख़तेलाफ़ात (झगड़े) का सही फ़ैसला कर दूंगा |
56 | फिर जिन लोगों ने कुफ्ऱ इखि़्तयार किया उन पर दुनिया और आखि़रत दोनों में शदीद अज़ाब करूंगा और उनका कोई मददगार न होगा |
57 | और जो लोग ईमान ले आये और उन्होंने नेक आमाल किये उनको मुकम्मल (पूरा) अज्र (सवाब) देंगे और ख़ु़दा ज़्ाुल्म करने वालों को पसन्द नहीं करता |
58 | (ऐ रसूल) ये तमाम निशानियां और पेफ़ाज़े हिकमत (हिकमत से भरे हुए) तज़किरे हैं जो हम आपसे बयान कर रहे हैं |
59 | ईसा की मिसाल तो अल्लाह के नज़दीक आदम जैसी है कि उन्हंे मिट्टी से पैदा किया और फिर कहा हो जा और वह हो गया |
60 | ऐ रसूल जो हक़ की बात तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से बताई जाती है तुम भी अगर शक करने वालों (नसरानी) में से न हो जाना |
61 | पैग़म्बर इल्म (क़ुरान) के आ जाने के बाद भी अगर लोग तुम से (ईसा के बारे में) कट हुज्जती करें तो उनसे कह दीजिए कि (अच्छा मैदान में) आओ हम अपने फ़रज़न्द (बेटों को बुलाएं, तुम अपने बेटों को बुलाओ), हम अपनी औरतों को बुलाएं तुम अपनी औरतों को बुलाओ और हम अपने नफ़्सों (जानों) को बुलायें तुम अपनी नफ़्सों (जानों) को बुलाओ फिर ख़ु़दा की बारगाह में (सब मिलकर) दुआ करें और झूठों पर ख़ु़दा की लाअनत क़रार दें |
62 | ये सब हक़ीक़ी (सच्चे) वाक़ेआत हैं और ख़ु़दा के अलावा कोई दूसरा ख़ु़दा (पालने वाला) नहीं है और वही ख़ु़दा साहेबे इज़्ज़त व हिकमत है |
63 | अब इसके बाद भी ये लोग इन्हिेराफ़ करंे (मुंह फेरें) तो (कुछ परवा नहीं)। ख़ु़दा मुफ़सेदीन (फ़सादियों) को ख़ूब जानता है |
64 | ऐ पैग़म्बर आप कह दें कि ऐ अहले किताब आओ एक मुन्सेफ़ाना (हक़ीक़ी) कल्मे (बात) पर इत्तेफ़ाक़ कर लें (जो दोनों में यकसा/कामन हो) कि ख़ु़दा के अलावा किसी की इबादत न करंे और किसी चीज़ को उसका शरीक न बनायें और ख़ुदा के सिवा आपस में (किसी) को ख़ु़दाई का दर्जा न दंे। और फि़र इसके बाद भी ये लोग मुँह मोड़ें तो कह दीजिए कि तुम लोग गवाह रहना कि हम ख़ुदा के फ़रमाबरदार और इताअत गुज़ार हैं |
65 | ऐ अहले किताब आखि़र इब्राहीम के बारे में क्यों बहस करते हो जबकि तौरेत और इंजील उनके बाद नाजि़ल हुई है क्या तुम्हें इतनी भी अक़्ल नहीं है |
66 | अब तक तुमने उन बातों में बहस की है जिनका कुछ इल्म था तो अब इस बात में क्यों बहस करते हो जिसका कुछ भी इल्म नहीं है। बेशक ख़ु़दा जानता है और तुम नहीं जानते हो |
67 | इब्राहीम न यहूदी थे और न ईसाई वह मुसलमान, खरे हक़ परस्त और बातिल से किनारा कश, और वह मुशरेकीन में से हर्गिज़ नहीं थे |
68 | यक़ीनन इब्राहीम से क़रीबतर उनकी पैरवी करने वाले हैं या पिछले नबी या उनकी उम्मत। और अल्लाह साहेबाने ईमान का सरपरस्त है |
69 | (ऐ मुसलमानों!) अहले किताब से एक गिरोह ये चाहता है कि तुम लोगांे को गुमराह कर दे हालांकि ये अपने ही को गुमराह कर रहे हैं और समझते भी नहीं हैं |
70 | ऐ अहले किताब तुम आयाते इलाही का इंकार क्यों कर रहे हो जबकि तुम ख़ुद ही उनके गवाह भी हो |
71 | ऐ अहले किताब तुम क्यों हक़ को बातिल से मिलाया (गुडमुड) करते हो और जानते हुए भी हक़ की परदापोशी (छिपाया) करते हो |
72 | और अहले किताब की एक जमाअत (गिरोह) ने अपने साथियों से कहा कि जो कुछ (किताब) ईमान वालांे पर नाजि़ल हुआ है उस पर सुबह को ईमान ले आओ और शाम को इंकार कर दो शायद इस तरह वह लोग भी (मुसलमान अपने दीन से) पलट जायें |
73 | और (कहा कि) ख़बरदार उन लोगांे के अलावा किसी पर एतबार न करना जो तुम्हारे दीन का इत्तेबा (अमल) करते हैं। ऐ पैग़म्बर आप कह दें कि बस ख़ु़दा ही की हिदायत तो हिदायत है और हर्गिज़ ये न मानना कि ख़ु़दा वैसी ही फ़ज़ीलत और नुबूवत किसी और को भी दे सकता है जैसी तुम को दी है या कोई तुमसे पेशे परवरदिगार बहस करे। पैग़म्बर आप कह दीजिए कि (यह ख़म ख़याल है) और फ़ज़्ल व करम तो ख़ु़दा ही के हाथ में है, वह जिसे चाहता है अता करता है और वह साहेबे वुसअत (बड़ी गंुजाइश वाला) भी है और साहेबे इल्म भी |
74 | वह अपनी रहमत के लिए जिसे चाहता है मख़सूस (चुन लेता है) करता है और वह बड़े फ़ज़्ल वाला है |
75 | और अहले किताब में से कुछ ऐसे भी हैं जिनके पास रूपए पैसे के ढेरों माल भी अमानत रख दिया जाये तो (पूरा-पूरा) वापस कर देंगे और कुछ ऐसे भी हैं कि एक दीनार (अशफऱ्ी) भी अमानत रख दी जाये तो उस वक़्त तक वापस न करेंगे जब तक उनके सर पर खड़े न रहो। ये इसलिए कि उनका कहना ये है कि जाहिल अरबों का माल मार लेने में कोई इल्ज़ाम नहीं है। (( ख़ुदा वन्दे आलम मुसलमानों को सिखाता है कि जिनकी ये नीयत हो कि पराया माल खाने को अपने जी से यह मसला गढ़ लिया कि हमको दूसरे मज़हब वालों की अमानत में ख़यानत जाएज़ है उनकी बात दीन के बारे में क्या सनद हो सकती है। हमारे यहां काफि़र अरबी का माल बज़ोर लेना जाएज़ है मगर उसकी अमानत में ख़यानत हरगिज़ जाएज़ नहीं)) ये ख़ु़दा पर जान बूझकर झूठ जोड़ते हैं और जानते भी हैं कि (वह) झूठे हैं |
76 | अलबत्ता जो अपने अहद को पूरा करे और परहेज़गारी और ख़ौफ़े ख़ु़दा पैदा करे तो बेशक ख़ु़दा मुत्तक़ीन को दोस्त रखता है |
77 | जो लोग अल्लाह से किये गये अहद (वादे) और क़सम को थोड़ी क़ीमत पर बेच डालते हैं उनके लिए आखि़रत में कोई हिस्सा नहीं है और क़यामत में न ख़ु़दा उनसे बात करेगा और न उनकी तरफ़ नज़र करेगा और न उन्हंे गुनाहों की आलूदगी से पाक करेगा और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है |
78 | इन्हीं यहूदियों में बाज़ वह हैं जो किताब पढ़ने में ज़बान को तोड़ मरोड़ देते हैं ताकि तुम लोग उस (तबदीली) तहरीफ़ को भी असल किताब समझने लगो हालांकि वह असल किताब का जुज़ नहीं है और ये लोग कहते हैं कि ये सब अल्लाह की तरफ़ से नाजि़ल हुआ है हालांकि अल्लाह की तरफ़ से हर्गिज़ नहीं उतरा है। ये ख़ु़दा के खि़लाफ़ झूठ जोड़ते हैं हालांकि असलियत में सब जानते हैं |
79 | किसी बशर के लिए ये मुनासिब नहीं है कि ख़ु़दा उसे किताब व हिकमत और नबूवत अता करे और वह लोगों से ये कहने लगे कि ख़ु़दा को छोड़कर हमारे बन्दे बन जाओ बल्कि उसका क़ौल यही होता है कि अल्लाह वाले बन जाओ कि तुम किताब (क़ुरान) की तालीम भी देते हो और ख़ुद भी उसे पढ़ते भी रहते हो |
80 | वह ये हुक्म भी नहीं दे सकता कि मलायका या अम्बिया, को अपना परवरदिगार बना लो क्या तुम्हारे मुसलमान हो जाने के बाद तुम्हें कुफ्ऱ का हुक्म दे सकता है? |
81 | ऐ रसूल और उस वक़्त को याद करो जब ख़ु़दा ने तमाम अम्बिया से अहद (इक़रार) लिया कि हम तुमको जो कुछ किताब व हिकमत दें उसके बाद जब कोई रसूल आ जायें जो तुम्हारी किताबांे की तसदीक़ करने वाला हो तो तुम सब जरूर उस पर ईमान ले आना और ज़रूर उसकी मदद करना, और फिर पूछा क्या तुमने इन बातों का इक़रार कर लिया और हमारे अहद को कु़बूल कर लिया तो सबने कहा कि बेशक हमने इक़रार कर लिया फिर इरशाद हुआ कि अब तुम सब आपस में एक दूसरे के गवाह रहना और मैं भी तुम्हारे साथ गवाहों में हूँ |
82 | इसके बाद जो इनहेराफ़ करेगा (मुकरेगा) वह फ़ासेक़ीन की मंजि़ल में होगा |
83 | क्या ये लोग दीने ख़ु़दा के अलावा कुछ और तलाश कर रहे हैं जबकि ज़मीन व आसमान की सारी मख़लूक़ात बा-रज़ा (रज़ामंदी) व रग़बत (चाहत) या बा-जब्र व कराहत (ज़बरदस्ती) उसी की बारगाह में सर तसलीम ख़म किये (झुकाए) हुए है। और सबको उसी की बारगाह में वापस जाना है |
84 | पैग़म्बर इनसे कह दीजिए कि हमारा तो ईमान अल्लाह पर है और जो (किताब) हम पर नाजि़ल हुई है। और जो (सहीफ़ा) इब्राहीम (अ0) इस्माईल (अ0) इस्हाक़ (अ0) याक़़ूब (अ0) और अवलादे याक़ूब पर नाजि़ल हुआ है और जो मूसा (अ0) ईसा (अ0) और (अन्य) अम्बिया को (जो किताब) ख़ु़दा की तरफ़ से दी गयी हंै उन सब पर (ईमान लाए) हैं। हम उनके दरम्यान तफ़रीक (फ़कऱ्) नहीं करते हैं और हम तो ख़ु़दा के इताअत गुज़ार बन्दे हैं |
85 | और जो इस्लाम के अलावा कोई और दीन तलाश करेगा तो उसका वह दीन हरगिज़ कु़बूल न किया जायेगा और वह क़यामत के दिन ख़सारा (सख़्त घाटे) वालों में होगा |
86 | ख़ु़दा उस क़ौम को किस तरह हिदायत देगा जो ईमान (लाने) के बाद काफि़र हो गई और (हालाॅंकि) वह ख़ुद गवाह है कि रसूल बरहक़ है और उनके पास खु़ली निशानियां भी आ चुकी हैं। बेशक ख़ु़दा ज़ालिम व हठधर्मी क़ौम को हिदायत नहीं देता |
87 | इन लोगों की सज़ा ये है कि उन पर ख़ु़दा, मलायका और इन्सान सबकी लाअनत फिटकार है |
88 | ये हमेशा इसी लाअनत (फिटकार) में गिरफ़्तार रहेंगे। इनके अज़ाब में तख़्फ़ीफ़ (कमी) न होगी और न उन्हें मोहलत दी जायेगी |
89 | अलावा उन लोगों के जिन्होंने उसके बाद तौबा कर ली और (अपनी ख़राबी की) इसलाह कर ली तो अलबत्ता ख़ु़दा गफ़ूर (बड़ा बख़्शने वाला) और रहीम है |
90 | जिन लोगों ने ईमान के बाद कुफ्ऱ इखि़्तयार कर लिया और फिर कुफ्ऱ में बढ़ते ही चले गये उनकी तौबा हर्गिज़ कु़बूल न होगी और (यही लोग) हक़ीक़ी तौर पर गुमराह हैं |
91 | बेशक जिन लोगों ने कुफ्ऱ इखि़्तयार किया और इसी कुफ्ऱ की हालत में मर गये उनसे सारी ज़मीन भर सोना भी बतौर फिद्या कु़बूल नहीं किया जायेगा और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है और उनका कोई मददगार भी न होगा |
92 | तुम नेकी की मंजि़ल तक नहीं पहुंच सकते जब तक अपनी महबूब चीज़ांे में से राहे ख़ु़दा में इन्फ़ाक़ न करो और जो कुछ भी इन्फ़ाक़ करोगे ख़ु़दा उससे बिल्कुल बा ख़बर है |
93 | बनी इसराईल के लिए तमाम खाने हलाल थे सिवाए इसके उसे तौरेत के नाजि़ल होने से पहले इस्राईल ने अपने ऊपर मम्नूअ क़रार दे लिया था अब तुम तौरेत को पढ़ो अगर तुम अपने दावे में सच्चे हो |
94 | उसके बाद जो भी ख़ु़दा पर बोहतान रखेगा उसका शुमार ज़ालेमीन में होगा |
95 | पैग़म्बर आप कह दीजिए कि ख़ु़दा सच्चा है। तुम सब मिल्लते इब्राहीम का इत्तेबा करो वह बातिल से किनारा कश थे और मुशरेकीन में से नहीं थे |
96 | बेशक सबसे पहला मकान जो लोगांे के लिए बनाया गया है वह मक्के में है मुबारक है और आलमीन के लिए मुजस्सम हिदायत है |
97 | इसमें खुली हुई निशानियां मुक़ामे इब्राहीम है और जो इसमें दाखि़ल हो जायेगा वह महफ़ूज़ हो जायेगा और अल्लाह के लिए लोगों पर उस घर का हज करना वाजिब है अगर उस राह की इस्तेताअत रखते हों और जो काफि़र हो जाये तो ख़ु़दा तमाम आलमीन से बेनियाज़ है |
98 | ऐ अहले किताब क्यों आयते इलाही का इन्कार करते हो जबकि ख़ु़दा तुम्हारे आमाल का गवाह है |
99 | कहिए ऐ अहले किताब क्यों साहेबे ईमान को राहे ख़ु़दा से रोकते हो और उसमें कजी तलाश करते हो जबकि तुम ख़़ुद उसकी सेहत के गवाह हो और अल्लाह तुम्हारे आमाल से ग़ाफि़ल नहीं है |
100 | ऐ ईमान वालों अगर तुमने अहले किताब के इस गिरोह की इताअत कर ली तो यह तुमको ईमान के बाद कुफ्ऱ की तरफ़ पलटा देंगे |
101 | और तुम लोग इस तरह काफि़र हो जाओगे जबकि तुम्हारे सामने आयाते इलाही की तिलावत हो रही है और तुम्हारे दरम्यान रसूल मौजूद हैं और जो ख़ु़दा से वाबस्ता हो जाये समझो कि उसे सीधे रास्ते की हिदायत कर दी गई है |
102 | ईमान वालों अल्लाह से इस तरह डरो जो डरने का हक़ है और ख़बरदार उस वक़्त तक न मरना जब तक मुसलमान न हो जाओ |
103 | और अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पकड़े रहो और आपस में तफ़रेक़ा न पैदा करो और अल्लाह की नेअमत को याद करो कि तुम लोग आपस में दुश्मन थे उसने तुम्हारे दिलों में उल्फ़त पैदा कर दी तो तुम उसकी नेअमत से भाई भाई बन गये और जहन्नुम के किनारे पर थे तो उसने तुम्हें निकाल लिया और अल्लाह इसी तरह अपनी आयतें बयान करता है कि शायद तुम हिदायत याफ़्ता बन जाओ |
104 | और तुम में से एक गिरोह को ऐसा भी होना चाहिए जो ख़ैर (नेकी) की दावत दे, नेकियों का हुक्म दे, बुराईयों से मना करे और ऐसे ही लोग नजात याफ़्ता (कामयाब) हैं |
105 | और ख़बरदार उन लोगांे की तरह न हो जाओ जिन्होंने तफ़रेक़ा (फ़ूट डालना) पैदा किया और वाजे़ह (खुली) निशानियों के आ जाने के बाद भी एख़तेलाफ़ (इन्कार) किया कि उनके लिए अज़ाबे अज़ीम है |
106 | क़यामत के दिन जब बाअज़ चेहरे सफ़ेद (नूरानी) होंगे और बाअज़ स्याह (काले) जिनके चेहरे स्याह (काले) हांेगे उनसे कहा जायेगा कि तुम ईमान के बाद क्यों काफि़र हो गये थे अब अपने कुफ्ऱ की बिना पर अज़ाब का मज़ा चखो |
107 | और जिनके चेहरे सफ़ेद और रौशन होंगे वह रहमते इलाही में हमेशा हमेशा रहेंगे |
108 | (ऐ रसूल) यह आयाते इलाही है जिनको हम ठीक-ठीक पढ़ कर सुनाते हैं और अल्लाह आलमीन (सारे जहाँ) के लोगों पर हर्गिज़ जु़ल्म करना नहीं चाहता |
109 | ज़मीन व आसमान में जो कुछ है सब अल्लाह ही का है और उसी की तरफ़ सारे उमूर (कामों) की बाज़गश्त (पुकार) है |
110 | तुम बेहतरीन गिरोह हो जिसे लोगांे की हिदायत के लिए पैदा किया गया है तुम लोगों को नेकियों का हुक्म देते हो और बुराईयों से रोकते हो और अल्लाह पर ईमान रखते हो और अगर अहले किताब (यहूदी व ईसाई वग़ैरा) भी ईमान ले आते तो उनके हक़ में बेहतर होता लेकिन इनमें सिर्फ़ चन्द ही मोमिनीन हैं और अकसरियत फ़ासिक़ की है |
111 | ये तुमको मामूली अज़ीयत (तकलीफ़) के अलावा कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकते अगर तुमसे जंग भी करेंगे तो मैदान छोड़कर भाग जायेंगे और फिर उनकी कहीं से मदद भी न पहुँचेगी |
112 | उन पर रूसवाई की मार पड़ी मगर ख़़ुदा के और लोगो के अहद के ज़रिए कहीं पनाह मिल गई फिर हेरा फेरी कर के ख़़ुदा के ग़्ाज़ब में पड़ गए और उन पर मोहताजी की मार (अलग) पड़ी, ये इसलिए है कि ये आयते इलाही का इन्कार करते थे और नाहक़ अम्बिया को क़त्ल करते थे ये सज़ा इसलिए है कि यह नाफ़रमान थे और ज़्यादतियाँ किया करते थे |
113 | यह लोग भी सब एक जैसे नहीं हैं अहले किताब ही में वह जमाअत भी है जो दीन पर क़ायम है रातों को आयाते इलाही की तिलावत करती है और बराबर सजदा करती है |
114 | यह अल्लाह और आखि़रत पर ईमान रखते हैं नेकियों का हुक्म देते हैं, और बुराईयों से रोकते हैं और नेकियों की तरफ़ सब्क़त करते (दौड़ पड़ते) हैं और यही लोग सालेहीन और नेक किरदार वाले हैं |
115 | ये जो भी ख़ैर (नेकी) करंेगे उसकी नाक़दरी न की जायेगी और अल्लाह मुत्तक़ीन (परहेज़गारों) के आमाल से ख़ूब बाख़बर है |
116 | जिन लोगों ने कुफ्ऱ इखि़्तयार किया (काफि़रीन) उनके माल व औलाद कुछ काम न आयेगी और यह हक़ीक़ी (सचमुच) जहन्नुमी हैं और वहीं हमेशा रहंेगे। |
117 | यह लोग जि़न्दगानी-ए-दुनिया में जो कुछ (शरीयत के खि़लाफ़) ख़र्च करते हैं उसकी मिसाल उस अंधड़ वाली हवा की है जिसमें बहुत पाला हो और वह उस क़ौम के खेतों पर जा पड़े जिन्होंने अपने ऊपर (कुफ्ऱ की वजह से) ज़्ाु़ल्म किया है और उसे तबाह कर दे और ख़ु़दा ने इन पर कुछ ज़्ा़ुल्म नहीं किया है बल्कि इन्हांेने ख़़ुद अपने ऊपर जु़ल्म किया |
118 | ऐ ईमान वालों ख़बरदार अपने सिवा गै़रों को अपना राज़दार न बनाना ये तुम्हें नुक़सान पहुंचाने में कोई कसर न छोड़ेगें, बल्कि तुम तकलीफ़ व मुसीबत में पड़ोगे उतना ही वह ख़़ुश होंगे उनकी दुष्मनी तो ज़बान से भी ज़ाहिर है और जो (बुग़़्ज़) नफ़रत दिल में छिपा रखा है वह तो कहीं ज़्यादा है। हमने तुम्हारे लिए अपने एहकाम वाज़ेह करके बयान कर दिया है अगर तुम साहेबाने अक़्ल हो |
119 | ऐ लोगों तुम उनसे दोस्ती करते हो और ये तुमसे ज़रा भी दोस्ती नहीं चाहते हैं तुम पूरी किताबे ख़़ुदा पर ईमान रखते हो और ये जब तुमसे मिलते हैं तो कहते हैं कि हम ईमान ले आये और जब अकेले होते हैं तो गुस्से से अपनी उंगलियां काटते हैं। पैग़म्बर आप कह दीजिए तुम इसी ग़्ाुस्से में मर जाओ। जो बातें तुम्हारे दिलों में हैं ख़ुदा ख़ूब बाख़बर है |
120 | (ऐ ईमान वालों) तुम्हें ज़रा भी नेकी छू भी गई तो उन्हें बुरा लगता है और जब तुम्हें तकलीफ़ पहंुचती है तो वो ख़ु़श होते हैं और अगर तुम सब्र करो और तक़वा (परहेज़गारी) इखि़्तयार करो तो उनके मक्र से कोई नुकसान न होगा। (क्योंकि) ख़ु़दा उनके आमाल का अहाता किये हुए है |
121 | (ऐ रसूल) उस वक़्त को याद करो जब सुबह सवेरे तुम अपने बाल बच्चों से घर से निकल पड़े और मोमिनीन को जंग के मोर्चों पर बिठा रहे थे और ख़ु़दा सब कुछ सुनने वाला और जानने वाला है |
122 | क्योंकि यह उस वक़्त का वाके़या है जब तुम में से दो गिरोहों ने सुस्ती (पस्पाई) का मुज़ाहिरा करना चाहा लेकिन संभल गये क्योंकि अल्लाह उनका सरपरस्त था और मोमेनीन को उसी पर भरोसा करना चाहिए |
123 | और यक़ीनन अल्लाह ने बद्र (जंगे बद्र) में तुम्हारी मदद की है जबकि तुम दुश्मन के मुक़ाबले में कमज़ोर थे लेहाज़ा अल्लाह से डरते रहो ताकि तुम शुक्रगुज़ार बन जाओ |
124 | उस वक़्त जब आप मोमिनीन से कह रहे थे कि क्या ये तुम्हारे लिए काफ़ी नहीं है कि ख़ु़दा तीन हज़ार फ़रिश्तों को आसमान से भेजकर तुम्हारी मदद करे |
125 | यक़ीनन अगर तुम साबित क़दम रहो और तक़वा इखि़्तयार करोे और दुश्मन फि़ल्फ़ौर तुम तक आ ही जायें तो ख़ु़दा पांच हज़ार फ़रिश्तों से तुम्हारी मदद करेगा जो निशाने जंग लगाए हुए डटे होंगे |
126 | और इस इमदाद को ख़ु़दा ने सिर्फ़ तुम्हारे लिए बशारत और इत्मेनाने क़ल्ब (दिल) का सामान क़रार दिया है वरना मदद तो हमेशा सिर्फ़ ख़ु़दाए अज़ीज़ व हकीम ही की तरफ़ से होती है |
127 | ताकि कुफ़्फ़ार के एक गिरोह को कम कर दे या उनको ऐसा ज़लील कर दे कि वह रूस्वा (शर्मसार) होकर पलट जायें |
128 | (ऐ रसूल) इसमें आपका कोई बस नहीं है, चाहे ख़ुदा इनकी तौबा कु़बूल करे या अज़ाब करे। ये सब बहरहाल ज़ालिम हैं |
129 | और जो कुछ ज़मीन व आसमान मे है वह सब अल्लाह ही का है। जिसको चाहे बख़्श दे, जिसको चाहे अज़ाब दे। वह ग़्ाफ़ू़र (बख़्शने वाला) भी है और रहीम भी है |
130 | ऐ ईमान वालों ये दोगुना चैगुना सूद न खाओ और अल्लाह से डरो कि शायद निजात पा जाओ |
131 | और उस आग से बचो जो काफि़रों के वास्ते तैयार की गई है |
132 | और अल्लाह व रसूल (स0) की इताअत (फ़रमाबरदारी) करो ताकि तुम पर रहम किया जाय |
133 | और अपने परवरदिगार की मग़फि़रत और उस जन्नत की तरफ़ सब्क़त (दौड़ पड़ो) करो जिसकी वुसअत (फैलाव) ज़मीन व आसमान के बराबर है और इसे उन साहेबाने तक़वा (परहेज़गार) के लिए मुहैय्या किया गया है |
134 | जो राहत और सख़्ती हर हाल में इन्फ़ाक़ (खुदा की राह में ख़र्च) करते हैं और ग़्ाुस्से को पी जाते हैं और लोगों को माफ़ करने वाले हैं और ख़ु़दा एहसान करने वालों को दोस्त रखता है |
135 | वह लोग वह हैं कि जब इत्तेफ़ाक़न कोई गुनाह करते हैं या (आप) अपने नफ़्स (जान) पर ज़्ाुल्म करते हैं तो ख़ु़दा को याद करके अपने गुनाहों पर अस्तग़फ़ार (तौबा) करते हैं और ख़ु़दा के अलावा कौन गुनाहों को माफ़ करने वाला है और वह अपने किये पर जान बूझ कर इसरार (हट) नहीं करते |
136 | यही वह हैं जिनकी जज़ा (ईनाम) मग़फि़रत (बख़शिश) है और वह जन्नत है जिसके नीचे नहरें जारी हैं। वह इसी में हमेशा रहेगें और नेक अमल करने वालों की ये (क्या ख़़ूब) बेहतरीन जज़ा है |
137 | तुम से पहले बहुतेरे वाके़यात गुज़र चुके हैं अब तुम ज़मीन में सैर करो और देखो कि (पैग़म्बरों के) झुठलाने वालों का क्या अंजाम हुआ |
138 | ये आम इंसानों के लिए (तो सिर्फ) एक बयान वाक़्या है मगर साहेबाने तक़वा (परहेज़गार) के लिए हिदायत और नसीहत है |
139 | (मुसलमानों) काहिली न करो ओहद की अचानक हार पर महज़्ाून (ग़मगीन) न होना अगर तुम साहेबे ईमान (मोमिन) हो तो सर बुलन्दी तुम्हारे ही लिए है |
140 | अगर तुम्हंे जंगे ओहद में ज़ख़्म लगा है तो (बद्र में) तुम्हारे फ़रीक़ को भी इससे पहले ऐसा ही ज़ख़्म लग चुका है (उस पर उनकी हिम्मत न टूटी) और हम तो ज़माने को लोगांे के दरम्यान (बारी-बारी) उलट फेर करते रहते हैं (और यह अचानक हार इसलिए थी) ताकि ख़ु़दा सच्चे साहेबाने ईमान को देख ले और तुम में से बाअज़ को शहीद क़रार दे और ख़ुदा (हुक्मे रसूल) के नाफ़रमानों को दोस्त नहीं रखता है |
141 | और (यह भी मंज़ूर था कि) ख़ु़दा सच्चे साहेबाने ईमान (साबित क़दमी वालों) को छांटकर अलग कर ले और नाफ़रमानों को मलिया मेट कर दे |
142 | क्या तुम्हारा ये ख़्याल है कि तुम सब के सब जन्नत में यूँ ही दाखि़ल हो जाओगे? और क्या ख़ु़दा ने अभी तक तुम में से जेहाद करने और साबित क़दम रहने वालों को भी नहीं जाना है? |
143 | तुम मौत आने से पहले उसकी (लड़ाई में) बहुत तमन्ना किया करते थे पस अब तो तुमने उसे अपनी आँखो से देख लिया और (अब भी) देख रहे हो। |
144 | और मोहम्मद (स0) तो सिर्फ़ एक रसूल हैं जिनसे पहले बहुत से रसूल गुज़र चुके हैं क्या अगर वह मर जायें या क़त्ल हो जायें तो तुम उल्टे पाँव (कुफ्र की तरफ़) पलट जाओगे तो जो भी ऐसा करेगा वह ख़ु़दा का कुछ नुक़सान नहीं करेगा और ख़ु़दा तो अनक़रीब शुक्रगुज़ारांे को उनकी जज़ा (इन्आम) देगा |
145 | कोई भी इज़्ने (इजाज़त) परवरदिगार के बगै़र नहीं मर सकता है सबकी एक मुद्दते मुअय्यना तक के लिए मौत मुक़र्रर है और जो (अपने किए का) दुनिया में बदला चाहेगा हम उसे वह देंगे और जो आखि़रत का सवाब चाहेगा हम उसे उसमें से अता कर दंेगे और हम अनक़रीब शुक्रगुज़ारों को जज़ा (इन्आम) दंेगे |
146 | और बहुत से ऐसे नबी गुज़र चुके हैं जिनके साथ बहुत से अल्लाहवालों ने इस शान से जेहाद किया है कि राहे ख़ु़दा में पड़ने वाली मुसीबतों से न कमज़ोर हुए और न बुज़दिली का इज़्ाहार किया और न दुश्मन के सामने जि़ल्लत का मुज़ाहेरा किया और अल्लाह सब्र करने वालों ही को दोस्त रखता है |
147 | उनका क़ौल सिर्फ़ यही था कि ख़ु़दाया हमारे गुनाहों को बख़्श दे। हमारे काम में ज़्यादतियांे को माफ़ फ़रमा। (दुशमन के मुक़ाबले में) हमारे क़दमों को साबित क़दम रख़ और काफि़रांे के मुक़ाबले में हमारी (फतेह दे) मदद फ़रमा |
148 | तो ख़ु़दा ने उन्हें दुनिया में मुआवज़ा दिया और आखि़रत में भी बेहतरीन बदला दिया और अल्लाह नेक अमल करने वालों को दोस्त रखता है |
149 | ऐ ईमान वालों अगर तुम लोगों ने काफि़रों की इताअत कर ली तो ये तुम्हें (कुफ्ऱ की तरफ़) उल्टे पांव पल्टा ले जायेंगे और फिर तुम ही उल्टे ख़सारा (घाटा) वालों में हो जाओगे |
150 | बल्कि ख़ु़दा तुम्हारा सरपरस्त है और वह सब मदद करने वालों से बेहतर है |
151 | (घबराओ नहीं) हम अनक़रीब काफि़रों के दिलों में तुम्हारा रोब डाल देंगे क्योंकि उन्होंने (बुतों को) ख़ु़दा का शरीक बनाया है जिसे ख़ु़दा ने किसी कि़स्म की हुकूमत नही दी है और उनका ठिकाना जहन्नुम होगा और ज़ालेमीन का (भी क्या) बदतरीन ठिकाना है |
152 | बेशक ख़ु़दा ने अपना वादा (जंगे ओहद) उस वक़्त पूरा कर दिया जब तुम उसके हुक्म से कुफ़्फ़ार को ख़़ूब क़त्ल कर रहे थे यहां तक कि (तुम्हारे पसन्द की चीज़ फ़तेह) का तुमने मुज़ाहेरा किया उसके बाद भी आपस में झगड़ा करने लगे (माले ग़नीमत देख कर) और उस वक़्त ख़ु़दा की नाफ़रमानी (बुज़दिलापन) किया। तुम मंे कुछ दुनिया के तलबगार थे और कुछ आखि़रत के। इसके बाद बुज़दिलेपन ने तुमको उन कुफ़्फ़ार की तरफ़ से फेर दिया और तुम भाग खड़े हुए इससे ख़ुदा तुम्हारे (ईमान का) इम्तिहान लेना चाहता था और फिर उसने तुम्हें माफ़ भी कर दिया कि वह साहेबाने ईमान पर बड़ा फ़ज़्ल व करम करने वाला है |
153 | ऐ मुसलमानों उस वक़्त को याद करो जब तुम पहाड़ पर चढ़े जा रहे थे और (जान के ख़ौफ़ से) मुड़कर किसी को देखते भी न थे जबकि रसूल (स0) पीछे खड़े तुम्हें आवाज़ दे रहे थे जिसके नतीजे में ख़ु़दा ने तुम्हें इस रंज (ग़म) के बदले हार का ग़म दिया ताकि जब कोई चीज़ हाथ से निकल जाती रहे या कोई मुसीबत पड़े उस पर रन्जीदा न हो और सब्र करना सीखो। और अल्लाह तुम्हारे आमाल से ख़ूब बाख़बर है |
154 | इसके बाद ख़ु़दा ने इस रंज के बाद तुम पर पुरसुकून नींद तारी कर दी और दूसरे गिरोह को नींद भी न आयी कि उसे भागने की शर्म से अपनी जान की फि़क्र थी और उनके ज़ेहन में खि़लाफ़े हक़ जाहिलियत जैसे ख़्यालात थे और वह ये कह रहे थे कि (भला) जंग के मामलात (फ़तेह) में हमारा कुछ इखि़्तयार है? ऐ पैग़म्बर कह दीजिए कि हर चीज़ का इखि़्तयार सिर्फ़ ख़ु़दा को है। ये अपने दिल में वह बातें छिपाये हुए हैं जिनका आप से इज़हार नहीं करते और कहते हैं कि अगर इखि़्तयार हमारे हाथ में होता तो हम यहां न मारे जाते तो ऐ रसूल आप कह दीजिए कि अगर तुम घरों में भी होते तो जिनके मुक़द्दर में लड़ के मर जाना लिखा था वह अपने घरों से (निकल-निकल कर) मक़तल तक ज़रूर आ जाते और ख़ु़दा तुम्हारे दिलों के हाल को आज़माना चाहता है और तुम्हारे ज़मीर की हक़ीक़त (लोगों के सामने) वाजे़ह करना चाहता है और वह ख़़ुद हर दिल का हाल जानता है |
155 | जिन लोगों ने (जंगे ओहद में) दोनों लश्करों के टकराव के दिन पीठ फेर कर भाग खड़े हुए ये वही हैं जिन्हें शैतान ने मुख़ालफ़ते रसूल की बिना पर बहका कर पाँव उखाड़ दिया और ख़ु़दा ने दर गुज़र कर दिया बेशक वह ग़्ाफ़़ूर (बड़ा बख़्शने वाला) और हलीम (बुर्दबार) है |
156 | ऐ ईमान वालों ख़बरदार काफि़रों जैसे न हो जाओ जिन्होंने अपने साथियों के सफ़र या जंग में मरने पर ये कहना शुरू कर दिया कि वह अगर हमारे पास होते तो न मरते और न क़त्ल किये जाते ताकि ख़़ुदा उनके दिल में इस रंज व हसरत को डाल दे कि मौत व हयात उसी के इखि़्तयार में है और वह तुम्हारे आमाल से ख़ूब बाख़बर है |
157 | अगर तुम राहे ख़ु़दा में मर गये या क़त्ल हो गये तो ख़ु़दा की तरफ़ से मग़फ़ेरत और रहमत उन चीज़ों से कहीं ज़्यादा बेहतर है जिन्हें ये जमा कर रहे हैं |
158 | और तुम अपनी मौत से मरो या क़त्ल हो जाओ बेशक सब अल्लाह ही की बारगाह में हाजि़र किये जाओगे |
159 | ऐ पैग़म्बर! ये अल्लाह की मेहरबानी है कि तुम उन लोगों के लिए नरम हो वरना अगर तुम बदमिजाज़ और सख़्त दिल होते तो ये तुम्हारे पास से भाग खड़े होते लेहाज़ा अब उन्हें माॅफ़ कर दो। उनके लिए अस्तग़फ़ार करो और उनसे और मामलात में मशविरा भी करो और जब आखि़री इरादा कर लो तो अल्लाह पर भरोसा करो कि वह भरोसा करने वालों को दोस्त रखता है |
160 | अगर अल्लाह तुम्हारी मदद करे तो कोई तुम पर ग़ालिब नहीं आ सकता और अगर वह तुम्हारी मदद न करे तो उसके बाद कौन है जो तुम्हारी मदद करेगा और साहेबाने ईमान तो सिर्फ़ अल्लाह ही पर भरोसा करते हैं |
161 | किसी नबी की हरगिज़ यह शान नहीं है कि वह ख़यानत (पराए माल में कमी) करे और जो ख़यानत (पराए माल में कमी) करेगा उसे रोज़े क़यामत ख़यानत के माल समेत हाजि़र होना होगा इसके बाद हर शख़्स को उसके किये का पूरा-पूरा बदला दिया जायेगा और किसी पर कोई ज़्ाु़ल्म (हक़ तल्फ़ी) नहीं किया जायेगा |
162 | भला क्या रज़ाए इलाही का पाबंद उसके जैसा हो सकता है जो ग़ज़बे इलाही में गिरफ़्तार हो और जिसका ठिकाना जहन्नुम है और वह क्या बद्तरीन मंजि़ल है |
163 | वह लोग ख़़ुदा के यहाँ अलग-अलग दरजों के हैं। और जो कुछ वह करते हैं ख़़ुदा उसे देख रहा है। |
164 | यक़ीनन ख़ु़दा ने साहेबाने ईमान पर तो बड़ा एहसान किया है कि उनके वास्ते उन्हीं में से एक रसूल भेजा जो उन्हें आयाते इलाही पढ़-पढ़ कर सुनाता है और उनकी तबियतों को पाकीज़ा करता है और किताब व हिकमत (अक़्ल) की बातें सिखाता है अगरचे ये लोग पहले से खुली गुमराही में मुब्तिला (पड़े) थे |
165 | मुसलमानों क्या जब तुम पर (जंगे ओहद में) वह मुसीबत पड़ी जिसकी दुगनी (मुसीबत) तुम कुफ़्फ़ार पर डाल चुके थे तो (घबरा के) तुम ये कहने लगे कि ये कैसे हो गया, तो पैग़म्बर आप कह दीजिए कि ये तो ख़़ुद तुम्हारी ही तरफ़ से है बेशक अल्लाह हर शय पर क़ादिर है |
166 | और जो कुछ भी (जंगे ओहद में) इस्लाम व कुफ्ऱ के मुक़ाबले के दिन तुम लोगों को तकलीफ़ पहुंची (वह तुम्हारी शरारत की वजह से) वह ख़ु़दा के इज़्न (आज्ञा) से आई ताकि वह मोमिनीन को देख ले कि कौन हैं |
167 | और मुनाफ़ेक़ीन को भी देख ले कि कौन हंै। और मुनाफ़ेक़ीन से कहा कि आओ राहे ख़ु़दा में जेहाद करो या अपने दुष्मन से दिफ़ा करो तो उन्होंने कहा कि हमको अगर लड़ना आता होता तो हम तुम्हारे साथ ज़रूर लड़ते ये लोग उस दिन ईमान की निस्बत कुफ्ऱ से ज़्यादा क़रीब थे और ज़बान से वह कहते हैं जो दिल में नहीं होता और अल्लाह उनकी पोशीदा बातों से ख़़ूब बा ख़बर है |
168 | यही वह लोग हैं जिन्होंने अपने मक़तूल भाईयों के बारे में ये कहना शुरू कर दिया कि वह हमारी इताअत करते तो हर्गिज़्ा क़त्ल न होते तो पैग़म्बर उनसे कह दीजिए कि अगर तुम अपने दावे में सच्चे हो तो अब अपनी ही मौत को टाल दो |
169 | और ख़बरदार राहे ख़ु़दा में क़त्ल होने वालों को मुर्दा ख़्याल न करना बल्कि वह जि़न्दा हैं और अपने परवरदिगार के यहां से रिज़्क़ (रोज़ी) पाते हैं |
170 | ख़ु़दा की तरफ़ से पाने वाले फ़ज़्ल व करम से बहुत ख़ु़श हैं और जो अभी तक उनसे मुल्हिक़ (मिलना) नहीं हो सके हैं उनके बारे में ये ख़ु़शख़बरी रखते हैं कि (उनके शहीद होने पर) उनके वास्ते भी न कोई ख़ौफ़ है और न हुज़्न (ग़म) |
171 | वह अपने परवरदिगार की नेअमत, उनके फ़ज़्ल और उसके वादे से ख़ु़श हैं कि वह साहेबाने ईमान के अज्र (सवाब) को ज़ाया (बरबाद) नहीं करता |
172 | ये साहेबाने ईमान हैं जिन्होंने (ओहद में) ज़ख़्मी होने के बाद भी ख़ु़दा और रसूल की दावत पर लब्बैक (हाजि़र होना) कही। ऐसे नेक किरदार अफ़राद के लिए निहायत बड़ा दर्जा और अज्रे अज़ीम (बड़ा सवाब) है |
173 | ये वह ईमान वाले हैं कि जब उनसे बाअज़ लोगों ने कहा कि लोगों ने तुम्हारे लिए अज़ीम लश्कर जमा कर लिया है लेहाज़ा उनसे डरते रहो तो (बजाए ख़ौफ़ के) उनके ईमान में और इज़ाफ़ा हो गया और उन्होंने कहा कि हमारे लिए ख़ु़दा काफ़ी है और वह क्या अच्छा कारसाज़ है |
174 | पस ये मुजाहेदीन ख़ु़दा के फ़ज़्ल व करम से गए (जब लड़ाई न हुई) तो यूँ पलट आये कि उन्हें कोई तकलीफ़ नहीं पहुंची और वह रज़ाए इलाही के पाबन्द रहे और अल्लाह साहेबे फ़ज़्ले अज़ीम (बड़ा) है |
175 | ये (मुख़बिर) बस शैतान था जो अपने चाहने वालों को (रसूल का साथ देने से) डराता है लेहाज़ा तुम उनसे न डरो और अगर मोमिन हो तो मुझ ही से डरते रहो |
176 | और आप कुफ्ऱ में तेज़ी करने वालों की तरफ़ से रंजीदा न हों ये ख़ु़दा का कोई नुक़सान नहीं कर सकते। ख़ु़दा चाहता है कि उनका आखि़रत में कोई हिस्सा न रह जाये और सिर्फ़ अज़ाबे अज़ीम (बड़ा अज़ाब) रह जाये |
177 | यक़ीनन जिन लोगों ने ईमान के बदले कुफ्ऱ ख़रीद लिया है वह ख़ु़दा को कोई नुक़सान नहीं पहुंचा सकते और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है |
178 | और ये कुफ़्फ़ार ये न समझें कि हमने जिस क़द्र रस्सी ढीली कर रखी है वह उनके हक़ में कोई भलाई है। यह तो सिर्फ़ इसलिए है कि वह जितना गुनाह कर सकें कर लें (आखि़र तो) उनके लिए रूसवा कुन (ज़लालत वाला) अज़ाब है |
179 | (मुनाफि़क़ों) ख़ु़दा साहेबाने ईमान को तुम्हारी ही हालात में नहीं छोड़ सकता जब तक भले बुरे की तमीज़ न कर ले और ख़़ुदा ऐसा भी नही है कि तुम्हें ग़ैब की बातें बता दे। हाँ अपने रसूलों में से जिसे चाहता है (ग़ैब बताने के लिए) मुन्तख़ब (चुन) कर लेता है लेहाज़ा तुम ख़ु़दा और उसके रसूलों पर ईमान लाओ और अगर ईमान व तक़्वा (परहेज़गारी) इखि़्तयार करोगे तो तुम्हारे लिए अज्रे अज़ीम है |
180 | और ख़बरदार जो लोग ख़ु़दा के दिये हुए (माल) में बुख़्ल (कंजूसी) करते हैं उनके बारे में (हरगिज़) ये न सोचना कि इस बुख़्ल (कंजूसी) में कुछ भलाई है। ये बहुत बुरा है और अनक़रीब (क़यामत के दिन) जिस माल में बुख़्ल किया है वह उनकी गर्दन में उसका तौक़ बना कर डाल दिया जायेगा और सारे ज़मीन व आसमान की मिल्कियत अल्लाह ही के लिए है। और वह तुम्हारे आमाल से ख़ूब बाख़बर है |
181 | अल्लाह ने उनकी बात को भी सुन लिया है जिनका (यहूदी) कहना है कि ख़ु़दा फ़क़ीर (कंगाल) है और हम मालदार हैं हम उनकी इस मोहमल (बकवास) बात को और उनके अम्बिया को नाहक़ क़त्ल करने को लिख रहे हैं और क़यामत में अंजामकार उनसे कहेंगे कि अब जलाने वाले अज़ाब का मज़ा चख़ो |
182 | यह उन्हीं कामों का बदला है जिसे तुमने पहले ही अपने हाथों से (ज़ादे आखि़रत) बना कर भेजा है। वरना ख़ु़दा तो कभी अपने बन्दों पर ज़्ाु़ल्म नहीं करता |
183 | (यह वही लोग हैं) जो ये कहते हैं कि अल्लाह ने तो हमसे अहद लिया है कि हम उस वक़्त तक किसी रसूल पर ईमान न लायें जब तक वह (कोई चमत्कार न दिखा दें) यानि ऐसी क़ु़र्बानी पेश करे जिसे आसमानी आग खा (आकर चट कर) जाये तो (ऐ रसूल) उनसे कह दीजिए कि मुझसे पहले बहुत से रसूल मोजिज़ात (चमत्कार) ले कर आए और तुम्हारी (उस वक़्त की) फ़रमाईश के मुताबिक़ सच्ची निशानी भी ले आये फिर तुमने उन्हें क्यों क़त्ल कर दिया, अगर तुम अपनी बात में सच्चे हो? |
184 | (ऐ रसूल) इसके बाद भी अगर वह आपको तकज़ीब (झुठलायें) करें तो आपसे पहले भी (बहुत से) रसूलों की तकज़ीब (झुठलाया गया है) हो चुकी है जबकि वह मोजिज़ात (चमत्कार), मवाएज़ (नसीहत) और रौशन (आसमानी) किताब सब कुछ लेकर आये थे |
185 | और हर नफ़्स (जान) (एक न एक दिन) मौत का मज़ा चखने वाला है और (अपने किए का) तुम्हारा मुकम्मल (पूरा-पूरा) बदला तो क़यामत के दिन मिलेगा। उस दिन जिसे जहन्नुम से बचा लिया गया और जन्नत में दाखि़ल कर दिया गया वही कामयाब है और जि़न्दगानी दुनिया तो सिर्फ़ धोखे का (की टट्टी) सरमाया है |
186 | (मुसलमानों!) यक़ीनन तुम अपने अमवाल (मालों) और नफ़्स (जानों) के ज़रिये आज़माये जाओगे और जिनको तुमसे पहले किताब दी गई है (यहूद और नसारा) और जो मुशरिक़ हो गये हैं (उन) सबकी तरफ़ से बहुत अज़ीयतनाक (तकलीफ़देह) बातंे तुम्हें सुननी पड़ेंगी अब अगर तुम सब्र करोगे (और इन मुसीबतों को झेल जाओगे) और तक़वा इखि़्तयार करोगे तो बेशक यह बड़े हिम्मत का काम है |
187 | ऐ रसूल इनको उस मौक़े को याद दिलाओ जब ख़ु़दा ने जिनको किताब दी उनसे अहद लिया था कि इसे लोगों को साफ़-साफ़ बयान कर देना और ख़बरदार इसकी कोई बात छिपाना नहीं, लेकिन उन्हांेने इस अहद को पसेपुश्त डाल दिया और उसके बदले में थोड़ी सी क़ीमत पर बेच दिया तो ये क्या ही बुरा सौदा है |
188 | (ऐ रसूल) जो लोग अपने किये पर मग़रूर हैं और चाहते हैं कि जो अच्छे काम नहीं किये हैं उन पर भी उनकी तारीफ़ की जाये तो ख़बरदार उन्हें अज़ाब से महफ़ूज़ ख़्याल भी न करना, उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है |
189 | और कुल ज़मीन व आसमान पर अल्लाह ही की हुकूमत है और ख़़ुदा ही हर चीज़ पर क़ादिर है |
190 | बेशक ज़मीन व आसमान की खि़ल्क़त लैलोनहार (रात-दिन) की आमद व रफ़्त (आने-जाने) में साहेबाने अक़्ल के लिए (क़ुदरते ख़ुदा) की बहुत सी निशानियां हैं |
191 | जो लोग उठते, बैठते, करवट लेते ख़ु़दा को याद करते हैं और आसमान और ज़मीन की बनावट में ग़ौरो फि़क्र करते हैं कि ख़ु़दाया तूने ये सब बेकार नहीं पैदा किया है, तू पाक व पाकीज़ा है, बस हमें अज़ाबे जहन्नुम से महफ़ूज़ फ़रमा |
192 | परवरदिगार तू जिसे जहन्नुम में डाल देगा यक़ीनन उसे ज़लील व रूसवा कर दिया और ज़ालेमीन का कोई मददगार नहीं है |
193 | ऐ परवरदिगार हमने उस मुनादी (पैग़म्बर) को सुना जो ईमान लाने के लिए यूं आवाज़ लगा रहा था कि अपने परवरदिगार पर ईमान ले आओ तो हम ईमान ले आये। परवरदिगार अब हमारे गुनाहों को माफ़ फ़रमा और हमारी बुराईयों को हम से दूर फ़रमा और हमें नेक बन्दों के साथ दुनिया से उठा ले |
194 | परवरदिगार जो तुमने अपने रसूलों के ज़रिए हमसे वादा किया है उसे अता फ़रमा और रोज़े क़यामत हमें रूसवा न करना कि तू तो वादा खि़लाफी़ करता ही नहीं |
195 | पस ख़ु़दा ने उनकी दुआ को कु़बूल किया (और फ़रमाया) कि मैं तुम में से किसी भी अमल करने वाले के अमल को ज़ाया (अकारत) नहीं करूँगा चाहे वह मर्द हो या औरत क्योंकि (इसमें किसी को कुछ ख़़ुसूसियत नहीं) तुम एक दूसरे (की जिन्स) से हो। पस जिन लोगों ने हमारे लिए हिजरत की और अपने वतन से निकाले गये और मेरी राह में सताये गये और उन्हांेने (कुफ़्फ़ार से) जेहाद किया और शहीद हो गये तो मैं उनकी बुराईयों से ज़रूर दरगुज़र करूँगा और उन्हें जन्नत के उन बाग़ों में दाखि़ल करूँगा जिनके नीचे नहरें जारी हैं। ये ख़ु़दा की तरफ़ से उनके किए का (बेहतरीन) बदला है और उसके यहाँ तो (बेहतरीन) ही अज्र है |
196 | ऐ रसूल कुफ़्फ़ार का शहर-शहर चैन से चक्कर लगाना तुम्हें धोखे में न डाल दे |
197 | ये चन्द रोज़ा फ़ायदा है फिर तो उनका ठिकाना जहन्नुम है और वह बदतरीन मंजि़ल है |
198 | लेकिन जिन लोगों ने तक़वाए इलाही (परहेज़गारी) इखि़्तयार किया उनके लिए (जन्नत के) वह बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं। ये ख़ु़दा की तरफ़ से उनकी जि़याफ़त (दावत) हैै और जो कुछ उसके पास है सब नेक अफ़राद के लिए (दुनिया से कहीं बेहतर) है |
199 | और अहले किताब में से कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अल्लाह पर और जो कुछ (किताब) तुम्हारी तरफ़ नाजि़ल हुई है और जो (किताब)े उनकी तरफ़ नाजि़ल हुई है सब पर ईमान रखते हैं और अल्लाह के सामने सर झुकाये हुए हैं। और आयाते ख़ु़दा को हक़ीर (मामूली) सी क़ीमत पर फ़रोख़्त (बेचा) नहीं करते। ऐसे ही लोगों के लिए परवरदिगार के यहां अच्छा अज्र (बदला) है और (बेशक) ख़ु़दा बहुत जल्द हिसाब करने वाला है |
200 | ऐ ईमान वालों सब्र करो और दूसरों को सब्र की तालीम दो जेहाद के लिए तैयारी करो और अल्लाह से डरो ताकि तुम फ़लाह याफ़्ता और (दिली मुराद हासिल करने में) कामयाब हो जाओ |
Wednesday, 15 April 2015
Sura-a-Aal-e-imran 3rd sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.),
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment