सूरा-ए-अलजुहा | ||
93 | अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू। | |
93 | 1 | क़सम है एक पहर चढ़े दिन की |
93 | 2 | और क़सम है रात की जब वह चीज़ों की पर्दापोशी करे (छुपा ले) |
93 | 3 | तुम्हारे परवरदिगार (पालने वाले) ने न तुमको छोड़ा है और न तुमसे नाराज़ हुआ है |
93 | 4 | और आखि़रत तुम्हारे लिए दुनिया से कहीं ज़्यादा बेहतर (ज़्यादा अच्छी) है |
93 | 5 | और अनक़रीब (बहुत जल्द) तुम्हारा परवरदिगार (पालने वाले) तुम्हें इस क़द्र अता कर देगा कि ख़ु़श हो जाओ |
93 | 6 | क्या उसने तुमको यतीम पाकर पनाह नहीं दी है |
93 | 7 | और क्या तुमको गुमगुश्ता (खोया हुआ) पाकर मंजि़ल (आखि़री जगह) तक नहीं पहुँचाया है |
93 | 8 | और तुमको तंगदस्त (माल के एतबार से ग़रीब) पाकर ग़नी (मालदार) नहीं बनाया है |
93 | 9 | लेहाज़ा (इसलिये) अब तुम यतीम पर क़हर न करना |
93 | 10 | और सायल (सवाल करने वाले) को झिड़क मत देना |
93 | 11 | और अपने परवरदिगार (पालने वाले) की नेअमतों को बराबर बयान करते रहना |
Saturday, 18 April 2015
Sura-e-Al-Zuha 93rd surah of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)
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