सूरा-ए-बक़रा | |
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा रहमान और रहीम है। | |
1 | अलिफ़ लाम मीम |
2 | ये वह किताब है जिसमें किसी तरह के शक व शुबहे की गुंजाईश नहीं है। ये साहेबाने तक़वा और परहेज़गार लोगों के लिए मुजस्सम हिदायत है |
3 | जो ग़ैब पर ईमान रखते हैं पाबन्दी से पूरे एहतेमाम के साथ नमाज़ अदा करते हैं और जो कुछ हमने रिज़्क़ दिया है उसमें से हमारी राह में खर्च भी करते हैं |
4 | वह उन तमाम बातों पर भी ईमान रखते हैं जिन्हें (ऐ रसूल) हमने आप पर नाजि़ल किया है और जो आपसे पहले नाजि़ल की गई हैं और आख़ेरत पर भी यक़ीन रखते हैं |
5 | यही वह लोग हैं जो अपने परवरदिगार की तरफ़ से हिदायत के हामिल हैं और फ़लाह याफ़्ता और कामयाब हैं |
6 | ऐ रसूल! जिन लोगों ने कुफ्ऱ इखि़्तयार कर लिया है उनके लिए सब बराबर है। आप उन्हें डरायें या न डरायें ये ईमान लाने वाले नहीं हैं |
7 | ख़ुदा ने इनके दिलों और कानों पर गोया मोहर लगा दी है कि न कुछ सुनते हैं और न समझते हैं और आँखों पर भी पर्दे पड़ गये हैं। इनके वास्ते आख़ेरत में अज़ाबे अज़ीम है |
8 | कुछ लोग ऐसे भी हैं जो ये कहते हैं कि हम ख़ु़दा और आखे़रत पर ईमान लाये हैं हालांकि वह साहेबे ईमान नहीं हैं |
9 | ये ख़ु़दा और साहेबाने ईमान को धोका देना चाहते हैं हालांकि अपने ही को धोका दे रहे हैं और समझते भी नहीं हैं |
10 | इनके दिलों में बीमारी है और ख़ुदा ने निफ़ाक़ की बिना पर इसे और भी बढ़ा दिया है। अब इस झूठ के नतीजे में इन्हें दर्दनाक अज़ाब मिलेगा |
11 | जब इनसे कहा जाता है कि ज़मीन में फ़साद न बरपा करो (फैलाओ) तो कहते हैं कि हम तो सिर्फ़ इसलाह करने वाले हैं |
12 | हालांकि ये सब मुफ़सिद (फ़सादी) हैं और अपने फ़साद को समझते भी नहीं हैं |
13 | जब इनसे कहा जाता है कि दूसरे मोमिनीन की तरह ईमान ले आओ तो कहते हैं कि हम बेवक़ूफ़ों की तरह ईमान इखि़्तयार कर लें हालांकि असल में यही बेवक़़़ूफ़ हैं और इन्हें इसकी वाक़फि़यत भी नहीं है |
14 | जब ये साहेबाने ईमान से मिलते हैं तो कहते हैं कि हम ईमान ले आये और जब अपने शयातीन की ख़लवतों (अकेले) में जाते हैं तो कहते हैं कि हम तुम्हारी ही पार्टी में (तुम्हारे साथ) हैं हम तो सिर्फ़ साहेबाने ईमान का मज़ाक़ उड़ाते हैं |
15 | हालांकि ख़ु़दा ख़़ुद उनको मज़ाक़ बनाये हुए है और उन्हें सरकशी में ढील दिये हुए है जो उन्हें नज़र भी नहीं आ रही है |
16 | यही वह लोग हैं जिन्होंने हिदायत को देकर गुमराही ख़रीद ली है जिस तिजारत से न कोई फ़ायदा है और न इसमें किसी तरह की हिदायत है |
17 | इनकी मिसाल उस शख़्स की (तरह) हैं जिसने रौशनी के लिए आग भड़कायी और जब रौशनी हर तरफ़ फैल गयी तो ख़ु़दा ने उसके नूर को सल्ब कर लिया और अब उसे अंधेरे में कुछ सूझता भी नहीं है |
18 | ये सब बहरे, गूंगे और अंधे हो गये हैं और अब पलट कर आने वाले नहीं हैं |
19 | इनकी दूसरी मिसाल आसमान की उस बारिश की है जिसमें तारीकी और गरज चमक सब कुछ हो कि मौत के ख़ौफ़ से कड़क देखकर कानों में उंगलियां रख लें। हालांकि ख़ु़दा काफि़रों का एहाता किये हुए है और ये बचकर नहीं जा सकते हैं |
20 | क़रीब है कि बिजली इनकी आंखों को चका चैंध कर दे कि जब वह चमक जाये तो चल पड़ें और जब अंधेरा हो जाये तो ठहर जायें। ख़ु़दा चाहे तो इनकी समाअत (सुनने की सलाहियत) व बसारत (बीनाई) को भी ख़त्म कर सकता है कि वह हर शै (चीज़) पर कु़दरत व इखि़्तयार रखने वाला है |
21 | ऐ इंसानों! परवरदिगार की इबादत करो जिसने तुम्हें भी पैदा किया है और तुमसे पहले वालों को भी ख़ल्क़ किया है। शायद कि तुम इसी तरह मुत्तक़ी और परहेज़गार बन जाओ |
22 | उस परवरदिगार ने तुम्हारे लिए ज़मीन का फ़र्ष और आसमान का शामियाना बनाया है और फिर आसमान से पानी बरसा कर तुम्हारी रोज़ी के लिए ज़मीन से फ़ल निकाले हैं लेहाज़ा उसके लिए जान बूझ कर किसी को हमसर और मिस्ल न बनाओ |
23 | अगर तुम्हें इस कलाम के बारे में कोई शक है जिसे हमने अपने बन्दे पर नाजि़ल किया है तो उसका जैसा एक ही सूरा ले आओ और अल्लाह के अलावा जितने तुम्हारे मददगार हैं सबको बुला लो अगर तुम अपने दावे और ख़्याल में सच्चे हो |
24 | और अगर तुम ऐसा न कर सके और यक़ीनन न कर सकोगे तो उस आग से डरो जिसका ईंधन इंसान और पत्थर हैं और जिसे काफ़ेरीन (कुफ्ऱ करने वालों) के लिए मुहैय्या किया गया है |
25 | पैग़म्बर आप ईमान और अमले सालेह (अच्छे काम करने) वालों को बशारत दे दें कि उनके लिए ऐसे बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं। उन्हें जब भी वहां कोई फल दिया जायेगा वह यही कहेंगे कि ये तो हमें पहले मिल चुका है। हालांकि वह सिर्फ़ उसके मुशाबेह होगा और उनके लिए वहां पाकीज़ा बीवियां भी होंगी और उन्हें उसमें हमेशा रहना भी है |
26 | अल्लाह इस बात में कोई शर्म नहीं महसूस करता कि वह मच्छर या इससे भी कमतर की मिसाल बयान करे। अब जो साहेबाने ईमान हैं वह जानते हैं कि ये सब परवरदिगार की तरफ़ से बरहक़ है और जिन्होंने कुफ्ऱ इखि़्तयार किया है वह यही कहते हैं कि आखि़र इन मिसालों से ख़ु़दा का मक़सद क्या है। ख़ु़दा इसी तरह बहुत से लोगों को गुमराही में छोड़ देता है और बहुत सों को हिदायत दे देता है और गुमराही सिर्फ़ उन्हीं का हिस्सा है जो फ़ासिक़ है |
27 | जो ख़ु़दा के साथ मज़बूत अहद करने के बाद भी उसे तोड़ देते हैं और जिसे ख़ु़दा ने जोड़ने का हुक्म दिया है उसे काट देते हैं और ज़मीन में फ़साद बरपा करते हैं यही वह लोग हैं जो हक़ीक़तन ख़सारे (घाटे) वाले हैं |
28 | आखि़र तुम लोग किस तरह कुफ्ऱ इखि़्तयार करते हो जबकि तुम बेजान थे और ख़ु़दा ने तुम्हें जि़न्दगी दी है और फिर मौत भी देगा और जि़न्दा भी करेगा और फिर उसकी बारगाह में पलटा कर ले जाये जाओगे |
29 | वह ख़ु़दा वह है जिसने ज़मीन के तमाम ज़ख़ीरों को तुम ही लोगों के लिए पैदा किया है इसके बाद उसने आसमान का रूख़ किया तो सात मुसतहकम (ठीक) आसमान बना दिये और वह हर शै (चीज़) का जानने वाला है |
30 | ऐ रसूल! उस वक़्त को याद करो जब तुम्हारे परवरदिगार ने मलायका से कहा कि मैं ज़मीन में अपना ख़लीफ़ा बनाने वाला हूँ और उन्होंने कहा कि क्या उसे बनायेगा जो ज़मीन में फ़साद बरपा करे और ख़ूँरेज़ी करे जबकि हम तेरी तसबीह और तक़दीस करते हैं तो इरशाद हुआ कि मैं वह जानता हूँ जो तुम नहीं जानते हो |
31 | और ख़ु़दा ने आदम को तमाम असमा (नामों) की तालीम दी और फिर उन सबको मलायका के सामने पेश करके फ़रमाया कि ज़रा तुम इन सबके नाम तो बताओ अगर तुम अपने ख़्याले इसतहक़ाक़ में सच्चे हो |
32 | मलायका ने अजऱ् की कि हम तो उतना ही जानते हैं जितना तूने बताया है कि तू साहेबे इल्म भी है और साहेबे हिकमत भी |
33 | इरशाद हुआ कि आदम अलैहिस्सलाम अब तुम इन्हें बाख़बर कर दो तो जब आदम ने बाख़बर कर दिया तो ख़ु़दा ने फ़रमाया कि मैंने तुमसे न कहा था कि मैं आसमान व ज़मीन के गै़ब को जानता हूँ और जो कुछ तुम ज़ाहिर करते हो या छिपाते हो सबको जानता हूँ |
34 | और याद करो वह मौक़ा जब हमने मलायका से कहा कि आदम के लिए सजदा करो तो इबलीस के अलावा सबने सजदा कर लिया उसने इन्कार और गु़रूर से काम लिया और काफ़ेरीन में हो गया |
35 | और हमने कहा कि ऐ आदम अब तुम अपनी ज़ौजा के साथ जन्नत में साकिन (दाखि़ल) हो जाओ और जहां चाहो आराम से खाओ सिर्फ़ उस दरख़्त के क़रीब न जाना कि अपने ऊपर जु़ल्म करने वालों में से हो जाओगे |
36 | तब शैतान ने उन्हें फ़रेब देने की कोशिश की और उन्हें उन नेअमतों से बाहर निकाल लिया और हमने कहा कि अब तुम ज़मीन पर उतर जाओ वहां एक दूसरे की दुश्मनी होगी और वहीं तुम्हारा मरकज़ होगा और एक ख़ास वक़्त तक के लिए ऐशे जि़न्दगानी रहेगा |
37 | फिर आदम ने परवरदिगार से कलेमात की तालीम हासिल की और उनकी बरकत से ख़ु़दा ने उनकी तौबा कु़बूल कर ली कि वह तौबा कु़बूल करने वाला और मेहरबान है |
38 | और हमने यह भी कहा कि यहां से उतर पड़ो फिर अगर हमारी तरफ़ से हिदायत (हुक्म) आ जाये तो जो भी उसका इत्तबा (पैरवी) कर लेगा उसके लिए न कोई ख़ौफ़ होगा न हुज़्न |
39 | जो लोग काफि़र हो गये और उन्होंने हमारी निशानियों को झुठला दिया वह जहन्नुमी हैं और हमेशा वहीं पड़े रहेंगे |
40 | ऐ बनी इसराईल! हमारी नेअमतों को याद करो जो हमने तुम पर नाजि़ल की हैं और हमारे अहद को पूरा करो हम तुम्हारे अहद को पूरा करेंगे और हमसे डरते रहो |
41 | हमनें जो कु़रआन तुम्हारी तौरेत की तसदीक़ के लिए भेजा है उस पर ईमान ले आओ और सबसे पहले काफि़र न बन जाओ। हमारी आयतों को मामूली क़ीमत पर न बेचो और हमसे डरते रहो |
42 | हक़ को बातिल से मख़लूत (मिलावट) न करो और जान बूझकर हक़ की परदा पोशी न करो |
43 | नमाज़ क़ायम करो ज़कात अदा करो और रूकूअ करने वालों के साथ रूकूअ करो |
44 | क्या तुम लोगों को नेकियों का हुक्म देते हो और ख़ुद अपने को भूल जाते हो जबकि किताबे ख़ु़दा की तिलावत भी करते हो। क्या तुम्हारे पास अक़्ल नहीं है |
45 | सब्र और नमाज़ के ज़रिये मदद मांगो। नमाज़ बहुत मुश्किल काम है मगर उन लोगों के लिए जो ख़ुशुअ व ख़ुज़्ा़ुअ वाले हैं |
46 | और जिन्हें यह ख़याल है कि उन्हें अल्लाह से मुलाक़ात करना है और उसकी बारगाह में वापस जाना है। |
47 | ऐ बनी इसराईल हमारी उन नेअमतों को याद करो जो हमनें तुम्हें इनायत की है (और यह भी तो सोचो कि) हमनें तुम्हें सारे जहान के लोगों से बेहतर बनाया है |
48 | उस दिन से डरो जिस दिन कोई किसी का बदल न बन सकेगा और किसी की सिफ़ारिश कु़़़बूल न होगी न कोई मुआवेज़ा लिया जायेगा और न किसी की मदद की जायेगी |
49 | और जब हमनें तुमको फि़रऔन वालों से बचा लिया जो तुम्हें बदतरीन दुख दे रहे थे, तुम्हारे बच्चों को क़त्ल कर रहे थे और औरतों को जि़न्दा रखते थे और इसमें तुम्हारे लिए बहुत बड़ा इम्तिहान था |
50 | हमारा यह एहसान भी याद करो कि हमनें दरिया को शिग़ाफ़्ता करके (फाड़ के) तुम्हें बचा लिया और फि़रऔन वालों को तुम्हारी निगाहों के सामने डुबो दिया |
51 | और हमने मूसा से चालीस रातों का वादा लिया तो तुमने उनके बाद गोसाला (बछड़ा) तैयार कर लिया कि तुम बड़े ज़ालिम हो |
52 | फिर हमने तुमको माफ़ कर दिया कि शायद शुक्र गुज़ार बन जाओ |
53 | और हमने मूसा को किताब और हक़ व बातिल को जुदा करने वाला कानून दिया कि शायद तुम हिदायत याफ़्ता बन जाओ |
54 | और वह वक़्त भी याद करो जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा कि तुमने गोसाला (बछड़ा) बनाकर अपने ऊपर ज़्ाु़ल्म किया है अब तुम ख़ालिक़ की बारगाह में तौबा करो और अपने नफ़्सों को क़त्ल कर डालो कि यही तुम्हारे हक़ में ख़ैर है फिर ख़ु़दा ने तुम्हारी तौबा कु़बूल कर ली कि वह बड़ा तौबा कु़बूल करने वाला मेहरबान है |
55 | और वह वक़्त भी याद करो जब तुमने मूसा अलैहिस्सलाम से कहा कि हम उस वक़्त तक ईमान न लायेंगे जब तक ख़ु़दा को एलानिया न देख लें जिसके बाद (आसमानी) बिजली ने तुमको ले डाला और तुम देखते ही रह गये |
56 | फिर हमने तुम्हें मौत के बाद जि़न्दा कर दिया कि शायद अब शुक्रगुज़ार बन जाओ |
57 | और हमने तुम्हारे सरों पर अब्र का साया किया तुम पर मन्नो सलवा (भुना हुआ परिन्दा) नाजि़ल किया कि पाकीज़ा रिज़्क़ इतमिनान से खाओ उन लोगों ने हमारा कुछ नहीं बिगाड़ा बल्कि ख़़ुद अपने नफ़्स पर ज़्ाुल्म किया है |
58 | और वह वक़्त भी याद करो कि जब हमने कहा कि इस क़रिये (बस्ती) में दाखिल हो जाओ और जहां चाहो इतमिनान से खाओ और दरवाज़े से सजदा करते हुए और हित्ता (बखि़्शष) कहते हुए दाखि़ल हो कि हम तुम्हारी ख़तायें माफ़ कर देंगे और हम नेक अमल वालों की जज़ा (सवाब) में इज़ाफ़ा (बढ़ोतरी) भी कर देते हैं |
59 | मगर ज़ालिमों ने जो बात उनसे कही गयी थी उसे बदल दिया तो हमने उन ज़ालिमों पर उनकी नाफ़रमानी की बिना पर आसमान से अज़ाब नाजि़ल कर दिया |
60 | और उस मौक़े को याद करो जब मूसा ने अपनी क़ौम के लिए पानी का मुताल्बा किया तो हमने कहा कि अपना असा पत्थर पर मारो जिसके नतीजे में बारह चश्में जारी हो गये और सबने अपना अपना घाट पहचान लिया अब हमने कहा कि मन्नो सलवा (भुना हुआ परिंदा) खाओ और चश्मे का पानी पियो और रूये ज़मीन में फसाद न फैलाओ |
61 | और वह वक़्त भी याद करो जब तुमने मूसा अलैहिस्सलाम से कहा कि हम एक कि़स्म के खाने पर सब्र नहीं कर सकते आप परवरदिगार से दुआ कीजिए कि हमारे लिए ज़मीन से सब्ज़ी, ककड़ी, लहसुन, मसूर और प्याज़ वगै़रह पैदा करे। मूसा अलैहिस्सलाम ने तुम्हें समझाया कि क्या बेहतरीन नेअमतों के बदले मामूली नेअमत लेना चाहते हो तो जाओ किसी शहर में उतर पड़ो वहां यह सब कुछ मिल जायेगा अब उन पर जि़ल्लत और मोहताजी की मार पड़ गयी और वह गज़बे इलाही में गिरफ्तार हो गये। यह सब इसलिए हुआ कि यह लोग आयाते इलाही का इन्कार करते थे और नाहक़ अम्बियाए ख़ु़दा को क़त्ल कर दिया करते थे इसलिए कि यह सब नाफ़रमान थे और ज़्ाु़ल्म किया करते थे |
62 | जो लोग बज़ाहिर ईमान लाये या यहूदी नसारा और सितारा परस्त हैं उनमें से जो वाक़ई अल्लाह और आखि़रत पर ईमान लायेगा और नेक अमल करेगा उसके लिए परवरदिगार के यहां अज्र व सवाब है और कोई हुज़्न व ख़ौफ नहीं है |
63 | और उस वक़्त को याद करो जब हमने तुमसे तौरेत पर अमल करने का अहद लिया और तुम्हारे सरों पर कोहेतूर को लटका दिया कि अब तौरेत को मज़बूती से पकड़ो और जो कुछ उसमें है उसे याद रखो, शायद इस तरह परहेज़गार बन जाओ। |
64 | फिर तुम लोगों ने इनहेराफ़ किया कि अगर फज़्ले ख़ु़दा और रहमते इलाही शामिले हाल न होती तो तुम ख़सारे वालों में से हो जाते |
65 | तुम उन लोगों को भी जानते हो जिन्होंने शम्बे (यौमे हफ़्ते) के मामले में ज़्यादती से काम लिया और हमने हुक्म दे दिया कि अब जि़ल्लत के साथ बन्दर बन जायें |
66 | और हमने इस जिन्सी तब्दीली को देखने वालों और बाद वालों के लिए इबरत और साहेबाने तक़वा (परहेज़गार) के लिये नसीहत बना दिया |
67 | और वह मौक़ा भी याद करो जब मूसा ने क़ौम से कहा कि ख़ु़दा का हुक्म है कि एक गाय जि़ब्हा करो तो उन लोगों ने कहा कि आप हमें मज़ाक बना रहे हैं फ़रमाया पनाह बख़ु़दा कि मैं जाहिलों में से हो जाऊँ |
68 | उन लोगों ने कहा कि अच्छा ख़ु़दा से दुआ कीजिए कि हमंें उसकी हक़ीक़त बतायें। उन्होंने कहा कि ऐसी गाय चाहिए कि जो न बूढ़ी हो, न बच्चा, दरम्यानी कि़स्म की हो अब हुक्मे ख़ु़दा पर अमल करो |
69 | उन लोगों ने कहा यह भी पूछिये कि रंग क्या होगा, कहा कि हुक्मे ख़ु़दा है कि ज़र्द भड़कदार रंग की हो जो देखने में भली मालूम हो |
70 | उन लोगों ने कहा कि ऐसी तो बहुत सी गाय हैं अब कौन सी जि़ब्हा करें इसे बयान किया जाये हम इन्शा अल्लाह तलाश कर लेंगे |
71 | हुक्म हुआ कि ऐसी गाय जो कारोबारी न हो न ज़मीन जोते न खेत सींचे ऐसी साफ़ सुथरी कि उसमें कोई धब्बा भी न हो। उन लोगों ने कहा कि अब आपने ठीक बयान किया है इसके बाद उन लोगों ने जि़ब्हा कर दिया हालांकि वह ऐसा करने वाले नहीं थे |
72 | और जब तुमने एक शख़्स को क़त्ल कर दिया और उसके क़ातिल के बारे में झगड़ा करने लगे जबकि ख़ु़दा इस राज़ का वाज़ेह करने वाला है जिसे तुम छिपा रहे थे |
73 | तो हमने कहा कि मक़तूल को गाय के टुकड़े से मस कर दो ख़ु़दा इसी तरह मुर्दो को जि़न्दा करता है और तुम्हें अपनी निशानियां दिखलाता है कि शायद तुम्हें अक़्ल आ जाये |
74 | फिर तुम्हारे दिल सख़्त हो गये जैसे पत्थर या इससे भी कुछ ज़्यादा सख़्त कि पत्थरों में से तो बाज़ से नहरें भी जारी हो जाती हैं बाज़ शिगाफ़्ता हो जाते हैं तो उनसे पानी निकल आता है और बाज़ ख़ौफे ख़ु़दा से गिर पड़ते हैं, लेकिन अल्लाह तुम्हारे आमाल से गा़फि़ल नहीं है |
75 | मुसलमानों क्या तुम्हें उम्मीद है कि ये यहूदी तुम्हारी तरह ईमान ले आयेंगे जबकि उनके असलाफ़ (बाप दादा) का एक गिरोह कलामे ख़ु़दा को सुनकर तहरीफ़ कर देता था हालांकि सब समझते भी थे और जानते भी थे |
76 | यह यहूदी ईमान वालों से मिलते हैं तो कहते हैं कि हम भी ईमान ले आये और आपस में एक दूसरे से मिलते हैं तो कहते हैं कि क्या तुम मुसलमानों को तौरेत के मतालिब बता दोगे कि वह अपने नबी के औसाफ़ से तुम्हारे ऊपर इस्तेदलाल करें क्या तुम्हें अक़्ल नहीं है कि ऐसी हिमाक़त करोगे |
77 | क्या तुम्हें नहीं मालूम कि ख़ु़दा सब कुछ जानता है जिसका यह इज़हार कर रहे हैं और जिसकी यह परदापोशी कर रहे हैं |
78 | उन यहूदियों में कुछ ऐसे जाहिल भी हैं जो तौरेत को याद किये हुए हैं और उसके बारे में सिवाए उम्मीदों के कुछ नहीं जानते हैं हालांकि ये उनका फ़क़त ख़्याले ख़ाम् (अटकल पच्चू) है |
79 | वाय हो उन लोगों पर जो अपने हाथ से किताब लिखकर यह कहते हैं कि ये ख़ु़दा की तरफ़ से है ताकि उसे थोड़े दाम में बेच लें उनके लिए इस तहरीर पर भी अज़ाब है और उसकी कमाई पर भी |
80 | ये कहते हैं कि हमें आतिशे जहन्नम चन्द दिन के अलावा छू भी नहीं सकती उनसे पूछिये कि क्या तुमने अल्लाह से कोई अहेद ले लिया है जिसकी वह मुख़ालिफ़त नहीं कर सकता या उसके खि़लाफ़ जिहालत की बातें कर रहे हो |
81 | यक़ीनन जिसने कोई बुराई हासिल की और उसकी ग़लती ने उसे घेर लिया वह लोग अहले जहन्नम हैं और वहीं हमेशा रहने वाले हैं |
82 | और जो ईमान लाये और उन्हांेने नेक अमल किये वह अहले जन्नत हैं और वहीं (उसी में) हमेशा रहने वाले हैं |
83 | उस वक़्त को याद करो जब हमने बनी इसराईल से अहेद लिया कि ख़बरदार ख़ु़दा के अलावा किसी की इबादत न करना और माँ बाप, क़राबतदारों, यतीमों और मिसकीनों के साथ अच्छा बरताव करना। लोगों से अच्छी बातें करना, नमाज़ क़ायम करना, ज़कात अदा करना लेकिन उसके बाद तुम में से चन्द के अलावा वह सब मुन्हरिफ़ हो गए और तुम लोग तो बस इन्कार करने वाले ही हो। |
84 | और हमने तुमसे अहेद लिया कि आपस में एक दूसरे का ख़ून न बहाना और किसी को अपने वतन से निकाल बाहर न करना और तुमने उसका इक़रार किया और तुम ख़ुद ही उसके गवाह भी हो |
85 | लेकिन उसके बाद तुमने क़त्ल व ख़ून शुरू कर दिया। लोगांे को इलाक़े से बाहर निकालने लगे और गुनाह व तअदी ज़्ाुल्म में ज़ालिमांें की मदद करने लगे हालांकि कोई क़ैदी बनकर आता है तो फि़द्या देकर आज़ाद भी करा लेते हो जबकि शुरू से उनका निकालना ही हराम था क्या तुम किताब के एक हिस्से पर ईमान रखते हो और एक का इंकार कर देते हो ऐसा करने वालों की क्या सज़ा है सिवाए इसके कि जि़न्दगानी-ए-दुनिया में ज़लील हों और क़यामत के दिन सख़्त तरीन अज़ाब की तरफ़ पलटा दिये जायेंगे और अल्लाह तुम्हारे करतूत से बेख़बर नहीं है |
86 | ये वह लोग हैं जिन्हांेने आखि़रत को देकर दुनिया ख़रीद ली है अब न उनके अज़ाब में तख़्फ़ीफ़ (कमी) होगी और न उनकी मदद की जायेगी |
87 | हमने मूसा को किताब दी उनके पीछे रसूलों का सिलसिला क़ायम किया। ईसा बिन मरियम को वाज़ेह मोजिज़ात अता किये, रूहुल क़ुद्स से उनकी ताईद करा दी लेकिन क्या तुम्हारा मुस्तकि़ल तरीका यही है कि जब कोई रसूल तुम्हारी ख्व़ााहिश के खि़लाफ़ कोई पैग़ाम लेकर आता है तो अकड़ जाते हो और एक जमाअत को झुठला देते हो और एक को क़त्ल कर देते हो |
88 | और ये लोग कहते हैं कि हमारे दिलों पर परदे पड़े हुए हैं हमारी कुछ समझ में नहीं आता बेशक इनके कुफ्ऱ की बिना पर इन पर ख़ु़दा की मार है और यह बहुत कम ईमान ले आयेंगे |
89 | और जब इनके पास ख़ु़दा की तरफ से किताब आयी है जो इनकी तौरेत वगै़रह की तसदीक़ भी करने वाली है और इसके पहले वह दुश्मनों के मुक़ाबले में इसी के ज़रिये तलबे फ़तह भी करते थे लेकिन इसके आते ही मुन्किर हो गये हालांकि इसे पहचानते भी थे तो अब काफि़रों पर ख़ु़दा की लानत है |
90 | उन लोगों ने अपने नफ़्स का कितना बुरा सौदा किया है कि ज़बरदस्ती ख़ु़दा के नाजि़ल किये का इन्कार कर बैठे इस जि़द में कि ख़ु़दा अपने फ़ज़्लो करम से अपने जिस बन्दे पर जो चाहे नाजि़ल कर देता है अब ये गज़ब बालाये ग़ज़ब के हक़दार हैं और इनके लिए रूसवाकुन अज़ाब भी है |
91 | जब इनसे कहा जाता है कि ख़ुदा के नाजि़ल किये हुए पर ईमान ले आओ तो कहते हैं कि हम सिर्फ़ उस पर ईमान ले आयेंगे जो हम पर नाजि़ल हुआ है और इसके अलावा सबका इन्कार कर देते हैं अगर चे वह भी हक़ है और इनके पास जो कुछ है इसकी तसदीक़ करने वाला भी है अब आप इनसे कहें कि अगर तुम मोमिन हो तो इससे पहले अम्बियाए ख़ु़दा को क़त्ल क्यों करते थे |
92 | यक़ीनन मूसा तुम्हारे पास वाज़ेह निशानियां लेकर आये लेकिन तुमने इनके बाद गोसाला को इखि़्तयार कर लिया और तुम वाक़ई ज़ालिम हो |
93 | और उस वक़्त को याद करो जब हमने तुमसे तौरेत पर अमल करने का अहद लिया और तुम्हारे सरों पर कोहेतूर को मोअल्लक़ कर दिया कि तौरेत को मज़बूती से पकड़ लो तो उन्होंने डर के मारे फ़ौरन इक़रार कर लिया कि हमने सुन तो लिया लेकिन फिर नाफ़रमानी भी करेंगे कि उनके दिलों में गोसाला (बछड़े) की मोहब्बत घोलकर पिला दी गयी है पैग़म्बर इनसे कह दो कि अगर तुम ईमानदार हो तो तुम्हारा ईमान बहुत बुरे अहकाम देता है |
94 | इनसे कहो कि अगर सारे इन्सानांे में दारे आखि़रत फ़क़त तुम्हारे लिए है और तुम अपने दावे में सच्चे हो तो मौत की तमन्ना करो |
95 | और ये अपने पिछले आमाल की बिना पर हरगिज़ मौत की तमन्ना नहीं करेंगे कि ख़ु़दा ज़ालिमों के हालात से ख़ूब वाकि़फ़ है |
96 | ऐ रसूल! आप देखेंगे कि ये जि़न्दगी के सबसे ज़्यादा हरीस हैं और बाज़ मुशरेकीन तो ये चाहते हैं कि उन्हें हज़ार बरस की उम्र दे दी जाये जबकि यह हज़ार बरस भी जि़न्दा रहें तो तूले हयात इन्हें अज़ाबे इलाही से नहीं बचा सकता। अल्लाह इनके आमाल को ख़ूब देख रहा है |
97 | ऐ रसूल! कह दीजिए कि जो शख़्स भी जिबरईल का दुश्मन है उसे मालूम होना चाहिए कि जिबरईल ने आपके दिल पर कु़रआन हुक्मे ख़ु़दा से उतारा है जो साबिक़ किताबों की तसदीक़ करने वाला हिदायत और साहेबाने ईमान के लिए बशारत है |
98 | जो भी अल्लाह, मलायका, मुरसलीन और जिबरईल व मीकाईल का दुश्मन होगा उसे मालूम रहे कि ख़ु़दा भी तमाम काफि़रों का दुश्मन है |
99 | हमने आपकी तरफ रौशन निशानियां नाजि़ल की हैं और उनका इन्कार फ़ासिक़ों के सिवा कोई न करेगा |
100 | उनका हाल ये है कि जब भी उन्होंने कोई अहद किया तो एक फ़रीक़ ने ज़रूर तोड़ दिया बल्कि उनकी अकसरियत बेईमान ही है |
101 | और जब उनके पास ख़ु़दा की तरफ से साबिक़ की किताबों की तसदीक़ करने वाला रसूल आया तो अहले किताब की एक जमाअत ने किताबे ख़ु़दा को पसे पुश्त डाल दिया जैसे वह इसे जानते ही न हों |
102 | और उन बातों का इत्तेबा (की पैरवी) शुरू कर दिया जो शयातीन सुलेमान की सल्तनत में जपा करते थे हालांकि सुलेमान काफि़र नहीं थे काफि़र ये शयातीन थे जो लोगों को जादू की तालीम देते थे और फिर जो कुछ दो फ़रिश्तों हारूत व मारूत पर बाईबिल में नाजि़ल हुआ है वह इसकी भी तालीम उस वक़्त नहीं देते थे जब तक कि ये कह नहीं देते थे कि हम ज़रियए इम्तिहान हैं ख़बरदार तुम काफि़र न हो जाना लेकिन वह लोग उनसे वह बातें सीखते थे जिससे मियां बीवीं के दरम्यान झगड़ा करा दें हालांकि इज़्ने ख़ु़दा के बगै़र वह किसी को नुकसान नहीं पहुंचा सकते। ये उनसे वह सब कुछ सीखते थे जो उनके लिए मुजि़र था और उसका कोई फ़ायदा नहीं था। ये ख़ूब जानते थे कि जो भी उन चीज़ांे को ख़रीदेगा उसका आखि़रत में कोई हिस्सा न होगा, उन्हांेने अपने नफ़्स का बहुत बुरा सौदा किया है अगर ये कुछ जानते और समझते हांे |
103 | अगर ये लोग ईमान ले आते और मुत्तक़ी बन जाते तो ख़ु़दाई सवाब बहुत बेहतर था अगर उनकी समझ में आ जाता |
104 | ईमान वालों राएना (हमारी रिआयत करो) न कहा करो ’’उनज़्ाुरना’’ कहा करो और ग़ौर से सुना करो और याद रखो कि काफ़ेरीन के लिए बड़ा दर्दनाक अज़ाब है |
105 | काफि़र अहले किताब यहूद व नसारा और आम मुशरेक़ीन ये नहीं चाहते कि तुम्हारे ऊपर परवरदिगार की तरफ से कोई ख़ैर नाजि़ल हो हालांकि अल्लाह जिसे चाहता है अपनी रहमत के लिए मख़सूस कर लेता है और अल्लाह बड़े फ़ज़्ल व करम का मालिक है |
106 | और ऐ रसूल हम जब भी किसी आयत को मन्सूख़ करते हैं या दिलों से महो कर देते हैं तो उससे बेहतर या उसकी जैसी आयत ज़रूर ले आते हैं क्या तुम नहीं जानते कि अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है |
107 | क्या तुम नहीं जानते कि आसमान व ज़मीन की हुकूमत सिर्फ अल्लाह के लिए है और उसके अलावा कोई सरपरस्त है न मददगार |
108 | ऐ लोगों! क्या तुम ये चाहते हो कि अपने रसूल से वैसा ही मुतालबा करो जैसा कि मूसा से किया गया था तो याद रखो कि जिसने ईमान को कुफ्ऱ से बदल लिया वह बदतरीन रास्ते पर गुमराह हो गया है |
109 | बहुत से अहले किताब यह चाहते हैं कि तुम्हें भी ईमान के बाद काफि़र बना लें वह तुमसे हसद रखते हैं वरना हक़ उन पर बिल्कुल वाज़ेह है तो अब तुम इन्हें माफ़ कर दो और इनसे दर गुज़र करो यहां तक कि ख़ु़दा अपना कोई हुक्म भेज दे और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है |
110 | और तुम नमाज़ क़ायम करो और ज़कात अदा करो कि जो कुछ अपने वास्ते पहले भेज दोगे सब ख़ु़दा के यहां मिल जायेगा। ख़ु़दा तुम्हारे आमाल को ख़ूब देखने वाला है। |
111 | ये यहूदी कहते हैं कि जन्नत में यहूदियों और ईसाईयों के अलावा कोई दाखि़ल न होगा ये सिर्फ़ उनकी उम्मीदें हैं इनसे कह दीजिए कि अगर तुम सच्चे हो तो कोई दलील ले आओ |
112 | नहीं तो जो शख़्स अपना रूख़ ख़ु़दा की तरफ कर देगा और नेक अमल करेगा उसके लिए परवरदिगार के यहां अज्र है, और न कोई ख़ौफ़ है न हुज़्न |
113 | और यहूदी कहते हैं कि नसारा का मज़हब कुछ नहीं है और नसारा कहते हैं कि यहूदियों की कोई बुनियाद नहीं है हालांकि दोनों ही किताबे इलाही की तिलावत करते हैं और इसके पहले जाहिल मुशरेकीने अरब भी यही कहा करते थे ख़ु़दा उन सबके दरम्यान रोज़े क़यामत फ़ैसला करने वाला है |
114 | और इससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो मसाजिदे ख़ु़दा में उसका नाम लेने से मना करे और उनकी बर्बादी की कोशिश करे। उन लोगों का हिस्सा सिर्फ़ ये है कि मसाजिद में ख़ौफज़दा होकर दाखि़ल हों और उनके लिये दुनिया में रूसवाई है और आखि़रत में अज़ाबे अज़ीम |
115 | और अल्लाह के लिए मशरिक़ भी है और मग़रिब भी लेहाज़ा तुम जिस जगह भी कि़बले का रूख़ कर लोगे समझो वहीं ख़ु़दा मौजूद है वह साहिबे वुसअत भी है और साहिबे इल्म भी है |
116 | और यहूदी कहते हैं कि ख़ु़दा के औलाद भी है हालांकि वह पाक व बेनियाज़ है ज़मीन व आसमान में जो कुछ भी है सब उसी का है और सब उसी के फ़रमाबरदार हैं |
117 | वह ज़मीन व आसमान का मूजिद है और जब किसी अम्र का फ़ैसला कर लेता है तो सिर्फ कुन कहता है और वह चीज़ हो जाती है |
118 | यह जाहिल मुशरेकीन कहते हैं कि ख़ु़दा हमसे कलाम क्यों नहीं करता और हम पर आयत क्यों नाजि़ल नहीं करता। इनके पहले वाले भी ऐसी ही जिहालत की बातें कर चुके हैं इन सबके दिल मिलते जुलते हैं और हमने तो अहले यक़ीन के लिए आयात को वाज़ेह कर दिया है |
119 | ऐ पैग़म्बर हमने आपको हक़ के साथ बशारत देने वाला और डराने वाला बनाकर भेजा है और आपसे अहले जहन्नुम के बारे में कोई सवाल न किया जायेगा |
120 | यहूदो नसारा आपसे उस वक़्त तक राज़ी न होंगे जब तक आप उनकी मिल्लत की पैरवी न कर लें तो आप कह दीजिए कि हिदायत सिर्फ़ हिदायते परवरदिगार है और अगर आप इल्म के आने के बाद उनकी ख़्वाहिशात की पैरवी करंेगे तो फिर ख़ु़दा के अज़ाब से बचाने वाला न कोई सरपरस्त होगा न मददगार |
121 | और जिन लोगों को हमने कु़रआन दिया है वह इसकी बाक़ायदा तिलावत करते हैं और उन्हीं का इस पर ईमान भी है और जो इसका इन्कार करेगा उसका शुमार घाटा उठाने वालों में होगा |
122 | ऐ बनी इसराईल उन नेअमतों को याद करो जो हमने तुम्हें इनायत की हैं और जिनके तुफ़ैल तुम्हें सारे आलम से बेहतर बना दिया है |
123 | और उस दिन से डरो जिस दिन कोई किसी का फि़द्या न हो सकेगा और न कोई मुआवेज़ा काम आयेगा न कोई सिफ़ारिश होगी और न कोई मदद की जा सकेगी |
124 | और उस वक़्त को याद करो जब ख़ु़दा ने चन्द कलेमात के ज़रिये इब्राहीम का इम्तिहान लिया और उन्होंने पूरा कर दिया तो उसने (हक़ तआला ने) कहा कि हम तुमको लोगों का इमाम और क़ायद बना रहे हैं उन्होंने अर्ज़ की के मेरी ज़्ाुर्रियत? इरशाद हुआ कि यह ओहदा-ए-इमामत ज़ालेमीन तक नहीं जायेगा |
125 | और उस वक़्त को याद करो जब हमने ख़ाना-ए-काबा को सवाब और अमन की जगह बनाया और हुक्म दे दिया कि मक़ामे इब्राहीम को मुसल्ला बनाओ और इब्राहीम व इस्माईल से अहेद लिया कि हमारे घर को तवाफ़ और एतेकाफ़ करने वालों और रूकुअ व सजदा करने वालों के लिए पाक व पाकीज़ा बनाये रखो |
126 | और उस वक़्त को याद करो जब इब्राहीम ने दुआ की कि परवरदिगार इस शहर को अम्न का शहर क़रार दे दे और इसके उन अहले शहर को जो अल्लाह और आखि़रत पर ईमान रखते हों फलों का रिज़्क़ अता फ़रमा। इरशाद हुआ कि फिर जो काफि़र हो जायेंगे उन्हें दुनिया में थोड़ी नेअमतें देकर आखि़रत में अज़ाबे जहन्नम में ज़बरदस्ती ढकेल दिया जायेगा जो बदतरीन अंजाम है |
127 | और उस वक़्त को याद करो जब इब्राहीम व इस्माईल ख़ानए काबा की दीवारों को बुलन्द कर रहे थे और दिल मंे ये दुआ थी कि परवरदिगार हमारी मेहनत को कु़बूल फ़रमा ले कि तू बेहतरीन सुनने वाला और जानने वाला है |
128 | परवरदिगार हम दोनों को अपना मुसलमान और फ़रमाबरदार क़रार दे दे और हमारी औलाद में भी एक फ़रमाबरदार उम्मत पैदा कर। हमें हमारे मनासिक दिखला दे और हमारी तौबा कु़बूल फ़रमा कि तू बेहतरीन तौबा कु़बूल करने वाला मेहरबान है |
129 | परवरदिगार उनके दरम्यान एक रसूल को मबऊस फ़रमा जो उनके सामने तेरी आयतों की तिलावत करे उन्हें किताब व हिकमत की तालीम दे और उनके नुफ़ूस (नफ़्सों) को पाकीज़ा बनाये। बेशक तू साहेबे इज़्ज़त और साहेबे हिकमत है |
130 | और कौन है जो मिल्लते इब्राहीम अलैहिस्सलाम से इन्कार करे मगर ये कि अपने ही को बेवक़ूफ़ बनाये और हमने उन्हें दुनिया में मुन्तख़ब क़रार दिया है और वह आखि़रत में नेक किरदार लोगों में है |
131 | जब उनसे उनके परवरदिगार ने कहा कि अपने को मेरे हवाले कर दो तो उन्होंने कहा कि मैं रब्बुल आलमीन के लिए सरापा तसलीम हूँ |
132 | और इसी बात की इब्राहीम अलैहिस्सलाम और याकू़ब अलैहिस्सलाम ने अपनी औलाद को वसीयत की कि ऐ मेरे फ़रज़न्दों अल्लाह ने तुम्हारे लिए दीन को मुन्तख़ब कर दिया है अब उस वक़्त तक दुनिया से न जाना जब तक वाक़ई मुसलमान न हो जाओ |
133 | क्या तुम उस वक़्त मौजूद थे जब याकू़ब का वक़्ते मौत आया और उन्हांेने अपनी औलाद से पूछा कि मेरे बाद किसकी इबादत करोगे तो उन्होंने कहा कि आपके और आपके आबा व अज्दाद इब्राहीम व इस्माईल व इसहाक़ के परवरदिगार ख़ु़दाए वहदहू लाशरीक की और हम उसी के मुसलमान और फ़रमाबरदार हैं |
134 | यहूदियो! ये क़ौम थी जो गुज़र गई उन्हें वह मिलेगा जो उन्होंने कमाया और तुम्हंे वह मिलेगा जो तुम कमाओगे। तुमसे उनके आमाल के बारे में सवाल न होगा। |
135 | और ये यहूदी और ईसाई कहते हैं कि तुम लोग भी यहूदी और ईसाई हो जाओ ताकि हिदायत पा जाओ तो आप कह दें कि सही रास्ता बातिल से कतराकर चलने वाले इब्राहीम का रास्ता है कि वह मुशरेकीन में नहीं थे |
136 | और मुसलमानों ! तुम इनसे कहो कि हम अल्लाह पर और जो उसने हमारी तरफ़ भेजा है और जो इब्राहीम, इस्माईल, इसहाक़, याकू़ब, औलादे याकू़ब की तरफ़ नाजि़ल किया है और जो मूसा अलैहिस्सलाम, ईसा अलैहिस्सलाम और अम्बिया को परवरदिगार की तरफ़ से दिया गया है उन सब पर ईमान ले आये हैं हम पैग़म्बरों में तफ़रीक़ नहीं करते और हम ख़ु़दा के सच्चे मुसलमान हैं |
137 | अब अगर ये लोग भी ऐसा ही ईमान ले आयेंगे तो हिदायत याफ़्ता हो जायेंगे और अगर ऐअराज़ (इन्कार) करेंगे तो ये सिर्फ़ एनाद होगा और अनक़रीब अल्लाह तुम्हें उन सबके शर से बचा लेगा कि वह सुनने वाला भी है और जानने वाला भी है |
138 | रंग तो सिर्फ़ अल्लाह का रंग है और इससे बेहतर किसका रंग हो सकता है और हम सब उसी के इबादत गुज़ार हैं |
139 | ऐ रसूल कह दीजिए कि क्या तुम हमसे उस ख़ु़दा के बारे में झगड़ते हो जो हमारा भी परवरदिगार है और तुम्हारा भी तो हमारे लिए हमारे आमाल हैं और तुम्हारे लिए तुम्हारे आमाल और हम तो सिर्फ़ ख़ु़दा के मुख़लिस बन्दे हैं |
140 | क्या तुम्हारा कहना ये है कि इब्राहीम अलैहिस्सलाम, इस्माईल अलैहिस्सलाम, इसहाक़ अलैहिस्सलाम, याकू़ब अलैहिस्सलाम और औलादे याक़ू़ब अलैहिस्सलाम यहूदी या नसरानी थे तो ऐ रसूल कह दीजिए कि क्या तुम ख़ु़दा से बेहतर जानते हो और उससे बड़ा ज़ालिम कौन होगा जिसके पास ख़ु़दाई शहादत मौजूद हो और वह फिर परदा पोशी करे और अल्लाह तुम्हारे आमाल से ग़ाफि़ल नहीं है |
141 | ये उम्मत गुज़र चुकी है इसका हिस्सा वह है जो इसने किया है और तुम्हारा हिस्सा वह है जो तुम करोगे और ख़ु़दा तुमसे उनके आमाल के बारे में कोई सवाल नहीं करेगा |
142 | अनक़रीब अहमक़ लोग ये कहेंगे कि इन मुसलमानों को इस कि़बले से किसने मोड़ दिया है जिस पर पहले क़ायम थे तो ऐ पैग़म्बर कह दीजिए कि मशरिक़ व मग़रिब सब ख़ुदा के हैं वह जिसे चाहता है सिराते मुसतक़ीम कि हिदायत दे देता है। |
143 | और तहवीले कि़बला की तरह हमने तुमको दरम्यानी उम्मत क़रार दिया है ताकि तुम लोगों के आमाल के गवाह रहो और पैग़म्बर तुम्हारे आमाल के गवाह रहें और हमने पहले कि़बले को सिर्फ इस लिये कि़बला बनाया था कि हम यह देखें कि कौन रसूल का इत्तेबा करता है और कौन पिछले पांव पलट जाता है अगरचे यह कि़बला उन लोगों के अलावा सब पर गिरां है जिनकी अल्लाह ने हिदायत कर दी है और ख़ुदा तुम्हारे ईमान को ज़ाया नहीं करना चहता। वह बन्दों के हाल पर मेहरबान और रहम करने वाला है |
144 | ऐ रसूल हम आपकी तवज्जोह को आसमान की तरफ़ देख रहे हैं तो हम अनक़रीब आपको उस कि़बले की तरफ़ मोड़ देंगे जिसे आप पसन्द करते हैं लेहाज़ा आप अपना रूख़ मस्जिदुलहराम की जेहत की तरफ़ मोड़ दीजिए और जहां भी रहें इसी तरफ़ रूख़ कीजिए। अहले किताब ख़ूब जानते हैं कि ख़ु़दा की तरफ़ से यही बरहक़ है और अल्लाह उन लोगों के आमाल से ग़ाफि़ल नहीं है |
145 | अगर आप उन अहले किताब के पास तमाम आयतें भी पेश कर दें कि यह आपके कि़बले को मान लें तो हरगिज़ न मानेंगे और आप भी उनके कि़बले को न मानेंगे और यह आपस में भी एक दूसरे के कि़बले को नहीं मानते और इल्म के आ जाने के बाद अगर आप उनके ख़्वाहिशात का इत्तेबा कर लेंगे तो आपका शुमार ज़ालिमों में हो जायेगा |
146 | जिन लोगों को हमने किताब दी है वह रसूल को भी अपनी औलाद ही की तरह पहचानते हैं बस उनका एक गिरोह है जो हक़ को दीदा व दानिस्तां छिपा रहा है |
147 | ऐ रसूल यह हक़ आपके परवरदिगार की तरफ़ से है लेहाज़ा आप उन शक व शुबाह करने वालों में न हो जायें |
148 | हर एक के लिए एक रूख़ मोअय्यिन है और वह उसी की तरफ़ मुँह करता है अब तुम नेकियों की तरफ़ सबक़त करो और तुम सब जहां भी रहोगे ख़ु़दा एक दिन सबको जमा कर देगा कि वह हर चीज़ पर क़ादिर है |
149 | पैग़म्बर आप जहां से बाहर निकलें अपना रूख़ मस्जिदुलहराम की सिम्त ही रखें कि यही परवरदिगार की तरफ़ से हक़ है और अल्लाह तुम लोगों के आमाल से ग़ाफि़ल नहीं है |
150 | और आप जहां से भी निकलें अपना रूख़ ख़ानए काबा की तरफ रखें और फिर तुम सब जहां रहो तुम सब भी अपना रूख़ इधर ही रखो ताकि लोगों के लिए तुम्हारे ऊपर कोई हुज्जत न रह जाये सिवाए उन लोगों के जो ज़ालिम हैं तो उन का ख़ौफ़ न करो बल्कि अल्लाह से डरो कि हम तुम पर अपनी नेअमत तमाम कर देना चाहते हैं कि शायद तुम हिदायत याफ़्ता हो जाओ |
151 | जिस तरह हमने तुम्हारे दरम्यान तुम्हीं में से एक रसूल भेजा है जो तुम पर हमारी आयात की तिलावत करता है तुम्हे पाक व पाकीज़ा बनाता है और तुम्हें किताब व हिकमत की तालीम देता है और वह सब कुछ बताता है जो तुम नहीं जानते थे |
152 | अब तुम हमको याद करो ताकि हम तुम्हें याद रखें और हमारा शुक्रिया अदा करो और कुफ्ऱाने नेअमत न करो |
153 | ईमान वालों! सब्र और नमाज़ के ज़रिये मदद मांगो कि ख़ु़दा सब्र करने वालों के साथ है |
154 | और जो लोग राहे ख़ु़दा में क़त्ल हो जाते हैं उन्हें मुर्दा न कहो बल्कि वह जि़न्दा हैं लेकिन तुम्हें उनकी जि़न्दगी का शऊर नहीं है |
155 | और हम यक़ीनन तुम्हें थोड़े ख़ौफ़ थोड़ी भूख और अमवाल(माल), नफ़ूस(जानें) और समरात(फ़लों) की कमी से आज़मायेंगे और ऐ पैग़म्बर आप उन सब्र करने वालों को बशारत दे दें |
156 | जो मुसीबत पड़ने के बाद यह कहते हैं कि हम अल्लाह ही के लिए हैं और उसी की बारगाह में वापस जाने वाले हैं |
157 | कि उनके लिए परवरदिगार की तरफ से सलवात और रहमत है और वही हिदायत याफ़्ता हैं |
158 | बेशक सफ़ा और मरवा दोनों पहाडि़यां अल्लाह की निशानियों में हैं लेहाज़ा जो शख़्स भी हज या उमरा करे उसके लिए कोई हरज नहीं है कि इन दोनों पहाडि़यों का चक्कर लगाये और जो मज़ीद ख़ैर करेगा तो ख़ु़दा उसके अमल का क़दरदान और इससे ख़ूब वाकि़फ है |
159 | जो लोग हमारे नाजि़ल किये हुए वाज़ेह बयानात और हिदायात को हमारे बयान कर देने के बाद भी छिपाते हैं उन पर अल्लाह भी लानत करता है और तमाम लानत करने वाले भी लानत करते हैं |
160 | अलावा उन लोगों के जो तौबा कर लें और अपने किये की इस्लाह कर लें और जिसको छिपाया है उसको वाज़ेह कर दें तो हम उनकी तौबा कु़बूल कर लेते हैं कि हम बेहतरीन तौबा कु़बूल करने वाले और मेहरबान हैं |
161 | जो लोग काफि़र हो गये और इसी हालते कुफ्ऱ में मर गये उन पर अल्लाह, मलाएका और तमाम इन्सानों की लानत है |
162 | वह इसी लानत में हमेशा रहेंगे कि न उनके अज़ाब में तख़्फ़ीफ़ (कमी) होगी और न उन्हें मोहलत दी जायेगी |
163 | और तुम्हारा ख़ु़दा बस एक है उसके अलावा कोई ख़ु़दा नहीं है वही रहमान भी है और वही रहीम भी है |
164 | बेशक ज़मीन व आसमान की खि़ल्क़त, रोज़ व शब की रफ़्त व आमद (आमद-रफ़्त)। उन कश्तियों में जो दरियाओं में लोगों के फ़ायदे के लिए चलती हैं और उस पानी में जिसे ख़ु़दा ने आसमान से नाजि़ल करके उसके ज़रिये मुर्दा ज़मीनों को जि़न्दा कर दिया है और उसमें तरह तरह के चैपाये फैला दिये हैं और हवाओं के चलाने में और आसमान व ज़मीन के दरम्यान मुसख़्ख़र किये (काम में लगाए) जाने वाले बादल में साहेबाने अक़्ल के लिए अल्लाह की निशानियां पायी जाती हैं |
165 | और लोगांे में बाज़ (कुछ) ऐसे लोग भी हैं जो अल्लाह के अलावा दूसरों को उसका मिस्ल क़रार देते हैं और उनसे अल्लाह जैसी मोहब्बत भी करते हैं जबकि ईमान वालों की तमाम तर मोहब्बत ख़ु़दा से होती है और ऐ काश ज़ालेमीन इस बात को उस वक़्त देख लेते जो अज़ाब को देखने के बाद समझेंगे कि सारी क़ू़व्वत सिर्फ़ अल्लाह के लिए है और अल्लाह सख़्त तरीन अज़ाब करने वाला है |
166 | उस वक़्त जबकि पीर अपने मुरीदों से बेज़ारी का इज़हार करेंगे और सबके सामने अज़ाब होगा और तमाम वसाएल मुनक़ता हो चुके होंगे |
167 | और मुरीद (उनके पैरोकार) भी यह कहेंगे कि ऐ काश हमने उनसे इसी तरह बेज़ारी इखि़्तयार की होती जिस तरह यह आज हमसे नफ़रत कर रहे हैं ख़ु़दा इन सबके आमाल को इसी तरह हसरत बनाकर पेश करेगा और इनमें से कोई जहन्नुम से निकलने वाला नहीं है |
168 | ऐ इन्सानों ज़मीन में जो कुछ भी हलाल व तय्यब (पाकीज़ा) है इसे इस्तेमाल करो और शैतानी इक़दामात का इत्तेबा (अमल) न करो कि वह तुम्हारा खुला हुआ दुश्मन है |
169 | वह बस तुम्हें बदअमली और बदकारी (गुनाह) का हुक्म देता है और इस बात पर आमादा करता है कि ख़ु़दा के खि़लाफ़ जिहालत की बातें करते रहो |
170 | जब इनसे कहा जाता है कि जो कुछ ख़ु़दा ने नाजि़ल किया है उस का इत्तेबा (अमल) करो तो कहते हैं कि हम उसका इत्तेबा (अमल) करेंगे जिस पर हमने अपने बाप, दादा को पाया है। क्या ये ऐसा ही करेंगे चाहे उनके बाप व दादा बेअक़्ल ही रहे हों और हिदायत याफ़्ता न रहे हों |
171 | जो लोग काफि़र हो गये हैं उनके पुकारने वाले की मिसाल उस शख़्स की है जो जानवरों को आवाज़ दे और जानवर पुकार और आवाज़ के अलावा कुछ न सुनें और न समझें। ये कुफ़्फ़ार (काफि़र) बहरे, गूंगे और अंधे हैं। उन्हें अक़्ल से सरोकार नहीं है |
172 | साहेबाने ईमान जो हमने पाकीज़ा रिज़्क़ अता किया है उसे खाओ और देने वाले ख़ु़दा का शुक्रिया अदा करो अगर तुम उसकी इबादत करते हो |
173 | उसने तुम्हारे ऊपर बस मुरदार, ख़ून, सूअर का गोश्त और जो ग़ैरे ख़ु़दा के नाम पर जि़ब्हा किया जाये उसको हराम क़रार दिया है फिर भी अगर कोई मुज़तर (मजबूर/लाचार) हो जाए और हराम का तलबगार और ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल करने वाला न हो (वह इनमें से कोई चीज़ खा ले) तो उसके लिए कोई गुनाह नहीं है। बेशक ख़ु़दा बड़ा बख़्शने वाला और मेहरबान है |
174 | जो लोग ख़ु़दा की नाजि़ल की हुई किताब की बातों (अहकाम) को छिपाते हैं और इसे थोड़ी क़ीमत पर बेच डालते हैं वह दर हक़ीक़त अपने पेट में सिर्फ़ आग भर रहे हैं और ख़ु़दा रोज़े क़यामत उनसे बात भी न करेगा और न उन्हें पाकीज़ा क़रार देगा और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है |
175 | यही वह लोग हैं जिन्होंने गुमराही को हिदायत के बदले़ और अज़ाब को मग़फि़रत (बखि़्शश) के बदले ख़रीद लिया है आखि़र ये आतिशे जहन्नम किस क़द्र बर्दाश्त करेगा |
176 | ये अज़ाब सिर्फ़ इसलिए है कि अल्लाह ने किताब को हक़ के साथ नाजि़ल किया है और इसमें इखि़्तलाफ़ करने वाले हक़ से बहुत दूर होकर झगड़े कर रहे हैं |
177 | नेकी ये नहीं है कि अपना रूख़ मशरिक़ और मग़रिब की तरफ कर लो बल्कि नेकी उस शख़्स का हिस्सा है जो अल्लाह और आखि़रत, मलायका और किताब और अम्बिया पर ईमान ले आये और मोहब्बते ख़ु़दा में रिश्तेदारों (क़राबतदारों), यतीमों, मिसकीनों, ग़्ाु़रबतज़दों, मुसाफि़रों, सवाल करने वालों और ग़्ाु़लामों की आज़ादी के लिए माल (सर्फ़ कर) दे और नमाज़ क़ायम करे और ज़कात अदा करे और जो भी अहद करे उसे पूरा करे और फ़क़्र (भूख) व फ़ाकांे में और परेशानियों और बीमारियों में और मैदाने जंग के हालात में (अडिग) सब्र करने वाले हों तो यही लोग अपने दावाए ईमान व एहसान में सच्चे हैं और यही साहेबाने तक़्वा (मुत्तक़ी) और परहेज़गार हैं |
178 | ईमान वालों! तुम्हारे ऊपर मक़तूलीन के बारे में क़ेसास लिख दिया गया है आज़ाद के बदले आज़ाद और ग़्ाु़लाम के बदले ग़्ाु़लाम और औरत के बदले औरत अब अगर किसी को मक़तूल के वारिस की तरफ़ से माफ़ी मिल जाये तो नेकी का इत्तेबा करे और एहसान के साथ उसके हक़ को अदा कर दे। ये परवरदिगार की तरफ से तुम्हारे हक़ में तख़्फ़ीफ़ (सहूलत) और रहमत है लेकिन अब जो शख़्स ज़्यादती करेगा उसके लिए दर्दनाक अज़ाब है |
179 | साहेबाने अक़्ल तुम्हारे लिए क़ेसास में जि़न्दगी है कि शायद तुम इस तरह मुत्तक़ी (परहेज़गार) बन जाओ |
180 | तुम्हारे ऊपर ये भी लिख दिया है जब तुम में से किसी की मौत सामने आ जाये तो अगर कोई माल छोड़ा है तो अपने माँ बाप और क़राबतदारों के लिए वसीयत कर दें ये साहेबाने तक़वा (परहेज़गार) पर एक तरह का हक़ है |
181 | इसके बाद वसीयत को सुनकर जो शख़्स तब्दील कर देगा उसका गुनाह तब्दील करने वाले पर होगा तुम पर नहीं। ख़ु़दा सबका सुनने वाला और सबके हालात से बा ख़बर है |
182 | फिर अगर कोई शख़्स वसीयत करने वाले की तरफ़ से तरफ़दारी या नाइंसाफ़ी का ख़ौफ़ रखता हो और वह वोरसा (रिश्तेदारों) में सुलह करा दे तो उस पर कोई गुनाह नहीं है। अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला और मेहरबान है |
183 | साहेबाने ईमान तुम्हारे ऊपर रोज़े उसी तरह लिख दिये गये हैं जिस तरह तुम्हारे पहले वालों पर लिखे गये थे शायद तुम इसी तरह मुत्तक़ी बन जाओ |
184 | ये रोज़े सिर्फ चन्द दिन के हैं लेकिन इसके बाद भी कोई शख़्स मरीज़ है या सफ़र में है तो इतने ही दिन दूसरे ज़माने में रख लेगा और जो लोग सिर्फ शिद्दत और मशक़्क़त की बिना पर रोज़े नहीं रख सकते हैं वह एक मिसकीन को खाना खिला दें और अगर अपनी तरफ से ज़्यादा नेकी कर दें तो और बेहतर है। लेकिन रोज़े रखना बहरहाल तुम्हारे हक़ में बेहतर है अगर तुम साहेबाने इल्म व ख़बर हो |
185 | माहे रमज़ान वह महीना है जिसमें कु़रआन नाजि़ल किया गया है जो लोगों के लिए हिदायत है और इसमें हिदायत और हक़ व बातिल के इम्तियाज़ की वाज़ेह निशानियां मौजूद हैं लेहाज़ा जो शख़्स इस महीने में हाजि़र है उसका फजऱ् है कि रोज़े रखे और जो मरीज़ या मुसाफि़र हो इतने ही दिन दूसरे ज़माने में रखे। ख़ु़दा तुम्हारे बारे में आसानी चाहता है ज़हमत नहीं चाहता, और इतने ही दिन का हुक्म इसलिए है कि तुम अदद पूरे कर दो और अल्लाह की दी हुई हिदायत पर उसकी किब्रियाई का इक़रार करो और शायद तुम इस तरह उसके शुक्रगुज़ार बन्दे बन जाओ |
186 | और ऐ पैग़म्बर अगर मेरे बन्दे तुमसे मेरे बारे में सवाल करें तो मैं उनसे क़रीब हूँ, पुकारने वाले की आवाज़ सुनता हूँ जब भी पुकारता है लेहाज़ा मुझसे तलबे कु़बूलियत करे और मुझ ही पर ईमान व एतमाद रखे कि शायद इस तरह राहे रास्त पर आ जायें |
187 | तुम्हारे लिए माहे रमज़ान की रात में औरतों के पास जाना हलाल कर दिया गया है, वह तुम्हारे लिए परदापोश हैं और तुम उनके लिए, ख़ु़दा को मालूम है कि तुम अपने ही नफ़्स से खि़यानत करते थे तो उसने तुम्हारी तौबा क़ुबूल करके तुम्हें माफ़ कर दिया। अब तुम बा इत्मिनान मुबाशिरत करो और जो ख़ु़दा ने तुम्हारे लिए मुक़द्दर किया है उसकी आरज़्ा़ू करो और उस वक़्त तक खा पी सकते हो जब तक कि फ़ज्र का स्याह डोरा सफ़ेद डोरे से नुमायां न हो जाये। इसके बाद रात की स्याही तक रोज़े को पूरा करो और ख़बरदार मस्जिदों में एतकाफ़ के मौक़े पर औरतों से मुबाशिरत न करना। ये सब मुक़र्रर हूदूदे इलाही हैं। उनके क़रीब भी न जाना। अल्लाह इस तरह अपनी आयतों को लोगों के लिए वाज़ेह तौर पर बयान करता है कि शायद वह मुत्तक़ी और परहेज़गार बन जायें |
188 | और ख़बरदार एक दूसरे का माल नाजायज़ तरीके से न खाना और न हुक्काम के हवाले कर देना कि रिश्वत देकर हराम तरीके से लोगों के अमवाल को खा जाओ जबकि तुम जानते हो कि ये तुम्हारा माल नहीं है |
189 | ऐ पैग़म्बर ये लोग आपसे चाँद के बारे में सवाल करते हैं तो फ़रमा दीजिए कि ये लोगों के लिए और हज के लिए वक़्त मालूम करने का ज़रिया है और ये कोई नेकी नहीं है कि मकानात में पिछवाड़े की तरफ से आओ बल्कि नेकी उनके लिए है जो परहेज़गार हांे और मकानात में दरवाज़ों की तरफ से आयें और अल्लाह से डरो शायद तुम कामयाब हो जाओ |
190 | जो लोग तुमसे जंग करते हैं तुम भी उनसे राहे ख़ु़दा में जेहाद करो और ज़्यादती न करो कि ख़ु़दा ज़्यादती करने वालों को दोस्त नहीं रखता |
191 | और उन मुशरेकीन को जहां पाओ क़त्ल कर दो और जिस तरह उन्होंने तुमको आवारा वतन कर दिया है तुम भी उन्हें निकाल बाहर कर दो और फि़त्ना परदाज़ी तो क़त्ल से भी बदतर है और इनसे मस्जिदुल हराम के पास उस वक़्त तक जंग न करना जब तक वह तुमसे जंग न करे। इसके बाद जंग छेड़ दें तो तुम भी चुप न बैठो और जंग करो कि यही काफ़ेरीन की सज़ा है |
192 | फिर अगर जंग से बाज़ आ जायें तो ख़ु़दा बड़ा बख़्शने वाला और मेहरबान है |
193 | और उनसे उस वक़्त तक जंग जारी रखो जब तक सारा फि़त्ना ख़त्म न हो जाये और दीन सिर्फ अल्लाह का न रह जाये, फिर अगर वह लोग बाज़ आ जायें तो ज़ालेमीन के अलावा किसी पर ज़्यादती जायज़ नहीं है |
194 | शहरे हराम का जवाब शहरे हराम है (हुरमत वाला महीना हुरमत वाले महीने के बराबर है) और हुरमात (सब हुरमत वाली चीज़ें) का भी क़ेसास है। लेहाज़ा जो तुम पर ज़्यादती करे तुम भी वैसा ही बरताव करो जैसी ज़्यादती उसने की है और अल्लाह से डरते रहो और ये समझ लो कि ख़ु़दा परहेज़गारों ही के साथ है |
195 | और राहे ख़ु़दा में ख़र्च करो और अपनी जान को हलाकत में न डालो। नेक बरताव करो कि ख़ु़दा नेक अमल करने वालों के साथ है |
196 | हज और उमरा को अल्लाह के लिए तमाम (पूरा) करो अब अगर गिरफ्तार हो जाओ जो कु़र्बानी मुमकिन हो वह दे दो और उस वक़्त तक सर न मुंडवाओ जब तक कु़र्बानी अपनी मंजि़ल तक न पहंुच जाये। अब जो तुम में से मरीज़ है या उसके सिर में कोई तकलीफ़ है तो वह (सर मुंडवाने का बदला) रोज़ा या सदक़ा या कु़र्बानी दे दे फिर जब इत्मेनान हो जाये तो जिसने हज्जे तमत्तो का उमरा करने का इरादा किया है वह मुमकिना कु़र्बानी दे, और अगर कु़र्बानी ना मिल पाए तो तीन रोज़े हज के दौरान और सात वापस आने के बाद रखे कि इस तरह दस पूरे हो जायें, ये हज्जे तमत्तो और कु़र्बानी उन लोगों के लिए है जिनके अहल मस्जिदुलहराम के हाजि़र शुमार न होते हों (बाशिन्दे न हों) और अल्लाह से डरते रहो और ये याद रखो कि ख़ु़दा का अज़ाब बहुत सख़्त है |
197 | हज चन्द मुक़र्रर महीनों में होता है और जो कोई शख़्स भी इस ज़माने में अपने ऊपर हज लाजि़म कर ले तो (एहराम से आखि़रे हज तक) औरत से मुबाशिरत, कोई गुनाह और झगड़े की इजाज़त नहीं है और तुम जो भी ख़ैर (नेकी) करोगे ख़ु़दा उसे जानता है। अपने लिए ज़ादेराह फ़राहम करो कि बेहतरीन ज़ादेराह तक़वा है और ऐ साहेबाने अक़्ल, हमसे डरो |
198 | इस में तुम्हारे लिए कोई हरज नहीं है कि अपने परवरदिगार के फ़ज़्ल (नफ़ाए तिजारत हज के साथ) तलाश करो और फिर जब तुम अरफ़ात से कूच करो तो मशअरूल हराम के पास जि़क्रे ख़ु़दा करो और इस तरह जि़क्र करो जिस तरह उसने हिदायत दी है अगरचे तुम इसके पहले गुमराहों में से थे |
199 | फिर तमाम लोगों की तरह तुम भी कूच करो और अल्लाह से अस्तग़फ़ार करो कि अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला और मेहरबान है |
200 | फिर जब तुम सारे मनासिक हज तमाम कर लो तो ख़ु़दा को इस तरह याद करो जिस तरह अपने बाप दादा को याद करते हो बल्कि इससे भी ज़्यादा कि बाज़ लोग ऐसे हैं जो कहते हैं कि परवरदिगार हमें जो देना है दुनिया ही में नेकी दे दे हालाँकि इनका आखि़रत में कोई हिस्सा नहीं है |
201 | और बाज़ बन्दे कहते हैं कि परवरदिगार हमें दुनिया में नेअमत अता फ़रमा और आखि़रत में नेकी और हमको अज़ाबे जहन्नम से महफ़ूज़ फ़रमां |
202 | यही वह लोग हैं जिन्हें उनकी कमाई का अज्र मिलेगा और ख़ु़दा बहुत जल्द हिसाब करने वाला है |
203 | और चन्द मुअय्यन दिनों में (11, 12 और 13 जि़लहिज्जा को) जि़क्रे ख़ु़दा करो। इसके बाद मिना से जो दो ही दिन में चला जाय उस पर भी कोई गुनाह नहीं है और जो तीसरे दिन तक ठहरा रहे उस पर भी कोई गुनाह नहीं है बशर्ते कि वह परहेज़गार हो और अल्लाह से डरो और ये याद रखो कि एक दिन तुम सब के सब उसी की तरफ़ महशूर किये (क़ब्रों से उठाए) जाओगे |
204 | बाज़ लोग मुनाफि़क़ीन में ऐसे भी हैं जिनकी बातें जि़न्दगानिये दुनिया में बहुत भली लगती हैं और वह अपनी दिली मुहब्बत पर ख़ु़दा को गवाह भी बनाते हैं हालांकि वह बदतरीन दुश्मन हैं |
205 | और जब आपके पास से मुँह फेरते हैं तो ज़मीन में फ़साद बरपा करने की कोशिश करते हैं और खेतियों और नसलों को बर्बाद करते हैं जबकि ख़ु़दा फ़साद को पसन्द नहीं करता है |
206 | जब उनसे कहा जाता है कि तक़्वाये इलाही इखि़्तयार करो तो ग़्ाु़रूरे गुनाह आड़े आ जाता है ऐसे लोगों के लिए जहन्नम ही काफ़ी है जो बदतरीन ठिकाना है |
207 | और लोगों में कुछ ऐसे (ख़ुदा के बन्दे) भी हैं जो अपनी जान को मजऱ्ीए परवरदिगार के लिए बेच डालते हैं और अल्लाह ऐसे बन्दों पर बड़ा ही मेहरबान है |
208 | ईमान वालों तुम सब मुकम्मल तरीक़े से इस्लाम में दाखि़ल हो जाओ और शैतान के ब-क़दम न चलो कि वह तुम्हारा खुला हुआ दुश्मन है |
209 | फिर अगर खुली निशानियों के आ जाने के बाद लग़्िज़श पैदा हो जाये तो याद रखो ख़ु़दा सब पर ग़ालिब है और साहेबे हिकमत है |
210 | ये लोग इस बात का इन्तिज़ार कर रहे हैं कि अब्र के साये के पीछे अज़ाबे ख़ु़दा या (अज़ाब के) मलायका आ जायें और हर अम्र का फ़ैसला हो जाये और सारे उमूर की बाज़गश्त तो ख़ु़दा ही की तरफ़ है |
211 | ज़रा बनी इसराईल से पूछिये कि हमने उन्हें किस क़द्र नेअमतें अता की हैं और जो शख़्स भी नेअमतों के आ जाने के बाद उन्हें तब्दील कर देगा वह याद रखे कि ख़ु़दा का अज़ाब बहुत शदीद होता है |
212 | असल में काफि़रों के लिए जि़न्दगानिये दुनिया आरास्ता कर दी गयी हैं और वह साहेबाने ईमान का मज़ाक उड़ाते हैं हालांकि क़यामत के दिन मुत्तक़ी व परहेज़गार अफ़राद का दर्जा उनसे कहीं ज़्यादा बालातर होगा और अल्लाह जिसको चाहता है बे हिसाब रिज़्क़ देता है |
213 | (फि़तरी एतबार से) सारे इंसान एक क़ौम थे फिर अल्लाह ने बशारत देने वाले और डराने वाले अम्बिया भेजे और उनके साथ बरहक़ किताब नाजि़ल की ताकि लोगों के एख़तेलाफ़ात का फ़ैसला करें और असल एख़तेलाफ़ उन्हीं लोगों ने किया है जिन्हें किताब मिल गयी है और उन पर आयात वाज़ेह हो गयीं सिर्फ़ बग़ावत और ज़्ाुल्म की बिना पर, तो ख़ु़दा ने ईमान वालों को हिदायत दे दी और उन्हांेने एख़तेलाफ़ात में हुक्मे इलाही से हक़ दरयाफ़्त कर लिया और वह तो जिसको चाहता है सिराते मुसतक़ीम की हिदायत दे देता है |
214 | क्या तुम्हारा ख़्याल है कि तुम आसानी से जन्नत में दाखि़ल हो जाओगे जबकि अभी तुम्हारे सामने साबिक़ उम्मतों की मिसाल पेश नहीं आयी जिन्हें फ़क्ऱ व फ़ाक़ा और परेशानियों ने घेर लिया और इतने झटके दिये कि खुद रसूल और उनके साथियों ने ये कहना शुरू कर दिया कि आखिर ख़ु़दाई इमदाद कब आयेगी तो आगाह हो जाओ कि ख़ु़दाई इमदाद बहुत क़रीब है |
215 | पैग़म्बर ये लोग आपसे सवाल करते हैं कि राहे ख़ु़दा में क्या खर्च करें तो आप कह दीजिए कि जो भी ख़र्च करोगे वह तुम्हारे वालिदैन, रिश्तेदारों (क़राबतदार), यतीमों, मसाकीन, ग़्ाु़रबतज़दा और मुसाफि़रों का हक़ है और जो भी कारे ख़ैर करोगे ख़ु़दा उसे ख़ूब जानता है |
216 | तुम्हारे ऊपर जेहाद फ़र्ज़ किया गया है हालांकि वह तुम्हें नागवार है और ये मुमकिन है कि जिस चीज़ को तुम बुरा समझते हो वह तुम्हारे हक़ में बेहतर हो और जिसे तुम पसन्द करते हो वह बुरा हो ख़ु़दा सब जानता है और तुम नहीं जानते हो |
217 | पैग़म्बर ये आपसे मोहतरम महीनों के जेहाद के बारे में सवाल करते हैं तो आप कह दीजिए कि इनमें जंग करना गुनाहे कबीरा है और राहे ख़ु़दा से रोकना और ख़ु़दा और मस्जिदुलहराम की हुरमत का इंकार है और अहले मस्जिदुलहराम का वहां से निकाल देना ख़ु़दा की निगाह में जंग से भी बदतर गुनाह है और फि़त्ना तो क़त्ल से भी बड़ा जुर्म है और ये कुफ़्फ़ार बराबर तुम लोगों से जंग करते रहेंगे यहां तक कि उनके इमकान में हो तो तुमको तुम्हारे दीन से पलटा दें और जो भी अपने दीन से पलट जायेगा और कुफ्ऱ की हालत में मर जायेगा उसके सारे आमाल बरबाद हो जायेंगे और वह जहन्नमी होगा और वहीं हमेशा रहेगा |
218 | बेशक जो लोग ईमान लाये और जिन्होंने हिजरत की और राहे ख़ु़दा में जेहाद किया वह रहमते इलाही की उम्मीद रखते हैं और ख़ु़दा बहुत बख़्शने वाला और मेहरबान है |
219 | ये आपसे शराब और जुए के बारे में सवाल करते हैं तो कह दीजिए कि इन दोनों में बहुत बड़ा गुनाह है और बहुत से फ़ायदे भी हैं लेकिन इनका गुनाह फ़ायदे से कहीं ज़्यादा बड़ा है और ये राहे ख़ु़दा में ख़र्च के बारे में सवाल करते हैं कि क्या ख़र्च करें तो कह दीजिए कि जो भी ज़रूरत से ज़्यादा हो। ख़ु़दा उसी तरह अपनी आयात को वाज़ेह करके बयान करता है कि शायद तुम दुनिया व आख़ेरत के बारे में फि़क्र कर सको |
220 | और ये लोग तुम से यतीमों के बारे में सवाल करते हैं तो कह दो कि उनके लिए बन्दोबस्त करना बेहतरीन बात है और अगर उनसे मिलजुल कर रहो तो ये भी तो तुम्हारे भाई हैं और अल्लाह बेहतर जानता है कि तुम में मुसलेह (दुरूस्ती करने वाला) कौन है और मुफ़सिद (ख़राबी पैदा करने वाला) कौन है अगर वह चाहता तो तुम्हें मुसीबत में डाल देता लेकिन यक़ीनन वह साहेबे इज़्ज़त और साहेबे हिकमत भी है |
221 | ख़बरदार मुशरिक औरतों से उस वक़्त तक निकाह न करना जब तक ईमान न ले आयें कि एक मोमिन कनीज़ मुशरिक आज़ाद औरत से बेहतर है वह तुम्हें कितनी ही भली मालूम हो और मुशरेकीन को भी लड़कियां न देना जब तक मुसलमान न हो जायंे कि मुसलमान ग़्ाु़लाम आज़ाद मुशरिक से बेहतर है चाहे वह तुम्हें कितना ही अच्छा क्यों न मालूम हो। ये मुशरेकीन तुम्हें जहन्नम की दावत देते हैं और ख़ु़दा अपने हुक्म से जन्नत और मग़फि़रत की दावत देता है और अपनी आयतों को वाज़ेेह करके बयान करता है कि शायद ये लोग समझ सकें |
222 | और ऐ पैग़म्बर ये लोग तुमसे अय्यामे हैज़ के बारे में सवाल करते हैं तो कह दो कि हैज़ एक गंदगी है लेहाज़ा इस ज़माने में औरतों से अलग रहो और जब तक पाक न हो जायें उनके क़रीब न जाओ फिर जब पाक हो जायें तो जिस तरह से ख़ु़दा ने हुक्म दिया है उस तरह उनके पास जाओ। यक़ीनन ख़ु़दा तौबा करने वालों और पाकीज़ा रहने वालों को दोस्त रखता है |
223 | तुम्हारी औरतें तुम्हारी खेतियां हैं लेहाज़ा अपनी खेती में जिस तरफ़ से चाहो आओ और अपने मुस्तक़बिल (भविष्य) के (वास्ते) सामान इकट्ठा करो और उससे डरते रहो। ये समझो कि तुम्हें उससे मुलाक़ात करना है और साहेबाने ईमान को मुबारकबाद दे दो |
224 | ख़बरदार ख़ु़दा कोे अपनी क़समों का निशाना न बनाओ कि क़समों को नेकी करने, तक़वा इखि़्तयार करने और लोगों के दरमियान इस्लाह करने में मानेअ बना दो अल्लाह सब कुछ सुनने और जानने वाला है |
225 | ख़ु़दा तुम्हारी लग़ो और ग़ैर इरादी क़समों का मुवाख़ेज़ा नहीं करता है लेकिन जो तुम दिल से करोगे सका ज़रूर मुवाख़ेज़ा करेगा। वह बड़ा बख़्शने वाला और बर्दाश्त करने वाला भी है |
226 | जो लोग अपनी बीवियों से अलग रहने की क़सम खा लेते हैं उन्हें चार महीने की मोहलत है। इसके बाद वापस आ गये तो ख़ु़दा ग़फ़ूर व रहीम है |
227 | और अगर तलाक़ का इरादा करें तो बिला शक ख़ु़दा सुन भी रहा है और देख भी रहा है |
228 | मुतल्लक़ा औरतें तीन हैज़ तक इन्तिज़ार करेंगी और उन्हें हक़ नहीं है कि जो कुछ ख़ु़दा ने उनके रहेम में पैदा किया है उसकी पर्दापोशी करें अगर उनका ईमान अल्लाह और आखि़रत पर है और फिर उनके शौहर उस मुद्दत में उन्हें वापस कर लेने के ज़्यादा हक़दार हैं अगर ताल्लुक़ात ठीक रखना चाहते हैं और औरतों के लिए वैसे ही हुक़ूक़ भी हैं जैसी जि़म्मेदारियां हैं और मर्दो को उन पर एक दरजा इम्तियाज़ हासिल है और ख़ु़दा साहेबे इज़्ज़त व हिकमत वाला है |
229 | तलाक़ दो मरतबा दी जायेगी। इसके बाद या नेकी के साथ रोक लिया जायेगा या हुस्ने सुलूक के साथ आज़ाद कर दिया जायेगा और तुम्हारे लिए जायज़ नहीं है कि जो कुछ उन्हें दे दिया है उसमें से कुछ वापस लो मगर ये कि ये अंदेशा हो कि दोनों हुदूदे इलाही को क़ायम न रख सकेंगे, तो जब तुम्हें ये ख़ौफ़ पैदा हो जाये कि वह दोनों हुदूदे इलाही को क़ायम न रख सकेंगे तो दोनों के लिए आज़ादी है इस फि़दिये के बारे में जो औरत मर्द को दे, लेकिन ये हुदूदे इलाहिया हैं इनसे आगे न बढ़ना और जो हुदूदे इलाही से आगे बढ़ जाएगा वह ज़ालेमीन में शुमार होगा |
230 | फिर अगर तीसरी मर्तबा तलाक़ दे दी तो औरत मर्द के लिए हलाल न होगी यहां तक कि दूसरा शौहर करे फिर अगर वह तलाक़ दे दे तो दोनों के लिए कोई हरज नहीं है कि आपस में मेल कर लें और ये ख़्याल है कि हुदूदे इलाही को क़ायम रख सकेंगे। ये हुदूदे इलाही हैं जिन्हें ख़ु़दा साहेबाने इल्म के लिए वाज़ेह तौर से बयान कर रहा है जो जानना चाहें |
231 | और जब तुम औरतों को तलाक़ दो और वह मुद्दते इद्दत के ख़ात्मे के क़रीब पहुंच जाये तो या उन्हें इस्लाह और हुस्ने मुआशेरत के साथ रोक लो या उन्हें हुस्ने सुलूक के साथ आज़ाद कर दो और ख़बरदार नुक़सान पहुंचाने की ग़जऱ् से उन्हें न रोकना कि उन पर ज़्ाुल्म करो कि जो ऐसा करेगा वह ख़ुद अपने नफ़्स पर ज़्ाुल्म करेगा और ख़बरदार आयाते इलाही को मज़ाक़ न बनाओ। ख़ु़दा की नेअमतों को याद करो। उसने किताब व हिकमत को तुम्हारी नसीहत के लिए नाजि़ल किया है और याद रखो कि वह हर चीज़ का जानने वाला है |
232 | और जब तुम लोग औरतों को तलाक़ दो और उनकी मुद्दते इद्दत पूरी हो जाये तो ख़बरदार उन्हें शौहर करने से न रोकना कि जब वह मुनासिब सूरत पर आपस में तय कर लें। इस हुक्म के ज़रिये ख़ु़दा उन्हें नसीहत करता है जिनका ईमान अल्लाह और रोज़े आखि़रत पर है और उन अहकाम पर अमल तुम्हारे लिए बाइसे तज़किया भी है और बाइसे तहारत भी। अल्लाह सब कुछ जानता है और तुम नहीं जानते हो |
233 | माएँ अपनी औलाद को दो बरस कामिल दूध पिलायें जो रेज़ाअत को पूरा करना चाहेगा, उस दरमियान साहेबे औलाद का फ़जऱ् है कि माँओं की रोटी और कपड़े का मुनासिब तरीक़े से इन्तिज़ाम करे। किसी शख़्स को उसकी ताक़त से ज़्यादा तकलीफ़ नहीं दी जा सकती मगर उसकी गुंजाइश भर, न माँ को उसकी औलाद के ज़रिये ज़हमत उठाने का हक़ है और न बाप को उसकी औलाद के ज़रिये मगर गंुजाइश भर और वारिस की भी जि़म्मेदारी है कि वह इसी तरह दूध पिलाने का इन्तिज़ाम करे, फिर अगर दोनों बाहमी रेज़ामन्दी और मशविरे से दूध छुड़ाना चाहें तो कोई हरज नहीं है और अगर तुम अपनी औलाद के लिए दूध पिलाने वाली तलाश करना चाहो तो इसमें भी कोई हरज नहीं है बशर्ते कि आम तरीक़े की उजरत अदा कर दो और अल्लाह से डरो और समझो कि वह तुम्हारे आमाल को ख़ूब देख रहा है |
234 | और जो लोग तुम में से बीवियां छोड़कर मर जायें उनकी बीवियां चार महीने दस दिन इन्तिज़ार करेंगी जब ये मुद्दत पूरी हो जाये तो शरीयत के मुताबिक़ जो काम अपने हक़ में करें उसमें कोई हरज नहीं है ख़ु़दा तुम्हारे आमाल से ख़ूब बा ख़बर है |
235 | इन औरतों से क़ब्ल इद्दा तुम्हारे लिए निकाह के पैग़ाम की पेशकश या दिल ही दिल में पोशीदह इरादे में कोई हर्ज नहीं है। ख़ु़दा को मालूम है कि तुम बाद में उनसे तज़किरा करोगे लेकिन फि़लहाल ख़़्ाुफि़या वादा भी न लो सिर्फ कोई नेक बात कह दो तो कोई हर्ज नहीं है और जब तक मुक़र्रर मुद्दत पूरी न हो जाये अक़्दे निकाह का इरादा न करना ये याद रखो कि ख़ु़दा तुम्हारे दिल की बातें ख़ूब जानता है लेहाज़ा उससे डरते रहो और ये जान लो कि वह ग़फ़़़ूर (बख़्शने वाला) भी है और बुर्दबार भी |
236 | और तुम पर कोई जि़म्मेदारी नहीं है अगर तुमने औरतों को उस वक़्त तलाक़ दे दी जबकि उनको छुआ भी नहीं है और उनके लिए कोई मेहर भी मुअय्यन नहीं किया है अलबत्ता उन्हें कुछ माल व मताअ दे दो। मालदार अपनी हैसियत के मुताबिक़ और ग़रीब अपनी हैसियत के मुताबिक़। ये मताअ (सरमाया) बक़द्रे मुनासिब होना ज़रूरी है कि ये नेक किरदारांे पर एक हक़ है |
237 | और अगर तुमने उनको छूने से पहले तलाक़ दे दी और उनके लिए मेहर मुअय्यन कर चुके थे तो मुअय्यन मेहर का निस्फ़ (आधा) देना होगा मगर ये कि वह ख़ुद माफ़ कर दे या उनका वली माफ़ कर दे और माफ़ कर देना तक़वे से ज़्यादा क़रीबतर है और आपस में बुज़्ा़ुर्गी को फ़रामोश न करो। ख़ु़दा तुम्हारे आमाल को ख़ूब देख रहा है |
238 | अपनी तमाम नमाज़ों और बिलखु़सूस नमाजे़ वुस्ता दरमियान वाली नमाज़ें (ख़ुसूसन सुब्ह, ज़ोहर और अस्र) की पाबन्दी करो और अल्लाह की बारगाह में ख़ुशूअ व ख़ुज़ूअ के साथ खड़े हो जाओ |
239 | फिर अगर ख़ौफ़ की हालत हो तो पैदल, सवार जिस तरह मुमकिन हो नमाज़ अदा करो और जब इत्मिनान हो जाये तो उस तरह जि़क्रे ख़ु़दा करो जिस तरह उसने तुम्हारी ला इल्मी में तुम्हें बताया है |
240 | और जो लोग मुद्दते हयात पूरी कर रहे हों और अज़वाज (बीवियों) को छोड़कर जा रहे हों उन्हें चाहिए कि अपनी अज़वाज (बीवियों) के लिए एक साल के ख़र्च और घर से न निकलने की वसीयत करके जायें फिर अगर वह ख़ुद से निकल जाये तो तुम्हारे लिए कोई हरज नहीं है वह अपने बारे में जो भी जाएज़ काम निकाह वग़ैरह अंजाम दें उसका तुम पर कुछ इल्ज़ाम नहीं है। और अल्लाह बड़ा क़वी और साहेबे हिकमत है |
241 | और जिन औरतों को बिला छुए और बिला मेहर तय किए तलाक़ दे दी गई हो उनके लिए मुनासिब माल व मताअ दे देना ज़रूरी है कि ये साहेबाने तक़वा पर एक हक़ है |
242 | इसी तरह परवरदिगार अपनी आयात को साफ़-साफ़ बयान करता है कि शायद तुम्हें अक़्ल आ जाये |
243 | (ऐ रसूल) क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जो हज़ारों की तादाद में अपने घरों से निकल भागे मौत के ख़ौफ़ से और अल्लाह ने उन्हें मौत का हुक्म दे दिया और फिर जि़न्दा कर दिया कि ख़ु़दा लोगों पर बहुत फ़ज़्ल करने वाला है लेकिन अकसर लोग उसका शुक्रिया नहीं अदा करते हैं (हिज़क़ील नबी के दौर का वाक़्या) |
244 | और (मुसलमानों) राहे ख़ु़दा में जेहाद करो और याद रखो कि अल्लाह सब कुछ सुनने वाला भी है और जानने वाला भी है |
245 | कौन है जो ख़ु़दा को क़जऱ्े हसना दे ताकि ख़ु़दा उसे कई गुना करके अदा करे, ख़ु़दा कम भी कर सकता है और ज़्यादा भी और तुम सब उसी की बारगाह में पलटाये जाओगे |
246 | क्या तुमने मूसा के बाद बनी इसराईल की उस जमाअत को नहीं देखा जिसने अपने नबी से कहा कि हमारे वास्ते एक बादशाह मुक़र्रर कीजिए ताकि हम राहे ख़ु़दा में जेहाद करें। नबी ने फ़रमाया कि अंदेशा ये है कि तुम पर जेहाद वाजिब हो जाये तो तुम जेहाद न करो। उन लोगांे ने कहा कि हम क्योंकर जेहाद न करेंगे जबकि हमें घरों और बाल बच्चांे से अलग निकाल बाहर कर दिया गया है। इसके बाद जब जेहाद वाजिब कर दिया गया तो थोड़े से अफ़राद के अलावा सब मुन्हरिफ़ हो गये और अल्लाह ज़ालेमीन को ख़ूब जानता है |
247 | उनके पैग़म्बर ने कहा कि अल्लाह ने तुम्हारे लिए तालूत को हाकिम मुक़र्रर किया है। उन लोगों ने कहा कि ये किस तरह हुकूमत करेंगे उनके पास तो माल की फ़रावानी नहीं है इनसे ज़्यादा तो हम ही हक़दारे हुकूमत हैं। नबी ने जवाब दिया कि उन्हें अल्लाह ने तुम्हारे लिए मुन्तख़ब किया है और इल्म व जिस्म में वुसअत अता फ़रमायी है और अल्लाह जिसे चाहता है अपना मुल्क दे देता है कि वह साहेबे वुसअत भी है और साहेबे इल्म भी |
248 | और उनके पैग़म्बर ने ये भी कहा कि उनकी हुकूमत की निशानी ये है ये तुम्हारे पास वह ताबूत ले आयेंगे जिसमें परवरदिगार की तरफ़ से सामाने सुकून और आले मूसा और आले हारून का छोड़ा हुआ तरका भी है। इस ताबूत को मलायेका उठाये हुए होंगे और इसमें तुम्हारे लिए क़ु़दरते परवरदिगार की निशानी भी है अगर तुम साहेबे ईमान हो |
249 | इसके बाद जब तालूत लश्कर लेकर चले तो उन्होंने कहा कि अब ख़ु़दा एक नहर के ज़रिये तुम्हारा इम्तिहान लेने वाला है जो इसमें से पी लेगा वह मुझ से न होगा और जो इसे न चखेगा वह मुझसे होगा मगर ये कि एक चुल्लू पानी पी ले तो कोई हरज नहीं। नतीजा ये हुआ कि सबने पानी पी लिया सिवाए चन्द अफ़राद के, फिर जब वह साहेबाने ईमान को लेकर आगे बढ़े तो मोमिनों के सिवा सब लोगांे ने कहा कि आज तो जालूत और उसके लश्करों से मुक़ाबले की हिम्मत नहीं है मगर वह लोग जिन्हें एक दिन ख़ु़दा से मुलाक़ात करने का ख़्याल था कहा कि अकसर छोटे-छोटे गिरोह बड़ी-बड़ी जमाअतों पर हुक्मे ख़ु़दा से ग़ालिब आ जाते हैं और अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है |
250 | और ये लोग जब जालूत और उसके लश्करों के मुक़ाबले के लिए निकले तो उन्हांेने कहा कि ख़ु़दाया हमें बे पनाह सब्र अता फ़रमा और मैदाने जंग में हमारे क़दमों को सबात (जमा) दे और हमें काफि़रों के मुक़ाबले में नुसरत (मदद) अता फ़रमा |
251 | नतीजा ये हुआ कि इन लोगों ने जालूत के लश्कर को ख़ु़दा के हुक्म से शिकस्त दे दी और दाऊद अलैहिस्सलाम ने जालूत को क़त्ल कर दिया और अल्लाह ने उन्हंे मुल्क और हिकमत अता कर दी और अपने इल्म से जिस क़द्र चाहा दे दिया और अगर इसी तरह ख़ु़दा बाज़ को बाज़ से न रोकता रहता तो सारी ज़मीन में फ़साद फैल जाता लेकिन ख़ु़दा तो सारे जहान के लोगों पर बड़ा फ़ज़्ल करने वाला है |
252 | (ऐ रसूल) ये आयाते इलाही हैं जिनको हम वाकि़यत के साथ आपको पढ़कर सुनाते हैं और आप यक़ीनन रसूलों में से हैं। |
253 | ये सब रसूल वह हैं जिनमें हमने बाज़ को बाज़ पर फ़ज़ीलत दी है। इनमें से बाज़ वह हैं जिनसे ख़ु़दा ने ख़ुद कलाम (बात) किया है और बाज़ के दरजात बुलन्द किये हैं और हमने ईसा बिन मरियम को खुली हुई निशानियां दी हैं और रूहुलकु़दस (जिबरील) के ज़रिये उनकी मदद की है। अगर ख़ु़दा चाहता तो इन रसूलों के बाद वाले इन वाज़ेह मोजिज़ात के आ जाने के बाद आपस मंे झगड़ा न करते लेकिन इन लोगों ने (ख़ु़दा के जब्र न करने की बिना पर) एख़तेलाफ़ किया। बाज़ ईमान लाये और बाज़ काफि़र हो गये और अगर ख़ु़दा तय कर लेता तो ये झगड़ा न कर सकते लेकिन ख़ु़दा जो चाहता है वह करता है |
254 | ऐ ईमान वालों जो तुम्हें रिज़्क़ दिया गया है उसमें से राहे ख़ु़दा में ख़र्च करो क़ब्ल इसके कि वह दिन आ जाये जिस दिन न तिजारत होगी न दोस्ती काम आयेगी और न सिफ़ारिश। और काफ़ेरीन ही असल में ज़ालेमीन हैं |
255 | अल्लाह जिसके अलावा कोई ख़ु़दा नहीं है जि़न्दा भी है और उसी से कुल कायनात क़ायम है उसे न नींद आती है न ऊँघ, आसमानों और ज़मीन में जो कुछ भी है सब उसी का है। कौन है जो उसकी बारगाह में उसकी इजाज़त के बग़ैर सिफ़ारिश कर सके। वह जो कुछ उनके सामने है और जो पसेपुश्त है सबको जानता है और ये उसके इल्म के एक हिस्से का भी एहाता नहीं कर सकते मगर वह जिस क़द्र चाहे। उसकी कुर्सीये इल्म व इक़तेदार ज़मीनों व आसमानों से वसीअ तर है और उसे उनके तहफ़्फ़ुज़ में कोई तकलीफ़ भी नहीं होती वह आली मर्तबा भी है और साहेबे अज़मत भी |
256 | दीन में किसी तरह का जब्र (ज़बरदस्ती) नहीं है। हिदायत गुमराही से अलग और वाजे़ह (ज़ाहिर) हो चुकी है। अब जो शख़्स भी ताग़ूत (बुतों) का इंकार करके अल्लाह पर ही ईमान ले आये वह उसकी मज़बूत रस्सी से मुतामस्सिक (जुड़ गया) हो गया है जिसके टूटने का इमकान नहीं है और ख़ु़दा सब कुछ सुनता भी है और जानता भी है। |
257 | अल्लाह साहेबाने ईमान का वली (सरपरस्त) है वह उन्हें (गुमराही की) तारीकियों से निकाल कर (हिदायत की) रोशनी में ले आता है और कुफ़्फ़ार के सरपरस्त शैतान ताग़ूत हैं जो उन्हें ईमान की रोशनी से निकाल कर कुफ्ऱ के अंधेरों में ले जाते हैं। यही लोग जहन्नुमी हैं और वहां हमेशा रहने वाले हैं |
258 | (ऐ रसूल) क्या तुमने उसके हाल पर नज़र नहीं की जिसने इब्राहीम से परवरदिगार के बारे में बहस की सिर्फ़ इस बात पर कि ख़ु़दा ने उसे मुल्क दे दिया था जब इब्राहीम ने ये कहा कि मेरा ख़ु़दा (लोगों को) जिलाता भी है और मारता भी है तो उसने कहा कि ये काम तो मैं भी कर सकता हूँ तो इब्राहीम (अ0) ने कहा कि मेरा ख़ु़दा मशरिक़ से आफ़ताब निकालता है, तू मग़रिब से निकाल दे, तो काफि़र हैरान रह गया (मगर ईमान नहीं लाया) और अल्लाह ज़ालिम क़ौम की हिदायत नहीं करता है |
259 | या उस बन्दे की मिसाल जिसका गुज़र एक क़रिये (गाँव) से हुआ जिसके सारे मकान ढह चुके थे तो उस बन्दे ने कहा कि ख़ु़दा उन सबको मौत के बाद किस तरह जि़न्दा और बस्ती को आबाद करेगा तो ख़ु़दा ने उस बन्दे को वहीं सौ साल के लिए मौत दे दी और फिर जि़न्दा किया और पूछा कि कितनी देर पड़े रहे तो उसने कहा कि एक दिन या कुछ कम। फ़रमाया नहीं। सौ साल। ज़रा अपने खाने और पीने (की चीज़ों) को तो देखो कि ख़राब तक नहीं हुआ और अपने गधेे (सवारी) पर निगाह करो (कि सड़ गल गया है और हड्डियों का ढेर है) और हम इसी तरह तुम्हें लोगों के लिए एक निशानी बनाना चाहते हैं। फिर इन हड्डियों को देखो कि हम किस तरह जोड़कर ढांचा बनाते और इन पर गोश्त चढ़ाते हैं। फिर जब इन पर ये बात वाजे़ह हो गई तो बेसाख़्ता आवाज़ दी कि मुझे मालूम हो गया कि ख़ु़दा हर चीज़ पर क़ादिर है |
260 | और उस मौक़े को भी याद करो जब इब्राहीम ने इल्तेजा की कि परवरदिगार मुझे ये दिखा दे कि तू मुर्दाें को किस तरह जि़न्दा करता है। इरशाद हुआ क्या तुम्हें यक़ीन नहीं है। अजऱ् की क्यों नहीं, लेकिन इत्मिनान चाहता हूँ। इरशाद हुआ कि चार परिन्दे पकड़ लो और उन्हें टुकड़े-टुकड़े करके हर पहाड़ पर एक-एक हिस्सा रख दो और फिर आवाज़ दो सब दौड़ते हुए आ जायेंगे और याद रखो कि ख़ु़दा साहेबे इज़्ज़त भी है और साहेबे हिकमत भी |
261 | जो लोग राहे ख़ु़दा में अपने अमवाल (माल) ख़र्च करतेे हैं उनके अमल की मिसाल उस दाने की सी हैं जिससे सात बालियां निकलें और फिर हर बाली में सौ-सौ दाने हों और ख़ु़दा जिसके लिए चाहता है इज़ाफ़ा भी कर देता है कि वह साहेबे वुसअत (गंुजाइश वाला) भी है और (हर चीज़ से) वाकि़फ़ भी |
262 | जो लोग राहे ख़ु़दा में अपने माल ख़र्च करते हैं और उसके बाद एहसान नहीं जताते और उन्हें अज़ीयत (सताना) भी नहीं देते उनके लिए परवरदिगार के यहां अज्र है और आखि़रत में न कोई ख़ौफ़ होगा न वह ग़मगीन होंगे |
263 | साएल को नरमी से जवाब देना और दरगुज़र करना उस सदक़े से बेहतर है जिसके बाद (साएल का) दिल दुखे। का सिलसिला भी हो। ख़ु़दा सबसे बेनियाज़ (बे परवा) और बड़ा बुर्दबार है |
264 | ईमान वालों अपने सद्क़ात को एहसान जताने और साएल को अज़ीयत देने से बर्बाद न करो उस शख़्स की तरह जो अपने माल को महेज़ दुनिया में दिखाने के लिए सर्फ़ करता है और उसका ईमान न ख़ु़दा पर है और न आखि़रत पर उसकी मिसाल उस साफ़ चिकनी चट्टान की सी है जिस पर गर्द जम गई हो और तेज़ बारिश के आते ही बिल्कुल साफ़ हो जाये। ये लोग अपनी कमाई पर भी अखि़्तयार नहीं रखते और अल्लाह काफि़रांे की हिदायत भी नहीं करता |
265 | और जो लोग अपने माल को रिज़ाए ख़ु़दा की तलब और दिली एतक़ाद से ख़र्च करते हैं उनकी मिसाल उस हरे भरे बाग़ की सी है जो किसी बुलन्दी पर हो और तेज़ बारिश आकर उसकी फ़सल को दो गुना बना दे और अगर तेज़ बारिश न भी हो तो मामूली बारिश ही काफ़ी हो जाये और अल्लाह तुम्हारे आमाल की नियतों से ख़ूब बाख़बर है |
266 | क्या तुम में से कोई ये पसन्द करेगा कि उसके पास खजूर और अंगूरों का बाग़ हो। उसके नीचे नहरें जारी हों उनमें हर तरह के (मेवे) फ़ल हों और आदमी बूढ़ा हो जाये, उसके कमज़ोर बच्चे हों और फिर अचानक तेज़ गर्म हवा जिसमें आग भरी हो चल जाये और सब जलकर ख़ाक हो जाये। ख़ु़दा इसी तरह अपनी आयात को वाज़ेह (साफ़-साफ़) करके बयान करता है ताकि शायद तुम फि़क्र कर सको |
267 | ऐ ईमान वालों अपनी पाकीज़ा कमाई और जो कुछ हमने ज़मीन से तुम्हारे लिए पैदा किया है सबमें से राहे ख़ु़दा में ख़र्च करो। और ख़बरदार बुरे माल को (ख़ुदा की राह में) देने का ख़याल भी न करना और अगर ऐसा माल तुम को दिया जाये तो आंख चुराओ और छुओ भी न। याद रखो कि ख़ु़दा सबसे बेनियाज़ (बे परवा) है और सज़ावारे (लायक़े) हम्द व सना भी है |
268 | शैतान तुमसे फ़क़ीरी का वादा करता है और बुराईयों का हुक्म देता है और ख़ु़दा तुमसे मग़फि़रत (बख़शिश), फ़ज़्ल व एहसान का वादा करता है। ख़ु़दा साहेबे वुसअत (बड़ी गुंजाइश वाला) भी है और अलीम (सब कुछ जानने वाला) व दाना भी। |
269 | वह जिसको भी चाहता है हिकमत अता कर देता है और जिसे हिकमत अता कर दी जाये उसे गोया ख़ैरे कसीर (बेहिसाब ख़ूबियों की दौलत) अता कर दिया गया और इस बात को साहेबाने अक़्ल के अलावा कोई नहीं समझता है |
270 | और तुम जो कुछ भी राहे ख़ु़दा में ख़र्च करो या नज़र करो (मन्नत मानो) तो ख़ु़दा उससे बाख़बर है अलबत्ता ज़ालेमीन (अल्लाह का हक़ मानने वाले) का कोई मददगार नहीं है |
271 | अगर तुम सद्क़े (ख़ैरात) को अलल एलान दो तो ये भी ठीक है और अगर छिपा कर दोगे तो यह (तुम्हारे हक़ में) बहुत बेहतर है और इसके ज़रिये तुम्हारे बहुत से गुनाह माफ़ हो जायेंगे और ख़ु़दा तुम्हारे आमाल से ख़ूब बाख़बर (वाकि़फ़) है |
272 | ऐ पैग़म्बर उनकी हिदायत पा जाने की जि़म्मेदारी आप पर नहीं है बल्कि ख़ु़दा जिसको चाहता है हिदायत दे देता है और लोगों जो माल भी तुम राहे ख़ु़दा में ख़र्च करोगे वह दर असल अपने ही लिए होगा और तुम तो सिर्फ़ खु़शनूदी-ए-ख़ु़दा के लिए ख़र्च करते हो और जो कुछ भी ख़र्च करोगे वह पूरा-पूरा तुम्हारी तरफ़ वापस आयेगा और तुम पर किसी तरह का ज़्ाुल्म न होगा |
273 | ये सद्क़ा उन फ़ुक़रा के लिए है जो राहे ख़ु़दा में गिरफ़्तार (परेशानियों में घिर जाना) हो गये हैं और किसी भी तरफ़ फ़रार मुमकिन नहीं है। नावाकि़फ़ (अनजान) अफ़राद (लोग) उन्हें उनकी हया व इफ़्फ़त (शर्म) की बिना पर मालदार समझते हैं हालांकि तुम आसार से उनकी ग़्ाु़र्बत का अंदाज़ा कर सकते हो अगरचे ये लोगांे से चिमट कर सवाल नहीं करते हैं और तुम लोग जो कुछ भी नेक काम में ख़र्च करते हो ख़ु़दा उसे ख़ूब जानता है |
274 | ((इब्ने अब्बास रवायत करते हैं कि एक बार हज़रत अली (अ0) के पास कुल चार दिरहम थे, आपने एक दिरहम रात को ख़ैरात किया और एक दिन को और एक छिपा कर और एक दिखा कर। उस वक़्त यह आयत आपकी शान में उतरी)) जो लोग अपने माल को राहे ख़ु़दा में रात में, दिन में, ख़ामोशी से (छिपाकर) और अलल एलान ख़र्च करते हैं उनके लिए पेशे परवरदिगार बेहिसाब अज्र भी है और उन्हें न कोई ख़ौफ़ होगा और न ग़म (हुज़्न) |
275 | जो लोग सूद खाते हैं वह रोज़े क़यामत खड़े न हो सकेंगे उस शख़्स की तरह जिसे शैतान ने लिपट कर बदहवास बना दिया हो। इसलिए कि वह इस बात के क़ायल थे कि तिजारत भी सूद ही जैसी है जबकि ख़ु़दा ने तिजारत को हलाल क़रार दिया है और सूद को हराम। अब जिसके पास ख़ु़दा की तरफ़ से नसीहत आ गई और उसने सूद को तर्क कर दिया तो गुजि़श्ता कारोबार का मामला ख़ु़दा के हवाले है और जो इसके बाद भी सूद (को हलाल जानकर) ले तो वह लोग सब जहन्नुमी हैं और वहीं हमेशा रहने वाले हैं |
276 | ख़ु़दा सूद को बर्बाद (मिटाता) कर देता है और ख़ैरात मंे इज़ाफ़ा कर देता है और ख़ु़दा किसी भी (तमाम) नाशुक्रे गुनाहगार को दोस्त नहीं रखता है |
277 | (हाँ) जो लोग ईमान ले आये और उन्हांेने नेक अमल किये। पाबन्दी से नमाज़ पढ़ी। ज़कात अदा की उनके लिए परवरदिगार के यहां अज्र है और उनके लिए किसी तरह का ख़ौफ़ या हुज़्न (रंजीदा) नहीं है |
278 | ऐ ईमान वालों अल्लाह से डरो और जो सूद लोगों के जि़म्मे बाक़ी रह गया है उसे छोड़ दो अगर तुम साहेबाने ईमान हो |
279 | अगर तुमने ऐसा न किया तो ख़ु़दा व रसूल से लड़ने के लिए तैयार हो जाओ और अगर तौबा कर लो तो असल माल तुम्हारा ही है। न तुम किसी पर ज़बरदस्ती करो न तुम पर ज़्ाबरदस्ती की जायेगी |
280 | और अगर तुम्हारा मक़रूज़ (क़जऱ्दार) तंग दस्त (ग़रीब) है तो उसे ख़ुशहाली तक मोहलत दी जाये और अगर तुम (अस्ल भी) माफ़ कर दो तो तुम्हारे हक़ में ज़्यादा बेहतर है बशर्ते कि तुम समझ सको |
281 | उस दिन से डरो जब तुम सब पलटाकर अल्लाह की बारगाह में ले जाये जाओगे। इसके बाद जो कुछ जिसने किया है उसका पूरा-पूरा बदला मिलेगा और किसी पर कोई ज़्ाुल्म नहीं किया जायेगा |
282 | ईमान वालों जब भी आपस में एक मुक़र्रर मुद्दत के लिए कजऱ् (उधार) का लेन-देन करो तो उसे लिखा-पढ़ी कर लो और तुम्हारे दरम्यान जो भी कातिब लिखे, इन्साफ़ के साथ लिखे और कातिब को न चाहिए कि ख़ु़दा की तालीम के मुताबिक़ लिखने से इन्कार करे। उसे ही लिख देना चाहिए और जिसके जि़म्मे क़र्ज़ है वही इमला करे और उस ख़ु़दा से डरता रहे जो उसका पालने वाला है और (क़जऱ् की वापसी में) किसी तरह की कमी न करे। अब अगर जिसके जि़म्मे क़र्ज़ है वह नादान, कमज़ोर या मज़मून बताने के क़ाबिल नहीं है तो उसका वली (वारिस) इंसाफ से मज़मून तैयार करा दे और अपने में से दो मर्दों को गवाह बना लिया करो और दो मर्द न हों तो एक मर्द और दो औरतें ताकि एक भूल जाय तो दूसरी याद दिला दे और गवाहों को चाहिए कि गवाही के लिए बुलाये जायें तो इन्कार न करें और ख़बरदार लिखा पड़ी से नागवारी का इज़हार न करना चाहे क़र्ज़ छोटा हो या बड़ा मुद्दत मुअय्यन (तय) होनी चाहिए यही परवरदिगार के नज़दीक अदालत के मुताबिक़ और गवाही के लिए ज़्यादा मुस्तहकम (मज़बूत) तरीक़ा है और उस अम्र (बात) से क़रीब तर है कि आपस में शक व शुबहा न पैदा हो, हाँ अगर तिजारत नक़द है जिससे तुम लोग आपस में अमवाल (माल) की उलट फ़ेर करते हो तो न लिखने में कोई हर्ज भी नहीं है और अगर तिजारत मंे भी गवाह बनाओ तो कातिब या गवाह को हक़ नहीं है कि अपने ग़लत तजऱ्े अमल से लोगों को नुक़सान पहुंचाये और न लोगांे को ये हक़ है और अगर तुमने ऐसा किया तो ये इताअते ख़ु़दा से नाफ़रमानी के मुतरादिफ़ (जैसा) है अल्लाह से डरो कि अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है |
283 | और अगर तुम सफ़र मंे हो और कोई कातिब (लिखने वाला) नहीं मिल रहा है तो कोई चीज़ रेहन रख दे और अगर एक दूसरे पर ऐतबार हो तो (यूँ ही क़जऱ् दे दो) अब जिस पर ऐतबार किया है उसको चाहिए कि अमानत को (पूरा-पूरा) वापस कर दे और ख़ु़दा से डरता रहे। और ख़बरदार गवाही को छिपाना नहीं कि जो ऐसा करेगा उसका दिल गुनाहगार होगा और अल्लाह तुम्हारे आमाल से ख़ूब बाख़बर (वाकि़फ़) है |
284 | जो कुछ ज़मीन व आसमानों में है गोया कुल कायनात अल्लाह ही का है। तुम अपने दिल की बातों का इज़हार करो या उन पर परदा डालो वह सबका मुहासेबा (हिसाब) करेगा। वह जिसको चाहेगा बख़्श (माफ़ कर) देगा और जिस पर चाहेगा अज़ाब करेगा। वह हर चीज़ पर कु़दरत व इखि़्तयार रखने वाला है |
285 | रसूल उन तमाम बातों पर ईमान रखता है जो उसकी तरफ़ नाजि़ल की गई हैं और मोमिनीन भी सब के सब अल्लाह, उसके मलायका उसकी किताबों और रसूलों पर ईमान रखते हैं उनका कहना है कि हम रसूलों के दरम्यान तफ़रीक़ (फ़कऱ्) नहीं करते। हमने पैग़ामे इलाही को सुना और उसकी इताअत की। परवरदिगार हमें तेरी ही मग़फि़रत दरकार है और तेरी ही तरफ़ पलट कर जाना है |
286 | अल्लाह किसी नफ़्स को उसकी वुसअत (ताक़त) से ज़्यादा तकलीफ़ नहीं देता। हर शख़्स के लिए उसकी हासिल की हुई नेकियों का फ़ायदामंद है और उसकी कमाई हुई बुराईयों (गुनाह) उसी के जि़म्मे है। परवरदिगार! हम जो कुछ भूल जायें या हमसे ग़लती हो जाये उसका हमसे मुवाख़ेज़ा (हिसाब) न करना। ((अगले पैग़म्बरों की उम्मत पर हमारी निस्बत इबादत के अहकाम बहुत सख़्त थे। मसलन रात दिन में पचास वक़्त की नमाज़ें, माल का चैथाई हिस्सा ज़कात, नजासत लगने से कपड़े का कतरना, मस्जिद के सिवा दूसरी जगह नमाज़ न पढ़ना, तयम्मुम से न सही होना, गुनाह करने पर उसकी निशानी गुनाहगार की पेशानी (चेहरे) पर ज़ाहिर हो जाना, घर में गुनाह किया तो दरवाज़े पर लिख जाना वग़ैरह। मगर हबीबे ख़ुदा रसूले अकरम (स0) की बरकत से सब तकलीफ़ें उठाकर इस दीन को बेहद आसान बना दिया)) ख़ु़दाया हम पर वैसा बोझ न डालना जैसा पहले वाली उम्मतों पर डाला गया था। परवरदिगार! हम पर वह बार (बोझ) न डालना जिसे उठाने की हम में ताक़त न हो। हमारे क़ुसूर माफ़ कर देना, हमारे गुनाह बख़्श देना और हम पर रहम करना तू हमारा मौला और मालिक है तू ही काफि़रों के मुक़ाबले में हमारी मदद फ़रमा |
Wednesday, 15 April 2015
Sura-e-Baqra, 2nd sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.)
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