Wednesday, 15 April 2015

Sura-a-Anáam 6th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.),

    सूरा-ए-अनआम
6   शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा रहमान और रहीम है।
6 1 सारी तारीफ़ उस अल्लाह के लिए है जिसने आसमानों और ज़मीन को पैदा किया है और तारीकियों (अंधेरों) और नूर को मुक़र्रर किया है इसके बाद भी कुफ्ऱ इखि़्तयार करने वाले दूसरों को उसके बराबर क़रार देते हैं 
6 2 वह ख़ु़दा वह है जिसने तुमको मिट्टी से पैदा किया है फिर एक मुद्दत का फ़ैसला किया है और एक मुक़र्रर (तय शुदा) मुद्दत उसके पास और भी है लेकिन इसके बाद भी तुम शक करते हो 
6 3 वह आसमानों और ज़मीन हर जगह का ख़ु़दा है वह तुम्हारे बातिन (छुपा हुआ) और ज़ाहिर और जो तुम कारोबार करते हो सबको जानता है 
6 4 इन लोगों के पास इनके परवरदिगार की कोई निशानी नहीं आती मगर ये कि ये इससे किनाराकशी इखि़्तयार कर लेते हैं 
6 5 इन लोगों ने इसके पहले भी हक़ के आने के बाद हक़ का इन्कार किया है अनक़रीब इनके पास जिन चीज़ांे का ये मज़ाक उड़ाते थे उनकी ख़बरें आने वाली हैं 
6 6 क्या इन्होंने नहीं देखा कि हमने इनसे पहले कितनी नसलों को तबाह कर दिया है जिन्हें तुम से ज़्यादा ज़मीन में इक़तेदार दिया था और उन पर मूसलाधार पानी भी बरसाया था। इनके क़दमों में नहरें भी जारी थीं फिर इनके गुनाहों की बिना पर इन्हें हलाक कर दिया और इनके बाद दूसरी नसल जारी कर दी 
6 7 और अगर हम आप पर काग़ज़ पर लिखी हुई किताब भी नाजि़ल कर देते और ये अपने हाथ से छू भी लेते तो भी इनके काफि़र यही कहते कि ये खुला हुआ जादू है 
6 8 और ये कहते हैं इन पर मलक (फ़रिश्ता) क्यों नहीं नाजि़ल होता हालांकि हम मलक नाजि़ल कर देते तो काम का फ़ैसला हो जाता और फिर इन्हें किसी तरह की मोहलत न दी जाती 
6 9 अगर हम पैग़म्बर को फ़रिश्ता भी बनाते तो भी मर्द ही बनाते और वही लिबास पहनाते जो मर्द पहना करते हैं 
6 10 पैग़म्बर आप से पहले बहुत से रसूलों का मज़ाक़ उड़ाया गया है जिसके नतीजे में मज़ाक़ उड़ाने वालों के लिए उनका मज़ाक ही उनके गले पड़ गया और वह इसमें घिर गये 
6 11 आप इनसे कह दीजिए कि ज़मीन में सैर करें फिर इसके बाद देखंे कि झुठलाने वालों का अंजाम क्या होता है 
6 12 इनसे कहिये कि ज़मीन व आसमान में जो कुछ भी है वह सब किसके लिए है? फिर बताईये कि सब अल्लाह ही के लिए है उसने अपने ऊपर रहमत को लाजि़म क़रार दे लिया है। वह तुम सबको क़यामत के दिन इकट्ठा करेगा जिसमें किसी शक की गुंजाईश नहीं है। जिन लोगों ने अपने नफ़्स को ख़सारे (घाटे) में डाल दिया है वह अब ईमान न लायेंगे 
6 13 और ख़ु़दा के लिए वह तमाम चीज़ंे हैं जो रात और दिन में नज़र आती हैं और वह सब कुछ सुनने वाला और सब कुछ जानने वाला है 
6 14 आप कहिये कि क्या मैं ख़ु़दा के अलावा किसी और को अपना वली बना लूँ जबकि ज़मीन व आसमान का पैदा करने वाला वही है और वही सबको खिलाता है उसको कोई नहीं खिलाता है। कहिये कि मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं सबसे पहला इताअत गु़ज़ार बनूँ और ख़बरदार तुम लोग मुशरिक न हो जाना 
6 15 कहिये कि मैं अपने ख़ु़दा की नाफ़रमानी करूँ तो मुझे बड़े संगीन दिन के अज़ाब का ख़तरा है 
6 16 उस दिन जिससे अज़ाब टाल दिया जाये उस पर ख़ु़दा ने बड़ा रहम किया और ये एक खुली हुई कामयाबी है 
6 17 अगर ख़ु़दा की तरफ़ से तुमको कोई नुक़़सान पहुंच जाये तो उसके अलावा कोई टालने वाला भी नहीं है और अगर वह ख़ैर दे दे तो वही हर शय (चीज़) पर कु़दरत रखने वाला है
6 18 और अपने तमाम बन्दों पर ग़ालिब और साहेबे हिकमत और बा ख़बर रहने वाला है 
6 19 आप कह दीजिए कि गवाही के लिए सबसे बड़ी चीज़ क्या है और बता दीजिए कि ख़ु़दा हमारे और तुम्हारे दरमियान गवाह है और मेरी तरफ़ इस कु़रआन की वही (इलाही पैग़ाम) की गई है ताकि इसके ज़रिये मैं तुम्हें और जहां तक ये पैग़ाम पहंुचे सब को डराऊँ क्या तुम लोग गवाही देते हो कि ख़ु़दा के साथ कोई और ख़ु़दा भी है तो आप कह दीजिए कि मैं इसकी गवाही नहीं दे सकता और बता दीजिए कि ख़ु़दा सिर्फ़ ख़ु़दाए वाहिद है और मैं तुम्हारे शिर्क से बेज़ार हूँ 
6 20 जिन लोगों को हमने किताब दी है वह पैग़म्बर को इसी तरह पहचानते हैं जिस तरह अपनी औलाद को पहचानते हैं लेकिन जिन लोगों ने अपने नफ़्स (जान) को ख़सारे (घाटा) में डाल दिया है वह ईमान नहीं ला सकते 
6 21 उससे ज़्यादा ज़ालिम कौन हो सकता है जो ख़ु़दा पर बोहतान बांधे और उसकी आयात की तकज़ीब करे (झुठलाए), यक़ीनन उन ज़ालेमीन के लिए नजात नहीं है 
6 22 क़यामत के दिन हम, सबको एक साथ उठायेंगे फिर मुशरेकीन से कहेंगे कि तुम्हारे वह शोरका (साथी) कहां हैं जो तुम्हारे ख़याल में ख़ु़दा के शरीक थे 
6 23 इसके बाद उनका कोई फि़त्ना न होगा सिवाए इसके कि ये कह दें कि ख़ु़दा की क़सम हम मुशरिक नहीं थे 
6 24 देखिये इन्होंने किस तरह अपने आपको झुठलाया और किस तरह इनका इफ़तेरा (इल्ज़ाम) हक़ीक़त से दूर निकला
6 25 और इनमें से बाॅज़ लोग कान लगाकर आपकी बात सुनते हैं लेकिन हमने इनके दिलों पर पर्दे डाल दिये हैं। ये समझ नहीं सकते हैं और इनके कानों में भी बहरापन है। ये अगर तमाम निशानियों को देख लें तो भी ईमान न लायेंगे, यहां तक कि जब आपके पास आयेंगे तो भी बहस करेंगे और कुफ़्फ़ार कहेंगे कि ये कु़रआन तो सिर्फ़ अगले लोगों की कहानी है 
6 26 ये लोग दूसरों को कु़रआन से रोकते हैं और ख़ुद भी दूर भागते हैं हालांकि ये अपने ही को हलाक कर रहे हैं और उन्हंे शऊर (तमीज़) तक नहीं है 
6 27 अगर आप देखते कि ये किस तरह जहन्नुम के सामने खड़े किये गये और कहने लगे कि काश हम पलटा दिये जाते और परवरदिगार की निशानियों की तकज़ीब न करते (न झुठलाते) और मोमिनीन में शामिल हो जाते 
6 28 बल्कि इनके लिए वह सब वाज़ेह हो गया जिसे पहले से छिपा रहे थे और अगर ये पलटा भी दिये जायें तो वही करेंगे जिससे ये रोके गये हैं और ये सब झूठे हैं 
6 29 और ये कहते हैं कि ये सिर्फ़ जि़न्दगानी दुनिया है और हम दोबारा नहीं उठाये जायेंगे 
6 30 और अगर आप उस वक़्त देखते जब उन्हें परवरदिगार के सामने खड़ा किया जायेगा और उनसे खि़ताब होगा कि क्या ये सब हक़ नहीं है तो वह लोग कहेंगे कि बेशक हमारे परवरदिगार की क़सम ये सब हक़ है तो इरशाद होगा कि अब अपने कुफ्ऱ के अज़ाब का मज़ा चखो 
6 31 बेशक वह लोग ख़सारे (घाटे) में हैं जिन्होंने अल्लाह की मुलाक़ात का इन्कार किया यहां तक कि जब अचानक क़यामत आ गई तो कहने लगे कि हाए अफ़सोस हमने क़यामत (प्रलय) के बारे में बहुत कोताही की है। उस वक़्त वह अपने गुनाहों का बोझ अपनी पुश्त पर लादे होंगे और ये बदतरीन बोझ होगा 
6 32 और ये जि़न्दगानी दुनिया सिर्फ़ खेल तमाशा है और दारे आखि़रत (आखि़रत का घर) साहेबाने तक़्वा (परहेज़गारों) के लिए सबसे बेहतर है। क्या तुम्हारी समझ में ये बात नहीं आ रही है 
6 33 हमें मालूम है कि आपको इनके अक़वाल (बातों) से दुख होता है लेकिन ये आपकी तकज़ीब झूठ नहीं कर रहे हैं बल्कि ये ज़ालेमीन आयाते इलाही (अल्लाह की निशानियों) का इन्कार कर रहे हैं 
6 34 और आप से पहले वाले रसूलों को भी झुठलाया गया है तो उन्होंने इस तकज़ीब (झुठलाने) और अजी़यत (तकलीफ़) पर सब्र किया है यहां तक कि हमारी मदद आ गई और अल्लाह की बातों का कोई बदलने वाला नहीं है और आपके पास तो मुरसेलीन (पैग़म्बरों) की ख़बरें आ चुकी हैं 
6 35 और अगर इनका आराज़ व इनहेराफ़ (बचना) आप पर गरां (भारी) गुज़रता है तो अगर आपके बस में है कि ज़मीन में सुरंग बना दें या आसमान में सीढ़ी लगाकर कोई निशानी ले आयें तो ले आये। बेशक अगर ख़ु़दा चाहता तो जबरन सबको हिदायत पर जमा ही कर देता लेहाज़ा आप अपना शुमार ना वाकि़फ़ लोगों में न होने दें 
6 36 बस बात को वही लोग कु़़बूल करते हैं जो (दिल से) सुनते हैं और मुर्दों को ख़ु़दा (क़यामत) ही (में) उठायेगा और फिर उसकी बारगाह में पलटाये जायेंगे 
6 37 और ये कहते हैं कि इनके ऊपर कोई निशानी क्यों नहीं नाजि़ल होती तो कह दीजिए कि ख़ु़दा तुम्हारी पसंदीदा निशानी भी नाजि़ल कर सकता है लेकिन अकसरियत (बहुतेरे) इस बात को भी नहीं जानती है 
6 38 और ज़मीन में कोई भी रेंगने वाला (चलने फिरने वाला हैवान) या दोनों परों से परवाज़ करने वाला तायर (चिडि़या) ऐसा नहीं है जो अपनी जगह पर तुम्हारी तरह की जमाअत न रखता हो। हमने किताब (क़ुरान) में किसी शय (चीज़) के बयान में कोई कमी नहीं की है इसके बाद सब अपने परवरदिगार की बारगाह में पेश होंगे 
6 39 और जिन लोगों ने हमारी आयात की तकज़ीब की (झुठलाया) वह बहरे गूँगे (और कुफ्ऱ के घटाटोप) तारीकियों (अंधेरों) में पड़े हुए हैं और ख़ु़दा जिसे चाहता है यूँ ही गुमराही में रखता है और जिसे चाहता है सिराते मुस्तक़ीम (सीधेे रास्ते) पर लगा देता है 
6 40 आप उनसे कहिये कि तुम्हारा क्या ख़्याल है कि अगर तुम्हारे पास अज़ाब या क़यामत आ जाये तो क्या तुम अपने दावे की सदाक़त में ग़ैरे ख़ु़दा को बुलाओगे 
6 41 बल्कि तुम ख़ु़दा ही को पुकारोगे और वही अगर चाहेगा तो इस मुसीबत को रफ़ा (ख़त्म) कर सकता है, और तुम अपने मुशरिकाना (झूठे) ख़ु़दाओं को भूल जाओगे
6 42 हमने तुमसे पहले वाली उम्मतांे की तरफ़ भी रसूल भेजे हैं इसके बाद उन्हें सख़्ती और तकलीफ़ में मुब्तिला किया कि शायद हमसे गिड़गिड़ायें 
6 43 फिर इन सखि़्तयांे के बाद उन्होंने क्यों फ़रियाद नहीं की, बात ये है कि उनके दिल सख़्त हो गये हैं और शैतान ने उनके आमाल को उनके लिए आरास्ता कर (सजा) दिया है 
6 44 फिर जब इन नसीहतों को भूल गये जो उन्हें याद दिलाई गई थीं तो हमने इम्तिहान के तौर पर उनके लिए हर चीज़ के दरवाज़े खोल दिये यहां तक कि जब वह इन नेअमतों से खुशहाल हो गये तो हमने अचानक उन्हें अपनी गिरफ़्त में ले लिया और वह मायूस होकर रह गये 
6 45 फि़र ज़ालेमीन का सिलसिला मुन्क़ेता (ख़त्म) कर दिया गया और सारी तारीफ़ उस ख़ु़दा के लिए है जो रब्बिल आलमीन (तमाम आलमीन का पालने वाला) है 
6 46 आप उनसे पूछिये कि अगर ख़ु़दा ने उनकी समाअत (सुनना) व बसारत (दिखने की सलाहियत) को ले लिया और उनके दिल पर मोहर लगा दी तो ख़ु़दा के अलावा दूसरा कौन है जो दोबारा उन्हें ये नेअमतें दे सकेगा। देखो हम अपनी निशानियों को किस तरह उलट-पलट कर दिखलाते हैं और फिर भी ये मुँह मोड़ लेते हैं 
6 47 आप उनसे कहिये कि क्या तुम्हारा ख़्याल है कि अगर अचानक या अलल एलान अज़ाब आ जाये तो क्या ज़ालेमीन (ज़ालिमों) के अलावा कोई और हलाक किया जायेगा?
6 48 और हम तो मुरसलीन (पैग़म्बरों) को सिर्फ़ बशारत (ख़ुशख़बरी) देने वाला और डराने वाला बनाकर भेजते हैं। इसके बाद जो ईमान ले आये और अपनी इस्लाह (सुधार) कर ले उसके लिए न ख़ौफ़ है और न हुज़्न (ग़म) 
6 49 और जिन लोगों ने तकज़ीब की (झुठलाया) उन्हें उनकी नाफ़रमानियों (कहना ना मानने) की वजह से अज़ाब अपनी लपेट में ले लेगा 
6 50 आप कहिये कि हमारा दावा ये नहीं है कि हमारे पास ख़ु़दाई ख़जाने हैं या हम आलिमुल गै़ब (भविष्य ज्ञाता) हैं और न हम ये कहते हैं कि हम मलक (फ़रिश्ता) हैं। हम तो सिर्फ़ वही (हुक्में परवरदिगार) का इत्तेबा (पैरवी/पालन) करते हैं और पूछिये कि क्या अंधे और बीना (देखने वाला) बराबर हो सकते हैं आखि़र तुम क्यों नहीं सोचते हो 
6 51 और आप इस किताब के ज़रिये उन्हें डरायें जिन्हें ये ख़ौफ़ है कि ख़ु़दा की बारगाह में हाजि़र होंगे और उसके अलावा कोई सिफ़ारिश करने वाला या मददगार न होगा शायद उनमें ख़ौफ़े ख़ु़दा पैदा हो जाये 
6 52 और ख़बरदार जो लोग सुबह व शाम अपने ख़ु़दा को पुकारते हैं और ख़ु़दा ही को मक़सूद बनाये हुए हैं उन्हंे अपनी बज़्म (महफि़ल) से अलग न कीजिएगा। न आपके जि़म्मे उनका हिसाब है और न उनके जि़म्मे आपका हिसाब है कि आप उन्हें धुतकार दें और इस तरह ज़ालिमों में शुमार हो जायें 
6 53 और इसी तरह हमने बाज़ को बाज़ के ज़रिये आज़माया है ताकि वह ये कहें कि यही लोग हैं जिन पर ख़ु़दा ने हमारे दरमियान फ़ज़्ल व करम किया है और क्या वह अपने शुक्रगुज़ार बन्दों को भी नहीं जानता 
6 54 और जब आप के पास वह लोग आयें जो हमारी आयतों पर ईमान रखते हैं तो उनसे कहिये सलाम अलैकुम (तुम पर अल्लाह की तरफ़ से सलामती हो)। तुम्हारे परवरदिगार ने अपने ऊपर रहमत लाजि़म क़रार दे ली है कि तुम में जो भी अज़ रूए जिहालत (न जानने की बिना पर) बुराई करेगा और इसके बाद तौबा करके अपनी इस्लाह कर लेगा तो ख़ु़दा बहुत ज़्यादा बख़्शने वाला और मेहरबान है 
6 55 और हम इसी तरह अपनी निशानियों को तफ़्सील (डिटेल) के साथ बयान करते हैं ताकि मुजरेमीन का रास्ता उन पर वाज़ेह (ज़ाहिर) हो जाये 
6 56 आप कह दीजिए कि मुझे इस बात से रोका गया है कि मैं उनकी इबादत करूँ जिन्हें तुम ख़ु़दा को छोड़कर पुकारते हो। कह दीजिए कि मैं तुम्हारी ख़्वाहिशात का इत्तेबा (पैरवी) नहीं कर सकता कि इस तरह गुमराह हो जाऊँगा और हिदायत याफ़्ता (दीन में कामयाब) न रह सकूँगा 
6 57 कह दीजिए कि मैं परवरदिगार की तरफ़ से खुली हुई दलील रखता हूँ और तुमने इसे झुठलाया है तो मेरे पास वह अज़ाब नहीं है जिसकी तुम्हें जल्दी है। हुक्म सिर्फ़ अल्लाह के इखि़्तयार में है वही हक़ को बयान करता है और वही बेहतरीन फ़ैसला करने वाला है 
6 58 कह दीजिए कि अगर मेरे इखि़्तयार में वह अज़ाब होता जिसकी तुम्हें जल्दी है तो अब तक हमारे तुम्हारे दरमियान फ़ैसला हो चुका होता और ख़ु़दा ज़ालेमीन (ज़्ाुल्म करने वालो) को ख़ूब जानता है 
6 59 और उसके पास ग़ैब के ख़ज़ाने हैं जिन्हें उसके अलावा कोई नहीं जानता है और वह खु़श्क व तर सब का जानने वाला है। कोई पत्ता भी गिरता है तो उसे उसका इल्म है। ज़मीन की तारीकियों (अन्धेरों) में कोई दाना या कोई खु़श्क (सूखा) व तर (नम) ऐसा नहीं है जो किताबे मुबीन (रौशन किताब) के अन्दर महफ़ूज़ न हो 
6 60 और वही ख़ु़दा है जो तुम्हें रात में गोया कि एक तरह की मौत दे देता है और दिन में तुम्हारे तमाम आमाल से बा ख़बर है और फिर दिन में तुम्हें उठा देता है ताकि मुक़र्ररा मुद्दते हयात (मोअययन वक़्ते जि़न्दगी) पूरी की जा सके। इसके बाद तुम सब की बाज़गश्त (आना-जाना) उसी की बारगाह में है और फिर वह तुम्हें तुम्हारे आमाल के बारे में बा ख़बर करेगा 
6 61 और वही ख़ु़दा है जो अपने बन्दों पर ग़ालिब है और तुम सब पर मुहाफि़ज़ फ़रिश्ते भेजता है यहां तक कि जब किसी की मौत का वक़्त आ जाता है तो हमारे भेजे हुए नुमाइन्दे (फ़रिश्ते) उसे उठा लेते हैं और किसी तरह की कोताही (कमी) नहीं करते 
6 62 फिर सब अपने मौलाए बरहक़ परवरदिगार की तरफ़ पलटा दिये जाते हैं। आगाह हो जाओ कि फ़ैसले का हक़ सिर्फ़ उसी को है और वह बहुत जल्दी हिसाब करने वाला है 
6 63 इनसे कहिए कि ख़ु़श्की और तरी की तारीकियों (अंधेरों) से कौन निजात देता है जिसे तुम गिड़गिड़ाकर और खु़फि़या (छुपे) तरीक़े से आवाज़ देते हो कि अगर इस मुसीबत से निजात दे देगा तो हम शुक्रगुज़ार बन जायेंगे 
6 64 कह दीजिए कि ख़ु़दा ही तुम्हें इन तमाम ज़्ाुल्मात (अंधेरों) से और हर कर्ब (तकलीफ़) व बेचैनी से नजात देने वाला है इसके बाद तुम लोग शिर्क इखि़्तयार कर लेते हो
6 65 कह दीजिए कि वही इस बात पर भी क़ादिर है कि तुम्हारे ऊपर से या पैरों के नीचे से अज़ाब भेज दे या एक गिरोह को दूसरे से टकरा (लड़ा) दे और एक के ज़रिये दूसरे को अज़ाब का मज़ा चखा दे। देखो हम किस तरह आयात को पलट-पलट कर बयान करते हैं कि शायद उनकी समझ में आ जाये 
6 66 और आपकी क़ौम ने इस कु़रआन की तकज़ीब (झुठलाया) की हालांकि वह बिल्कुल हक़ है तो आप कह दीजिए कि क्या मैं तुम्हारा निगेहबान (देख-रेख करने वाला) नहीं हूँ 
6 67 हर ख़बर के लिए एक वक़्त मुक़र्रर है और अनक़रीब तुम्हें मालूम हो जायेगा 
6 68 और जब तुम देखो कि लोग हमारी निशानियों के बारे मंे बे-रब्त (बे-महल) बहस कर रहे हैं तो इनसे कनाराकश (अलग-थलग) हो जाओ यहां तक कि वह दूसरी बात में मसरूफ़ हो जायें और अगर शैतान ग़ाफि़ल (भुला दे) कर दे तो याद आने के बाद फि़र ज़ालिमों के साथ न बैठना
6 69 और साहेबाने तक़्वा (परहेज़गार) पर इनके हिसाब की कोई जि़म्मेदारी नहीं है लेकिन ये एक याद दहानी है कि शायद ये लोग भी तक़्वा इखि़्तयार कर लें 
6 70 और उन लोगों को छोड़ दो जिन्होंने अपने दीन को खेल तमाशा बना रखा है और उन्हें जि़न्दगानी दुनिया ने धोखे में मुब्तिला (डाल दिया) कर दिया है और उनको याद दहानी कराते रहो कि मबादा (फिर) कोई शख़्स अपने किये कि बिना पर ऐसे अज़ाब में मुब्तिला हो जाये कि अल्लाह के अलावा कोई सिफ़ारिश करने वाला और मदद करने वाला न हो और सारे मुआवज़े इकठ्ठा भी कर दे तो इसे कु़बूल न किया जाये, यही वह लोग हैं जिन्हें उनके करतूत की बिना पर बलाओं में मुब्तिला किया गया है कि अब उनके लिए गर्म पानी का मशरूब (पीने की चीज़) है और उनके कुफ्ऱ की बिना पर दर्दनाक (कड़ा) अज़ाब है 
6 71 पैग़म्बर आप कह दीजिए कि हम ख़ु़दा को छोड़कर उनको पुकारें जो न फ़ायदा पहुंचा सकते हैं और न नुक़सान और इस तरह अल्लाह के हिदायत देने के बाद उलटे पांव पलट जायें जिस तरह कि किसी शख़्स को शैतान ने रूए ज़मीन पर बहका दिया हो और वह हैरान व सरगरदां (इधर-उधर) मारा-मारा फिर रहा हो और उसके कुछ असहाब उसे हिदायत की तरफ़ पुकार रहे होंगे कि इधर आ जाओ। आप कह दीजिए कि हिदायत सिर्फ़ अल्लाह की हिदायत है और हमें हुक्म दिया गया है कि हम रब्बुल आलमीन की बारगाह में सरापा (सर से पैर तक) तस्लीम रहें 
6 72 और देखो नमाज़ क़ायम करो और अल्लाह से डरो कि वही वह है जिसकी बारगाह में हाजि़र किये जाओगे 
6 73 वही वह है जिसने आसमान व ज़मीन को हक़ के साथ पैदा किया है और वह जब भी कहता है कि हो जा तो वह चीज़ हो जाती है उसका क़ौल बर हक़ है और जिस दिन सूर फूंका जायेगा उस दिन सारा इखि़्तयार उसी के हाथ में होगा वह ग़ायब और हाजि़र सबका जानने वाला साहेबे हिकमत और हर शय से बाख़बर (ख़बरदार) है 
6 74 और उस वक़्त को याद करो जब इब्राहीम ने अपने मुरबी (पालने वाले) बाप आज़र से कहा कि क्या तू इन बुतों को ख़ु़दा बनाए हुए है। मैं तो तुझे और तेरी क़ौम को खुली हुई गुमराही (ग़लत राह) में देख रहा हूँ 
6 75 और इसी तरह हम इब्राहीम को आसमान व ज़मीन के इखि़्तयारात दिखलाते हैं और इसलिए कि वह यक़ीन करने वालों में शामिल हो जाये 
6 76 पस जब इन पर रात की तारीकी (अंधेरा) छाई और इन्हांेने सितारे को देखा तो कहा कि क्या ये मेरा रब है। फिर जब वह ग़्ाु़रूब (डूबना) हो गया तो इन्होंने कहा कि मैं डूब जाने वालों को दोस्त नहीं रखता
6 77 फिर चाँद को चमकता देखा तो कहा कि फि़र ये रब होगा। फिर जब वह भी डूब गया तो कहा कि अगर परवरदिगार ही हिदायत न देगा तो मैं गुमराहों (भटके हुओं) में हो जाऊँगा 
6 78 फिर जब चमकते हुए सूरज को देखा तो कहा कि फिर ये ख़ु़दा होगा ये ज़्यादा बड़ा है लेकिन जब वह भी ग़्ाु़रूब (डूबना) हो गया तो कहा कि ऐ क़ौम मैं तुम्हारे शिर्क से बरी (अलग) और बेज़ार हूँ 
6 79 मेरा रूख़ तमामतर उस ख़ु़दा की तरफ़ है जिसने आसमानों और ज़मीन को पैदा किया है और मैं बातिल से कनाराकश (अलग) हूँ और मुशरिकों में से नहीं हूँ 
6 80 और जब इनकी क़ौम ने इनसे कट-हुज्जती की तो कहा कि क्या मुझ से ख़ु़दा के बारे में बहस कर रहे हो जिसने मुझे हिदायत दे दी है और मैं तुम्हारे शरीक कर्दा ख़ु़दाओं से बिल्कुल नहीं डरता हूँ। मगर ये कि ख़ुद मेरा ख़ु़दा कोई बात चाहे कि उसका इल्म हर शै (चीज़) से वसीतर (ज़्यादा) है क्या ये बात तुम्हारी समझ में नहीं आती है 
6 81 और मैं किस तरह तुम्हारे ख़ु़दाओं से डर सकता हूँ जबकि तुम इस बात से नहीं डरते हो कि तुमने इनको ख़ु़दा का शरीक बना दिया है जिसके बारे में ख़ु़दा की तरफ़ से कोई दलील नहीं नाजि़ल हुई है तो अब दोनों फ़रीक़ों (तरफ़ के लोगों) में कौन ज़्यादा अमन व सुकून का हक़दार है अगर तुम जानने वाले हो तो बताओ 
6 82 जो लोग ईमान ले आये और उन्होंने अपने ईमान को ज़्ाुल्म से आलूदा (मिलाया) नहीं किया उन्हीं के लिए अमन व सुकून है और वही हिदायत याफ़्ता (पाये हुए) है
6 83 ये हमारी दलील है जिसे हमने इब्राहीम को उनकी क़ौम के मुक़ाबले में अता किया और हम जिसको चाहते हैं उसके दरजात (मरतबे) को बुलन्द कर देते हैं। बेशक तुम्हारा परवरदिगार साहेबे हिकमत भी है और बाख़बर भी है 
6 84 और हमने इब्राहीम अलैहिस्सलाम को इस्हाक़ अलैहिस्सलाम व याकू़ब अलैहिस्सलाम दिये ओर सबको हिदायत भी दी और इसके पहले नूह को हिदायत दी और फिर इब्राहीम अलैहिस्सलाम की औलाद में दाऊद अलैहिस्सलाम, सुलेमान अलैहिस्सलाम, अय्यूब अलैहिस्सलाम, यूसुफ़ अलैहिस्सलाम, मूसा अलैहिस्सलाम और हारून अलैहिस्सलाम क़रार दिये और हम इसी तरह नेक अमल करने वालों को जज़ा (बदला) देते हैं 
6 85 और ज़करिया अलैहिस्सलाम, यहिया अलैहिस्सलाम, ईसा अलैहिस्सलाम और इलियास अलैहिस्सलाम को भी रखा जो सब के सब नेक किरदारों में थे 
6 86 और इस्माईल अलैहिस्सलाम, अलयस्आ (इलियास) अलैहिस्सलाम, यूनुस अलैहिस्सलाम और लूत अलैहिस्सलाम भी बनाये और सबको आलमीन (दोनो जहान) से अफ़ज़ल व बेहतर बनाया 
6 87 और फिर उनके बाप दादा, औलाद और बरादरी में से ख़ुद उन्हें भी मुन्तख़ब (चुना) किया और सबको सीधे रास्ते की हिदायत कर दी
6 88 यही ख़ु़दा की हिदायत है जिसे जिस बन्दे को चाहता है अता (दे देता) कर देता है और अगर ये लोग शिर्क इखि़्तयार कर लेते तो उनके भी सारे आमाल (नेकियां) बर्बाद हो जाते 
6 89 यही वह अफ़राद हैं जिन्हें हमने किताब, हुकूमत और नबूवत अता की (दी) है। अब अगर ये लोग इन बातों का भी इन्कार करते हैं तो हमने इन बातों का जि़म्मेदार एक ऐसी क़ौम को बनाया है जो इन्कार करने वाली नहीं है 
6 90 यही वह लोग हैं जिन्हें अल्लाह ने हिदायत दी है लेहाज़ा आप भी इसी हिदायत के रास्ते पर चलें और कह दीजिए कि हम तुम से इस कारे तब्लीग़ (नेक अमल का बदला) व हिदायत का कोई अज्र नहीं चाहते हैं, ये कु़रआन तो आलमीन की याद दहानी का ज़रिया है 
6 91 और इन लोगों ने वाक़ई ख़ु़दा की क़द्र नहीं की जबकि ये कह दिया कि अल्लाह ने किसी बशर (आदमी) पर कुछ नहीं नाजि़ल किया है तो उनसे पूछिये कि ये किताब जो मूसा लेकर आये थे जो नूर और लोगों के लिए हिदायत थी और जिसे तुमने चन्द काग़ज़ात बना दिया है और कुछ हिस्सा ज़ाहिर किया और कुछ छिपा दिया हालांकि इसके ज़रिये तुम्हें वह सब बता दिया गया था जो तुम्हारे बाप दादा को भी नहीं मालूम था ये सब किसने नाजि़ल किया है अब आप कह दीजिए कि वह वही अल्लाह है और फिर उन्हें छोड़ दीजिए ये अपनी बकवास करते फिरें 
6 92 और ये किताब जो हमने नाजि़ल की है ये बा बरकत है और अपने पहले वाली किताबों की तसदीक करने वाली है और ये इसलिए है कि आप मक्का और इसके अतराफ़  वालों को डरायें और जो लोग आखि़रत पर ईमान रखते हैं वह इस पर ईमान रखते हैं और अपनी नमाज़ की पाबन्दी करते हैं 
6 93 और इससे बड़ा ज़ालिम कौन होगा जो ख़ु़दा पर झूठा इल्ज़ाम लगाये या उसके नाजि़ल किये बगै़र ये कह दे कि मुझ पर वही नाजि़ल हुई है और जो ये कह दे कि मैं भी ख़ु़दा की तरह बातें नाजि़ल कर सकता हूँ, और अगर आप देखते कि ज़ालिम मौत की सखि़्तयों में है और मलायका अपने हाथ बढ़ाये हुए आवाज़ दे रहे हैं कि अब अपनी जान निकाल दो कि आज तुम्हें तुम्हारे झूठे बयानात और इल्ज़ामात पर रूसवाई (जि़ल्लत) का अज़ाब दिया जायेगा कि तुम आयाते  ख़ु़दा (ख़ुदा की निशानियों) से इन्कार और इस्तेकबार (तकब्बुर) कर रहे थे
6 94 और बिल आखि़र तुम इसी तरह हमारे पास तन्हा (अकेले) आये जिस तरह हमने तुमको पैदा किया था और जो कुछ तुम्हें दिया था सब अपने पीछे छोड़ आये और हम तुम्हारे साथ तुम्हारे उन सिफ़ारिश करने वालों को भी नहीं देखते जिन्हें तुमने अपने लिए खु़़दा का शरीक बनाया था। तुम्हारे इनके ताल्लुक़ात क़ता (ख़त्म) हो गये और तुम्हारा ख़्याल तुमसे ग़ायब हो गया 
6 95 ख़ु़दा ही वह है जो गुठली और दाने का शिगाफ़्ता (फाड़ने) करने वाला है। वह मुर्दा से जि़न्दा और जि़न्दा से मुर्दा को निकालता है। यही तुम्हारा ख़ु़दा है तो तुम किधर बहके जा रहे हो 
6 96 वह नूरे सहर (सुबह) का शिगाफ़्ता (निकालने) करने वाला है और उसने रात को वजहे सुकून और शम्स (सूरज) व क़मर (चाॅद) को ज़रिये हिसाब बनाया है। ये उस साहेबे इज़्ज़त व हिकमत की मुक़र्रर कर्दा तक़दीर है 
6 97 वही वह है जिसने तुम्हारे लिए सितारे मुक़र्रर किये हैं कि उनके ज़रिये खु़श्की (ज़मीन) और तरी (समन्दर) की तारीकियों (अंधेरों) में रास्ता मालूम कर सको। हमने तमाम निशानियों को इस क़ौम के लिए तफ़्सील (पूरी तौर) के साथ बयान किया है जो जानने वाली है 
6 98 वही वह है जिसने तुम सबको एक नफ़्स (जान) से पैदा किया है फिर सबके लिए क़रारगाह (बाप की पुशत) और मंजि़ले वदीयत (माँ का शिकम) मुक़र्रर की है। हमने साहेबाने  फ़हम (समझने वालांे) के लिए तमाम निशानियों को शुरू से आखि़र तक तफ़्सील के साथ बयान कर दिया है 
6 99 वही ख़ु़दा वह है जिसने आसमान से पानी नाजि़ल किया (बरसाया) है फिर हमने हर शय के कूए (अखवे) निकाले फिर हरी भरी शाखें़ निकालीं जिससे हम गुथे (बाहम मिले) हुए दाने निकालते हैं और खजूर के शगूफ़े (ख़ोशे) से लटकते हुए गुच्छे पैदा किये और अंगूर व जै़तून और अनार के बाग़ात पैदा किये जो शक्ल में मिलते-जुलते और मज़े में बिल्कुल अलग-अलग हैं। ज़रा इसके फ़ल और इसके पकने की तरफ़ ग़ौर से देखो कि इसमें साहेबाने ईमान के लिए कितनी निशानियां पायी जाती हैं 
6 100 और उन लोगों ने जिन्नात को ख़ु़दा का शरीक बना दिया है हालांकि ख़ु़दा ने उन्हें पैदा किया है फिर इसके लिए बग़ैर जाने बूझे बेटे और बेटियां भी तैयार कर दी हैं। जबकि वह बेनियाज़ (उसके कोई अवलाद नही है) और उनके बयान कर्दा औसाफ़ (सिफ़तों) से कहीं ज़्यादा बुलन्द-बाला है 
6 101 वह ज़मीन व आसमान का ईजाद (बनाने) करने वाला है। इसके औलाद किस तरह हो सकती है उसकी तो कोई बीवी भी नहीं है और वह हर शय का ख़ालिक़ है और हर चीज़ का जानने वाला है 
6 102 वही अल्लाह तुम्हारा परवरदिगार है जिसके अलावा कोई ख़ु़दा नहीं। वह हर शै का ख़ालिक़ है उसी की इबादत करो। वही हर शै का निगेहबान है 
6 103 निगाहें उसे पा नहीं सकतीं और वह निगाहों का बराबर इदराक (और वह लोगो की नज़रों को ख़ूब देखता) रखता है कि वह लतीफ़ भी है और ख़बीर (ख़बरदार) भी है 
6 104 तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से दलायल (खुली दलीलें) आ चुके हैं अब जो बसीरत से काम लेगा वह अपने लिए, और जो (अंधा) बन जायेगा वह भी अपना ही नुक़सान करेगा और मैं तुम लोगों का निगेहबान नहीं हूँ 
6 105 और इसी तरह हम पलट-पलट कर आयतें पेश करते हैं ताकि वह ये कहें कि आपने कु़रआन पढ़ लिया है और हम जानने वालों के लिए कु़रआन को वाज़ेह कर दें 
6 106 आप अपनी तरफ़ आने वाली वही (ख़बर) इलाही का इत्तेबा करें कि उसके अलावा कोई ख़ु़दा नहीं है और मुशरेकीन से किनाराकशी कर लें 
6 107 और अगर ख़ु़दा चाहता तो ये शिर्क ही न कर सकते और हमने आपको इनका निगेहबान नहीं बनाया है और न आप इनके जि़म्मेदार हैं 
6 108 और ख़बरदार तुम लोग उन्हें बुरा भला न कहो जिनको ये लोग ख़ु़दा को छोड़कर पुकारते हैं कि इस तरह ये दुश्मनी में बग़ैर समझे बूझे ख़ु़दा को बुरा भला कहेंगे हमने इसी तरह हर क़ौम के लिए उसके अमल को आरास्ता (सँवारना) कर दिया है इसके बाद सबकी बाज़गश्त (आना-जाना) परवरदिगार ही की बारगाह में है और वही सबको उनके आमाल के बारे में बा ख़बर करेगा 
6 109 और इन लोगों ने अल्लाह की सख़्त क़समें खायीं कि उनकी मजऱ्ी की निशानी आयी तो ज़रूर ईमान ले आयेंगे तो आप कह दीजिए कि निशानियां तो सब ख़ु़दा ही के पास है और तुम लोग क्या जानो कि वह आ भी जायेगी तो ये लोग ईमान न लायेंगे 
6 110 और हम उनके क़ल्ब (दिल) व नज़र (निगाह) को इस तरह पलट देंगे जिस तरह ये पहले ईमान नहीं लाये थे और उनको गुमराही में ठोकर खाने के लिए छोड़ देंगे 
6 111 और अगर हम इनकी तरफ़ मलायका (फ़रिशते) नाजि़ल भी कर दें और इनसे मुर्दे कलाम (बात) भी कर लें और इनके सामने तमाम चीज़ों को जमा भी कर दें तो भी ये ईमान न लायेंगे मगर ये कि ख़ु़दा ही चाह ले लेकिन इनकी अकसरियत जेहालत (नादानी) ही से काम लेती है 
6 112 और इसी तरह हमने हर नबी के लिए जिन्नात व इन्सान के शयातीन को इनका दुश्मन क़रार दे दिया है ये आपस में एक दूसरे की तरफ़ धोका देने के लिए मोहमल (लग़ो) बातों के इशारे करते हैं और अगर ख़ु़दा चाह लेता तो ये ऐसा न कर सकते लेहाज़ा अब आप इनको और इनकी इफ़तेरा परदाजि़यों (झूठे इल्ज़ाम) के हाल पर छोड़ दें 
6 113 और ये इसलिए करते हैं कि जिन लोगों का ईमान आखि़रत पर नहीं है इनके दिल इनकी तरफ़ हो जायें और वह इसे पसन्द कर लें फिर ख़ुद भी इन्हीं की तरह इफ़तेरा परदाज़ी (झूठे इल्ज़ाम) करने लगें 
6 114 क्या मैं ख़ु़दा के अलावा कोई हकम (फ़ैसला करने वाला) तलाश करूँ जबकि वही वह है जिसने तुम्हारी तरफ़ मुफ़स्सल किताब नाजि़ल की है और जिन लोगों को हमने किताब दी है उन्हें मालूम है कि ये कु़़रआन इनके परवरदिगार की तरफ़ से हक़ के साथ नाजि़ल हुआ है लेहाज़ा हर्गिज़ आप शक करने वालों में शामिल न हों 
6 115 और आपके रब का कलमा (बात) कु़रआन सदाक़त और अदालत के एतबार से बिल्कुल मुकम्मल (पूरा) है इसका कोई तब्दील करने वाला नहीं है और वह सुनने वाला भी है और जानने वाला भी है
6 116 और अगर आप रूए ज़मीन की अकसरियत का इत्तेबा (कही बात को मानना) कर लेंगे तो ये राहे ख़ु़दा से बहका देंगे। ये सिर्फ़ गुमान का इत्तेबा करते हैं और सिर्फ़ अंदाज़ों से काम लेते हैं 
6 117 आपके परवरदिगार को ख़ूब मालूम है कि कौन इसके रास्ते से बहकने वाला है और कौन हिदायत हासिल करने वाला है 
6 118 लेहाज़ा तुम लोग सिर्फ़ उस जानवर का गोश्त खाओ जिस पर ख़ु़दा का नाम लिया गया हो अगर तुम्हारा ईमान उसकी आयतों पर है 
6 119 और तुम्हें क्या हो गया है कि तुम वह ज़बीहा नहीं खाते हो जिस पर नामे ख़ु़दा लिया गया है जबकि उसने जिन चीज़ों को हराम किया है उन्हें तफ़सील से बयान कर दिया है मगर ये कि तुम मजबूर हो जाओ तो और बात है और बहुत से लोग तो अपनी ख़्वाहिशात (शैतानी हवस) की बिना पर लोगों को बग़ैर जाने बूझे गुमराह (ग़लत राह) करते हैं और तुम्हारा परवरदिगार उन ज़्यादती करने वालों को ख़ूब जानता है 
6 120 और तुम लोग ज़ाहिरी और बातिनी (छुपी हुई) तमाम गुनाहों को छोड़ दो यक़ीनन वह लोग जो गुनाह का इरतेक़ाब करते हैं अनक़रीब (बहुत जल्द) उन्हें उनके आमाल का बदला दिया जायेगा 
6 121 और देखो जिस पर नामे ख़ु़दा न लिया गया हो उसे न खाना कि ये फि़स्क़ (नाफ़रमानी) है और शयातीन तो अपने वालों की तरफ़ खुफ़ीया (छुपे हुए) इशारे करते ही रहते हैं ताकि ये लोग तुमसे झगड़ा करें और अगर तुम लोगों ने इनकी इताअत (फ़रमाबरदारी) कर ली तो तुम्हारा शुमार भी मुशरेकीन में हो जायेगा 
6 122 क्या जो शख़्स मुर्दा था फिर हमने उसे जि़न्दा किया और उसके लिए एक नूर क़रार दिया जिसके सहारे वह लोगों के दरम्यान चलता है इसकी मिसाल उसकी जैसी हो सकती है जो तारीकियों (अंधेरों) में हो और जिनसे निकल भी न सकता हो। इसी तरह कुफ़्फ़ार के लिए उनके आमाल को जो वह करते थे ज़ीनत दे दी गयी 
6 123 और इसी तरह हमने हर क़रीये (गाॅंव) में बड़े-बड़े मुजरेमीन (जुर्म करने वालों) को मौक़ा दिया है कि वह मक्कारी करें और उनकी मक्कारी का असर ख़ुद उनके अलावा और किसी पर नहीं होता है लेकिन उन्हें इसका भी शऊर (समझते) नहीं है
6 124 और जब इनके पास कोई निशानी आती है तो कहते हैं कि हम उस वक़्त तक ईमान न लायेंगे जब तक हमें भी वैसी ही वही (आसमानी ख़बर) न दी जाये जैसी रसूलों को दी गई है जबकि अल्लाह बेहतर जानता है कि अपनी रिसालत को कहां रखेगा ओर अनक़रीब मुजरेमीन (जुर्म करने वालों) को उनके जुर्म की पादाश (सज़ा) में ख़ु़दा के यहां जि़ल्लत और शदीद तरीन अज़ाब का सामना करना होगा 
6 125 पस ख़ु़दा जिसे हिदायत देना चाहता है उसके सीने को इस्लाम के लिए कुशादा कर देता है और जिसको गुमराही में छोड़ना चाहता है उसके सीने को ऐसा तंग और दुश्वार गुज़ार बना देता है जैसे आसमान की तरफ़ बुलन्द हो रहा हो, वह इसी तरह बेईमानों पर उनकी कसाफ़त (गन्दगी) को मुसल्लत (उन पर डाल देता है) कर देता है 
6 126 और यही तुम्हारे परवरदिगार का सीधा रास्ता है। हमने नसीहत हासिल करने वालों के लिए आयात (निशानी) को मुफ़स्सिल तौर से बयान कर दिया है
6 127 इन लोगों के लिए परवरदिगार के नज़दीक दारूस्सलाम (सलामती का घर) है और वह इनके आमाल की बिना पर इनका सरपरस्त है 
6 128 और जिस दिन वह सबको महशूर (इकटठा) करेगा तो कहेगा कि ऐ गिरोहे जिन्नात तुमने तो अपने को इन्सानों से ज़्यादा बना लिया था और इन्सानों में इनके दोस्त कहेंगे कि परवरदिगार हम में सबने एक दूसरे से फ़ायदा उठाया है और अब हम इस मुद्दत को पहंुच गये हैं जो तूने हमारी मोहलत (छूट) के वास्ते मुअय्यन की थी। इरशाद होगा तो अब तुम्हारा ठिकाना जहन्नम है जहां हमेशा-हमेशा रहना है मगर ये कि ख़ु़दा ही आज़ादी चाह ले। बेशक तुम्हारा परवरदिगार साहेबे हिकमत भी है और जानने वाला भी है 
6 129 और इसी तरह हम बाज़़ ज़ालिमों को उनके आमाल की बिना पर बाज़ पर मुसल्लत (क़ब्ज़ा) कर देते हैं 
6 130 ऐ गिरोह जिन व इन्स क्या तुम्हारे पास तुम में से रसूल नहीं आये जो हमारी आयतों (निशानियों) को बयान करते और तुम्हें आज के दिन की मुलाक़ात से डराते। वह कहंेगे कि हम ख़ुद अपने खि़लाफ़ गवाह हैं और इनको जि़न्दगानी दुनिया ने धोके में डाल रखा था और उन्होंने ख़ुद अपने खि़लाफ़ गवाही दी कि वह काफि़र थे 
6 131 ) ये इसलिए कि तुम्हारा परवरदिगार किसी भी क़रिये (शहर या बस्ती) को ज़्ाुल्म व ज़्यादती से इस तरह तबाह व बर्बाद नहीं करना चाहता कि उसके रहने वाले बिल्कुल ग़ाफि़ल (बे-परवाह) और बे ख़बर हों 
6 132 और हर एक के लिए उसके आमाल के मुताबिक़ दरजात हैं और तुम्हारा परवरदिगार उनके आमाल से ग़ाफि़ल (बेख़बर) नहीं है 
6 133 और आपका परवरदिगार बेनियाज़ और साहेबे रहमत है। वह चाहे तो तुम सबको दुनिया से उठा ले और तुम्हारी जगह पर जिस क़ौम को चाहे ले आये जिस तरह तुमको दूसरी क़ौम की औलाद में रखा है 
6 134 यक़ीनन जो तुम से वादा किया गया है वह सामने आने वाला है और तुम ख़ु़दा को आजिज़ (परेशान) बनाने वाले नहीं हो 
6 135 पैग़म्बर आप कह दीजिए कि तुम भी अपनी जगह पर अमल करो और मैं भी कर रहा हूँ। अनक़रीब तुमको मालूम हो जायेगा कि अंजामकार (आखि़रत का घर) किस के हक़ में बेहतर है। बेशक ज़ालिम कामयाब होने वाले नहीं हैं 
6 136 और उन लोगों ने ख़ु़दा की पैदा की हुई खेती में और जानवरों में उसका हिस्सा भी लगाया है और ये एलान किया है कि ये इनके ख़्याल के मुताबिक़ ख़ु़दा के लिए है और ये हमारे शरीकों (यानि जिन को हमने ख़ुदा का शरीक बनाया- बुत) के लिए है। इसके बाद जो शोरका (यानि जिनको हमने ख़ुदा का शरीक बनाया-बुत) का हिस्सा है वह ख़ु़दा तक नहीं जा सकता है और जो ख़ु़दा का हिस्सा है वह इनके शरीकों तक पहुंच सकता है। किस क़द्र बदतरीन फ़ैसला है जो ये लोग कर रहे हैं 
6 137 और इसी तरह इन शरीकों ने बहुत से मुशरेकीन (शिर्क करने वालों) के लिए औलाद के क़त्ल को भी आरास्ता (सजा दिया है) कर दिया है ताकि इनको तबाह व बर्बाद कर दें और इन पर दीन को मुशतबा (शक व शुबहा) कर दें हालांकि ख़ु़दा इसके खि़लाफ़ चाह लेता तो ये नहीं कर सकते थे लेहाज़ा आप इनको इनकी इफ़तेरा (झूठे इल्ज़ामात) परदाजि़यों पर छोड़ दें और परेशान न हों 
6 138 और ये लोग कहते हैं कि ये जानवर और खेती अछूती (मना) है इसे इनके ख़्यालात के मुताबिक़ वही खा सकते हैं जिनके बारे में वह चाहेंगे और कुछ चैपाये (जानवर) हैं जिनकी पीठ हराम है और कुछ चैपाये (जानवर) हैं जिनको ज़बह करते वक़्त नामे ख़ु़दा भी नहीं लिया गया और सबकी निस्बत ख़ु़दा की तरफ़ दे रखी है अनक़रीब इन तमाम बोहतानों (इल्ज़ामों) का बदला उन्हें दिया जायेगा 
6 139 और कहते हैं कि इन चैपाओं (जानवरों) के पेट में जो बच्चे हैं वह सिर्फ़ हमारे मर्दों (आदमियों) के लिए हैं और औरतों पर हराम हैं। हाँ अगर मुरदार (मुर्दा) हों तो सब शरीक होंगे, अनक़रीब ख़ु़दा इन बयानात का बदला देगा कि वह साहेबे हिकमत भी है और सबका जानने वाला भी है 
6 140 यक़ीनन वह लोग ख़सारा (घाटा उठाने) में है जिन्होंने हिमाक़त (बेवक़ूफ़ी) में बगै़र जाने बूझे अपनी औलाद को क़त्ल कर दिया और जो रिज़्क़ ख़ु़दा ने उन्हें दिया है उसे इसी पर बोहतान (इल्ज़ाम) लगाकर अपने ऊपर हराम कर लिया। ये सब बहक गये हैं और हिदायत याफ़्ता नहीं हैं 
6 141 वह ख़ु़दा वह है जिसने तख़्तों पर चढ़ाये हुए भी और उसके खि़लाफ़ भी हर तरह के बाग़ात पैदा किये हैं और खजूर और ज़राअत (खेतियाँ) पैदा की है जिसके मज़े मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) हैं और जै़तून और अनार भी पैदा किये हैं जिनमें बाॅज़ आपस में एक दूसरे से मिलते जुलते हैं और बाॅज़ मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) हैं। तुम सब इनके फ़लों को जब वह तैयार हो जायें तो खाओ और जब काटने का दिन आये तो इनका हक़ अदा कर दो और ख़बरदार इसराफ़ (बेजा ख़र्च) न करना कि ख़ु़दा इसराफ़ (बेजाख़र्च) करने वालों को दोस्त नहीं रखता है
6 142 और चैपाओं (जानवरों) में बाज़ बोझ उठाने वाले और बाज़ ज़मीन से लग कर चलने वाले हैं। तुम सब ख़ु़दा के दिये हुए रिज़्क़ को खाओ और शैतानी क़दमों की पैरवी न करो कि शैतान तुम्हारा खुला हुआ दुश्मन है 
6 143 आठ कि़स्म के जोड़े हैं। भेड़ के दो और बकरी के दो। इनसे कहिये ख़ु़दा ने दोनों के नर हराम किये हैं या मादा या वह बच्चे जो उनके मादा के पेट मंे पाये जाते हैं। ज़रा तुम लोग इस बारे में हमें भी ख़बर दो अगर अपने दावे में सच्चे हो
6 144 और ऊँट में से दो और गाय में से दो। इनसे कहिये कि ख़ु़दा ने नरों (मुज़क्कर) को हराम क़रार दिया है या मादा (मोवन्नस) को या इनको जो मादा (मोवन्नस) के शिकम में हैं। क्या तुम लोग उस वक़्त हाजि़र थे जब ख़ु़दा इनको हराम करने की वसीयत कर रहा था। फिर उससे बड़ा ज़ालिम (अत्याचारी) कौन है जो ख़ु़दा पर झूठा इल्ज़ाम लगाये ताकि लोगांे को बग़ैर जाने बूझे गुमराह (ग़लत रास्ता) करे। यक़ीनन अल्लाह ज़ालिम (अत्याचारी) क़ौम को हिदायत नहीं देता है 
6 145 आप कह दीजिए कि मैं अपनी तरफ़ आने वाली वही (आसमानी ख़बर) में किसी भी खाने वाले के लिए कोई हराम नहीं पाता मगर ये कि मुरदार (मुर्दा) हो या बहाया हुआ ख़ून या सूअर का गोश्त हो कि ये सब रिजिस (नापाक) और गन्दगी है या वह नाफ़रमानी हो जिसे गै़रे ख़ु़दा के नाम पर जि़बाह किया गया हो। इसके बाद भी कोई मजबूर हो जाये और न सरकश हो न हद से तजाविज़ (हद से बढ़ा हुआ नही) करने वाला तो परवरदिगार बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है 
6 146 और यहूदियों पर हमने हर नाख़ून वाले जानवर को हराम कर दिया और गाय और भेड़ की चर्बी को हराम कर दिया मगर जो चर्बी कि पीठ पर हो या आँतों पर हो या जो हड्डियों से लगी हुई हो। ये हमने इनको इनकी बग़ावत (सरकशी) और सरकशी की सज़ा दी है और हम बिल्कुल सच्चे हैं 
6 147 फिर अगर ये लोग आपको झुठलायें तो कह दीजिए कि तुम्हारा परवरदिगार बड़ी वसीअ (फैली हुई) रहमत वाला है लेकिन उसका अज़ाब मुजरेमीन (ज़्ाुल्म करने वालों) से टाला भी नहीं जा सकता है 
6 148 अनक़रीब ये मुशरेकीन (अल्लाह की ज़ात में बुतों को मिलाने वाले) कहेंगे कि अगर ख़ु़दा चाहता तो न हम (शिर्क करने वाले) मुशरिक होते न हमारे बाप दादा और न हम किसी चीज़ को हराम क़रार देते। इसी तरह इनसे पहले वालों ने रसूलों की तकज़ीब (झुठलाना) की थी यहां तक कि हमारे अज़ाब का मज़ा चख लिया। इनसे कह दीजिए कि तुम्हारे पास कोई दलील है तो हमें भी बताओ। तुम तो सिर्फ़ ख़्यालात गुमान का इत्तेबा करते हो और अंदाज़ों की बातें करते हो 
6 149 कह दीजिए कि अल्लाह के पास मंजि़ल तक पहुंचाने वाली दलीलें हैं वह अगर चाहता तो जबरन तुम सबको हिदायत दे देता 
6 150 कह दीजिए कि ज़रा अपने गवाहांे को तो लाओ जो गवाही देते हैं कि ख़ु़दा ने इस चीज़ को हराम क़रार दिया है। इसके बाद वह गवाही भी दे दें तो आप इनके साथ गवाही न दीजिएगा और इन लोगांे की ख़्वाहिशात का इत्तेबा न कीजिएगा जिन्होंने हमारी आयतों (निशानियों) को झुठलाया है और वह आखि़रत पर ईमान नहीं रखते हैं और अपने परवरदिगार का हमसर (बराबर) क़रार देते हैं 
6 151 कह दीजिए कि आओ हम तुम्हें बतायें कि तुम्हारे परवरदिगार ने क्या क्या हराम किया है। ख़बरदार किसी को उसका शरीक न बनाना और माँ बाप के साथ अच्छा बरताव करना। अपनी औलाद को ग़्ाु़र्बत (ग़रीबी) की बिना पर क़त्ल न करना कि हम तुम्हें रिज़्क़ दे रहे हैं और इन्हें भी, और बदकारियों (बुरी बातों) के क़रीब न जाना वह ज़ाहिरी हों या छिपी हुई और किसी ऐसे नफ़्स को जिसे ख़ु़दा ने हराम कर दिया है क़त्ल न करना मगर ये कि तुम्हारा कोई हक़ हो। ये वह बातंे हैं जिनकी ख़ु़दा ने नसीहत की है ताकि तुम्हें अक़्ल आ जाये 
6 152 और ख़बरदार यतीम के माल के क़रीब भी न जाना मगर इस तरीके़ से जो बेहतरीन तरीक़े हो यहां तक कि वह तवानाई (जवानी) की उम्र तक पहुंच जाये और नाप तौल में इन्साफ़ से पूरा-पूरा देना। हम किसी नफ़्स को उसकी वुसअत (ताक़त) से ज़्यादा तकलीफ़ नहीं देते हैं और जब बात करो तो इन्साफ़ के साथ चाहे अपने अक़रेबा (क़रीबी रिश्तेदार) ही के खि़लाफ़ क्यों न हो और अहदे ख़ु़दा को पूरा करो कि इसकी परवरदिगार ने तुम्हें वसीयत की है कि शायद तुम इबरत हासिल कर सको 
6 153 और ये हमारा सीधा रास्ता है इसका इत्तेबा (हुक्म माना) करो और दूसरे रास्तों के पीछे न जाओ कि राहे ख़ु़दा से अलग हो जाओगे इसी की परवरदिगार ने हिदायत दी है कि इस तरह शायद मुत्तक़ी और परहेज़गार बन जाओ 
6 154 इसके बाद हमने मूसा को अच्छी बातों की तकमील करने वाली किताब दी और इसमें हर शह को तफ़्सील से बयान कर दिया और इसे हिदायत और रहमत क़रार दे दिया कि शायद ये लोग लक़ाए इलाही (रब की मुलाक़ात) पर ईमान ले आयें 
6 155 और ये किताब जो हमने नाजि़ल की है ये बड़ी बा बरकत है लेहाज़ा इसका इत्तेबा (पैरवी) करो और तक़वा (परहेज़गारी) इखि़्तयार करो कि शायद तुम पर रहम किया जाये 
6 156 ये न कहने लगो कि किताबे ख़ु़दा तो हमसे पहले दो जमातों पर नाजि़ल हुई थी और हम इसके पढ़ने पढ़ाने से बे ख़बर थे 
6 157 या ये कहो कि हमारे ऊपर भी किताब नाजि़ल होती तो हम इनसे ज़्यादा हिदायत याफ़्ता होते तो अब तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से वाज़ेह दलील और हिदायत व रहमत आ चुकी है फिर इसके बाद उससे बड़ा ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह की निशानियों को झुठलाये और इनसे आराज़ (मुॅंह मोड़े) करे। अनक़रीब हम अपनी निशानियों से आराज़ (मुॅंह मोड़ना) करने वालों पर बदतरीन अज़ाब करेंगे कि वह हमारी आयतों से आराज़ (मुॅह मोड़ने) करने वाले और रोकने वाले हैं 
6 158 ये सिर्फ़ इस बात के मुन्तजि़र हैं कि उनके पास मलायका आ जायें या ख़ुद परवरदिगार आ जाये या उसकी बाज़ निशानियां आ जायें तो जिस दिन उसकी बाज़ निशानियां आ जायेंगी उस दिन जो नफ़्स (आदमी) पहले से ईमान नहीं लाया है या उसने ईमान लाने के बाद कोई भलाई नहीं की है उसके ईमान का कोई फा़यदा न होगा तो अब कह दीजिए कि तुम लोग भी इन्तिज़ार करो और मैं भी इन्तिज़ार कर रहा हूँ 
6 159 जिन लोगों ने अपने दीन में तफ़्रेक़ा (इख़्तेलाफ़, फि़रक़ाबन्दी) पैदा किया और टुकड़े टुकड़े हो गये उनसे आपका कोई ताल्लुक़ नहीं है। इनका मामला ख़ु़दा के हवाले है फिर वह उन्हें उनके आमाल के बारे में बा ख़बर करेगा 
6 160 जो शख़्स भी नेकी करेगा उसे दस गुना अज्र (बदला) मिलेगा और जो बुराई करेगा उसे सिर्फ़ उतनी ही सज़ा मिलेगी और कोई ज़्ाुल्म न किया जायेगा 
6 161 आप कह दीजिए कि मेरे परवरदिगार ने मुझे सीधे रास्ते की हिदायत दे दी है जो एक मज़बूत दीन और बातिल से आराज़ (मुह मोड़ने) करने वाले इब्राहीम का मज़हब है और वह मुशरेकीन में से हर्गिज़ नहीं थे 
6 162 कह दीजिए कि मेरी नमाज़, मेरी इबादतें, मेरी जि़न्दगी, मेरी मौत सब अल्लाह के लिए है जो आलमीन का पालने वाला है 
6 163 उसका कोई शरीक नहीं है और इसी का मुझे हुक्म दिया गया है और मैं सबसे पहला मुसलमान हूँ 
6 164 कह दीजिए कि क्या मैं ख़ु़दा के अलावा कोई और रब तलाश करूँ जबकि वही हर शै का पालने वाला है और जो नफ़्स (जान) जो कुछ करेगा इसका वबाल उसी के जि़म्मे होगा और कोई नफ़्स (जान) दूसरे का बोझ न उठायेगा। इसके बाद तुम सबकी बाज़गश्त (पलट कर आना) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ है फिर वह बतायेगा कि तुम किस चीज़ में एख़तेलाफ़ कर रहे थे 
6 165 वही वह ख़ु़दा है जिसने तुमको ज़मीन में नायब बनाया और बाज़ के दरजात को बाज़ से बुलन्द किया ताकि तुम्हें अपने दिये हुए से आज़माए। तुम्हारा परवरदिगार बहुत जल्द हिसाब करने वाला है और वह बेशक बहुत बख़्शने वाला मेहरबान है

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