Wednesday, 15 April 2015

Sura-a-Al-Aaraaf 7th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.),

    सूरा-ए- अल आरफ़
7   शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा रहमान और रहीम है।
7 1 अलिफ़ लाम मीम स्वाद
7 2 ये किताब आप की तरफ़ नाजि़ल की गई है लेहाज़ा आप इसकी तरफ़ से किसी तंगी का शिकार न हों और इसके ज़रिये लोगों को डरायंे ये किताब साहेबाने ईमान के लिए मुकम्मल (पूरी तौर से) यादे दहानी है 
7 3 लोगों तुम इसका इत्तेबा (हुक्म पर अमल) करो जो तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से नाजि़ल हुआ है और इसके अलावा दूसरे सरपरस्तांे का इत्तेबा (हुक्म पर अमल) न करो, तुम बहुत कम नसीहत मानते हो 
7 4 और कितने क़रिये (शहर) हैं जिन्हें हमने बर्बाद कर दिया और इनके पास हमारा अज़ाब उस वक़्त तक आया जब वह रात में सो रहे थे या दिन में क़ैलूला (आराम) कर रहे थे 
7 5 फिर हमारा अज़ाब आने के बाद इनकी पुकार सिर्फ़ ये थी कि यक़ीनन हम लोग ज़ालिम (अत्याचार करने वाले) थे 
7 6 पस अब हम इन लोगांे से भी सवाल करेंगे और इनके रसूलों से भी सवाल करेंगे 
7 7 फिर इनसे सारी दास्तान इल्म व इत्तेला के साथ बयान करेंगे और हम ख़ुद भी ग़ायब तो थे नहीं 
7 8 आज के दिन आमाल का वज़्ान एक बरहक़ शह है फिर जिसके नेक आमाल का पल्ला भारी होगा वही लोग नजात (छुटकारा) पाने वाले हैं 
7 9 और जिनका पल्ला हल्का हो गया यही वह लोग थे जिन्होंने अपने नफ़्स (जान) को ख़सारा (घाटे) में रखा कि वह हमारी आयतों पर ज़्ाुल्म कर रहे थे 
7 10 यक़ीनन हमने तुम को ज़मीन मे इखि़्तयार दिया और तुम्हारे लिए सामाने जि़न्दगी क़रार दिये मगर तुम बहुत कम शुक्र अदा करते हो 
7 11 और हमने तुम सबको पैदा किया फिर तुम्हारी सूरतें मुक़र्रर कीं। इसके बाद मलायका को हुक्म दिया कि आदम को सजदा करें तो सबने सजदा कर लिया सिर्फ़ इबलीस ने इन्कार कर दिया और वह सजदा करने वालों में शामिल नहीं हुआ 
7 12 इरशाद हुआ कि तुझे किस चीज़ ने रोका था कि तूने मेरे हुक्म के बाद भी सजदा नहीं किया। उसने कहा कि मैं इनसे बेहतर हूँ। तूने मुझे आग से पैदा किया है और उन्हें ख़ाक (मिट्टी) से बनाया है 
7 13 फ़रमाया तू यहां से उतर जा तुझे हक़ नहीं है कि यहां ग़़्ाु़रूर (घमण्ड) से काम ले, निकल जा कि तू ज़लील लोगों में है 
7 14 उसने कहा कि फिर मुझे क़यामत तक (वक़्त) की मोहलत दे दे
7 15 इरशाद हुआ कि तू मोहलत वालों में से है 
7 16 उसने कहा कि पस जिस तरह तूने मुझे गुमराह (मेरा रास्ता बंद किया) किया है मैं तेरे सीधे रास्ते पर बैठ जाऊँगा 
7 17 इसके बाद सामने, पीछे और दाहिने, बायें से आऊंगा और तू अकसरियत को शुक्रगुज़ार न पायेगा 
7 18 फ़रमाया कि यहां से निकल जा तू ज़लील (नालायक़) और मरदूद है अब जो भी तेरा इत्तेबा (पैरवी) करेगा मैं तुम सब से जहन्नुम को भरूँगा
7 19 और ऐ आदम तुम और तुम्हारी ज़ौजा (पत्नी) जन्नत में दाखि़ल हो जाओ और जहां जो चाहो खाओ लेकिन इस दरख़्त (पेड़) के क़रीब न जाना कि ज़्ाुल्म (अत्याचार) करने वालों में शुमार हो जाओगे 
7 20 फिर शैतान ने इन दोनों में वसवसा (बुरा ख़्याल) पैदा कराया कि जिन शर्म के मुक़ामात को छिपा रखा है वह नुमायां हो जायें और कहने लगा कि तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हें इस दरख़्त (पेड़) से सिर्फ़ इसलिए रोका है कि तुम फ़रिश्ते हो जाओगे या तुम हमेशा रहने वालों में से हो जाओगे 
7 21 और दोनों से क़सम खायी कि मैं तुम्हें नसीहत करने वालों में हूँ 
7 22 फिर उन्हें धोके के ज़रिये दरख़्त (पेड़) की तरफ़ झुका दिया और जैसे ही इन दोनों ने चखा (खाया) शर्म गाहें खुलने लगीं और उन्होंने दरख़्तों के पत्ते जोड़कर शर्मगाहों को छिपाना शुरू कर दिया तो उनके रब ने आवाज़ दी कि क्या हमने तुम दोनों को इस दरख़्त से मना नहीं किया था और क्या हमने तुम्हें नहीं बताया था कि शैतान तुम्हारा खुला हुआ दुश्मन है 
7 23 उन दोनों ने कहा कि परवरदिगार हमने अपने नफ़्स (जान) पर ज़्ाुल्म किया है अब अगर तू माॅफ़ न करेगा और रहम न करेगा तो हम ख़सारा (घाटा) उठाने वालों में हो जायेंगे 
7 24 इरशाद हुआ कि तुम सब ज़मीन में उतर जाओ और सब एक दूसरे के दुश्मन हो। ज़मीन मंे तुम्हारे लिए एक मुद्दत तक ठिकाना और सामाने जि़न्दगानी है 
7 25 फ़रमाया कि वहीं तुम्हें जीना है और वहीं मरना है और फिर उसी ज़मीन से निकाले जाओगे 
7 26 ऐ औलादे आदम हमने तुम्हारे लिए लिबास नाजि़ल किया है जिससे अपनी शर्मगाहों का पर्दा करो और ज़ीनत का लिबास भी दिया है लेकिन तक़वे (परहेज़गारी) का लिबास सबसे बेहतर है ये बात आयाते इलाहिया (अल्लाह की निशानियों) में है कि शायद वह लोग इबरत (नसीहत) हासिल कर सकें 
7 27 ऐ औलादे आदम ख़बरदार शैतान तुम्हें भी न बहका दे जिस तरह तुम्हारे माँ बाप को जन्नत से निकाल दिया इस आलम (हाल) में कि उनके लिबास अलग करा दिये ताकि शर्मगाहें ज़ाहिर हो जायें। वह और उसके क़बीले वाले तुम्हें देख रहे हैं इस तरह कि तुम उन्हें नहीं देख रहे हो बेशक हमने शयातीन को बेईमान इन्सानों का दोस्त बना दिया है 
7 28 और ये लोग जब कोई बुरा काम करते हैं तो कहते हैं कि हमने आबा व अज्दाद (बाप-दादा) को इसी तरीक़े पर पाया है और अल्लाह ने यही हुक्म दिया है। आप फ़रमा दीजिए कि ख़ु़दा बुरी बात का हुक्म दे ही नहीं सकता है क्या तुम ख़ु़दा के खि़लाफ़ वह कह रहे हो जो जानते भी नहीं हो 
7 29 कह दीजिए कि मेरे परवरदिगार ने इन्साफ़ का हुक्म दिया है और तुम सब हर नमाज़ के वक़्त अपना रूख़ (चेहरा) सीधा रखा करो और ख़ु़दा को ख़ालिस दीन के साथ पुकारो उसने जिस तरह तुम्हारी इब्तिदा (शुरूआत) की है उसी तरह तुम पलट कर भी जाओगे
7 30 उसने एक गिरोह को हिदायत दी है और एक पर गुमराही मुसल्लत (डाल दी) हो गई है कि उन्होंने शयातीन को अपना वली (सरपरस्त) बना लिया है और ख़ु़दा को नज़र-अन्दाज़ (छोड़ दिया) कर दिया है और फिर उनका ख़्याल है कि वह हिदायत याफ़्ता (नेकी के रास्ते पर) भी है 
7 31 ऐ औलादे आदम हर नमाज़ के वक़्त और हर मस्जिद के पास ज़ीनत साथ रखो और खाओ पियो मगर इसराफ़ (बेजा ख़र्च) न करो कि ख़ु़दा इसराफ़ (बेजा ख़र्च) करने वालों को दोस्त नहीं रखता है 
7 32 पैग़म्बर आप पूछिये कि किसने इस ज़ीनत को, जिसको ख़ु़दा ने अपने बन्दों के लिए पैदा किया है, और पाकीज़ा रिज़्क़ को हराम कर दिया है और बताईये कि ये चीज़ें रोज़े क़यामत सिर्फ़ उन लोगों के लिए हैं जो जि़न्दगानी दुनिया में ईमान लाये। हम इसी तरह साहेबाने इल्म के लिए मुफ़स्सिल (पूरी तरह से) आयात (निशानियाॅं) बयान करते हैं 
7 33 कह दीजिए कि हमारे परवरदिगार ने सिर्फ़ बदकारियों (बुरे काम) को हराम किया है चाहे वह ज़ाहिरी हों या बातिनी और गुनाह और नाहक़ ज़्ाुल्म और बिला दलील किसी चीज़ को ख़ु़दा का शरीक बनाने और बिला जाने बूझे किसी बात को ख़ु़दा की तरफ़ मन्सूब करने को हराम क़रार दिया है
7 34 हर क़ौम के लिए एक वक़्त मुक़र्रर है जब वह वक़्त आ जायेगा तो एक घड़ी के लिए न पीछे टल सकता है और न आगे बढ़ सकता है 
7 35 ऐ औलादे आदम जब भी तुम में से हमारे पैग़म्बर तुम्हारे पास आयेंगे और हमारी आयतों को बयान करेंगे तो जो भी तक़वा (परहेज़गारी) इखि़्तयार करेगा और अपनी इस्लाह कर लेगा उसके लिए न कोई ख़ौफ़ है और न वह रंजीदा (ग़मगीन) होगा 
7 36 और जिन लोगों ने हमारी आयात की तकज़ीब (झुठलाया) की और अकड़ गये वह सब जहन्नुमी हैं और इसी में हमेशा रहने वाले हैं 
7 37 इससे बड़ा ज़ालिम कौन है जो ख़ुदा पर झूठा इल्ज़ाम लगाये या उसकी आयात (निशानियां) की तकज़ीब (झुठलाए) करे। उन लोगो को उनकी कि़समत का लिखा मिलता रहेगा यहां तक कि हमारे नुमाइन्दे फरिश्ते मुद्दते हयात (जि़न्दगी की मुद्दत) पूरी करने के लिए आयेंगे तो पूछेंगे कि वह सब कहां हैं जिनको तुम ख़ु़दा को छोड़कर पुकारा करते थे। वह लोग कहेंगे कि वह सब तो गुम (ग़ायब) हो गये और इस तरह अपने खि़लाफ़ ख़ुद भी गवाही देंगे कि वह लोग काफि़र थे 
7 38 इरशाद होगा कि तुम से पहले जो जिन्न व इन्स की  मुजरिम जमाअतें (ज़्ाुल्म करने वाले गिरोह) गुज़र चुकी हैं तुम भी उन्हीं के साथ जहन्नम में दाखि़ल हो जाओ। हालत ये होगी कि हर दाखि़ल होने वाली जमाअत (टोली) दूसरी पर लाॅनत करेगी और जब सब इकठ्ठा हो जायेगे तो बाद वाले पहले वालों के बारे में कहेंगे कि परवरदिगार इन्होंने हमें गुमराह (ग़लत रास्ते पर) किया है लेहाज़ा इनके अज़ाब को दो गुना कर दे। इरशाद होगा कि सबका अज़ाब दोगुना है सिर्फ़ तुम्हें मालूम नहीं है
7 39 फिर पहले वाले बाद वालों से कहंेगे कि तुम्हें हमारे ऊपर कोई फ़ज़ीलत नहीं है लेहाज़ा अपने किये का अज़ाब (दण्ड) चखो 
7 40 बेशक जिन लोगों ने हमारी आयतों की तकज़ीब (झुठलाया) की और ग़्ाु़रूर से काम लिया उनके लिए न आसमान के दरवाज़े खोले जायेंगे और न वह जन्नत में दाखि़ल हो सकेंगे जब तक ऊँट सूई के नाके के अन्दर दाखि़ल न हो जाये और हम इसी तरह मुजरेमीन (जुर्म करने वालों, गुनाहगारों) को सज़ा दिया करते हैं
7 41 इनके लिए जहन्नुम ही का फ़र्श होगा और इनके ऊपर इसी का ओढ़ना भी होगा और हम इसी तरह ज़ालिमों को उनके आमाल का बदला दिया करते हैं 
7 42 और जिन लोगों ने ईमान इखि़्तयार किया और नेेक आमाल किये हम किसी नफ़्स (जान) को उसकी वुसअत (ताक़त) से ज़्यादा तकलीफ़ नहीं देते वही लोग जन्नती हैं और इसमें हमेशा रहने वाले हैं 
7 43 और हमने उनके सीनों से हर कीना (बुग्ज़ व हसद) को अलग कर दिया। इनके क़दमों में नहरें जारी होंगी और वह कहेंगे कि शुक्र है परवरदिगार का कि उसने हमें यहां तक आने का रास्ता बता दिया वरना उसकी हिदायत न होती तो हम यहां तक आने का रास्ता भी नहीं पा सकते थे। बेशक हमारे रसूल सब दीने हक़ लेकर आये थे तो फिर उन्हें आवाज़ दी जायेगी कि यह वह जन्नत है जिसका तुम्हें तुम्हारे आमाल की बिना पर वारिस बनाया गया है 
7 44 और जन्नती लोग जहन्नुमियों से पुकार कर कहेंगे कि जो कुछ हमारे परवरदिगार ने हमसे वादा किया था वह हमने तो पा लिया क्या तुमने भी हसबे वादा हासिल कर लिया है। वह कहेंगे बेशक। फिर एक मुनादी आवाज़ देगा कि ज़ालेमीन पर ख़ु़दा की लाॅनत है 
7 45 जो राहे ख़ु़दा से रोकते थे और उसमें कजी (टेढ़ापन) पैदा किया करते थे और आखि़रत (स्वर्ग)  के मुन्किर (का इन्कार करते) थे 
7 46 और उनके दरमियान पर्दा डाल दिया जायेगा और आराफ़ पर कुछ लोग होंगे जो सबको उनकी निशानियों से पहचान लेंगे और असहाबे जन्नत को आवाज़ देंगे कि तुम पर हमारा सलाम। वह जन्नत में दाखि़ल न हुए होंगे लेकिन उसकी ख़्वाहिश रखते हांेगे 
7 47 और फिर जब उनकी नज़र जहन्नुम वालों की तरफ़ मुड़ जायेगी तो कहंेगे कि परवरदिगार हमको उन ज़ालेमीन (अत्याचार) के साथ न क़रार देना
7 48 और आराफ़ वाले उन लोगांे को जिन्हें वह निशानियों से पहचानते होंगे आवाज़ देंगे कि आज न तुम्हारी जमाअत (गिरोह) काम आयी और न तुम्हारा ग़्ाु़रूर (घमण्ड) काम आया 
7 49 क्या यही लोग हैं जिनके बारे में तुम क़समें खाया करते थे कि उन्हें रहमते ख़ु़दा हासिल न होगी जिनसे हमने कह दिया है कि जाओ जन्नत में चले जाओ तुम्हारे लिए न कोई ख़ौफ़ है और न कोई हुज़्न (ग़म) 
7 50 और जहन्नम वाले जन्नत वालों से पुकार कर कहेंगे कि ज़रा ठण्डा पानी या ख़ु़दा ने जो रिज़्क़ तुम्हें दिया है उसमें से हमें भी पहुँचाओ तो वह लोग जवाब देंगे कि इन चीज़ों को अल्लाह ने काफि़रों पर हराम कर दिया है 
7 51 जिन लोगों ने अपने दीन को खेल तमाशा बना लिया था और उन्हें जि़न्दगानी दुनिया ने धोका दे दिया था तो आज हम उन्हें इसी तरह भुला दंेगे जिस तरह उन्होंने आज के दिन की मुलाक़ात को भुला दिया था और हमारी आयात (निशानियांे) का दीदा व दांस्ता (जान-बूझकर) इन्कार कर रहे थे 
7 52 हम उनके पास ऐसी किताब ले आये हैं जिसे इल्म व इत्तेला के साथ मुफ़स्सिल (तफ़सील से) बयान किया है और वह साहेबाने ईमान के लिए हिदायत और रहमत है
7 53 क्या ये लोग सिर्फ़ अंजामकार का इन्तिज़ार कर रहे हैं तो जिस दिन अंजाम सामने आ जायेगा तो जो लोग पहले से इसे भूले हुए थे वह कहने लगेंगे कि बेशक हमारे परवरदिगार के रसूल सही ही पैग़ाम लाये थे तो क्या हमारे लिए भी शफ़ीई (बख़्शवाने वाला) हैं जो हमारी सिफ़ारिश करें या हमें वापस कर दिया जाये तो हम जो आमाल (बुरा काम) करते थे उसके अलावा दूसरे कि़स्म के आमाल (अच्छे काम) करें। दर हक़ीक़त उन लोगांे ने अपने को ख़सारा (नुक़सान) में डाल दिया है और उनकी सारी इफ़्तेरा परदाजि़यां (झूठे इल्ज़ाम) ग़ायब हो गई हैं 
7 54 बेशक तुम्हारा परवरदिगार वह है जिसने आसमानों और ज़मीन को छः (छे) दिन में पैदा किया है और इसके अर्श (आसमान) पर अपना इक़तेदार क़ायम किया है वह रात को दिन पर ढाँप देता है और रात तेज़ी से उसके पीछे दौड़ा करती है और आफ़ताब (सूरज) व महताब (चाॅंद) और सितारे सब उसी के हुक्म के ताॅबे (मानने वाले) हैं उसी के लिए ख़ल्क़ भी हैं और अम्र भी वह निहायत ही साहेबे बरकत अल्लाह है जो आलमीन का पालने वाला है 
7 55 तुम अपने रब को गिड़गिड़ा कर और ख़ामोशी के साथ पुकारो कि वह ज़्यादती (ज़ोर-ज़बरदस्ती) करने वालों को दोस्त नहीं रखता है 
7 56 और ख़बरदार ज़मीन में इस्लाह के बाद फ़साद न पैदा करना और ख़ु़दा से डरते डरते और उम्मीदवार बन कर दुआ करो कि उसकी रहमत साहेबाने हुस्ने अमल से क़रीबतर (पास में) है 
7 57 वह ख़ु़दा वह है जो हवाओं को रहमत की बशारत (ख़ुशख़बरी) बनाकर भेजता है यहाँ तक कि जब हवायें वज़्नी बादलों को उठा लेती हैं तो हम इनको मुर्दा शहरों (बस्तियों) को जि़न्दा करने के लिए ले जाते हैं और फिर पानी बरसा देते हैं और इसके ज़रिये मुख़्तलिफ़ (तरह-तरह के) फल पैदा कर देते हैं और इसी तरह हम मुर्दों को जि़न्दा कर दिया करते हैं कि शायद तुम इबरत व नसीहत हासिल कर सको
7 58 और पाकीज़ा ज़मीन का सब्ज़ा भी उसके परवरदिगार के हुक्म से ख़ूब निकलता है और जो ज़मीन ख़बीस (नाकारा) होती है उसका सब्ज़ा भी ख़राब निकलता है हम इसी तरह शुक्र करने वाली क़ौम के लिए अपनी आयतें उलट-पलट कर बयान करते हैं
7 59 यक़ीनन हमने नूह को उनकी क़ौम की तरफ़ भेजा तो उन्होंने कहा कि ऐ क़ौम वालों अल्लाह की इबादत करो कि उसके अलावा तुम्हारा कोई ख़ु़दा नहीं है। मैं तुम्हारे बारे में अज़ाबे अज़ीम (बड़े दिन का अज़ाब) से डरता हूँ 
7 60 तो क़ौम के रऊसा (मालदारो) ने जवाब दिया कि हम तुम को खुली हुई गुमराही (ग़लत राह) मंे देख रहे हैं 
7 61 नूह ने कहा कि ऐ क़ौम मुझ में गुमराही नहीं है बल्कि मैं रब्बुलआलमीन की तरफ़ से भेजा हुआ नुमाईन्दा (रसूल) हूँ 
7 62 मैं तुम तक अपने परवरदिगार के पैग़ामात पहुँचाता हूँ और तुम्हें नसीहत करता हूँ और अल्लाह की तरफ़ से वह सब जानता हूँ जो तुम नहीं जानते हो 
7 63 क्या तुम्हंे इस बात पर ताज्जुब (आश्चर्य) है कि तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम्हीं में से एक मर्द पर जि़क्र (नसीहत) नाजि़ल हो जाये कि वह तुम्हें डराये और तुम मुत्तक़ी (नेक) बन जाओ और शायद इस तरह क़ाबिले रहम भी हो जाओ 
7 64 फिर उन लोगों ने नूह की तकज़ीब (झुठलाया) की तो हमने उन्हें और उनके साथियों को कश्ती में नजात (छुटकारा) दे दी और जिन लोगों ने हमारी आयतों (निशानियों) को झुठलाया था उन्हें ग़कऱ् (डुबो दिया) कर दिया कि वह सब बिल्कुल अँधे लोग थे 
7 65 और हमने क़ौमे आद की तरफ़ उनके भाई हुद को भेजा तो उन्होंने कहा कि ऐ क़ौम वालों अल्लाह की इबादत करो उसके अलावा तुम्हारा दूसरा ख़ु़दा नहीं है क्या तुम डरते नहीं हो 
7 66 क़ौम में से कुफ्ऱ (अल्लाह को न मानना) इखि़्तयार करने वाले रऊसा (मालदार) ने कहा कि हम तुम को हिमाक़त (जेहालत) में मुब्तिला देख रहे हैं और हमारे ख़्याल में तुम झूठों में से हो 
7 67 उन्होंने जवाब दिया कि मुझ में हिमाक़त (जेहालत) नहीं है बल्कि मैं रब्बुलआलमीन की तरफ़ से फ़रिस्तादह (अल्लाह की तरफ़ से भेजा हुआ) रसूल हूँ 
7 68 मैं तुम तक अपने रब के पैग़ामात (आदेशों को) पहुंचाता हूँ और तुम्हारे लिए एक अमानतदार नासेह (नसीहत करने वाला) हूँ 
7 69 क्या तुम लोगों को इस बात पर ताज्जुब (आश्चर्य) है कि तुम तक जि़क्रे ख़ु़दा तुम्हारे ही किसी आदमी के ज़रिये आ जाये ताकि वह तुम्हें डराये और याद करो कि तुमको उसने क़ौमे नूह के बाद ज़मीन में जानशीन (उत्तराधिकारी) बनाया है और मख़लूक़ात (ज़ीरूह) में वुसअत अता की है लेहाज़ा तुम अल्लाह की नेअमतों को याद करो कि शायद इसी तरह फ़लाह और निजात पा जाओ 
7 70 उन लोगों ने कहा कि क्या आप ये पैग़ाम लाये हैं कि हम सिर्फ़ एक ख़ु़दा की इबादत करें और जिनकी हमारे आॅबा व अज्दाद (बाप दादा) इबादत करते थे उन सबको छोड़ दें तो आप अपने वादे व वईद (अज़ाब का वादा) को लेकर आईये अगर अपनी बात में सच्चे हैं 
7 71 उन्होंने जबाब दिया कि तुम्हारे ऊपर परवरदिगार की तरफ़ से अज़ाब और ग़ज़ब (क्रोध) तय हो चुका है। क्या तुम मुझसे इन नामों के बारे में झगड़ा करते हो जो तुमने और तुम्हारे बुज़ुर्गों ने ख़ुद तय कर लिये हैं और ख़ु़दा ने उनके बारे में कोई बुरहान (दलील) नाजि़ल नहीं किया है तो अब तुम अज़ाब का इन्तिज़ार करो मैं भी तुम्हारे साथ इन्तिज़ार करने वालों में हॅंू 
7 72 फिर हमने उन्हें और उनके साथियों को अपनी रहमत से निजात दे दी और अपनी आयात (निशानियां) की तकज़ीब (झुठलाना) करने वालों की नस्ल मुन्क़ेता (ख़त्म) कर दी और वह लोग हर्गिज़ साहेबाने ईमान नहीं थे 
7 73 और हमने समूद की तरफ़ उनके भाई सालेह को भेजा तो उन्होंने कहा कि ऐ क़ौम वालों अल्लाह की इबादत करो कि उसके अलावा कोई ख़ु़दा नहीं है। तुम्हारे पास परवरदिगार की तरफ़ से दलील आ चुकी है। ये ख़ु़दाई नाक़ा (ऊॅटनी) है जो तुम्हारे लिए उसकी निशानी है। इसे आज़ाद छोड़ दो कि ज़मीने ख़ु़दा में खाता फिरे और ख़बरदार इसे कोई तकलीफ़ न पहुंचाना कि तुमको अज़ाबे अलीम (बड़ा अज़ाब) अपनी गिरफ़्त में ले ले 
7 74 उस वक़्त को याद करो जब उसने तुमको क़ौमे आद के बाद जानशीन बनाया और ज़मीन में इस तरह बसाया कि तुम हमवार ज़मीनों में क़स्र (महल) बनाते थे और पहाड़ों का काट-काट कर घर बनाते थे तो अब अल्लाह की नेअमतों को याद करो और ज़मीन में फ़साद न फैलाते फिरो 
7 75 तो उनकी क़ौम के बड़े लोगों ने कमज़ोर बना दिये जाने वाले लोगांे में से जो ईमान लाये थे उनसे कहना शुरू किया कि क्या तुम्हें इसका यक़ीन है कि सालेह ख़ु़दा की तरफ़ से भेजे गये हैं उन्होंने कहा कि बेशक हमें उनके पैग़ाम का ईमान और ईक़ान हासिल है 
7 76 तो बड़े लोगों ने जवाब दिया कि हम तो उन बातों के मुन्किर (इन्कार करने वाले) हैं जिन पर तुम ईमान लाने वाले हो 
7 77 फिर ये कहकर नाक़े (ऊॅटनी) के पाँव काट दिये और हुक्मे ख़ु़दा से सरताबी (सरकशी) की और कहा कि सालेह अगर तुम ख़ु़दा के रसूल हो तो जिस अज़ाब की धमकी दे रहे थे उसे ले आओ 
7 78 तो उन्हें ज़लज़ले ने अपनी गिरफ़्त में ले लिया कि अपने घर ही में सर-बा-ज़ानू (औधे पड़े) रहे गये 
7 79 तो इसके बाद सालेह ने उनसे मुँह फेर लिया और कहा कि ऐ क़ौम मैंने ख़ु़दाई पैग़ाम को पहुँचा दिया है तुम को नसीहत की मगर अफ़सोस कि तुम नसीहत करने वालों को दोस्त नहीं रखते हो 
7 80 और लूत को याद करो कि जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि तुम बदकारी करते हो उसकी तो तुम से पहले आलमीन में कोई मिसाल नहीं है 
7 81 तुम अज़राहे शहवत औरतों के बजाये मर्दो से ताल्लुक़ात पैदा करते हो और तुम यक़ीनन इसराफ़ (हद से ज़्यादा बढ़ जाने वाले हो) और ज़्यादती करने वाले हो
7 82 और उनकी क़ौम के पास कोई जवाब न था सिवाए इसके कि उन्होंने लोगों को उभारा कि उन्हंे अपने क़रिये (बस्ती) से निकाल बाहर करो कि ये बहुत पाकबाज़ बनते हैं 
7 83 तो हमने उन्हें और उनके तमाम अहल को निजात दे दी उनकी ज़ौजा (पत्नी) के अलावा कि वह पीछे रह जाने वालों में से थी 
7 84 हमने उनके ऊपर ख़ास कि़स्म की (पत्थरों) की बारिश की तो अब देखो कि मुजरेमीन (जुर्म करने वाले) का अंजाम कैसा होता है 
7 85 और हमने क़ौमे मदियन की तरफ़ उनके भाई शुएब को भेजा तो उन्होंने कहा कि अल्लाह की इबादत करो कि उसके अलावा कोई ख़ु़दा नहीं है। तुम्हारे पास परवरदिगार की तरफ़ से दलील आ चुकी है अब नाप तौल को पूरा-पूरा रखो और लोगों को चीज़ंे कम न दो और इस्लाह के बाद ज़मीन में फ़साद (लड़ाई-झगड़ा) बरपा न करो। यही तुम्हारे हक़ में बेहतर है अगर तुम ईमान लाने वाले हो 
7 86 और ख़बरदार हर रास्ते पर बैठ कर ईमान वालों को डराने धमकाने और राहे ख़ु़दा से रोकने का काम छोड़ दो कि तुम इसमें भी कजी (टेड़ापन) तलाश कर रहे हो और ये याद करो कि तुम बहुत कम थे ख़ु़दा ने कसरत (ज़्यादह) अता की और ये देखो कि फ़साद करने वालों का अंजाम क्या होता है 
7 87 और अगर तुम में से एक जमाअत मेरे लाये हुए पैग़ाम पर ईमान ले आयी और एक ईमान नहीं लायी तो ठहरों यहाँ तक कि ख़ु़दा हमारे दरम्यान अपना फ़ैसला सादिर कर दे कि वह बेहतरीन फ़ैसला करने वाला है 
7 88 उनकी क़ौम के मुस्तकबेरीन (बड़ाई वाले) ने कहा कि ऐ शुएब हम तुमको और तुम्हारे साथ ईमान वालों को अपनी बस्ती से निकाल बाहर करेंगे या तुम भी पलटकर हमारे मज़हब पर आ जाओ, उन्होंने जवाब दिया कि चाहे हम तुम्हारे मज़हब से बेज़ार ही क्यों न हों 
7 89 ये अल्लाह पर बड़ा बोहतान (इल्ज़ाम) होगा अगर हम तुम्हारे मज़हब पर आ जायें जबकि उसने हमको इस मज़हब से नजात दे दी है और हमें हक़ नहीं है कि हम तुम्हारे मज़हब पर आ जायें जब तक ख़ु़दा ख़ुद न चाहे। हमारे परवरदिगार का इल्म हर शह पर हावी है और हमारा एतमाद (भरोसा) उसी के ऊपर है। ख़ु़दाया तू हमारे और हमारी क़ौम के दरमियान हक़ से फ़ैसला फ़रमा दे कि तू बेहतरीन फ़ैसला करने वाला है
7 90 तो उनकी क़ौम के कुफ़्फ़ार (ईमान न लाने वालों) ने कहा कि अगर तुम लोग शुएब का इत्तेबा (कहने पर चलोगे) कर लोगे तो तुम्हारा शुमार ख़सारा (घाटा उठाने) वालों में हो जायेगा 
7 91 नतीजा ये हुआ कि उन्हें ज़लज़ले ने अपनी गिरफ़्त (चपेट) में ले लिया और अपने घर में सर बा ज़ानू (औंधे पड़े रह गये) हो गये 
7 92 जिन लोगों ने शुएब की तकज़ीब  की (झुठलाया) वह ऐसे बर्बाद हुए गोया इस बस्ती में बसे ही नहीं थे। जिन लोगों ने शुएब को झुठलाया वही ख़सारा वाले क़रार पाये 
7 93 इसके बाद शुएब ने उनसे मुँह फेर लिया और कहा कि ऐ क़ौम मैंने अपने परवरदिगार के पैग़ामात (संदेशों) को पहुंचा दिया और तुम्हें नसीहत भी की तो अब कुफ्ऱ इखि़्तयार करने वालों के हाल पर किस तरह अफ़सोस करूँ 
7 94 और हमने जब भी किसी क़रिये (बस्ती) में कोई नबी भेजा तो अहले क़रिया (बस्ती) को नाफ़रमानी (कहना ना मानने) पर सख़्ती और परेशानी में ज़रूर मुब्तिला किया कि शायद वह लोग हमारी बारगाह में तज़्रा व ज़ारी (गिड़गिड़ायें) करें 
7 95 फिर हमने बुराई की जगह अच्छाई दे दी यहां तक कि वह लोग बढ़ निकले और कहने लगे कि ये तकलीफ़ व राहत तो हमारे बुज़ुर्गों तक भी आ चुकी है तो हमने अचानक उन्हें अपनी गिरफ़्त में ले लिया और उन्हें इसका शऊर (जानकारी) भी न हो सका 
7 96 और अगर अहले क़रिया (बस्ती वाले) ईमान ले आते और तक़वा (परहेज़गारी) इखि़्तयार कर लेते तो हम उनके ज़मीन और आसमान से बरकतों के दरवाज़े खोल देते लेकिन उन्होंने तकज़ीब (झुठलाया) की तो हमने इनको इनके आमाल की गिरफ़्त में ले लिया 
7 97 क्या अहले क़रिया (बस्ती) इस बात से मामून (बेख़ौफ़) हैं कि ये सोते ही रहें और हमारा अज़ाब रातों रात नाजि़ल हो जाये 
7 98 या इस बात से मुतमईन हैं कि ये खेल-कूद में मसरूफ़ रहें और हमारा अज़ाब दिन दहाड़े नाजि़ल हो जाये 
7 99 क्या ये लोग ख़ु़दाई तदबीर की तरफ़ से मुतमईन (इत्मीनान में) हो गये हैं जबकि ऐसा इत्मिनान सिर्फ़ घाटे में रहने वालों को होता है 
7 100 क्या एक क़ौम के बाद दूसरे ज़मीन के वारिस होने वालों को ये हिदायत नहीं मिलती कि अगर हम चाहते तो उनके गुनाहों की बिना पर उन्हें भी मुब्तिलाए मुसीबत कर देते और उनके दिलों पर मोहर लगा देते और फिर उन्हें कुछ सुनाई न देता
7 101 ये वह बस्तियां हैं जिनकी ख़बरें हम आप से बयान कर रहे हैं कि हमारा पैग़म्बर इनके पास मोजिज़ात (चमत्कार) लेकर आये मगर पहले से तकज़ीब (झुठलाने) करने की बिना पर ये ईमान न ला सके। हम इसी तरह काफि़रों (इनकार करने वालों) के दिलों पर मोहर लगा दिया करते हैं 
7 102 हमने उनकी अकसरियत में अहद व पैमान (वादा करना) की पासदारी नहीं पायी और उनकी अकसरियत को फ़ासिक़ (नाफ़रमान) और हुदूदे इताअत (अल्लाह की बात को मानने)  से ख़ारिज (उलट) ही पाया 
7 103 फिर इन सब के बाद हमने मूसा को निशानियां देकर फि़रऔन और उसकी क़ौम की तरफ़ भेजा तो इन लोगों ने भी ज़्ाुल्म (अत्याचार) किया  तो अब देखो कि फ़साद करने वालों का अंजाम क्या होता है 
7 104 और मूसा ने फि़रऔन से कहा कि मैं रब्बुलआलमीन की तरफ़ से फ़रेसतादा (भेजा हुआ) पैग़म्बर (उपदेश लाने वाला) हूँ 
7 105 मेरे लिए लाजि़म है कि मैं ख़ु़दा के बारे में हक़ के अलावा कुछ न कहूँ। मैं तेरे पास तेरे रब की तरफ़ से मोजिज़ा (चमत्कार)  लेकर आया हूँ लेहाज़ा बनी इसराईल (मूसा की क़ौम) को मेरे साथ भेज दें 
7 106 उसने कहा कि अगर तुम मोजिज़ा (चमत्कार) लाये हो और अपनी बात में सच्चे हो तो वह मोजिज़ा (चमत्कार) पेश करो 
7 107 मूसा ने अपना असा (लाठी) फेंक दिया और वह अच्छा ख़ासा साँप बन गया
7 108 और फिर अपने हाथ को निकाला तो वह देखने वालों के लिए इन्तिहाई (बहुत ज़्यादा) रौशन और चमकदार था 
7 109 फि़रऔन की क़ौम के रऊसा (मालदारों) ने कहा कि ये समझदार जादूगर है 
7 110 जो तुम लोगों को तुम्हारी सरज़मीन से निकालना चाहता है अब तुम लोगों का क्या ख़्याल है 
7 111 लोगांे ने कहा कि इनको और इनके भाई को रोक लीजिए और मुख़्तलिफ़ (अलग अलग) शहरों में (जादूगरों को) जमा करने वालों को भेजिये 
7 112 जो तमाम माहिर (तर्जुबेकार) जादूगरों को बुलाकर ले आयें 
7 113 जादूगर फि़रऔन के पास हाजि़र हो गये और उन्होंने कहा कि अगर हम ग़ालिब (जीत गयेे) हो गये तो क्या हमें इसकी उजरत (मज़दूरी) मिलेगी 
7 114 फि़रऔन ने कहा बेशक तुम मेरे दरबार में मुकऱ्रब (पास) हो जाओगे 
7 115 इन लोगांे ने कहा कि मूसा आप असा (लाठी) फेकेंगे या हम अपने काम का आग़ाज़ (शुरूआत) करें 
7 116 मूसा ने कहा कि तुम इब्तिदा (पहल) करो। उन लोगों ने रस्सियां फेकीं तो लोगांे की आँखों पर जादू कर दिया और उन्हें ख़ौफ़ज़दा (डरा दिया) कर दिया और बहुत बड़े जादू का मुज़ाहिरा (दिखाया) किया 
7 117 और हमने मूसा को इशारा किया कि अब तुम भी अपना असा (लाठी) डाल दो वह इनके तमाम जादू के साँपांे को निगल जायेगा 
7 118 नतीजा ये हुआ कि हक़ साबित हो गया और उनका कारोबार बातिल (ग़लत) हो गया
7 119 वह सब मग़लूब (हार गये) हो गये और ज़लील (शरमिन्दा) होकर वापस हो गये 
7 120 और जादूगर सब के सब सज्दे में गिर पड़े 
7 121 इन लोगों ने कहा कि हम आलमीन (तमाम आलम) के परवरदिगार (पालने वाले) पर ईमान ले आये 
7 122 यानि मूसा और हारून के रब (ख़ुदा) पर 
7 123 फि़रऔन ने कहा कि तुम मेरी इजाज़त से पहले कैसे ईमान ले आये। ये तुम्हारा मक्र (बनावट) है जो तुम शहर में फैला रहे हो ताकि लोगों को शहर से बाहर निकाल सको तो अनक़रीब (जल्द ही) तुम्हें इसका अंजाम मालूम हो जायेगा 
7 124 मैं तुम्हारे हाथ और पाँव मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) सिमतों (तरफ़) से काट दूँगा और इसके बाद तुम सबको सूली (फाॅसी) पर लटका दूँगा 
7 125 उन लोगों ने जवाब दिया कि हम लोग बहरहाल अपने परवरदिगार (पालने वाले) की बारगाह (दरबार) में पलट कर जाने वाले हैं 
7 126 और तू हमसे सिर्फ़ इस बात पर नाराज़ है कि हम अपने रब (ख़ुदा) की निशानियों (पहचान) पर ईमान ले आये हैं। ख़ु़दाया हम पर सब्र की बारिश फ़रमा और हमें मुसलमान दुनिया से उठाना 
7 127 और फि़रऔन की क़ौम के एक गिरोह ने कहा कि क्या तू मूसा और इनकी क़ौम को यूँ ही छोड़ देगा कि ये ज़मीन में फ़साद बरपा करें और तुझे और तेरे ख़ु़दाओं को छोड़ दें। उसने कहा कि मैं अनक़रीब (जल्द ही) इनके लड़कों को क़त्ल कर डालूँगा और इनकी औरतों (लड़कियों) को जि़न्दा रखूँगा। मैं इन पर कू़़व्वत (ताक़त) और ग़ल्बा (क़ाबू) रखता हूँ 
7 128 मूसा ने अपनी क़ौम से कहा कि अल्लाह से मदद माँगो और सब्र करो। ज़मीन अल्लाह की है वह अपने बन्दों में जिसको चाहता है वारिस बनाता है और अंजामकार बहरहाल साहेबाने तक़्वा (नेक लोगो) के लिए है 
7 129 क़ौम ने कहा कि हम तुम्हारे आने से पहले भी सताये गये और तुम्हारे आने के बाद भी सताये गये। मूसा ने जवाब दिया कि अनक़रीब तुम्हारा परवरदिगार तुम्हारे दुश्मन को हलाक (ख़त्म कर देगा) कर देगा और तुम्हें ज़मीन में उसका जानशीन (उत्तराधिकारी) बना देगा और फिर देखेगा कि तुम्हारा तजऱ् अमल (काम का ढंग) कैसा होता है 
7 130 और हमने आले फि़रऔन को क़हत (सूखा) और समरात (फ़लों) की कमी की गिरफ़्त में ले लिया कि शायद वह इसी तरह नसीहत हासिल कर सकें 
7 131 इसके बाद जब उनके पास कोई नेकी आयी तो उन्होंने कहा कि ये तो हमारा हक़ है और जब बुराई आयी तो कहने लगे कि ये मूसा और उनके साथियों का असर है। आगाह हो जाओ कि इनकी बदशगुनी के असबाब (वजूहात) ख़ु़दा के यहाँ मालूम हैं लेकिन इनकी अकसरियत (ज़्यादातर) इस राज़ से बे ख़बर है 
7 132 और क़ौम वालों ने कहा कि मूसा तुम कितनी ही निशानियाँ (पहचान) जादू करने के लिए लाओ हम तुम पर ईमान लाने वाले नहीं हैं 
7 133 फिर हमने इन पर तूफ़ान, टिड्डी, जूँ, मेंढक और ख़ून को मुफ़स्सिल (खुली) निशानी बनाकर भेजा लेकिन इन लोगों ने अस्तकबार (ग़्ाुरूर) और इन्कार से काम लिया और ये लोग वाक़ेअन मुजरिम लोग थे 
7 134 और जब इन पर अज़ाब नाजि़ल हो गया तो कहने लगे कि मूसा अपने रब से दुआ करो जिस बात का उसने वादा किया है अगर तुमने इस अज़ाब को दूर करा दिया तो हम तुम पर ईमान भी लायेंगे और बनी इसराईल (मूसा की क़ौम) को तुम्हारे हवाले भी कर देंगे 
7 135 इसके बाद हमने एक मुद्दत के लिए अज़ाब को बर तरफ़ (हटा दिया) कर दिया तो फिर अपने अहद (वादा) को तोड़ने वालों में शामिल हो गये 
7 136 फिर हमने इनसे इन्तिक़ाम (बदला) लिया और उन्हंे दरिया में ग़कऱ् (डिबो) कर दिया कि इन्होंने हमारी आयात (निशानियाॅं) को झुठलाया था और उनकी तरफ़ से ग़फ़लत (लापरवाही, अन्जान) बरतने वाले थे 
7 137 और हमने मुस्तज़फ़ीन (कमज़ोर) को शिर्क़ व ग़र्ब (पूरब-पश्चिम) ज़मीन का वारिस बना दिया और इसमें बर्कत अता कर दी और इस तरह बनी इसराईल पर अल्लाह की बेहतरीन बात तमाम हो गई कि उन्हांेंने सब्र किया था और जो कुछ फि़रऔन और उसकी क़ौम वाले बना रहे थे हमने सबको बर्बाद कर दिया और उनकी ऊँची ऊँची इमारतों को मिसमार (गिरा कर ढेर) कर दिया
7 138 और हमने बनी इसराईल (मूसा की क़ौम) को दरिया पार पहुँचा दिया तो वह एक ऐसी क़ौम के पास पहुँचे जो अपने बुतों के गिर्द मजमा लगाये बैठी थी। इन लोगों ने मूसा से कहा कि मूसा हमारे लिए भी ऐसा ही ख़ु़दा बना दो जैसा कि इनका ख़ु़दा है उन्हांेंने कहा कि तुम लोग बिल्कुल जाहिल हो 
7 139 इन लोगों का निज़ाम (क़ानून-क़ायदा) बर्बाद होने वाला और इनके आमाल (काम) बातिल (ग़लत) हैं 
7 140 क्या मैं ख़ु़दा के अलावा तुम्हारे लिए दूसरा ख़ु़दा तलाश करूँ जबकि उसने तुम्हें आलमीन पर फ़ज़ीलत दी है 
7 141 और जब हमने तुमको फि़रऔन वालों से निजात (छुटकारा) दी जो तुम्हें बदतरीन अज़ाब में मुब्तिला (दे रहे थे) कर रहे थे तुम्हारे लड़कों को क़त्ल कर रहे थे और लड़कियों को खि़दमत के लिए बाक़ी रख रहे थे और इसमंें तुम्हारे लिए परवरदिगार की तरफ़ से सख़्त तरीन इम्तिहान था 
7 142 और हमने मूसा से तीस रातों का वादा लिया और उसे दस मज़ीद (और ज़्यादा) रातों से मुकम्मल (पूरा कर) कर दिया कि इस तरह उनके रब का वादा चालीस रातों का वादा हो गया और इन्होंने अपने भाई हारून से कहा कि तुम क़ौम में मेरी नेयाबत (मेरी जगह) करो और इस्लाह (सही काम) करते रहो और ख़बरदार मुफ़स्सिदों (फ़सादियों) के रास्ते का इत्तेबा (पैरवी) न करना 
7 143 तो इसके बाद जब मूसा हमारा वादा पूरा करने के लिए आये और उनके रब ने उनसे कलाम लिया तो उन्होंने कहा कि परवरदिगार मुझे अपना जलवा दिखा दे इरशाद हुआ तुम हर्गिज़ मुझे नहीं देख सकते हो अलबत्ता पहाड़ की तरफ़ देखो अगर ये अपनी जगह पर क़ायम रह गया तो फिर मुझे देख सकते हो। इसे बाद जब पहाड़ पर परवरदिगार की तजल्ली (बिजली चमकी) हुई तो पहाड़ चूर-चूर हो गया और मूसा बेहोश होकर गिर पड़े फिर जब उन्हें होश आया तो कहने लगे कि परवरदिगार तू पाक व बेनियाज़ है मैं तेरी बारगाह में तौबा करता हूँ और मैं सबसे पहला ईमान लाने वाला हूँ 
7 144 इरशाद हुआ कि मूसा हमने तमाम इन्सानों में अपनी रिसालत और अपने कलाम के लिए तुम्हारा इन्तिख़ाब (चुन लिया) किया है लेहाज़ा अब इस किताब को ले लो और अल्लाह के शुक्रगुज़ार बन्दों में हो जाओ 
7 145 और हमने तौरेत की तखि़्तयों में हर शै में से नसीहत का हिस्सा और हर चीज़ की तफ़्सील (विवरण) लिख दी है लेहाज़ा इसे मज़बूती के साथ पकड़ लो और अपनी क़ौम को हुक्म दो कि इसकी अच्छी-अच्छी बातों को ले ले। मैं अनक़रीब तुम्हें फ़ासेक़ीन (काफि़र) के घर दिखला दूँगा
7 146 मैं अनक़रीब अपनी आयतों (निशानियों) की तरफ़ से इन लोगों को फेर दूँगा जो रूए ज़मीन में नाहक़ अकड़ते फिरते हैं और ये किसी भी निशानी को देख लें ईमान लाने वाले नहीं हैं। इनका हाल ये है कि हिदायत का रास्ता देखेंगे तो उसे अपना रास्ता न बनायेंगे और गुमराही का रास्ता देखेंगे तो उसे फ़ौरन इखि़्तयार कर लेंगे ये सब इसलिए है कि उन्होंने हमारी निशानियों को झुठलाया है और उनकी तरफ़ से ग़ाफि़ल (बेपरवाह, अंजान) थे 
7 147 और जिन लोगों ने हमारी निशानियों को आखि़रत की मुलाक़ात को झुठलाया है उनके आमाल बर्बाद हैं और ज़ाहिर है कि उन्हें वैसा ही बदला तो दिया जायेगा जैसे आमाल कर रहे हैं 
7 148 और मूसा की क़ौम ने उनके बाद अपने ज़ेवरात से गोसाला (गाय का बच्चा) का मुजस्सेमा (तस्वीर) बनाया जिसमें आवाज़ भी थी क्या इन लोगों ने नहीं देखा कि वह न बात करने के लायक़ हैं और न कोई रास्ता दिखा सकता है उन्होंने इसे ख़ु़दा बना लिया और वह लोग वाक़ेअन ज़्ाुल्म करने वाले थे 
7 149 और जब वह पछताये और उन्होंने देख लिया कि वह बहक गये हैं तो कहने लगे कि अगर हमारा परवरदिगार हमारे ऊपर रहम न करेगा और हमें माॅफ़ न करेगा तो हम ख़सारा (नुक़सान) वालों में शामिल हो जायेंगे
7 150 और जब मूसा अपनी क़ौम की तरफ़ वापस आये तो ग़ैज़ व ग़ज़ब के आलम में कहने लगे कि तुमने मेरे बाद बहुत बुरी हरकत की है। तुमने हुक्मे ख़ु़दा के आने में किस क़द्र ऊजलत (जल्दी) से काम लिया है और फिर उन्होंने तौरेत (आसमानी किताब) की तखि़्तयों को डाल दिया और अपने भाई का सिर पकड़ कर खींचने लगे। हारून ने कहा भाई क़ौम ने मुझे कमज़ोर बना दिया था और क़रीब था कि मुझे क़त्ल कर देते तो मैं क्या करता। आप दुश्मनों को ताना न दीजिए और मेरा शुमार ज़ालेमीन के साथ न कीजिए
7 151 मूसा ने कहा कि परवरदिगार मुझे और मेरे भाई को माॅफ़ कर दे और हमंे अपनी रहमत में दाखि़ल कर ले कि तू सबसे ज़्यादा रहम करने वाला है 
7 152 बेशक जिन लोगों ने गोसाला (गाय का बच्चा) इखि़्तयार किया है अनक़रीब (जल्द ही) उन पर ग़ज़बे परवरदिगार (ख़़ुदा का ग़ज़ब) नाजि़ल होगा और उनके लिए जि़न्दगानी दुनिया में भी जि़ल्लत (रूसवाई) है और हम इसी तरह इफि़्तरा (इल्ज़ाम) करने वालों को सज़ा दिया करते हैं 
7 153 और जिन लोगों ने बुरे आमाल किये और फिर तौबा कर ली और ईमान ले आये तो तौबा के बाद तुम्हारा परवरदिगार बहुत बख़्शने (माफ़ करने) वाला और बड़ा मेहरबान है 
7 154 इसके बाद जब मूसा का ग़्ाु़स्सा ठण्डा पड़ गया तो उन्होंने तखि़्तयों को उठा लिया और इसके नुस्ख़े में हिदायत और रहमत की बातें थीं उन लोगों के लिए जो अपने परवरदिगार से डरने वाले थे 
7 155 और मूसा ने हमारे वादे के लिए अपनी क़ौम के सत्तर अफ़राद (लोग) का इन्तिख़ाब (चुन लिया) किया फिर इसके बाद जब एक झटके ने उन्हें अपनी लपेट में ले लिया तो कहने लगे कि परवरदिगार अगर तू चाहता तो इन्हें पहले ही हलाक (मार देता) कर देता और मुझे भी। क्या अब अहमक़ों (पागलों) की हरकत की बिना पर हमें भी हलाक (मार देगा) कर देगा ये तो सिर्फ़ तेरा इम्तिहान है जिससे जिसको चाहता है गुमराही (ग़लत रास्ता) में छोड़ देता है और जिसको चाहता है हिदायत दे देता है तू हमारा वली (सरपरस्त) है। हमें माॅफ़ कर दे और हम पर रहम फ़रमा कि तू बड़ा बख़्शने वाला है 
7 156 और हमारे लिए इस दारे दुनिया और आख़ेरत में नेकी लिख दे। हम तेरी ही तरफ़ रूजूअ (सम्पर्क) कर रहे हैं। इरशाद हुआ कि मेरा अज़ाब जिसे मैं चाहूँगा उस तक पहुँचेगा और मेरी रहमत हर शै पर वसीअ (वृहद, फैली हुई) है जिसे मैं अनक़रीब (बहुत जल्द) उन लोगों के लिए लिख दूँगा जो ख़ौफ़ ख़ु़दा रखने वाले, ज़कात अदा करने वाले और हमारी निशानियों पर ईमान लाने वाले हैं 
7 157 जो लोग रसूले नबी उम्मी का इत्तेबा (अनुसरण) करते हैं जिसका जि़क्र अपने पास तौरेत और इन्जील में लिखा हुआ पाते हैं कि वह नेकियों का हुक्म देता है और बुराईयों से रोकता है और पाकीज़ा चीज़ों को हलाल क़रार देता है और ख़बीस (गन्दी, नजिस) चीज़ांे को हराम क़रार देता है और उन पर से एहकाम के संगीन बोझ और क़ैद व बन्द को उठा देता है पस जो लोग उस पर ईमान लाये उसका एहतराम किया उसकी इमदाद की और उस नूर का इत्तेबा (अनुसरण)  किया जो उसके साथ नाजि़ल हुआ है वही दर हक़ीक़त फ़लाहयाफ़्ता और कामयाब हैं 
7 158 पैग़म्बर, कह दो कि मैं तुम सबकी तरफ़ उस अल्लाह का रसूल और नुमाईन्दा हूँ जिसके लिए ज़मीन व आसमान की ममलेकत है। इसके अलावा कोई ख़ु़दा नहीं है। वही हयात (जि़न्दगी) देता है और वही मौत देता है लेहाज़ा अल्लाह और उसके पैग़म्बर उम्मी पर ईमान ले आओ जो अल्लाह और उसके कलेमात पर ईमान रखता है और उसी का इत्तेबा (अनुसरण) करो कि शायद इसी तरह हिदायत याफ़्ता हो जाओ 
7 159 और मूसा की क़ौम में से एक ऐसी जमाअत भी है जो हक़ के साथ हिदायत करती है और मामलात में हक़ व इन्साफ़ के साथ काम करती है 
7 160 और हमने बनी इसराईल (मूसा की क़ौम) को याक़ू़ब की बारह औलाद के बारह हिस्सों पर तक़सीम कर दिया और मूसा की तरफ़ वही (अल्लाह का पैग़ाम) की जब उनकी क़ौम ने पानी का मुतालेबा किया कि ज़मीन पर असा (लाठी) मार दो। उन्होंने असा (लाठी) मारा तो बारह चश्मे (पानी के झरने) जारी हो गये इस तरह कि हर गिरोह ने अपने घाट को पहचान लिया और हमने उनके सिरों पर अब्र (बादल) का साया किया और इन पर मन व सल्वा जैसी नेमत नाजि़ल की कि हमारे दिये हुए पाकीज़ा रिज़्क़ को खाओ और उन लोगों ने मुख़ालिफ़त करके हमारे ऊपर ज़्ाुल्म नहीं किया बल्कि ये अपने ही नफ़्स (जान) पर ज़्ाुल्म कर रहे थे 
7 161 और उस वक़्त को याद करो जब इनसे कहा गया कि इस क़रिये (बस्ती) में दाखि़ल हो जाओ और जो चाहो खाओ लेकिन हित्ता कहकर दाखि़ल होना और दाखि़ल होते वक़्त सजदा करते हुए दाखि़ल होना ताकि हम तुम्हारी ख़ताओं (ग़लतियों) को माॅफ़ कर दें कि हम अनक़रीब (बहुत जल्द) नेक अमल वालों के अज्र में इज़ाफ़ा (ज़्यादती) भी कर देंगे 
7 162 लेकिन ज़ालिमों ने जो उन्हें बताया गया था इसको बदलकर कुछ और कहना शुरू कर दिया तो हमने उनके ऊपर आसमान से अज़ाब नाजि़ल कर दिया कि ये फ़सक़ (ज़्ाुल्म) और नाफ़रमानी कर रहे थे 
7 163 और उनसे इस क़रिये (बस्ती) के बारे में पूछो जो समन्दर के किनारे था और जिसके बाशिन्दे (रहने वाले) शम्बे (सनीचर) के बारे में ज़्यादती से काम लेते थे कि उनकी मछलियाँ शम्बे (सनीचर) के दिन सतह आब (पानी के उपर) तक आ जाती थीं और दूसरे दिन नहीं आती थीं तो उन्होंने हीला गिरी (बहाने बाज़ी) करना शुरू कर दी। हम इसी तरह उनका इम्तिहान लेते थे कि ये लोग फ़सक़ (ज़्ाुल्म) और नाफ़रमानी से काम ले रहे थे 
7 164 और जब उनकी एक जमाअत ने मुसलेहीन (ग़लतियाॅं सुधारने वाले लोग) से कहा कि तुम क्यों ऐसी क़ौम को नसीहत करते हो जिसे अल्लाह हलाक (मारने) करने वाला है या उस पर शदीद अज़ाब करने वाला है तो उन्होंने कहा कि हम परवरदिगार की बारगाह में उज़्र (माफ़ी) चाहते हैं और शायद ये लोग मुत्तक़ी बन ही जायें 
7 165 इसके बाद जब उन्होंने यादे दहानी को फ़रामोश (भुला) कर दिया तो हमने बुराईयों से रोकने वालों को बचा लिया और ज़ालिमों को उनके फ़सक़ (ज़्ाुल्म) और बद किरदार की बिना पर सख़्त तरीन अज़ाब की गिरफ़्त में ले लिया 
7 166 फिर जब दोबारा मुमानिअत (मना करने) के बावजूद सरकशी की तो हमने हुक्म दे दिया कि अब जि़ल्लत के साथ बन्दर बन जाओ 
7 167 और उस वक़्त को याद करो जब तुम्हारे परवरदिगार ने अलल ऐलान कह दिया कि क़यामत तक इन पर ऐसे अफ़राद (लोग) मुसल्लत (तैनात) किये जायेंगे जो उन्हंे बदतरीन सखि़्तयों में मुब्तिला करेंगे कि तुम्हारा परवरदिगार जल्दी अज़ाब करने वाला भी है और बहुत ज़्यादा बख़्शने वाला मेहरबान भी है 
7 168 और हमने बनी इसराईल (मूसा की क़ौम) को मुख़्तलिफ़ (अलग अलग) टुकड़ों में तक़सीम (बाॅंट दिया) कर दिया बाज़ (कुछ) नेक किरदार थे और बाज़ (कुछ) उसके खि़लाफ़, और हमने उन्हंे आराम और सख़्ती के ज़रिये आज़माया कि शायद रास्ते पर आ जायें 
7 169 इसके बाद इनमें एक नसल पैदा हुई जो किताब की वारिस तो बनी लेकिन दुनिया का हर माल लेती रही और ये कहती रही कि अनक़रीब हमें बख़्श (माफ़ कर) दिया जायेगा और फिर वैसा ही माल मिल गया तो फिर ले लिया तो क्या इनसे किताब का अहद नहीं लिया गया ख़बरदार ख़ु़दा के बारे में हक़ के अलावा कुछ न कहें और उन्हांेंने किताब को पढ़ा भी है और दारे आखि़रत (आख़ेरत का घर) ही साहेबाने तक़्वा (नेक लोगों) के लिए बेहतरीन है क्या तुम्हारी समझ में नहीं आता है 
7 170 और जो लोग किताब से तमस्सुक (मिले रहना) करते हैं और उन्होंने नमाज़ क़ायम की है तो हम सालेह और नेक किरदार लोगांे के अज्र (सवाब) को ज़ाया (बरबाद) नहीं करते हैं 
7 171 और उस वक़्त को याद दिलाओ जब हमने पहाड़ को एक साएबान (छत) की तरह उनके सिरों पर मोअल्लिक़ (लटकाना) कर दिया और उन्होंने गुमान कर लिया कि ये अब गिरने वाला है तो हमने कहा कि तौरेत को मज़बूती के साथ पकड़ो और जो कुछ इसमें है इसे याद करो शायद इस तरह मुत्तक़ी और परहेज़गार बन जाओ 
7 172 और जब तुम्हारे परवरदिगार ने फ़रज़न्दाने (औलादे) आदम की पुश्तों से उनकी ज़्ाुर्रियत (औलादें) को लेकर उन्हें ख़ुद इनके ऊपर गवाह बनाकर सवाल किया कि क्या मैं तुम्हारा ख़ु़दा नहीं हूँ तो सबने कहा बेशक हम इसके गवाह हैं। ये अहद इसलिए लिया कि रोज़े क़यामत ये न कहो कि हम इस अहद से ग़ाफि़ल (भूलना) थे 
7 173 या ये कह दो कि हमसे पहले हमारे बुज़्ाुर्गों ने शिर्क किया था और हम सिर्फ़ इनकी औलाद में थे तो क्या अहले बातिल के आमाल की बिना पर हमको हलाक कर देगा 
7 174 और इसी तरह हम आयतों (निशानियों) को मुफ़स्सिल (सीरियल) बयान करते हैं और शायद ये लोग पलट कर आ जायें 
7 175 और उन्हें उस शख़्स की ख़बर सुनायें जिसको हमने अपनी आयतंें (निशानियाॅं) अता की फिर वह इनसे बिल्कुल अलग हो गया और शैतान ने उसका पीछा पकड़ लिया तो वह गुमराहों में हो गया 
7 176 और अगर हम चाहते तो उसे उन्हीं आयतों के सबब बुलन्द कर देते लेकिन वह ख़ुद ज़मीन की तरफ़ झुक गया और उसने ख़्वाहिशात की पैरवी इखि़्तयार कर ली तो अब इसकी मिसाल कुत्ते जैसी है कि उस पर हमला करो तो भी ज़्ाुबान निकाले रहे और छोड़ दो तो भी ज़्ाुबान निकाले रहे। ये उस क़ौम की मिसाल है जिसने हमारी आयात (निशानियों) की तकज़ीब (झुठलाना) की तो अब आप इन कि़स्सों को बयान करें कि शायद ये ग़ौरो फि़क्र (सोच-विचार) करने लगें 
7 177 किस क़द्र बुरी मिसाल है इस क़ौम की जिसने हमारी आयात (निशानियों)  की तकज़ीब की (झुठलाया) और वह लोग अपने ही नफ़्स (जान) पर ज़्ाुल्म कर रहे थे 
7 178 जिसको ख़ु़दा हिदायत दे दे वही हिदायत याफ़्ता (पाए हुए) है और जिसको गुमराही (ग़लत रास्ते) में छोड़ दे वही ख़सारा (घाटा) वालों में है 
7 179 और यक़ीनन हमने इन्सान व जिन्नात की एक कसीर (बहुत ज़्यादा) तादाद को गोया जहन्नुम के लिए पैदा किया है कि इनके पास दिल है मगर समझते नहीं हैं और आँखे हैं मगर देखते नहीं हैं और कान हैं मगर सुनते नहीं हैं। ये चैपायों (जानवरों) जैसें हैं बल्कि इनसे भी ज़्यादा गुमराह (भटके हुए) हैं और यही लोग असल में ग़ाफि़ल हैं 
7 180 और अल्लाह ही के लिए बेहतरीन नाम है लेहाज़ा उसे इन्हीं के ज़रिये पुकारो और उन लोगों को छोड़ दो जो उसके नामों में बे दीनी से काम लेते हैं अनक़रीब उन्हें उनके आमाल का बदला दिया जायेगा 
7 181 और मख़लूक़ात ही में से वह क़ौम भी है जो हक़ के साथ हिदायत करती है और हक़ ही के साथ इन्साफ़ करती है 
7 182 और जिन लोगों ने हमारी आयात (निशानी) की तकज़ीब (झुठलाना) की हम उन्हें अनक़रीब इस तरह लपेट लेंगे कि उन्हंे मालूम भी न होगा 
7 183 और हम तो उन्हें ढील दे रहे हैं कि हमारी तदबीर बहुत मुस्तहकम (मज़बूत) होती है
7 184 और क्या उन लोगों ने ये ग़ौर नहीं किया कि उनके साथी पैग़म्बर में किसी तरह का जुनून (पागलपन) नहीं है। वह सिर्फ़ वाजे़ह तौर से अज़ाबे इलाही से डराने वाला है 
7 185 और क्या उन लोगों ने ज़मीन व आसमान की हुकूमत और ख़ु़दा की तमाम मख़्लूक़ात में ग़ौर नहीं किया और ये कि शायद इनकी अजल (मौत) क़रीब आ गयी हो तो ये इसके बाद किस बात पर ईमान पर ले आयेंगे 
7 186 जिसे ख़ु़दा ही गुमराही में छोड़ दे उसका कोई हिदायत करने वाला नहीं है और वह उन्हें सरकशी में छोड़ देता है कि ठोकरें खाते फिरें 
7 187 (ऐ) पैग़म्बर! ये आपसे क़यामत के बारे में सवाल करते हैं कि उसका ठिकाना कब है तो कह दीजिए कि इसका इल्म मेरे पवरदिगार के पास है वही इसको बर वक़्त ज़ाहिर करेगा, ये क़यामत ज़मीन व आसमान दोनों के लिए बहुत गिरां (गरां वज़नी, भारी) है और तुम्हारे पास अचानक आने वाली है ये लोग आपसे इस तरह सवाल करते हैं गोया आपको इसकी मुकम्मल फि़क्र है तो कह दीजिए कि इसका इल्म अल्लाह के पास है लेकिन अकसर (ज़्यादातर) लोगों को इसका इल्म भी नहीं है 
7 188 आप कह दीजिए कि मैं ख़ुद भी अपने नफ़्स (जान) के नफ़ा (फ़ायदे) व नुक़सान का इखि़्तयार रखता हूँ मगर जो ख़ु़दा चाहे और अगर मैं ग़ैब से बा ख़बर होता तो बहुत ज़्यादा अंजाम देता और कोई बुराई मुझ तक न आ सकती। मैं तो सिर्फ़ साहेबाने ईमान के लिए बशारत (ख़ुशख़बरी) देने वाला और अज़ाबे इलाही से डरने वाला हूँ 
7 189 वही ख़ु़दा है जिसने तुम सबको एक नफ़्स (जान) से पैदा किया है और फिर इसी से उसका जोड़ा बनाया है ताकि इससे सुकून हासिल हो इसके बाद शौहर ने ज़ौजा से मुक़ारेबत की तो हल्का सा हमल पैदा हुआ जिसे वह लिये फिरती रही फिर हमल भारी हुआ और वक़्त विलादत क़रीब आया तो दोनों ने परवरदिगार से दुआ की अगर हमको सालेह औलाद दे देगा तो हम तेरे शुक्रगुज़ार बन्दों में होंगे 
7 190 इसके बाद जब उसने सालेह फ़रज़न्द दिया तो अल्लाह की अता में उसका शरीक क़रार दे दिया जबकि ख़ु़दा इन शरीकों से कहीं ज़्यादा बुलन्द व बर तर है 
7 191 क्या ये लोग उन्हें शरीक बनाते हैं जो कोई शय (चीज़) ख़ल्क़ नहीं कर सकते और ख़ुद भी मख़्लूक़ (अल्लाह के बन्दे)़ हैं 
7 192 और इनके इखि़्तयार में ख़ुद अपनी मदद भी नहीं है और वह किसी की नुसरत (मदद) भी नहीं कर सकते हैं 
7 193 और अगर आप इन्हें हिदायत की तरफ़ दावत दें तो साथ भी न आयेंगे इनके लिए सब बराबर है इन्हें बुलायें या चुप रह जायें 
7 194 तुम लोग जिन लोगों को अल्लाह को छोड़कर पुकारते हो सब तुम्हीं जैसे बन्दे हैं लेहाज़ा तुम उन्हें बुलाओ और वह तुम्हारी आवाज़ पर लब्बैक कहेंगे अगर तुम अपने ख़्याल में सच्चे हो 
7 195 क्या उनके पास चलने के क़ाबिल पैर, हमले करने के क़ाबिल हाथ, देखने के क़ाबिल आँखें और सुनने के लायक़ कान हैं जिनसे काम ले सकें। आप कह दीजिए कि तुम लोग अपने शुरका (जिनको शरीक समझते हो) को बुलाओ और जो मकर करना चाहते हो करो और हर्गिज़ मुझे मोहलत न दो (देखूँ तुम क्या कर सकते हो) 
7 196 बेशक मेरा मालिक व मुख़्तार वह ख़ु़दा है जिसने किताब नाजि़ल (भेजी) की है और वह नेक बन्दों का वाली व वारिस (मालिक व मुख़्तार) है 
7 197 और उसे छोड़कर तुम जिन्हें पुकारते हो वह न तुम्हारी मदद कर सकते हैं और न अपने ही काम आ सकते हैं 
7 198 अगर तुम उनको हिदायत की दावत दोगे तो सुन भी न सकेंगे और देखोगे तो ऐसा लगेगा जैसे तुम्हारी ही तरफ़ देख रहे हैं हालांकि देखने के लायक़ भी नहीं है 
7 199 आप अफ़़ू (बखि़्शश) का रास्ता इखि़्तयार करें नेकी का हुक्म दें और जाहिलों से किनारा कशी करें 
7 200 और अगर शैतान की तरफ़ से कोई ग़लत ख़्याल पैदा किया जाये तो ख़ु़दा की पनाह मांगे कि वह हर शै का सुनने वाला और जानने वाला है 
7 201 जो लोग साहेबाने तक़वा (नेक लोग) हंै जब शैतान की तरफ़ से कोई ख़्याल छूना भी चाहता है तो ख़ु़दा को याद करते हैं और हक़ाएक़ (बरहक़) को देखने लगते हैं 
7 202 और मुशरेकीन के बरादरान शयातीन (शैतानी भाई) इन्हें गुमराही (भटकाव) में खींच रहे हैं और इसमें कोई कोताही (कमी) नहीं करते हैं
7 203 और अगर आप उनके पास कोई निशानी न लायें तो कहते हैं कि ख़ुद आप क्यों नहीं मुन्तख़ब (चुन लेना) कर लेते तो कह दीजिए कि मैं तो सिर्फ़ वही (हुक्मे) परवरदिगार का इत्तेबा (पालन) करता हूँ। ये कु़रआन तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से दलायल (सुबूते) हिदायत और साहेबाने ईमान के लिए रहमत की हैसियत रखता है 
7 204 और जब कु़रआन की तिलावत की जाये तो ख़ामोश होकर ग़ौर से सुनो कि शायद तुम पर रहमत नाजि़ल हो जाये 
7 205 और ख़ु़दा को अपने दिल ही दिल में तज़र््ाुरोअ (गिड़गिड़ाकर) और ख़ौफ़ के साथ याद करो और क़ौल के एतबार से भी इसे कम बुलन्द आवाज़ से सुबह व शाम याद करो और ख़बरदार ग़ाफि़लों में न हो जाओ 
7 206 जो लोग अल्लाह की बारगाह में मुक़र्रिब (क़रीब) हैं वह उसकी ईबादत से तकब्बुर (ग़्ा़ुरूर) नहीं करते हैं और उसी की बारगाह में सजदा रेज़ रहते हैं 

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