Wednesday, 15 April 2015

Sura-a-Al-Anfaal 8th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.),

    सूरा-ए-अल अनफ़ाल
8   शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा रहमान और रहीम है।
8 1 पैग़म्बर ये लोग आप से अनफ़ाल (माले ग़नीमत) के बारे में सवाल करते हैं तो आप कह दीजिए कि अनफ़ाल (माले ग़नीमत) सब अल्लाह और रसूल के लिए है लेहाज़ा तुम लोग अल्लाह से डरो और आपस में इस्लाह करो और अल्लाह व रसूल की इताअत (आज्ञा का पालन) करो अगर तुम उस पर ईमान रखने वाले हो
8 2 साहेबाने ईमान दर हक़ीक़त वह लोग हैं जिनके सामने जि़क्रे ख़ु़दा किया जाये तो उनके दिलों में ख़ौफ़े ख़ु़दा पैदा हो और उसकी आयतों (निशानियों) की तिलावत की जाये तो उनके ईमान में इज़ाफ़ा (बढ़ोत्तरी) हो जाये और वह लोग अल्लाह ही पर तवक्कुल (भरोसा) करते हैं 
8 3 वह लोग नमाज़ क़ायम करते हैं और हमारे दिये हुए रिज़्क़ से अनफ़ाक़ (राहे ख़ुदा में ख़र्च) भी करते हैं 
8 4 यही लोग हक़ीक़तन (हक़ीक़त में) साहेबे ईमान हैं और इन्हीं के लिए परवरदिगार के यहां दरजात और मग़फि़रत (बख़्श देना) और बा इज़्ज़त रोज़ी है 
8 5 जिस तरह तुम्हारे रब ने तुम्हें तुम्हारे घर से हक़ के साथ बरामद किया अगर चे मोमिनीन की एक जमाअत (गिरोह) इसे नापसन्द कर रही थी 
8 6 ये लोग आप से हक़ के वाज़ेह हो जाने के बाद भी इसके बारे में बहस करते हैं जैसे कि मौत की तरफ़ हंकाए जा रहे हों और हसरत से देख रहे हों 
8 7 और उस वक़्त को याद करो जबकि ख़ु़दा तुम से वादा कर रहा था कि दो गिरोहों में से एक तुम्हारे लिए बहरहाल है और तुम चाहते थे कि वह ताक़त वाला गिरोह न हो और अल्लाह अपने कलेमात के ज़रिये हक़ को साबित करना चाहता है और कुफ़्फ़ार के सिलसिले को क़ता (ख़त्म) कर देना चाहता है 
8 8 ताकि हक़ साबित हो जाये और बातिल फ़ना हो जाये चाहे मुजरेमीन इसे किसी क़द्र बुरा क्यों न समझें 
8 9 जब तुम परवरदिगार से फ़रियाद कर रहे थे तो उसने तुम्हारी फ़रियाद सुन ली कि मैं हज़ार मलायका से तुम्हारी मदद कर रहा हूँ जो बराबर एक के पीछे एक एक आ रहे हैं
8 10 और उसे हमने सिर्फ़ एक बशारत (ख़ुशख़बरी) क़रार दिया ताकि तुम्हारे दिल मुतमईन (इतमिनान) हो जाएं और मदद तो सिर्फ़ अल्लाह ही की तरफ़ से है। अल्लाह ही साहेबाने इज़्ज़त और साहेबाने हिकमत है
8 11 जिस वक़्त ख़ु़दा तुम पर नींद ग़ालिब कर रहा था जो तुम्हारे लिए बाएसे सुकून थी और आसमान से पानी नाजि़ल कर रहा था ताकि तुम्हें पाकीज़ा बना दे और तुमसे शैतान की कसाफ़त (गन्दगी) को दूर कर दे और तुम्हारे दिलों को मुतमईन (इत्मिनान बक़्श) बना दे और तुम्हारे क़दमों को सबात (साबित क़दम) अता कर दे 
8 12 जब तुम्हारा परवरदिगार मलायका को वही (हुक्मे ख़ुदा) कर रहा था कि मैं तुम्हारे साथ हूँ लेहाज़ा तुम साहेबाने ईमान को सबात (साबित क़दम) अता करो मैं अनक़रीब कुफ़्फ़ार (कुफ्र करने वालों) के दिलों में रोब पैदा कर दूँगा लेहाज़ा तुम कुफ़्फ़ार (कुफ्ऱ करने वाले) की गर्दन को मार दो और इनकी तमाम उंगलियों को पोर-पोर काट दो 
8 13 ये इसलिए है कि उन लोगांे ने ख़ु़दा व रसूल की मुख़ालिफ़त की है और जो ख़ु़दा और रसूल की मुख़ालिफ़त करेगा तो ख़ु़दा उसके लिए सख़्त अज़ाब करने वाला है 
8 14 ये तो दुनिया की सज़ा है जिसे यहां चखो और इसके बाद काफि़रों के लिए जहन्नम का अज़ाब भी है 
8 15 ऐ ईमान वालों जब कुफ़्फ़ार से मैदाने जंग में मुलाक़ात करो तो ख़बरदार उन्हंे पीठ न दिखाना (भागना नहीं)
8 16 और जो आज के दिन पीठ दिखायेगा वह ग़ज़बे इलाही का हक़दार होगा और उसका ठिकाना जहन्नम होगा जो बदतरीन अंजाम है अलावा उन लोगों के जो जंगी हिकमत अमली की बिना पर पीछे हट जायें या किसी दूसरे गिरोह की पनाह लेने के लिए अपनी जगह छोड़ दें 
8 17 पस तुम लोगों ने इन कुफ़्फ़ार को क़त्ल नहीं किया बल्कि ख़ु़दा ने क़त्ल किया है और पैग़म्बर आपने संगरेज़े (पत्थर के टुकड़े)़ नहीं फेंके हैं बल्कि ख़ु़दा ने फेंके हैं ताकि साहेबाने ईमान पर ख़ूब अच्छी तरह एहसान कर दे कि वह सबकी सुनने वाला और सबका हाल जानने वाला है 
8 18 ये तो ये एहसान है और ख़ु़दा कुफ़्फ़ार के मकर (मक्कारी) को कमज़ोर बनाने वाला है 
8 19 अगर तुम लोग फ़तह चाहते हो तो ये फ़तह आ गई और अगर तुम जंग से बाज़ आ जाओ तो इसमें तुम्हारे लिए भलाई है और अगर दोबारा ऐसा करोगे तो हम भी पलट कर आ रहे हैं और तुम्हारा गिरोह कितना ही बड़ा क्यों न हो काम आने वाला नहीं है और अल्लाह हमेशा साहेबाने ईमान के साथ है 
8 20 ईमान वालों अल्लाह व रसूल की इताअत (हुक्म मानना) करो और उससे रूगर्दानी (मुँह फेरना) न करो जबकि तुम सुन भी रहे हो 
8 21 और उन लोगों जैसे न हो जाओ जो ये कहते हैं कि हमने सुना हालांकि वह कुछ नहीं सुन रहे हैं 
8 22 अल्लाह के नज़दीक बदतरीन ज़मीन पर चलने वाले वह बहरे और गूँगे हैं जो अक़्ल से काम नहीं लेते हैं 
8 23 और अगर ख़ु़दा इनमें किसी ख़ैर (नेकी) को देखता तो उन्हें ज़रूर सुनाता अगर सुना भी देता तो ये मुँह फेर लेते और एराज़ (बचना) से काम लेते 
8 24 ऐ ईमान वालों अल्लाह व रसूल की आवाज़ पर लब्बैक कहो (क़ुबूल कर लो) जब वह तुम्हंे इस अम्र (हुक्म) की तरफ़ दावत दें जिसमें तुम्हारी जि़न्दगी है और याद रखो कि ख़ु़दा इन्सान और उसके दिल के दरमियान हायल हो जाता है और तुम सब उसी की तरफ़ हाजि़र किये जाओगे 
8 25 और उस फि़त्ने (फ़साद) से बचो जो सिर्फ़ ज़ालेमीन को पहुँचने वाला नहीं है और याद रखो कि अल्लाह सख़्ततरीन अज़ाब का मालिक है 
8 26 मुसलमानों! उस वक़्त को याद करो जब तुम मक्का में क़लील (कम) तादाद  में और कमज़ोर थे। तुम हरआन डरते (सहमते) थे कि लोग तुम्हें उचक ले जायेंगे कि ख़ु़दा ने तुम्हें पनाह दी और अपनी मदद से तुम्हारी ताईद (तस्दीक़) की। तुम्हें पाकीज़ा रोज़ी अता की ताकि तुम उसका शुक्रिया अदा करो 
8 27 ईमान वालों ख़ु़दा व रसूल और अपनी अमानतों के बारे में ख़यानत न करो जबकि तुम जानते भी हो
8 28 और जान लो कि ये तुम्हारी औलाद और तुम्हारे अमवाल (माल व दौलत) एक आज़माईश है और ख़ु़दा के पास अज्रे अज़ीम है 
8 29 ईमान वालों अगर तुम तक़वा इलाही (ख़ौफ़े ख़ुदा, परहेज़गारी) इखि़्तयार करोगे तो वह तुम्हें हक़ व बातिल में तफ़्रेक़ा (फ़र्क करना) की सलाहियत अता कर देगा। तुम्हारी बुराईयों की पर्दापोशी (छुपाना) करेगा। तुम्हारे गुनाहों को माॅफ़ कर देगा कि वह बड़ा फ़ज़्ल करने वाला है
8 30 और पैग़म्बर आप उस वक़्त को याद करें जब कुफ़्फ़ार तदबीरंें (नई-नई चाल चलते) करते थे कि आपको क़ैद कर लें या शहर बदर कर दें या क़त्ल कर दें और उनकी तदबीरों के साथ ख़ु़दा भी उसके खि़लाफ़ इन्तिज़ाम कर रहा था और वह बेहतरीन इन्तिज़ाम करने वाला है 
8 31 और उनका ये हाल है कि जब हमारी आयतों की तिलावत की जाती है तो कहते हैं कि सुन लिया। हम ख़ुद भी चाहें तो ऐसा ही कह सकते हैं। ये तो सिर्फ़ पिछले लोगों की दास्तानें (कि़स्से) हैं 
8 32 और उस वक़्त को याद करो जब इन्होंने कहा कि ख़ु़दाया अगर ये तेरी तरफ़ से हक़ है तो हम पर आसमान से पत्थर बरसा दे या अज़ाबे अलीम नाजि़ल कर दे 
8 33 हालांकि अल्लाह इन पर उस वक़्त तक अज़ाब न करेगा जब तक ’’पैग़म्बर’’ आप उनके दरम्यान हैं और ख़ु़दा इन पर अज़ाब करने वाला नहीं है अगर ये तौबा और अस्तग़फ़ार (गुनाहों से माॅफी) करने वाले हो जायें 
8 34 और उनके लिए कौन सी बात है कि ख़ु़दा उन पर अज़ाब न करे जबकि ये लोगों को मस्जिदुल अहराम (ख़ाना-ए-काबा से मिली हुई मस्जिद) से रोकते हैं और उसके मुतावल्ली भी नहीं हैं। इसके वली (हाकिम) सिर्फ़ मुत्तक़ी और परहेज़गार अफ़राद हैं लेकिन उनकी अकसरियत इससे भी बे ख़बर है 
8 35 इनकी नमाज़ भी मस्जिदुल अहराम के पास सिर्फ़ ताली और सीटी (बजाने का काम) है लेहाज़ा अब तुम लोग अपने कुफ्ऱ की बिना पर अज़ाब का मज़ा चखो 
8 36 जिन लोगों ने कुफ्ऱ इखि़्तयार किया ये अपने अमवाल (माल व दौलत) को सिर्फ़ इसलिए ख़र्च करते हैं कि लोगों को राहे ख़ु़दा से रोकें तो ये ख़र्च भी करेंगे और इसके बाद ये बात इनके लिए हसरत भी बनेगी और आखि़र में मग़लूब (हार जायेगेें) भी हो जायेंगे और जिन लोगों ने कुफ्ऱ इखि़्तयार किया ये सब जहन्नम की तरफ़ ले जाये जायेंगे 
8 37 ताकि ख़ु़दा ख़बीस (नजिस) को पाकीज़ा से अलग कर दे और फिर ख़बीस (नजिस) को एक पर एक रख कर ढेर बना दे और सबको इकठ्ठा जहन्नुम में झोंक दे कि यही लोग ख़सारा (नुक़सान) और घाटे वाले हैं 
8 38 पैग़म्बर आप काफि़रों से कह दीजिए कि अगर ये लोग अपने कुफ्ऱ से बाज़ आ जायें तो इनके गुजि़श्ता (गुज़रे ज़माने के) गुनाह माॅफ़ कर दिये जायेंगे लेकिन अगर फिर पलट गये तो गुजि़श्ता (गुज़रे ज़माने के) लोगों का तरीक़ा भी गुज़र चुका है
8 39 और तुम लोग इन कुफ़्फ़ार से जेहाद करो यहां तक कि फि़त्ना (फ़साद) का वजूद न रह जाये और सारा दीन सिर्फ़ अल्लाह के लिए रह जाये फिर अगर ये लोग बाज़ आ जायें तो अल्लाह इनके आमाल का ख़ूब देखने वाला है 
8 40 और अगर दोबारा पलट जायें तो याद रखो कि ख़ु़दा तुम्हारा मौला और सरपरस्त है और वह बेहतरीन मौला व मालिक और बेहतरीन मददगार है 
8 41 और ये जान लो कि तुम्हें जिस चीज़ से भी फ़ायदा (हासिल) हो उसका पांचवा हिस्सा अल्लाह, रसूल के क़राबतदार, (क़रीबी रिश्तेदार) ऐयताम (यतीमों) मसाकीन (ग़रीबो नदार) और मुसाफि़राने ग़्ाु़रबत ज़दा के लिए है अगर तुम्हारा ईमान अल्लाह पर है और उस नुसरत पर है जो हमने अपने बन्दे पर हक़ (सच) व बातिल (झूठ) के फ़ैसले के दिन जब दो जमातें (गिरोह) आपस में टकरा रही थीं नाजि़ल की थी और अल्लाह हर शै पर क़ादिर है 
8 42 जबकि (तुम) वादी के क़रीबी महाज़ पर थे और वह लोग (काफि़र) दूर वाले महाज़ पर थे और क़ाफि़ला तुम से नशेब (नीचे) में था और अगर तुम पहले से जेहाद के वादे पर निकलते तो यक़ीनन उसके खि़लाफ़ करते लेकिन ख़ु़दा होने वाले अम्र (काम) का फ़ैसला करना चाहता था ताकि जो हलाक (मरना) हो वह दलील के साथ और जो जि़न्दा रहे वह भी दलील के साथ और अल्लाह सब की सुनने वाला और सबके हाले दिल का जानने वाला है 
8 43 जब ख़ु़दा इनको तुम्हारी नज़रों में कम करके दिखला रहा था कि अगर ज़्यादा दिखला देता तो तुम सुस्त पड़ जाते और आपस ही में झगड़ा करने लगते लेकिन ख़ु़दा ने तुम्हें इस झगड़े से बचा लिया कि वह दिल के राज़ांे से भी बा ख़बर है 
8 44 और जब ख़ु़दा मुक़ाबले के वक़्त तुम्हारी नज़रांे में दुश्मनों को कम दिखला रहा था और उनकी नज़रांे में तुम्हें कम करके दिखला रहा था ताकि इस अम्र (हुक्म) का फ़ैसला कर दे जो होने वाला था और सारे उमूर (कामों) की बाज़गश्त (पलटना) अल्लाह ही की तरफ़ है 
8 45 ईमान वालों जब किसी गिरोह सेे मुक़ाबला करो तो सबाते क़दम (क़दम जमा कर) से काम लो और अल्लाह को बहुत याद करो कि शायद इसी तरह कामयाबी हासिल कर लो 
8 46 और अल्लाह और उसके रसूल की इताअत (हुक्म मानना) करो और आपस में एख़तेलाफ़ (लड़ाई-झगड़ा) न करो कि कमज़ोर पड़ जाओ और तुम्हारी हवा बिगड़ जाये और सब्र करो कि अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है 
8 47 और उन लोगों जैसे न हो जाओ जो अपने घरों से इतराते हुए और लोगों को दिखाने के लिए निकले और राहे ख़ु़दा से रोकते रहे कि अल्लाह उनके आमाल का अहाता किये हुए है
8 48 और उस वक़्त को याद करो जब शैतान ने उनके लिए उनके आमाल को आरास्ता (सजा दिया) कर दिया और कहा कि आज कोई तुम पर ग़ालिब (जीतने वाला) आने वाला नहीं है और मैं तुम्हारा मददगार हूँ। इसके बाद जब दोनों गिरोह आमने-सामने आये तो उलटे पांव भाग निकला और कहा कि मैं तुम लोगों से बरी (अलग) हूँ, मैं वह देख रहा हूँ जो तुम नहीं देख रहे हो और मैं अल्लाह से डरता हूँ कि वह सख़्त अज़ाब करने वाला है 
8 49 जब मुनाफ़ेक़ीन और जिन के दिलोें मंे खोट था कह रहे थे कि इन लोगों को इनके दीन ने धोका दिया है हालांकि जो शख़्स अल्लाह पर एतमाद (भरोसा) करता है तो ख़ु़दा हर शै (चीज़) पर ग़ालिब आने वाला और बड़ी हिकमत वाला है 
8 50 काश तुम देखते कि जब फ़रिश्ते इनकी जान निकाल रहे थे और इनके मुँह और पीठ पर मारते जाते थे कि अब जहन्नम (के अज़ाब) का मज़ा चखो 
8 51 ये इसलिए कि तुम्हारे पिछले आमाल (कामों) का नतीजा यही है और ख़ु़दा अपने बन्दांे पर ज़्ाुल्म करने वाला नहीं है 
8 52 जो हाल आले फि़रऔन और इनके पहले वालों का था कि इन्होंने आयाते इलाहिया (अल्लाह का चमत्कार, उसकी निशानियों) का इन्कार किया तो ख़ु़दा ने इन्हें इनके गुनाहों की गिरफ़्त में ले लिया कि अल्लाह क़वी (ताक़तवर) भी है और शदीद (सख़्त) अज़ाब करने वाला भी है 
8 53 ये इसलिए कि ख़ु़दा किसी क़ौम को दी हुई नेअमत को उस वक़्त तक नहीं बदलता जब तक वह ख़ुद अपने तंई (हालत) तग़य्युर (बदलना) न पैदा कर दे कि ख़ु़दा सुनने वाला भी है और जानने वाला भी है 
8 54 जिस तरह आले फि़रऔन और उनके पहले वालों का अंजाम हुआ कि उन्होंने परवरदिगार की आयात का इन्कार किया तो हमने उनके गुनाहों की बिना पर उन्हें हलाक (मार दिया) कर दिया और आले फि़रऔन को ग़कऱ् (डुबो दिया) कर दिया कि ये सब के सब ज़ालिम थे 
8 55 ज़मीन पर चलने वालों में बदतरीन अफ़राद वह हैं जिन्होंने कुफ्ऱ इखि़्तयार कर लिया और अब वह ईमान लाने वाले नहीं हैं 
8 56 जिनसे आपने अहद (वादा) लिया और इसके बाद वह हर मर्तबा अपने अहद (वादा) को तोड़ देते हैं और ख़ु़दा का ख़ौफ़ नहीं करते 
8 57 अगर वह जंग में तुम्हारे क़ब्ज़े में आ जायें तो उन्हें और उनके पुश्तेबान (जो उनकी पुश्त पर हों) सबको निकाल बाहर करो ताकि इबरत (सबक़) हासिल करें 
8 58 और अगर किसी क़ौम से किसी ख़यानत (चोरी) या बद अहदी का ख़तरा है तो आप भी उनके अहद (वादा) (उन्हीं) की तरफ़ फेंक दें कि अल्लाह ख़यानतकारों को दोस्त नहीं रखता है 
8 59 और ख़बरदार काफि़रों को ये ख़्याल न हो कि वह आगे बढ़ गये वह कभी मुसलमानों को आजिज़ नहीं कर सकते 
8 60 और तुम सब उनके मुक़ाबले के लिए इमकानी कु़व्वत (क़ुदरती ताक़त) और घोड़ों की सफ़ बन्दी का इन्तिज़ाम करो जिससे अल्लाह के दुश्मन, अपने दुश्मन और उनके अलावा जिनको तुम नहीं जानते हो और अल्लाह जानता है सबको ख़ौफ़ज़दा कर दो और जो कुछ भी राहे ख़ु़दा में ख़र्च करोगे सब पूरा-पूरा मिलेगा और तुम पर किसी तरह का ज़्ाुल्म नहीं किया जायेगा 
8 61 और अगर वह सुलह की तरफ़ मायल (आयें) हों तो तुम भी झुक जाओ और अल्लाह पर भरोसा करो कि वह सब कुछ सुनने वाला और जानने वाला है 
8 62 और अगर ये आपको धोका देना चाहेंगे तो ख़ु़दा आपके लिए काफ़ी है। उसने आपकी ताईद (तस्दीक़) अपनी नुसरत और साहेबाने ईमान के ज़रिये की है 
8 63 और इनके दिलों में मोहब्बत पैदा कर दी कि अगर आप सारी दुनिया ख़र्च कर देते हैं तो भी इनके दिलों में बाहमी उलफ़त नहीं पैदा कर सकते थे लेकिन ख़ु़दा ने ये उलफ़त व मोहब्बत पैदा कर दी है कि वह हर शय (चीज़) पर ग़ालिब और साहेबे हिकमत है 
8 64 ऐ पैग़म्बर आपके लिए ख़ु़दा और वह मोमिनीन काफ़ी हैं जो आपका इत्तेबा (हुक्म पर अमल) करने वाले हैं 
8 65 ऐ पैग़म्बर आप लोगांे को जेहाद पर आमादा करंे अगर इनमें बीस भी सब्र करने वाले होंगे तो दो सौ पर ग़ालिब हो जायेंगे और अगर सौ होंगे तो हज़ार काफि़रों पर ग़ालिब आ जायेंगे इसलिए कि कुफ़्फ़ार समझदार क़ौम नहीं है 
8 66 अब अल्लाह ने तुम्हारा बार (बोझ) हल्का कर दिया है और उसने देख लिया है कि तुम में कमज़ोरी पायी जाती है तो अगर तुम में सौ भी सब्र करने वाले होंगे तो दो सौ पर ग़ालिब आ जायेंगे और अगर हज़ार हांेगे तो बहुक्मे ख़ु़दा (ख़ुदा के हुक्म से) दो हज़ार पर ग़ालिब आ जायेंगे और अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है 
8 67 किसी नबी को ये हक़ नहीं है कि वह कै़दी बनाकर रखे जब तक ज़मीन में जेहाद की सखि़्तयांे का सामना न करे। तुम लोग तो सिर्फ़ माले दुनिया चाहते हो जबकि अल्लाह आखि़रत चाहता है और वही साहेबे इज़्ज़त व हिकमत है 
8 68 अगर ख़ु़दा की तरफ़ से पहले फ़ैसला न हो चुका होता तो तुम लोगांे ने जो फि़दया ले लिया था उस पर अज़ाबे  अज़ीम (बड़ा अज़ाब) नाजि़ल हो जाता 
8 69 पस अब जो माले ग़नीमत (जंग में लूटा हुआ सामान) हासिल कर लिया है उसे खाओ कि वह हलाल और पाकीज़ा है और तक़्वए इलाही (अल्लाह से डरो) इखि़्तयार करो कि अल्लाह बहुत बख़्शने वाला और मेहरबान है 
8 70 ऐ पैग़म्बर अपने हाथ के कै़दियों से कह दीजिए कि अगर ख़ु़दा तुम्हारे दिलों में नेकी देखेगा तो जो माल तुम से ले लिया गया है उससे बेहतर नेकी तुम्हें अता कर देगा और तुम्हें माॅफ़ कर देगा कि वह बड़ा बख़्शने वाला और मेहरबान है 
8 71 और अगर ये आपसे ख़यानत करना चाहते हैं तो इससे पहले ख़ु़दा से ख़यानत कर चुके हैं जिसके बाद ख़ु़दा ने उन पर क़ाबू अता कर दिया कि वह सब कुछ जानने वाला और साहेबे हिकमत है 
8 72 बेशक जो लोग ईमान लाये और उन्होंने हिजरत (एक जगह से दूसरी जगह जाना) की और राहे ख़ु़दा में अपने जान व माल से जेहाद किया और जिन्होंने पनाह दी और मदद की ये सब आपस में एक दूसरे के वली (सरपरस्त) हैं और जिन लोगांे ने ईमान इखि़्तयार करके हिजरत नहीं की उनकी विलायत (सरपरस्ती) सेे आपका कोई ताल्लुक़ नहीं है जब तक हिजरत न करें और अगर दीन के मामले में तुमसे मदद मांगे तो तुम्हारा फ़जऱ् है कि मदद कर दो अलावा उस क़ौम के मुक़ाबले के जिससे तुम्हारा मुआहेदा (एक़रार) हो चुका है कि अल्लाह तुम्हारे आमाल को ख़ूब देखने वाला है 
8 73 जो लोग कुफ्ऱ वाले हैं वह आपस में एक दूसरे के मददगार हैं और अगर तुम ईमान वालों की मदद न करोगे तो ज़मीन में फि़त्ना और अज़ीम (बड़ा) फ़साद बरपा हो जायेगा 
8 74 और जिन लोगांे ने ईमान इखि़्तयार किया और हिजरत की और राहे ख़ु़दा मंे जेहाद किया और पनाह दी और नुसरत की वही दर हक़ीक़त वाक़ई मोमिन हैं और उन्हीं के लिए मग़फि़रत (बख़शिश) और बा इज़्ज़त रिज़्क़ है 
8 75 और जो लोग बाद में ईमान ले आये और हिजरत की और आपके साथ जेहाद किया वह भी तुम्हीं में से है और क़राबतदार (बिल्कुल क़रीबी रिश्तेदार) किताबे ख़ु़दा में सब आपस में एक दूसरे से ज़्यादा अव्वलियत और कु़रबत (कुछ रिश्तेदार कुछ रिश्तेदार से ज़्यादा हक़) रखते हैं बेशक अल्लाह हर शै (चीज़) का बेहतरीन जानने वाला है 

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