सूरा-ए-नास | ||
114 | अज़ीम और दाएमी (हमेशा बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू। | |
114 | 1 | ऐ रसूल कह दीजिए के मैं इन्सानों के परवरदिगार (पालने वाले) की पनाह चाहता हूँ |
114 | 2 | जो तमाम लोगों का मालिक और बादशाह है |
114 | 3 | सारे इन्सानांे का माबूद (इबादत के क़ाबिल) है |
114 | 4 | शैतानी वसवास (वहम, ख़ौफ़ के ख़याल) के शर (बुराई) से जो नामे ख़ुदा सुनकर पीछे हट जाता है |
114 | 5 | और जो लोगों के दिलों में वसवसे (वहम, ख़ौफ़ के ख़याल) पैदा करता है |
114 | 6 | वह जिन्नात में से हो या इन्सानों में से |
No comments:
Post a Comment