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सूरा-ए-अलजुहा |
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अज़ीम और दाएमी (हमेशा
बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू। |
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1 |
क़सम है एक पहर चढ़े
दिन की |
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2 |
और क़सम है रात की जब
वह चीज़ों की पर्दापोशी करे (छुपा ले) |
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3 |
तुम्हारे परवरदिगार
(पालने वाले) ने न तुमको छोड़ा है और न तुमसे नाराज़ हुआ है |
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4 |
और आखि़रत तुम्हारे
लिए दुनिया से कहीं ज़्यादा बेहतर (ज़्यादा अच्छी) है |
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5 |
और अनक़रीब (बहुत
जल्द) तुम्हारा परवरदिगार (पालने वाले) तुम्हें इस क़द्र अता कर देगा कि ख़ु़श
हो जाओ |
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6 |
क्या उसने तुमको यतीम
पाकर पनाह नहीं दी है |
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7 |
और क्या तुमको
गुमगुश्ता (खोया हुआ) पाकर मंजि़ल (आखि़री जगह) तक नहीं पहुँचाया है |
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8 |
और तुमको तंगदस्त (माल
के एतबार से ग़रीब) पाकर ग़नी (मालदार) नहीं बनाया है |
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9 |
लेहाज़ा (इसलिये) अब
तुम यतीम पर क़हर न करना |
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10 |
और सायल (सवाल करने
वाले) को झिड़क मत देना |
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11 |
और अपने परवरदिगार
(पालने वाले) की नेअमतों को बराबर बयान करते रहना |
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