Wednesday, 15 April 2015

Sura-a-Yunus 10th sura of Quran Urdu Translation of Quran in Hindi (Allama zeeshan haider Jawadi sb.),

सूरा-ए-यूनुस
10 शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा रहमान और रहीम है।
10 1 अलिफ़ लाम रा, ये पुर अज़ हिकमत (हिकमत से भरी हुई) किताब की आयतें हैं 
10 2 क्या लोगों के लिए ये बात अजीब है कि इन्हीं में से एक मर्द पर हम ये वही (अल्लाह का पैग़ाम) नाजि़ल कर दें कि लोगों को अज़ाब से डराओ और साहेबाने ईमान को बशारत (ख़ुशख़बरी) दे दो कि उनके लिए परवरदिगार की बारगाह में बुलन्दतरीन (बहुत आला) दर्जा है, मगर ये काफि़र कहते हैं कि ये खुला हुआ जादूगर है 
10 3 बेशक तुम्हारा परवरदिगार वह है जिसने ज़मीन व आसमान को छः दिनों (मरहलों) में पैदा किया है फिर इसके बाद अर्श पर अपना इक़तेदार क़ायम किया है वह तमाम उमूर (कामों) की तदबीर करने वाला है कोई उसकी इजाज़त के बग़ैर शिफ़ाअत (मग़फि़रत की सिफ़ारिश) करने वाला नहीं है। वही तुम्हारा परवरदिगार है और उसी की इबादत (पूजा) करो क्या तुम्हें होश नहीं आ रहा है 
10 4 उसी की तरफ़ तुम सबकी बाज़गश्त (पलट कर जाना है) है। ये ख़ु़दा का सच्चा वादा है। वही खि़ल्क़त का आग़ाज़ करने वाला है और वापस ले जाने वाला है ताकि ईमान और नेक अमल वालों को आदिलाना (इन्साफ़ के साथ) जज़ा (काम का फ़ल) दे सके और जो काफि़र हो गये हैं उनके लिए तो गर्म पानी का मशरूब (प्याला) है और इनके कुफ्ऱ की बिना पर (वजह से) दर्दनाक अज़ाब भी है 
10 5 उसी ख़ु़दा ने आफ़ताब (सूरज) को रौशनी और चाँद को नूर बनाया है फिर चाँद की मंजि़लें मुक़र्रर (तय) की हैं ताकि इनके ज़रिये बरसों की तादाद (गिनती) और दूसरे हिसाबात (हिसाब-किताब) दरयाफ़्त (मालूम) कर सको। ये सब ख़ु़दा ने सिर्फ़ हक़ के साथ पैदा किया है कि वह साहेबाने इल्म (इल्म वालों) के लिए अपनी आयतों को तफ़्सील (लगातार) के साथ बयान करता है 
10 6 बेशक दिन रात की आमद व रफ़्त (आना-जाना) और जो कुछ ख़ु़दा ने आसमान व ज़मीन में पैदा किया है उन सब में साहेबाने तक़्वा (ख़ुदा से डरने वाले लोगो) के लिए उसकी निशानियां पायी जाती हैं
10 7 यक़ीनन जो लोग हमारी मुलाक़ात की उम्मीद नहीं रखते हैं और जि़न्दगानी दुनिया पर ही राज़ी और मुतमईन (इत्मेनान बख़्श) हो गये हैं और जो लोग हमारी आयात से ग़ाफि़ल (भूले हुए) हैं
10 8 ये सब वह हैं जिनके आमाल (कामों) की बिना (वजह) पर उनका ठिकाना जहन्नुम है 
10 9 बेशक जो लोग ईमान लाये और उन्होंने नेक आमाल किये ख़ु़दा उनके ईमान की बिना (वजह) पर इस मंजि़ल की तरफ़ इनकी रहनुमाई (रास्ता दिखाना) करेगा जहां नेअमतों के बाग़ात (हरे भरे बहुत से नेमतों से भरे बाग़) के नीचे नहरें जारी होंगी 
10 10 वहाँ इनका क़ौल (कहना) ये होगा कि ख़ु़दाया तू पाक और बेनियाज़ (जो किसी भी चीज़ का मोहताज नहीं) है और उनका तोहफ़ा सलाम होगा और इनका आखि़री बयान ये होगा कि सारी तारीफ़ ख़ु़दाए रब्बुल आलमीन (तमाम आलमों के रब) के लिए है 
10 11 अगर ख़ु़दा लोगों के लिए बुराई में भी इतनी ही जल्दी कर देता जितनी ये लोग भलाई में चाहते हैं तो अब तक उनकी मुद्दत का फ़ैसला हो चुका होता। हम तो अपनी मुलाक़ात की उम्मीद न रखने वालों को उनकी सरकशी (हटधर्मी) में छोड़ देते हैं कि ये यूँहीं ठोकरें खाते फिरें
10 12 इन्सान को जब कोई नुक़सान पहुँचता है तो उठते-बैठते करवटें बदलते हमको पुकारता है और जब हम इस नुक़सान को दूर कर देते हैं तो यूँ गुज़र (खिसक) जाता है जैसे कभी किसी मुसीबत में हमको पुकारा ही नहीं था। बेशक ज़्यादती करने वालों के आमाल यूँ ही उनके सामने आरास्ता (सजाकर पेश) कर दिये जाते हैं 
10 13 यक़ीनन हमने तुम से पहले वाली उम्मतों को हलाक (मारना) कर दिया जब उन्होंने ज़्ाुल्म (ज़्यादती) किया और हमारे पैग़म्बर हमारी निशानियाँ लेकर आये तो वह ईमान न ला सके। हम इसी तरह मुजरिम क़ौम को सज़ा देते हैं 
10 14 इसके बाद हमने तुम को रूए ज़मीन पर इनका जानशीन (वारिस, उत्तराघिकारी) बना दिया ताकि देखें कि अब तुम कैसे आमाल (काम) करते हो 
10 15 और जब इनके सामने हमारी आयात की तिलावत की जाती है तो जिन लोगों को हमारी मुलाक़ात की उम्मीद नहीं है वह कहते हैं कि उसके अलावा कोई दूसरा कु़रआन लाईये या इसी को बदल दीजिए तो आप कह दीजिए कि मुझे अपनी तरफ़ से बदलने का कोई इखि़्तयार (हक़) नहीं है मैं तो सिर्फ़ इस अम्र (हुक्म) का इत्तेबा (पैरवी) करता हूँ जिसकी मेरी तरफ़ वही (आसमानी हुक्म) की जाती है मैं अपने परवरदिगार की नाफ़रमानी करूँ तो मुझे एक बड़े अज़ीम (कठिन) दिन के अज़ाब का ख़ौफ़ (डर) है
10 16 आप कह दीजिए कि अगर ख़ु़दा चाहता तो मैं तुम्हारे सामने तिलावत न करता और तुम्हें इसकी इत्तेला (मालूमात) भी न करता। आखि़र मैं इससे पहले भी तुम्हारे दरम्यान एक मुद्दत (वक़्त) तक रह चुका हूँ तो क्या तुम्हारे पास इतनी अक़्ल (दिमाग़) भी नहीं है 
10 17 उससे बड़ा ज़ालिम कौन है जो अल्लाह पर झूठा इल्ज़ाम लगाये या उसकी आयतों की तकज़ीब (निशानियों को झुठलाना) करे जबकि वह मुजरेमीन (जुर्म करने वालों) को निजात देने वाला नहीं है 
10 18 और ये लोग ख़ु़दा को छोड़कर उनकी परसतिश (पूजा) करते हैं जो न नुक़सान पहुँचा सकते हैं और न फ़ायदा और ये लोग कहते हैं कि ये ख़ु़दा के यहाँ हमारी सिफ़ारिश करने वाले हैं तो आप कह दीजिए कि तुम तो (क्या) ख़ु़दा को इस बात की इत्तेला (ख़बर) कर रहे हो जिसका इल्म उसे आसमान व ज़मीन में कहीं नहीं है? वह पाक व पाकीज़ा है, और इनके शिर्क से बुलन्द (आला) व बरतर (बढ़कर) है 
10 19 सारे इन्सान फि़तरतन (फि़तरत के हिसाब से) एक उम्मत थे फिर सब आपस में अलग-अलग हो गये और अगर तुम्हारे रब की बात पहले से तय न हो चुकी होती तो ये जिस बात में एख़तेलाफ़ करते हैं उसका फ़ैसला हो चुका होता 
10 20 ये लोग कहते हैं कि ख़ु़दा की तरफ़ से इन पर कोई निशानी क्यों नहीं नाजि़ल होती तो आप कह दीजिए कि तमाम ग़ैब (छुपे हुए) का इखि़्तयार (क़ब्ज़ा) परवरदिगार को है और तुम इन्तिज़ार करो और मैं भी तुम्हारे साथ इन्तिज़ार करने वालों में हूँ 
10 21 और जब तकलीफ़ पहुँचने के बाद हमने लोगों को ज़रा रहमत का मज़ा चखा दिया तो फ़ौरन हमारी आयतों (निशानियों) में मक्कारी (हीले बाज़ी) करने लगे तो आप कह दीजिए कि ख़ु़दा तुम से तेज़तर तदबीरें (इन्तज़ाम) करने वाला है और हमारे नुमाईन्दे (फ़रिश्ते) तुम्हारे मकर (धोखे) को बराबर लिख रहे हैं 
10 22 वह ख़ु़दा वह है जो तुम्हें खु़श्की और समन्दर में सैर कराता है यहां तक कि जब तुम कश्ती (नाव) मंे थे और पाकीज़ा हवायें चलीं और सारे मुसाफि़र ख़ामोश (चुप) हो गये तो अचानक एक तेज़ हवा चल गई और मौजों ने हर तरफ़ से घेरे में ले लिया और ख़्याल पैदा हो गया कि चारों तरफ़ से घिर गये हैं तो दीन ख़ालिस (निरे खरे अक़ीदे) के साथ अल्लाह से दुआ करने लगे कि अगर इस मुसीबत से निजात मिल गई तो हम यक़ीनन शुक्रगुज़ारों (शुक्र करने वालों) में हो जायेंगे 
10 23 इसके बाद जब उसने निजात दे दी तो ज़मीन में नाहक़ ज़्ाुल्म (सरकशी) करने लगे। इन्सानों! याद रखो तुम्हारा ज़्ाुल्म तुम्हारे ही खि़लाफ़ होगा ये सिर्फ़ चन्द रोज़ा (कुछ दिन की) जि़न्दगी का मज़ा है इसके बाद तुम सबकी बाज़गश्त (पलटना) हमारी ही तरफ़ होगी और फिर हम तुम्हें बतायेंगे कि तुम दुनिया में क्या करते थे 
10 24 जि़न्दगानी दुनिया (दुनिया की जि़न्दगी) की मिसाल सिर्फ़ उस बारिश की है जिसे हमने आसमान से नाजि़ल किया फिर इससे मिलकर ज़मीन से वह नबातात (पेड़-पौधे, फल-फूल वग़ैरह) बरामद हुए जिनको इन्सान और जानवर खाते हैं यहां तक कि जब ज़मीन ने सब्ज़ा ज़ार (साग-पात) से अपने को आरास्ता कर लिया और (खेतों के) मालिकों ने ख़्याल करना शुरू कर दिया कि अब हम इस ज़मीन के साहेबे इखि़्तयार (क़ाबू पाने वाले) हैं तो अचानक हमारा हुक्म रात या दिन के वक़्त आ गया और हमने इसे बिल्कुल कटा हुआ खेत बना दिया गोया इसमें कल कुछ था ही नहीं। हम इसी तरह अपनी आयतों को मुफ़स्सल (तफ़सील) तरीक़े से बयान करते हैं उस क़ौम के लिए जो साहेबे फि़क्र व नज़र है 
10 25 अल्लाह हर एक को सलामती (आराम) के घर की तरफ़ दावत देता है और जिसे चाहता है सीधे रास्ते की हिदायत दे देता है
10 26 जिन लोगों ने नेकी है उनके वास्ते नेकी भी है और इज़ाफ़ा (बढ़ोतरी) भी और इनके चेहरों पर न स्याही (कालापन) होगी और न जि़ल्लत (रूसवाई), वह जन्नत वाले हैं और वहीं हमेशा रहने वाले हैं 
10 27 और जिन लोगों ने बुराईयाँ कमाई हैं उनके लिए हर बुराई के बदले वैसी ही बुराई है और इनके चेहरों पर गुनाहों की स्याही (कालापन) भी होगी और इन्हें अज़ाबे इलाही से बचाने वाला कोई न होगा। इनके चेहरे पर जैसे स्याह (काली) रात की तारीकी (अंधेरे) का पर्दा डाल दिया गया हो। वह अहले जहन्नम हैं और इसी में हमेशा रहने वाले हैं 
10 28 जिस दिन हम सबको इकठ्ठा (जमा) करेंगे और इसके बाद शिर्क (ख़ुदा के साथ दूसरों को शरीक करना) करने वालों से कहेंगे कि तुम और तुम्हारे शोरका (जिनको ख़ुदा का शरीक बनाते थे) सब अपनी-अपनी जगह ठहरो और फिर हम इनके दरम्यान (बीच) जुदाई डाल देंगे और इनके शोरका (जिनको ख़ुदा का शरीक बनाते थे) कहेंगे कि तुम हमारी इबादत तो नहीं करते थे 
10 29 अब ख़ु़दा हमारे और तुम्हारे दरम्यान गवाही के लिए काफ़ी है कि हम तुम्हारी इबादत से बिल्कुल ग़ाफि़ल (अनजान) थे 
10 30 उस वक़्त हर शख़्स अपने गुजि़श्ता (पिछले) आमाल (कामों) का इम्तिहान करेगा और सब मौलाए बर हक़ (सच्चे) ख़ु़दा वन्दे तआला की बारगाह (दरबार) में पलटा दिये जायेंगे और जो कुछ इफि़्तरा (इल्ज़ाम) कर रहे थे वह सब भटक कर गुम हो जायेगा 
10 31 पैग़म्बर, ज़रा इनसे पूछिये कि तुम्हें ज़मीन व आसमान से कौन रिज़्क़ देता है और कौन तुम्हारी समाअत (सुनने) व बसारत (देखने) का मालिक है और कौन मुर्दे से जि़न्दे और जि़न्दे से मुर्दा को निकालता है और कौन सारे उमूर (काम) की तदबीर (बन्दोबस्त) करता है तो ये सब यही कहेंगे कि अल्लाह! तो आप कहिये कि फिर उससे क्यों नहीं डरते हो 
10 32 वही अल्लाह तुम्हारा बरहक़ (सच्चा) पालने वाला है और हक़ के बाद ज़लालत (गुमराही) के सिवा कुछ नहीं है तो तुम किस तरफ़ ले जाये जा रहे हो 
10 33 इसी तरह ख़ु़दा का अज़ाब फ़ासिक़ों (नाफ़रमान) के हक़ में साबित हो गया कि वह ईमान लाने वाले नहीं हैं 
10 34 आप ज़रा पूछिये कि क्या तुम्हारा शरीकों (जिनको ख़ुदा का शरीक बनाते थे) में कोई है जो खि़ल्क़त (मख़लूक़ को पैदा करने) की इब्तिदा (शुरूआत) करे और फिर दोबारा इसे पलटा सके और फिर बताईये कि अल्लाह ही मख़लूक़ात (मख़लूक़ को पैदा करने) की इब्तिदा (शुरूआत) करता है और वही इन्हें पलटाता भी है तो तुम आखि़र किधर चले जा रहे हो 
10 35 कहिये कि क्या तुम्हारे शुरका (जिनको ख़ुदा का शरीक बनाते थे) में कोई ऐसा है जो हक़ की हिदायत कर सके और फिर बताईये कि अल्लाह ही हक़ की हिदायत करता है और जो हक़ की हिदायत करता है वह वाक़ेअन (अस्ल में) क़ाबिले इत्तेबा (कहना माना जाने के क़ाबिल) है या (वह) जो हिदायत करने के क़ाबिल भी नहीं है मगर ये कि ख़ुद उसकी हिदायत की जाये तो आखि़र तुम्हें क्या हो गया है और तुम कैसे फ़ैसले कर रहे हो 
10 36 और इनकी अकसरियत (ज़्यादातर लोग) तो सिर्फ़ ख़्यालात का इत्तेबा (पैरवी, अमल) करती है जबकि गुमान (ख़याल) हक़ (सच्चाई) के बारे में कोई फ़ायदा नहीं पहुँचा सकता बेशक अल्लाह इनके आमाल से ख़ूब वाकि़फ़ (जानता) है 
10 37 और ये कु़रआन किसी ग़ैरे ख़ु़दा की तरफ़ से इफि़्तरा (इल्ज़ाम) नहीं है बल्कि अपने मासबक़ (पहले वालों) की किताबों की तस्दीक़ (सच्चाई की गवाही) और तफ़्सील (व्याख्या) है जिसमें किसी शक की गुंजाईश नहीं है ये रब्बुल आलमीन की नाजि़ल कर्दा (की हुई) है 
10 38 क्या ये लोग ये कहते हैं कि इसे पैग़म्बर ने गढ़ लिया है तो कह दीजिए कि तुम इसके जैसा एक ही सूरा ले आओ और ख़ु़दा के अलावा जिसे चाहो अपनी मदद के लिए बुला लो अगर तुम अपने इल्ज़ाम में सच्चे हो 
10 39 दर हक़ीक़त (अस्ल में) इन लोगों ने उस चीज़ की तकज़ीब (झुठलाना) की है जिसका मुकम्मल इल्म भी नहीं है और इसकी तावील (मायने) भी इनके पास नहीं आयी है इसी तरह इनके पहले वालों ने भी तकज़ीब (झुठलाना) की थी अब देखो कि ज़्ाुल्म करने वालों का अंजाम क्या होता है 
10 40 इनमें बाज़ (कुछ) वह हैं जो उस पर ईमान लाते हैं और बाज़ (कुछ) नहीं मानते हैं और आपका परवरदिगार फ़साद (झगड़ा) करने वालों को ख़ूब जानता है 
10 41 और अगर ये आपकी तकज़ीब (झुठलाएं) करें तो कह दीजिए कि मेरे लिए मेरा अमल है और तुम्हारे लिए तुम्हारा अमल है। तुम मेरे अमल से बरी और मैं तुम्हारे आमाल से बेज़ार (नफ़रत करता) हूँ 
10 42 और इनमें से बाज़ (कुछ) ऐसे भी हैं जो बज़ाहिर (दिखाने के लिये) कान लगाकर सुनते भी हैं लेकिन क्या आप बहरों को बात सुनाना चाहते हैं जबकि वह समझते भी नहीं हैं 
10 43 और इनमें कुछ है जो आपकी तरफ़ देख रहे हैं तो क्या आप अँधों को भी हिदायत दे सकते हैं चाहे वह कुछ न देख पाते हों 
10 44 अल्लाह इन्सानों पर ज़र्रा बराबर ज़्ाुल्म नहीं करता है बल्कि इन्सान ख़ुद ही अपने ऊपर ज़्ाुल्म किया करते हैं 
10 45 जिस दिन ख़ु़दा इन सबको महशूर (महशर के मैदान में इकट्ठा) करेगा इस तरह कि जैसे दुनिया में सिर्फ़ एक साअत (एक मिनट) ठहरे हों और वह आपस में एक-दूसरे को पहचानते होंगे यक़ीनन जिन लोगों ने ख़ु़दा की मुलाक़ात का इन्कार किया है वह ख़सारा (घाटे) में रहे और हिदायत याफ़्ता (हिदायत पाने वाले) नहीं हो सके
10 46 और हमने जिन बातों का उनसे वादा किया है उन्हें आपको दिखा दें या आपको पहले ही दुनिया से उठा लें उन्हें तो बहरहाल पलट कर हमारी ही बारगाह में आना है इसके बाद ख़ु़दा ख़ुद इनके आमाल का गवाह है 
10 47 और हर उम्मत के लिए एक रसूल है और जब रसूल आ जाता है तो इनके दरम्यान (बीच) आदिलाना (इन्साफ़ भरा) फ़ैसला हो जाता है और इन पर किसी तरह का ज़्ाुल्म नहीं होता है 
10 48 ये लोग कहते हैं कि अगर आप सच्चे हैं तो ये वादा-ए-अज़ाब (अज़ाब का वादा) कब पूरा होगा 
10 49 कह दीजिए कि मैं अपने नफ़्स (जान) के नुक़सान व नफ़ा (फ़ायदे) का भी मालिक नहीं हूँ जब तक ख़ु़दा न चाहे। हर क़ौम के लिए एक मुद्दत (वक़्त) मुअईयन (तय) है जिससे एक साअत (एक मिनट) की भी न ताख़ीर (देरी) हो सकती है और न तक़दीम (पहले) 
10 50 कह दीजिए कि तुम्हारा क्या ख़्याल है अगर उसका अज़ाब रात के वक़्त या दिन में आ जाये तो तुम क्या करोगे आखि़र ये मुजरेमीन (जुर्म करने वाले) किस बात की जल्दी कर रहे हैं 
10 51 तो क्या तुम अज़ाब के नाजि़ल होने के बाद ईमान लाओगे-और क्या अब ईमान लाओगे जबकि तुम अज़ाब की जल्दी मचाये हुए थे 
10 52 इसके बाद ज़ालेमीन (ज़ुल्म करने वालों) से कहा जायेगा कि अब हमेशगी (हमेशा के अज़ाब) का मज़ा चखो। क्या तुम्हारे आमाल (कामों) के अलावा किसी और चीज़ का बदला दिया जायेगा 
10 53 ये आप से दरयाफ़्त करते (पूछते) हैं कि क्या ये अज़ाब बरहक़ (हक़ पर) है तो फ़रमा दीजिए कि हाँ बेशक बरहक़ है और तुम ख़ु़दा को आजिज़ (परेशान) नहीं बना सकते 
10 54 अगर हर ज़्ाुल्म करने वाले नफ़्स (जान) को सारी ज़मीन के ख़ज़ीने (ख़ज़ाने) मिल जायें तो वह उस दिन के अज़ाब के बदले दे देगा और अज़ाब के देखने के बाद अन्दर-अन्दर नादिम (पछताने वाला) भी होगा-लेकिन इनके दरम्यान (बीच में) इन्साफ़ के साथ फ़ैसला कर दिया जायेगा और इन पर किसी तरह का ज़्ाुल्म न किया जायेगा 
10 55 याद रखो कि ख़ु़दा ही के लिए ज़मीन व आसमान के कुल ख़ज़ाने हैं और आगाह हो जाओ कि ख़ु़दा का वादा बरहक़ (हक़ पर) है अगरचे लोगों की अकसरियत (ज़्यादातर लोग) नहीं समझती है 
10 56 वही ख़ु़दा हयात (जि़न्दगी) व मौत का देने वाला है और उसी की तरफ़ तुम सबको पलटा कर ले जाया जायेगा 
10 57 अय्योहन्नास (ऐ लोगों)! तुम्हारे पास परवरदिगार की तरफ़ से नसीहत और दिलों की शिफ़ा (फ़ायदा) का सामान और हिदायत और साहेबाने ईमान के लिए रहमते कु़रआन आ चुका है 
10 58 पैग़म्बर कह दीजिए कि ये कु़रआन फ़ज़्ल व रहमते ख़ु़दा का नतीजा है लेहाज़ा इन्हें इस पर खु़श होना चाहिए कि ये इनके जमा किये हुए अमवाल (माल व दौलत) से कहीं ज़्यादा बेहतर है 
10 59 आप कह दीजिए कि ख़ु़दा ने तुम्हारे लिए रिज़्क़ (रोज़ी को) नाजि़ल किया तो तुमने इसमें भी हलाल व हराम बनाना शुरू कर दिया तो क्या ख़ु़दा ने तुम्हें इसकी इजाज़त दी है या तुम ख़ु़दा पर इफि़्तरा (इल्ज़ाम) कर रहे हो 
10 60 और जो लोग ख़ु़दा पर झूठा इल्ज़ाम लगाते हैं उनका रोज़े क़यामत के बारे में क्या ख़्याल है। अल्लाह इन्सानों पर फ़ज्ल करने वाला है लेकिन इनकी अकसरियत (ज़्यादातर लोग) शुक्र करने वाली नहीं है 
10 61 और पैग़म्बर आप किसी हाल में रहें और कु़रआन के किसी हिस्से की तिलावत करें और ऐ लोगों तुम कोई अमल करो हम तुम सबके गवाह होते हैं जब भी कोई अमल करते हो, और तुम्हारे परवरदिगार से ज़मीन व आसमान का कोई ज़र्रा दूर नहीं है और कोई शै (चीज़) ज़र्रे से बड़ी या छोटी ऐसी नहीं है जिसे हमने अपनी खुली किताब में जमा न कर दिया हो 
10 62 आगाह हो जाओ कि औलियाए ख़ु़दा (अल्लाह के दोस्त) पर न ख़ौफ़ (डर लगना) तारी होता है और न वह महज़्ा़ून (ग़मगीन) और रंजीदा (ग़मज़दा) होते हैं 
10 63 ये वह लोग हैं जो ईमान लाये और ख़ु़दा से डरते रहे 
10 64 इनके लिए जि़न्दगानी दुनिया (दुनिया की जि़न्दगी) और आखि़रत (की जि़न्दगी) दोनों मुक़ामात पर बशारत और खु़शख़बरी है और कलेमाते ख़ु़दा (ख़ुदा की बात) में कोई तब्दीली (बदलाव) नहीं हो सकती है और यही दर हक़ीक़त अज़ीम (बड़ी) कामयाबी है 
10 65 पैग़म्बर! आप इन लोगों की बातों से रंजीदा (ग़मज़दा) न हों। इज़्ज़त सब की सब सिर्फ़ अल्लाह के लिए है। वही सब कुछ सुनने वाला है और जानने वाला है
10 66 आगाह हो जाओ कि अल्लाह ही के लिए ज़मीन व आसमान की सारी मख़्लूक़ात (ख़ल्क़ की हुई चीज़ें) और कायनात (दुनिया) है और जो लोग ख़ु़दा को छोड़कर दूसरे शरीकों को पुकारते हैं वह उनका भी इत्तेबा (हुक्म मानना) नहीं करते। ये सिर्फ़ अपने ख़्यालात का इत्तेबा (हुक्म मानना) करते हैं और ये सिर्फ़ अंदाज़ों पर जि़न्दगी गुज़ारते रहे हैं 
10 67 वह ख़ु़दा वह है जिसने तुम्हारे लिए रात बनाई है ताकि इसमें सुकून हासिल कर सको और दिन को रौशनी का ज़रिया बनाया है और इसमें भी बात सुनने वाली क़ौम के लिए निशानियाँ पायी जाती हैं 
10 68 ये लोग कहते हैं कि अल्लाह ने अपना कोई बेटा बनाया है हालांकि वह पाक व बेनियाज़ है और उसके लिए ज़मीन व आसमान की सारी कायनात है। तुम्हारे पास तो तुम्हारी बात की कोई दलील भी नहीं है। क्या तुम लोग ख़ु़दा पर वह इल्ज़ाम लगाते हो जिसका तुम्हें इल्म भी नहीं है 
10 69 पैग़म्बर आप कह दीजिए कि जो लोग ख़ु़दा पर झूठा इल्ज़ाम लगाते हैं वह कभी कामयाब नहीं हो सकते 
10 70 इस दुनिया मंे थोड़ा आराम है इसके बाद सब की बाज़गश्त (पलटना) हमारी ही तरफ़ है। इसके बाद हम इनके कुफ्ऱ की बिना (वजह) पर इन्हें शदीद (सख़्त) अज़ाब का मज़ा चखायंेगे 
10 71 आप इन कुफ़्फ़ार (कुफ्ऱ करने वालों) के सामने नूह का वाक़ेया बयान करें कि इन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि अगर तुम्हारे लिए मेरा क़याम (रूकना) और आयाते इलाही (अल्लाह की निशानियाॅं) का याद दिलाना सख़्त है तो मेरा एतमाद (भरोसा) अल्लाह पर है। तुम भी अपना इरादा पुख़्ता (पक्का) कर लो और अपने शरीकों (जिनको ख़ुदा का शरीक बनाते थे) को बुला लो और तुम्हारी कोई बात तुम्हारे ऊपर मख़्फ़ी (छुपी हुई) भी न रहे। फिर जो जी चाहे कर गुज़रो और मुझे किसी तरह की मोहलत न दो 
10 72 फिर अगर तुम इनहेराफ़ (मुंह मोड़ना) करोगे तो मैं तुम से कोई अज्र (बदला) भी नहीं चाहता। मेरा अज्र (बदला) तो सिर्फ़ अल्लाह के जि़म्मे है और मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं उसकी इताअत (हुक्म मानने वाले) गुज़ारों में शामिल रहूँ 
10 73 फिर क़ौम ने इनकी तकज़ीब (झुठलाना) की तो हमने नूह और उनके साथियों को कश्ती में निजात दे दी और उन्हें ज़मीन का वारिस (मालिक) बना दिया और अपनी आयात की तकज़ीब (झुठलाना) करने वालों को डुबो दिया तो अब देखिये कि जिनको डराया जाता है उनके ना मानने का अंजाम क्या होता है
10 74 इसके बाद हमने मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) रसूल उनकी क़ौमों की तरफ़ भेजे और वह इनके पास खुली हुई निशानियाँ लेकर आये लेकिन वह लोग पहले के इन्कार करने की बिना पर इनकी तस्दीक़ (सच्चाई की गवाही) न कर सके और हम इसी तरह ज़ालिमों के दिल पर मोहर लगा देते हैं 
10 75 फिर हमने इन रसूलों के बाद फि़रऔन और उसकी जमाअत (गिरोह) की तरफ़ मूसा और हारून को अपनी निशानियाँ देकर भेजा तो उन लोगों (उनकी क़ौम) ने भी इन्कार कर दिया और वह सब भी मुजरिम लोग थे 
10 76 फिर जब मूसा इनके पास हमारी तरफ़ से हक़ (सच) लेकर आये तो इन्होंने कहा कि ये तो खुला हुआ जादू है
10 77 मूसा ने जवाब दिया कि तुम लोग हक़ के आने के बाद इसे जादू कह रहो हो क्या ये तुम्हारे नज़दीक जादू है जबकि जादूगर कभी कामयाब नहीं होते 
10 78 इन लोगों ने कहा कि तुम ये पैग़ाम इसलिए लाये हो कि हमें बाप दादा के रास्ते से मुन्हरिफ़ (मुंह मोड़ना, बहका) कर दो और तुम दोनों को ज़मीन में हुकूमत (बादशाहत) व इक़तेदार (ताक़त) मिल जाये और हम हर्गिज़ तुम्हारी बात मानने वाले नहीं हैं 
10 79 और फि़रऔन ने कहा कि तमाम होशियार (चालाक) माहिर जादूगरों को मेरे पास हाजि़र करो 
10 80 फिर जब जादूगर आ गये तो मूसा ने उनसे कहा कि जो कुछ फेकना चाहते हो फेंको
10 81 फिर जब इन लोगों ने रस्सियों को डाल दिया तो मूसा ने कहा कि जो कुछ तुम ले आये हो ये जादू है और अल्लाह इसको बेकार कर देगा कि वह मुफ़स्सेदीन (फ़साद करने वाले) के अमल को दुरूस्त (सही) नहीं होने देता है 
10 82 और अपने कलेमात के ज़रिये हक़ को साबित कर देता है चाहे मुजरेमीन (जुर्म करने वालों) को कितना ही बुरा क्यों न लगे 
10 83 फिर भी मूसा पर ईमान न लाये मगर इनकी क़ौम की नसल (के कुछ लोग) और वह भी फि़रऔन और उसकी जमाअत (गिरोह) के ख़ौफ़ के साथ कि कहीं वह किसी आज़माईश (इम्तेहान) में न मुब्तिला कर दे कि फि़रऔन बहुत ऊँचा (बढ़ा-चढ़ा) है और वह इसराफ़ (फ़ुज़्ाूल ख़र्ची) और ज़्यादती करने वाला भी है
10 84 और मूसा ने अपनी क़ौम से कहा कि अगर तुम वाके़अन (अस्ल में) अल्लाह पर ईमान लाये हो तो उसी पर भरोसा करो अगर वाक़ेअन (सच में) उसके ईताअत गुज़ार (कहना मानने वाले) बन्दे हो 
10 85 तो इन लोगों ने कहा कि बेशक हमने ख़ु़दा पर भरोसा किया है। ख़ु़दाया (ऐ ख़ुदा) हमें ज़ालिमों के फि़त्नों (ज़्ाुल्म-ज़्यादती) और आज़माईश (इम्तिहान) का मरकज़ न क़रार देना 
10 86 और अपनी रहमत के ज़रिये काफि़र क़ौम के शर (बुराई) से महफ़ूज़ (हिफ़ाज़त में) रखना
10 87 और हमने मूसा और इनके भाई की तरफ़ वही (अल्लाह का पैग़ाम) की कि अपनी क़ौम के लिए मिस्र में घर बनाओ और अपने घरों को नमाज़ पढ़ने की जगह (कि़बला, मस्जिदें) क़रार दो और नमाज़ क़ायम करो और मोमिनीन को बशारत (ख़ुशख़बरी) दे दो 
10 88 और मूसा ने कहा कि परवरदिगार तूने फि़रऔन और उसके साथियों को जि़न्दगानी दुनिया में अमवाल (माल व दौलत) अता किये हैं। ख़ु़दाया ये तेरे रास्ते से बहकायेंगे। ख़ु़दाया इनके अमवाल (माल व दौलत) को बर्बाद कर दे। इनके दिलों पर सख़्ती नाजि़ल फ़रमा ये उस वक़्त तक ईमान न लायेंगे जब तक अपनी आँखों से दर्दनाक अज़ाब न देख लें 
10 89 परवरदिगार ने फ़रमाया कि तुम दोनों की दुआ कु़बूल कर ली गई तो अब अपने रास्ते पर क़ायम रहना और जाहिलों के रास्ते का इत्तेबा (पैरवी) न करना
10 90 और हमने बनी इसराईल (मूसा की क़ौम) को दरिया पार करा दिया तो फि़रऔन और उसके लश्कर ने अज़ राहे ज़्ाुल्म व ताद्दी (सरकशी व शरारत की वजह से) इनका पीछा किया यहां तक कि जब ग़रक़ाबी (पानी में डूबने लगा) ने उसे पकड़ लिया तो उसने आवाज़ दी कि मैं उस ख़ु़दाए वहदहू ला शरीक पर ईमान ले आया हूँ जिस पर बनी इसराईल (मूसा की क़ौम) ईमान लाये हैं और मैं ईताअत गुज़ारों में हूँ 
10 91 तो आवाज़ आयी-कि अब जबकि तू पहले नाफ़रमानी कर चुका है और तेरा शुमार (तुम्हारी गिनती) मुफ़स्सिदों (फ़साद करने वाले) में हो चुका है 
10 92 ख़ैर-आज हम तेरे बदन को बचा लेते हैं ताकि तू अपने बाद वालों के लिए निशानी बन जाये अगर चे बहुत से लोग हमारी निशानियों से ग़ाफि़ल (भूले हुए) ही रहते हैं 
10 93 और हमने बनी इसराईल (मूसा की क़ौम) को बेहतरीन मंजि़ल अता की है और उन्हंे पाकीज़ा रिज़्क़ अता किया है तो इन लोगों ने आपस में एख़तेलाफ़ (मुख़ालिफ़त) नहीं किया यहां तक कि इनके पास तौरेत आ गई तो अब ख़ु़दा इनके दरम्यान रोज़े क़यामत (क़यामत के दिन) इनके एख़तेलाफ़ात (मुखालेफ़तों) का फ़ैसला कर देगा 
10 94 अब अगर तुमको इसमें शक है जो हमने नाजि़ल किया है तो उन लोगों से पूछो जो इसके पहले किताबे तौरेत व इन्जील पढ़ते रहे हैं यक़ीनन तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से हक़ आ चुका है तो अब तुम शक करने वालों में शामिल न हो 
10 95 और उन लोगों में न हो जाओ जिन्हांेने आयाते इलाहिया (अल्लाह की निशानियों) की तकज़ीब (झुठलाया) की है कि इस तरह ख़सारा (घाटा) वालों में शुमार (शामिल) हो जाओगे 
10 96 बेशक जिन लोगों पर कलमा-ए-अज़ाबे इलाही साबित हो चुका है वह हर्गिज़ (किसी भी तरह से) ईमान लाने वाले नहीं है 
10 97 चाहे इनके पास तमाम निशानियाँ क्यों न आ जायें जब तक अपनी आँखों से दर्दनाक अज़ाब न देख लेंगे 
10 98 पस (तो फि़र) कोई बस्ती ऐसी क्यों नहीं है जो ईमान ले आये और उसका ईमान उसे फ़ायदा पहुँचाये अलावा क़ौमे यूनुस (यूनुस की क़ौम) के कि जब वह ईमान ले आये तो हमने उनसे जि़न्दगानी दुनिया (दुनियावी जि़न्दगी) में रूस्वाई (जि़ल्लत) का अज़ाब दिफ़ा (ख़त्म) कर दिया और उन्हें एक मुद्दत (तय वक़्त) तक चैन से रहने दिया
10 99 और अगर ख़ु़दा चाहता तो रूए ज़मीन पर रहने वाले सब ईमान ले आते। तो क्या आप लोगों पर जब्र (ज़बरदस्ती) करेंगे कि सब मोमिन (ईमान वाले) बन जायें 
10 100 और किसी नफ़्स (जान) के इमकान (बस) में नहीं है कि बग़ैर इजाज़त व तौफ़ीक़ परवरदिगार (अल्लाह की दी हुई तौफ़ीक़) के ईमान ले आये और वह उन लोगों पर ख़बासत (गन्दगी) को लाजि़म (ज़रूरी) क़रार दे देता है जो अक़्ल इस्तेमाल नहीं करते हैं 
10 101 पैग़म्बर आप कह दीजिए कि ज़रा आसमान व ज़मीन में ग़ौर व फि़क्र करो-और याद रखिये कि जो ईमान लाने वाले नहीं है उनके हक़ में निशानियाँ और डरावे कुछ काम आने वाले नहीं है 
10 102 अब क्या ये लोग उन्हीं बुरे दिनों का इन्तिज़ार कर रहे हैं जो इनसे पहले वालों पर गुज़र चुके हैं तो कह दीजिए कि फिर इन्तिज़ार करो मैं भी तुम्हारे साथ इन्तिज़ार करने वालों में हूँ 
10 103 इसके बाद हम अपने रसूलों और ईमान वालों को निजात देते हैं और ये हमारे ऊपर एक हक़ है कि हम साहेबाने ईमान को निजात दिलायें 
10 104 पैग़म्बर आप कह दीजिए कि अगर तुम लोगों को मेरे दीन में शक है तो मैं उनकी परसतिश (पूजा) नहीं कर सकता जिन्हें तुम लोग ख़ु़दा को छोड़कर पूज रहे हो। मैं तो सिर्फ़ उस ख़ु़दा की इबादत करता हूँ जो तुम सबको मौत देने वाला है और मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं साहेबाने ईमान (ईमान वालों) में शामिल रहूँ 
10 105 और आप अपना रूख़ बिल्कुल दीन की तरफ़ रखें। बातिल से अलग रहें और हर्गिज़ मुशरेकीन (शिर्क करने वालों) की जमाअत (गिरोह) में शुमार (शामिल) न हों 
10 106 और ख़ु़दा के अलावा किसी ऐसे को आवाज़ न दें जो न फ़ायदा पहुंचा सकता है और न नुक़सान वरना ऐसा करेंगे तो आपका शुमार भी ज़ालेमीन (ज़्ाुल्म करने वालों) मंे हो जायेगा 
10 107 और अगर ख़ु़दा नुक़सान पहुँचाना चाहे तो उसके अलावा कोई बचाने वाला नहीं है और अगर वह भलाई का इरादा कर ले तो उसके फ़ज़्ल का कोई रोकने वाला नहीं है। वह जिसको चाहता है अपने बन्दों में भलाई अता करता है वह बड़ा बख़्शने वाला और मेहरबान है 
10 108 पैग़म्बर आप कह दीजिए कि तुम्हारे पास परवरदिगार की तरफ़ से हक़ (सच) आ चुका है अब जो हिदायत हासिल करेगा वह अपने फ़ायदे के लिए करेगा और जो गुमराह (बहकने वाला) हो जायेगा उसका नुक़सान भी उसी को होगा और मैं तुम्हारा जि़म्मेदार नहीं हूँ 
10 109 और आप सिर्फ़ इस बात का इत्तेबा (पैरवी) करें जिसकी तरफ़ वही (ख़ुदा का हुक्म) की जाती है और सब्र करते रहें यहां तक कि ख़ु़दा कोई फ़ैसला कर दे और वह बेहतरीन (सबसे अच्छा) फ़ैसला करने वाला है 

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