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सूरा-ए-सबा |
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अज़ीम और दाएमी (हमेशा
बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू। |
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1 |
सारी तारीफ़ उस अल्लाह
के लिए है जिसके इखि़्तयार में आसमान और ज़मीन की तमाम चीज़ें हैं और उसी के लिए
आखि़रत में भी हम्द (तारीफ़) है और वही साहेबे हिकमत (अक़्ल, दानाई वाला) और हर
बात की ख़बर रखने वाला है |
34 |
2 |
वह जानता है कि ज़मीन
में क्या चीज़ दाखि़ल होती है और क्या चीज़ इससे निकलती है और क्या चीज़ आसमान
से नाजि़ल होती है और क्या इसमें बलन्द होती है और वह मेहरबान और बख़्शने (माफ़
करने) वाला है |
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3 |
और कुफ़्फ़ार (ख़ुदा
या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) कहते हैं कि क़यामत आने वाली नहीं है तो आप
कह दीजिए कि मेरे परवरदिगार (पालने वाले) की क़सम वह ज़रूर आयेगी। वह आलिमुल
ग़ैब (ग़ैब का जानने वाला) है उसके इल्म से आसमान व ज़मीन का कोई ज़र्रा दूर
नहीं है और न उससे छोटा और न बड़ा बल्कि सब कुछ उसकी रौशन किताब में महफ़ूज़
(हिफ़ाज़त के साथ) है |
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4 |
ताकि वह ईमान लाने
वाले और नेक (अच्छे) आमाल (काम) अंजाम देने वालों को जज़ा (सिला) दे कि उनके लिए
मग़फि़रत (गुनाहों की माफ़ी) और बा इज़्ज़त रिज़्क़ है |
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5 |
और जिन लोगों ने हमारी
आयतों के मुक़ाबले में दौड़ धूप की उनके लिए दर्दनाक (दर्द देने वाला) सज़ा का
अज़ाब मुअय्यन (तय किया हुआ, तैयार) है |
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6 |
और जिन लोगों को इल्म
दिया गया है वह जानते हैं कि जो कुछ आपकी तरफ़ परवरदिगार (पालने वाले) की तरफ़
से नाजि़ल किया गया है सब बिल्कुल हक़ है और ख़ुदाए ग़ालिब व क़ाबिले हम्द
(तारीफ़) व सना की तरफ़ हिदायत करने वाला है |
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7 |
और जिन लोगों ने
कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) इखि़्तयार किया उनका
कहना है कि हम तुम्हें ऐसे आदमी का पता बतायें जो ये ख़बर देता है कि जब तुम
मरने के बाद टुकड़े-टुकड़े हो जाओगे तो तुम्हें नई खि़ल्क़त के भेस में लाया
जायेगा |
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8 |
उसने अल्लाह पर झूठा
इल्ज़ाम बांधा है या उसमें जुनून पाया जाता है नहीं, बल्कि जो लोग आखि़रत पर
ईमान नहीं रखते वह अज़ाब और गुमराही में मुब्तिला हैं |
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9 |
क्या उन्होंने आसमान व
ज़मीन में अपने सामने और पसे पुश्त (पीछे) की चीज़ों को नहीं देखा है कि हम
चाहें तो उन्हें ज़मीन में धंसा दें या उनके ऊपर आसमान को टुकड़े-टुकड़े करके
गिरा दें। इसमें हर रूजुअ करने वाले बन्दे के लिए कु़दरत की निशानी पायी जाती है |
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10 |
और हमने दाऊद को ये
फ़ज़्ल अता किया कि पहाड़ों तुम उनके साथ तसबीहे परवरदिगार किया करो और परिन्दों
को मुसख्ख़र (ताबेअ, इखि़्तयार में) कर दिया और लोहे को नरम कर दिया |
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11 |
कि तुम कुशादा (चैड़ी)
और मुकम्मल जि़रहें बनाओ और कडि़यों के जोड़ने में अंदाज़े का ख़्याल रखो और तुम
लोग सब नेक (अच्छा) अमल करो कि मैं तुम सबके आमाल (कामों) का देखने वाला हूँ |
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12 |
और हमने सुलेमान
(अलैहिस्सलाम) के साथ हवाओं को मुसख्ख़र (ताबेअ, इखि़्तयार में) कर दिया कि उनकी
सुबह की रफ़्तार (मंजि़ल) एक माह की मुसाफ़त (तय की जाने वाली राह) थी और शाम की
रफ़्तार (मंजि़ल) भी एक माह (में तय की जाने वाली राह) के बराबर थी और हमने उनके
लिए ताँबे का चश्मा (पानी निकलने की जगह) जारी कर दिया और जिन्नात में ऐसे
अफ़राद (लोग) बना दिये जो ख़ुदा की इजाज़त से उनके सामने काम करते थे और जिसने
हमारे हुक्म से इनहिराफ़ (फिर जाना, मुड़ना) किया हम उसे आतिशे जहन्नुम (जहन्नम
की आग) का मज़ा चखायेंगे |
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13 |
ये जिन्नात सुलेमान के
लिए जो वह चाहते थे बना देते थे जैसे मेहराबें, तस्वीरें और हौज़ों के बराबर
प्याले और बड़ी-बड़ी ज़मीन में गड़ी हुई देगें। आले दाऊद शुक्र अदा करो और हमारे
बन्दों में शुक्र गुज़ार (शुक्र अदा करने वाले) बन्दे बहुत कम हैं |
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14 |
फिर जब हमने उनकी मौत
का फ़ैसला कर दिया तो उनकी मौत की ख़बर भी जिन्नात को किसी ने न बतायी सिवाए
दीमक के जो उनके असा को खा रही थी और वह ख़ाक पर गिरे तो जिन्नात को मालूम हुआ
कि अगर वह गै़ब के जानने वाले होते तो इस ज़लील करने वाले अज़ाब में मुब्तिला न
रहते |
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15 |
और क़ौमे सबा के लिए
उनके वतन ही में हमारी निशानी थी कि दाहिने बायें दोनों तरफ़ बाग़ात थे। तुम लोग
अपने परवरदिगार (पालने वाले) का दिया रिज़्क़ खाओ और उसका शुक्र अदा करो
तुम्हारे लिए पाकीज़ा (साफ़-सुथरा) शहर और बख़्शने (माफ़ करने) वाला परवरदिगार
(पालने वाला) है |
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16 |
मगर इन लोगों ने
इनहेराफ़ (मुंह फेरा) किया तो हमने इन पर बड़े ज़ोरों का सैलाब भेज दिया और इनके
दोनों बाग़ात को ऐसे दो बाग़ात में तब्दील (बदल) कर दिया जिनके फल बे मज़ा थे और
इनमें झाऊ के दरख़्त (पेड़) और कुछ बेरियाँ भी थीं |
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17 |
ये हमने उनकी नाशुक्री
की सज़ा दी है और हम नाशुक्रों के अलावा किसको सज़ा देते हैं |
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18 |
और जब हमने इनके और इन
बस्तियों के दरम्यान (बीच में) जिनमें हमने बरकतें रखी हैं कुछ नुमायाँ बस्तियाँ
क़रार दीं और इनके दरम्यान (बीच में) सैर को मुअय्यन (तय) कर दिया कि अब दिन व
रात जब चाहो सफ़र करो महफ़ूज़ (हिफ़ाज़त के साथ) रहोगे |
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19 |
तो उन्होंने इस पर भी
ये कहा कि परवरदिगार (पालने वाले) हमारे सफ़र दूर दराज़ बना दे और इस तरह अपने
नफ़्स (जान) पर ज़्ाुल्म किया तो हमने उन्हें कहानी बनाकर छोड़ दिया और उन्हें
टुकड़े-टुकड़े कर दिया कि यक़ीनन इसमें सब्र व शुक्र करने वालों के लिए बड़ी
निशानियाँ पायी जाती हैं |
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20 |
और इन पर इबलीस
(शैतान) ने अपने गुमान (ख़याल) को सच्चा कर दिखाया तो मोमिनीन के एक गिरोह को
छोड़कर सबने उसका इत्तेबा (कहने पर अमल) कर लिया |
34 |
21 |
और शैतान को उन पर
इखि़्तयार हासिल न होता मगर हम ये जानना चाहते हैं कौन आखि़रत पर ईमान रखता है
और कौन उसकी तरफ़ से शक में मुब्तिला (शामिल) है और आपका परवरदिगार (पालने वाला)
हर शै का निगरान है |
34 |
22 |
आप कह दीजिए कि तुम
लोग उन्हें पुकारो जिनका अल्लाह को छोड़कर तुम्हें ख़्याल था तो देखोगे कि ये
आसमान व ज़मीन में एक ज़र्रा बराबर इखि़्तयार नहीं रखते हैं और न उनका आसमान व
ज़मीन में कोई हिस्सा है और न इनमें से कोई उन लोगांे का पुश्त पनाह (मदद करने
वाला, सहारा देने वाला) है |
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23 |
उसके यहां किसी की
सिफ़ारिश भी काम आने वाली नहीं है मगर वह जिसको वह ख़ुद इजाज़त दे दे यहां तक कि
जब उनके दिलों की हैबत दूर कर दी जायेगी तो पूछेंगे कि तुम्हारे परवरदिगार
(पालने वाले) ने क्या कहा है तो वह जवाब देंगे कि जो कुछ कहा है हक़ (सच) कहा है
और वह बलन्द व बाला (बड़ाई वाला) और
बुजु़र्ग व बरतर है |
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24 |
आप कहिये कि तुम्हें
आसमान व ज़मीन से रोज़ी कौन देता है और फिर बताईये कि अल्लाह, और कहिये कि हम या
तुम हिदायत पर हैं या खुली हुई गुमराही में है |
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25 |
उन्हें बताईये कि हम
जो ख़ता करेंगे उसके बारे में तुमसे सवाल न किया जायेगा और तुम जो कुछ करोगे
उसके बारे में हमसे सवाल न होगा |
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26 |
कहिये कि एक दिन ख़ुदा
हम सबको जमा करेगा और फिर हमारे दरम्यान (बीच में) हक़ के साथ फ़ैसला करेगा और
वह बेहतरीन (सबसे अच्छा) फ़ैसला करने वाला है और जानने वाला है |
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27 |
उनसे कहिये कि ज़रा उन
शोरकाअ (जिनको ख़ुदा के साथ शरीक करते थे) को दिखलाओ जिनको ख़ुदा से मिला दिया
है। ये हर्गिज़ (बिल्कुल) नहीं दिखा सकेंगे बल्कि ख़ुदा सिर्फ़ ख़ुदाए अज़ीज़ व
हकीम है |
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28 |
और पैग़म्बर हमने आपको
तमाम लोगों के लिए सिर्फ़ बशीर (ख़ुशख़बरी देने वाला) व नज़ीर (डराने वाला)
बनाकर भेजा है ये और बात है कि अकसर (ज़्यादातर) लोग इस हक़ीक़त से बा ख़बर नहीं
है |
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29 |
और कहते हैं कि अगर
तुम सच्चे हो तो ये वादा-ए-क़यामत कब पूरा होगा |
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30 |
कह दीजिए कि तुम्हारे
लिए एक दिन का वादा मुक़र्रर (तय किये हुए) है जिससे एक साअत (लम्हा) पीछे हट
सकते हो और न आगे बढ़ सकते हो |
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31 |
और कुफ़्फ़ार (ख़ुदा
या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) ये कहते हैं कि हम न इस कु़रआन पर ईमान
लायेंगे और न इससे पहले वाली किताबों पर तो काश आप देखते जब इन ज़ालिमों को
परवरदिगार (पालने वाले) के हुज़्ाूर खड़ा किया जायेगा और हर एक बात को दूसरे की
तरफ़ पलटायेगा और जिन लोगों को कमज़ोर समझ लिया गया है वह ऊंचे बन जाने वालों से
कहंेगे के अगर तुम दरम्यान (बीच में) में न आ गये होते तो हम साहेबे ईमान हो गये
होते |
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तो बड़े लोग कमज़ोर
लोगों से कहेंगे कि क्या हमने तुम्हें हिदायत के आने के बाद इसके कु़बूल करने से
रोका था हर्गिज़ (बिल्कुल) नहीं तुम खु़द मुजरिम (जुर्म करने वाला) थे |
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और कमज़ोर लोग बड़े
लोगों से कहंेगे कि ये तुम्हारी दिन रात की मक्कारी का असर है जब तुम हमें हुक्म
देते थे कि ख़ुदा का इन्कार करें और उसके लिए मिस्ल क़रार दें और अज़ाब देखने के
बाद ये लोग अपने दिल ही दिल में शर्मिन्दा भी होंगे और हम कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके
हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) इखि़्तयार करने वालों की गर्दन में तौक़ भी डाल
देंगे क्या उनको इसके अलावा कोई बदल दिया जायेगा जो आमाल (कामों) ये करते रहे
हैं |
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34 |
और हमने किसी बस्ती
में कोई डराने वाला नहीं भेजा मगर ये कि इसके बड़े लोगों ने ये कह दिया कि हम
तुम्हारे पैग़ाम का इन्कार करने वाले हैं |
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और ये भी कह दिया कि
हम अमवाल (माल-दौलत) और औलाद के एतबार से तुमसे बेहतर (ज़्यादा अच्छे) हैं और हम
पर अज़ाब होने वाला नहीं है |
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आप कह दीजिए कि मेरा
परवरदिगार (पालने वाला) जिसके रिज़्क़ में चाहता है कमी या ज़्यादती कर देता है
लेकिन अकसर लोग नहीं जानते हैं |
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और तुम्हारे अमवाल
(माल-दौलत) और औलाद में कोई ऐसा नहीं है जो तुम्हें हमारी बारगाह में क़रीब बना
सके अलावा उनके जो ईमान लाये और इन्होंने नेक (अच्छा) आमाल (काम) किये तो उनके
लिए उनके आमाल (कामों) का दोहरा बदला दिया जायेगा और वह झरोकों में अम्न (सुकून)
व अमान (हिफ़ाज़त) के साथ बैठे होंगे |
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और जो लोग हमारी
निशानियों के मुक़ाबले में दौड़ धूप कर रहे हैं वह जहन्नुम के अज़ाब में झोंक
दिये जायेंगे |
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बेशक हमारा परवरदिगार
(पालने वाला) अपने बन्दों में जिसके रिज़्क़ में चाहता है वुसअत (फैलाव, बरकत)
पैदा करता है और जिसके रिज़्क़ में चाहता है तंगी (कमी) पैदा करता है और जो कुछ
उसकी राह में ख़र्च करोगे वह उसका बदला बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) अता
करेगा और वह बेहतरीन (सबसे अच्छा) रिज़्क़ देने वाला है |
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और जिस दिन ख़ुदा सबको
जमा करेगा और फिर मलायका (फ़रिश्तों) से कहेगा कि क्या ये लोग तुम्हारी ही इबादत
करते थे |
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41 |
तो वह अजऱ् करेंगे कि
तू पाक व बेनियाज़ (जिसे कोई/किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं) और हमारा वली (सरपरस्त)
है ये हमारे कुछ नहीं है और यह जिन्नात की इबादत करते थे और उनकी अकसरियत
(ज़्यादातर लोग) उन्हीं पर ईमान रखती थी |
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फिर आज कोई किसी के
नफ़ा (फ़ायदे) और नुक़सान का मालिक नहीं होगा और हम जु़ल्म करने वालों से कहेंगे
कि इस जहन्नम के अज़ाब का मज़ा चखो जिसकी तकज़ीब (झुठलाना) किया करते थे |
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और जब उनके सामने
हमारी रौशन आयतों की तिलावत की जाती है तो कहते हैं कि ये शख़्स सिर्फ़ यह चाहता
है कि तुम्हें उन सब से रोक दे जिनकी तुम्हारे आबा व अज्दाद (बाप-दादा, पूर्वज)
परस्तिश किया करते थे और ये सिर्फ़ गढ़ी (बनाई) हुई दास्तान (कहानी) है और
कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) तो जब भी उनके सामने हक़
आता है यही कहते हैं कि ये एक खुला हुआ जादू है |
34 |
44 |
और हमने उन्हें ऐसी
किताबें नहीं अता की है जिन्हें ये पढ़ते हों और न उनकी तरफ़ आप से पहले कोई
डराने वाला भेजा है |
34 |
45 |
और उनके पहले वालों ने
भी अम्बिया (अलैहिस्सलाम) की तकज़ीब (झुठलाना) की है हालांकि उनके पास उसका
दसवां हिस्सा भी नहीं है जितना हमने उन लोगों को अता किया था मगर उन्होंने भी
रसूलों की तकज़ीब (झुठलाना) की तो तुमने देखा कि हमारा अज़ाब कितना भयानक
(डरावना) था |
34 |
46 |
पैग़म्बर आप कह दीजिए
कि मैं तुम्हें सिर्फ़ इस बात की नसीहत (अच्छी बातों का बयान) करता हूँ कि
अल्लाह के लिए एक-एक दो-दो करके उठो और फिर ये ग़ौर करो कि तुम्हारे साथी में
किसी तरह का जुनून नहीं है। वह सिर्फ़ आने वाले शदीद (सख़्त) अज़ाब के पेश आने
से पहले तुम्हारा डराने वाला है |
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47 |
कह दीजिए कि मैं जो
अज्र मांग रहा हूँ वह भी तुम्हारे ही लिए है मेरा हक़ीक़ी अज्र तो परवरदिगार
(पालने वाले) के जि़म्मे है और वह हर शै का गवाह है |
34 |
48 |
कह दीजिए कि मेरा
परवरदिगार (पालने वाला) हक़ को बराबर दिल में डालता रहता है और वह बराबर ग़ैब का
जानने वाला है |
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49 |
आप कह दीजिए कि हक़ आ
गया है और बातिल न कुछ ईजाद (नया बनाना) कर सकता है और न दोबारा पलटा सकता है |
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50 |
कह दीजिए कि मैं अगर
गुमराह हूँगा तो इसका असर मेरे ही ऊपर होगा और हिदायत हासिल कर लूँगा तो ये मेरे
रब की वही का नतीजा होगा वह सब की सुनने वाला और सबसे क़रीबतर (ज़्यादा क़रीब)
है |
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51 |
और काश आप देखिये कि
ये घबराये हुए होंगे और बच न सकेंगे और बहुत क़रीब से पकड़ लिये जायेंगे |
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52 |
और वह कहेंगे कि हम
ईमान ले आये हालांकि इतनी दूर-दराज़ जगह से ईमान तक दस्तरस (हाथ की पहुंच) कहां
मुमकिन है |
34 |
53 |
और ये पहले इन्कार कर
चुके हैं और अज़गै़ब (अटकल-पच्चू) बातें बहुत दूर तक चलाते रहे हैं |
34 |
54 |
और अब तो इनके और उन
चीज़ों के दरम्यान (बीच में) जिनकी ये ख़्वाहिश रखते हैं पर्दे हायल (रूकावट) कर
दिये गये हैं जिस तरह उनके पहले वालों के साथ किया गया था कि वह लोग भी बड़े
बेचैन करने वाले शक में पड़े हुए थे |
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