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सूरा-ए-एहज़ाब |
33 |
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अज़ीम और दाएमी (हमेशा
बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू। |
33 |
1 |
ऐ पैग़म्बर ख़ुदा से
डरते रहिए और ख़बरदार काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का
इन्कार करने वाले) और मुनाफि़क़ों की इताअत (कहने पर अमल) न कीजिएगा यक़ीनन
अल्लाह हर शै का जानने वाला और साहेबे हिकमत (अक़्ल, दानाई वाला) है |
33 |
2 |
और जो कुछ आपके
परवरदिगार (पालने वाले) की तरफ़ से वही (इलाही पैग़ाम) की जाती है उसी का
इत्तेबा (पैरवी) करते रहें कि अल्लाह तुम लोगों के आमाल (कामों) से खू़ब बा ख़बर
है |
33 |
3 |
और अपने ख़ुदा पर
एतमाद (भरोसा) कीजिए कि वह निगरानी के लिए बहुत काफ़ी है |
33 |
4 |
और अल्लाह ने किसी
मर्द के सीने में दो दिल नहीं क़रार दिये हैं और तुम्हारी वह बीवियां जिनसे तुम
इज़हार करते हो उन्हें तुम्हारी वाक़ई माँ नहीं क़रार दिया है और न तुम्हारी
मुँह बोली औलाद को औलाद क़रार दिया है ये सब तुम्हारी ज़बानी बातें हैं और
अल्लाह तो सिर्फ़ हक़ की बात कहता है और सीधे रास्ते की तरफ़ हिदायत करता है |
33 |
5 |
इन बच्चों को इनके बाप
के नाम से पुकारो कि यही ख़ुदा की नज़र में इन्साफ़ से क़रीबतर है और अगर इनके
बाप को नहीं जानते हो तो ये दीन में तुम्हारे भाई और दोस्त हैं और तुम्हारे लिए
इस बात में कोई हर्ज नहीं है जो तुम से ग़ल्ती हो गई है अलबत्ता तुम इस बात के
ज़रूर जि़म्मेदार हो जो तुम्हारे दिलों ने क़स्दन (इरादे के साथ) अंजाम दी है और
अल्लाह बहुत बख़्शने (माफ़ करने) वाला और मेहरबान है |
33 |
6 |
बेशक नबी तमाम मोमिनीन
से उनके नफ़्स (जान) की बनिस्बत (मुक़ाबल में) ज़्यादा औला (बरतर, हक़दार) है और
उनकी बीवियां उन सबकी माँयें हैं और मोमिनीन व मुहाजरीन में से क़राबतदार एक
दूसरे से ज़्यादा उलूवियत और कु़र्बत (नज़दीकी) रखते हैं मगर ये कि तुम अपने
दोस्तों के साथ नेक (अच्छा) बरताव करना चाहो तो कोई बात नहीं है ये बात किताबे
ख़ुदा में लिखी हुई मौजूद है |
33 |
7 |
और उस वक़्त को याद
कीजिए जब हमने तमाम अम्बिया (अलैहिस्सलाम) से और बिल्ख़ु़सूस (ख़ासकर) आपसे और
नूह (अलैहिस्सलाम), इब्राहीम (अलैहिस्सलाम), मूसा (अलैहिस्सलाम) और ईसा
(अलैहिस्सलाम) बिन मरियम से अहद (वादा) लिया और सबसे बहुत सख़्त क़सम का अहद
(वादा) लिया |
33 |
8 |
ताकि सादेक़ीन
(सच्चों) से उनकी सदाक़ते तब्लीग़ (तब्लीग़ की सच्चाई) के बारे में सवाल किया
जाये और ख़ुदा ने काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार
करने वाले) के लिए बड़ा दर्दनाक (दर्द देने वाला) अज़ाब मुहैय्या कर रखा है |
33 |
9 |
ईमान वालों! उस वक़्त
अल्लाह की नेअमत को याद करो जब कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार
करना) के लश्कर तुम्हारे सामने आ गये और हमने इनके खि़लाफ़ तुम्हारी मदद के लिए
तेज़ हवा और ऐसे लश्कर भेज दिये जिनको तुमने देखा भी नहीं था और अल्लाह तुम्हारे
आमाल (कामों) को ख़ू़ब देखने वाला है |
33 |
10 |
उस वक़्त जब कुफ़्फ़ार
(ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) तुम्हारे ऊपर की तरफ़ से और नीचे की
सिम्त (तरफ़) से आ गये और दहशत (डर) से निगाहें ख़ैरा (चुंधियाना) करने लगीं और
कलेजे मुँह को आने लगे और तुम ख़ुदा के बारे में तरह तरह के ख़यालात में
मुब्तिला हो गये |
33 |
11 |
उस वक़्त मोमिनीन का
बाक़ायदा (क़ायदे के हिसाब से, ठीक तरह से) इम्तिहान लिया गया और उन्हें शदीद
(तेज़, सख़्त) कि़स्म के झटके दिये गये |
33 |
12 |
और जब मुनाफ़ेक़ीन (जो
दिल में निफ़ाक़ और अल्लाह से दुश्मनी लिये रहते हैं) और जिनके दिलों में मजऱ्
था ये कह रहे थे कि ख़ुदा व रसूल ने हमसे सिर्फ़ धोका देने वाला वादा किया है |
33 |
13 |
और जब इनके एक गिरोह
ने कह दिया कि मदीने वालों यहां ठिकाना नहीं है लेहाज़ा (इसलिये) वापस भाग चलो
और इनमें से एक गिरोह नबी से इजाज़त मांग रहा था कि हमारे घर ख़ाली पड़े हुए हैं
हालांकि वह घर ख़ाली नहीं थे बल्कि ये लोग सिर्फ़ भागने का इरादा कर रहे थे |
33 |
14 |
हालांकि अगर इन पर
चारों तरफ़ से लश्कर दाखि़ल कर दिये जाते और फिर इनसे फि़त्ने (लड़ाई-झगडे़) का
सवाल किया जाता तो फ़ौरन हाजि़र हो जाते और थोड़ी देर से ज़्यादा न ठहरते |
33 |
15 |
और इन लोगों ने अल्लाह
से यक़ीनी अहद (वादा) किया था कि हर्गिज़ (किसी भी तरह) पीठ नहीं फिरायेंगे
(भागेंगे नहीं) और अल्लाह के अहद (वादा) के बारे में बहरहाल (हर तरह से, हर हाल
में) सवाल किया जायेगा |
33 |
16 |
आप कह दीजिए कि अगर
तुम क़त्ल या मौत के ख़ौफ़ (डर) से भागना भी चाहो तो फ़रार (भागना) काम आने वाला
नहीं है और दुनिया में थोड़ा ही आराम कर सकोगे |
33 |
17 |
कह दीजिए कि अगर ख़ुदा
बुराई का इरादा कर ले या भलाई ही करना चाहे तो तुम्हें उससे कौन बचा सकता है और
ये लोग उसके अलावा न कोई सरपरस्त पा सकते हैं और न मददगार |
33 |
18 |
ख़ुदा उन लोगों को भी
खू़ब जानता है जो जंग से रोकने वाले हैं और अपने भाईयों से ये कहने वाले हैं कि
हमारी तरफ़ आ जाओ और ये ख़ु़द मैदाने जंग में बहुत कम आते हैं |
33 |
19 |
ये तुमसे जान चुराते
हैं और जब ख़ौफ़ (डर) सामने आ जायेगा तो आप देखेंगे कि आपकी तरफ़ इस तरह देखेंगे
कि जैसे इनकी आँखे यूँ फिर रही हैं जैसे मौत की ग़शी (बेहोशी) तारी हो और जब
ख़ौफ़ (डर) चला जायेगा तो आप पर तेज़ तरीन ज़बानों के साथ हमला करेंगे और उन्हें
माले ग़नीमत (वह माल जो जंग में हासिल हो) की हिर्स होगी ये लोग शुरू ही से ईमान
नहीं लाये हैं लेहाज़ा (इसलिये) ख़ुदा ने इनके आमाल (कामों) को बर्बाद (अकारत)
कर दिया है और ख़ुदा के लिए ये काम बड़ा आसान है |
33 |
20 |
ये लोग अभी तक इस
ख़्याल में है कि कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) के लश्कर
गये नहीं है और अगर दोबारा लश्कर आ जाये तो यह यही चाहेंगे कि ऐ काश देहातियों
के साथ सहराओं (रेगिस्तानों) में आबाद हो गये होते और वहां से तुम्हारी ख़बरें
दरयाफ़्त (मालूम) करते रहते और अगर तुम्हारे साथ रहते भी तो बहुत कम ही जेहाद
करते |
33 |
21 |
मुसलमानों! तुम में से
उसके लिए रसूल की जि़न्दगी में बेहतरीन (सबसे अच्छा) नमूनए अमल है जो शख़्स भी
अल्लाह और आखि़रत से उम्मीदें वाबस्ता (जोड़ना) किये हुए है और अल्लाह को बहुत
ज़्यादा याद करता है |
33 |
22 |
और साहेबाने ईमान का
ये आलम है कि जब उन्होंने कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार
करना) के लश्करों को देखा तो पुकार उठे कि ये वही बात है जिसका ख़ुदा और रसूल ने
वादा किया था और ख़ुदा व रसूल का वादा बिल्कुल सच्चा है और इस हुजूम (भीड़) ने
इनके ईमान और जज़्बा तस्लीम (फ़ारमाबरदारी) में मज़ीद (और ज़्यादा) इज़ाफ़ा
(बढ़ावा) कर दिया |
33 |
23 |
मोमिनीन में ऐसे भी
मर्दे मैदान हैं जिन्होंने अल्लाह से किये वादे को सच कर दिखाया है इनमें बाज़
(कुछ) अपना वक़्त पूरा कर चुके हैं और बाज़ (कुछ) अपने वक़्त का इन्तिज़ार कर
रहे हैं और इन लोगों ने अपनी बात में कोई तब्दीली (बदलाव) नहीं पैदा की है |
33 |
24 |
ताकि ख़ुदा सादेक़ीन
(सच्चों) को उनकी सदाक़त (सच्चाई) का बदला दे और मुनाफ़ेक़ीन (जो दिल में
निफ़ाक़ और अल्लाह से दुश्मनी लिये रहते हैं) को चाहे तो उन पर अज़ाब नाजि़ल करे
या उनकी तौबा (गुनाह माफ़ करने की दुआ) क़ुबूल कर ले कि अल्लाह यक़ीनन बहुत
बख़्शने (माफ़ करने) वाला और मेहरबान है |
33 |
25 |
और ख़ुदा ने कुफ़्फ़ार
(ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) को उनके ग़्ाु़स्से समेत वापस कर
दिया कि वह कोई फ़ायदा हासिल न कर सके और अल्लाह ने मोमिनीन को जंग से बचा लिया
और अल्लाह बड़ी कू़व्वत (ताक़त) वाला और साहेबे इज़्ज़त है |
33 |
26 |
और उसने कुफ़्फ़ार
(ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले)
की पुश्त पनाही (मदद, सहारा) करने वाले अहले किताब को उनके कि़लों से
नीचे उतार दिया और इनके दिलों में ऐसा रोब डाल दिया कि तुम इनमें से कुछ को
क़त्ल कर रहे थे और कुछ को क़ैदी बना रहे थे |
33 |
27 |
और फिर तुम्हें इनकी
ज़मीन, इनके दयार और इनके अमवाल (माल-दौलत) और ज़मीनों का भी वारिस बना दिया
जिनमें तुम ने क़दम भी नहीं रखा था और बेशक अल्लाह हर शै पर क़ादिर (क़ुदरत रखने
वाला) है |
33 |
28 |
पैग़म्बर आप अपनी
बीवियों से कह दीजिए कि अगर तुम लोग जि़न्दगानी दुनिया और इसकी ज़ीनत (आराइश,
सजावट) की तलबग़ार (चाहने वाली) हो तो आओ मैं तुम्हें मताऐ दुनिया (दुनियवी
सामान) देकर खू़बसूरती के साथ रूख़्सत कर दूँ |
33 |
29 |
और अगर अल्लाह और रसूल
और आखि़रत की तलबग़ार हो तो ख़ुदा ने तुम में से नेक (अच्छा) किरदार औरतों के
लिए बहुत बड़ा अज्र फ़राहिम (का इन्तेज़ाम) कर रखा है |
33 |
30 |
ऐ ज़नान-ए-पैग़म्बर
(पैग़म्बर की बीवियों) जो भी तुम में से खुली हुई बुराई का इरतिकाब करेगी इसका
अज़ाब भी दोहरा कर दिया जायेगा और ये बात ख़ुदा के लिए बहुत आसान है |
33 |
31 |
और जो भी तुम में से
ख़ुदा और रसूल की इताअत (कहने पर अमल) करे और नेक (अच्छा) आमाल (कामों) करे उसे
दोहरा अज्र अता करेंगे और हमने उसके लिए बेहतरीन (सबसे अच्छा) रिज़्क़ फ़राहिम
(का इन्तेज़ाम) किया है |
33 |
32 |
ऐ ज़नान-ए-पैग़म्बर
(पैग़म्बर की बीवियों) तुम अगर तक़्वा (ख़ुदा का ख़ौफ़) इखि़्तयार करो तो
तुम्हारा मर्तबा किसी आम औरत जैसा नहीं है लेहाज़ा (इसलिये) किसी आदमी से लगी
लिपटी बात न करना कि जिसके दिल में बीमारी हो उसे लालच पैदा हो जाये और हमेशा
नेक (अच्छा) बातें किया करो |
33 |
33 |
और अपने घरों में बैठी
रहो और पहली जाहिलियत जैसा बनाओ सिंगार न करो और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात अदा
करो और अल्लाह और उसके रसूल की इताअत (कहने पर अमल) करो। बस अल्लाह का इरादा ये
है ऐ अहलेबैत (अलैहिस्सलाम) कि तुम से हर बुराई को दूर रखे और और इस तरह पाक व
पाकीज़ा (साफ़-सुथरा) रखे जो पाक व पाकीज़ा (साफ़-सुथरा) रखने का हक़ है |
33 |
34 |
और अज़वाजे पैग़म्बर
(पैग़म्बर की बीवियों) तुम्हारे घरों में जिन आयाते इलाही और हिकमत की बातों की
तिलावत की जाती है उन्हें याद रखना कि ख़ुदा बड़ा बारीक बीन (हर छोटी से छोटी शै
का देखने वाला) और हर शै की ख़बर रखने वाला है |
33 |
35 |
बेशक मुसलमान मर्द और
मुसलमान औरतें और मोमिन मर्द और मोमिन औरतें और इताअत (कहने पर अमल) गुज़ार
(करने वाले) मर्द और इताअत (कहने पर अमल) गुज़ार (करने वाली) औरतें और सच्चे
मर्द और सच्ची औरतें और साबिर (सब्र करने वाले) मर्द और साबिर (सब्र करने वाली)
औरतें और फ़रवतनी (आजिज़ी) करने वाले मर्द और फ़रवतनी (आजिज़ी) करने वाली औरतें
और सदक़ा देने वाले मर्द और सदक़ा देने वाली औरतें रोज़ा रखने वाले मर्द और
रोज़ा रखने वाली औरतें और अपनी इफ़्फ़त (पाकीज़गी) की हिफ़ाज़त करने वाले मर्द
और औरतें और ख़ुदा का बकसरत (बहुत ज़्यादा) जि़क्र करने वाले मर्द और औरतें
अल्लाह ने इन सब के लिए मग़फि़रत (गुनाहों की माफ़ी) और अज़ीम अज्र (बड़ा सिला)
मुहैय्या (का इन्तेज़ाम) कर रखा है |
33 |
36 |
और किसी मोमिन मर्द या
औरत को इखि़्तयार नहीं है कि जब ख़ुदा व रसूल किसी अम्र के बारे में फ़ैसला कर
दें तो वह भी अपने अम्र के बारे में साहेबे इखि़्तयार (इखि़्तयार रखने वाला) बन
जाये और जो भी ख़ुदा व रसूल की नाफ़रमानी (हुक्म न मानना) करेगा वह बड़ी खुली
हुई गुमराही में मुब्तिला (शामिल) होगा |
33 |
37 |
और उस वक़्त को याद
करो जब तुम उस शख़्स से जिस पर ख़ुदा ने भी नेअमत नाजि़ल की और तुम ने भी एहसान
किया, ये कह रहे थे कि अपनी ज़ौजा (बीवी) को रोक कर रखो और अल्लाह से डरो और तुम
अपने दिल में उस बात को छुपाए हुए थे जिसे ख़ुदा ज़ाहिर करने वाला था और तुम्हें
लोगों के तानों का ख़ौफ़ (डर) था हालांकि ख़ुदा ज़्यादा हक़दार है कि उससे डरा
जाये, इसके बाद जब जै़द ने अपनी हाजत पूरी कर ली तो हमने उस औरत का अक़्द तुमसे
कर दिया ताकि मोमिनीन के लिए मुँह बोले बेटों की बीवियांे से अक़्द करने में कोई
हर्ज न रहे जब वह लोग अपनी ज़रूरत पूरी कर चुकें और अल्लाह का हुक्म बहरहाल (हर
तरह से, हर हाल में) नाफि़ज़ (लागू)
होकर रहता है |
33 |
38 |
नबी के लिए ख़ुदा के
फ़रायज़ में कोई हर्ज नहीं है ये गुजि़श्ता (पहले वाले) अम्बिया के दौर से
सुन्नते इलाहिया (अल्लाह की सुन्नत) चली आ रही है और अल्लाह का हुक्म सही अंदाज़
के मुताबिक़ मुक़र्रर (तय) किया हुआ होता है |
33 |
39 |
वह लोग अल्लाह के
पैग़ाम को पहंुचाते हैं और दिल में उसका ख़ौफ़ (डर) रखते हैं और उसके अलावा किसी
से नहीं डरते हैं और अल्लाह हिसाब करने के लिए काफ़ी है |
33 |
40 |
मोहम्मद, तुम्हारे
मर्दों में से किसी एक के बाप नहीं है लेकिन वह अल्लाह के रसूल और सिलसिलए
अम्बिया (अलैहिस्सलाम) के ख़ातिम (ख़त्म करने वाले) हैं और अल्लाह हर शै का
ख़ू़ब जानने वाला है |
33 |
41 |
ईमान वालों अल्लाह का
जि़क्र बहुत ज़्यादा किया करो |
33 |
42 |
और सुबह व शाम उसकी
तसबीह (तारीफ़) किया करो |
33 |
43 |
वही वह है जो तुम पर
रहमत नाजि़ल करता है और उसके फ़रिश्ते भी ताकि तुम्हें तारीकियों (अंधेरों,
जेहालत) से निकाल कर नूर (रौशनी, इल्म) की मंजि़ल तक ले आये और वह साहेबाने ईमान
पर बहुत ज़्यादा मेहरबान है |
33 |
44 |
इनकी मदारात
(इस्तेक़बाल) जिस दिन परवरदिगार (पालने वाले) से मुलाक़ात करेंगे सलामती से होगी
और इनके लिए उसने बेहतरीन (सबसे अच्छा) अज्र (सिला) मुहैय्या (का इन्तेज़ाम) कर
रखा है |
33 |
45 |
ऐ पैग़म्बर हमने आपको
गवाह, बशारत (ख़ुशख़बरी) देने वाला, अज़ाबे इलाही से डराने वाला |
33 |
46 |
और ख़ुदा की तरफ़ उसकी
इजाज़त से दावत देने वाला और रौशन चिराग़ बनाकर भेजा है |
33 |
47 |
और मोमिनीन को बशारत
(ख़ुशख़बरी) दे दीजिए कि उनके लिए अल्लाह की तरफ़ से बहुत बड़ा फ़ज़्ल
(मेहरबानी) व करम है |
33 |
48 |
और ख़बरदार कुफ़्फ़ार
(ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) और मुनाफ़ेक़ीन (जो दिल में निफ़ाक़
और अल्लाह से दुश्मनी लिये रहते हैं) की इताअत (कहने पर अमल) न कीजिएगा और उनकी
अज़ीयत (तकलीफ़) का ख़्याल ही छोड़ दीजिए और अल्लाह पर एतमाद (भरोसा) कीजिए कि
वह निगरानी करने के लिए बहुत काफ़ी है |
33 |
49 |
ईमान वालों जब मोमिनात
(मोमिन औरतों) से निकाह करना और उनको हाथ लगाये बग़ैर तलाक़ दे देना तो तुम्हारे
लिए कोई हक़ नहीं है कि उनसे वादे का मुतालेबा करो लेहाज़ा (इसलिये) कुछ अतिया
देकर खू़बसूरती के साथ रूख़्सत कर देना |
33 |
50 |
ऐ पैग़म्बर हमने आप के
लिए आपकी बीवियों को जिनका मेहर दे दिया है और कनीज़ों को जिन्हें ख़ुदा ने जंग
के बगै़र अता कर दिया है और आप के चचा की बेटियों को और आपकी फुफी की बेटियों को
और आपके मामूं की बेटियों को और आपकी ख़ाला की बेटियों को जिन्होंने आपके साथ हिजरत
की है और उस मोमिना औरत को जो अपना नफ़्स (जान)े नबी को बख़्श (नज़्ा्र कर) दे
अगर नबी उससे निकाह करना चाहे तो हलाल कर दिया है लेकिन ये सिर्फ़ आपके लिए है
बाक़ी मोमिनीन के लिए नहीं है। हमें मालूम है कि हमने उन लोगों पर उनकी बीवियों
और कनीज़ों के बारे में क्या फ़रीज़ा क़रार दिया है ताकि आपके लिए कोई ज़हमत
(परेशानी) और मशक़्क़त (तंगी) न हो और अल्लाह बहुत ज़्यादा बख़्शने (माफ़ करने)
वाला और मेहरबान है |
33 |
51 |
इनमें से जिसको आप
चाहें अलग कर लें और जिसको चाहें अपनी पनाह (मदद, सहारा) में रखें और जिनको अलग
कर दिया है उनमें से भी किसी को चाहें तो कोई हर्ज नहीं है। ये सब इसलिए है ताकि
उनकी आँखें ठण्डी रहें और ये रंजीदा (ग़मज़दा) न हों और जो कुछ आपने दे दिया है
उससे ख़ु़श रहें और अल्लाह तुम्हारे दिलों का हाल ख़ू़ब जानता है और वह हर शै का
जानने वाला और साहेबाने हिकमत (अक़्ल, दानाई वाला) है |
33 |
52 |
इसके बाद आपके लिए
दूसरी औरतें हलाल नहीं है और न ये जायज़ है कि उन बीवियों को बदल लें चाहे दूसरी
औरतों का हुस्न कितना ही अच्छा क्यों न लगे अलावा वह उन औरतों के जो आपके हाथों
की मिल्कियत (जो शै इखि़्तयार या क़ब्ज़े में हो) हैं और ख़ुदा हर शै की निगरानी
करने वाला है |
33 |
53 |
ऐ ईमान वालों ख़बरदार
पैग़म्बर के घरों में उस वक़्त तक दाखि़ल न होना जब तक तुम्हें खाने के लिए
ईजाज़त न दे दी जाये और उस वक़्त भी बर्तनों पर निगाह न रखना हाँ जब दावत दे दी
जाये तो दाखि़ल हो जाओ और जब खा लो तो फ़ौरन मुन्तशिर (अलग-अलग) हो जाओ और बातों
में न लग जाओ कि ये बात पैग़म्बर को तकलीफ़ पहुंचाती है और वह तुम्हारा ख़्याल
करते हैं हालांकि अल्लाह हक़ (सच) के बारे में किसी बात की शर्म नहीं रखता और जब
अज़वाजे पैग़म्बर (पैग़म्बर की बीवियों) से किसी चीज़ का सवाल करो तो पर्दे के
पीछे से सवाल करो कि ये बात तुम्हारे और उनके दोनों के दिलों के लिए ज़्यादा
पाकीज़ा (साफ़-सुथरा) है और तुम्हें हक़ नहीं है कि ख़ुदा के रसूल को अजि़यत दो
या उनके बाद कभी भी उनकी अज़वाज (बीवियों) से निकाह करो कि ये बात ख़ुदा की
निगाह में बहुत बड़ी बात है |
33 |
54 |
तुम किसी शै का
इज़्ाहार (ज़ाहिर) करो या उसकी पर्देदारी (छिपाना) करो अल्लाह बहरहाल (हर तरह
से, हर हाल में) हर शै का जानने वाला है |
33 |
55 |
और औरतों के लिए कोई
हर्ज नहीं है अगर अपने बाप दादा, अपनी औलाद, अपने भाई, अपने भतीजे और अपने
भांजों के सामने बे हिजाब आयें या अपनी औरतों और अपनी कनीज़ों के सामने आयें
लेकिन तुम सब अल्लाह से डरती रहो कि अल्लाह हर शै पर हाजि़र व नाजि़र (मौजूद व
गवाह) है |
33 |
56 |
बेशक अल्लाह और उसके
मलायका (फ़रिश्ते) रसूल पर सलवात भेजते हैं तो ऐ साहेबाने ईमान तुम भी उन पर
सलवात भेजते रहो और सलाम करते रहो |
33 |
57 |
यक़ीनन जो लोग ख़ुदा
और उसके रसूल को सताते हैं उन पर दुनिया और आखि़रत में ख़ुदा की लाॅनत है और
ख़ुदा ने उनके लिए रूस्वाकुन (शर्मिन्दा करने वाला) अज़ाब मुहैय्या (का
इन्तेज़ाम, तैयार) कर रखा है |
33 |
58 |
और जो लोग साहेबाने
ईमान मर्द या औरत को बग़ैर कुछ किये धरे अज़ीयत देते हैं उन्होंने बड़े बोहतान
(इल्ज़ाम, ऐब) और खुले गुनाह का बोझ अपने सर पर उठा रखा है |
33 |
59 |
ऐ पैग़म्बर आप अपनी
बीवियों, बेटियों और मोमिनीन की औरतों से कह दीजिए कि अपनी चादर को अपने ऊपर
लटकाए रहा करें कि ये तरीक़ा उनकी शिनाख़्त या शराफ़त से क़रीबतर है और इस तरह
उनको अजि़यत न दी जायेगी और ख़ुदा बहुत बख़्शने (माफ़ करने) वाला और मेहरबान है |
33 |
60 |
फिर अगर मुनाफ़ेक़ीन
(जो दिल में निफ़ाक़ और अल्लाह से दुश्मनी लिये रहते हैं) और जिनके दिलों में
बीमारी है और मदीने में अफ़वाह फैलाने वाले अपनी हरकतों से बाज़ न आये तो हम आप
ही को उन पर मुसल्लत (तैनात) कर देंगे और फिर ये आप के हमसाया में सिर्फ़ चन्द
(कुछ) ही दिन रह पायेंगे |
33 |
61 |
ये लाॅनत के मारे हुए
होंगे कि जहां मिल जायें गिरफ़्तार कर लिये जायें और उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिये
जायें |
33 |
62 |
ये ख़ुदाई सुन्नत उन
लोगों के बारे में रह चुकी है जो गुज़र चुके हैं और ख़ुदाई सुन्नत में तब्दीली
(बदलाव) नहीं हो सकती है |
33 |
63 |
पैग़म्बर ये लोग आप से
क़यामत के बारे में सवाल करते हैं तो कह दीजिए कि इसका इल्म ख़ुदा के पास है और
तुम क्या जानो शायद वह क़रीब ही हो |
33 |
64 |
बेशक अल्लाह ने
कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) पर लाॅनत की है और इनके
लिए जहन्नम का इन्तिज़ाम किया है |
33 |
65 |
वह इसमें हमेशा-हमेशा
रहेंगे और उन्हें कोई सरपरस्त या मददगार नहीं मिलेगा |
33 |
66 |
जिस दिन इनके चेहरे
जहन्नुम की तरफ़ मोड़ दिये जायेंगे और ये कहेंगे कि ऐ काश हम हमने अल्लाह और
रसूल की इताअत (कहने पर अमल) की होती |
33 |
67 |
और कहेंगे कि हमने
अपने सरदारों और बुज़्ाुर्गों की इताअत (कहने पर अमल) की तो उन्होंने रास्ते से
बहका दिया |
33 |
68 |
परवरदिगार (पालने
वाले) अब इन पर दोहरा अज़ाब नाजि़ल कर और इन पर बहुत बड़ी लाॅनत कर |
33 |
69 |
ईमान वालों ख़बरदार
उनके जैसे न बन जाओ जिन्होंने मूसा (अलैहिस्सलाम) को अजि़यत (तकलीफ़) दी तो
ख़ुदा ने उन्हें उनके क़ौल से बरी (अलग-थलग) साबित कर दिया और वह अल्लाह के
नज़दीक (क़रीब) एक बावजाहत (आबरू वाले) इन्सान थे |
33 |
70 |
ईमान वालों अल्लाह से
डरो और सीधी बात करो |
33 |
71 |
ताकि वह तुम्हारे आमाल
(कामों) की इस्लाह कर दे और तुम्हारे गुनाहों को बख़्श (माफ़ कर) दे और जो भी
ख़ुदा और उसके रसूल की इताअत (कहने पर अमल) करेगा वह अज़ीम (बहुत बड़ी) कामयाबी
के दर्जे पर फ़ायज़ (पहुंचा हुआ) होगा |
33 |
72 |
बेशक हमने अमानत को
आसमान, ज़मीन और पहाड़ सबके सामने पेश किया और सबने इसके उठाने से इन्कार किया
और ख़ौफ़ (डर) ज़ाहिर किया बस इन्सान ने इस बोझ को उठा लिया कि इन्सान अपने हक़
में ज़ालिम (ज़्ाुल्म करने वाला) और नादान (नासमझ) है |
33 |
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ताकि ख़ुदा मुनाफि़क़
(जो दिल में निफ़ाक़ और अल्लाह से दुश्मनी लिये रहते हैं) मर्द और मुनाफि़क़ (जो
दिल में निफ़ाक़ और अल्लाह से दुश्मनी लिये रहती हैं) औरत और मुशरिक (ख़ुदा के
साथ दूसरों को शरीक करने वाले) मर्द और मुशरिक (ख़ुदा के साथ दूसरों को शरीक
करने वाले) औरत सब पर अज़ाब नाजि़ल करे और साहेबे ईमान मर्द और साहेबे ईमान
औरतों की तौबा (गुनाह माफ़ करने की दुआ) कु़बूल करे कि ख़ुदा बहुत बख़्शने (माफ़
करने) वाला और मेहरबान है |
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