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सूरा-ए-साद |
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अज़ीम और दाएमी (हमेशा
बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू। |
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1 |
सआद नसीहत (अच्छी
बातों का बयान) वाले कु़रआन की क़सम |
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2 |
हक़ीक़त ये है कि ये
कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) गु़रूर और एख़तेलाफ़ (राय
में टकराव) में पड़े हुए हैं |
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3 |
हमने इनसे पहले कितनी
नस्लों को तबाह कर दिया है फिर इन्होंने फ़रियाद की लेकिन कोई छुटकारा मुमकिन
नहीं था |
38 |
4 |
और इन्हें ताज्जुब है
कि इन्हीं में से कोई डराने वाला कैसे आ गया और काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले,
ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) ने साफ़ कह दिया कि ये तो जादूगर और
झूठा है |
38 |
5 |
क्या इसने सारे
ख़ुदाओं को जोड़कर एक ख़ुदा बना दिया है ये तो इन्तिहाई ताज्जुब खे़ज़ बात है |
38 |
6 |
और इनमें से एक गिरोह
ये कह कर चल दिया चलो अपने ख़ुदाओं पर क़ायम रहो कि इसमें इनकी कोई ग़रज़ पायी
जाती है |
38 |
7 |
हमने तो अगले दौर की
उम्मतों में ये बातें नहीं सुनी हैं और ये कोई ख़ु़द साख़्ता बात मालूम होती है |
38 |
8 |
क्या हम सब के दरम्यान
(बीच में) तन्हा इन्हीं पर किताब नाजि़ल हो गई है हक़ीक़त ये है कि इन्हें हमारी
किताब में शक है बल्कि अस्ल ये है कि अभी इन्होंने अज़ाब का मज़ा ही नहीं चखा है |
38 |
9 |
क्या इनके पास आप के
साहेबे इज़्ज़त व अता परवरदिगार (पालने वाले) की रहमत का कोई ख़ज़ाना है |
38 |
10 |
या इनके पास ज़मीन व
आसमान और इसके माबैन (बीच की चीज़ों) का इखि़्तयार है तो ये सीढ़ी लगाकर आसमान
पर चढ़ जायें |
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11 |
तमाम गिरोहों में से
एक गिरोह यहां भी शिकस्त खाने वाला है |
38 |
12 |
इससे पहले क़ौमे नूह
अलैहिस्सलाम क़ौमे आद अलैहिस्सलाम और मेंख़ों वाला फि़रऔन सब गुज़र चुके हैं |
38 |
13 |
और समूद, क़ौम लूत
अलैहिस्सलाम, जंगल वाले लोग ये सब गिरोह गुज़र चुके हैं |
38 |
14 |
इनमें से हर एक ने
रसूल की तकज़ीब (झुठलाना) की तो इन पर हमारा अज़ाब साबित हो गया |
38 |
15 |
ये सिर्फ़ इस बात का
इन्तिज़ार कर रहे हैं कि एक ऐसी चिंघाड़ बुलन्द हो जाये जिससे अदना (थोड़ी सी)
मोहलत भी न मिल सके |
38 |
16 |
और ये कहते हैं कि
परवरदिगार (पालने वाले) हमारा कि़स्मत का लिखा हुआ रोज़े हिसाब (क़यामत) से पहले
ही हमें दे दे |
38 |
17 |
आप इनकी बातों पर सब्र
करें और हमारे बन्दे दाऊद अलैहिस्सलाम को याद करें जो साहेबे ताक़त भी थे और
बेहद रूजू करने वाले भी थे |
38 |
18 |
हमने उनके लिए पहाड़ों
को मुसख़्ख़र कर दिया था कि उनके साथ सुबह व शाम तस्बीहे परवरदिगार (पालने वाले
की तस्बीह) करें |
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19 |
और परिन्दों को उनके
गिर्द जमा कर दिया था सब उनके फ़रमांबरदार (कहने पर अमल करने वाले) थे |
38 |
20 |
और हमने उनके मुल्क को
मज़बूत बना दिया था और उन्हें हिकमत और सही फ़ैसले की कू़व्वत (ताक़त) अता कर दी
थी |
38 |
21 |
और क्या आपके पास उन
झगड़ा करने वालों की ख़बर आ गई है जो मेहराब की दीवार फाँद कर आ गये थे |
38 |
22 |
कि जब वह दाऊद
अलैहिस्सलाम के सामने हाजि़र हुए तो उन्होंने ख़ौफ़ (डर) महसूस किया और उन लोगों
ने कहा कि आप डरें नहीं हम दो फ़रीक़ (फि़रक़े) हैं जिसमें एक ने दूसरे पर
जु़ल्म किया है आप हक़ के साथ फै़सला कर दें और नाइंसाफ़ी न करें और हमें सीधे
रास्ते की हिदायत कर दें |
38 |
23 |
ये हमारा भाई है इसके
पास निनान्नवे दुम्बियाँ हैं और मेरे पास सिर्फ़ एक है ये कहता है कि वह भी मेरे
हवाले कर दे और इस बात में सख़्ती से काम लेता है |
38 |
24 |
दाऊद अलैहिस्सलाम ने
कहा कि इसने तुम्हारी दुम्बी का सवाल करके तुम पर ज़ु़ल्म किया है और बहुत से
शोरका ऐसे ही हैं कि उनमें से एक दूसरे पर जु़ल्म करता है अलावा उन लोगों के जो
साहेबाने ईमान व अमले सालेह (नेक काम करने वाले) हैं और वह बहुत कम हैं, और दाऊद
अलैहिस्सलाम ने ये ख़्याल किया कि हमने उनका इम्तिहान लिया है लेहाज़ा (इसलिये)
उन्होंने अपने रब से अस्तग़फ़ार (गुनाहों की माफ़ी की दुआ) किया और सज्दे में
गिर पड़े और हमारी तरफ़ सरापा तवज्जोह बन गये |
38 |
25 |
तो हमने इस बात को
माॅफ़ कर दिया और हमारे नज़दीक (क़रीब) उनके लिए तक़र्रूब (क़ुर्बत) और बेहतरीन
(सबसे अच्छा) बाज़गश्त (लौटना, वापसी) है |
38 |
26 |
ऐ दाऊद अलैहिस्सलाम
हमने तुम को ज़मीन में अपना जानशीन बनाया है लेहाज़ा (इसलिये) तुम लोगों के
दरम्यान (बीच में) हक़ के साथ फ़ैसला
करो और ख़्वाहिशात (दुनियावी तमन्नाओं) का इत्तेबा (पैरवी) न करो कि वह राहे
ख़ुदा से मुन्हरिफ़ (कजी, मोड़ना) कर दें बेशक जो लोग राहे ख़ुदा से भटक जाते
हैं उनके लिए शदीद (सख़्त) अज़ाब है कि उन्होंने रोज़े हिसाब को यकसर नज़र
अंदाज़ कर दिया है |
38 |
27 |
और हमने आसमान और
ज़मीन और उसके दरम्यान (बीच) की मख़लूक़ात (पैदा की हुई खि़लक़त या शै) को बेकार
नहीं पैदा किया है ये सिर्फ़ काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म
का इन्कार करने वाले) का ख़्याल है और काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या
उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) के लिए जहन्नुम में वैल की मंजि़ल (आखि़री जगह)
है |
38 |
28 |
क्या हम ईमान लाने
वाले और नेक (अच्छा) अमल करने वालों को ज़मीन में फ़साद (लड़ाई-झगड़ा) बरपा करने वालों जैसा क़रार दे दें या
साहेबाने तक़्वा (ख़ुदा से डरने वाले लोगों) को फ़ासिक़ (झूठा, गुनहगार) व
फ़ाजिर अफ़राद (लोगों) जैसा क़रार दे दें |
38 |
29 |
यह एक मुबारक किताब है
जिसे हमने आप की तरफ़ नाजि़ल किया है ताकि ये लोग इसकी आयतों में ग़ौर व फि़क्र
करें और साहेबाने अक़्ल नसीहत हासिल करें |
38 |
30 |
और हमने दाऊद
अलैहिस्सलाम को सुलेमान अलैहिस्सलाम जैसा फ़रज़न्द (बेटा) अता किया जो बेहतरीन
(सबसे अच्छा) बन्दा और हमारी तरफ़ रूजूअ करने वाला था |
38 |
31 |
जब उनके सामने शाम के
वक़्त बेहतरीन (सबसे अच्छा) असील घोड़े पेश किये गये |
38 |
32 |
तो उन्होंने कहा कि
मैं जि़क्रे ख़ुदा की बिना पर ख़ैर (नेकी, अच्छाई) को दोस्त रखता हूँ यहां तक कि
वह घोड़े दौड़ते-दौड़ते निगाहों से ओझल हो गये |
38 |
33 |
तो उन्होंने कहा कि अब
इन्हें वापस पलटाओ इसके बाद इनकी पिण्डलियों और गर्दनों को मलना शुरू कर दिया |
38 |
34 |
और हमने सुलेमान
अलैहिस्सलाम का इम्तिहान लिया जब उनकी कुर्सी पर एक बेजान जिस्म को डाल दिया तो
फिर इन्होंने ख़ुदा की तरफ़ तवज्जोह की |
38 |
35 |
और कहा कि परवरदिगार
(पालने वाले) मुझे माॅफ़ फ़रमा और एक ऐसा मुल्क अता फ़रमा जो मेरे बाद किसी के
लिए सज़ावार (मयस्सर) न हो कि तू बेहतरीन (सबसे अच्छा) अता करने वाला है |
38 |
36 |
तो हमने हवाओं को
मुसख़्ख़र (ताबेअ, इखि़्तयार में) कर दिया कि इन्हीं के हुक्म से जहां जाना
चाहते थे नर्म रफ़्तार से चलती थीं |
38 |
37 |
और शयातीन (शैतानों)
में से तमाम मामलों और ग़ोता ख़ोरों को ताबेअ (हुक्म का पाबन्द) बना दिया |
38 |
38 |
और उन शयातीन
(शैतानों) को भी जो सरकशी (बग़ावत) की बिना पर जंजीरों में जकड़े हुए थे |
38 |
39 |
ये सब मेरी अता है अब
आप चाहे लोगों को दे दो या अपने पास रखो तुम से हिसाब न होगा |
38 |
40 |
और उनके लिए हमारे
यहां तक़र्रूब (क़ुर्बत) का दर्जा है और बेहतरीन (सबसे अच्छा) बाज़गश्त (लौटना,
वापसी) है |
38 |
41 |
और हमारे बन्दे अय्यूब
अलैहिस्सलाम को याद करो जब उन्होंने अपने परवरदिगार (पालने वाले) को पुकारा कि
शैतान ने मुझे बड़ी तकलीफ़ और अज़ीयत पहुंचायी है |
38 |
42 |
तो हमने कहा कि ज़मीन
पर पैरों को रगड़ो देखो ये नहाने और पीने के लिए बेहतरीन (सबसे अच्छा) ठण्डा
पानी है |
38 |
43 |
और हमने उन्हें उनके
अहल व अयाल (घरवाले) अता कर दिये और इतने ही और भी दे दिये ये हमारी रहमत और
साहेबाने अक़्ल के लिए इबरत (ख़ौफ़ के साथ सबक़) व नसीहत (अच्छी बातों का बयान)
है |
38 |
44 |
और अय्यूब अलैहिस्सलाम
तुम अपने हाथों में सीकों का मुठ्ठा लेकर उससे मार दो और क़सम की खि़लाफ़ वजऱ्ी
(उलट) न करो। हमने अय्यूब अलैहिस्सलाम को साबिर पाया है। वह बेहतरीन (सबसे
अच्छे) बन्दे और हमारी तरफ़ रूजूअ करने वाले हैं |
38 |
45 |
और पैग़म्बर
अलैहिस्सलाम हमारे बन्दे इब्राहीम अलैहिस्सलाम, इसहाक़ अलैहिस्सलाम और याकू़ब
अलैहिस्सलाम का जि़क्र कीजिए जो साहेबाने कू़व्वत (ताक़त) और साहेबाने बसीरत
(बातिन की बात को जानने वाले) थे |
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46 |
हमने उनको आखि़रत की
याद की सिफ़त से मुमताज़ क़रार दिया था |
38 |
47 |
और वह हमारे नज़दीक
(क़रीब) मुन्तखि़ब (चुने हुए) और नेक (अच्छा) बन्दों में से थे |
38 |
48 |
और इस्माईल
अलैहिस्सलाम और इलयास अलैहिस्सलाम और जु़लकिफ़्ल अलैहिस्सलाम को भी याद कीजिए और
ये सब नेक (अच्छा) बन्दे थे |
38 |
49 |
ये एक नसीहत (अच्छी
बातों का बयान) है और साहेबाने तक़्वा (ख़ुदा से डरने वाले लोगों) के लिए
बेहतरीन (सबसे अच्छा) बाज़गश्त (लौटना, वापसी) है |
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50 |
हमेशगी की जन्नतें
जिनके दरवाज़े उनके लिए खुले हुए होंगे |
38 |
51 |
वहाँ तकिया लगाये चैन
से बैठे होंगे और तरह तरह के मेवे और शराब तलब (माँग) करेंगे |
38 |
52 |
और उनके पहलू में नीची
नज़र वाली हमसिन बीबीयां होंगी |
38 |
53 |
ये वह चीज़ें हैं
जिनका रोज़े क़यामत के लिए तुम से वादा किया गया है |
38 |
54 |
ये हमारा रिज़्क़ है
जो ख़त्म होने वाला नहीं है |
38 |
55 |
ये एक तरफ़ है और
सरकशों (बग़ावत करने वालों) के लिए बद्तरीन (सबसे बुरा) बाज़गश्त (लौटना, वापसी)
है |
38 |
56 |
जहन्नुम है जिसमें ये
वारिद होंगे और वह बदतरीन (सबसे बुरा) ठिकाना है |
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57 |
ये है अज़ाब इसका मज़ा
चखें गर्म पानी है और पीप |
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58 |
और इसी कि़स्म की
दूसरी चीज़ें भी हैं |
38 |
59 |
ये तुम्हारी फ़ौज है
उसे भी तुम्हारे हमराह (साथ ही) जहन्नुम में ठूँस दिया जायेगा ख़ुदा इनका भला न
करे और ये सब जहन्नुम में जलने वाले हैं |
38 |
60 |
फिर मुरीद अपने पीरों
से कहेंगे तुम्हारा भला न हो तुमने इस अज़ाब को हमारे लिए मुहैय्या (पेश) किया
है लेहाज़ा (इसलिये) ये बदतरीन (सबसे बुरा) ठिकाना है |
38 |
61 |
फिर मज़ीद (और) कहेंगे
कि ख़ुदाया जिसने हमको आगे बढ़ाया है उसके अज़ाब को जहन्नुम में दोगुना कर दे |
38 |
62 |
फिर खु़द ही कहेंगे कि
हमें क्या हो गया है कि हम उन लोगों को नहीं देखते जिन्हें शरीर (बुरे) लोगों
में शुमार करते थे |
38 |
63 |
हमने नाहक़ उनका
मज़ाक़ उड़ाया था या अब हमारी निगाहें उनकी तरफ़ से पलट गई हैं |
38 |
64 |
ये अहले जहन्नम
(जहन्नम वालों) का बाहमी (आपसी) झगड़ा एक अम्रे बरहक़ (सच्चा अम्र) है |
38 |
65 |
आप कह दीजिए कि मैं तो
सिर्फ़ डराने वाला हूँ और ख़ुदाए वाहिद व क़ह्हार के अलावा कोई दूसरा ख़ुदा नहीं
है |
38 |
66 |
वही आसमान व ज़मीन और
उनकी दरम्यानी (बीच की) मख़लूक़ात (पैदा की हुई खि़लक़त या शै) का परवरदिगार और
साहेबे इज़्ज़त (इज़्ज़त वाला) और बहुत ज़्यादा बख़्शने (माफ़ करने) वाला है |
38 |
67 |
कह दीजिए कि ये कु़रआन
बहुत बड़ी ख़बर है |
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68 |
तुम इससे आराज़ (मुंह
फेरना) किये हुए हो |
38 |
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मुझे क्या इल्म होता
कि आलमे बाला में क्या बहस हो रही थी |
38 |
70 |
मेरी तरफ़ तो सिर्फ़
ये वही (इलाही पैग़ाम) आती है कि मैं एक खुला हुआ अज़ाबे इलाही से डराने वाला
इन्सान हूँ |
38 |
71 |
उन्हें याद दिलाईये जब
आपके परवरदिगार (पालने वाले) ने मलायका (फ़रिश्तों) से कहा कि मैं गीली मिट्टी
से एक बशर (इन्सान) बनाने वाला हूँ |
38 |
72 |
जब इसे दुरूस्त
(ठीक-ठाक) कर लूँ और इसमें अपनी रूह फँूक दूँ तो तुम सब सज्दा में गिर पड़ना |
38 |
73 |
तो तमाम मलायका
(फ़रिश्तों) ने सजदा कर लिया |
38 |
74 |
अलावा इब्लीस (शैतान)
के कि वह अकड़ गया और काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का
इन्कार करने वाले) में हो गया |
38 |
75 |
तो ख़ुदा ने कहा ऐ
इब्लीस (शैतान) तेरे लिए क्या शै मानेअ (रूकावट) हुई कि तू इसे सज्दा करे जिसे
मैंने अपने दस्ते कु़दरत से बनाया है तूने ग़्ाुरूर इखि़्तयार किया या तू
वाक़ेअन बलन्द (ऊंचे) लोगों में से है |
38 |
76 |
उसने कहा कि मैं इनसे
बेहतर (ज़्यादा अच्छा) हूँ तूने मुझे आग से पैदा किया है और इन्हें ख़ाक से पैदा
किया है |
38 |
77 |
इरशाद हुआ कि यहाँ से
निकल जा तू मरदूद है |
38 |
78 |
और यक़ीनन तेरे ऊपर
क़यामत के दिन तक मेरी लाॅनत है |
38 |
79 |
उसने कहा परवरदिगार
(पालने वाले) मुझे रोज़े क़यामत तक की मोहलत भी दे दे |
38 |
80 |
इरशाद हुआ कि तुझे
मोहलत दे दी गई है |
38 |
81 |
मगर एक मुअय्यन (तय
किये हुए) वक़्त के दिन तक |
38 |
82 |
उसने कहा तो फिर तेरी
इज़्ज़त की क़सम मैं सबको गुमराह करूँगा |
38 |
83 |
अलावा तेरे उन बन्दों
के जिन्हें तूने ख़ालिस (ख़ास) बना लिया है |
38 |
84 |
इरशाद हुआ तो फिर हक़
(सच) ये है और मैं तो हक़ (सच) ही कहता हूँ |
38 |
85 |
कि मैं जहन्नम को तुझ
से और तेरे पैरोकारों (कहने पर अमल करने वालों) से भर दूँगा |
38 |
86 |
और पैग़म्बर आप कह
दीजिए कि मैं अपनी तबलीग़ का कोई अज्र नहीं चाहता और न मैं बनावट करने वाला ग़लत
बयान (करने वाला) हूँ |
38 |
87 |
ये कु़रआन तो आलमीन
(तमाम जहानों) के लिए एक नसीहत (अच्छी बातों का बयान) है |
38 |
88 |
और कुछ दिनों के बाद
तुम सबको इसकी हक़ीक़त मालूम हो जायेगी |
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