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सूरा-ए-जासिया |
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अज़ीम और दाएमी (हमेशा
बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू। |
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1 |
हा मीम |
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इस किताब की तन्ज़ील
(भेजा जाना) उस ख़ुदा की तरफ़ से है जो साहेबे इज़्ज़त भी है और साहेबे हिकमत
(अक़्ल, दानाई वाला) भी है |
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3 |
बेशक आसमानों और
ज़मीनों में साहेबाने ईमान के लिए बहुत सी निशानियाँ पायी जाती हैं |
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4 |
और खु़द तुम्हारी
खि़ल्क़त में भी और जिन जानवरों को वह फैलाता रहता है उनमें भी साहेबाने यक़ीन
(यक़ीन करने वालों) के लिए बहुत सी निशानियाँ हैं |
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5 |
और रात दिन की रफ़्त व
आमद (जाने-आने) में और जो रिज़्क़ ख़ुदा ने आसमान से नाजि़ल किया है जिसके
ज़रिये से मुर्दा ज़मीनों को जि़न्दा बनाया है और हवाओं के चलने में इस क़ौम के
लिए निशानियाँ पायी जाती हैं जो अक़्ल रखने वाली है |
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6 |
ये अल्लाह की आयतें
हैं जिनकी हक़ के साथ तिलावत की जा रही है तो अल्लाह और उसकी आयतों के बाद ये
किस बात पर ईमान लाने वाले हैं |
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7 |
बेशक हर झूठे गुनाहगार
(गुनाह करने वाले) के हाल पर अफ़सोस है |
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8 |
जो तिलावत की जाने
वाली आयात (आयतों) को सुनता है और फिर अकड़ जाता है जैसे सुना ही नहीं है तो उसे
दर्दनाक (दर्द देने वाला) अज़ाब की बशारत दे दीजिए |
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9 |
और उसे जब भी हमारी
किसी निशानी का इल्म होता है तो उसका मज़ाक़ उड़ाता है बेशक यही वह लोग हैं
जिनके लिए रूसवाकुन (शर्मिन्दा करने वाला) अज़ाब है |
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10 |
इनके पीछे जहन्नम है
और इन्होंने जो कुछ कमाया है और जिन लोगों को ख़ुदा को छोड़कर सरपरस्त बनाया है
कोई काम आने वाला नहीं है और इनके लिए बहुत बड़ा अज़ाब है |
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11 |
ये कु़रआन एक हिदायत
है और जिन लोगों ने आयाते ख़ुदा का इन्कार किया है उनके लिए सख़्त कि़स्म का
दर्दनाक (दर्द देने वाला) अज़ाब होगा |
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12 |
अल्लाह ही ने तुम्हारे
लिए दरिया को मुसख़्ख़र (इखि़्तयार में) किया है कि उसके हुक्म से कश्तियाँ चल
सकें और तुम उसके फ़ज़्ल व करम को तलाश कर सको और शायद उसका शुक्रिया भी अदा कर
सको |
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13 |
और उसी ने तुम्हारे
लिए ज़मीन व आसमान की तमाम चीज़ों को मुसख़्ख़र (इखि़्तयार में) कर दिया है बेशक
इसमें ग़ौर व फि़क्र करने वाली क़ौम के लिए निशानियाँ पायी जाती हैं |
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14 |
आप साहेबाने ईमान से
कह दें कि वह ख़ुदाई (ख़ुदा के) दिनों की तवक़्क़ो (उम्मीद) न रखने वालों से
दरगुज़र करें ताकि ख़ुदा क़ौम को उनके आमाल (कामों) का मुकम्मल (पूरा) बदला दे
सके |
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15 |
जो नेक (अच्छे) काम
करेगा वह अपने फ़ायदे के लिए करेगा और जो बुराई करेगा वह अपने ही नुक़सान के लिए
करेगा इसके बाद तुम सब परवरदिगार (पालने वाले) की तरफ़ पलटाये जाओगे |
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16 |
और यक़ीनन हमने बनी
इसराईल को किताब, हुकूमत और नबूवत अता की है और इन्हें पाकीज़ा
(साफ़-सुथरा) रिज़्क़ दिया है और उन्हें
तमाम आलमीन (जहानों) पर फ़ज़ीलत दी है |
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17 |
और उन्हें अपने अम्र
की खुली हुई निशानियाँ अता की हैं फिर इन लोगों ने इल्म आने के बाद आपस की जि़द
में एख़तेलाफ़ (टकराव) किया तो यक़ीनन तुम्हारा परवरदिगार (पालने वाला) रोज़े
क़यामत (क़यामत के दिन) इनके दरम्यान (बीच में) उन तमाम बातों का फ़ैसला कर देगा
जिनमें ये एख़तेलाफ़ (राय में टकराव) करते रहे हैं |
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18 |
फिर हमने आपको अपने
हुक्म के वाजे़ह (रौशन, खुले हुए) रास्ते पर लगा दिया लेहाज़ा (इसलिये) आप उसी
का इत्तेबा (पैरवी) करें और ख़बरदार जाहिलों की ख़्वाहिशात (दुनियावी तमन्नाओं)
का इत्तेबा (पैरवी) न करें |
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19 |
यह लोग ख़ुदा के
मुक़ाबले में ज़र्रा बराबर काम आने वाले नहीं हैं और ज़ालेमीन (ज़्ाुल्म करने
वाले) आपस में एक दूसरे के दोस्त हैं तो अल्लाह साहेबाने तक़्वा (ख़ुदा से डरने
वाले लोगों) का सरपरस्त है |
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20 |
यह लोगों के लिए रौशनी
का मजमुआ (जमावड़ा) और यक़ीन करने वाली क़ौम के लिए हिदायत और रहमत है |
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21 |
क्या बुराई इखि़्तयार
कर लेने (अपनाने) वालों ने ये ख़्याल कर लिया है कि हम उन्हें ईमान लाने वालों
और नेक (अच्छा) अमल करने वालों के बराबर क़रार दे देंगे कि सबकी मौत व हयात
(जि़न्दगी) एक जैसी हो ये इन लोगों ने निहायत बदतरीन (सबसे बुरा) फ़ैसला किया है |
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22 |
और अल्लाह ने आसमान और
ज़मीन को हक़ के साथ पैदा किया है और इसलिए भी कि हर नफ़्स (जान) को उसके आमाल
(कामों) का बदला दिया जा सके और यहाँ किसी पर जु़ल्म नहीं किया जायेगा |
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23 |
क्या आपने उस शख़्स को
भी देखा है जिसने अपनी ख़्वाहिश ही को ख़ुदा बना लिया है और ख़ुदा ने इसी हालत
को देखकर उसे गुमराही में छोड़ दिया है और उसके कान और दिल पर मोहर लगा दी है और
उसकी आँख पर पर्दे पड़े हुए हैं और ख़ुदा के बाद कौन हिदायत कर सकता है क्या तुम
इतना भी ग़ौर नहीं करते हो |
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24 |
और यह लोग कहते हैं कि
ये सिर्फ़ जि़न्दगानी दुनिया है इसी में मरते हैं और जीते हैं और ज़माना ही हमको
हलाक (बरबाद, ख़त्म) कर देता है और उन्हें इस बात का कोई इल्म नहीं है कि ये
सिर्फ़ इनके ख़्यालात हैं और बस |
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25 |
और जब इनके सामने
हमारी खुली हुई आयात की तिलावत होती है तो इनकी दलील सिर्फ़ ये होती है कि अगर
तुम सच्चे हो तो हमारे बाप दादा को जि़न्दा करके ले आओ |
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26 |
आप कह दीजिए कि ख़ुदा
ही तुमको भी जि़न्दा रखे है फिर एक दिन मौत देगा और आखि़र में सबको रोज़े क़यामत
जमा करेगा और इसमें कोई शक नहीं है लेकिन अकसर लोग इस बात को भी नहीं समझते हैं |
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27 |
और अल्लाह ही के लिए
ज़मीन व आसमान का मुल्क (बादशाहत) है और जिस दिन क़यामत क़ायम होगी उस दिन अहले
बातिल (झूठ वालों) को वाके़अन (अस्ल में) ख़सारा (घाटा, नुक़सान) होगा |
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28 |
और आप हर क़ौम को
घुटने के बल बैठा हुआ देखेंगे और सबको उनके नामा-ए-आमाल (किये हुए कामों का
हिसाब-किताब) की तरफ़ बुलाया जायेगा कि आज तुम्हें तुम्हारे आमाल (कामों) का
बदला दिया जायेगा |
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29 |
ये हमारी किताब (नामए
आमाल -किये हुए कामों का हिसाब-किताब) है जो हक़ के साथ बोलती है और हम इसमें
तुम्हारे आमाल (कामों) को बराबर लिखवा रहे थे |
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30 |
अब जो लोग ईमान लाये
और उन्होंने नेक (अच्छे) आमाल (काम) किये उन्हें परवरदिगार (पालने वाला) अपनी
रहमत में दाखि़ल कर लेगा कि यही सब से नुमायाँ (ज़्यादा अच्छी) कामयाबी है |
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31 |
और जिन लोगों ने
कुफ्ऱ (ख़ुदा या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) इखि़्तयार किया तो क्या
तुम्हारे सामने हमारी आयात की तिलावत नहीं हो रही थी लेकिन तुमने अकड़ से काम
लिया और बेशक तुम एक मुजरिम (जुर्म करने वाली) क़ौम थे |
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32 |
और जब यह कहा गया कि
अल्लाह का वादा सच्चा है और क़यामत में कोई शक नहीं है तो तुमने कह दिया कि हम
तो क़यामत नहीं जानते हैं हम इसे एक ख़याली (गढ़ी हुई) बात समझते हैं और हम इसका
यक़ीन करने वाले नहीं हैं |
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33 |
और उनके लिए उनके आमाल
(कामों) की बुराईयाँ साबित हो गयीं और उन्हें उसी अज़ाब ने घेर लिया जिसका वह
मज़ाक़ उड़ाया करते थे |
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34 |
और उनसे कहा गया कि हम
तुम्हें उसी तरह नज़रअंदाज़ कर देंगे जिस तरह तुमने आज के दिन की मुलाक़ात को
भुला दिया था और तुम सबका अंजाम जहन्नम है और तुम्हारा कोई मददगार नहीं है |
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ये सब इसलिए है कि
तुमने आयाते इलाही का मज़ाक़ बनाया था और तुम्हें जि़न्दगानी दुनिया ने धोके में
रखा था तो आज ये लोग अज़ाब से बाहर नहीं निकाले जायेंगे और इन्हें माॅफ़ी मांगने
का मौक़ा भी नहीं दिया जायेगा |
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36 |
सारी हम्द (तारीफ़)
उसी ख़ुदा के लिए है जो आसमान व ज़मीन और तमाम आलमीन का परवरदिगार (पालने वाला)
और मालिक है |
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उसी के लिए आसमान व
ज़मीन में बुज़्ाुु़र्गी और किबरियाई (बड़ाई) है और वही साहेबे इज़्ज़त (इज़्ज़त
वाला) और हिकमत (हिकमत वाला) है |
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