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सूरा-ए-दुख़ाऩ |
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अज़ीम और दाएमी (हमेशा
बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू। |
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हा मीम |
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रौशन किताब की क़सम |
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3 |
हमने इस कु़रआन को एक
मुबारक रात में नाजि़ल किया है हम बेशक अज़ाब से डराने वाले थे |
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4 |
इस रात में तमाम हिकमत
व मसलेहत के उमूर (मामलों) का फ़ैसला किया जाता है |
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ये हमारी तरफ़ का
हुक्म होता है और हम ही रसूलों के भेजने वाले हैं |
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6 |
ये आपके परवरदिगार
(पालने वाले) की रहमत है और यक़ीनन वह बहुत सुनने वाला और जानने वाला है |
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7 |
वह आसमान व ज़मीन और
इसके माबैन (बीच की चीज़ों) का परवरदिगार है अगर तुम यक़ीन करने वाले हो |
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8 |
उसके अलावा कोई ख़ुदा
नहीं है। वही हयात (जि़न्दगी) अता करने वाला है और वही मौत देने वाला है। वही
तुम्हारा भी परवरदिगार (पालने वाला) है और तुम्हारे गुजि़श्ता बुज़्ाु़र्गों का
भी परवरदिगार (पालने वाला) है |
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9 |
लेकिन ये लोग शक के
आलम में खेल तमाशा कर रहे हैं |
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10 |
लेहाज़ा (इसलिये) आप
उस दिन का इन्तिज़ार कीजिए जब आसमान वाजे़ह (रौशन, खुली हुई) कि़स्म का धुँआ
लेकर आ जायेगा |
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11 |
जो तमाम लोगों को ढाँक
लेगा कि यही दर्दनाक (दर्द देने वाला) अज़ाब है |
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12 |
तब सब कहेंगे कि
परवरदिगार (पालने वाले) इस अज़ाब को हमसे दूर कर दे हम ईमान ले आने वाले हैं |
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13 |
भला उनकी कि़स्मत में
नसीहत (अच्छी बातों का बयान) कहाँ जबकि उनके पास वाजे़ह (रौशन, खुली हुई) पैग़ाम
वाला रसूल भी आ चुका है |
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14 |
और इन्होंने उससे मुँह
फेर लिया और कहा कि ये सिखाया पढ़ाया हुआ दीवाना है |
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15 |
ख़ैर हम थोड़ी देर के
लिए अज़ाब को हटा लेते हैं लेकिन तुम फिर वही करने वाले हो जो कर रहे हो |
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16 |
एक दिन आयेगा जब हम
सख़्त कि़स्म की गिरफ़्त (पकड़) करेंगे कि हम यक़ीनन बदला लेने वाले भी हैं |
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17 |
और हमने इनसे पहले
फि़रऔन की क़ौम को आज़माया जब उनके पास एक मोहतरम पैग़म्बर आया |
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18 |
कि अल्लाह के बन्दों
को मेरे हवाले कर दो मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार पैग़म्बर हूँ |
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19 |
और ख़ुदा के सामने
ऊँचे न बनो मैं तुम्हारे पास बहुत वाजे़ह (रौशन, खुली हुई) दलील लेकर आया हूँ |
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20 |
और मैं अपने और
तुम्हारे रब की पनाह (मदद, सहारा) चाहता हूँ कि तुम मुझे संगसार कर दो |
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21 |
और अगर तुम ईमान नहीं
लाते हो तो मुझसे अलग हो जाओ |
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22 |
फिर उन्होंने अपने रब
से दुआ की ये क़ौम बड़ी मुजरिम (जुर्म करने वाली) क़ौम है |
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23 |
तो हमने कहा कि हमारे
बन्दों को लेकर रातों रात चले जाओ कि तुम्हारा पीछा किया जाने वाला है |
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24 |
और दरिया को अपने हाल
पर साकिन (ठहरा हुआ) छोड़कर निकल जाओ कि ये लश्कर ग़कऱ् (डुबोना) किया जाने
वाला है |
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25 |
ये लोग कितने ही
बाग़ात और चश्मे (पानी की जगहें) छोड़ गये |
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26 |
और कितनी ही खेतियाँ
और उम्दा मकानात छोड़ गये |
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27 |
और वह नेअमतें जिनमें
मज़े उड़ा रहे थे |
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यही अंजाम होता है और
हमने सबका वारिस दूसरी क़ौम को बना दिया |
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29 |
फिर तो इन पर न आसमान
रोया और न ज़मीन और न उन्हें मोहलत (वक़्त) ही दी गई |
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30 |
और हमने बनी इसराईल को
रूसवाकुन (शर्मिन्दा करने वाले) अज़ाब से बचा लिया |
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31 |
फि़रऔन के शर (बुराई)
से जो ज़्यादती करने वालों में भी सबसे ऊँचा था |
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32 |
और हमने बनी इसराईल को
तमाम आलमीन (जहानों) में समझ बूझ कर इन्तिख़ाब (चुनाव) किया है |
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और इन्हें ऐसी
निशानियाँ दी हैं जिनमें खुला हुआ इम्तिहान पाया जाता है |
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बेशक ये लोग यही कहते
हैं |
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कि ये सिर्फ़ पहली मौत
है और बस इसके बाद हम उठाये जाने वाले नहीं हैं |
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और अगर तुम सच्चे हो
तो हमारे बाप दादा को क़ब्रों से उठाकर ले आओ |
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37 |
भला ये लोग ज़्यादा
बेहतर (ज़्यादा अच्छे) हैं या क़ौमे तुब्बा और उनसे पहले वाले अफ़राद (लोग)
जिन्हें हमने इसलिए तबाह कर दिया कि ये सब मुजरिम (जुर्म करने वाले) थे |
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38 |
और हमने ज़मीन व आसमान
और इसकी दरम्यानी (बीच की) मख़लूक़ात (पैदा की हुई खि़लक़त या शै) को खेल तमाशा
करने के लिए नहीं पैदा किया है |
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39 |
हमने इन्हें सिर्फ़
हक़ के साथ पैदा किया है लेकिन इनकी अकसरियत (ज़्यादातर लोग) इस अम्र से भी
जाहिल (न जानने वाले) है |
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40 |
बेशक फ़ैसले का दिन इन
सबके उठाये जाने का मुक़र्रर (तय किया हुआ) वक़्त है |
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जिस दिन कोई दोस्त
दूसरे दोस्त के काम आने वाला नहीं है और न उनकी कोई मदद की जायेगी |
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अलावा उसके जिस पर
ख़ुदा रहम करे कि बेशक वह बड़ा बख़्शने (माफ़ करने) वाला और मेहरबान है |
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बेशक आखि़रत में एक
थोहड़ का दरख़्त (पेड़) है |
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जो गुनाहगारों (गुनाह
करने वालों) की गि़ज़ा (खाना) है |
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वह पिघले हुए ताँबे के
मानिन्द (तरह) पेट में जोश (उबाल) खायेगा |
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जैसे गर्म पानी जोश
(उबाल) खाता है |
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फ़रिश्तों को हुक्म
होगा कि इसे पकड़ो ओर बीचों बीच जहन्नम तक ले जाओ |
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फिर इसके सर पर खौलते
हुए पानी का अज़ाब ऊँडेल दो |
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कहो कि अब अपने किये
का मज़ा चखो कि तुम तो बड़े साहेबे इज़्ज़त (इज़्ज़त वाले) और मोहतरम (एहतेराम
वाले) कहे जाते थे |
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यही वह अज़ाब है
जिसमें तुम शक पैदा कर रहे थे |
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51 |
बेशक वह साहेबाने
तक़्वा (ख़ुदा से डरने वाले लोगों) महफ़ूज़ (हिफ़ाज़त के साथ) मक़ाम (जगह) पर
होंगे |
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52 |
बाग़ात और चश्मों
(पानी निकलने की जगह) के दरम्यान (बीच में) |
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53 |
वह रेशम के बारीक
(हल्के) और मोटी पोशाक (कपड़े) पहने हुए एक दूसरे के सामने बैठे होंगे |
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ऐसा ही होगा और हम
बड़ी बड़ी आँखों वाली हूरों से इनके जोड़े लगा देंगे |
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55 |
वह वहाँ हर कि़स्म
(तरह) के मेवे सुकून के साथ तलब (माँग) करेंगे |
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और वहाँ पहली मौत के
अलावा किसी मौत का मज़ा नहीं चखना होगा और ख़ुदा इन्हें जहन्नुम के अज़ाब से
महफ़ूज़ (हिफ़ाज़त के साथ) रखेगा |
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ये सब आपके परवरदिगार
(पालने वाले) का फ़ज़्ल व करम है और यही इन्सान के लिए सबसे बड़ी कामयाबी है |
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पस हमने इस कु़रआन को
आपकी ज़बान से आसान कर दिया है कि शायद ये लोग नसीहत (अच्छी बातें) हासिल कर लें |
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फिर आप इन्तिज़ार करें
और ये लोग भी इन्तिज़ार कर ही रहे हैं |
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